डेली न्यूज़ (26 Dec, 2024)



असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023-24

प्रिलिम्स के लिये:

असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE), असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठान, अनौपचारिक क्षेत्र, MSME, स्वयं सहायता समूह (SHG), सहकारी समितियाँ, योजित सकल मूल्य, आउटपुट का सकल मूल्य, औपचारिक क्षेत्र, आपूर्ति शृंखला, न्यूनतम मज़दूरी, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व

मेन्स के लिये:

भारत में असंगठित क्षेत्र के उद्यमों की स्थिति, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने अक्तूबर, 2023- सितंबर, 2024 की संदर्भ अवधि हेतु वर्ष 2023-24 के लिये असंगठित क्षेत्र उद्यमों (ASUSE) के वार्षिक सर्वेक्षण के परिणाम जारी किये।

  • संदर्भ अवधि एक विशिष्ट समय-सीमा है, जिसका उपयोग डेटा या सांख्यिकी एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने के लिये किया जाता है।

ASUSE क्या है?

  • परिचय: ASUSE विशेष रूप से विनिर्माण, व्यापार और अन्य सेवा क्षेत्रों (निर्माण को छोड़कर) में असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठानों की विभिन्न आर्थिक और परिचालन से जुड़ी विशेषताओं को मापना है।
    • असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठान असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यम हैं, जिनमें MSMEs, किराये के श्रमिकों वाली घरेलू इकाइयाँ और स्वयं के खाते वाले उद्यम शामिल हैं। 
  • कवरेज़:
    • भौगोलिक: संपूर्ण भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के गाँवों को छोड़कर, जहाँ पहुँचना कठिन है)।
    • क्षेत्रवार: तीन क्षेत्रों अर्थात विनिर्माण, व्यापार और अन्य सेवाओं से संबंधित असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठान।
    • स्वामित्व: स्वामित्व, साझेदारी (सीमित देयता भागीदारी को छोड़कर), स्वयं सहायता समूह (SHG), सहकारी समितियाँ, सोसायटी/ट्रस्ट आदि।
  • सर्वेक्षण समय-सीमा: पहला पूर्ण ASUSE 2021-22 (अप्रैल 2021 - मार्च 2022) में आयोजित किया गया था, इसके बाद दूसरा सर्वेक्षण अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 तक किया गया।
    • वर्तमान तीसरा सर्वेक्षण (ASUSE 2023-24) अक्तूबर, 2023 से सितंबर, 2024 तक के लिये जारी किया गया था।
  • नमूना आकार: ASUSE 2023-24 में, 16,842 सर्वेक्षणित प्रथम चरण इकाइयों (ग्रामीण में 8,523 और शहरी में 8,319) से कुल 4,98,024 प्रतिष्ठानों (ग्रामीण में 2,73,085 और शहरी में 2,24,939) से डेटा एकत्र किया गया था।
    • प्रथम चरण की इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में जनगणना गाँव और शहरी क्षेत्रों में ब्लॉक थीं। 

ASUSE 2023-24 परिणामों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • प्रतिष्ठानों में वृद्धि: प्रतिष्ठानों की कुल संख्या 12.84% बढ़कर वर्ष 2022-23 में 6.50 करोड़ से वर्ष 2023-24 में 7.34 करोड़ हो गई है।
    • "अन्य सेवा" क्षेत्र में सर्वाधिक 23.55% की वृद्धि तथा विनिर्माण क्षेत्र में 13% की वृद्धि देखी गयी।

Number_of_Establishments

  • GVA वृद्धि: सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में 16.52% की वृद्धि हुई, जो मुख्य रूप से "अन्य सेवाओं" क्षेत्र में 26.17% की वृद्धि के कारण हुई।
    • प्रति श्रमिक GVA में 5.62% की वृद्धि हुई, जो वर्ष 2022-23 में 1,41,769 रुपए से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 1,49,742 रुपए हो गई।

Productivity

  • प्रति प्रतिष्ठान आउटपुट: प्रति प्रतिष्ठान सकल उत्पादन मूल्य (GVO) वर्तमान मूल्यों में 6.15% बढ़कर 4,63,389 रुपए से 4,91,862 रुपए हो गया।
    • GVO से तात्पर्य किसी प्रतिष्ठान द्वारा किसी विशिष्ट अवधि के दौरान उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से है।
  • श्रम बाज़ार का प्रदर्शन: इस क्षेत्र में 12 करोड़ से अधिक श्रमिकों को रोज़गार मिला, जो 2022-23 से एक करोड़ से अधिक की वृद्धि है, जो मज़बूत श्रम बाज़ार वृद्धि का संकेत है।
    • "अन्य सेवा" क्षेत्र में 17.86% की सर्वाधिक वार्षिक वृद्धि देखी गई, जिसके बाद विनिर्माण क्षेत्र में 10.03% की वृद्धि हुई।
  • महिला उद्यमिता: महिला स्वामित्व वाली स्वामित्व प्रतिष्ठान वर्ष 2022-23 में 22.9% से बढ़कर 2023-24 में 26.2% हो गई, जो महिलाओं के व्यवसाय स्वामित्व में सकारात्मक प्रवृत्ति का संकेत है।

Female_Entrepreneurship

  • वेतन में सुधार: वर्ष 2023-24 में नियोजित श्रमिकों के लिये औसत पारिश्रमिक में 13% की वृद्धि हुई, जिसमें सबसे अधिक वृद्धि विनिर्माण क्षेत्र (16%) में देखी गई।
  • डिजिटल पैठ: इंटरनेट का उपयोग करने वाले प्रतिष्ठानों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2022-23 में 21.1% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 26.7% हो गई है, जो व्यावसायिक परिचालन में डिजिटल की ओर अग्रसर एक मज़बूत प्रवृत्ति को दर्शाता है।

