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डेली न्यूज़

  • 28 Sep, 2024
  • 65 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मत्स्यपालन सब्सिडी पर भारत का रुख

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन (WTO), मात्स्यिकी सब्सिडी पर समझौता (FSA), स्पेशल एंड डिफरेंशियल ट्रीटमेंट (S&DT), प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY), नीली क्रांति (नील क्रांति मिशन), किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना विस्तार, सागरमाला परियोजना, समुद्री मत्स्य पालन विधेयक- 2021, राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति। 

मेन्स के लिये:

मत्स्य सब्सिडी समझौता (FSA) और भारत पर इसका प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों?

विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मत्स्यपालन सब्सिडी पर विनियमन स्थापित करने के भारत के प्रस्ताव को अनेक विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों (एलडीसी) से पर्याप्त समर्थन प्राप्त हुआ है।

  • वर्तमान में मात्स्यिकी सब्सिडी पर समझौते (FSA) के दूसरे चरण को अंतिम रूप देने के प्रयास चल रहे हैं, जिसका उद्देश्य अधिक क्षमता और अधिक मत्स्यपालन में योगदान देने वाली सब्सिडी पर विनियमन स्थापित करना है, जिससे टिकाऊ मत्स्यपालन प्रथाओं को बढ़ावा मिले।

मत्स्यपालन सब्सिडी समझौता (एफएसए) क्या है?

  • के बारे में:
  • संक्रमण अवधि भत्ता:
    • इस समझौते के प्रभावी होने पर अल्प विकसित देशों (एल.डी.सी.) और विकासशील देशों (DC) को स्पेशल एंड डिफरेंशियल ट्रीटमेंट (S&DT) के अंतर्गत दो वर्ष की संक्रमण अवधि दी गई है।
    • निर्दिष्ट अवधि के लिये नियम लागू करने का उन पर कोई दायित्व नहीं होगा।
  • छूट प्राप्त क्षेत्र:
    • किसी WTO सदस्य पर अपने जहाज़ या ऑपरेटर को सब्सिडी देने या इसे बनाए रखने के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, जब तक कि वह IUU का संचालन नहीं कर रहा हो।
    • जब तक इन सब्सिडी का उपयोग अति मतस्यन किये गए स्टॉक की जैविक रूप से संधारणीय स्तर पर पुनः पूर्ति के लिये किया जाता है, तब तक उन्हें मत्स्यन के लिये सब्सिडी प्रदान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
      • FSA के दूसरे चरण में इस मुद्दे पर वार्ता चल रही है।
  • लाभ:
    • इससे बड़े पैमाने पर होने वाली अवैध, असूचित और अविनियमित (IUU) मत्स्यन पर रोक लगेगीIUU भारत जैसे तटीय देशों को मत्स्य संसाधनों से वंचित करती है, जिससे मात्स्यिकी से संबंधित समुदायों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

मत्स्यपालन सब्सिडी समझौते के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • छोटे मछुआरों और विकासशील देशों एवं LDC की चिंताएँ:
    • बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक मत्स्यन के कारण प्रायः मत्स्य संसाधन का स्टॉक समाप्त हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे मछुआरे कम मछलियाँ संग्रह कर पाते हैं। 
      • मत्स्यन के बड़े निगमों को प्रायः पर्याप्त सरकारी सब्सिडी मिलती है, जबकि छोटे मछुआरों को नहीं मिलती, जिससे मत्स्य उद्योग में असंतुलन हो जाता है। 
    • FSA में स्थिरता छूट खंड समस्याग्रस्त है, क्योंकि यह उन्नत मत्स्यन वाले देशों को, जिनके पास बेहतर मॉनिटरिंग क्षमताएँ हैं, प्रभावित करने वाले सब्सिडी को कम करने की प्रतिबद्धताओं से बचने की अनुमति देता है, जिससे गरीब देशों को नुकसान होता है, जो स्थायी रूप से मत्स्यन कर सकते हैं, लेकिन उनके पास समान क्षमताओं व संसाधन का अभाव है। 
    • वैश्विक स्तर पर, अनुमानतः 37.7% मत्स्य भण्डार का अत्यधिक दोहन किया गया है, जो वर्ष 1974 के 10% से उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है तथा प्रभावी विनियामक हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
      • विश्व व्यापार संगठन के आँकड़ों के अनुसार, मत्स्य पालन के लिये वैश्विक स्तर पर सरकारी वित्तपोषण 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें से लगभग 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर सब्सिडी के लिये निर्देशित किया जाता है, जिससे अस्थिर मत्स्यन की क्षमता में वृद्धि होती है। 

नोट: 

  • मत्स्य पालन को सब्सिडी देने वाले देशों की स्थिति:
    • मत्स्यन पर सब्सिडी देने वाले शीर्ष पाँच देश चीन, यूरोपीय संघ, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान हैं, जो सामूहिक रूप से कुल वैश्विक मत्स्यन की सब्सिडी का 58% हिस्सा देते हैं।
    • चीन एक महत्त्वपूर्ण सब्सिडी प्रदाता के रूप में विकसित हुआ आया है, जिसकी लगभग दो-तिहाई सब्सिडी क्षमता-वृद्धि के रूप में वर्गीकृत है, जिसमें बड़े जहाज़ों और समुद्री संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन करने के लिये डिज़ाइन किये गए उपकरणों में निवेश शामिल है।

FSA पर भारत का रुख क्या है?

