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जैव विविधता और पर्यावरण

हाई सीज़ ट्रीटी

  • 12 Jul 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता पर संधि (BBNJ), हाई सीज़ ट्रीटी, समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS), उच्च सागर पर 1958 जिनेवा कन्वेंशन, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, अल नीनो, महासागर अम्लीकरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR), सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

मेन्स के लिये:

हाई सीज़ ट्रीटी, भारत और विश्व के लिये महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते, जिसे हाई सीज़ ट्रीटी भी कहा जाता है, का समर्थन और अनुमोदन करने का निर्णय लिया है।

  • यह वैश्विक समझौता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के माध्यम से उच्च सागरीय समुद्री जैवविविधता की सुरक्षा के लिये बनाया गया है और यह समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के ढाँचे के भीतर संचालित होगा।

हाई सी क्या हैं?

  • परिचय:
    • उच्च सागरों पर 1958 के जेनेवा अभिसमय के अनुसार, समुद्र के वे हिस्से जो किसी देश के प्रादेशिक जल या आंतरिक जल में शामिल नहीं हैं, हाई सी कहलाते हैं।
    • यह किसी देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (जो समुद्र तट से 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है) से परे का क्षेत्र है तथा जहाँ तक ​​किसी राष्ट्र का जीवित और निर्जीव संसाधनों पर अधिकार क्षेत्र होता है।
    • कोई भी देश समुद्र में संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिये ज़िम्मेदार नहीं है।
  • महत्त्व:
    • उच्च समुद्र विश्व के 64% महासागरों और पृथ्वी की सतह के 50% भाग को कवर करते हैं, जिससे वे समुद्री जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं।
    • वे लगभग 270,000 ज्ञात प्रजातियों का आवास हैं।
    • उच्च समुद्र जलवायु को नियंत्रित करते हैं, कार्बन को अवशोषित करते हैं, सौर विकिरण को संग्रहित करते हैं तथा ऊष्मा वितरित करते हैं, जो ग्रहीय स्थिरता और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • वे मानव अस्तित्त्व के लिये आवश्यक हैं तथा समुद्री भोजन, कच्चा माल, आनुवंशिक और औषधीय संसाधन जैसे संसाधन प्रदान करते हैं।
  • संकट:
    • वे वायुमंडल से ऊष्मा अवशोषित करते हैं और अल नीनो तथा महासागरीय अम्लीकरण जैसी घटनाओं से प्रभावित होते हैं, जिससे समुद्री वनस्पतियों एवं जीवों को खतरा हो रहा है।
      • यदि वर्तमान तापमान वृद्धि और अम्लीकरण की प्रवृत्ति जारी रही तो वर्ष 2100 तक कई हजार समुद्री प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा होगा।
    • खुले समुद्र में मानवजनित दबावों में समुद्र तल पर खनन, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक और तेल रिसाव तथा आग, अनुपचारित अपशिष्ट (एंटीबायोटिक सहित) का निपटान, अत्यधिक मछली पकड़ना, आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश एवं तटीय प्रदूषण शामिल हैं।
    • इन खतरों के बावजूद, वर्तमान में केवल 1% उच्च समुद्र ही संरक्षित है।

हाई सीज़ ट्रीटी क्या है?

