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आर्थिक सर्वेक्षण


भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 का सार

  • 01 Aug 2024
  • 346 min read

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 का सार

  अध्याय 1- अर्थव्यवस्था की स्थिति: निरंतर आगे बढ़ते हुए  

भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • आर्थिक विकास एवं रुझान:
    • वैश्विक विकास दर: वर्ष 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.2% की दर से वृद्धि हुई, जो विगत वर्षों की तुलना में थोड़ी कम है, जबकि 2.8% के पूर्व अनुमानों से अधिक है।
    • क्षेत्रीय प्रदर्शन:
      • उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्था: कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने लचीली घरेलू मांग और रणनीतिक नीति प्रतिक्रियाओं से उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया।
      • उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ: जबकि अमेरिका ने अपनी विकास गति जारी रखी, यूरो क्षेत्र में सुधार के संकेतों के बावजूद आर्थिक गतिविधि में कमी आई।
      • एशिया: चीन और भारत ने महामारी के बाद महत्त्वपूर्ण सुधार दिखाया तथा मज़बूत विकास दर ने संकट-पूर्व स्तरों को पार कर लिया।
  • मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति:
    • मुद्रास्फीति दबाव: निरंतर बनी रहने वाली कोर मुद्रास्फीति एक चुनौती बनी रही, जो विशेष रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मज़बूत श्रम बाज़ारों और सेवा क्षेत्र की गतिशीलता से प्रभावित थी।
    • मौद्रिक नीति: वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिये ब्याज दरों को बनाए रखने या बढ़ाने के माध्यम से प्रतिक्रिया व्यक्त की, हालाँकि चीन ने अपने आर्थिक सुधार का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहन उपायों का पालन किया।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव:
    • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: रूस-यूक्रेन संघर्ष और मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव जैसे संघर्षों के बढ़ने से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हुआ, जिससे व्यापार तथा आर्थिक परिचालन प्रभावित हुआ।
    • व्यापार और निवेश: आपूर्ति शृंखला दबावों में कमी के बावजूद, वैश्विक व्यापार वृद्धि मामूली रही और सीमा पार प्रतिबंधों में वृद्धि हुई तथा निवेशकों की सतर्क भावना के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में गिरावट आई।
  • क्षेत्रीय लचीलापन:
    • वित्त और प्रौद्योगिकी सहित सेवा क्षेत्रों ने महामारी के बाद लचीलापन प्रदर्शित किया, जबकि विनिर्माण क्षेत्रों को उच्च इनपुट लागत एवं अस्थिर मांग के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • भारत की आर्थिक लचीलापन:
    • वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2023-24 में अपनी ऊपर की ओर गति जारी रखी।
    • GDP वृद्धि: वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक GDP 8.2% बढ़ी, जो वित्त वर्ष 2023-24 की चार तिमाहियों में से तीन में 8% के आँकड़े को पार कर गई।
    • क्षेत्रीय वृद्धि: वित्तीय और व्यावसायिक सेवाओं से समर्थित सेवा क्षेत्र ने वृद्धि का नेतृत्व किया, जबकि विनिर्माण व निर्माण क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण विस्तार हुआ।

  • आर्थिक संकेतक:
    • निजी उपभोग: विभिन्न क्षेत्रों में शहरी और ग्रामीण मांग में वृद्धि के कारण निजी अंतिम उपभोग व्यय मज़बूत बना रहा।
      • वित्त वर्ष 2023-24 में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) वास्तविक रूप से 4.0% बढ़ा।
    • निवेश गतिशीलता: सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) में वृद्धि हुई, जो निरंतर निजी और सरकारी निवेश गतिविधियों को दर्शाती है।
    • वित्त वर्ष 2018-19 और वित्त वर्ष 2022-23 के बीच, निजी क्षेत्र के गैर-वित्तीय सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) में संचयी वृद्धि वर्तमान मूल्यों पर 52% है, जबकि सामान्य सरकार (जिसमें राज्य शामिल हैं) के लिये यह 64% है।
    • वित्तीय क्षेत्र: बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता बनी रही, जिससे MSME और आवास जैसे प्रमुख क्षेत्रों को ऋण वृद्धि में सहायता मिली।
  • व्यापार और बाह्य कारक:
    • निर्यात प्रदर्शन: वैश्विक व्यापार मंदी के बावजूद लचीले सेवा व्यापार द्वारा समर्थित, भारत के वस्तु निर्यात में वृद्धि देखी गई।

  • संघ सरकार का वित्त:
    • राजकोषीय घाटा: मज़बूत कर राजस्व और संयमित व्यय से वित्त वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद के 6.4% से घटकर 5.6% हो गया।
    • कर सुधार: प्रत्यक्ष कर राजस्व में 15.8% और अप्रत्यक्ष करों में 10.6% की वृद्धि हुई, जो बेहतर कर अनुपालन एवं संरचनात्मक सुधारों को दर्शाता है।
  • पूंजीगत व्यय और आर्थिक प्रोत्साहन:
    • सरकारी निवेश: बुनियादी ढाँचे के विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए वित्त वर्ष 2023-24 में पूंजीगत व्यय में 28.2% की वृद्धि की गई।
    • राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP): आस्ति मुद्रीकरण से 3.9 लाख करोड़ रुपए जुटाए गए, जिससे राजकोषीय उद्देश्यों को समर्थन मिला और पूंजी आवंटन दक्षता में वृद्धि हुई।
  • घरेलू मुद्रास्फीति नियंत्रण:
    • वैश्विक व्यवधानों के बावजूद खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2022-23 के 6.7% से घटकर वित्त वर्ष 2023-24 में 5.4% हो गई।
    • LPG, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में सरकारी हस्तक्षेप से मुद्रास्फीति प्रबंधन में सहायता मिली।
  • वित्तीय प्रणाली लचीलापन:
    • RBI के विनियामक उपायों से सकल गैर-निष्पादित आस्तियाँ (GNPA) अनुपात में स्थिरता बनी रही तथा यह 12 वर्षों के निम्नतम स्तर 2.8% पर रहा।
    • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) के लाभप्रदता संकेतक मज़बूत बने रहे, जिससे प्रणालीगत मज़बूती सुनिश्चित हुई।
  • व्यापार और विदेशी अंतर्वाह:
    • वैश्विक मांग के कारण व्यापारिक निर्यात में कमी आई, जो आयात वृद्धि में कमी से संतुलित रही।
    • सेवा निर्यात 341.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • वित्त वर्ष 2023-2024 के दौरान चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% रहा, जो वित्त वर्ष 2022-2023 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.0% घाटे से बेहतर है।
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) प्रवाह बढ़कर 44.1 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा और रुपया स्थिर हुआ।
  • विदेशी ऋण और विनिमय दर:
    • बाह्य ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 18.7% पर प्रबंधनीय रहा।
    • विदेशी मुद्रा भंडार ने 11 महीनों के आयात को शामिल किया, जिससे बाहरी झटकों से सुरक्षा मिली।
  • समावेशी विकास पहल:
  • आर्थिक विकास पूर्वानुमान:
    • संरचनात्मक सुधारों और वैश्विक आर्थिक स्थितियों में सुधार से समर्थित, वित्त वर्ष 2024-2025 के लिये अनुमानित वास्तविक GDP वृद्धि 6.5-7% है।
    • वैश्विक अनिश्चितताओं और मौद्रिक नीति समायोजन के बीच जोखिम संतुलित किया गया।

  अध्याय 2  

  मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थताः स्थिरता ही मूलमंत्र  

भारत के मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता की स्थिति क्या है?

  • मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति नियंत्रण:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पूरे वित्त वर्ष 2023-24 में नीतिगत रेपो दर को 6.5% पर स्थिर बनाए रखा।
    • रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद वैश्विक आर्थिक दबाव के बावजूद मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही।
    • वित्त वर्ष 2022-23 में खाद्य मुद्रास्फीति 6.6% रही और वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 7.5% हो गई।
    • मई 2022 में 4% से फरवरी 2023 में 6.5% तक महत्त्वपूर्ण नीतिगत रेपो दर वृद्धि (250 आधार अंक) ने ऋण और जमा दरों को प्रभावित किया।
  • तरलता प्रबंधन:
    • RBI के तरलता हस्तक्षेपों में वित्त वर्ष 2023-24 में पाक्षिक परिवर्तनीय दर रिवर्स रेपो (VRRR) और परिवर्तनीय दर रेपो (VRR) नीलामी शामिल थीं, जिनमें कुल 49 फाइन-ट्यूनिंग ऑपरेशन शामिल थे। 
    • वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) जैसे अस्थायी उपायों ने अधिशेष तरलता का प्रबंधन किया।
  • बैंकिंग क्षेत्र का प्रदर्शन:
  • डिजिटल वित्तीय समावेशन:
    • डिजिटल ऋण अवसंरचना और क्रेडिट ब्यूरो ने वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क (OCEN) की शुरूआत से ऋण प्रवाह को और अधिक सुव्यवस्थित करने की उम्मीद है। 
    • औपचारिक वित्तीय संस्थान में खाता रखने वाले वयस्कों की संख्या वर्ष 2011 में 35% से बढ़कर 2021 में 77% हो गई। 
    • 31 मार्च 2024 तक भारत में 116.5 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन ग्राहक हैं, जो UPI की सफलता को बढ़ा रहे हैं।