  • मत्स्य पालन सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन में भारत द्वारा प्रस्तुत किये गए दस्तावेज़ों में उन महत्त्वपूर्ण कमियों को रेखांकित किया गया है, जो गैर-संधारणीय मत्स्य पालन प्रथाओं को जारी रख सकते हैं, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर औद्योगिक मत्स्य पालन करने वाले देशों के बीच।
  • भारत के अनुसार इतनी बड़ी आबादी के बावजूद वह मत्स्यपालन में सबसे कम सब्सिडी का योगदान करने वाले देशों में से एक है, तथा मत्स्य संसाधनों का संधारणीय दोहन करने वाले अनुशासित देशों में से एक है। 
  • भारत ‘प्रदूषणकर्त्ता भुगतान सिद्धांत’ और ‘सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों’ के अनुप्रयोग का समर्थन करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च सब्सिडी और औद्योगिक मत्स्यन की प्रथाओं वाले देश नकारात्मक प्रभाव डालने वाले सब्सिडी को प्रतिबंधित करने में अधिक दायित्व निभाएँ।

भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र की स्थिति

आगे की राह 

  • वार्ता के लिये संतुलित दृष्टिकोण: FSA के लिये विश्व व्यापार संगठन में चल रही वार्ता में एक संतुलित दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये जो अधिक क्षमता और अति-मत्स्यन के मुद्दे का प्रभावी ढंग से हल करे, साथ ही छोटे पैमाने के मछुआरों, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के हितों की रक्षा करे।
    • समझौते में तटीय समुदायों की आवश्यकताओं और चिंताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि उनकी आवश्यकताएँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में केंद्रीय हों। 
  • भारत के लिये नेतृत्व की भूमिका: इस समझौते से भारत को महत्त्वपूर्ण लाभ होगा। भारत के छोटे पैमाने के मछुआरे और स्थानीय तटीय समुदाय अति-मत्स्यन से विशेष रूप से प्रभावित हैं।
    • भारत के पास औद्योगिक मत्स्यन वाले विदेशी बेड़ों की गतिविधियों से प्रभावित तटीय देशों को समर्थन देकर ग्लोबल साउथ में अग्रणी के रूप में खुद को स्थापित करने का अवसर है। 
    • यह रुख भारत की अपने छोटे पैमाने के मछुआरों और स्थानीय तटीय समुदायों के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ कर सकता है, जो अति-मत्स्यन और घटती हुई मत्स्यन संग्रह से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विकासशील देशों (DC) और अल्प विकसित देशों (LDC) के लिये मत्स्य पालन सब्सिडी समझौते (FSA) के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। विकसित देशों से सब्सिडी के संभावित प्रभावों के संदर्भ में क्या चिंताएँ हैं?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. 'ऐग्रीमेंट ऑन ऐग्रीकल्चर (Agreement on Agriculture)', 'ऐग्रीमेंट ऑन दि ऐप्लीकेशन ऑफ सैनिटरी ऐंड फाइटोसैनिटरी मेजर्स (Agreement on the Application of Sanitary and Phytosanitary Measures)' और 'पीस क्लॉज़ (Peace Clause)' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं? (2015)

(a) खाद्य और कृषि संगठन
(b) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का रूपरेखा सम्मेलन
(c) विश्व व्यापार संगठन
(d) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जहाँ लिये गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। डब्ल्यू.टी.ओ. का क्या अधिदेश (मैंडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी हैं? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनापूर्वक विश्लेषण कीजिये। (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व पर्यटन दिवस 2024

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व पर्यटन दिवस, संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन, सतत् विकास लक्ष्य, सकल घरेलू उत्पाद, यात्रा एवं पर्यटन विकास सूचकांक, राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2022, देखो अपना देश पहल, स्वदेश दर्शन योजना, हिमालय, हम्पी 

मेन्स के लिये:

भारत में पर्यटन क्षेत्र का महत्त्व, भारत में पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में पर्यटन से संबंधित हालिया पहल।

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों? 

पर्यटन मंत्रालय ने 27 सितंबर 2024 को ‘पर्यटन और शांति’ थीम के साथ विश्व पर्यटन दिवस मनाया, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि कैसे पर्यटन अंतर-सांस्कृतिक संपर्क और समझ को प्रोत्साहित करके विश्व शांति को बढ़ावा देने में योगदान देता है। 

विश्व पर्यटन दिवस का महत्त्व क्या है?

  • इतिहास: विश्व पर्यटन दिवस पहली बार वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) द्वारा मनाया गया था और इसका उद्देश्य पर्यटन के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाना था।
    • यह दिवस वर्ष 1975 में UNWTO के कानूनों के अनुमोदन की याद में मनाया जाता है, जिसके पाँच वर्ष बाद संगठन की आधिकारिक स्थापना हुई।
    • UNWTO आर्थिक वृद्धि, समावेशी विकास एवं पर्यावरणीय स्थिरता के चालक के रूप में पर्यटन का समर्थन करता है, साथ ही पूरे विश्व में ज्ञान और नीतियों को आगे बढ़ाने में इस क्षेत्र का समर्थन करता है।
      • UNWTO में 160 सदस्य देश (भारत सहित), 6 सहयोगी सदस्य, 2 पर्यवेक्षक और 500 से अधिक संबद्ध सदस्य शामिल हैं।
      • इसका मुख्यालय मैड्रिड, स्पेन में है। 
  • वार्षिक थीम: प्रत्येक वर्ष विश्व पर्यटन दिवस एक विशिष्ट थीम और मेज़बान देश के साथ मनाया जाता है, जो पूरे विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यटन की अद्वितीय भूमिका पर प्रकाश डालता है। 
    • वर्ष 2024 में जॉर्जिया को इस महत्त्वपूर्ण आयोजन की मेज़बानी करने का सम्मान मिला। विश्व पर्यटन दिवस 2024 की थीम विशेष रूप से प्रेरणादायक है: "पर्यटन और शांति (Tourism and Peace)"।
  • यह दिवस संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये एक उपकरण के रूप में पर्यटन की क्षमता पर ज़ोर देता है, विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन और सतत् संसाधन प्रबंधन में। यह जलवायु कार्रवाई पर SDG 13 का समर्थन करने में इको-टूरिज्म के महत्त्व पर भी प्रकाश डालता है।

पर्यटन शांति में किस प्रकार योगदान देता है?

