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संसदीय विशेषाधिकार

  • 25 Jul 2018
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉन्ग्रेस पार्टी ने फ्राँस के साथ हुए राफेल समझौते पर सदन को गुमराह करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है।

विशेषाधिकार क्या है?

संसदीय विशेषाधिकार मूलतः ऐसे विशेष अधिकार हैं जो प्रत्येक सदन को सामूहिक और सदन के सभी सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होते हैं। इस तरह ये अधिकार संसद के अनिवार्य अंग के रूप में होते हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य संसद के सदनों, समितियों और सदस्यों को अपने कर्तव्यों के क्षमतापूर्ण एवं प्रभावी तरीके से निर्वहन हेतु निश्चित अधिकार और उन्मुक्तियाँ प्रदान करना है। संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में क्रमशः संसद एवं राज्य विधानमंडल के सदनों, सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त विशेषाधिकार उन्मुक्तियों का उल्लेख किया गया है।

इस तरह संसदीय विशेषाधिकार का मूल भाव संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और स्वायत्तता की सुरक्षा करना है। लेकिन संसद सदस्यों को यह अधिकार उनके नागरिक अधिकारों से मुक्त नहीं करता है।

विशेषाधिकार समिति:

लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मनोनीत पंद्रह सदस्यीय समिति द्वारा लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से संदर्भित किये जाने पर सदन के विशेषाधिकार के हनन के मामलों का परीक्षण किया जाता है और अपेक्षित सिफारिश की जाती है। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सांसद मीनाक्षी लेखी लोकसभा के विशेषाधिकार समिति की प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यसभा के विशेषाधिकार समिति में दस सदस्य होते हैं, जिन्हें सभापति द्वारा मनोनीत किया जाता है।

प्रक्रिया:

कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से सदस्य या सदन के विशेषाधिकार के हनन का मामला उठा सकता है। इसके लिये सदस्य को लोकसभा के महासचिव को प्रश्न के लिये प्रस्तावित दिन (10 बजे सुबह) ही लिखित सूचना देना आवश्यक है। यदि प्रश्न दस्तावेज़ पर आधारित होता है तो निश्चित रूप से सूचना को इसके साथ संलग्न किया जाता है। यदि सूचना 10 बजे पूर्वाह्न के बाद दी जाती है तो उसे अगले दिन के लिये 10 बजे पूर्वाह्न माना जाएगा। सदन की एक बैठक में केवल एक ही प्रश्न उठाने की अनुमति होती है। प्रश्न हाल में हुए किसी विशिष्ट मामले से ही संबंधित होता है। साथ ही प्रश्न ऐसे होने चाहिये जिसमें संसद का हस्तक्षेप आवश्यक है।

यदि अध्यक्ष द्वारा सदन में विशेषाधिकार के प्रश्न के रूप में कोई मामला उठाने के लिये अपनी अनुमति दी गई है, तो जिस सदस्य ने सूचना दी है, वह अध्यक्ष द्वारा बुलाए जाने पर, उस विशेषाधिकार के प्रश्न को उठाने के लिये सदन की अनुमति मांगेगा। ऐसी अनुमति मांगते समय संबंधित सदस्य को विशेषाधिकार के प्रश्न से संगत केवल एक संक्षिप्त वक्तव्य देने की अनुमति दी जाती है। यदि अनुमति के संबंध में आपत्ति की जाती है तो अध्यक्ष उन सदस्यों से अनुरोध करता है जो अनुमति दिये जाने के पक्ष में होते हैं, कि वे अपने स्थान पर खड़े हो जाएँ। इस प्रकार यदि पच्चीस या इससे अधिक सदस्य खड़े हो जाते हैं तो यह माना जाता है कि सदन ने मामले को उठाए जाने की अनुमति दे दी है तथा अध्यक्ष द्वारा यह घोषणा की जाती है कि अनुमति दी जाती है और यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो अध्यक्ष द्वारा सदस्य को सूचित किया जाता है कि उसे सदन ने मामले को उठाए जाने की अनुमति नहीं दी है।

उल्लेखनीय है कि सदन में विशेषाधिकार का प्रश्न उठाने की अनुमति केवल उसी सदस्य द्वारा मांगी जा सकती है, जिसने विशेषाधिकार के संदर्भ में महासचिव को सूचना दी है। इस संबंध में उक्त सदस्य द्वारा किसी अन्य सदस्य को प्राधिकृत नहीं किया जा सकता।