  • प्रतिभूति बाज़ार और वित्तीय सेवाएँ:
    • भारत का शेयर बाज़ार पूंजीकरण और GDP अनुपात मज़बूत विनियामक ढाँचे व डिजिटल बुनियादी ढाँचे द्वारा समर्थित वैश्विक स्तर पर पाँचवें स्थान पर है। 
    • भारत का बाज़ार पूंजीकरण और GDP अनुपात पिछले पाँच वर्षों में काफी हद तक सुधरकर वित्त वर्ष 2023-24 में 124% हो गया है, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में यह 77% था, जो चीन व ब्राज़ील जैसी अन्य उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है। 
    • गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT सिटी) अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं की सुविधा प्रदान करने वाले वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में उभरा है।
  • बीमा क्षेत्र में विकास:
    • वर्ष 2022 में कुल वैश्विक बीमा प्रीमियम में वास्तविक रूप से 1.1% की कमी आई। 
    • विकसित बाज़ारों में ब्याज दरों में सख्ती के कारण गैर-जीवन बीमा क्षेत्र में 0.5% की वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2022 में जीवन बीमा प्रीमियम में 3.1% की कमी आई। 
    • भारत में समग्र बीमा पैठ (देश के सकल घरेलू उत्पाद में एकत्रित कुल प्रीमियम का प्रतिशत) वित्त वर्ष 2021-22 में 4.2% से वित्त वर्ष 2022-23 में थोड़ा कम होकर 4% हो गई।
    • जीवन बीमा खंड में बीमा पहुँच वित्त वर्ष 2021-22 में 3.2% से घटकर वित्त वर्ष 2022-23 में 3% हो गई, जबकि गैर-जीवन बीमा खंड में यह 1% पर स्थिर रही।
    • समग्र बीमा घनत्व (देश की कुल जनसंख्या के लिये एकत्रित कुल बीमा प्रीमियम का अनुपात) वित्त वर्ष 2021-22 में 91 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 92 अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) ने पूरे भारत में 34.2 करोड़ आयुष्मान कार्ड जारी करके एक उपलब्धि हासिल की, जिनमें से 49.3% महिलाओं के पास हैं।
  • सरकारी एवं नियामक प्रतिक्रियाएँ:
    • विनियामक ढाँचा: बैंकिंग विनियमन को सुदृढ़ बनाना, वसूली कानूनों में संशोधन तथा दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को लागू करना जिसका उद्देश्य बैंकों व निगमों में तनाव को दूर करना है।
    • आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (ARC) संकटग्रस्त आस्तियों को प्राप्त करने और उनके समाधान को सुगम बनाने में वैकल्पिक चैनल के रूप में उभरी हैं।
    • वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान, 28 ARC बाज़ार में परिचालन कर रही थीं और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) के GNPA के पिछले वर्ष के स्टॉक का 9.7% ARC को बेचा गया था, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में यह केवल 3.2% था।
  • निवेशक भागीदारी बढ़ाना:
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने संकटग्रस्त प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों द्वारा जारी ऋण साधनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के निवेश की सुविधा प्रदान की।  
    • वर्ष 2022 में, SEBI ने वैकल्पिक निवेश कोष के एक उप-घटक, विशेष स्थिति कोष की शुरुआत की, ताकि निवेशकों को ARC द्वारा जारी सुरक्षा रसीदों (SR) में निवेश करने की अनुमति मिल सके।  
    • इन उपायों के कारण वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान ARC द्वारा जारी सुरक्षा रसीदों (SR) में FPI निवेश में लगभग 10,000 करोड़ रुपए से 14,482 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है।
    • राष्ट्रीय आस्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड (NARCL) की स्थापना सरकार समर्थित गारंटी के साथ बैंकों से संकटग्रस्त आस्तियों को हासिल करने के लिये की गई थी, जिससे आगे के ऋण के लिये बैंक बैलेंस शीट को तुरंत क्लियर किया जा सके।   
  • माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI): 
    • RBI का नियामक ढाँचा सभी माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं में एकरूपता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करता है।
      • सा-धन (Sa-Dhan) और MFIN जैसे स्व-नियामक संगठन (SRO) इस क्षेत्र में नैतिक प्रथाओं एवं मानकों को बनाए रखने में योगदान देते हैं।
    • लगभग 74% MFI ग्राहक ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जो ग्रामीण विकास में उनकी भूमिका पर बल देता है।
      • MFI ग्राहकों में 98% महिलाएँ हैं, जो इस क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण पर ज़ोर को दर्शाता है।
      • समावेशी विकास पहलों को प्रदर्शित करने वाले MFI ग्राहकों में SC/ST उधारकर्त्ताओं की हिस्सेदारी 23% है।
    • MFI ने मज़बूत प्रदर्शन दर्शाया है तथा उनकी आस्तियों पर रिटर्न (RoA) और इक्विटी पर रिटर्न (RoE) में निरंतर सुधार हो रहा है।
  • पेंशन क्षेत्र में विकास:
    • भारत में सकल घरेलू उत्पाद में बीमा और पेंशन निधि आस्तियों का हिस्सा क्रमशः 19% व 5% है, जबकि अमेरिका में यह 52% एवं 122% तथा ब्रिटेन में 112% एवं 80% है।
    • मार्च 2024 तक, भारत के पेंशन क्षेत्र में 735.6 लाख ग्राहक थे, जो मार्च 2023 में 623.6 लाख से 18% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।
      • अटल पेंशन योजना (APY) के पुराने संस्करण, राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) लाइट सहित, ग्राहकों की कुल संख्या मार्च 2023 में 501.2 लाख से बढ़कर मार्च 2024 में 588.4 लाख हो गई।
    •  APY ग्राहक कुल पेंशन ग्राहक आधार का लगभग 80% हैं।
      • APY में महिला ग्राहकों की संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 37.2% से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 48.5% हो गई है।
      • कुल जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में NPS और APY के तहत पेंशन कवरेज वित्त वर्ष 2016-2017 में 1.2% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-2024 में 5.3% हो गया है।
  • भारत के लिये वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन कार्यक्रम (FSAP):
    • FSAP, IMF और विश्व बैंक द्वारा महत्त्वपूर्ण वित्तीय क्षेत्रों वाले देशों में संयुक्त रूप से किया जाने वाला एक आवधिक मूल्यांकन है, जिसका उद्देश्य वित्तीय स्थिरता व क्षेत्र विकास का व्यापक विश्लेषण करना है।
    • भारत ने अपना पहला FSAP वर्ष 12 में और दूसरा वर्ष 2017 में किया था तथा भारत का तीसरा FSAP 24 के लिये निर्धारित है, जिसकी रिपोर्ट फरवरी 2025 तक प्रकाशित होने की उम्मीद है।

  अध्याय 3- कीमतें और मुद्रास्फीति: नियंत्रण में  

भारत में कीमतें और मुद्रास्फीति के रुझान क्या हैं?

  • भारत का हालिया मुद्रास्फीति रुझान
    • भारत वित्त वर्ष 2023-24 में खुदरा मुद्रास्फीति को 5.4% पर बनाए रखने में सफल रहा, जो कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से सबसे निचला स्तर है। 
    • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा जारी हालिया आँकड़ों के अनुसार जून 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति दर 5.1% थी। 
    • महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसी घटनाओं के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के बाद, वैश्विक मुद्रास्फीति के रुझान में गिरावट देखी गई, जो मुख्य रूप से ऊर्जा की कीमतों में कमी तथा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में समन्वित मौद्रिक सख्ती के कारण हुई। 
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों के अनुसार भारत की मुद्रास्फीति दर वर्ष 2022 और 2023 में वैश्विक औसत तथा उभरते बाज़ारों एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDE) की तुलना में निरंतर कम रही।

  • भारत के मुद्रास्फीति प्रबंधन को प्रभावित करने वाले कारक:
    • स्थापित मौद्रिक नीतियाँ, आर्थिक स्थिरता, कुशल बाज़ार तंत्र और स्थिर मुद्रा स्थितियाँ।
  • घरेलू खुदरा मुद्रास्फीति के रुझान
    • जून 2024 तक कोर मुद्रास्फीति में क्रमिक गिरावट आकर 3.1% हो गई थी। 
    • LPG, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती सहित सरकारी हस्तक्षेपों ने ईंधन मुद्रास्फीति को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने कमज़ोर आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की।
  • कोर मुद्रास्फीति गतिशीलता
    • प्रभावी मौद्रिक नीति संचरण और वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों क्षेत्रों में मुद्रास्फीति के दबाव में कमी के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में कोर मुद्रास्फीति घटकर चार वर्ष के निचले स्तर पर आ गई।
    • RBI ने मई 2022 से फरवरी 2023 तक रेपो दर में धीरे-धीरे 250 आधार अंकों की वृद्धि की है।
      • परिणामस्वरूप, अप्रैल 2022 और जून 2024 के बीच कोर मुद्रास्फीति में लगभग चार प्रतिशत अंकों की गिरावट आई।
    • कच्चे माल की आपूर्ति में सुधार के कारण उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की मुद्रास्फीति में कमी आई, जबकि कोर सेवाओं की मुद्रास्फीति स्थिर रहने के बावजूद नीति समायोजन का केंद्र बिन्दु बनी रही।
  • खाद्य मुद्रास्फीति की चुनौतियाँ और शमन रणनीतियाँ
    • प्रतिकूल मौसम की स्थिति ने खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे सब्ज़ियों, दालों और दूध जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई। 
    • वित्त वर्ष 2022-23 में खाद्य मुद्रास्फीति 6.6% रही और वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 7.5% हो गई। 
    • खुले बाज़ार में बिक्री, आयात और निर्यात पर नीतिगत प्रतिबंध (जैसे, चीनी) जैसे समय पर किये गए उपायों ने वैश्विक अस्थिरता के बीच खाद्य कीमतों को स्थिर करने में सहायता की। 
    • उपभोग बास्केट में खाद्य पदार्थों पर अधिक निर्भरता वाले ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति दर का अनुभव हुआ, जो अंतरराज्यीय विविधताओं और मूल्य में उतार-चढ़ाव के विभेदक प्रभावों को दर्शाता है।
  • दृष्टिकोण और भविष्य की रणनीतियाँ
    • RBI और IMF ने भारत की मुद्रास्फीति को धीरे-धीरे लक्ष्य सीमा की ओर ले जाने का अनुमान लगाया है। 
    • RBI ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2024-2025 में मुद्रास्फीति घटकर 4.5% तथा वित्त वर्ष 2025-2026 में 4.1% रह जाएगी, जबकि IMF ने भारत के लिये वर्ष 2024 में 4.6% और वर्ष 2025 में 4.2% की मुद्रास्फीति दर का अनुमान लगाया है। 
    • वैश्विक कमोडिटी कीमतों में अनुमानित गिरावट, विशेष रूप से ऊर्जा एवं खाद्य क्षेत्रों में, भारत के मुद्रास्फीति दृष्टिकोण को और समर्थन देने की उम्मीद है। 
    • दीर्घकालिक मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये, खाद्य तेलों और दालों जैसी प्रमुख वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को बढ़ाना, जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिये भंडारण सुविधाओं में सुधार करना तथा उच्च आवृत्ति मूल्य निगरानी तंत्र को परिष्कृत करना महत्त्वपूर्ण है।

  अध्याय 4: बाह्य क्षेत्र: समृद्धि के बीच स्थिरता  

वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत का बाह्य क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहा है?

  • वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
    • व्यापार एवं विकास संबंधी संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार, वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2023 में 2 प्रतिशत घटकर 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। 
      • इन भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में 5% की गिरावट आई।
    • उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDE) के सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में बाह्य ऋण वर्ष 2012 में 26.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023 में 29.8 प्रतिशत हो गया।
    • 'डिकपलिंग', 'डीरिस्किंग' और 'रीशोरिंग' जैसी व्यापार प्रथाएँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों को नया आकार दे रही हैं।   

  • भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्षेत्र:
    • समग्र व्यापार प्रदर्शन:
      • भारत का व्यापार खुलापन सूचक वित्तवर्ष 2004 -2005 में 37.5% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-2024 में 45.9% हो गया, जिसने कुशल संसाधन आवंटन के माध्यम से आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
      • सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार का हिस्सा (पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात और कच्चे तेल के आयात को छोड़कर) वित्तवर्ष 2004 -2005 में 32.3% से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-2023 में 40.8% हो गया।
    • व्यापारिक रुझान:
      • वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत के व्यापारिक निर्यात एवं आयात ने लचीलापन दिखाया, वित्त वर्ष 2022-2023 में निर्यात 776 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात 898 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया।
      • वित्त वर्ष 2023-2024 में व्यापारिक निर्यात में 0.23% की मामूली वृद्धि हुई, जबकि आयात में 4.9% की गिरावट आई, जिससे व्यापार घाटा बढ़ गया।
      • कुल निर्यात में 25% हिस्सेदारी के साथ इंजीनियरिंग सामान का प्रभुत्व बना रहा, उसके बाद कृषि एवं संबद्ध उत्पाद (11%) का स्थान रहा।
      • इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो वर्ष 2018 में 0.63% से बढ़कर वर्ष 2022 में 0.88% हो गई, जिससे वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 24वें स्थान पर पहुँच गया, जबकि वर्ष 2018 में यह 28वें स्थान पर था।
    • सेवा क्षेत्र:
      • भारत का सेवा निर्यात वर्ष 1993 से 2022 तक 14% से अधिक की CAGR से बढ़ा, जिसने भारत के निर्यात बास्केट में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
      • वित्तवर्ष 2023-2024 में भारत का सेवा निर्यात 4.9% बढ़कर 341.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिसमें मुख्य रूप से IT/सॉफ्टवेयर सेवाओं और ‘अन्य’ व्यावसायिक सेवाओं की वृद्धि रही।
      • IT सेवाएँ सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता (48%) रहीं, उसके बाद अन्य व्यावसायिक सेवाएँ (26%) रहीं।
    • भारत के विदेशी ऋण रुझान:
      • भारत का बाह्य ऋण प्रबंधन कुशल रहा है, जिसमें राजकोषीय अनुशासन बनाए रखते हुए चुनौतियों का सामना किया गया है।
      • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के मुकाबले बाह्य ऋण का अनुपात मार्च 2023 के अंत में 19.0% से घटकर मार्च 2024 के अंत में 18.7% हो जाएगा।
      • कुल बाह्य ऋण में अल्पकालिक ऋण की हिस्सेदारी मार्च 2023 के अंत में 20.6% से घटकर मार्च 2024 के अंत में 18.5% हो जाएगी।
    • प्रेषण:
      • शुद्ध निजी हस्तांतरण प्राप्तियाँ, जो मुख्य रूप से विदेशों में कार्यरत भारतीयों द्वारा प्रेषित धनराशि को दर्शाती हैं, वित्तवर्ष 2023-2024 में 106.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जबकि पिछले वर्ष यह 101.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
      • धन प्रेषण में वृद्धि मुख्य रूप से घटती मुद्रास्फीति और अमेरिका तथा यूरोप में मज़बूत श्रम बाज़ारों के कारण हुई, जो भारत के कुशल प्रवासियों के लिये सबसे बड़ा गंतव्य है तथा अन्य OECD गंतव्य हैं, साथ ही GCC देशों में कुशल और कम कुशल श्रमिकों की सकारात्मक मांग भी इसमें सहायक रही।
    • भुगतान संतुलन:
      • चालू खाता शेष ने लचीलापन दर्शाया है, जिसे मज़बूत सेवा निर्यात का समर्थन प्राप्त है, जिससे अर्थव्यवस्था को बाह्य झटकों से सुरक्षा मिली है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार (FER) और अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (IIP):
      • भारत की FER और IIP मज़बूत बनी हुई है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता प्रदान कर रही है।

वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भारत की बढ़ती भागीदारी

  • वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ (GVCs)
    • GVC अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन साझाकरण को संदर्भित करता है, जहाँ संचालन राष्ट्रीय सीमाओं के पार फैले हुए हैं (सटीक स्थान तक सीमित होने के बजाय) और एक जटिल उत्पाद का उत्पादन करते हैं। 
    • GVC आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के एक महत्त्वपूर्ण पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कई देशों में फैले जटिल उत्पादन नेटवर्क को बढ़ावा देते हैं।
    • यह परिघटना 2000 के दशक के प्रारंभ में 'हाइपरग्लोबलाइजेशन' के युग के दौरान बढ़ी, जिससे व्यापक व्यापार लाभ और लागत दक्षता में वृद्धि हुई।
    • हालाँकि वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और उसके बाद के भू-राजनीतिक तनावों जैसे बदलावों ने 'स्लोबैलाइजेशन' नामक पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित किया, जो वैश्विक एकीकरण के प्रति अधिक सतर्क दृष्टिकोण का संकेत देता है। 
    • भारत, अपने उभरते आर्थिक परिदृश्य के साथ, रणनीतिक पहलों और व्यापार समझौतों से प्रेरित होकर, इन शृंखलाओं में तेज़ी से एकीकृत हो रहा है।
  • भारत की GVC यात्रा
    • प्रारंभिक एकीकरण: 1990 के दशक से 2000 के दशक तक, निर्यात में भारत के विदेशी मूल्य-संवर्द्धित घटक में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो उत्पादन विखंडन में वृद्धि को दर्शाता है।
    • GFC के बाद की गिरावट: वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, भारत की GVC भागीदारी को झटका लगा, लेकिन उसके बाद इसमें सुधार हुआ है।
    • हालिया घटनाक्रम: उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) योजनाओं जैसी पहलों ने इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और सेमीकंडक्टर विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया है।
    • रणनीतिक निवेश: उल्लेखनीय रूप से, एप्पल और फॉक्सकॉन ने भारत में विनिर्माण कार्यों में तेज़ी ला दी है तथा बड़े घरेलू बाज़ार एवं निर्यात क्षमता का लाभ उठाया है।
  • भारत की व्यापार व्यवस्था का बदलता परिदृश्य
    • वैश्विक व्यापार के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बहुपक्षीय भागीदारी और द्विपक्षीय FTA का मिश्रण शामिल है, जिसका उद्देश्य बाज़ार पहुँच का विस्तार करना तथा व्यापार संबंधों को अनुकूलतम बनाना है।
    • मॉरीशस, UAE, ऑस्ट्रेलिया और CEPA तथा भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA के साथ भारत के हालिया FTA, विशिष्ट लाभ प्रदान करते हैं, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स एवं डिजिटल व्यापार जैसे प्रमुख बाज़ारों और क्षेत्रों तक तरजीही पहुँच शामिल है।
    • UK, EU और आसियान जैसे साझेदारों के साथ चल रही वार्ताएँ वैश्विक स्तर पर अपने व्यापार को व्यापक बनाने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
  • आर्थिक प्रभाव और दृष्टिकोण
    • GVC में भारत की भागीदारी और सक्रिय व्यापार नीतियों ने चालू खाता शेष (Current Account Balance- CAB) और पूंजी प्रवाह जैसे आर्थिक संकेतकों में सकारात्मक योगदान दिया है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में चालू खाता घाटे (CAD) में सुधार, बढ़ती सेवा निर्यात और प्रेषण से बल मिला, जो भारत के स्थिर बाह्य क्षेत्र को रेखांकित करता है।
    • भारत का चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2023-24 में घटकर 23.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.7 प्रतिशत) रह गया, जो पिछले वर्ष 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 2%) था।
    • व्यापारिक घाटे में कमी और सेवा निर्यात में वृद्धि से चालू खाते के घाटे में सुधार हुआ है, जिससे वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% अधिशेष रहा।
    • मज़बूत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) प्रवाह और प्रमुख क्षेत्रों में चल रही FDI रुचि निवेशकों के विश्वास तथा आर्थिक स्थिरता को उजागर करती है।
    • पिछले दो दशकों में, भारत का FDI और इक्विटी पोर्टफोलियो प्रवाह वार्षिक (IMF, 2023) सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5% रहा है
  • उद्योग और सेवा क्षेत्र में FDI 
    • हाल के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में FDI प्रवाह में गिरावट देखी गई है, विशेष रूप से उद्योग और सेवा क्षेत्र में।
    • भारत में शुद्ध FDI प्रवाह वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 42.0 बिलियन अमरीकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 26.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
      • हालाँकि वित्त वर्ष 2023-24 में सकल FDI प्रवाह केवल 0.6% कम हुआ।
    • सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग क्षेत्र FDI की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2019-20 में 0.62% से घटकर वित्त वर्ष 2023-24 में 0.39% हो गई। 
    • इसी प्रकार इस अवधि में सेवा क्षेत्र का FDI हिस्सा 0.87% से घटकर 0.69% हो गया।
    • निवेश के इरादे नए और भविष्य के क्षेत्रों जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, EV और सेमीकंडक्टर की ओर उल्लेखनीय रूप से स्थानांतरित हो गए हैं। यह बदलाव FDI के लिये उच्च तकनीक और टिकाऊ क्षेत्रों के बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है।
  • भौतिक FDI बनाम डिजिटल FDI 
    • ऐतिहासिक रूप से प्रमुख भौतिक FDI (जिसमें ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स एवं निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं) को भू-राजनीतिक कारकों और अनुबंध निर्माण जैसे अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन के गैर-इक्विटी मोड के उदय के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
      • बढ़ते संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक तनावों ने भौतिक FDI को बाधित किया है, जिससे पारंपरिक विनिर्माण एवं बुनियादी ढाँचे के निवेश पर निर्भर क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
    • जबकि डिजिटल FDI (कंप्यूटर सेवाएँ, दूरसंचार, परामर्श सेवाएँ तथा सूचना एवं प्रसारण) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर तथा डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों द्वारा प्रेरित थी। 
      • कुल FDI में डिजिटल FDI की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016-2017 में 46.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 69.2% हो गई।
      • AI, साइबर सुरक्षा और डेटा एनालिटिक्स सहित डिजिटल परिवर्तन की दिशा में वैश्विक रुझानों से प्रेरित होकर, भारत डिजिटल निवेश के लिये एक पसंदीदा गंतव्य बन गया है।
      • महामारी ने इस प्रवृत्ति को और तेज़ कर दिया है क्योंकि व्यवसाय की निरंतरता के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचा आवश्यक हो गया है।
  • विनिमय दरें और आर्थिक स्थिरता:
    • वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बावजूद, भारतीय रुपया वित्त वर्ष 2023-24 में प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले सापेक्ष स्थिरता प्रदर्शित करता है, जो मज़बूत व्यापक आर्थिक बुनियादी बातों और RBI द्वारा नीतिगत हस्तक्षेपों को दर्शाता है।
    • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जून 2024 में 653.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे आर्थिक लचीलापन बढ़ेगा और बाहरी दायित्वों को पूरा करने के लिये तरलता सुनिश्चित होगी।
    • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वित्त वर्ष 2024-2025 के लिये अनुमानित 10 महीने से अधिक के आयात और मार्च 2024 के अंत में बकाया कुल विदेशी ऋण के 98% से अधिक को शामिल करने हेतु पर्याप्त है।
  • व्यापार सुविधा पर सरकारी पहल
    • भारत ने व्यापार दक्षता को बढ़ाने, लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और निर्यात प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये विभिन्न उपायों को लागू किया है।
    • कार्यकुशलता बढ़ाने तथा लॉजिस्टिक्स लागत कम करने के लिये सरकार ने PM गतिशक्ति और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति शुरू की।
    • डिजिटल सुधार, जैसे कि यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (Unified Logistics Interface Platform- ULIP) और लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक, लॉजिस्टिक्स में सुधार की दिशा में उठाए गए अतिरिक्त उपाय हैं।
    • सरकार ने तुरन्त (Turant), सीमा शुल्क, व्यापार सुविधा के लिये एकल खिड़की इंटरफेस (SWIFT), आगमन-पूर्व डाटा प्रसंस्करण, ई-संचित और समन्वित सीमा प्रबंधन जैसी पहलों के माध्यम से व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया है, पारदर्शिता बढ़ाई है तथा हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है।
    • सागरमाला जैसी योजनाओं के अंतर्गत बंदरगाह अवसंरचना में उन्नयन से भारत की समुद्री व्यापार क्षमताओं में वृद्धि हुई है, जिससे माल ढुलाई में वृद्धि हुई है और माल ढुलाई का समय कम हुआ है।
    • रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण, भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण (Land Ports Authority of India- LPAI) द्वारा रिलीज समय में कमी तथा बंदरगाह से संबंधित लॉजिस्टिक्स के लिये NLP मैरीन की शुरूआत जैसी पहल भी की गईं।
  • चुनौतियाँ और दृष्टिकोण:
    • वर्तमान भू-राजनीतिक तनाव और संरक्षणवादी नीतियाँ भारत के व्यापार एवं निवेश वातावरण के लिये जोखिम उत्पन्न कर रही हैं, जिससे FDI प्रवाह प्रभावित हो रहा है।
    • FDI वृद्धि को बनाए रखने के लिये, भारत को व्यापार करने में आसानी बढ़ानी होगी, नियामक ढाँचे को मज़बूत करना होगा तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे और टिकाऊ प्रौद्योगिकियों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश करना होगा।

  अध्याय-05: मध्यम अवधि परिदृश्यः नए भारत के लिये विकास-दृष्टि  

भारत का मध्यम अवधि विकास परिदृश्य क्या है? 

  • पिछले दशक में भारत की अर्थव्यवस्था ने लचीलापन प्रदर्शित किया है और अब वह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है। 
    • निरंतर प्रयासों से भारत मध्यम अवधि में 7% की विकास दर कायम रख सकता है।
  • भू-राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक राष्ट्रवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत का लक्ष्य विकास को स्थिरता तथा सुरक्षा के साथ संतुलित करना है तथा निवेश एवं विकास के लिये मुख्य रूप से घरेलू संसाधनों पर निर्भर रहना है।

अल्प से मध्यम अवधि में नीतिगत फोकस के प्रमुख क्षेत्र

  • उत्पादक रोज़गार उत्पन्न करना:
    • वर्तमान कार्यबल वितरण:
      • कृषि: 45%
      • विनिर्माण: 11.4%
      • सेवाएँ: 28.9%
      • निर्माण: 13%
    • रोज़गार सृजन की आवश्यकताएँ: भारत को गैर-कृषि क्षेत्र में वार्षिक 78.51 लाख रोज़गार सृजित करने की आवश्यकता है। कृषि के अलावा विशेष रूप से संगठित विनिर्माण और सेवाओं में उत्पादक रोज़गार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • कौशल अंतराल चुनौती:
    • युवाओं की रोज़गार योग्यता: 51.25% (पिछले दशक में 34% से सुधार)
    • कौशल विकास में चुनौतियाँ:
      • सार्वजनिक धारणा, समन्वय की कमी, असंगत मूल्यांकन, प्रशिक्षकों की कमी और मांग-आपूर्ति का अनुपयुक्त होना।
      • महिला श्रम भागीदारी में कमी (37.0%), औपचारिक शिक्षा में उद्यमशीलता को शामिल न करना तथा नवाचार-संचालित उद्यमशीलता समर्थन में अपर्याप्तता जैसे मुद्दे।
  • कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन
    • संरचनात्मक मुद्दे:
      • खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति उत्पन्न किये बिना विकास को बनाए रखना।
      • मूल्य निर्धारण, दक्षता में वृद्धि, छिपी हुई बेरोज़गारी को कम करना और फसल विविधीकरण को बढ़ाना।
    • आवश्यक सुधार: प्रौद्योगिकी के उन्नयन, कृषि पद्धतियों में आधुनिक कौशल का अनुप्रयोग, कृषि विपणन के अवसरों को बढ़ाना, मूल्य स्थिरीकरण और इनपुट अपव्यय को कम करना।
  • MSME के लिये अनुपालन और वित्तपोषण को आसान बनाना
    • चुनौतियाँ:
      • व्यापक विनियमन और अनुपालन आवश्यकताएँ।
      • किफायती और समय पर वित्तपोषण तक पहुँच में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ; 20-25 लाख करोड़ रुपए का ऋण अंतर (लोकसभा स्थायी समिति की रिपोर्ट, अप्रैल 2022)
      • सीमा-आधारित रियायतें और छूटें अनपेक्षित प्रभाव पैदा करती हैं।
    • सरकारी पहल: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और MSME के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट जैसी योजनाओं का उद्देश्य किफायती ऋण उपलब्ध कराना है।
  • भारत के हरित परिवर्तन का प्रबंधन
    • प्रतिबद्धताएँ: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 33-35% की कमी (2005 के स्तर से), गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली को 40% तक बढ़ाना।
      • वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 को अवशोषित करने के लिये वन क्षेत्र को बढ़ाना।
    • चुनौतियाँ:
      • ई-मोबिलिटी नीति की निरंतरता सुनिश्चित करना, ग्रिड स्थिरता, किफायती भंडारण प्रौद्योगिकी तथा महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये चीन पर निर्भरता से निपटना।
      • RBI के अनुसार, इस बड़े वित्तपोषण अंतर को पाटने के लिये भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% हरित वित्त के लिये आवंटित करना आवश्यक हो जाता है।
    • हरित वित्त स्रोत:
      • घरेलू स्रोत: 87% (वित्त वर्ष 2019), 83% (वित्त वर्ष 2020)।
      • अंतर्राष्ट्रीय स्रोत: 13% (वित्त वर्ष 2019), 17% (वित्त वर्ष 2020)
  • चीनी पहेली
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर चीन के प्रभुत्व के साथ जटिल गतिशीलता।
      • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ खनिजों हेतु भारत की चीन पर निर्भरता पर चिंता।
    • चीन पर भारी निर्भरता के बिना वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एकीकरण को संतुलित करना।

