इन्फोग्राफिक्स
जैव विविधता और पर्यावरण
इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023, जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष मलबा, वेट-बल्ब तापमान, बाढ़, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015- 2030, जलवायु जोखिम और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन सोसायटी, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना मेन्स के लिए:इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023 के प्रमुख निष्कर्ष, बढ़ते आपदा जोखिमों के प्रमुख कारक |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023 ने दुनिया की परस्पर निर्भरता को सुर्खियों में ला दिया है, इस रिपोर्ट ने आसन्न वैश्विक टिपिंग पॉइंट्स की चेतावनी दी है और संभावित विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- परिचय: संयुक्त राष्ट्र इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय- पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) द्वारा जारी एक विज्ञान-आधारित वार्षिक रिपोर्ट है, इसका प्रथम प्रकाशन वर्ष 2021 में किया गया था।
- प्रत्येक वर्ष रिपोर्ट आपदाओं के कई वास्तविक उदाहरणों का विश्लेषण करती है और बताती है कि वे एक-दूसरे से तथा मानवीय कार्यों से कैसे जुड़े हुए हैं।
- यह रिपोर्ट दर्शाती है कि कैसे स्थिर प्रतीत होने वाली प्रणालियाँ एक महत्त्वपूर्ण सीमा पार होने तक धीरे-धीरे निष्क्रिय हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं।
- यह रिपोर्ट "रिस्क टिपिंग पॉइंट्स" की अवधारणा प्रस्तुत करती है जो सामाजिक पारिस्थितिक तंत्र द्वारा जोखिमों को रोकने की अक्षमता तथा विनाशकारी प्रभावों के बढ़ते जोखिम को दर्शाते हैं।
नोट: संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University- UNU) संयुक्त राष्ट्र की शैक्षणिक शाखा है जो एक ग्लोबल थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है। पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) का उद्देश्य पर्यावरणीय खतरों एवं वैश्विक परिवर्तन से संबंधित जोखिमों व अनुकूलन पर अत्याधुनिक शोध करना है। यह संस्थान जर्मनी के बॉन में स्थित है।
- टिपिंग पॉइंट: यह रिपोर्ट इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि दुनिया छह पर्यावरणीय टिपिंग पॉइंट्स के करीब पहुँच रही है-
- भू-जल की कमी: जलभृतों में संगृहीत भू-जल 2 अरब से अधिक लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसमें से 70% कृषि के लिये उपयोग किया जाता है।
- हालाँकि विश्व के 21 प्रमुख जलभृत उनकी पुनर्भरण की तुलना में तेज़ी से समाप्त हो रहे हैं।
- जलभृत जल को एकत्रित होने में अमूमन हज़ारों वर्ष लग जाते हैं तथा यह अनिवार्य रूप से गैर-नवीकरणीय होता है।
- सऊदी अरब जैसे कुछ क्षेत्रों में अति-निष्कर्षण हुआ है, जिससे इसका 80% से अधिक जलभृत समाप्त हो गया है। जलभृत की कमी के कारण आयातित फसलों/कृषि उत्पादों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- भारत के गंगा के मैदानी भाग के कुछ क्षेत्र पहले ही भू-जल की कमी की गंभीर सीमा को पार कर चुके हैं तथा पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र द्वारा वर्ष 2025 तक गंभीर रूप से सीमित भू-जल उपलब्धता का सामना करने की संभावना है।
- प्रजातियों के विलुप्त होने की प्रक्रिया में तेज़ी आना: भूमि उपयोग में परिवर्तन, अत्यधिक दोहन तथा जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरुप प्रजातियों का विलुप्तीकरण तेज़ हो गया है।
- मानव प्रभाव के कारण वर्तमान विलुप्ति दर सामान्य विलुप्ति दर से कई गुना अधिक है।
- विलुप्तीकरण से एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो सकती है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र का पतन हो सकता है।
- पर्वतीय हिमनदों का तेज़ी से पिघलना: हिमनद जल के प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण वे दोगुनी दर से पिघल रहे हैं।
- वर्ष 2000 से 2019 के बीच ग्लेशियरों से प्रति वर्ष 267 गीगाटन बर्फ पिघली। सीमित तापमान वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2100 तक विश्व के लगभग 50% ग्लेशियरों के पिघलने का अनुमान है।
- हिमालय, काराकोरम और हिंदू कुश पहाड़ों के 90,000 से अधिक ग्लेशियर खतरे में हैं तथा उन पर निर्भर लगभग 870 मिलियन लोगों का जीवन भी खतरे में हैं।
- बढ़ता अंतरिक्ष मलबा: उपग्रह मौसम निगरानी, संचार और सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों की बढ़ती संख्या अंतरिक्ष मलबे की समस्या उत्पन्न कर रही है।
- केवल 25% ऑर्बिट में सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं; शेष गैर-कार्यात्मक मलबा है।
- अंतरिक्ष में लगभग 130 मिलियन सूक्ष्म, ट्रैक न किये जा सकने वाले मलबे के टुकड़े हैं।
- अंतरिक्ष मलबे के ये टुकड़े तेज़ी से विचरण करते हैं और संचालनरत उपग्रहों के साथ टकराव का खतरा उत्पन्न करती हैं, जिससे एक खतरनाक कक्षीय पर्यावरण तैयार होता है।
- केवल 25% ऑर्बिट में सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं; शेष गैर-कार्यात्मक मलबा है।
- असहनीय गर्मी: वर्तमान में जलवायु परिवर्तन अत्यधिक घातक हीटवेव का कारण बन रहा है। उच्च तापमान और आर्द्रता शरीर को ठंडा रखने में कठिनाई उत्पन्न करती है।
- जब "वेट-बल्ब तापमान" 35°C से अधिक हो जाता है और छह घंटे से अधिक समय तक रहता है, तो यह ‘वेट-बल्ब’ तापमान अंग विफलता एवं मस्तिष्क क्षति का कारण बन सकता है। ऐसी घटना पाकिस्तान के जैकबाबाद जैसी जगहों पर हो चुकी है।
- साथ ही वर्ष 2023 में भारत में एक हीटवेव के दौरान वेट-बल्ब तापमान 34°C से अधिक हो गया।
- अनुमान है कि वर्ष 2100 तक वैश्विक आबादी का 70% से अधिक हिस्सा इससे प्रभावित होगा।
- जब "वेट-बल्ब तापमान" 35°C से अधिक हो जाता है और छह घंटे से अधिक समय तक रहता है, तो यह ‘वेट-बल्ब’ तापमान अंग विफलता एवं मस्तिष्क क्षति का कारण बन सकता है। ऐसी घटना पाकिस्तान के जैकबाबाद जैसी जगहों पर हो चुकी है।
- बीमा न करने सकने योग्य (UNINSURABLE)भविष्य: प्राय गंभीर प्रतिकूल मौसम के कारण वर्ष 1970 के दशक के बाद से ही हानि में सात गुना वृद्धि हो रही है, वर्ष 2022 में 313 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक की हानि होने की संभावना है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण बीमा लागत बढ़ रही है, जिससे इसकी पहुँच कई लोगों के लिये वहनीय नहीं रह गई है।
- कुछ बीमाकर्ता अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को बीमा योग्यता श्रेणी से बाहर कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रों को बीमा के लिये अयोग्य घोषित किया जा रहा है।
- उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के बढ़ते जोखिम के कारण वर्ष 2030 तक लगभग 520,940 परिवार बीमा योग्यता श्रेणी से बाहर हो गए हैं।
- भू-जल की कमी: जलभृतों में संगृहीत भू-जल 2 अरब से अधिक लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसमें से 70% कृषि के लिये उपयोग किया जाता है।