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: पर्यटन विविध संस्कृतियों के बीच समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है तथा साझा अनुभवों व संवाद के माध्यम से पूर्वाग्रह को कम करता है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: आर्थिक विकास के एक प्रमुख चालक के रूप में (पर्यटन वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 10% का योगदान देता है, वैश्विक निर्यात का 7% है तथा पूरे विश्व में प्रत्येक 10 नौकरियों में से एक के लिये ज़िम्मेदार है), पर्यटन नौकरियों का सृजन करता है तथा स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करता है, जिससे गरीबी और असमानता को कम किया जा सकता है, जो संघर्ष के मूल कारण हो सकते हैं।
  • स्थिरता: ज़िम्मेदार पर्यटन प्रथाएँ प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करती हैं, सामुदायिक गौरव को बढ़ावा देती हैं तथा संसाधन-संबंधी तनाव को कम करती हैं।
  • सुशासन: एक समृद्ध पर्यटन क्षेत्र सरकार की स्थिरता बनाए रखने तथा शांति और कार्यक्षमता को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • लैंगिक समानता: पर्यटन उद्योग महिलाओं को सशक्त बनाता है और स्थानीय समुदायों को शामिल करता है। 
    • भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित जनजातीय गृह प्रवास ( स्वदेश दर्शन कार्यक्रम के तहत) का उद्देश्य जनजातीय क्षेत्रों की पर्यटन क्षमता का दोहन करना और जनजातीय समुदाय को वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना है। 
    • यह पहल सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है और असमानताओं को कम करती है।
  • महामारी से उबरना: पर्यटन अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण और संघर्ष के बाद के क्षेत्रों में उपचार को बढ़ावा देने में सहायता करता है, जैसा कि रवांडा जैसे देशों में देखा गया है। 
    • वर्ष 2021 में 11% की वृद्धि के बाद, वर्ष 2022 की पहली तीन तिमाहियों में रवांडा की GDP 8.4% बढ़ी। यह वृद्धि सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से पर्यटन के पुनरुत्थान के कारण हुई, जिसने रोज़गार संकेतकों को कोविड-19 महामारी से पहले वर्ष 2020 की शुरुआत में देखे गए स्तरों पर बहाल कर दिया।

भारत के यात्रा एवं पर्यटन उद्योग का परिदृश्य क्या है?

  • वैश्विक रैंकिंग: विश्व आर्थिक मंच के यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक 2024 में भारत 39वें स्थान पर है। इसका मज़बूत प्रदर्शन असाधारण प्राकृतिक, सांस्कृतिक और गैर-अवकाश संसाधनों (ऐसे संसाधन जो अवकाश के दौरान यात्रा के अलावा व्यवसाय, शिक्षा और अन्य गतिविधियों के लिये उपयोग किये जाते हैं) द्वारा संचालित है। 
  • आर्थिक योगदान: विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद (WTTC) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था में भारत के यात्रा एवं पर्यटन क्षेत्र का योगदान 199.6 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक होटल और पर्यटन उद्योग में संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह 17.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त कुल FDI प्रवाह का 2.54% है।
    • वर्ष 2023 में घरेलू पर्यटक यात्राओं (DTV) की वृद्धि 250 करोड़ तक पहुँच गई थी, जो वर्ष 2014 में 128 करोड़ से लगभग दोगुनी है।
  • सरकारी पहल: 
  • विकास अनुमान:

    • वार्षिक वृद्धि दर: भारतीय यात्रा एवं पर्यटन उद्योग की वार्षिक वृद्धि दर 7.1% रहने की उम्मीद है।
    • रोज़गार सृजन: भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा जुटाकर समावेशी विकास के माध्यम से पर्यटन क्षेत्र में लगभग 140 मिलियन रोज़गार सृजित करना है और सरकार विशेष रूप से क्रूज़ पर्यटन, इकोटूरिज्म तथा साहसिक पर्यटन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
    • आगंतुक व्यय रुझान: वर्ष 2022 में घरेलू आगंतुक व्यय में 20.4% की वृद्धि हुई, जबकि अंतर्राष्ट्रीय आगंतुक व्यय में 81.9% की वृद्धि हुई।
    • विदेशी पर्यटकों का आगमन (FTA): वर्ष 2023 में FTA 9.24 मिलियन तक पहुँच गया, जो वर्ष 2022 में 6.43 मिलियन से उल्लेखनीय वृद्धि है।
      • वर्ष 2022 के दौरान भारत में FTA के लिये शीर्ष देश संयुक्त राज्य अमेरिका, बांग्लादेश और यूनाइटेड किंगडम थे। वर्ष 2028 तक FTA के 30.5 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।

भारत में पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सुरक्षा एवं संरक्षा संबंधी मुद्दे: चोरी और हमले सहित अपराध की घटनाएँ सामने आई हैं, जिससे विशेष रूप से महिला यात्रियों के लिये भय का माहौल पैदा हो रहा है।
  • ऐसे सुरक्षा मुद्दे पर्यटकों को कुछ क्षेत्रों में जाने से रोक सकते हैं, जिससे भारत की पर्यटक-अनुकूल देश के रूप में समग्र धारणा प्रभावित हो सकती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई पर्यटन स्थलों, विशेषकर पूर्वोत्तर जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में, विश्वसनीय हवाई, रेल और सड़क संपर्क जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी है। इससे खूबसूरत लेकिन अनदेखे क्षेत्रों तक पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रा प्रभावित होती है।
  • अकुशल मानव संसाधन: पर्यटन क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है, जिसमें बहुभाषी गाइड भी शामिल हैं। यह कमी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के समग्र अनुभव में बाधा डाल सकती है और सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। 
  • असंवहनीय पर्यटन प्रथाएँ: हिमालय जैसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटन की असंवहनीय प्रथाएँ संसाधनों की कमी, मृदा अपरदन और आवास विनाश का कारण बनती हैं। संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों पर दबाव पड़ता है।
  • प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: ताजमहल सहित प्रमुख पर्यटक स्थल प्रदूषण से प्रभावित हैं। जलवायु परिवर्तनसे और भी खतरे उत्पन्न होते हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं, जिनका असर पर्यटन के बुनियादी ढाँचे तथा विरासत संरक्षण पर पड़ता है। 

भारत के पर्यटन लाभ क्या हैं?