Digital_Penetration

मुख्य अवधारणाएँ और परिभाषाएँ:

  • उद्यम: वित्तीय और निवेश निर्णयों में स्वायत्तता के साथ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने वाली इकाई, जो संसाधन आवंटन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठान: वे निगमित नहीं हैं (अर्थात् न तो कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत हैं और न ही कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत)।
  • विनिर्माण प्रतिष्ठान: सामग्री को नए उत्पादों में बदलने या रखरखाव और मरम्मत सहित विनिर्माण सेवाएँ प्रदान करने में शामिल इकाइयाँ।
  • पारिश्रमिक: नियमित भुगतान (वेतन, मज़दूरी, बोनस) और सामाजिक सुरक्षा लाभों के लिये नियोक्ता का योगदान, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल या मनोरंजन जैसे भुगतान शामिल हैं।
  • सकल मूल्य संवर्धन (GVA): GVA उत्पादन और मध्यवर्ती उपभोग (इनपुट) के सकल मूल्य के बीच का अंतर है।
  • किराये पर काम करने वाले श्रमिक प्रतिष्ठान (HWE): वह प्रतिष्ठान जिसमें कम से कम एक कर्मचारी नियमित रूप से कार्यरत हो।
  • अन्य सेवा प्रतिष्ठान: वे विभिन्न सेवा गतिविधियों में लगे असंगठित उद्यमों को संदर्भित करते हैं जो व्यापार और विनिर्माण श्रेणियों में नहीं आते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित गैर-कृषि इकाइयों का क्या महत्त्व है?

  • रोज़गार प्रदाता: वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत का 93% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिससे यह सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता बन गया है।
  • क्षेत्रीय संतुलन: अनौपचारिक उद्यम ग्रामीण क्षेत्रों का औद्योगिकीकरण करके और सीमित पूंजी वाले व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करके क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने में मदद करते हैं।
  • उद्यमिता: छोटी अनौपचारिक फर्म विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के व्यक्तियों जैसे कमजोर समूहों के लिये उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं।
  • औपचारिक क्षेत्र के लिये समर्थन: यह औपचारिक क्षेत्र को ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करता है जिनका बड़ी फर्मों द्वारा या औपचारिक उद्यमों की आपूर्ति शृंखलाओं का समर्थन करके कुशलता से उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
  • गतिशील भूमिका: असंगठित क्षेत्र में सेवाओं में 38%, व्यापार (मुख्य रूप से खुदरा) में 35%, तथा विनिर्माण में 27% फर्में कार्यरत हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में अनौपचारिक उद्यमों के महत्त्व को दर्शाता है।

भारत में असंगठित गैर-कृषि इकाइयों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • लैंगिक असमानताएँ: अनौपचारिक कार्यबल में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है, फिर भी उन्हें कम वेतन, आय अस्थिरता और सामाजिक सुरक्षा के अभाव सहित कई गंभीर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • अनियंत्रित कारकों के प्रति सुभेद्यता: भारत में मानसून के सीज़न के दौरान निर्माण गतिविधियाँ प्रायः रुक जाती हैं, जिससे प्रवासी श्रमिकों को स्थायी रोज़गार नहीं मिल पाता।
  • रोज़गार सुरक्षा का अभाव: अनौपचारिक रोज़गार में स्वभावतः औपचारिक रोज़गार से संबंधित सुरक्षा और लाभ जैसे लिखित अनुबंध, न्यूनतम मज़दूरी, सवेतन अवकाश और विनियमित कार्य घंटे का अभाव होता है।
  • कर चोरी: कई कंपनियां कानूनी प्रणाली से राजस्व और व्यय को छिपाकर करों की चोरी करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी राजस्व में अत्यधिक हानि होती है।
  • विकास में चुनौतियाँ: दीर्घकालिक स्थिरता चिंता का विषय बनी हुई है, वर्ष 2015-2023 तक इस क्षेत्र की विकास दर केवल 2% का न्यूनतम विस्तार दर्शा रही है।
  • सटीक आँकड़ों का अभाव: वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत का 93% कार्यबल अनौपचारिक है, जबकि नीति आयोग की न्यू इंडिया के लिये रणनीति में इसका अनुमान 85% लगाया गया है।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) की 'असंगठित क्षेत्र सांख्यिकी समिति की रिपोर्ट', 2012 में दावा किया गया है कि 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक है, हालाँकि स्रोत निर्दिष्ट नहीं किये गए हैं।

आगे की राह

  • औपचारिकता को प्रोत्साहित करना: पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, छोटी फर्मों के लिये करों को कम करके, तथा व्यवसायों को श्रम और सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने के लिये  प्रोत्साहन प्रदान करके औपचारिकता को प्रोत्साहित करना।
  • सशक्तिकरण के लिये स्वयं सहायता समूह: स्वयं सहायता समूह (SHG) की स्थापना से अनौपचारिक कर्मचारियों को उनके कार्य की स्थिति और आर्थिक सुरक्षा में सुधार के लिये आवश्यक उपकरण और सहायता प्रदान की जा सकती है।
  • व्यापक डेटाबेस: अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर विस्तृत डेटा एकत्र करने से नीति निर्माताओं को सूचित निर्णय लेने, लक्षित हस्तक्षेप डिजाइन करने और नीति प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलती है।
  • समान कार्य के लिये समान वेतन: सरकार को राज्य नीति के निदेशक तत्त्वों के अनुच्छेद 39(d) के अनुसार समान कार्य के लिये समान वेतन सुनिश्चित करने के उपायों को लागू करना चाहिये।
  • क्षमता विकास: अनौपचारिक श्रमिकों के लिये कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करना, जिसमें बढ़ईगीरी, प्लंबिंग, सिलाई, खाद्य प्रसंस्करण, डिजिटल साक्षरता और सॉफ्ट स्किल जैसे ट्रेड शामिल हों।
    • नए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिये अनुभवी कर्मचारियों के लिये प्रशिक्षुता और मार्गदर्शन कार्यक्रम शुरू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित गैर-कृषि प्रतिष्ठानों की भूमिका का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?  (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a) 