- अंतर्संबंध: बढ़े हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से प्रेरित जलवायु परिवर्तन टिपिंग बिंदुओं के एक सामान्य चालक के रूप में कार्य करता है। इसमें ग्लेशियर पिघलना, चरम मौसम की घटनाएँ और बीमा जोखिम परिदृश्य में बदलाव शामिल हैं।
- ये परस्पर जुड़े पर्यावरणीय मुद्दे फीडबैक लूप को ट्रिगर कर सकते हैं, जैसे ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ना, तटीय बाढ़ में वृद्धि और आपदा बीमा की मांग में वृद्धि।
- अंततः इन टिपिंग बिंदुओं के महत्त्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक परिणाम होते हैं।
बढ़ते आपदा जोखिमों के प्रमुख चालक:
- शहरीकरण: तीव्र शहरीकरण प्राय पर्याप्त योजना और बुनियादी ढाँचे के विकास के बिना होता है।
- पर्यावरणीय क्षरण: वनों की कटाई, मृदा अपरदन और पर्यावरण प्रदूषण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को कमज़ोर करते हैं और आपदाओं के खिलाफ प्रतिरोधक के रूप में कार्य करने की उनकी क्षमता को कम करते हैं। पर्यावरणीय क्षरण खतरों के प्रभाव को बढ़ाता है।
- अपर्याप्त और अकुशल बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त रूप से निर्मित या रखरखाव किये गए बुनियादी ढाँचे, जैसे पुल, भवन और सड़कें, आपदाओं के दौरान ढह सकते हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक हानि हो सकती है।
- अनुपजाऊ भूमि उपयोग योजना: अपर्याप्त भूमि उपयोग योजना के परिणामस्वरूप, समुदाय बाढ़ के मैदानों या वनाग्नि-प्रवण क्षेत्रों जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बस सकते हैं। यह आपदाओं के जोखिम को बढ़ाने में योगदान देता है।
- जल प्रबंधन के मुद्दे: जल संसाधनों के कुप्रबंधन से सूखा, जल की कमी और बाढ़ आ सकती है।
- इन मुद्दों के खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और समुदायों पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
- वैश्विक अंतर्संबंध: जैसे-जैसे विश्व अधिक अंतर्संबंधित होता जा रहा है, किसी एक क्षेत्र में व्यवधान का वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
- यह अंतर्संबंध आपदाओं के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
समाधान के लिये रिपोर्ट की अनुशंसाएँ:
- यह रिपोर्ट आपदा जोखिमों से निपटने के लिये समाधानों को वर्गीकृत करने और प्राथमिकता देने हेतु चार-श्रेणी के ढाँचे का प्रयोग करती है।
- विलंब से बचें: ये ऐसी कार्रवाइयाँ हैं जिनका उद्देश्य वर्तमान तरीकों के उपयोग से आपदाओं को कम करके उन्हें नियंत्रित करना है।
- उदाहरण के लिये, आपदाओं से होने वाली बड़ी क्षति को रोकने हेतु तत्काल सख्त बिल्डिंग कोड और भूमि-उपयोग नियमों को लागू करना आवश्यक है।
- परिवर्तन से बचाव: इन प्रक्रियाओं का लक्ष्य मौजूदा प्रथाओं में बड़े बदलाव लागू करके आपदाओं को टालना अर्थात् उनपर नियंत्रण रखना है।
- उदाहरण के लिये, जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों से बचने हेतु जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा उत्पादन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर एवं पवन) की ओर रुख करना।
- एडैप्ट-डिले (Adapt-Delay): हमारे प्रतिक्रिया समय को बढ़ाकर, ये उपाय हमें आपात स्थितियों से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- उदाहरण के लिये, सुनामी हेतु उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को विकसित करना ताकि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने और आपदा की तैयारी के लिये पर्याप्त समय मिल सके।
- एडैप्ट-ट्रांसफॉर्म (Adapt-Transform): इन कार्यों में आपदाओं के अनुकूल कार्य करने के तरीके में बड़े बदलाव करना शामिल है।
- उदाहरण के लिये, समुद्र के बढ़ते जल स्तर के अनुकूल होने और तटीय सुरक्षा रणनीतियों को बदलने के लिये तटीय ज़ोनिंग नीतियों को लागू करना एवं प्राकृतिक बाधा पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे मैंग्रोव) को बहाल करना।
- विलंब से बचें: ये ऐसी कार्रवाइयाँ हैं जिनका उद्देश्य वर्तमान तरीकों के उपयोग से आपदाओं को कम करके उन्हें नियंत्रित करना है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु पहल:
- वैश्विक:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030
- जलवायु जोखिम और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (CREWS)
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस - 13 अक्तूबर
- जलवायु सूचना और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली पर ग्रीन क्लाइमेट फंड की क्षेत्रीय मार्गदर्शिका
- भारत की पहल:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक आवश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये ‘सेंदाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)’ हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप ‘ह्योगो कार्रवाई प्रारूप, 2005’ से किस प्रकार भिन्न है? (2018) |
भारतीय राजनीति
लोकसभा की आचार समिति
प्रिलिम्स के लिये:लोकसभा की आचार समिति, 'प्रश्न के बदले नकद', विशेषाधिकार समिति, संसद के सदस्यों का नैतिक और नीतिपरक आचरण। मेन्स के लिये:लोकसभा की आचार समिति, संसद और राज्य विधानमंडल, संरचना ,कार्यप्रणाली, व्यवसाय का संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में लोकसभा की आचार समिति ने संसद में प्रश्न पूछने के लिये "रिश्वत" लेने के आरोपी एक सांसद पर 'प्रश्न के बदले नकद' घोटाले की जाँच शुरू की है।
- समिति आरोपों की जाँच करने और शिकायतकर्ता, गवाहों और आरोपी सांसद सहित सभी संबंधित पक्षों से सबूत इकट्ठा करने के लिये कार्यवाही करेगी।
संभावित परिणाम:
- यदि आचार समिति को शिकायत सही पाई जाती है तो वह सिफारिशें कर सकती है। वह जिस संभावित सज़ा की सिफारिश करती है, उसमें आम तौर पर एक निर्दिष्ट अवधि के लिये सांसद का निलंबन शामिल है।
- सदन, जिसमें सभी सांसद शामिल हैं, अंततः निर्णय करेगा कि समिति की सिफारिश को स्वीकार किया जाए अथवा नहीं और सजा की प्रकृति एवं सीमा, यदि कोई हो, तो वह निर्धारित की जाएगी।
- यदि आरोपी को निष्कासित किया जाना था या संभावित प्रतिकूल निर्णय का सामना करना पड़ा, तो समिति इसे न्यायालय में चुनौती दे सकती थी।
- ऐसे निर्णय को न्यायालय में चुनौती देने के आधार सीमित हैं और आम तौर पर इसमें असंवैधानिकता, घोर अवैधता या प्राकृतिक न्याय से इनकार के दावे शामिल हैं।
नोट: वर्ष 2005 में दोनों सदनों ने 10 लोकसभा सांसदों और एक राज्यसभा सांसद को निष्कासित करने के लिये प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिन पर धन के बदले संसद में प्रश्न पूछने हेतु सहमत होने का आरोप था। लोकसभा में यह प्रस्ताव बंसल समिति की रिपोर्ट पर आधारित था, जो इस मुद्दे की जाँच के लिये अध्यक्ष द्वारा गठित एक विशेष समिति थी।
- राज्यसभा में शिकायत की जाँच सदन की आचार समिति द्वारा की गई।
- निष्कासित सांसदों ने मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजी जाए, ताकि सांसद अपना बचाव कर सकें।
लोकसभा की आचार समिति:
- परिचय:
- आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति अध्यक्ष द्वारा एक वर्ष की अवधि के लिये की जाती है।
