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तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची

  • 08 Apr 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, रक्षा क्षेत्र से संबंधित पहलें।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने 101 वस्तुओं की तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की है, जिसमें प्रमुख उपकरण/प्लेटफॉर्म शामिल हैं।

  • अगस्त 2020 में 101 वस्तुओं वाली 'प्रथम नकारात्मक स्वदेशीकरण' सूची को अधिसूचित किया गया था।
  • दूसरी स्वदेशीकरण सूची को जून 2021 में 108 वस्तुओं के साथ अधिसूचित किया गया था।

तीसरी सूची और इसका महत्त्व:

  • इसमें अत्यधिक जटिल सिस्टम, सेंसर, हथियार एवं गोला-बारूद, हल्के वज़न वाले टैंक, माउंटेड आर्टिगन सिस्टम, अपतटीय गश्ती पोत (OPV) आदि शामिल हैं।
  • इन हथियारों और प्लेटफाॅर्मों को दिसंबर 2022 से दिसंबर 2027 तक उत्तरोत्तर स्वदेशी बनाने की योजना है।
  • इन 101 वस्तुओं को अब से रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 के प्रावधानों के अनुसार स्थानीय स्रोतों से खरीदा जाएगा।
    • DAP 2020 में निम्नलिखित खरीद श्रेणियाँ शामिल हैं: खरीदें (भारतीय - स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित), खरीदें (भारतीय), खरीदें और बनाएँ (भारतीय), खरीदें (वैश्विक - भारत में निर्माण) और खरीदें (वैश्विक)।

महत्त्व:

  • घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना:
    • ये हथियार और प्लेटफॉर्म घरेलू उद्योग को बढ़ावा देंगे और देश में अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण की स्थिति को बदल देंगे।
  • राजकोषीय घाटे को कम करना और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना:
    • स्वदेशीकरण के लाभों के साथ-साथ इससे राजकोषीय घाटे में कमी, शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों के खिलाफ सुरक्षा, रोज़गार सृजन एवं भारतीय सेनाओं के बीच अखंडता तथा संप्रभुता की मज़बूत भावना सहित राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना बढ़ेगी।

रक्षा प्रोद्योगिकी का स्वदेशीकरण:

  • परिचय:
    • स्वदेशीकरण आत्मनिर्भरता और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन की क्षमता है।
    • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
    • भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है और अगले पाँच वर्षों में सशस्त्र बलों द्वारा रक्षा खरीद पर लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने की उम्मीद है।
  • भूमिका:
    • सोवियत संघ पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रक्षा औद्योगीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बदलाव आया।
    • वर्ष 1980 के दशक के मध्य से सरकार ने अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) में संसाधनों का इस्तेमाल किया ताकि डीआरडीओ को हाई प्रोफाइल परियोजनाएँ शुरू करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।
    • रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत वर्ष 1983 में हुई थी जब सरकार ने 5 मिसाइल सिस्टम (पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग) विकसित करने के लिये एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) को मंज़ूरी दी थी।
    • सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्वदेशी प्रयास पर्याप्त नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में सह-विकास और सह-उत्पादन की ओर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी, जब भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का उत्पादन करने के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • चुनौतियाँ:
    • संस्थागत क्षमता का अभाव:
      • रक्षा के स्वदेशीकरण के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिये एक संस्थागत क्षमता का अभाव।
    • ढाँचागत घाटा:
      • बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत की रसद लागत बढ़ जाती है जिससे देश की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है।
    • भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे:
      • भूमि अधिग्रहण के मुद्दे रक्षा निर्माण और उत्पादन में नए प्लेयर्स के प्रवेश को प्रतिबंधित करते हैं।
    • नीतिगत दुविधा:
      • DPP (रक्षा खरीद नीति, जिसे अब DAP 2020 से बदल दिया गया है) के तहत नीतिगत दुविधा के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। (ऑफसेट एक विदेशी आपूर्तिकर्त्ता के साथ अनुबंधित मूल्य का हिस्सा है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र में फिर से निवेश किया जाना चाहिये या जिसके खिलाफ सरकार प्रौद्योगिकी खरीद सकती है)।
        • केवल सरकार-से-सरकार के बीच समझौते (G2G), एकल विक्रेता अनुबंध या अंतर-सरकारी समझौते (IGA) में अब ऑफसेट क्लॉज़ नहीं होंगे।
        • DAP 2020 के अनुसार, अन्य सभी अंतर्राष्ट्रीय सौदे जो प्रतिस्पर्द्धी हैं और जिसके लिये कई विक्रेता हैं, उनके पास 30% ऑफसेट क्लॉज़ जारी रहेगा।

संबंधित पहलें:

  • FDI सीमा में वृद्धि: 
  • आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण:
    • अक्तूबर 2021 में सरकार ने चार दशक पुराने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) को भंग कर दिया और युद्ध सामग्री से लेकर भारी हथियारों व वाहनों तक के रक्षा हार्डवेयर के निर्माण के लिये सात नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के तहत 41 कारखानों को मिला दिया।
  • डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज:
    • DISC का उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यावसायीकरण करने के लिये स्टार्टअप्स/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
      • इसे रक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
  • सृजन पोर्टल:
    • यह एक वन स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है जो विक्रेताओं को स्वदेशीकरण के लिये उपकरण लेने की सुविधा प्रदान करता है।
  • ई-बिज पोर्टल:
    • ई-बिज पोर्टल पर औद्योगिक लाइसेंस (IL) और औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन (IEM) के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन कर दी गई है। 

आगे की राह

  • सभी आपत्तियों और विवादों से निपटने के लिये एक स्थायी मध्यस्थता प्रकोष्ठ की स्थापना की जा सकती है।
  • निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि यह कुशल और प्रभावी प्रौद्योगिकी तथा स्वदेशी रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिये आवश्यक मानव पूंजी का संचार कर सकता है।
  • सॉफ्टवेयर उद्योग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं साइबर सुरक्षा जैसी तकनीकों का उपयोग स्वदेशी रूप से "चिप" के विकास और निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
  • DRDO का विश्वास और अधिकार बढ़ाने के लिये उसे वित्तीय व प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना।
  • रक्षा उत्पादन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये लंबे कार्यकाल दिये जाने की आवश्यकता है।
  • तीनों सेवाओं के बीच इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये, नौसेना ने स्वदेशीकरण के पथ पर अच्छी तरह से प्रगति की है, मुख्य रूप से इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता, नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो के कारण।
  • एक रक्षा निर्माता के लिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला महत्त्वपूर्ण है जो लागत को अनुकूलित करती है।

स्रोत: पी.आई.बी. 

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