चीन का विनिर्माण प्रभुत्व: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक चुनौती

उभरती अर्थव्यवस्थाएँ (EME) अपने घरेलू निर्माताओं की रक्षा के लिये चीनी वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध लगा रही हैं, क्योंकि चीन की विनिर्माण क्षमता से अधिक उत्पादन क्षमता के कारण विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक कीमतों में गिरावट आई है।

  • संरक्षणवादी उपायों के बावजूद, कुछ चीनी उत्पाद अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बने हुए हैं और चीन ने प्रतिबंधों के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई की है, जिससे EME के लिये विनिर्माण परिदृश्य जटिल हो गया है।
    • चीन का विनिर्माण व्यापार अधिशेष 2019 से बढ़ रहा है, वर्ष 2023 में 35% की वृद्धि के बाद 2024 में इस्पात उत्पाद निर्यात में 27% की वृद्धि होगी।
  • ब्राज़ील और तुर्की जैसे देशों ने चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करते हुए चीनी आयात पर शुल्क बढ़ा दिया है।
  • चीन के साथ बड़े व्यापार घाटे का सामना कर रहे भारत को यह निर्णय लेना होगा कि वह आयात पर निर्भर रहे या घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एकीकृत करने के लिये चीनी निवेश को एकीकृत करना।
  • कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार को मज़बूत बनाना 
    • वर्तमान स्थिति:
      • अन्य एशियाई उभरते बाज़ारों (मलेशिया, कोरिया और चीन) की तुलना में कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार का आकार छोटा है।
      • उच्च रेटिंग वाले जारीकर्त्ताओं और सीमित निवेशक आधार का प्रभुत्व।
    • विकास की आवश्यकता: कम लागत और दीर्घावधि निधियों के लिये शीघ्र जारी समय के साथ कुशल कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार।
  • असमानता से निपटना:
    • आय वितरण: शीर्ष 1% के पास कुल आय का 6-7% तथा शीर्ष 10% के पास कुल आय का एक-तिहाई हिस्सा होता है।
    • नीति पर ध्यान केंद्रित करना:
      • नौकरियों का सृजन, अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण, महिला श्रम शक्ति का विस्तार।
      • AI जैसी प्रौद्योगिकी के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पूंजी और श्रम आय पर कर नीतियाँ।
  • भारत की युवा आबादी के स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार
    • वर्तमान स्वास्थ्य मुद्दे:
      • 56.4% रोग का कारण अस्वास्थ्यकर आहार (ICMR, अप्रैल 2024)
      • भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
    • अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि, मोटापा (वयस्क मोटापे की दर तीन गुनी हो गई) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी
      • भारत में बच्चों में मोटापे की वार्षिक वृद्धि विश्व स्तर पर सर्वाधिक है।
    • स्वास्थ्य मानदंड: जनसांख्यिकीय विभाजन का लाभ उठाने के लिये संतुलित और विविध आहार की आवश्यकता।

अमृत ​​काल के लिये विकास रणनीति: मज़बूत, टिकाऊ और समावेशी

  • निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने की रणनीतिः
    • फोकस क्षेत्र: मशीनरी और उपकरण, बौद्धिक संपदा उत्पाद।
    • सरकारी पहल: आत्मनिर्भर पैकेज, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP), भारत औद्योगिक भूमि बैंक (IILB), औद्योगिक पार्क रेटिंग प्रणाली (IPRS), राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS)।
    • लक्ष्य: निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 35% तक बढ़ाने के प्रयासों को बनाए रखने के लिये निजी क्षेत्र के गैर-आवासीय निवेश को बढ़ाना।
  • भारत के मिटेलस्टैंड के विकास और विस्तार (MSME ) के लिये रणनीति:
    • वर्तमान योगदान: सकल घरेलू उत्पाद का 30%, विनिर्माण उत्पादन का 45%, 11 करोड़ लोगों को रोज़गार।
    • सरकारी सहायता: 5 लाख करोड़ रुपए की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS), MSME आत्मनिर्भर भारत कोष के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपए की इक्विटी पूंजी, संशोधित MSME वर्गीकरण मानदंड, 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ आरएएमपी कार्यक्रम, उद्यम सहायता प्लेटफॉर्म (UAP)।
    • प्रमुख चुनौतियाँ: समय पर और किफायती ऋण तक पहुँच।
    • भविष्य की दिशाएँ: विनियमन, भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी, बुनियादी ढाँचे का उन्नयन तथा उद्यम प्रबंधन में लक्षित प्रशिक्षण।
  • मिटेलस्टैंड के लिये निर्यात रणनीति:
    • पहल: जर्मनी के साथ मेक इन इंडिया मित्तेलस्टैंड (MIIM) सहयोग।
    • उपलब्धियाँ: 151 से अधिक जर्मन मिटेलस्टैंड कंपनियों को सहायता प्रदान की गई, जिसके परिणामस्वरूप 1.4 बिलियन यूरो का घोषित निवेश प्राप्त हुआ।
    • फोकस क्षेत्र: ऑटोमोटिव, नवीकरणीय ऊर्जा, निर्माण, उपभोक्ता वस्तुएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, अपशिष्ट/जल प्रबंधन।
    • सामरिक विचार: भारत की क्षेत्रीय और गैर-क्षेत्रीय सुरक्षा के विरुद्ध चीन के साथ व्यापार एवं निवेश में संतुलन स्थापित करना।
  • कृषि क्षेत्र में विकास की बाधाओं को दूर करने की रणनीतिः
    • महत्त्व: खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन, सतत् संसाधन उपयोग में कृषि की भूमिका।
    • संभावना: बागवानी, पशुधन, मत्स्य पालन, डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण में रोज़गार।
    • रणनीतिक बदलाव: भू-राजनीतिक और जलवायु चुनौतियों के बीच भौतिक, खाद्य तथा आर्थिक सुरक्षा में इसके महत्त्व का लाभ उठाने के लिये कृषि की पुनः कल्पना करना।
  • हरित परिवर्तन का वित्तपोषण
    • जलवायु वित्तपोषण की आवश्यकताएँ: संप्रभु धन निधि, पेंशन, निजी इक्विटी और बुनियादी ढाँचा निधि से वैश्विक हरित पूंजी का दोहन करना।
    • नवीन दृष्टिकोण: हरित निधि जुटाने के लिये सार्वजनिक और निजी पूंजी, क्षेत्र-विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं को एकीकृत करने वाला मिश्रित वित्त।
    • संभावित भूमिका: जलवायु वित्त के लिये अंतर्राष्ट्रीय पूंजी आकर्षित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority- IFSCA)।
  • शिक्षा-रोज़गार के बीच की खाई को पाटने की रणनीतिः
    • वैश्विक मेगाट्रेंड्स: स्वचालन, जलवायु कार्रवाई, डिजिटलीकरण कार्य और कौशल की मांग को बदल रहा है।
    • नीति रूपरेखा: राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति (NPSDE), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और 2023।
    • फोकस क्षेत्र: आधारभूत साक्षरता, संख्यात्मकता, कक्षा-उपयुक्त शिक्षण परिणाम, रोज़गार योग्य कौशल, उद्योग सहभागिता।
    • उद्योग की भूमिका: कौशल विकास पहल के लिये शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करना।
  • राज्य की क्षमता और योग्यता निर्माण की रणनीतिः
    • वर्ष 2014 से अब तक की उपलब्धियाँ: महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की डिलीवरी, प्रत्यक्ष लाभ योजनाओं का कार्यान्वयन।
    • भविष्य की दिशाएँ: वरिष्ठ पदों पर पार्श्व प्रवेश का विस्तार, सिविल सेवकों के लिये प्रशिक्षण की पुनःकल्पना, जवाबदेही तंत्र की स्थापना, वार्षिक लक्ष्य और माप वार्तालाप।

मध्यम अवधि में संभावना

  • लचीलापन: रणनीतिक सरकारी हस्तक्षेपों के साथ कई वैश्विक संकटों के बावजूद भारत की वृद्धि कायम रही।
  • विकास पथ: IMF ने वर्ष 2024-25 के लिये 6.8% की वृद्धि का अनुमान लगाया है, जिससे भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली G20 अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
  • रणनीतिक लक्ष्य: विकसित भारत @2047, वर्ष 2014 से संरचनात्मक सुधारों पर आधारित।
  • नागरिक भागीदारी: विकसित भारत के निर्माण के लिये 'सबका प्रयास' एक प्रेरक मंत्र है।

  अध्याय- 06: जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण: समझौताकारी सामंजस्य  

भारत की जलवायु कार्रवाई और ऊर्जा संक्रमण रणनीति की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन वैश्विक औसत का एक तिहाई है।
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 'विकसित भारत' बनना है तथा वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य करना है।
    • यह दृष्टिकोण देश के उच्च, समावेशी और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के प्रयासों को प्रेरित करता है।
  • इन महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिये स्थिर और सस्ती ऊर्जा सुनिश्चित करना तथा निम्न-कार्बन मार्ग को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।
    • हालाँकि यह चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसके लिये व्यवहार्य बैटरी भंडारण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है तथा विश्वसनीय हरित ऊर्जा स्रोतों के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच की आवश्यकता है और यह सब घरेलू वित्तपोषण पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