- इतिहास:
- वर्ष 1996 में दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में पहली बार दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के लिये आचार समिति गठित करने का विचार सामने आया।
- तब तत्कालीन उपराष्ट्रपति (और राज्यसभा के सभापति) के.आर. नारायणन ने सदस्यों के नैतिक और नीतिपरक आचरण की निगरानी करने एवं इससे संदर्भित कदाचार के मामलों की जाँच करने के लिये 4 मार्च, 1997 को उच्च सदन की आचार समिति का गठन किया।
- लोकसभा के मामले में वर्ष 1997 में सदन की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की, लेकिन इसे लोकसभा द्वारा अंगीकृत नहीं किया जा सका।
- 13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने अंततः एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की।
- दिवंगत अध्यक्ष जी. एम. सी. बालयोगी ने वर्ष 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया, जो वर्ष 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई।
- शिकायतों की प्रक्रिया:
- कोई भी व्यक्ति किसी सदस्य के विरुद्ध किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कथित कदाचार के साक्ष्यों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है, जिसमें कहा गया हो कि शिकायत "झूठी, तुच्छ या परेशान करने वाली" नहीं है।
- यदि सदस्य स्वयं शिकायत करता है तो शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होती है।
- अध्यक्ष किसी सांसद के विरुद्ध कोई भी शिकायत समिति को भेज सकता है।
- समिति केवल मीडिया रिपोर्टों या विचाराधीन मामलों पर आधारित शिकायतों पर विचार नहीं करती है। किसी शिकायत की जाँच करने का निर्णय लेने से पूर्व समिति प्रथम दृष्टया जाँच करती है तथा शिकायत का मूल्यांकन करने के बाद अपनी सिफारिशें करती है।
- समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है, जो सदन से विचार विमर्श करता है कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिये।
- रिपोर्ट पर आधे घंटे की चर्चा का भी प्रावधान है।
- कोई भी व्यक्ति किसी सदस्य के विरुद्ध किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कथित कदाचार के साक्ष्यों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है, जिसमें कहा गया हो कि शिकायत "झूठी, तुच्छ या परेशान करने वाली" नहीं है।
- विशेषाधिकार समिति के साथ ओवरलैप:
- आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का कार्य प्रायः ओवरलैप होता है। किसी सांसद के विरुद्ध भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है, लेकिन आमतौर पर अधिक गंभीर आरोप विशेषाधिकार समिति के पास जाते हैं।
- विशेषाधिकार समिति का कार्य "संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा" की रक्षा करना है।
- इन विशेषाधिकारों का लाभ व्यक्तिगत सदस्यों के साथ-साथ संपूर्ण सदन को भी मिलता है। विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिये एक सांसद की जाँच की जा सकती है; किसी गैर-सांसद व्यक्ति पर भी सदन के अधिकार और गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले कार्यों के लिये विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है।
- आचार समिति केवल उन कदाचार के मामलों पर विचार कर सकती है जिनमें सांसद शामिल हों।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत-जापान के बीच चिप आपूर्ति शृंखला साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला साझेदारी, एडवांस्ड माइक्रो डिवाइसेज़ (AMD), G20 मेन्स के लिये:भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास में अर्द्धचालक(सेमीकंडक्टर) आपूर्ति शृंखला का महत्त्व और प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेमीकंडक्टर/अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला साझेदारी के विकास पर भारत और जापान के बीच सहयोग ज्ञापन ( Memorandum of Cooperation- MoC) को मंज़ूरी दी है।
- बीते कुछ समय से भारत अर्द्धचालक आपूर्ति के क्षेत्र में अपनी विश्वसनीय उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास कर रहा है, विशेषकर ऐसे समय में जब बहुत सारी कंपनियाँ सेमीकंडक्टर के लिये चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रही हैं, जो कि काफी लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन का केंद्र रहा है।
सहयोग ज्ञापन का महत्त्व:
- भारत-जापान के बीच सेमीकंडक्टर क्षेत्र में सहयोग:
- सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला में भारत-जापान के बीच सहयोग ज्ञापन (MoC) उद्योग और डिजिटल प्रगति की दिशा में सेमीकंडक्टर के महत्त्व को चिह्नित करता है।
- इस सहयोग ज्ञापन पर सर्वप्रथम जुलाई में भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय के बीच हस्ताक्षर किये गए थे।
- भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ:
- इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के साथ भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला में एक विश्वसनीय अभिकर्त्ता के रूप में उभरने की ओर अग्रसर है, खासकर जब विभिन्न विदेशी कंपनियाँ कोविड महामारी के बाद से चीन पर निर्भरता के विकल्प तलाश रही हैं।
- भारत ने स्थानीय चिप उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये 10 अरब डॉलर की योजना शुरू की है, जिसमें माइक्रोन टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियाँ गुजरात में असेंबलिंग और पैकेजिंग केंद्र की स्थापना का कार्य शुरू कर चुकी हैं।
- सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत-अमेरिका सहयोग:
- भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सेमीकंडक्टर चिप आपूर्ति शृंखला को मज़बूत बनाने के लिये परस्पर सहयोग कर रहे हैं। दोनों देशों ने लचीली वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला के निर्माण के लिये अपनी वचनबद्धता की पुष्टि की है।
- भारत द्वारा सेमीकंडक्टर क्षेत्र में किये जाने वाले प्रमुख निवेश:
- माइक्रोचिप टेक्नोलॉजी और AMD जैसी अमेरिकी चिप कंपनियाँ अपने परिचालन का विस्तार करने तथा अनुसंधान और विकास केंद्र स्थापित करने के लिये भारत में लाखों डॉलर का निवेश कर रही हैं।
- इसके अतिरिक्त लैम रिसर्च एंड एप्लाइड मटेरियल्स भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में इंजीनियरिंग और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पर्याप्त निवेश की योजना तैयार कर रहा है।
सेमीकंडक्टर/अर्द्धचालक:
- अर्द्धचालक एक ऐसी सामग्री है जिसमें सुचालक (आमतौर पर धातु) और कुचालक या ऊष्मारोधी (जैसे- अधिकांश सिरेमिक) के बीच चालन की क्षमता होती है।
- सेमीकंडक्टर का उपयोग डायोड, ट्रांज़िस्टर और एकीकृत सर्किट सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
- कॉम्पैक्टनेस (आकार में काफी छोटे होने), विश्वसनीयता, ऊर्जा दक्षता और कम लागत के कारण ऐसे उपकरणों के काफी व्यापक अनुप्रयोग हैं।
- इनका उपयोग सॉलिड-स्टेट लेज़र, विद्युत उपकरणों और ऑप्टिकल सेंसर तथा प्रकाश उत्सर्जकों में अलग-अलग घटकों के रूप में किया जाता है।
इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM):