प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(c)


मेन्स

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)


प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, भारतीय जीवन बीमा निगम, अटल पेंशन योजना, ई-श्रम पोर्टल

मेन्स के लिये:

असंगठित श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ, नीति मूल्याँकन में संसदीय समितियों की भूमिका, वित्तीय समावेशन।

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

संसद की स्थायी समिति (PSC) की रिपोर्ट में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये पेंशन योजना, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (PM-SMY) के खराब प्रदर्शन पर चिंता जताई गई है।

प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना क्या है?

  • परिचय: यह वर्ष 2019 में शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की पेंशन योजना है, जिसे श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जाता है, था भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) पेंशन फंड प्रबंधक के रूप में कार्य करता है।
  • लक्षित लाभार्थी: यह योजना 18 से 40 वर्ष की आयु के असंगठित श्रमिकों, जैसे स्ट्रीट वेंडर, घरेलू कामगार, निर्माण मज़दूर और कृषि श्रमिकों को लक्षित करती है, जिनकी मासिक आय 15,000 रुपए तक है।
  • अंशदान: श्रमिकों को उनकी प्रवेश आयु के आधार पर 55 रुपए से 200 रुपए तक का मासिक अंशदान (प्रीमियम) करना होता है, सरकार उनके अंशदान के बराबर राशि जमा करती है।
  • पेंशन लाभ: इस योजना के तहत श्रमिक के 60 वर्ष की आयु वाले श्रमिकों को 3,000 रुपए प्रति माह पेंशन देने का वादा किया गया है। हालाँकि, यदि श्रमिक की मृत्यु 60 वर्ष से पहले हो जाती है, तो उसके परिवार को कोई एकमुश्त भुगतान नहीं किया जाता है।
    • अभिदाता की मृत्यु की स्थिति में, उनके जीवनसाथी को पेंशन राशि का 50% पारिवारिक पेंशन के रूप में प्राप्त होगा। 

PM-SMY पर स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • PM-SMY का निराशाजनक प्रदर्शन: नामांकन और सरकारी वित्तपोषण में कमी के कारण PM-SMY योजना का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 
    • दो वर्षों में सरकारी अंशदान लगभग आधा हो गया है तथा वास्तविक व्यय वित्त वर्ष 2023-24 में घटकर 162.51 करोड़ रुपए रह गया, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 324.23 करोड़ रुपए था।
    • व्यय में कमी श्रमिकों और सरकार दोनों के योगदान में गिरावट को दर्शाती है, जिससे योजना की व्यवहार्यता और भी कमज़ोर हो जाती है।
  • PM-SMY का लक्ष्य वर्ष 2023 तक 100 मिलियन श्रमिकों को नामांकित करना था, लेकिन वित्त वर्ष 24 तक यह केवल 5 मिलियन तक ही पहुँच सका, जो 565 मिलियन असंगठित कार्यबल के 1% से भी कम को कवर करता है।
    • हालाँकि, सरकार ने इस योजना को एक और वर्ष, अर्थात् वित्त वर्ष 2025-26 तक, बढ़ा दिया है, तथा इसके आकर्षण को बढ़ाने के लिये संशोधन की प्रतीक्षा कर रही है।
  • निराशाजनक प्रदर्शन के कारण:
    • आय संबंधी चुनौतियाँ: अनियमित आय और अस्थिर रोज़गार के कारण असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, विशेषकर दैनिक वेतन भोगियों के लिये 55-200 रुपए का मासिक प्रीमियम वहन करना कठिन हो जाता है, जिससे उनकी भागीदारी की क्षमता और कम हो जाती है।
      • कोविड-19 का प्रभाव: महामारी ने कई असंगठित श्रमिकों की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है, जिससे योजना में योगदान करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • संरचनात्मक बाधाएँ: असंगठित क्षेत्र में औपचारिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध का अभाव, अपर्याप्त दस्तावेज़ीकरण और जागरूकता के कारण श्रमिकों के लिये योजना तक पहुँचने में चुनौतियों का कारण बनता है।
    • मौजूदा पेंशन विकल्प: अटल पेंशन योजना (APY) जैसी अन्य पेंशन योजनाओं की मौजूदगी से भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे श्रमिकों को यह अनिश्चितता हो सकती है कि उन्हें किस योजना का चयन करना चाहिये।
  • योजना के पुनरुद्धार हेतु सिफारिशें:
    • प्रवेश आयु का विस्तार: पुराने असंगठित श्रमिकों को शामिल करने के लिये पात्रता आयु 40 वर्ष से बढ़ाकर 50 वर्ष करना।
    • योजना का विलय: बेहतर संरेखण और कवरेज के लिये PM-SMY को APY और प्रधानमंत्री लघु व्यापारी मान-धन योजना के साथ जोड़ना।
    • ई-श्रम पोर्टल: 305 मिलियन से अधिक श्रमिकों के डेटाबेस वाला ई -श्रम पोर्टल, PM-SMY के लिये लाभार्थियों को शामिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • PM-SMY को ई-श्रम डेटाबेस के साथ एकीकृत करने से नामांकन सुव्यवस्थित हो सकता है और व्यापक पहुँच सुनिश्चित हो सकती है। 
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): उन श्रमिकों के लिये अंशदान को कवर करने हेतु सब्सिडी शुरू करना जो अपनी जेब से भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं।
    • जागरूकता अभियान: योजना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और गलत सूचना को कम करने के लिये लक्षित आउटरीच कार्यक्रम शुरू करना।