  • समृद्ध सांस्कृतिक विरासत: भारत भाषाओं, धर्मों और परंपराओं का संगम है। ताजमहल, हम्पी तथा जयपुर के किले जैसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल यहाँ के इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  • प्राकृतिक सौंदर्य: भारत में हिमालय का 70% भाग (अनेक साहसिक खेलों और ट्रैकिंग के लिये कई अवसर हैं) मौजूद है।
    • 7,000 किलोमीटर लंबी तटरेखा (जल क्रीड़ा एवं समुद्र तट पर्यटन के लिये आदर्श)। भारत में ऊष्ण और शीत दोनों प्रकार के रेगिस्तान हैं।
    • व्यापक वन क्षेत्र जो पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
    • भारत की जैव विविधता में अद्वितीय वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु मौजूद हैं, जिनमें जिम कॉर्बेट और काज़ीरंगा जैसे राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल हैं।
  • साहसिक पर्यटन की संभावना: ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग और वन्यजीव सफारी जैसी गतिविधियों की शृंखला के साथ, भारत साहसिक पर्यटन हेतु एक प्रमुख गंतव्य बनने की ओर अग्रसर है।
  • किफायती यात्रा विकल्प: भारत में यात्रा की लागत कई पश्चिमी देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, जिससे यह विभिन्न आय समूहों के लिये सुलभ है और इस प्रकार विविध प्रकार के पर्यटकों को आकर्षित करता है।
  • गर्मजोशी भरा आतिथ्य: "अतिथि देवो भव" (अतिथि भगवान है) की भारतीय नीति आगंतुकों के लिये गर्मजोशी और स्वागतपूर्ण अनुभव सुनिश्चित करती है। 
  • स्थानीय लोग सामान्यतः पर्यटकों की सहायता करने और उनके साथ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को साझा करने के लिये उत्सुक रहते हैं, जिससे उनका समग्र अनुभव बेहतर होता है।
  • पाक-कला/क्यूलिनेरी की विविधता: देश अपने क्षेत्रों में विभिन्न पाक-कला के अनुभवों का दावा करता है, जो शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार के व्यंजनों के लिये जाना जाता है। इसके लोकप्रिय स्ट्रीट फूड की पेशकश उन खाद्य प्रेमियों को पसंद आती है जो प्रामाणिक स्थानीय स्वाद की तलाश में रहते हैं।
  • बढ़ता बुनियादी ढाँचा: भारत, भारतमाला जैसी पहलों के तहत हवाई अड्डों के विस्तार, रेलवे सुधार और राजमार्ग विकास के माध्यम से पर्यटन बुनियादी ढाँचे को बढ़ा रहा है।
    • आतिथ्य और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश का उद्देश्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाना तथा आगंतुकों की बढ़ती संख्या को समायोजित करना है।

आगे की राह

  • कनेक्टिविटी में वृद्धि: दूरदराज के पर्यटन स्थलों तक पहुँच में सुधार के लिये वंदे भारत ट्रेनों और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी परिवहन पहलों में निवेश करना चाहिये।
  • कर सरलीकरण: पर्यटकों और व्यवसायों के लिये लागत कम करने हेतु कम वस्तु एवं सेवा कर (GST) दरों सहित सुव्यवस्थित कर सुधारों का समर्थन करना।
  • सुरक्षा को प्राथमिकता देना: सुरक्षा के प्रति पर्यटकों का विश्वास बढ़ाने के लिये पर्यटन पुलिस की स्थापना करना और सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करना।
  • कौशल विकास: सेवा की गुणवत्ता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता में सुधार के लिये पर्यटन कार्यबल के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना।
  • डिजिटल तकनीक का लाभ उठाना: डिजी यात्रा ऐप जैसी मौजूदा पहलों को बढ़ावा देना और बहुभाषी समर्थन की सुविधा हेतु भाषिणी का लाभ उठाना, जिससे सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक सहज यात्रा अनुभव सुनिश्चित हो सके।
    • इसके अतिरिक्त, गंतव्यों की दृश्यता बढ़ाने और यात्रा की योजना को सुव्यवस्थित करने के लिये सोशल मीडिया व यात्रा वेबसाइटों का उपयोग करना चाहिये।
  • स्टेकेशन ट्रेंड को अपनाना: मैरियट और ओबेरॉय जैसी प्रमुख होटल शृंखलाएँ तनाव से राहत तथा शानदार पलायन प्रदान करने वाले क्यूरेटेड अनुभव प्रदान करके स्टेकेशन ट्रेंड को अपना रही हैं। स्टेकेशन को बढ़ावा देकर होटल ऑक्यूपेंसी दरों को बढ़ा सकते हैं और आस-पास के आकर्षणों व सेवाओं पर व्यय बढ़ाकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ: स्वास्थ्य और सुरक्षा नियमों को अपनाते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये रूस जैसे देशों के साथ यात्रा की संभावना तलाशना।
    • सिस्टर सिटीज़ की अवधारणा सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक सहयोग और पर्यटन पहलों में आपसी समर्थन को बढ़ावा देकर इन साझेदारियों को बढ़ा सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विश्व पर्यटन दिवस के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और भारत के यात्रा एवं पर्यटन उद्योग के वर्तमान दृष्टिकोण का मूल्यांकन कीजिये तथा उन्हें संबोधित करने के लिये रणनीति प्रस्तावित कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स:

प्रश्न. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है ? (2019)

प्रश्न. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वाहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकान कीजिये। (2015)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

FRP, SAP, CACP, रंगराजन समिति, WTO, गन्ना उद्योग, EBP कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति, भारत में गन्ना उत्पादन, इसकी संभावनाएँ और चुनौतियाँ

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

चर्चा में क्यों?

भारत के चीनी क्षेत्र में लंबे समय तक अनिश्चितता बने रहने के पश्चात् वर्तमान में इसकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है।

  • वर्तमान सीज़न के लिये उत्पादन अनुमानों में हाल ही में किये गए समायोजनों तथा अक्तूबर माह से शुरू होने वाले आगामी सीज़न के लिये आशावादी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में आपूर्ति की स्थिति में सुधार हो रहा है।

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति क्या है?

