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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंतरिक्ष मलबा

  • 02 Aug 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतरिक्ष मलबा, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, चीन का लॉन्ग मार्च 5बी रॉकेट, केसलर सिंड्रोम, प्रोजेक्ट नेत्र, अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन में आने वाली चुनौतियाँ और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के रॉकेट का मलबा मिला है।

  • नवंबर 2022 में चीन के लॉन्ग मार्च 5B रॉकेट का बड़ा भाग अनियंत्रित होकर दक्षिण-मध्य प्रशांत महासागर में गिर गया। इस रॉकेट को तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के तीसरे और अंतिम मॉड्यूल (मापांक) में प्रयोग किया गया था।
  • मई 2021 में 25 टन के चीनी रॉकेट का एक बड़ा भाग हिंद महासागर में मिला था।

अंतरिक्ष मलबा:

  • परिचय: 
    • अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में उन मानव निर्मित वस्तुओं को संदर्भित करता है जो अब किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं। 
    • अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है। 
  • अंतरिक्ष मलबे से खतरा:
    • समुद्री जीवन को ख़तरा: 
      • इसके महासागरों में गिरने की संभावनाएं अधिक हैं क्योंकि पृथ्वी की सतह का 70% भाग महासागरों से घिरा हुआ है, बड़ी वस्तुएँ (मलबा) समुद्री जीवन के लिये खतरा और प्रदूषण का स्रोत बन सकती हैं।
    • संचालित उपग्रहों के लिये खतरा:
      • तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन  मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।
        • केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा को संदर्भित करता है।
    • कक्षीय स्लॉट की कमी:
      • विशिष्ट कक्षीय क्षेत्रों में अंतरिक्ष मलबे का संचय भविष्य के मिशनों हेतु वांछित कक्षीय स्लॉट की उपलब्धता को सीमित कर सकता है।
    • अंतरिक्ष स्थिति के प्रति जागरूकता: 
      • अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा उपग्रह संचालकों एवं अंतरिक्ष एजेंसियों को अंतरिक्ष में वस्तुओं की कक्षाओं को सटीक रूप से ट्रैक करने तथा भविष्यवाणी करने हेतु अधिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।

अंतरिक्ष गतिविधियों से निपटने में चुनौतियाँ: 

  • विभिन्न देशों के द्वारा अधिक उपग्रह प्रक्षेपण:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और जापान जैसे देश मानव मिशन, चंद्र अन्वेषण (Lunar Exploration) और संसाधन दोहन समेत कई अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं।
      • विगत दशक में उपग्रह प्रक्षेपण में तीव्रता से वृद्धि हुई है। जिसमें वर्ष 2013 में 210, वर्ष 2019 में 600, वर्ष 2020 में 1,200 और वर्ष 2022 में 2,470 उपग्रह प्रक्षेपित हुए हैं।
    • अंतरिक्ष संसाधन अन्वेषण पर एक सहमत अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे की कमी के कारण क्षुद्रग्रहों और ग्रहों पर पाए जाने वाले मूल्यवान धातुओं की खोज में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा और रुचि में काफी वृद्धि हुई है।
  • समन्वय एवं अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन:
    • अंतरिक्ष यातायात का वर्तमान समन्वय विभिन्न देशों और क्षेत्रीय संस्थाओं द्वारा अलग-अलग मानकों तथा प्रथाओं को अपनाने के कारण खंडित है।
    • समन्वय की इस कमी से अंतरिक्ष में संभावित टकराव और दुर्घटनाएँ हो सकती हैं, जिससे परिचालन अंतरिक्ष यान के लिए जोखिम पैदा हो सकता है और अंतरिक्ष में मलबा बढ़ सकता है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: 
    • अंतरिक्ष मिशनों को विकसित करने और तैनात करने के लिये अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता होती है, जो महंगी हो सकती है और इसमें तकनीकी विफलताओं का खतरा हो सकता है। अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी कंपनियों को अपने मिशन की सफलता सुनिश्चित करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान करना होगा।
  • भू-राजनैतिक तनाव:  
    • जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष यात्राओं में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, बाहरी अंतरिक्ष में भू-राजनैतिक तनाव की संभावना बढ़ रही हैं।  
    • प्रतिस्पर्धात्मक हित और क्षेत्रीय दावे कूटनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।

अंतरिक्ष कचरे पर अंकुश लगाने से संबंधित पहल:

  • भारत: 
    • वर्ष 2022 में ISRO ने टकराव के खतरों वाली वस्तुओं की लगातार निगरानी करने, अंतरिक्ष मलबे के विकास की संभावनाओं का आकलन करने और अंतरिक्ष कचरे से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिये सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS 4 OM) की स्थापना की।
    • ISRO ने अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं के साथ टकराव से बचने के लिये वर्ष 2022 में भारतीय परिचालन अंतरिक्ष संपत्तियों की सहायता से 21 टकराव परिहार अभ्यास भी किये। 
    • इसरो ने अंतरिक्ष कचरे के खतरे की निगरानी और उसे कम करने के लिये अंतरिक्ष कचरा अनुसंधान केंद्र (SDRC) भी स्थापित किया है।
    • 'नेत्रा परियोजना' भारतीय उपग्रहों द्वारा कचरे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।
  • वैश्विक: 
    • अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee- IADC) एक अंतर्राष्ट्रीय सरकारी मंच है जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में की गई थी ताकि अंतरिक्ष मलबे के मुद्दे को प्रस्तुत करने के लिये अंतरिक्ष अन्वेषण करने वाले देशों के बीच प्रयासों को समन्वित किया जा सके। 
    • संयुक्त राष्ट्र ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने के साथ ही बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति (Committee on the Peaceful Uses of Outer Space- COPUOS) की स्थापना की है।
    • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) ने स्वच्छ अंतरिक्ष पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे की मात्रा को कम करना और स्थायी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देना है।

अंतरिक्ष गतिविधियों से निपटान हेतु संयुक्त राष्ट्र की पाँच संधियाँ:

  • बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967:  
    • चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाह्य अंतरिक्ष की खोज तथा उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि।
  • बचाव समझौता (Rescue Agreement) 1968:  
    • अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव, अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं की वापसी पर समझौता।
  • दायित्व अभिसमय (Liability Convention) 1972:  
    • यह मुख्य रूप से अंतरिक्ष वस्तुओं द्वारा अन्य अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को होने वाली क्षति से संबंधित है, साथ ही यह पृथ्वी पर अंतरिक्ष वस्तुओं के गिरने से होने वाली क्षति पर भी लागू होता है।
    • यह अभिसमय प्रक्षेपण करने वाले देश को पृथ्वी पर उसकी अंतरिक्ष वस्तु या वायु में उड़ान के कारण होने वाली किसी भी क्षति के लिये मुआवज़ा देने के लिये "पूरी तरह से उत्तरदायी (Absolutely Liable)" बनाता है। जिस देश में मलबा(Debris) गिरता है, वह उस वस्तु के गिरने से क्षतिग्रस्त होने पर मुआवज़े के लिये दावा कर सकता है। 
  • पंजीकरण अभिसमय (Registration Convention) 1976:  
    • बाह्य अंतरिक्ष में लॉन्च की गई वस्तुओं के पंजीकरण पर अभिसमय। 
  • द मून एग्रीमेंट (The Moon Agreement) 1979:  
    • चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता।
    • भारत इन सभी पाँच संधियों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, लेकिन उसने केवल चार का अनुसमर्थन किया है। भारत ने मून एग्रीमेंट की पुष्टि नहीं की है।

आगे की राह:

  • अंतरिक्ष मलबे (Space Debris) को ट्रैक करने और निगरानी करने की क्षमता में सुधार से परिचालन उपग्रहों तथा मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिये उत्पन्न जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • एकल-उपयोग रॉकेटों के बजाय पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों/रोकेटों का उपयोग करने से प्रक्षेपणों से उत्पन्न नए मलबे की संख्या को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • अधिक टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करने तथा अंततः डी-ऑर्बिटिंग के लिये उपग्रहों को डिज़ाइन करने से दीर्घावधि में उत्पन्न मलबे की संख्या को कम किया जा सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन नियम सभी देशों को अपने भू-भाग के ऊपर के आकाशी क्षेत्र (एयरस्पेस) पर पूर्ण और अनन्य प्रभुता प्रदान करते हैं। आप 'आकाशी क्षेत्र' से क्या समझते हैं? इस आकाशी क्षेत्र के ऊपर के आकाश के लिये इन नियमों के क्या निहितार्थ हैं? इससे प्रसूत चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के तरीके सुझाइये। (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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