संसदीय समितियाँ

  • परिचय: संसदीय समितियाँ (PC) संसद सदस्यों (MP) की समितियाँ होती हैं जिन्हें सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है अथवा अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है। 
    • ये समितियाँ अपना अधिकार अनुच्छेद 105 (सांसदों के विशेषाधिकार) और अनुच्छेद 118 (कार्य-प्रक्रिया और संचालन के नियम) से प्राप्त करती हैं।
  • आवश्यकता: संसद में सीमित समय के कारण, विस्तृत चर्चा, विशेषज्ञ इनपुट और अंतर-दलीय सहमति के लिये PC आवश्यक है। 
    • वे विधेयकों और नीतियों की गहन जाँच करते हैं, प्रभावी विधायी कार्य सुनिश्चित करते हैं और राजनीतिक ध्रुवीकरण से बचते हैं।
  • संसदीय समितियों के प्रकार:
    • स्थायी समितियाँ संसद के अंतर्गत स्थायी और सतत् निकाय हैं जो विधायी कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 
      • इनमें वित्तीय समितियाँ (व्यय की जाँच), विभागीय समितियाँ (मंत्रालयों की देखरेख), जाँच समितियाँ (मुद्दों की जाँच), संवीक्षा समितियाँ (नीतिगत जवाबदेही सुनिश्चित करना), दिन-प्रतिदिन की व्यावसायिक समितियाँ (प्रक्रियाओं का प्रबंधन) और सेवा समितियाँ (लॉजिस्टिक्स को संभालना) शामिल हैं। 
    • तदर्थ समितियाँ विशिष्ट कार्यों के लिये गठित अस्थायी पैनल हैं, जिनमें जाँच समितियाँ और विशेषज्ञ सिफारिशों के लिये सलाहकार समितियाँ शामिल हैं। 
      • अपना कार्य पूरा हो जाने पर वे समाप्त हो जाती हैं।

असंगठित श्रमिक कौन हैं?

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा इसकी प्रभावशीलता में सुधार के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?  (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a) 


प्रश्न.  'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. यह एक न्यूनतम गारंटित पेंशन योजना है, जो मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को लक्ष्य बनाती है।
  2. परिवार का केवल एक ही व्यक्ति इस योजना में शामिल हो सकता है।
  3. अभिदाता (सब्स्क्राइबर) की मृत्यु के पश्चात् जीवनसाथी को आजीवन पेंशन की समान राशि गारंटित रहती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c) 


विमानन और उत्सर्जन पर इसका प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय संपर्क योजना-UDAN, ओपन स्काई संधि, कार्बन तटस्थता

मेन्स के लिये:

विमानन क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन, इससे संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ और आगे की राह, भारत के विमानन क्षेत्र का परिवर्तन, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि विमानन क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में शीर्ष वैश्विक योगदानकर्त्ताओं में से एक है, निजी जेट विमानों का प्रति यात्री कार्बन उत्सर्जन काफी अधिक है। 

  • भारत का निजी विमानन क्षेत्र अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन देश की बढ़ती संवृद्धि के कारण इसमें तीव्र वृद्धि हो रही है।

विमानन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन की क्या स्थिति है?

  • विमानन क्षेत्र:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक ऊर्जा-संबंधित COउत्सर्जन में विमानन की 2% भागीदारी रही, जिसमें उत्सर्जन लगभग 800 मीट्रिक टन CO2 (जो कोविड-19 महामारी के स्तर का लगभग 80% है) तक पहुँच गया।
      • हाल के दशकों में विमानन क्षेत्र से उत्सर्जन में रेल, सड़क या जहाज़रानी की तुलना में अधिक तीव्र वृद्धि हुई।
    • यदि विमानन क्षेत्र को एक देश माना जाए तो यह विश्व में शीर्ष 10 उत्सर्जकों में शामिल होगा।
  • निजी विमानन क्षेत्र से उत्सर्जन: अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2019 और 2023 के बीच निजी विमानन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में 46% की वृद्धि हुई।
    • निजी जेट विमान, वाणिज्यिक उड़ानों की तुलना में प्रति यात्री 5 से 14 गुना अधिक CO2 उत्सर्जित करते हैं तथा प्रति यात्री आधार पर रेलगाड़ियों की तुलना में 50 गुना अधिक प्रदूषण करते हैं।
    • इससे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।

निजी विमानन क्षेत्र में वृद्धि:

  • वैश्विक: निजी जेट की संख्या दिसंबर 2023 के 25,993 से बढ़कर फरवरी 2024 में 26,454 हो गई, जिससे होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि हुई। 
    • प्रत्येक निजी उड़ान से औसतन लगभग 3.6 टन CO2 का उत्सर्जन होता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।
  • भारत: मार्च 2024 तक भारत में 112 पंजीकृत निजी विमान हैं। 
    • यद्यपि यह संख्या अमेरिका एवं माल्टा जैसे देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है फिर भी इससे भारत निजी विमान स्वामित्व के मामले में शीर्ष 20 देशों में शामिल है।
    • भारत में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर एक निजी जेट है, जो माल्टा (46.51 प्रति लाख) एवं अमेरिका (5.45 प्रति लाख) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
  • भारत में अरबपतियों (विश्व स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी संख्या) और करोड़पतियों की बढ़ती संख्या से निजी जेट की मांग को बढ़ावा मिला है।

विमानन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के संभावित समाधान क्या हैं?