- परिचय:
- ISM को वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तत्त्वावधान में कुल 76,000 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था।
- यह देश में स्थायी अर्द्धचालक और प्रदर्शन पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य अर्द्धचालक, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन इकोसिस्टम में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- घटक:
- भारत में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिये योजना:
- यह सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है जिसका उद्देश्य देश में सेमीकंडक्टर वफर फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना हेतु बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
- भारत में डिस्प्ले फैब स्थापित करने के लिये योजना:
- यह योजना डिस्प्ले फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य देश में TFT एलसीडी/AMOLED आधारित डिस्प्ले फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना के लिये बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
- भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबलिंग, टेस्टिंग, मार्किंग एवं पैकेजिंग (एटीएमपी)/ओएसएटी सुविधाओं की स्थापना के लिये योजना:
- यह योजना भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स (एसआईपीएच)/सेंसर (एमईएमएस सहित) फैब और सेमीकंडक्टर एटीएमपी/ओएसएटी (आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट) केंद्रों की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को पूंजीगत व्यय के 30% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन (DLI) योजना:
- यह इंटीग्रेटेड सर्किट (IC), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (एसओसी), सिस्टम और IP कोर तथा सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन के विकास एवं तैनाती के विभिन्न चरणों में बुनियादी ढाँचा व वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- भारत में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिये योजना:
भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण संबंधी चुनौतियाँ:
- सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना की लागत काफी अधिक:
- एक अर्द्धचालक निर्माण केंद्र (जिसे फैब भी कहा जाता है) को अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर भी स्थापित करने में कम-से-कम कई अरब डॉलर की लागत आ सकती है और यह नवीनतम प्रौद्योगिकी से एक या दो पीढ़ी पीछे भी है।
- उच्च निवेश:
- सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण एक अत्यंत ही जटिल तथा प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी भुगतान अवधि तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे दैनंदिन बदलाव शामिल हैं, जिसके लिये निरंतर व काफी बड़े निवेश की आवश्यकता होती है।
- सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता:
- वर्तमान में सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने में लगने वाले आवश्यक निवेश हेतु सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता बहुत कम है।
- निर्माण क्षमताओं का अभाव:
- भारत उन्नत चिप डिज़ाइन की प्रतिभा से युक्त है किंतु इसने कभी भी अपना उपयोग पूर्ण रूप से नहीं किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की स्वयं की फैब फाउंड्री हैं, किंतु वे मुख्य रूप से उनकी अपनी आवश्यकताओं के लिये हैं तथा विश्व में मौजूद नवीनतम फैब फाउंड्री जितनी परिष्कृत नहीं हैं।
- भारत में केवल एक ही फैब है जो पंजाब के मोहाली में स्थित है।
- अपर्याप्त संसाधन:
- चिप फैब्स इकाइयों की संसाधन खपत बहुत अधिक होती है जिनके लिये लाखों लीटर साफ जल, स्थिर बिजली आपूर्ति, बड़ा भू क्षेत्र और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।
आगे की राह
- सभी तत्त्वों के लिये लगातार राजकोषीय समर्थन:
- भारत की पर्याप्त प्रतिभा और अनुभव को देखते हुए नए मिशन को कम-से-कम कुछ समय के लिये चिप-निर्माण शृंखला हेतु वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसमें डिज़ाइन केंद्र, परीक्षण सुविधाएँ, पैकेजिंग आदि शामिल हैं।
- आत्मनिर्भरता बनना:
- भविष्य में चिप उत्पादन केवल एक कदम मात्र ही नहीं होना चाहिये बल्कि इसके डिज़ाइन से लेकर निर्माण, पैकिंग और परीक्षण तक एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाना चाहिये। भारत को भी इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्य में सुधार करना चाहिये जहाँ वर्तमान में इसकी कमी है।
- सहयोग:
- अमेरिका के अलावा भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम करने के लिये ताइवान या अन्य तकनीकी रूप से उन्नत मित्र राष्ट्रों जैसे अन्य देशों के साथ सहयोग करने के समान अवसर तलाशने चाहिये ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (D) प्रश्न. निम्नलिखित में से किस लेज़र प्रकार का उपयोग लेज़र प्रिंटर में किया जाता है? (वर्ष 2008) (a) डाई लेज़र उत्तर: (C) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
बाइडनॉमिक्स
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ (EU), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, व्यापार घाटा, रीगनॉमिक्स, ट्रिकल-डाउन थ्योरी, भारतीय रिज़र्व बैंक, रूस-यूक्रेन युद्ध मेन्स के लिये:GDP वृद्धि और रोज़गार सृजन के संबंध में भारत एवं विश्व पर बाइडनॉमिक्स के प्रभाव, मुद्दे व चिंताएँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 प्रमुख प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं: भारत, रूस, यूके, यूरोपीय संघ और अमेरिका में चुनावों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होगा, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका में बाइडनॉमिक्स एक प्रमुख चुनावी मुद्दा माना जा रहा है।
बाइडनॉमिक्स:
- परिचय:
- बाइडनॉमिक्स एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग अमेरिका में बाइडन प्रशासन द्वारा लिये गए किसी भी नीति निर्णय को संदर्भित करने के लिये किया जाता है।
- व्हाइट हाउस के अनुसार, बाइडन की आर्थिक दृष्टि तीन प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित है:
- अमेरिका में स्मार्ट सार्वजनिक निवेश।
- मध्यम वर्ग के विकास के लिये श्रमिकों को सशक्त बनाना और शिक्षित करना।
- लागत कम करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उद्यमियों एवं छोटे व्यवसायों को आगे बढ़ने में मदद करना।
- विशेषताएँ:
- बाइडनॉमिक्स में ऐसी नीतियाँ शामिल हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका के भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में सुधार कर सकती हैं, चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर इसकी व्यापार निर्भरता को कम करती हैं।
- अमेरिकी आबादी के 40% मध्यमवर्गीय और 50% निम्नवर्गीय लोगों के लिये उपलब्ध जीवन स्तर एवं अवसरों में वृद्धि करने हेतु अपनी सीमाओं के भीतर रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना।