भारत की जलवायु कार्रवाई की वर्तमान स्थिति - भारत की समग्र जलवायु परिवर्तन रणनीति

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC):
    • सिद्धांत: उच्च आर्थिक विकास + पारिस्थितिक स्थिरता
    • मिशन: विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करने वाले नौ राष्ट्रीय मिशन:
      • राष्ट्रीय सौर मिशन
      • राष्ट्रीय जल मिशन
      • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
      • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
      • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
      • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
      • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
      • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
      • राष्ट्रीय मानव स्वास्थ्य मिशन (हाल ही में जोड़ा गया)
  • जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाएँ (SAPCC):
    • वर्तमान स्थिति: जलवायु परिवर्तन पर 34 राज्य कार्य योजनाएँ क्रियाशील हैं, जिनमें क्षेत्र-विशिष्ट और अंतर-क्षेत्रीय, समयबद्ध प्राथमिकता वाली कार्रवाइयाँ रेखांकित की गई हैं।

जलवायु कार्रवाई पर प्रगति

  • सौर ऊर्जा:
    • 2023-24 वृद्धि: 15.03 गीगावाट
    • संचयी (30 अप्रैल, 2024 तक): 82.64 गीगावाट
  • ऊर्जा दक्षता (प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना):
    • आठवाँ चक्र (2023-26):
      • लक्षित क्षेत्र: एल्युमिनियम, सीमेंट, क्लोर-क्षार, लोहा एवं इस्पात, लुगदी एवं कागज, कपड़ा।
      • ऊर्जा बचत लक्ष्य: 0.3370 मिलियन टन तेल समतुल्य (MTOE)
    • प्रभाव: महत्त्वपूर्ण ऊर्जा बचत और GHG उत्सर्जन में कमी
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC):
    • उपलब्धियाँ:
      • वर्ष 2021 तक कुल विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करना।
      • वर्ष 2019 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 33% तक कम करना।
    • अद्यतन लक्ष्य (अगस्त 2022):
      • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना (2005 के स्तर से)।
      • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से 50% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता।
    • वर्तमान स्थिति (31 मई, 2024 तक):
      • स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी: 45.4%
      • कार्बन सिंक: 1.97 बिलियन टन CO2 समतुल्य (2005-2019)।
  • UNFCCC को राष्ट्रीय संचार (NC):
    • तीसरा राष्ट्रीय संचार (TNC):
      • ऊर्जा क्षेत्र: मानवजनित उत्सर्जन का 75.81%।
      • कृषि क्षेत्र: 13.44%
      • औद्योगिक प्रक्रिया एवं उत्पाद उपयोग (IPPU): 8.41%.
      • अपशिष्ट: 2.34%
      • भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी (LULUCF): वर्ष 2019 में 485,472 GgCO2e का निवल सिंक।
      • वर्ष 2019 में शुद्ध राष्ट्रीय उत्सर्जन: 26,46,556 GgCO2e।
    • उत्सर्जन वृद्धि (2016-2019):
      • कुल राष्ट्रीय उत्सर्जन में 4.56% की वृद्धि हुई।
      • सकल घरेलू उत्पाद लगभग 7% की CAGR से बढ़ा, उत्सर्जन लगभग 4% की CAGR से बढ़ा।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान:
      • भारत एकमात्र G20 देश है जो 2°C तापमान (अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम की रिपोर्ट) वृद्धि के साथ खड़ा है।

अनुकूलन क्रियाएँ

  • सरकारी पहल:
    • जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA)
    • स्वच्छ भारत मिशन
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
    • प्रधानमंत्री आवास योजना
    • सौभाग्य योजना
  • अनुकूलन व्यय:
    • 2021-22: GDP का 5.60%
    • 2015-16: GDP का 3.7%
    • वित्त में वृद्धि की आवश्यकता: संसाधन की कमी को कम करने के लिये
  • तटीय अनुकूलन:
    • रामसर स्थल (2014 से):
      • 56 नये आद्रभूमि चिह्नित किये गये
      • कुल: 82 स्थल, 1.33 मिलियन हेक्टेयर
    • अमृत ​​धरोहर पहल (2023):
      • रामसर स्थलों में प्रकृति पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा
    • मिशन सहभागिता: सहभागितापूर्ण संरक्षण (वेटलैंड मित्र), वेटलैंड स्वास्थ्य कार्ड तैयार करना, समुदायों और निजी क्षेत्र को शामिल करना

समुदाय-नेतृत्व वाली जल प्रशासन की भूमिका

गुजरात के साबरकाँठा ज़िले के एक गाँव, वाटर गवर्नेंस24 को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ा, यहाँ भूजल स्तर 500-600 फीट पर था और TDS का स्तर बहुत अधिक (900-1100 मिलीग्राम/लीटर) था, जिससे कृषि करना अलाभकारी हो गया था।

  • जल संसाधन विभाग और गुजरात हरित क्रांति कंपनी (GGRC) ने गुहाई बाँध के जल का उपयोग करके गाँव के तालाब को पुनर्जीवित करने में मदद की।
  • गाँव के किसानों की सहकारी समिति ने 'सोम सरोवर' के अंतर्गत तालाब को गहरा किया, एक नाबदान बनाया तथा किसानों द्वारा वित्तपोषित पम्पिंग सुविधाएँ और पाइप जल प्रणालियाँ स्थापित कीं।
  • उन्होंने प्रति बूंद अधिक फसल (Per Drop More Crop- PDMC) के तहत ड्रिप सिंचाई को भी अपनाया। इससे कृषि उत्पादकता में 30% की वृद्धि हुई, उर्वरक और विद्युत का उपयोग कम हुआ तथा अधिक लाभदायक फलों एवं सब्जियों की फसल विविधीकरण हुआ।
    • समुदाय-नेतृत्व वाले जल प्रबंधन ने नवानगर को जल-कमी वाले क्षेत्र से जल-पर्याप्त वाले क्षेत्र में बदल दिया, जिससे निष्पक्ष जल वितरण सुनिश्चित हुआ।

निम्न कार्बन विकास और ऊर्जा संरचना

  • भविष्य में ऊर्जा की मांगें:
    • भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और विकासात्मक लक्ष्यों को समर्थन देने के लिये वर्ष 2047 तक उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं में 2 से 2.5 गुना वृद्धि होने का अनुमान है।
    • इन मांगों को पूरा करने के लिये परिवर्तन में संसाधन की कमी, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन और सतत् विकास के बीच संतुलन बनाना होगा।
  • वर्तमान ऊर्जा संरचना (2022-23):
    • प्राथमिक ऊर्जा मिश्रण: जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) वर्ष 2022-23 में भारत के प्राथमिक ऊर्जा मिश्रण का लगभग 84% हिस्सा होंगे।
    • विद्युत क्षेत्र संरचना: गैर-जीवाश्म विद्युत क्षमता की हिस्सेदारी अप्रैल 2014 में लगभग 32% से बढ़कर मई 2024 तक 45.4% हो जाएगी।

  • नवीकरणीय ऊर्जा में हालिया पहल:
    • PM-सूर्य घर योजना (फरवरी 2024):
      • क्षमता संवर्द्धन: 30 गीगावाट सौर क्षमता।
      • CO2 कमी: 720 मिलियन टन।
      • रोज़गार सृजन: लगभग 1.7 मिलियन प्रत्यक्ष नौकरियाँ।
    • अपतटीय पवन ऊर्जा:
      • नीति और नियम (2023): राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति और अपतटीय पवन ऊर्जा पट्टा नियम अधिसूचित।
      • प्रारंभिक क्षमता वित्तपोषण: 1GW क्षमता के लिये व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण।
    • हरित हाइड्रोजन मिशन:
      • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 5 MMT हरित हाइड्रोजन।
      • वित्तीय प्रोत्साहन: इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण और उत्पादन को बढ़ावा देता है।
      • निविदा प्रदान की गई: ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन (SIGHT) योजना के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप को 4,12,000 टन क्षमता हेतु प्रदान किया गया।
  • पर्यावरण एवं संसाधन प्रबंधन की चुनौतियाँ:
    • भूमि और जल की मांग: नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार से भूमि तथा जल की मांग बढ़ रही है, तथा G20 देशों में भारत में प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता सबसे कम है।
    • नवीकरणीय अपशिष्ट पुनर्चक्रण: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक सौर PV अपशिष्ट 78 मिलियन टन तक पहुँच जाएगा, इसके निपटान और पुनर्चक्रण के प्रबंधन के लिये व्यापक नीति की आवश्यकता है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज: ग्रेफाइट, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा तत्त्व और लिथियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की सांद्रता भौगोलिक रूप से विषम है।

  • ऊर्जा परिवर्तन के वित्तीय पहलू:
    • निवेश की आवश्यकताएँ: नेट ज़ीरो मार्ग के लिये वर्ष 2047 तक प्रति वर्ष लगभग 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
    • वित्तपोषण तंत्र:
      • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड: हरित परियोजनाओं के लिये जनवरी-फरवरी 2023 में 16,000 करोड़ रुपए और अक्तूबर-दिसंबर 2023 में 20,000 करोड़ रुपए जारी किये जाएंगे।
      • सेबी की स्थिरता रिपोर्टिंग: शीर्ष सूचीबद्ध संस्थाओं के लिये उन्नत ESG प्रकटीकरण।
      • RBI की पहल: प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा के लिये हरित जमा और रियायती ऋण की रूपरेखा।

भारतीय कार्बन बाज़ार ढाँचा

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS):
    • उद्देश्य:
      • एक टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य उत्सर्जन के लिये मूल्य निर्धारित करना।
      • संस्थाओं को पहले से तय उत्सर्जन लागतों का हिसाब रखने के लिये प्रोत्साहित करना।
      • कम उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • संक्रमण:
      • CCTS मौजूदा प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना का स्थान लेगा।
      • PAT के अंतर्गत नामित उपभोक्ता (Designated Consumers- DC) वर्ष 2028-2030 तक धीरे-धीरे CCTS में स्थानांतरित हो जाएंगे।
    • कार्रवाई:
      • उत्सर्जन लक्ष्य: सरकार इकाई-वार ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य निर्धारित करेगी।
      • अनुपालन: बाध्य संस्थाओं (Obligated Entities- OE) को इन लक्ष्यों को पूरा करना होगा और अनुपालन चक्र के बाद नौ महीने के भीतर अनुपालन की रिपोर्ट देनी होगी।
    • कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र (CCC):
      • लक्ष्य से अधिक कार्य करने पर जारी किया गया।
      • इसे बेचा जा सकता है या भविष्य में उपयोग के लिये बैंक में रखा जा सकता है।
      • लक्ष्य पूरा न करने वाली संस्थाओं को CCC खरीदना होगा या बैंक क्रेडिट का उपयोग करना होगा।