  • सतत् विमानन ईंधन (SAF): SAF (स्पाइसजेट और एयर एशिया जैसी एयरलाइनों द्वारा परीक्षण किया गया) जैव-आधारित या अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन हैं जो रासायनिक रूप से पारंपरिक जेट ईंधन के समान हैं, लेकिन इनका कार्बन उत्सर्जन काफी कम है।
  • संभावित लाभ:
    • कार्बन उत्सर्जन में कमी: SAF फीडस्टॉक और उत्पादन विधि के आधार पर कार्बन उत्सर्जन को 80% तक कम कर सकता है।
    • अनुकूलता: SAF ड्रॉप-इन ईंधन हैं, जिनका उपयोग मौजूदा विमान इंजन और बुनियादी ढाँचे में बिना किसी बड़े बदलाव के किया जा सकता है, जो उत्सर्जन में कमी के लिये एक निकट-अवधि समाधान प्रदान करता है।
    • विविध फीडस्टॉक: SAF उत्पादन से विभिन्न प्रकार के फीडस्टॉक्स (जैसे शैवाल, कृषि अवशेष, अपशिष्ट तेल या नगरपालिका ठोस अपशिष्ट) का लाभ उठाया जा सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है और आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलापन आ सकता है।
  • चुनौतियाँ:
    • उच्च लागत: SAF वर्तमान में पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में अधिक महंगे हैं, जिससे वे बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी बन गए हैं।
    • सीमित उत्पादन: SAF की वैश्विक उत्पादन क्षमता सीमित है, और विमानन उद्योग की मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश और बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता है।
    • स्थायित्व: हालाँकि SAF उत्सर्जन को कम करते हैं, लेकिन भूमि उपयोग में परिवर्तन, जल उपयोग और जैव विविधता जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए उनका उत्पादन धारणीय होना चाहिये।
  • बैटरी-इलेक्ट्रिक प्रणोदन: इसमें विमान के इंजनों को चलाने के लिये बैटरियों में संग्रहीत विद्युत् का उपयोग करना, तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये पारंपरिक जेट इंजनों के स्थान पर विद्युत मोटरों का उपयोग करना शामिल है।
  • संभावित लाभ:
    • शून्य उत्सर्जन: बैटरी-इलेक्ट्रिक विमान कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन नहीं करते हैं, जिससे छोटी दूरी की उड़ानों के लिये स्वच्छ, कार्बन-तटस्थ भविष्य में योगदान मिलता है।
    • ऊर्जा दक्षता: विद्युत मोटर दहन इंजन की तुलना में अधिक कुशल हैं, जो बैटरी से अधिक ऊर्जा को थ्रस्ट में परिवर्तित करते हैं।
    • शोर में कमी: विद्युत प्रणोदन ध्वनि प्रदूषण को कम करता है, जिससे यह शहरी और क्षेत्रीय हवाई अड्डों के लिये आदर्श बन जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • बैटरी की सीमाएँ: वर्तमान बैटरी प्रौद्योगिकी ऊर्जा घनत्व की सीमाओं के कारण लंबी दूरी की उड़ानों के लिये उपयुक्त नहीं है।
    • वजन और आकार: बैटरियाँ भारी होती हैं और काफी स्थान घेरती हैं, जिससे इलेक्ट्रिक विमान का आकार और पेलोड क्षमता सीमित हो जाती है।
    • चार्जिंग अवसंरचना: हवाई अड्डों पर चार्जिंग अवसंरचना की व्यापक आवश्यकता है और इसके लिये महत्त्वपूर्ण निवेश और समन्वय की आवश्यकता है।
  • हाइड्रोजन: हाइड्रोजन ईंधन उच्च ऊर्जा घनत्व प्रदान करता है और दहन के समय केवल जल वाष्प उत्सर्जित करता है, जिससे यह एक स्वच्छ ईंधन विकल्प बन जाता है। 
    • हाइड्रोजन दहन (40% दक्षता) और हाइड्रोजन ईंधन सेल (45-50% दक्षता) दोनों पर सक्रिय अनुसंधान चल रहा है।
    • संभावित लाभ:
      • उच्च ऊर्जा घनत्व: हाइड्रोजन में केरोसिन की तुलना में तीन गुना अधिक गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा घनत्व होता है, जिससे यह बड़े विमानों और लंबी उड़ानों के लिये उपयुक्त हो जाता है।
        • गुरुत्वीय ऊर्जा घनत्व किसी पदार्थ के प्रति इकाई द्रव्यमान पर उपलब्ध ऊर्जा है।
      • स्वच्छ उत्सर्जन: जब हाइड्रोजन का दहन किया जाता है या फ्यूल सेल में उपयोग किया जाता है, तो यह केवल जल वाष्प उत्पन्न करता है, जिससे यह जीवाश्म-आधारित जेट ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प बन जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • हाइड्रोजन का भंडारण: हाइड्रोजन के खराब ऊर्जा घनत्व के कारण, इसके लिये विशाल, भारी भंडारण टैंकों की आवश्यकता होती है, जिससे विमानन हेतु हल्के, कॉम्पैक्ट विकल्प ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
      • तरल हाइड्रोजन उच्च घनत्व प्रदान करता है, लेकिन अतिरिक्त बाधाएँ उत्पन्न करता है, जिससे कुशल भंडारण कठिन हो जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: हवाई अड्डों पर ईंधन भरने के बुनियादी ढाँचे की स्थापना और हाइड्रोजन के सुरक्षित वैश्विक परिवहन को सुनिश्चित करना इसकी उच्च ज्वलनशीलता के कारण चुनौतीपूर्ण है। 
      • विशेष सुरक्षा उपायों और कुशल श्रम की आवश्यकता से लागत बढ़ जाती है।
    • विमान का पुनः ईंधन कोशिकाओं के लिये व्यापक रूप से ओवरहाल की आवश्यकता होती है, जिसमें ईंधन टैंक, वितरण प्रणाली और भंडारण में संशोधन शामिल हैं, जबकि हाइड्रोजन दहन के लिये विमान के आंशिक पुनः डिज़ाइन की आवश्यकता होती है।
      • इसके लिये महत्त्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता और मौजूदा विमानों के नवीनीकरण के लिये पर्याप्त धन की आवश्यकता होगी।