  • परिचय:
    • औपचारिक रूप से इसे राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर समझौता कहा जाता है। संक्षेप में इसे BBJN या हाई सीज़ ट्रीटी के रूप में जाना जाता है।
    • यह महासागरों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये UNCLOS के अंतर्गत एक नया अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचा है।
    • इस ट्रीटी पर वर्ष 2023 में बातचीत की गई थी और इसका उद्देश्य प्रदूषण को कम करना तथा किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर समुद्री जल में जैवविविधता एवं अन्य समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को बढ़ावा देना है।
  • प्रमुख उद्देश्य:
    • समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण एवं सुरक्षा: इसमें समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPA) की स्थापना शामिल है, जहाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये गतिविधियों को विनियमित किया जाएगा।
    • समुद्री संसाधनों के लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा: संधि का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान समुद्री जीवों से प्राप्त लाभ, चाहे वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हो या वाणिज्यिक दोहन के माध्यम से, सभी देशों के बीच समान रूप से साझा किये जाएँ।
    • अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessments  - EIA): संधि किसी भी ऐसी गतिविधि के लिये पूर्व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments) करना अनिवार्य बनाती है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित रूप से प्रदूषित या नुकसान पहुँचा सकती है, भले ही वह गतिविधि किसी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र में हो, लेकिन उसका प्रभाव उच्च समुद्र में होने की संभावना है।
    • क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण: इससे विकासशील देशों को महासागरों के लाभों का पूर्ण उपयोग करने में मदद मिलेगी, साथ ही उनके संरक्षण में भी योगदान मिलेगा।
  • हस्ताक्षर और अनुसमर्थन:
    • जून 2024 तक, 91 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें से 8 ने इसकी पुष्टि की है। 60 देशों द्वारा इसकी पुष्टि किये जाने के 120 दिन बाद यह कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाएगी।
      • अनुसमर्थन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई देश किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से कानूनी रूप से बंधे होने के लिये सहमत होता है, जबकि हस्ताक्षर करना अनुसमर्थन होने तक कानूनी दायित्व के बिना समझौते को दर्शाता है। अनुसमर्थन की प्रक्रिया अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती है।

हाई सीज़ ट्रीटी का महत्त्व क्या है?

  • "वैश्विक साझा" चुनौती का समाधान:
    • महासागर के 64% भाग को कवर करने वाला हाई सी वैश्विक साझी संपदा है, जिसके कारण संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैवविविधता की हानि और पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2021 में लगभग 17 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में फेंका गया और आने वाले वर्षों में इस मात्रा में वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • इस संधि की तुलना जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते से की जा रही है। इससे विशाल महासागर की सुरक्षा और समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • UNCLOS का पूरक: 
    • BBJN, UNCLOS के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो महासागरों के लिये व्यापक कानूनी ढाँचा तैयार करता है।
      • UNCLOS महासागरों में समतापूर्ण पहुँच, संसाधन उपयोग और जैवविविधता संरक्षण के लिये सामान्य सिद्धांत निर्धारित करता है, लेकिन इसमें विशिष्ट कार्यान्वयन दिशा-निर्देशों का अभाव है।
      • हाई सीज़ ट्रीटी इस अंतर को दूर करेगी तथा एक बार लागू हो जाने पर यह UNCLOS के तहत कार्यान्वयन समझौते के रूप में कार्य करेगी।
      • यह हाई सी में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण और प्रबंधन के लिये एक कानूनी तंत्र प्रदान करेगा।
      • यह विकसित और विकासशील देशों के हितों में संतुलन स्थापित करते हुए समुद्री संसाधनों के न्यायसंगत तथा सतत् उपयोग को सुनिश्चित करेगा।
  • उभरते खतरों का मुकाबला:
    • यह ट्रीटी गहरे समुद्र में खनन, महासागरीय अम्लीकरण और प्लास्टिक प्रदूषण जैसी उभरती चुनौतियों से निपटती है, जो उच्च समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य तथा लचीलेपन के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना:
    • एक मज़बूत संस्थागत ढाँचे और निर्णय लेने की प्रक्रिया की स्थापना करके, हाई सीज़ ट्रीटी  महासागर शासन में अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा समन्वय की सुविधा प्रदान करती है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में योगदान:
    • इस ट्रीटी के सफल कार्यान्वयन से SDG 14 (जल के नीचे जीवन) की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • वैश्विक नेतृत्व: समुद्री प्रशासन एवं समुद्री संसाधन स्थिरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, जैसे समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) की स्थापना, इसके वैश्विक नेतृत्व को रेखांकित करती है और इसे पर्यावरण चैंपियन बनाती है।
    • घरेलू नीति: संधि के EIA में भारत को अपनी समुद्री नीतियों को संरेखित करने तथा उत्तरदायित्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • आर्थिक लाभ: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ-साझाकरण के प्रावधान भारत की ब्लू इकोनॉमी लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिससे संभावित आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे।
    • सामरिक विचार: इस संधि का अनुसमर्थन भारत की हिंद-प्रशांत स्थिति को मज़बूत करेगा तथा SAGAR पहल के माध्यम से सतत् समुद्री पर्यावरण को समर्थन प्रदान करेगा।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS)