  • स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार (VCM):
    • अवलोकन:
      • वैश्विक बाज़ार का आकार: 1.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक।
      • भारत की स्थिति: कार्बन ऑफसेट का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता।
    • कार्य:
      • यह संस्थाओं को अन्यत्र उत्सर्जन में कमी/निष्कासन परियोजनाओं को वित्तपोषित करके उत्सर्जन की भरपाई करने की अनुमति देता है।
      • ऑफसेट का उपयोग व्यक्तिगत उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये किया जा सकता है।
    • चुनौतियाँ:
      • दोहरी गणना: विक्रेता और क्रेता दोनों द्वारा समान कार्बन कटौती का दावा करने का जोखिम।
      • ऋण पर दावे: इस बात पर अनिश्चितता कि क्या विदेशी संस्थाओं द्वारा उपयोग किये गए ऋणों का दावा ऋण देने वाले देश द्वारा भी किया जा सकता है।
  • मिशन LiFE और स्वैच्छिक कार्य:
    • इसका उद्देश्य संरक्षण और संयम पर आधारित टिकाऊ जीवन शैली के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का समाधान करना है।
  • ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम (GCP):
    • उद्देश्य: पुरस्कार के रूप में हरित ऋण प्रदान करके पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करना।
    • प्रतिभागी: व्यक्ति, समुदाय, निजी क्षेत्र के उद्योग और कंपनियाँ।

जलवायु वित्त पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: हालिया घटनाक्रम

  • वर्तमान वित्तीय बाधाएँ:
    • अनुमानित संसाधन आवश्यकताएँ: NDC लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वर्ष 2030 तक 5.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 11.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
    • अनुकूलन लागत: अनुमानतः यह वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय अनुकूलन वित्त प्रवाह 21.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 10 से 18 गुना अधिक है।
  • मौजूदा फ्रेमवर्क:
    • UNFCCC और पेरिस समझौता: विकसित देशों को विकासशील देशों को अनुदान या रियायती वित्तीय संसाधन और प्रौद्योगिकी पहुँच प्रदान करने का अधिकार देता है।
    • वर्तमान में विकासशील देशों के लिये अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय वित्त अनुदान के बजाय ऋण के रूप में है।
  • भारत की वित्तीय आवश्यकताएँ:
    • समग्र संसाधन आवश्यकता:
      • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान अनुमान: वर्ष 2015-2030 के लिये 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता।
      • दीर्घकालिक निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति अनुमान: निम्न कार्बन संक्रमण के लिये वर्ष 2050 तक दसियों ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
      • अनुकूलन संचार: अनुकूलन के लिये वर्ष 2030 तक 56.68 ट्रिलियन रुपए की आवश्यकता होगी।
    • घरेलू बनाम अंतर्राष्ट्रीय वित्त:
      • जलवायु कार्रवाई का अधिकांश वित्तपोषण घरेलू संसाधनों द्वारा किया जाता है।
      • निजी पूंजी की सीमाओं और इसके व्यापक आर्थिक निहितार्थों के कारण विकसित देशों द्वारा निजी वित्त पर ज़ोर दिये जाने पर बहस होती है।
  • COP 28 और वैश्विक समीक्षा:
    • COP 28 के परिणाम:
      • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST): इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक जलवायु महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाना है। अनुकूलन के लिये वैश्विक लक्ष्य (GGA) के लिये एक रूपरेखा विकसित की गई है, जिसके तहत सभी देशों को वर्ष 2030 तक अनुकूलन योजनाएँ तैयार करनी होंगी।
      • हानि एवं क्षति कोष: कोष के संचालन और इसके वित्तपोषण व्यवस्था पर समझौता।
      • अनुकूलन एवं शमन लक्ष्य: अनुकूलन वित्त को बढ़ाने और वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने, कोयला विद्युत को चरणबद्ध तरीके से कम करने तथा अकुशल जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने का आह्वान।
    • कार्यान्वयन:
      • विविध राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित की जाने वाली कार्रवाइयाँ।
  • नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG):
    • UNFCCC के तहत वर्ष 2025 से विकसित देशों से विकासशील देशों के लिये वार्षिक जलवायु वित्त लक्ष्य निर्धारित करने पर बातचीत चल रही है।
    • आधार रेखा: न्यूनतम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिये भारत की अंतर्राष्ट्रीय पहल

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
    • स्थापना: वर्ष 2015 में भारत और फ्राँस द्वारा।
    • लक्ष्य: सौर ऊर्जा समाधान लागू करना तथा वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश संग्रहण।
    • सदस्य: 119 सदस्य और हस्ताक्षरकर्त्ता देश।
  • एक विश्व, एक सूर्य, एक ग्रिड (OSOWOG)
    • उद्देश्य: वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा प्रणालियों का व्यापक अंतर्संबंध बनाना।
    • चरण 1: भारतीय ग्रिड को मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ना।
    • चरण 2: अफ्रीका में नवीकरणीय संसाधनों तक कनेक्शन का विस्तार करना।
    • चरण 3: वर्ष 2050 तक 2,600 गीगावाट का लक्ष्य रखते हुए वैश्विक इंटरकनेक्शन प्राप्त करना।
  • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI)
    • स्थापना: 23 सितंबर, 2019, संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में।
    • लक्ष्य: जलवायु एवं आपदा जोखिमों के प्रति बुनियादी ढाँचे की लचीलापन बढ़ाना।
  • उद्योग परिवर्तन के लिये नेतृत्व समूह (LeadIT)
    • स्थापना: सितंबर 2019 में भारत और स्वीडन द्वारा।
    • उद्देश्य: पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये उद्योग परिवर्तन को बढ़ावा देना।
    • LeadIT 2.0 (2024-26): फोकस क्षेत्र: 
      • समावेशी उद्योग परिवर्तन: नीतिगत ढाँचे को आकार देना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
      • प्रौद्योगिकी विकास: निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकी का सह-विकास और हस्तांतरण।
      • वित्तीय सहायता: उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उद्योग परिवर्तन को समर्थन प्रदान करना।

  अध्याय 07- सामाजिक क्षेत्र: कल्याण जो सशक्त करे  

भारत के सामाजिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • परिचय
    • वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के साथ, भारत में जीवन की गुणवत्ता में सुधार, महिला सशक्तीकरण और बेहतर ग्रामीण शासन की संभावनाएँ बढ़ रही हैं। 
    • यह प्रगति सतत् एवं समतामूलक विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, साथ ही वर्तमान एवं उभरती चुनौतियों का समाधान भी करती है।

विकास को सशक्त कल्याण के साथ जोड़ना: एक आदर्श बदलाव

  • कल्याण में प्रमुख विकास
  • समग्र प्रगति और परिणाम
    • बहुआयामी गरीबी में सुधार:
      • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI): नीति आयोग द्वारा अनुमानित, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को मापता है।
      • गरीबी में कमी: MPI 0.117 (2015-16) से लगभग आधी होकर 0.066 (2019-21) हो गई। 13.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बच गए।
      • क्षेत्रीय प्रगति: बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
    • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23:
      • मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय में वृद्धि: वर्ष 2011-12 की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में 40% और शहरी क्षेत्रों में 33.5% की वृद्धि।
      • गिनी गुणांक: 0.283 से 0.266 (ग्रामीण) तथा 0.363 से 0.314 (शहरी) तक गिरावट।
      • ग्रामीण-शहरी विभाजन: 83.9% से घटकर 71.2% हुआ।
      • आर्थिक असमानता: निम्नतम 5% का उपभोग शीर्ष 5% की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ा।

  • मानसिक स्वास्थ्य परिदृश्य
    • मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बढ़ता प्रचलन:
      • वैश्विक आँकड़े: 970 मिलियन लोग मानसिक विकार से ग्रस्त, कोविड-19 के कारण अवसाद और चिंता विकारों में वृद्धि।
      • भारतीय संदर्भ: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey - NMHS) 2015-16 में मानसिक विकारों की व्यापकता 10.6% पाई गई। शहरी क्षेत्रों में रुग्णता अधिक है।
    • बच्चों और युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य:
      • वैश्विक: 10-19 वर्ष आयु वर्ग के सात में से एक बालक मानसिक विकार से ग्रस्त है।
      • भारत: शैक्षणिक दबाव, सोशल मीडिया और सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण किशोरों में इसका प्रचलन बढ़ा है।
    • मानसिक स्वास्थ्य का आर्थिक प्रभाव: अनुपस्थिति, उत्पादकता में कमी तथा स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि से जुड़ा हुआ।
      • मानसिक स्वास्थ्य निवेश के आर्थिक लाभ: मानसिक स्वास्थ्य में निवेश से उच्च आर्थिक लाभ होता है।
        • भारत में अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के कार्यान्वयन से निवेश पर 6.5 गुना लाभ होगा।
    • संबंधित राष्ट्रीय और राज्य पहल: भारत ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014), राष्ट्रीय युवा नीति (2014) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) के साथ मानसिक स्वास्थ्य नीति में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
      • राज्य स्तरीय पहल:
        • मेघालय: राज्य मानसिक स्वास्थ्य नीति का उद्देश्य बच्चों और किशोरों की सहायता के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा स्कूल कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना है।
        • दिल्ली: युवा छात्रों के लिये माइंडफुलनेस, मेडिटेशन और मूल्य-आधारित शिक्षा को एकीकृत करते हुए हैप्पीनेस पाठ्यक्रम शुरू किया गया।
        • कोझिकोड, केरल: ‘बच्चों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी’ पहल शिक्षक, सहकर्मी और सामाजिक सलाह, जीवन कौशल शिक्षा तथा विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिये सहायता पर केंद्रित है। 
    • नीति अनुशंसाएँ:
      • मनोचिकित्सकों की संख्या में वृद्धि: मनोचिकित्सकों की संख्या को प्रति लाख जनसंख्या पर 0.75 से बढ़ाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 3 प्रति लाख तक किया जाएगा।
      • सहकर्मी समर्थन को बढ़ावा देना: कलंक को कम करने के लिये सहकर्मी समर्थन नेटवर्क और स्वयं सहायता समूहों को मज़बूत करना।
      • संवेदीकरण: पूर्वस्कूली और आँगनवाड़ी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य संवेदीकरण आरंभ करना।
      • निजी क्षेत्र की सेवाओं का मानकीकरण: मानसिक स्वास्थ्य स्टार्ट-अप में मानकीकरण सुनिश्चित करना।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चेतावनी लेबल