- बाइडनॉमिक्स का लक्ष्य अधिक-से-अधिक कराधान के माध्यम से राजस्व बढ़ाना था, जबकि दूसरी ओर इसने स्वच्छ ऊर्जा में निवेश और स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम करने के लिये बड़े पैमाने पर व्यय करने का निर्णय लिया।
बाइडनॉमिक्स का औचित्य:
- रीगन का टॉप डाउन मॉडल:
- यह अनुमान लगाया गया था कि कोविड संकट को कम करने के लिये अभिनव उपायों की आवश्यकता होगी क्योंकि रीगन का टॉप-डाउन मॉडल तथा ट्रिकल-डाउन दृष्टिकोण वांछित परिणाम देने में विफल रहा था।
- वर्तमान संदर्भ:
- अमेरिका ने माना कि कोविड के बाद की कुछ चुनौतियाँ विफल ट्रिकल-डाउन सिद्धांत में निहित थीं, जिसके कारण रीगनॉमिक्स पर आधारित ट्रिकल-डाउन सिद्धांत को बदलने के लिये बाइडनॉमिक्स नामक एक नए आर्थिक मॉडल का प्रस्ताव लाया गया।
बाइडनॉमिक्स के मायने:
- बाइडनॉमिक्स से जुड़ी चिंताएँ:
- वैश्विक प्रभाव: बाइडनॉमिक्स न केवल अमेरिका के भीतर प्रभावशाली है, बल्कि इसे विश्व स्तर पर बदलाव के लिये एक मॉडल के रूप में भी देखा जाता है, उदाहरण के लिये UK की लेबर पार्टी अधिक हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण पर विचार कर रही है।
- बाइडनॉमिक्स: एक दोधारी तलवार:
- सब्सिडी को लेकर वैश्विक होड़ की संभावना: आलोचकों को चिंता है कि बाइडनॉमिक्स, घरेलू उत्पादक सब्सिडी पर अपना ध्यान केंद्रित करने के साथ देशों के बीच विशेषकर कोविड संकट के बाद सब्सिडी को लेकर वैश्विक स्तर पर होड़ शुरू हो सकती है।
- समष्टि-संकेतक:
- इस प्रकार की स्थिति में अगर समष्टि-संकेतकों- GDP, बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति का अवलोकन किया जाए तो बाइडन प्रशासन ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
- आर्थिक पुनर्प्राप्ति:
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था इतनी तेज़ गति से लाखों नौकरियों का सृजन कर रही है कि अर्थव्यवस्था में प्रत्येक बेरोज़गार व्यक्ति के लिये दो रिक्तियाँ उपलब्ध हैं।
अन्य देशों द्वारा अपनाई गई अन्य समान पहल:
- परिचय:
- आबेनॉमिक्स एक आर्थिक नीति ढाँचा है जिसे जापान में प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा लागू किया गया था। आबेनॉमिक्स का प्राथमिक लक्ष्य जापानी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना था, जो कई वर्षों से अपस्फीति, धीमी वृद्धि और आर्थिक स्थिरता का सामना कर रही थी।
- मौद्रिक नीति: हारुहिको कुरोदा के नेतृत्व में बैंक ऑफ जापान ने अपस्फीति से निपटने के लिये "मात्रात्मक और गुणात्मक मौद्रिक सहजता" (QQE) की नीति लागू की।
- राजकोषीय नीति: दूसरे बिंदु में विस्तारवादी राजकोषीय नीतियों पर ज़ोर दिया गया, जिसमें मांग को प्रोत्साहित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकारी खर्च तथा सार्वजनिक निवेश में वृद्धि शामिल है।
- आबेनॉमिक्स एक आर्थिक नीति ढाँचा है जिसे जापान में प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा लागू किया गया था। आबेनॉमिक्स का प्राथमिक लक्ष्य जापानी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना था, जो कई वर्षों से अपस्फीति, धीमी वृद्धि और आर्थिक स्थिरता का सामना कर रही थी।
भारत द्वारा शुरू की गई आर्थिक पुनरुद्धार पहल:
- पिछले दो वर्षों में आर्थिक क्षेत्र में अनिश्चितता का सामना करने के बाद भारत सरकार ने ऐसी रणनीतियाँ अपनाईं, जिनमें समाज/व्यवसाय के कमज़ोर वर्गों पर कोविड महामारी के प्रभाव को कम करने के लिये विभिन्न सुरक्षात्मक उपाय शामिल थे। कुछ पहलें इस प्रकार हैं:
- नई आर्थिक नीति:
- भारत ने कोविड-19 महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को देखते हुए वर्ष 2020 में एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की।
- इस नीति में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को समर्थन प्रदान करने के लिये सकल घरेलू उत्पाद के 10% के बराबर 20 लाख करोड़ रुपए का प्रोत्साहन पैकेज़ शामिल है।
- भारत ने कोविड-19 महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को देखते हुए वर्ष 2020 में एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की।
- उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production-linked Incentive- PLI) योजना:
- भारत ने ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण तथा निर्यात को बढ़ावा देने के लिये 2020 में एक PLI योजना शुरू की।
- यह योजना पात्र विनिर्माताओं को पाँच वर्षों की अवधि में उनकी बिक्री में बढ़त और निवेश के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- श्रम संहिता:
- इसके अंतर्गत कुल चार संहिताएँ हैं जिनका उद्देश्य केंद्रीय श्रम कानूनों को चार व्यापक श्रेणियों में समेकित करना और सरल बनाना है: पारिश्रमिक, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा तथा व्यावसायिक सुरक्षा तथा स्वास्थ्य।
- आत्मनिर्भर भारत मिशन:
- आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत मिशन की घोषणा की।
- नई आर्थिक नीति:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. आर्थिक मंदी के समय निम्नलिखित में से कौन-सा कदम उठाए जाने की सर्वाधिक संभावना होती है? (2021) (a) कर की दरों में कटौती के साथ-साथ ब्याज दर में वृद्धि करना। उत्तर: (b) प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति अथवा उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (a) |
जैव विविधता और पर्यावरण
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय डेटा
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय डेटा, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD), भूमि क्षरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि क्षरण तटस्थता मेन्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय डेटा, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UN Convention to Combat Desertification- UNCCD) का पहला डेटा डैशबोर्ड शुरू किया गया है जो विश्व भर के सभी क्षेत्रों में भूमि क्षरण में आश्चर्यजनक दर से हो रही वृद्धि को दर्शाता है।
- इसमें वैश्विक स्तर पर भूमि क्षरण की वर्तमान स्थिति का व्यापक अवलोकन प्रदान करने के लिये 126 देशों के राष्ट्रीय रिपोर्टिंग आँकड़ों का संकलन किया गया है।
- UNCCD का 21वाँ सत्र नवंबर 2023 में उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित किया जाएगा। भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) प्राप्त करने की दिशा में वैश्विक प्रगति की समीक्षा तथा संबंधित मुद्दों का समाधान इस सत्र का केंद्रीय विषय होगा।
भूमि क्षरण तटस्थता (LDN):
- भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) एक सीधी-सरल अवधारणा है जिसका उपयोग वनोंमूलन पर रोक लगाने और निम्नीकृत भूमि की पुनर्स्थापना के लिये एक बहुमुखी उपकरण के रूप में किया जा सकता है, साथ ही इसके उपयोग से पर्याप्त, सुचारू तथा उत्पादक प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित किया जा सकता है।