हवाई यात्रा को सतत् बनाने के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • नीतिगत पहल: भारत सरकार ने ग्रामीण हवाई संपर्क में सुधार के लिये उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना और हवाईअड्डे की क्षमता बढ़ाने के लिये NABH (भारत निर्माण के लिये अगली पीढ़ी के हवाईअड्डे) योजना शुरू की।
  • सतत् विमानन ईंधन (SAF): भारतीय एयरलाइनों द्वारा SAF पर परीक्षण किया गया, स्पाइसजेट द्वारा वर्ष 2018 में जट्रोफा तेल के मिश्रण तथा एयरएशिया द्वारा वर्ष 2023 में SAF का उपयोग किया गया।
  • विमानन के लिये इथेनॉल: भारत की इथेनॉल उत्पादन आपूर्ति शृंखला विमानन ईंधन के लिये एक व्यवहार्य मध्यम अवधि समाधान हो सकती है। 
    • विमानन ईंधन के लिये इथेनॉल का उत्पादन करने हेतु अधिशेष चीनी का उपयोग करने से वर्ष 2050 तक भारत की विमानन ईंधन मांग का 15-20% पूरा हो सकता है, हालाँकि भूमि-उपयोग में परिवर्तन एवं भूजल की कमी से बचने के लिये सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

विमानन उद्योग से संबंधित भारत की पहल

आगे की राह: 

  • सतत् विमानन ईंधन (SAF) को बढ़ावा देना: लागत कम करने और उपलब्धता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से SAF उत्पादन को बढ़ाना।
  • हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक प्रणोदन का विकास: हाइड्रोजन-संचालित विमान और इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रौद्योगिकियों में निवेश करना, भंडारण समाधान, बुनियादी ढाँचे और विमान पुन: डिज़ाइन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • कार्बन ऑफसेट पहल: विमानन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने और उसे कम करने के लिये  ICAO कार्बन एमिशन कैलकुलेटर (ICEC) जैसे कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों को लागू करना।
  • बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: सुरक्षा और दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हुए हवाई अड्डों पर SAF उत्पादन, हाइड्रोजन ईंधन भरने और इलेक्ट्रिक चार्जिंग के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
  • नीति और विनियामक समर्थन: विमानन में हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये कार्बन मूल्य निर्धारण, कर प्रोत्साहन और कड़े उत्सर्जन लक्ष्य जैसी नीतियों को लागू करना।
  • कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम: संक्रमण के दौरान उत्सर्जन को कम करने के लिये ICAO कार्बन उत्सर्जन कैलकुलेटर (ICEC) जैसे मज़बूत कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम स्थापित करना।
  • हितधारक सहयोग: सतत् विमानन के लिये तकनीकी और वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिये एयरलाइनों, निर्माताओं और नियामकों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष:

वैश्विक स्तर पर और भारत में निजी विमानन का विकास जलवायु परिवर्तन प्रयासों को चुनौती देता है। जबकि विमानन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है, नवाचार, नीति और स्थिरता के माध्यम से डीकार्बोनाइज़ेशन को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे भारत का निजी विमानन क्षेत्र विस्तार कर रहा है, उसे पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये कम कार्बन प्रौद्योगिकियों और ज़िम्मेदार हवाई यात्रा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

विमानन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये, जिसमें SAF, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन की भूमिका भी शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?  (2017)


हिंद महासागर सुनामी 2004 के 20 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

सुंडा ट्रेंच, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, बर्मा माइक्रोप्लेट, यूरेशियन प्लेट, कोको द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, सुनामी, ज्वालामुखी, भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (ITEWC), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS)हिंद महासागर, मैंग्रोव, महाबलीपुरम, परमाणु ऊर्जा संयंत्र , कलपक्कम परमाणु संयंत्र, यूनेस्को, अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC), तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), NDMA, SDMA। 

मेन्स के लिये:

सुनामी पूर्वानुमान में नई पहल, सुनामी आपदा प्रबंधन।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

26 दिसंबर 2024 को वर्ष 2004 के हिंद महासागर भूकंप और सुनामी की 20वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

2004 का हिंद महासागर भूकंप और सुनामी क्या था?