  • उत्पादन एवं उपभोग डेटा:
    • उत्पादन: भारतीय चीनी मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार इथेनॉल डायवर्ज़न और निर्यात पर प्रतिबंध के बाद चीनी वर्ष (SY) 2024 में सकल चीनी उत्पादन 34.0 मिलियन मीट्रिक टन और निवल उत्पादन 32.3 मिलियन मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
      • अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार, वर्ष 2023-24 में 45.54 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ ब्राज़ील विश्व का शीर्ष चीनी उत्पादक था जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 25% है।
      • भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जिसका विश्व के कुल चीनी उत्पादन में लगभग 19% का योगदान है।
    • खपत और स्टॉक: चीनी की घरेलू खपत 28.5 मिलियन मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जिससे सितंबर 2024 तक शेष स्टॉक (Closing Stock) 9.4 मिलियन मीट्रिक टन हो जाएगा, जो गत वर्ष के 5.6 मिलियन मीट्रिक टन शेष स्टॉक से अधिक है।
    • इथेनॉल उत्पादन: इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ESY) 2024 की पहली छमाही के लिये 320 करोड़ लीटर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें मार्च 2024 तक 224 करोड़ लीटर की आपूर्ति की योजना शामिल थी, जो मिश्रण अनुपात को 11.96% करने पर आधारित था।
  • चीनी उद्योग का वितरण: चीनी उद्योग प्रमुखतः उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्रों में वितरित है:
    • उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब तथा दक्षिण भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश।
    • दक्षिण भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जो उच्च इक्षुशर्करा अथवा सुक्रोज़ सामग्री के लिये उपयुक्त है, जिससे उत्तर भारत की अपेक्षा यहाँ प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उपज होती है।
  • चीनी की वृद्धि के लिये भौगोलिक परिस्थितियाँ:
    • तापमान: 21 से 27°C की ऊष्ण एवं आर्द्र जलवायु।
    • वर्षा: 75 से 100 सेमी.
    • मृदा प्रकार: गहरी, उपजाऊ दुमटी मृदा।
  • चीनी निर्यात:

भारत में चीनी उद्योग का क्या महत्त्व है?

  • रोजगार सृजन: चीनी क्षेत्र अत्यधिक श्रम-प्रधान क्षेत्र है, जो लगभग 5 करोड़ किसानों और उनके परिवारों की आजीविका का साधन है।
    • इससे विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में चीनी मिलों और संबंधित उद्योगों में संलग्न 500,000 से अधिक कुशल श्रमिकों एवं साथ-साथ अनेक अर्द्ध-कुशल श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त होता है।
  • मूल्य-शृंखला संबंध: इस उद्योग का गन्ने की कृषि से लेकर चीनी और ऐल्कोहॉल के उत्पादन तक संपूर्ण मूल्य-शृंखला में योगदान है, जो विभिन्न क्षेत्रों को सहायता प्रदान करता है तथा स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • उपोत्पादों का आर्थिक योगदान: चीनी उद्योग से कई उपोत्पाद उत्पन्न होते हैं, जिनमें इथेनॉल, शीरा (मोलासिस) और खोई शामिल हैं, जो आर्थिक विकास में योगदान करते हैं। 
    • यह एक बहु-उत्पाद फसल बन गई है, जो न केवल चीनी व इथेनॉल के लिये बल्कि कागज़ और बिजली उत्पादन के लिये भी अपरिष्कृत माल के रूप में काम करती है।
  • पशुओं का आहार और पोषण: शीरा, चीनी उत्पादन का एक उपोत्पाद है, जो अत्यधिक पौष्टिक होता है एवं इसका उपयोग पशुओं के आहार और ऐल्कोहॉल के उत्पादन दोनों के लिये किया जाता है, जो कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
  • जैव ईंधन उत्पादन: भारत में अधिकांश इथेनॉल का उत्पादन गन्ने के शीरे से किया जाता है, जो इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के माध्यम से कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • खोई का उपयोग: खोई, चीनी निष्कर्षण के बाद प्राप्त रेशेदार अवशेष है जो ईंधन स्रोत के रूप में कार्य करता है और कागज़ उद्योग के लिये एक आवश्यक कच्चा माल है। कृषि अवशेषों से आवश्यक सेलुलोज़ का लगभग तीस प्रतिशत हिस्सा इसी से प्राप्त होता है।

भारत में चीनी उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जल-गहन फसल: हालाँकि गन्ना एक अत्यधिक जल-गहन फसल है किंतु मुख्य रूप से इसकी कृषि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे मानसून-निर्भर राज्यों में की जाती है, जिससे इन क्षेत्रों में जल की कमी की समस्या और बढ़ जाती है।
  • गन्ने की ऋतुनिष्ठ प्रकृति: गन्ने की ऋतुनिष्ठ उपलब्धता एक चुनौती है क्योंकि कटाई के बाद पेराई में यदि 24 घंटे से अधिक की देरी की जाती है तो इसके परिणामस्वरूप इसमें उपस्थित सुक्रोज़ की हानि होती है।
  • कम चीनी रिकवरी दर: भारतीय चीनी मिलों में चीनी रिकवरी दर 9.5-10% पर स्थिर बनी हुई है, जो कुछ अन्य देशों की 13-14% की दर से बहुत कम है। यह मुख्य रूप से बेहतर गन्ना किस्मों के विकास और फसल की उपज में सुधार करने में प्रमुख प्रगति की कमी के कारण है।
  • अनिश्चित उत्पादन: गन्ने की कृषि की प्रतिस्पर्द्धा अन्य खाद्य और नकदी फसलों जैसे कपास, तिलहन और चावल के साथ होती है, जिसके कारण आपूर्ति में घटत बढ़त और कीमत में अस्थिरता आती है। ऐसा विशेष रूप से अधिशेष अवधि के दौरान होता है जब कीमतों में गिरावट आती है।
  • अल्प निवेश और अप्रचलित तकनीक: अनेक चीनी मिलें, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, पुरानी हैं और अप्रचलित मशीनरी का उपयोग करती हैं, जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है।
  • गुड़ उत्पादन से प्रतिस्पर्धा: यद्यपि गुड़ में पोषण मूल्य अधिक होता है लेकिन चीनी की तुलना में इसमें इक्षुशर्करा प्राप्ति दर कम होती है, जिसके कारण जब गन्ने का उपयोग गुड़ उत्पादन के लिये किया जाता है तो देश को न निवल हानि होती है। 
    • इसके अतिरिक्त, गुड़ मिलें अक्सर चीनी मिलों की तुलना में कम कीमत पर गन्ना खरीदती हैं, जिससे किसान उन्हें अपना गन्ना बेचने के लिये प्रोत्साहित होते हैं, जिससे चीनी उत्पादन पर और अधिक असर पड़ता है।

चीनी उद्योग से संबंधित सरकार की क्या पहले हैं?