विशेषाधिकारों का वर्गीकरण:

  • संसदीय विशेषाधिकार को दो व्यापक वर्गों में बाँटा जा सकता है। ये हैं- व्यक्तिगत अधिकार और सामूहिक अधिकार। व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग संसद द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। जबकि सामूहिक अधिकार संसद या राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों को प्राप्त होते हैं।
  • सामूहिक अधिकार के अंतर्गत सदन की रिपोर्ट, वाद-विवाद कार्यवाहियों आदि मामलें में अन्य के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाना है। इसके अतिरिक्त सदन की अवमानना पर दंडित करने की शक्ति, कार्यवाही से बाहरी व्यक्तियों सहित सदस्यों को निष्कासित करना, विशेष मामलों पर गुप्त बैठक करना, सदस्यों के बंदी या मुक्ति व अपराध सिद्धि के संबंध में जानकारी प्राप्त करना, न्यायालयों को संसद की कार्यवाही की जाँच करने का निषेध आदि शामिल हैं।
  • किसी सदस्य को प्राप्त व्यक्तिगत अधिकारों में – सदन के सत्र के दौरान, सत्र आरंभ होने के चालीस दिन पहले और सत्र समाप्ति के चालीस दिन बाद तक दीवानी मामलों में सदस्यों को गरफ्तारी से उन्मुक्ति, संसद में सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि शामिल हैं।

विशेषाधिकारों का हनन और सदन की अवमानना:

  • जब कोई व्यक्ति या प्राधिकारी व्यक्तिगत रूप में संसद के सदस्यों अथवा सामूहिक रूप से सभा के किसी विशेषधिकार, अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करता है या उन्हें चोट पहुँचाता है, तो इसे विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाएगा। यह कृत्य सदन द्वारा दंडनीय होता है। इसके अतिरिक्त सदन के आदेशों की अवज्ञा करना अथवा सदन, इसकी समितियों, सदस्यों और पदाधिकारियों के विरुद्ध अपमानित लेख लिखना भी विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है। 
  • सामान्यतः ऐसा कोई कार्य या भूल जो संसद के किसी सदन के काम में बाधा या अड़चन डालती है अथवा संसद के किसी सदस्य या अधिकारी के कर्त्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न करती है, जो सदन की गरिमा एवं शक्ति के विरुद्ध हो, तो ऐसे कृत्यों को सदन की अवमानना कहा जाएगा। उदाहरण के लिये- सदन, उसकी समितियों या सदस्यों पर आक्षेप लगाने वाले भाषण, अध्यक्ष के कर्त्तव्यों के पालन में उसकी निष्पक्षता या चरित्र पर प्रश्न करना, सदन में सदस्यों के आचरण की निंदा करना, सदन की कार्यवाहियों का झूठा प्रकाशन करना, संसदीय कार्यवाहियों को प्रभावित करने के लिये सदस्यों को रिश्वत देना आदि।

सीमाएँ:

यद्यपि संसदीय विशेषाधिकार संसद के अनिवार्य अंग के रूप में मौजूद हैं। फिर भी इनके दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

  • यदा-कदा मीडिया द्वारा सांसदों की आलोचना करने पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • विशेषाधिकारों के उल्लंघन का कानून राजनीतिज्ञों को स्वयं के मामले में स्वतः न्याय करने की शक्ति प्रदान करता है। इस तरह उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को उचित सुनवाई के अधिकार से वंचित होना पड़ता है।
  • इसके अतिरिक्त किसी सदस्य द्वारा सदन में की गई घोषणा या आश्वासन को विशेषाधिकारों के उल्लंघन या संसद की अवमानना के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है।
  • कानूनी कार्यवाही के विकल्प के रूप में भी इसे प्रयोग किये जाने की संभावना रहती है।

महत्त्व:

यह विशेषाधिकार संसद सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है और उनके द्वारा संसद में किये जाने वाले कृत्यों के बदले न्यायालयी कार्यवाहियों से रक्षा करता है, ताकि संसदीय प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे। साथ ही यह संसद की गरिमा, अधिकार और सम्मान की रक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।

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