  • उत्पत्ति और कारण: इस भूकंप की तीव्रता 9.1 थी, जिससे यह 1900 के बाद से विश्व स्तर पर दर्ज किया गया तीसरा सबसे बड़ा भूकंप [अन्य दो: चिली, 1960 (तीव्रता 9.5) और अलास्का, 1964 (तीव्रता 9.2)] बन गया।
  • भौगोलिक प्रभाव: इसने दक्षिण में सुमात्रा से लेकर उत्तर में  कोको द्वीप समूह तक 1,300 किमी. के क्षेत्र को प्रभावित किया।
    • भूकंप के झटके इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत, मलेशिया, मालदीव, म्याँमार, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड में महसूस किये गये।
    • कार निकोबार में भारतीय वायुसेना का बेस पूरी तरह नष्ट हो गया, जो विनाश की भयावहता को दर्शाता है।
  • मृत्यु और विस्थापन: सुनामी के कारण अनुमानतः 227,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिससे यह इतिहास में सबसे घातक सुनामी बन गयी।
    • घरों और बुनियादी ढाँचे के विनाश के कारण 1.7 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए।
  • भारत के लिये सबक: भारत ने अपने पूर्वी तट पर इतनी बड़ी घटना की आशा नहीं की थी, क्योंकि इससे पहले केवल वर्ष 1881 में (कार निकोबार द्वीप के निकट एक बड़े भूकंप से) और 1883 में (क्राकाटोआ विस्फोट से) सुनामी आई थी जिसमे छोटी लहरें उठी थीं।
  • मृत्यु दर में कमी: वर्ष 1999 के ओडिशा सुपर साइक्लोन में 10,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जबकि चक्रवात यास (2021) में छह से भी कम लोग हताहत हुए, जो दर्शाता है कि भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • हालाँकि, चक्रवातों के कारण होने वाली बुनियादी संरचना की क्षति अभी भी चिंता का विषय है। उदाहरण के लिये, चक्रवात दाना (2024) ने ओडिशा में व्यापक क्षति पहुँचाई जिसका अनुमान 616 करोड़ रुपए है।

Indian_Ocean_Tsunami_2004

सुनामी:

  • सुनामी समुद्र के नीचे  भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उत्पन्न विशाल लहरें हैं।
    •  हालाँकि सुनामी ज्वालामुखी प्रस्फुटन, भूस्खलन, परमाणु विस्फोट, समुद्री पर्वत के ढहने तथा उल्कापिंड के प्रभाव के कारण भी उत्पन्न हो सकती है।
  • समुद्र की गहराई में सुनामी लहरों की ऊँचाई में व्यापक रूप से वृद्धि नहीं होती। 
    • लेकिन जैसे-जैसे सुनामी भूमि के पास पहुँचती है, समुद्र की गहराई कम होने के  साथ-साथ वे अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाती हैं।
  • सुनामी लहरों की गति लहर के स्रोत से  दूरी के बजाय समुद्र की गहराई पर निर्भर करती है।
  • सुनामी लहरें गहरे पानी में जेट विमानों जितनी तेज़ी से प्रवाहित होती हैं, तथा उथले पानी में  पहुँचने पर धीमी हो जाती हैं।

Tsunami

  • सुनामी प्रवण क्षेत्र: भारत अपनी विशिष्ट भू-जलवायु और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण विभिन्न प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रति संवेदनशील है।
  • 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा में से लगभग 5,700 किलोमीटर हिस्सा चक्रवातों और सुनामी से प्रभावित है।

Tsunami_Prone_Areas

वर्ष 2004 के हिंद महासागर सुनामी के बाद क्षति को न्यूनतम करने हेतु कौन-से कदम उठाए गए?

  • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी केंद्र (ITEWC) की स्थापना वर्ष 2007 में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा की गई थी।
    • ITEWC हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) से संचालित होता है, तथा संभावित सुनामी का पता लगाने और उसके लिये पूर्व चेतावनी जारी करने हेतु भारतीय महासागर बेसिन में भूकंपीय स्टेशनों, तल दाब रिकार्डरों और ज्वारीय स्टेशनों का उपयोग करता है।
      • ITEWC हिंद महासागर सुनामी चेतावनी एवं शमन प्रणाली (IOTWMS) के अनुमोदित सुनामी सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है, जो वैश्विक सुनामी चेतावनी एवं शमन प्रणाली का एक अभिन्न अंग है।
    • विश्व भर में लगभग 150 स्टेशन भूकंपीय गतिविधियों का निरीक्षण करते हैं, जबकि गहरे समुद्र में सुनामी का आकलन और रिपोर्टिंग (DART) सुनामी की पहचान करने के लिये समुद्र तल के दबाव में बदलाव को मापते हैं।