  • रंगराजन समिति (2012): इस समिति का गठन चीनी उद्योग में सुधार के लिये अनुशंसाएँ करने के लिये किया गया था जिसकी अनुशंसाएँ निम्नवत हैं:
    • चीनी के आयात और निर्यात पर मात्रात्मक नियंत्रण के स्थान पर उचित प्रशुल्क जैसे समाधान का क्रियान्वन करना तथा चीनी निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध को समाप्त करना।
    • चीनी मिलों के बीच 15 किमी. की न्यूनतम रेडियल दूरी की समीक्षा करना, जिससे उनका एकाधिकार स्थापित न हो और मिलों का किसानों पर असंगत नियंत्रण न हो।
    • उप-उत्पादों के लिये बाज़ार-निर्धारित कीमत का प्रावधान करना और राज्यों को नीतियों में सुधार के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे मिलों को खोई से विद्युत उत्पादित करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • मिलों की वित्तीय स्थिति सुधारने, किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने तथा गन्ना बकाया कम करने के लिये गैर-उगाही (Levy) चीनी की बिक्री पर प्रतिबंध हटाना।
  • उचित एवं लाभकारी कीमत (FRP): कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर, उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) को शामिल करते हुए, गन्ना मूल्य निर्धारण के लिये एक मिश्रित दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया।
  • पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण (EBP) कार्यक्रम: EBP पहल के तहत, गुड़/चीनी आधारित भट्टियों में इथेनॉल उत्पादन क्षमता वार्षिक रूप से 605 करोड़ लीटर तक बढ़ गई है तथा 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रयास जारी हैं।
  • विधायी उपाय:
    • आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955: ECA, 1955 के अंतर्गत चीनी क्षेत्र को नियंत्रित करने की शक्तियाँ प्रदान करते हुए चीनी और गन्ने से संबंधित विनियमन के प्रावधान किये गए हैं।
    • गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966: इसके अंतर्गत गन्ने के लिये FRP का निर्धारण किया गया है और इससे किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित होता है।
    • चीनी (नियंत्रण) आदेश, 1966: यह चीनी के उत्पादन, बिक्री, पैकेजिंग और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियंत्रण से संबंधित है।
    • चीनी मूल्य नियंत्रण आदेश, 2018: इसमें चीनी के लिये न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) का निर्धारण किया गया है और चीनी मिलों के निरीक्षण और भंडारण सुविधाओं की अनुमति प्रदान की गई है।

नोट:

  • उचित एवं लाभकारी कीमत (FRP): FRP का तात्पर्य उस न्यूनतम मूल्य से है जो चीनी मिलों को किसानों को गन्ने के लिये प्रदान की जानी होती है। इसे केंद्र सरकार द्वारा CACP की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के परामर्श से निर्धारित किया जाता है।
  • राज्य परामर्शित मूल्य (SAP): यद्यपि FRP केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है, राज्य सरकारें अपना स्वयं का SAP निर्धारित कर सकती हैं, जिसे चीनी मिलों को किसानों को भुगतान करना होता है, यदि कीमत FRP से अधिक होती है।

आगे की राह 

  • गन्ने हेतु अनुसंधान एवं विकास: गन्ने की कम उपज और कम इक्षुशर्करा प्राप्ति दरों का समाधान करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। अधिउत्पादक, जलाभावसह किस्मों को विकसित करने से दीर्घ अवधि में उत्पादकता और स्थिरता में सुधार हो सकता है।
  • राजस्व बँटवारे के फॉर्मूले का कार्यान्वयन: गन्ने के उचित मूल्य निर्धारण के लिये रंगराजन समिति के राजस्व बँटवारे के फॉर्मूले को अपनाया जाना चाहिये, जो चीनी और उप-उत्पादों की कीमतों पर आधारित है।
  • सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों को अपनाना: विश्वसनीय आँकड़ो के साथ गन्ना की कृषि करने वाले क्षेत्रों का सटीक मानचित्रण करने के लिये उन्नत सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • मूल्य समर्थन तंत्र: ऐसे मामलों में जहाँ फॉर्मूले द्वारा निर्धारित गन्ना मूल्य उचित मूल्य से नीचे हो जाता है, सरकार चीनी बिक्री पर लगाए गए उपकर से निर्मित एक समर्पित निधि के माध्यम से अंतर को पाट सकती है।
  • इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन: सरकार को तेल आयात पर निर्भरता कम करने, अतिरिक्त चीनी उत्पादन का प्रबंधन करने तथा चीनी और ऊर्जा बाज़ार दोनों को स्थिर करने के लिये इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न. भारत के चीनी उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इसके समर्थन के लिये लागू किये गए सरकारी उपायों का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शर्करा उद्योग के उपोत्पाद की उपयोगिता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013)

  1. खोई को, ऊर्जा उत्पादन के लिये जैव मात्रा ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  2. शीरे को, कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये एक भरण-स्टॉक की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।
  3. शीरे को, एथनॉल उत्पादन के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत के दक्षिणी राज्यों में नई चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है? न्यायसंगत विवेचन कीजिये। (2013)


शासन व्यवस्था

मेक इन इंडिया के 10 वर्ष

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

मेक इन इंडिया पहल, मेक इन इंडिया 2.0 चरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), PLI योजनाएँ, पीएम गतिशक्ति, सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम, NLP, भारत का लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI), स्मार्ट सिटीज़, स्टार्टअप इंडिया पहल, वस्तु और सेवा कर (GST)। 

मुख्य परीक्षा के लिये:

मेक इन इंडिया पहल के तहत की गई प्रमुख पहल, मेक इन इंडिया पहल का विश्लेषण, MII से संबंधित चुनौतियाँ और चिंताएँ। 

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने की दिशा में 25 सितम्बर 2014 को शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' पहल का एक दशक पूरा हो गया है।

'मेक इन इंडिया' पहल क्या है?