  • अप्रैल 1958 में, प्रादेशिक समुद्रों, समीपवर्ती क्षेत्रों, महाद्वीपीय शेल्फ़ों, उच्च समुद्रों(हाई सी), मत्स्य पालन और जीवित समुद्री संसाधनों के संरक्षण पर 4 जिनेवा अभिसमय को अपनाया गया था। इन अभिसमय को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसे वर्ष 1982 में पुष्ट और अनुमोदित किया गया था। 

  • यह महासागरों को 5 मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है:

समुद्र संबंधी अन्य अभिसमय कौन-से हैं?

  • महाद्वीपीय मग्नतट (शेल्फ) पर अभिसमय 1964: यह महाद्वीपीय शेल्फ के प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने और उनका दोहन करने वाले राज्यों के अधिकारों को परिभाषित एवं सीमांकित करता है।
  • मत्स्यन और हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय, 1966: यह हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु अभिकल्पित किया गया था क्योंकि इनमें से कुछ संसाधनों पर आधुनिक तकनीकी प्रगति के कारण अतिदोहन का खतरा है।
  • लंदन अभिसमय 1972: इसका लक्ष्य सभी समुद्री प्रदूषण स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को प्रोत्साहित करना और अपशिष्ट एवं अन्य वस्तुओं का सुरक्षित निपटान कर समुद्र को प्रदूषित होने से बचाने के लिये सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
  • MARPOL अभिसमय 1973: इसमें परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को शामिल किया गया है।
    • यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थ, पैकेज़्ड फॉर्म में हानिकारक पदार्थ, सीवेज़ और जहाज़ों से उत्पन्न अपशिष्ट आदि के कारण होने वाले समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है।

आगे की राह 

  • राष्ट्र की सरकारों को इस संधि का अंगीकार कर इसका अनुसमर्थन करते हुए हाई सी संधि को प्रभावशील बनाना चाहिये। जलीय जीवन और मानव कल्याण के लिये संधि के सफल कार्यान्वयन तथा निगरानी को सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • हाई सी संधि का अंगीकार कर भारत और अन्य देश नौवहन तथा मत्स्यन के प्रभाव को कम कर सकते हैं एवं एक सतत् ब्लू इकॉनमी को बढ़ावा दे सकते हैं जो अर्थव्यवस्था तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को लाभ पहुँचाती है।
  • यह संधि भारत को महासागर संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने और विश्व में हाई सी संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करती है।

निष्कर्ष

हाई सी संधि विश्व के महासागर अभिशासन के संबंध में एक ऐतिहासिक समझौता है। इस संधि का अनुसमर्थन करने का भारत का निर्णय एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसके समग्र विश्व में समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हाई सी संधि क्या है और यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तथा अर्थव्यवस्था के बेहतर संरक्षण एवं प्रशासन में किस-प्रकार मदद करेगी?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) 

  1. यह चीन और रूस को छोड़कर प्रशांत महासागर तटीय सभी देशों के मध्य एक समझौता है। 
  2. यह केवल तटवर्ती सुरक्षा के प्रयोजन से किया गया सामरिक गठबंधन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 


प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल को-ऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में घटित समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।  
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद और बढ़ता तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014)

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