DART

  • वास्तविक समय निगरानी: सुनामी उत्पन्न करने वाले भूकंपों का पता लगाने और मात्र 10 मिनट में चेतावनी जारी करने के लिये वास्तविक समय महासागर निगरानी प्रणालियाँ विकसित की गईं।
    • भारत उन्नत सुनामी चेतावनी प्रणाली वाला विश्व का पाँचवाँ देश बन गया है, तथा वह अमेरिका, जापान, चिली और ऑस्ट्रेलिया के साथ शामिल हो गया है।
    • वैश्विक स्तर पर, बढ़ते समुद्री स्तर और संभावित सुनामी का पता लगाने के लिये समुद्र-स्तर निगरानी स्टेशनों की संख्या 2004 में केवल एक से बढ़कर वर्तमान में 14,000 हो गई है।
  • तकनीकी उन्नति: पूर्व चेतावनी प्रणालियों में अब बेहतर एल्गोरिदम और सुपरकंप्यूटर का उपयोग किया जाता है, जिससे तीव्र मॉडलिंग संभव हो जाती है, तथा सुनामी के व्यवहार का अधिक तेज़ी से और अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
  • सुनामी भू-विज्ञान अनुसंधान: अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के  ब्रायन एटवाटर द्वारा अग्रणी सुनामी भू-विज्ञान का कार्य इतिहास में सुनामी के साक्ष्य की खोज के लिये शुरू हुआ।
    • मैंग्रोव दलदलों और तटीय क्षेत्रों की जाँच से अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा महाबलीपुरम (पल्लव राजवंश का एक बंदरगाह) में विगत में हुई सुनामी घटनाओं (1,000 वर्ष पूर्व) का पता चला।
  • धीमी गति से फिसलने की घटनाओं (स्लो स्लिप) पर अनुसंधान: शोधकर्त्ताओं ने बड़े भूकंपों से पहले और बाद में होने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिये प्लेट सीमाओं पर भूकंपीय धीमी गतिविधियों का अध्ययन करना शुरू किया।
    • अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2004 के भूकंप से पहले, वर्ष 2003 और 2004 के बीच दक्षिण अंडमान में ज़मीन के नीचे हलचल देखी गई थी।
  • परमाणु संयंत्र भेद्यता अध्ययन: वर्ष 2004 की सुनामी के बाद, शोधकर्त्ताओं ने कलपक्कम जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुनामी जोखिमों के प्रति भेद्यता का आकलन किया।
    • कलपक्कम परमाणु संयंत्र जल स्तर बढ़ने के कारण स्वतः बंद हो गया और रिएक्टर को छह दिन बाद पुनः चालू किया गया।
  • जलप्लावन अध्ययन: तटीय अवसंरचना जोखिमों का मूल्यांकन किया गया तथा सुनामी मॉडलिंग के लिये गणितीय विधियों की सहायता से जलप्लावन सीमा निर्धारित की गई।
  • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित: विशेषज्ञों ने मकरान तट (ईरान और पाकिस्तान) और म्याँमार तट जैसे अन्य उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का अध्ययन करना शुरू कर दिया।
    • मकरान तट से भारत के पश्चिमी तट की ओर आने वाली सुनामी से इस क्षेत्र के परमाणु रिएक्टरों पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • वैश्विक सहयोग: सुनामी चेतावनी प्रणाली को वैश्विक स्तर पर अधिक समन्वित किया गया है तथा विभिन्न देश भूकंप एवं सुनामी की निगरानी के लिये मिलकर कार्य कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद, यूनेस्को अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC) को महासागरीय बेसिनों में वैश्विक सुनामी चेतावनी सेवाएँ स्थापित करने का कार्य सौंपा गया था।  

सुनामी शमन हेतु NDMA के दिशानिर्देश क्या हैं?

  • जोखिम मानचित्रण: संवेदनशील तटीय क्षेत्रों हेतु व्यापक सुनामी जोखिम आकलन करने के साथ सुनामी से सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: एक प्रभावी सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना करनी चाहिये, जिसमें संभावित सुनामी खतरों की निगरानी के लिये भूकंपीय सेंसर तथा ज्वार-भाटा मापने वाले उपकरण शामिल हों।
    • SMS, रेडियो, टेलीविज़न जैसी सार्वजनिक प्रणालियों के माध्यमों से सुनामी चेतावनी को प्रसारित करना चाहिये।
  • तटीय ज़ोनिंग: तटीय क्षेत्रों में नियंत्रित तथा सतत् विकास के लिये तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना को लागू करने पर बल देना चाहिये।
    • कम जोखिम वाले क्षेत्रों में सुरक्षित विकास को बढ़ावा देने के साथ मैंग्रोव एवं रेत के टीलों जैसे प्राकृतिक अवरोधों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • सुनामी-रोधी अवसंरचना: सुनामी-रोधी अवसंरचना का निर्माण (जिसमें अपेक्षित सुनामी लहर की ऊँचाई से ऊँची इमारतें, सुदृढ़ संरचनाएँ तथा आपातकालीन आश्रय स्थल शामिल हैं) किया जाना चाहिये।
    • सुनामी तरंगों के प्रभाव को कम करने के लिये उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में समुद्री दीवारें, ब्रेकवाटर तथा तटबंधों का निर्माण करना चाहिये।
  • सामुदायिक तैयारी: सुनामी जोखिम, चेतावनी संकेत तथा आपातकालीन कार्रवाईयों  के संबंध में नियमित रूप से सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।
    • स्पष्ट संकेत एवं मानचित्र के साथ तटीय क्षेत्रों के लिये सुनामी से निपटने की योजना बनानी चाहिये।
  • संस्थागत ढाँचा: प्रभावी सुनामी शमन एवं प्रतिक्रिया के लिये NDMA और SDMA सहित राष्ट्रीय, राज्य तथा स्थानीय एजेंसियों के बीच समन्वय करना चाहिये।
  • प्रतिक्रिया एवं पुनर्प्राप्ति: खोज और बचाव, चिकित्सा सहायता, आश्रय तथा भोजन एवं जल वितरण के साथ सुनामी प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति योजनाएँ विकसित करनी चाहिये।
    • प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण हेतु रणनीतियाँ (जिसमें घरों, बुनियादी ढाँचे के पुनर्निर्माण और आजीविका के लिये वित्तीय एवं रसद सहायता शामिल हो) बनानी चाहिये।

निष्कर्ष

  • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी से पूर्व चेतावनी प्रणालियों से संबंधित कमियों पर प्रकाश पड़ा, जिससे वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर सुनामी संबंधी तैयारियों में काफी प्रगति हुई। ITEWC की स्थापना, बेहतर निगरानी तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसी पहलों से आपदा प्रतिक्रिया में काफी सुधार हुआ है, फिर भी इसमें चुनौतियाँ (विशेषकर विकासशील देशों में) बनी हुई हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: वर्ष 2004 की हिंद महासागर की सुनामी के बाद प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार की दिशा में उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न: भूकंप संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में, भारत के विभिन्न भागों में भूकंप द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिये। (2021)

प्रश्न: दिसंबर 2004 को सुनामी भारत सहित चौदह देशों में तबाही लायी थी। सुनामी के होने के लिये ज़िम्मेदार कारकों एवं जीवन तथा अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि का वर्णन कीजिये। (2017)