विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
आईएनएस विक्रांत: भारत की एक स्वदेशी पहल
- 03 Sep 2022
- 12 min read
यह एडिटोरियल 01/09/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “A welcome addition to the naval quiver” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के पहले स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित किये गए विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’ को कमीशन किये जाने के बारे में चर्चा की गई है।
वर्ष 1960 में निर्मित पहले स्वदेशी युद्धपोत आईएनएस अजय (INS Ajay) और वर्ष 1968 में निर्मित पहले स्वदेशी हल्के युद्धपोत (फ्रिगेट) आईएनएस नीलगिरि (INS Nilgiri) के बाद अब पहले स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित किये गए विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) की कमीशनिंग के साथ भारत ने आत्मनिर्भरता हेतु 'आत्मनिर्भर भारत’ की राह में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर दर्ज किया है।
45,000 टन पूर्ण विस्थापन क्षमता के साथ विक्रांत भारत में डिज़ाइन और निर्मित किया गया सबसे बड़ा नौसैनिक जहाज़ है और इस उपलब्धि के साथ देश संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, रूस, इटली और चीन जैसे उन राष्ट्रों के समूह में शामिल हो गया है जो ऐसी क्षमता रखते हैं।
यद्यपि देश में स्वदेशीकरण का समावेशन अब परिपक्व अवस्था में है, महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, हाई-टेक घटकों, हथियारों और उन्नत निर्माण प्रक्रियाओं के विकास में अभी भी एक बड़ा अंतराल मौजूद है।
अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में स्थायी आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में स्वदेशी प्रयासों का पूर्ण क्षमता से दोहन कर सकने के लिये प्रासंगिक मांग-पक्ष कार्यात्मक क्षेत्र और प्रौद्योगिकियों की पहचान करना अनिवार्य है।
भारत की समुद्री सुरक्षा के दृष्टिकोण से आईएनएस विक्रांत का महत्त्व
- विक्रांत, जिसका अर्थ है साहसी (Courageous) का नाम भारत के पहले विमानवाहक पोत के नाम पर रखा गया है, जिसे यू.के. से खरीदा गया था और वर्ष 1961 में कमीशन किया गया था।
- पहला आईएनएस विक्रांत राष्ट्रीय गौरव का एक प्रमुख प्रतीक था और वर्ष 1997 में सेवामुक्त होने से पहले उसने वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध सहित कई सैन्य अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत के पहले घरेलू विमानवाहक पोत को अपने इसी शानदार पूर्ववर्ती का नाम प्रदान किया गया है।
- नौसेना में शामिल होने के साथ यह विमानवाहक पोत भारतीय नौसेना को एक प्रमुख समुद्री सैन्य बल या ‘ब्लू वाटर फोर्स’ के रूप में स्थापित करेगा जिसके पास दूर समुद्र में अपनी शक्ति प्रदर्शित करने की क्षमता होगी।
- हिंद महासागर क्षेत्र में एक ‘शुद्ध सुरक्षा प्रदाता’ (Net Security Provider) के रूप में भारत के उभार के दृष्टिकोण से यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जहाँ उसका मुक़ाबला चीन से है जिसकी नौसेना विमानवाहकों पर केंद्रित है और दो विमानवाहकों को अपने सैन्य बल में शामिल भी कर चुकी है।
- आईएनएस विक्रांत के कमीशन के साथ भारत के पास अब दो कार्यशील विमानवाहक होंगे (दूसरा ‘आईएनएस विक्रमादित्य’) जो राष्ट्र की समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा।
विश्व के अन्य प्रमुख विमानवाहक
- संयुक्त राज्य अमेरिका: यूएसएस जेरल्ड आर फोर्ड क्लास (USS Gerald R Ford Class)
- चीन: फुजियान (Fujian)
- यूनाइटेड किंगडम: क्वीन एलिजाबेथ क्लास (Queen Elizabeth Class)
- रूस: एडमिरल कुज़नेत्सोव (Admiral Kuznetsov)
- फ़्रांस: चार्ल्स डी गॉल (Charles De Gaulle)
- इटली: कावूर (Cavour)
भारतीय नौसेना के स्वदेशीकरण की राह की चुनौतियाँ
- उप-प्रणालियों और घटकों के लिये आयात पर निर्भरता: किसी भी युद्धपोत में डिज़ाइन से लेकर अंतिम परिचालन अधिष्ठापन तक मूलतः तीन घटक होते हैं: फ्लोट (FLOAT), मूव (MOVE) और फाइट (FIGHT)।
- भारतीय नौसेना ‘फ्लोट’ श्रेणी में लगभग 90% स्वदेशीकरण हासिल करने में सफल रही है, जबकि प्रणोदन के प्रकार के आधार पर ‘मूव’ श्रेणी में लगभग 60% स्वदेशीकरण हासिल किया है।
- लेकिन ‘फाइट’ श्रेणी में हमने केवल 30% स्वदेशीकरण हासिल किया है, शेष की पूर्ति के लिये आयात पर निर्भरता बनी हुई है।
- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव: अपने एंटीपाइरेसी अभियानों की सफलता के साथ चीन हिंद महासागर क्षेत्र के द्वीपों और तटीय देशों के लिये एक मज़बूत भागीदार के रूप में उभरा है। अभी हाल में उसने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपने पोत की तैनाती की है।
- लागत और समय की अधिकता: नौसेना को अधिकांश उत्पादन परियोजनाओं में लागत और समय की अधिकता का सामना करना पड़ा है; उदाहरण के लिये आईएनएस विक्रमादित्य को खरीदे जाने के 10 वर्ष बाद सेवा में शामिल किया गया था।