  • परिचय: इस अभियान को निवेश को सुविधाजनक बनाने, नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने तथा सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये शुरू किया गया था।
  • उद्देश्य:
    • विनिर्माण क्षेत्र की संवृद्धि दर को बढ़ाकर 12-14% प्रतिवर्ष करना।
    • वर्ष 2022 तक (संशोधित तिथि 2025) विनिर्माण से संबंधित 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार सृजित करना ।
    • वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाकर 25% करना।
  • 'मेक इन इंडिया' के स्तंभ:
    • नई प्रक्रियाएँ: इसके तहत 'व्यापार करने में सुलभता' को उद्यमशीलता के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने के साथ स्टार्टअप्स और स्थापित उद्यमों के लिये कारोबारी माहौल में सुधार के उपायों को लागू किया गया।
    • नवीन बुनियादी ढाँचा: सरकार ने विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचा बनाने के लिये औद्योगिक गलियारों एवं स्मार्ट शहरों के विकास को प्राथमिकता दी।
      • इसके तहत सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रणालियों और बेहतर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी बुनियादी ढाँचे के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया गया। 
    • नवीन क्षेत्र: रक्षा उत्पादन, बीमा, चिकित्सा उपकरण, विनिर्माण और रेलवे अवसंरचना सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सुविधा प्रदान की गई।
    • नई मानसिकता: इसके तहत सरकार ने नियामक के बजाय सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाई तथा देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिये उद्योगों के साथ साझेदारी को बढ़ावा दिया। 
  • मेक इन इंडिया 2.0: वर्तमान में चल रहा "मेक इन इंडिया 2.0" चरण (जिसमें 27 क्षेत्र शामिल हैं) इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के साथ वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में एक प्रमुख पहलू के रूप में भारत की भूमिका को मज़बूत कर रहा है।

मेड इन चाइना 2025

  • इस पहल का उद्देश्य चीन की अर्थव्यवस्था को कम लागत वाले विनिर्माण आधार से उच्च मूल्य वाले उत्पादों और सेवाओं के उत्पादक के रूप में परिवर्तित करना है। इस योजना के लक्ष्य इस प्रकार हैं: 
    • घरेलू स्तर पर प्राप्त मुख्य सामग्रियों की हिस्सेदारी को वर्ष 2020 के 40% से बढ़ाकर वर्ष 2025 में 70% करना।
    • सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस और रोबोटिक्स सहित 10 प्रमुख क्षेत्रों में तकनीकी सफलता हासिल करना।
    • ऊर्जा एवं संसाधन के उपभोग को कम करना।
    • विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी फर्मों और औद्योगिक केंद्रों का विकास करना।

मेक इन इंडिया को सक्षम बनाने के लिये उठाए गए प्रमुख कदम कौन से हैं?

  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ: PLI योजनाओं का उद्देश्य 14 प्रमुख क्षेत्रों को कवर करके घरेलू विनिर्माण तथा निर्यात को बढ़ावा देना है।
  • जुलाई 2024 तक प्रगति: कुल निवेश 1.23 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने के साथ लगभग 8 लाख रोज़गार सृजित हुए।
  • पीएम गतिशक्ति: इसे वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • यह पहल आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये मल्टीमॉडल और अंतिम-मील कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे की स्थापना पर केंद्रित है।
    • यह पहल सात प्राथमिक चालकों पर आधारित है: रेलवे, सड़क, बंदरगाह, जलमार्ग, हवाई अड्डे, जन परिवहन और रसद अवसंरचना।
  • सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम विकास: एक स्थायी सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम विकसित करने के लिये वर्ष 2021 में सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम को मंजूरी दी गई थी।
  • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP): इसे उन्नत प्रौद्योगिकी, बेहतर प्रक्रियाओं और कुशल जनशक्ति के माध्यम से भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु शुरू किया गया था।
  • औद्योगीकरण और शहरीकरण: राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम भारत की प्रमुख बुनियादी ढाँचा पहल है, जिसका उद्देश्य "स्मार्ट शहरों" और उन्नत औद्योगिक केंद्रों का विकास करना है।
  • स्टार्टअप इंडिया: इसे उद्यमियों को समर्थन देने, एक मज़बूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने और भारत को रोज़गार चाहने वालों के बजाय रोज़गार सृजक देश में बदलने हेतु शुरू किया गया था।
    • सितंबर 2024 तक भारत में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है जिसमें 148,931 DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्टअप हैं, जिनके माध्यम से 15.5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित हुए हैं।
  • कर सुधार: वस्तु एवं सेवा कर (GST), भारत की कर प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है।
  • एकीकृत भुगतान इंटरफेस: UPI की वैश्विक स्तर पर रियल टाइम भुगतान में 46% की हिस्सेदारी है, जो डिजिटल वित्त में इसकी प्रमुख भूमिका पर प्रकाश डालता है।
    • अप्रैल से जुलाई 2024 तक UPI द्वारा लगभग 81 लाख करोड़ रुपये के लेन-देन की सुविधा प्रदान की गई, जो इसके बढ़ते उपभोक्ता विश्वास का परिचायक है।