- यह बेहतर भूमि प्रबंधन प्रथाओं एवं भूमि-उपयोग योजनाओं पर केंद्रित है जो मौजूदा और आगामी पीढ़ियों के लिये आर्थिक, सामाजिक व पारिस्थितिक संधारणीयता में सुधार करने में सहायता करेगी।
- यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने तथा अनुकूलन के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। भूमि क्षरण को पूरी तरह से नियंत्रित करने मृदा और वनस्पति में कार्बन भंडार बढ़ाकर भूमि को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्रोत बनने के बजाय इसे कार्बन सिंक में परिवर्तित किया जा सकता है।
भूमि क्षरण पर UNCCD डेटा का महत्त्व:
- भूमि क्षरण की प्रवृत्तियों को समझने में मदद:
- वर्ष 2015 से 2019 तक विश्व भर में लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से उत्पादक भूमि नष्ट हुई है, जो ग्रीनलैंड के आकार से दोगुना है।
- वैश्विक स्तर पर भूमि क्षरण तीव्र गति से हो रहा है।
- क्षेत्रीय भिन्नताएँ:
- पूर्वी और मध्य एशिया, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियाई क्षेत्र में भूमि क्षरण की समस्या काफी गंभीर है, इससे उनके कुल भूमि क्षेत्र के कम-से-कम 20% भाग पर इसका प्रभाव पड़ा है।
- उप-सहारा अफ्रीका, पश्चिमी और दक्षिणी एशिया, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियाई क्षेत्र में वैश्विक औसत की तुलना में भूमि क्षरण की दर अधिक तीव्र है।
- उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियाई क्षेत्र में वर्ष 2015 से क्रमशः 163 मिलियन हेक्टेयर एवं 108 मिलियन हेक्टेयर भूमि का क्षरण हुआ है।
- सुधार वाले क्षेत्र:
- कुछ देशों ने भूमि क्षरण के निपटान में प्रगति दिखाई है। उदाहरण के लिये, उप-सहारा अफ्रीका के बोत्सवाना में भूमि क्षरण की दर 36% से घटकर 17% रह गई है।
- इस देश में कुल 45.3 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षरण में तटस्थता हासिल की है, जिसमें आने वाले समय में उसमें होने वाले किसी प्रकार के क्षरण से बचाव के उपायों के साथ-साथ चयनित भूमि क्षरण वाले क्षेत्रों में पुनर्स्थापना के प्रयास भी शामिल हैं।
- डोमिनियन गणराज्य में याक डेल नॉर्ट नदी बेसिन और सैन फ्रांसिस्को डी मैकोरिस प्रांत में कोको उत्पादन क्षेत्रों में 240 000 हेक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित करने के मौजूदा प्रयासों से वर्ष 2015 और 2019 के बीच क्षरित भूमि का अनुपात 49% से घटकर 31% रह गया है।
- जबकि मध्य एशिया क्षेत्र में उज़्बेकिस्तान में क्षरित भूमि का उच्चतम अनुपात (26.1%) पाया गया है, यह वर्ष 2015 में 30% की तुलना में अत्यधिक सुधार को दर्शाता है।
- अरल सागर के सूखने के कारण उज़्बेकिस्तान में कुल तीन मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षरित/नष्ट हो गई है। 2018-2022 तक उज़्बेकिस्तान ने अरल सागर के सूखे तल से नमक और धूल उत्सर्जन को खत्म करने के लिये 1.6 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में सैक्सौल रोपण किया।
- कुछ देशों ने भूमि क्षरण के निपटान में प्रगति दिखाई है। उदाहरण के लिये, उप-सहारा अफ्रीका के बोत्सवाना में भूमि क्षरण की दर 36% से घटकर 17% रह गई है।
- भारत के आँकड़े:
- भारत में क्षरित भूमि क्षेत्र वर्ष 2015 के 4.42% से बढ़कर वर्ष 2019 में 9.45% हो गया है।
LDN लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये UNCCD की सिफारिशें:
- UNCCD डेटा संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों में उल्लिखित LDN लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2030 तक 1.5 बिलियन हेक्टेयर क्षरित भूमि को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देता है।
- UNCCD चिंताजनक वैश्विक रुझानों को देखते हुए आने वाले समय में अत्यधिक भूमि क्षरण पर रोक लगाने तथा और भूमि को पुनर्स्थापित करने के प्रयासों में तेज़ी लाकर LDN लक्ष्यों को पूरा करने के महत्त्व पर बल देता है।
- कई देशों ने वर्ष 2030 के लिये स्वैच्छिक LDN लक्ष्य निर्धारित किये हैं और जिसके लिये अत्यधिक वित्त की आवश्यकता होगी।
भूमि क्षरण:
- परिचय:
- भूमि क्षरण कई कारणों से होता है, जिनमें अत्यधिक मौसम की स्थिति, विशेषकर सूखा भी शामिल है।
- यह मानवीय गतिविधियों के कारण भी होता है जो मृदा और भूमि की उपयोगिता को प्रदूषित या प्रभावित करते हैं।
- प्रभाव:
- मरुस्थलीकरण गंभीर भूमि क्षरण का परिणाम है और इसे एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जो शुष्क, अर्ध-शुष्क एवं शुष्क उप-आद्र क्षेत्रों का निर्माण करती है।
- यह जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता की हानि को तीव्र करता है तथा सूखे, वनाग्नि, अनैच्छिक प्रवासन एवं ज़ूनोटिक संक्रामक रोगों के उद्भव में योगदान देता है।
भूमि क्षरण को रोकने के लिये प्रयास:
- वैश्विक प्रयास:
- बॉन चैलेंज: इसके तहत वर्ष 2020 तक विश्व की 150 मिलियन हेक्टेयर वनों की कटाई वाली और बंजर भूमि को बहाल करने तथा वर्ष 2030 तक कुल 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि को बहाल करने का लक्ष्य रखा गया था।
- ग्रेट ग्रीन वॉल: वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) की पहल, जहाँ साहेल-सहारा अफ्रीका के ग्यारह देशों ने भूमि क्षरण को नियंत्रित करने और परिदृश्य में स्वदेशी पौधों के जीवन को पुनर्जीवित करने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया है।
- भारत के प्रयास:
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA),
- नदी घाटी परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र में मृदा संरक्षण,
- वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय जलसंभर विकास परियोजना (NWDPRA)।
- इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) द्वारा मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस।
मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCCD):
- परिचय:
- वर्ष 1994 में स्थापित यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह विशेष रूप से शुष्क भूमियों यथा: शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों, जहाँ कुछ सर्वभेद्य पारिस्थितिक तंत्र और लोग पाए जा सकते हैं, UNCCD 2018-2030 की रणनीतिक फ्रेमवर्क:
- की समस्याओं का हल करता है।
- अभिसमय के 197 सदस्य शुष्क भूमि में लोगों के लिये निर्वहन स्थिति में सुधार करने, भूमि और मृदा की उर्वरता को बनाए रखने, इसके पुनर्भरण करने और सूखे के प्रभावों को कम करने के लिये मिलकर कार्य करते हैं।
- UNCCD भूमि, जलवायु और जैवविविधता की परस्पर जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिये अन्य दो अभिसमयों के साथ कार्य करता है:
- यह भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) प्राप्त करने के लिये सबसे व्यापक वैश्विक प्रतिबद्धता है, ताकि भूमि की व्यापक स्तर पर उत्पादकता को बहाल किया जा सके, 1.3 अरब से अधिक लोगों की आजीविका में सुधार किया जा सके और अभावग्रस्त आबादी पर सूखे के प्रभाव को कम किया जा सके।
- UNCCD और सतत् विकास:
- SDG, 2030 का लक्ष्य 15 घोषित करता है कि "हम पृथ्वी को निम्नीकरण से बचाने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिसमें धारणीय उपभोग और उत्पादन, इसके प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करना शामिल है, ताकि यह वर्तमान व भावी पीढ़ियों की ज़रूरतों का समर्थन कर सके।"
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)’ का/के क्या महत्त्व है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020) प्रश्न. भारत के सूखा-प्रवण एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं? (2016) |
एथिक्स
अनुसंधान में डेटा हेर-फेर के नैतिक पहलू
प्रिलिम्स के लिये:व्यवहार विज्ञान, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, साहित्यिक चोरी, डिडेरिक स्टेपल, पिल्टडाउन मैन, ओपन साइंस फ्रेमवर्क (OSF) मेन्स के लिये:वैज्ञानिक पत्रिकाओं और शोध में डेटा हेर-फेर से संबंधित मुद्दे और चिंताएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यवहार विज्ञान में धोखाधड़ी के आरोप सामने आए क्योंकि स्वतंत्र जाँचकर्त्ताओं ने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के प्रोफेसर फ्रांसेस्का गिनो से जुड़े डेटा हेर-फेर का खुलासा किया है, जिसे ईमानदारी और अनैतिक व्यवहार पर अध्ययन के लिये अनुसंधान कदाचार का दोषी पाया गया।
- ऐसा ही एक उदाहरण तमिलनाडु में अन्नामलाई विश्वविद्यालय का मामला है, जहाँ शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रकाशित कम-से-कम 200 अकादमिक पत्रों में साहित्यिक चोरी, हेर-फेर की गई छवियाँ और अन्य डेटा शामिल है, जिसमें लेखक के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति भी शामिल थे।
शोधकर्त्ताओं द्वारा कदाचार का कारण:
- कदाचार का मूल कारण अनुसंधान:
- शोधकर्त्ताओं के पास वैकल्पिक परिकल्पनाओं का समर्थन करने वाले अभूतपूर्व निष्कर्ष और परिणाम उत्पन्न करने के लिये मज़बूत कारण हैं, जो मुख्य रूप से प्रोत्साहन का कारण है। हालाँकि इन पर्याप्त प्रोत्साहनों के कारण कुछ मामलों में निम्न स्तर का और यहाँ तक कि मनगढ़ंत कार्य भी हुआ है।
- वर्ष 1912 में कुख्यात पिल्टडाउन मैन धोखाधड़ी से लेकर हाल के डिडेरिक स्टेपेल जैसे मामलों तक वैज्ञानिक कदाचार का एक लंबा इतिहास रहा है। यह वर्तमान में भी विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में विद्यमान है।
- शोधकर्त्ताओं के पास वैकल्पिक परिकल्पनाओं का समर्थन करने वाले अभूतपूर्व निष्कर्ष और परिणाम उत्पन्न करने के लिये मज़बूत कारण हैं, जो मुख्य रूप से प्रोत्साहन का कारण है। हालाँकि इन पर्याप्त प्रोत्साहनों के कारण कुछ मामलों में निम्न स्तर का और यहाँ तक कि मनगढ़ंत कार्य भी हुआ है।
- कदाचार में योगदान के लिये प्रेरित करने वाले कारक:
- समीक्षकों द्वारा इसका पता न लगा पाना और अनुसंधान पर्यवेक्षकों की मेंटरिंग शैली की कदाचार में भूमिका हो सकती है। कदाचार के मामले में दंडित करने के लिये राष्ट्रीय और संस्थागत स्तर पर व्यापक नीतियों की कमी को भी समस्या में योगदानकर्ता के रूप में उद्धृत किया गया है।
- कदाचार के व्यवस्थित कारण:
- फंडिंग और दबाव राहत:
- एक दृष्टिकोण पर्याप्त धन सुनिश्चित करना और शोधकर्त्ताओं पर दबाव कम करना है। इसमें गुणवत्ता-नियंत्रण गतिविधियों के लिये अनुसंधान अनुदान का एक हिस्सा आवंटित करना शामिल हो सकता है, ताकि अनुसंधानकर्त्ताओं को अधिक व्यापक और कुशल अनुसंधान करने की अनुमति मिल सके।
- प्रतिकृति अध्ययन का समर्थन:
- प्रतिकृति अध्ययनों का समर्थन करना, जो अन्य अध्ययनों के परिणामों को सत्यापित करता है, एक और मूल्यवान तरीका है। प्रतिकृति अध्ययन के लिये नकद पुरस्कार के रूप में वित्तीय सहायता, शोधकर्त्ताओं को ऐसे अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित कर सकती है।
- फंडिंग और दबाव राहत:
कदाचार के नैतिक प्रभाव:
- दीर्घकालिक परिणाम:
- वैज्ञानिक कदाचार के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर जब कदाचार में किसी क्षेत्र के प्रभावशाली लोग या प्रमुख वैज्ञानिक शामिल हों।
- उदाहरण के लिये, डॉ. गीनो जैसे प्रमुख वैज्ञानिक का काम दूसरों के लिये आधार का कार्य करता है, लेकिन उनके कदाचार के उजागर होने पर संभावित रूप से वर्षों के शोध को हानि पहँच सकती है।
- वैज्ञानिक कदाचार के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर जब कदाचार में किसी क्षेत्र के प्रभावशाली लोग या प्रमुख वैज्ञानिक शामिल हों।
- कदाचार के व्यापक प्रभाव:
- यह किसी एक मामले तक सीमित नहीं है; इसके बदले यह कई कागज़ात और निष्कर्षों को भी प्रभावित कर सकता है जो समझौता किये गए कार्य पर निर्भर थे, जिससे वर्षों की वैज्ञानिक जाँच की अखंडता खतरे में पड़ सकती है।
- वैज्ञानिक प्रकाशन में पारदर्शिता का अभाव:
- वैज्ञानिक प्रकाशन, प्रायः प्रकाशित पत्रों में कदाचार के संकेतों की पर्याप्त जाँच या सुधार के बिना अनुसंधान और शिक्षा में अपनी भूमिका से परे, अनुसंधान कदाचार को स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- उदाहरण के लिये, हाल की घटनाएँ जैसे नेचर ने प्रकाशन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को उजागर करते हुए डेटा विसंगतियों के कारण एक पेपर को वापस ले लिया।
- वैज्ञानिक प्रकाशन, प्रायः प्रकाशित पत्रों में कदाचार के संकेतों की पर्याप्त जाँच या सुधार के बिना अनुसंधान और शिक्षा में अपनी भूमिका से परे, अनुसंधान कदाचार को स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कदाचार से निपटने के उपाय:
- OSF के साथ वैज्ञानिक कदाचार से निपटना:
- ओपन साइंस फ्रेमवर्क (OSF) वैज्ञानिक कदाचार से निपटने के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है। इस ढाँचे का उद्देश्य पूर्व-पंजीकरण जैसी प्रथाओं का समर्थन कर वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखना है, जिसमें किसी अध्ययन को संचालित करने से पूर्व उसकी परिकल्पना, तरीके और विश्लेषण स्थापित करना शामिल है।
- OSF एक गैर-लाभकारी संगठन, सेंटर फॉर ओपन साइंस (COS) द्वारा स्थापित अनुसंधान का समर्थन करने और सहयोग को सक्षम करने के लिये एक स्वतंत्र, खुला मंच है।
- ओपन साइंस फ्रेमवर्क (OSF) वैज्ञानिक कदाचार से निपटने के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है। इस ढाँचे का उद्देश्य पूर्व-पंजीकरण जैसी प्रथाओं का समर्थन कर वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखना है, जिसमें किसी अध्ययन को संचालित करने से पूर्व उसकी परिकल्पना, तरीके और विश्लेषण स्थापित करना शामिल है।
- महत्त्वाकांक्षी 'स्कोर' (SCORE) परियोजना:
- इसके अतिरिक्त, OSF टीम द्वारा 'सिस्टमेटाइज़िंग कॉन्फिडेंस इन ओपन रिसर्च एंड एविडेंस (Systematizing Confidence in Open Research and Evidence- SCORE)’ प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया है जिसका उद्देश्य स्वचालित उपकरणों की सहायता से अनुसंधान विश्वसनीयता को बढ़ाना है जो अध्ययन के दावों के लिये त्वरित और सटीक कॉन्फिडेंस स्कोर प्रदान करते हैं।
- अधिक हितधारकों को शामिल करना:
- वर्तमान वैज्ञानिक विश्व में धोखाधड़ी से निपटने के विभिन्न तरीके शामिल हैं। हालाँकि ये तकनीकें संस्थानों में असंगत हो सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप, सहयोगकर्ता शोधकर्ताओं को सज़ा के अनौपचारिक रूपों का सामना करना पड़ सकता है, इस मामले को कई हितधारकों को शामिल करके सुलझाने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- छ वैज्ञानिकों ने संस्थागत प्रयासों के अभाव में सहयोगात्मक कार्य की जाँच करने, विश्वसनीय और त्रुटिपूर्ण अनुसंधान के बीच अंतर करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है ताकि उनके संपूर्ण कार्य को पर सवाल न किये जा सकें।
- हालाँकि इसका एक व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये, विशेष रूप से जाने-माने वैज्ञानिकों की ओर से। इसकी जटिलता और बेहतर प्रक्रियाओं एवं मानदंडों की आवश्यकता को पहचानते हुए इस आदर्श धारणा को संशोधित करने की आवश्यकता है कि विज्ञान स्वाभाविक रूप से जटिल और स्वयं-सुधार करने वाला है।
- इसमें निरंतर स्व-मूल्यांकन और सुधार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी व प्रोत्साहन को शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे इसे 'विशेष' परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के बजाय एक मानक अभ्यास में बदला जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति (CCEA), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (PMKSY-AIBP), केंद्र प्रायोजित योजना, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली। मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सिंचाई के विभिन्न प्रकार |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana-Accelerated Irrigation Benefit Programme- PMKSY-AIBP) के तहत उत्तराखंड की जमरानी बाँध बहुउद्देशीय परियोजना को शामिल करने की मंज़ूरी दे दी है।
- इस परियोजना में राम गंगा नदी की सहायक नदी गोला नदी पर जमरानी गाँव के निकट एक बाँध का निर्माण कार्य शामिल है। यह बाँध मौजूदा गोला नदी बैराज के लिये जल के स्रोत के रूप में कार्य करेगा और इससे 14 मेगावाट जलविद्युत उत्पादित होने की संभावना है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY):
- परिचय:
- इस योजना को वर्ष 2015 में खेती के लिये पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने, सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करने, जल उपयोग दक्षता में सुधार करने तथा सतत् जल संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसमें केंद्र-राज्यों के बीच हिस्सेदारी का अनुपात 75:25 होगा।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा पहाड़ी राज्यों के मामले में यह हिस्सेदारी 90:10 के अनुपात में होगी।
- वर्ष 2020 में जल शक्ति मंत्रालय ने PMKSY के तहत परियोजनाओं के घटकों की जियो-टैगिंग के लिये एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया।
- उद्देश्य:
- क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेशों में एकरूपता प्राप्त करना (ज़िला स्तर पर और यदि आवश्यक हो तो, उप ज़िला स्तर पर जल उपयोग योजनाएँ तैयार करना)।
- खेतों में जल की पहुँच में वृद्धि और सिंचाई (हर खेत के लिये जल) सुनिश्चित करने के प्रयास के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
- आवश्यक प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के माध्यम से जल के सर्वोत्तम उपयोग के लिये जल स्रोत, वितरण एवं इसके कुशल उपयोग का एकीकरण।
- जल की बर्बादी को कम करने और समयबद्ध तरीके तथा आवश्यकता अनुरूप उपलब्धता बढ़ाने के लिये खेतों में जल उपयोग दक्षता में सुधार करना।
- परिशुद्ध कृषि जैसी जल-बचत प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
- जलभृतों के पुनर्भरण को बढ़ाना तथा धारणीय जल संरक्षण प्रथाओं को लागू करना।
- मृदा व जल संरक्षण, भू-जल पुनर्प्राप्ति, अपवाह पर नियंत्रण, आजीविका के विकल्प प्रदान करने और अन्य प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन गतिविधियों के लिये वाटरशेड दृष्टिकोण के उपयोग से वर्षा सिंचित क्षेत्रों का एकीकृत विकास सुनिश्चित करना।
- किसानों और क्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं के लिये जल संचयन, जल प्रबंधन एवं फसल संरेखण से संबंधित विस्तार गतिविधियों को बढ़ावा देना।
- उप नगरीय कृषि के लिये उपचारित नगरपालिका अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता की जाँच करना।
- घटक:
- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Accelerated Irrigation Benefit Programme- AIBP): इसे वर्ष 1996 में राज्यों की संसाधन क्षमताओं से बढ़कर सिंचाई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- वर्तमान में PMKSY-AIBP के तहत 53 परियोजनाएँ पूरी की जा चुकी हैं, जिनसे 25.14 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई है।
- हर खेत को पानी (HKKP): इसका उद्देश्य लघु सिंचाई के माध्यम से नए जल स्रोत का निर्माण करना है। इसके अंतर्गत जल निकायों की देखभाल, पुनर्स्थापना तथा नवीकरण, पारंपरिक जल स्रोतों की वहन क्षमता को बेहतर बनाना, वर्षाजल संग्रहण संरचनाओं का निर्माण करना आदि शामिल हैं।
- इसके उप घटक इस प्रकार हैं: कमांड एरिया डेवलपमेंट (CAD), सतही लघु सिंचाई (SMI), जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनरूद्धार (Repair, Renovation and Restoration- RRR), भू-जल विकास।
- वाटरशेड विकास: इसमें मृदा और नमी संरक्षण की बेहतर तकनीकें शामिल हैं जैसे कि रिज़ क्षेत्रों तथा जल निकासी लाइन 5 की मरम्मत करना, वर्षाजल एकत्रित करना, यथास्थान नमी का संरक्षण करना और वाटरशेड के आधार पर अन्य संबंधित कार्य करना। इसमें जल अपवाह तंत्र का कुशल प्रबंधन भी शामिल है।
- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Accelerated Irrigation Benefit Programme- AIBP): इसे वर्ष 1996 में राज्यों की संसाधन क्षमताओं से बढ़कर सिंचाई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- निरूपण: इसे निम्नलिखित योजनाओं को मिलाकर तैयार किया गया था:
- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP)- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय)।
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (Integrated Watershed Management Programme- IWMP)- भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय।
- ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM)- कृषि और सहकारिता विभाग (DAC)।
- कार्यान्वयन:
- राज्य सिंचाई योजना एवं ज़िला सिंचाई योजना के माध्यम से विकेन्द्रीकृत कार्यान्वयन।
कृषि से संबंधित अन्य पहलें:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये मिशन जैविक मूल्य शृंखला विकास (Mission Organic Value Chain Development for North Eastern Region- MOVCDNER)
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (Sub-mission on AgroForestry- SMAF)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
- एग्रीस्टैक
- डिजिटल कृषि मिशन
- एकीकृत किसान सेवा मंच (Unified Farmer Service Platform- UFSP)
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (National e-Governance Plan in Agriculture- NeGP-A)