- पुरानी पड़ चुकी पनडुब्बियाँ: पनडुब्बियों के बेड़े को उसकी विभिन्न भूमिकाओं के साथ ही विमानवाहक पोतों को पूरकता प्रदान करने के दृष्टिकोण से अपरिहार्य माना जाता है।
- वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास 15 पारंपरिक पनडुब्बियाँ हैं जिनमें से प्रत्येक को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिये सतह से ऊपर आने की आवश्यकता होती है। इसके कारण वे लगातार लंबे समय तक गुप्त बने रहने में सफल नहीं हो पातीं।
भारत की रक्षा अवसंरचना के विस्तार से संबंधित अन्य पहलें
- विकास सह उत्पादन भागीदार पहल (Development cum Production Partner Initiative)
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज (Defence India Startup Challenge)
- सृजन पोर्टल (SRIJAN Portal)
- रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है।
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (Innovations for Defence Excellence- iDEX सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (रक्षा खरीद नीति)
- प्रोजेक्ट 75
आगे की राह
- तकनीकी प्रगति: स्वदेशी रूप से कोर सैन्य प्रौद्योगिकियों के विकास से नौसेना की क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- यद्यपि भारतीय नौसेना के पास डिज़ाइन क्षमताएँ हैं और कुछ हद तक उत्पादन आधार भी मौजूद है, लेकिन प्रदर्शन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है, जैसे:
- मानवरहित अंडरवाटर व्हीकल (Unmanned Underwater Vehicles- UUV)
- मल्टी-फंक्शन रडार
- जैव-तकनीकी हथियार (Bio-Technical Weapons)
- जहाजों और विमानों के लिये जैव ईंधन
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग के इस्तेमाल से अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस (UDA) को बढ़ावा देना।
- यद्यपि भारतीय नौसेना के पास डिज़ाइन क्षमताएँ हैं और कुछ हद तक उत्पादन आधार भी मौजूद है, लेकिन प्रदर्शन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है, जैसे:
- आत्मनिर्भरता के प्रति सहयोगात्मक दृष्टिकोण: भारतीय नौसेना में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये देश की संपूर्ण औद्योगिक क्षमता—चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ (DPSUs) हों, बड़े निजी उद्योग या मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम (MSMEs) हों, को परस्पर भागीदारी करने की आवश्यकता है।
- तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करने और अपने व्यापक विनिर्माण अनुभव को साझा करने के अलावा उन्हें भारतीय नौसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विश्वस्तरीय रक्षा अवसंरचना के विकास में बराबर के हितधारक के रूप में भी देखा जाना चाहिये, तभी आत्मनिर्भरता के सिद्धांत और प्रस्तावित स्वदेशी क्षमता को साकार किया जा सकेगा।
- युद्ध हेतु पूर्ण तैयारी रखना: स्वदेशी विकास के माध्यम से आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता युद्ध हेतु पूर्ण तैयारी रखने के बड़े लक्ष्य से संबंधित है।
- स्वदेशी उपकरण उपलब्ध होने तक युद्ध हेतु पूर्ण तैयारी रखने के लिये हमें अपनी वर्तमान परिचालन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिग्रहण कार्यक्रम को जारी बनाए रखना चाहिये।
- विश्व रक्षा बाज़ार का दोहन: भारतीय रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने पर भी पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
- लक्षित आउटरीच कार्यक्रमों के साथ एक ऑनलाइन तंत्र के माध्यम से निर्यात प्राधिकरण प्रक्रियाओं को सरल और सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।
- शिपयार्ड अवसंरचना में सुधार: हमने गुणवत्तापूर्ण युद्धपोत और विमानवाहक का उत्पादन तो किया है, लेकिन हमारे शिपयार्डों को गुणवत्ता, उत्पादकता और निर्माण अवधि में वैश्विक मानकों को प्राप्त करने के उद्देश्य से रूपांतरित करने के लिये निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि हम अधिकतम उत्पादन मूल्य प्राप्त कर सकें और अन्य देशों पर हमारी निर्भरता समाप्त हो।
- एक शांतिपूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र सुनिश्चित करना: हिंद महासागर में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने के साथ ही रणनीतिक परिवेश को आकार देने के लिये एक बहुपक्षीय, बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ भारत स्वयं को एक वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित कर रहा है, जिसमें क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने और क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को स्थापित करने की दृढ़ क्षमता है।
अभ्यास प्रश्न : भारतीय नौसेना में स्वदेशीकरण का समावेशन अपनी परिपक्व अवस्था में आ गया है, फिर भी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास में अभी भी एक बड़ा अंतराल मौजूद है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।