मेक इन इंडिया के अंतर्गत प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • टीकाकरण की वैश्विक आपूर्ति: भारत ने स्वदेशी टीकों की मदद से रिकॉर्ड कोविड-19 टीकाकरण कवरेज हासिल करने के साथ विश्व स्तर पर लगभग 60% टीकों की आपूर्ति करके एक अग्रणी निर्यातक की भूमिका निभाई।
  • वंदे भारत रेलगाड़ियाँ: यह भारत की पहली स्वदेशी सेमी-हाई स्पीड रेलगाड़ी है जो 'मेक इन इंडिया' पहल का उदाहरण है। 
    • वर्तमान में 102 सेवाएँ (51 रेलगाड़ियाँ), कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ रेल प्रौद्योगिकी में प्रगति को प्रदर्शित कर रही हैं।
  • रक्षा उत्पादन की उपलब्धियाँ: भारत के पहले घरेलू स्तर पर निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का जलावतरण रक्षा में आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगति का प्रतीक है। 
    • वर्ष 2023-24 में रक्षा उत्पादन 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने के साथ 90 से अधिक देशों को निर्यात किया गया।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में संवृद्धि: भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र वित्त वर्ष 23 तक 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक विस्तारित हो गया है जिसका उत्पादन वित्त वर्ष 17 से लगभग दोगुना हो गया है। इस उत्पादन में मोबाइल फोन का योगदान 43% है जिसके साथ ही भारत, वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन गया है।
  • निर्यात:
    • व्यापारिक वस्तुएँ: वित्त वर्ष 2023-24 में इनका निर्यात 437.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • रक्षा क्षेत्र हेतु जूते: 'मेड इन बिहार' जूते रूसी सेना में शामिल किये गए हैं।

    • कश्मीर विलो बल्ले: इन बल्लों को अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता मिली है, जो क्रिकेट में भारत की शिल्पकला और प्रभाव का परिचायक है।

    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमूल का विस्तार: अमूल ने अमेरिका में अपने डेयरी उत्पाद लॉन्च किये हैं, जो भारतीय डेयरी के वैश्विक महत्त्व को रेखांकित करता है।

  • वस्त्र उद्योग रोज़गार: वस्त्र क्षेत्र से लगभग 14.5 करोड़ रोज़गार सृजित हुए हैं

  • खिलौना उत्पादन: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 400 मिलियन खिलौनों का उत्पादन होता है तथा प्रति सेकंड 10 नए खिलौने निर्मित किये जाते हैं।

मेक इन इंडिया कार्यक्रम से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक विनिर्माण सूचकांक: वर्ष 2023 के अनुसार भारत वैश्विक विनिर्माण सूचकांक में 5वें स्थान (चीन और अमेरिका जैसे देशों से पीछे) पर रहा है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान: विनिर्माण क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में केवल लगभग 17% का योगदान दिया, जिससे इस क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है। 
    • हालाँकि वर्ष 2025 तक 25% योगदान के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये इसमें पर्याप्त सुधार आवश्यक हैं।
  • कौशल विकास का अभाव: भारत कौशल रिपोर्ट, 2024 से पता चलता है कि भारत के लगभग 60% कार्यबल में विनिर्माण संबंधी रोज़गार हेतु प्रासंगिक कौशल का अभाव है, जिससे इस क्षेत्र के संभावित विकास में बाधा आती है।
  • आपूर्ति श्रृंखला संबंधी चुनौतियाँ: कोविड-19 महामारी से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरियों का पता लगा है, जिससे भारत का विनिर्माण परिदृश्य प्रभावित हो रहा है। 
    • आपूर्ति श्रृंखलाओं के स्थानीयकरण की दिशा में बदलाव आवश्यक है लेकिन यह अभी भी अविकसित है।
  • निवेश लक्ष्य: सरकार ने वर्ष 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा है। 
    • वर्ष 2023 तक केवल 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ही निवेश हासिल किया जा सका है, जिससे लक्ष्य एवं वास्तविकता के बीच के अंतर पर प्रकाश पड़ता है।
  • नवप्रवर्तन और अनुसंधान एवं विकास: भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय का जीडीपी से अनुपात 0.7% है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है तथा वैश्विक औसत (1.8%) से भी काफी कम है।

आगे की राह

  • विनियमनों को सरल बनाना: व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने के लिये नौकरशाही प्रक्रियाओं और श्रम कानूनों को सरल बनाना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये, भारत में वर्ष 2019 और 2020 में पारित चार श्रम संहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: विनिर्माण दक्षता में सुधार के लिये परिवहन नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स प्रणालियों को उन्नत बनाना चाहिये।
  • कौशल विकास कार्यक्रम: कार्यबल में कौशल अंतराल को दूर करने के लिये लक्षित कौशल विकास पहलों को लागू करना चाहिये। 
    • दक्षिण कोरिया जैसे देशों में 90% जनसंख्या कुशल है इस क्रम में भारत को उद्योग की आवश्यकता के अनुसार पहल करनी होगी। 
  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्रोत्साहित करना: कर प्रोत्साहन सहित अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाकर नवाचार को बढ़ावा देना चाहिये।
  • स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देना: आयात पर निर्भरता कम करने तथा अनुकूलन बढ़ाने के लिये घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करना चाहिये।
  • विदेशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना: विदेशी निवेश को आकर्षित करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाने के लिये व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना चाहिये। 
    • वर्ष 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत चीन से FDI आकर्षित करके चीन से होने वाले निवेश से लाभान्वित हो सकता है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: संबंधित बाधाओं और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के साथ की जाने वाली पहल के प्रभाव की निगरानी हेतु ढाँचा स्थापित करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मेक इन इंडिया पहल के कार्यान्वयन के दस वर्ष पूरे होने के आलोक में इससे संबंधित प्रगति और चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स GST)' के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017) 

  1. यह भारत में बहु प्राधिकरणों द्वारा वसूल किये जा रहे बहु करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित करेगा।
  2. यह भारत के 'चालू खाता घाटे' को प्रबलता से कम कर उसके विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने हेतु उसे सक्षम बनाएगा।
  3. यह भारत की अर्थव्यवस्था की समृद्धि एवं आकार को बृहद रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकल जाने योग्य बनाएगा।

निम्नलिखित कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


मुख्य: 

प्रश्न. "भारत में बनाइये' कार्यक्रम की सफलता, 'कौशल भारत' कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)


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