भारत में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा 2021 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि 23.8% बच्चे बिस्तर पर स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं और 37.2% बच्चों की स्मार्टफोन के उपयोग के कारण एकाग्रता कम हो गई है।

  • अमेरिकी सर्जन जनरल विवेक मूर्ति ने सोशल मीडिया की तुलना तंबाकू से की है तथा किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य संकट के समाधान के लिये तकनीकी प्लेटफॉर्मों पर चेतावनी लेबल (तंबाकू पैकेटों पर लगे लेबल की तरह) लगाने का सुझाव दिया है।

शिक्षा क्षेत्र में विकास

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: NEP 2020 का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना और युवाओं को ज्ञान-संचालित अर्थव्यवस्था के लिये तैयार करना है।
    • यह आधारभूत साक्षरता, संख्यात्मकता, बहुभाषी शिक्षा और अनुभवात्मक शिक्षा पर ज़ोर देता है।
  • स्कूल शिक्षा प्रगति:
    • बेहतर सुविधाएँ: सरकारी स्कूलों में शौचालय, पेयजल और स्मार्ट कक्षाओं सहित बुनियादी सुविधाओं में वृद्धि।
    • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-SE) 2023: योग्यता-आधारित शिक्षा, ग्रेड 3 से व्यावसायिक शिक्षा और स्वदेशी ज्ञान को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • उच्च शिक्षा:
    • नामांकन में वृद्धि: वित्त वर्ष 22 में उच्च शिक्षा में कुल नामांकन बढ़कर 4.33 करोड़ हो गया, जिसमें महिला नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

  • शिक्षा में डिजिटल परिवर्तन:
    • राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF): NEP 2020 के तहत, NCrF आजीवन सीखने का समर्थन करता है और इसमें APAAR और अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (Academic Bank of Credits- ABC) जैसे डिजिटल समाधान शामिल हैं।
    • ऑनलाइन शिक्षा: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) के नियम ऑनलाइन पाठ्यक्रमों से 40% तक क्रेडिट अर्जित करने की अनुमति देते हैं।

विद्यांजलि कार्यक्रम

7 सितंबर, 2021 को शुरू किये गए विद्यांजलि कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी और कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी के माध्यम से स्कूल के बुनियादी ढाँचे एवं शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।

  • यह पूर्व छात्रों, सेवानिवृत्त शिक्षकों और पेशेवरों जैसे स्वयंसेवकों को विद्यांजलि पोर्टल के माध्यम से सीधे स्कूलों से जोड़ता है, जो सरकारी प्रयासों को पूरक बनाता है।
  • इस पहल से विषय सहायता, मार्गदर्शन और डिजिटल उपकरणों जैसे आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराकर 1.44 करोड़ से अधिक छात्रों को लाभ मिला है।
  • अनुसंधान और विकास (R&D)
    • विकास और निवेश:
      • पेटेंट अनुदान: पेटेंट फाइलिंग में उल्लेखनीय वृद्धि (वर्ष 2022 में 31.6% वृद्धि) के साथ वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग 1 लाख पेटेंट प्रदान किये गए।
      • वैश्विक नवाचार सूचकांक: वर्ष 2023 में भारत की रैंकिंग सुधरकर 40वीं हो गई।
      • अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD): वित्त वर्ष 2011 में 60,196.8 करोड़ रुपए से दोगुना होकर वित्त वर्ष 2021 में 127,381 करोड़ रुपए हो गया।
    • चुनौतियाँ:
      • अनुसंधान एवं विकास निवेश: सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश 0.64% है, जो चीन (2.41%) और अमेरिका (3.47%) की तुलना में कम है।
    • भविष्य की दिशाएँ:
      • अनुसंधान-उद्योग संबंधों को मज़बूत करना: उच्च शिक्षा, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग में सुधार करना।
      • अनुसंधान फाउंडेशन: अनुसंधान एवं नवाचार के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के प्रस्तावित कोष के साथ अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने के लिये शुरू किया गया।

महिला सशक्तीकरण

  • महिलाओं का सामाजिक सशक्तीकरण
    • महिला-नेतृत्व विकास की ओर परिवर्तन: भारत अब केवल महिला विकास से हटकर महिला-नेतृत्व विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
      • वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता में 'महिला-नेतृत्व वाले विकास' को प्राथमिकता दी गई, जो लैंगिक मुद्दों की वैश्विक मान्यता को दर्शाता है।
    • सरकारी पहल और बजट:
    • पोषण सुरक्षा:
      • मिशन सक्षम आँगनवाड़ी एवं पोषण 2.0: जीवन चक्र दृष्टिकोण के माध्यम से कुपोषण को दूर करने और उन्नत सुविधाओं और प्रौद्योगिकी के साथ आँगनवाड़ी सेवाओं में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • सुरक्षा और सहायता:
      • संबल: इसमें हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिये वन-स्टॉप सेंटर और आपातकालीन सहायता हेतु 24 घंटे की महिला हेल्पलाइन ‘181’ शामिल है।
    • शिक्षा और कौशल:
      • स्कूल नामांकन में लैंगिक समानता तथा उच्च शिक्षा में महिलाओं का उच्च GER
      • PMKVY और जन शिक्षण संस्थान जैसी कौशल योजनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी तथा प्रशिक्षण बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
    • विज्ञान एवं गैर-परंपरागत भूमिकाओं में महिलाएँ:
      • WISE KIRAN: STEM क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • राजनीतिक सशक्तीकरण:
      • नारी शक्ति वंदन अभियान, 2023 (NSVA): इसका उद्देश्य महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाना और महिलाओं की चिंताओं से जुड़े सार्वजनिक वस्तुओं के निवेश में सुधार करना है।
  • महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण
    • श्रम बल भागीदारी:
      • महिला श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR) वर्ष 2017-18 में 23.3% से बढ़कर 2022-23 में 37% हो जाएगी, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
      • ग्रामीण महिलाओं के लिये कृषि प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में रुझान को प्रोत्साहित करना।
    • वित्तीय समावेशन:
    • ग्रामीण सूक्ष्म वित्त:
      • दीनदयाल अंत्योदय योजना-NRLM: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाती है, आत्म-सम्मान बढ़ाती है और सरकारी योजनाओं तक उनकी पहुँच बढ़ाती है।
        • सफल मॉडलों में कुदुंबश्री, जीविका और अन्य शामिल हैं।
    • उद्यमशीलता:

ग्रामीण अर्थव्यवस्था: विकास इंजन को गति देना

  • फोकस के प्रमुख क्षेत्र:
    • कल्याणकारी सेवाएँ (स्कूल बुनियादी ढाँचा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र)
    • शासन संबंधी मुद्दों के लिये प्रौद्योगिकी समाधान
    • बेहतर परिवहन और संचार
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को मज़बूत बनाना
    • उद्देश्य:
      • मनरेगा: ग्रामीण परिवारों को प्रतिवर्ष कम-से-कम 100 दिन का गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार उपलब्ध कराता है।
    • दक्षता सुधार:
      • जियोटैगिंग: काम से पहले, काम के दौरान और काम के बाद।
      • भुगतान: 99.9% राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से।
      • DBT और आधार-आधारित भुगतान: 98.6% सक्रिय श्रमिकों के लिये सक्षम।
      • सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयाँ: 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्थापित।
    • विकास:
      • मज़दूरी रोज़गार से परिसंपत्ति निर्माण तक: भूमि पर व्यक्तिगत लाभार्थी कार्य वित्त वर्ष 2013-2014 में 9.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 73.3% हो गया।
      • क्षमता विकास: बेयरफुट टेक्नीशियन (BareFoot Technicians- BFT) और उन्नति कौशल परियोजना जैसी पहल।

ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना

  • ग्रामीण उद्यमिता के लिये सरकारी योजनाएँ:
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM):
      • उद्देश्य: गरीब परिवारों को स्वरोज़गार और कुशल मज़दूरी रोज़गार के लिये सशक्त बनाना
      • समर्थित उद्यम: सौर पैनल, सैनिटरी पैड, साबुन, डिटर्जेंट, आदि।
    • लखपति दीदी पहल (2023):
      • लक्ष्य: तीन वर्षों के भीतर तीन करोड़ स्वयं सहायता समूह परिवारों को न्यूनतम वार्षिक आय एक लाख रुपए तक बढ़ाना।
    • सरस आजीविका पोर्टल और eSARAS मोबाइल ऐप (2023):
      • उद्देश्य: स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किये गए हस्तनिर्मित उत्पादों का प्रदर्शन और विक्रय।
    • स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP) और आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (AGEY):
      • SVEP: स्थानीय उद्यमों को समर्थन देता है, स्टार्ट-अप ऋण प्रदान करता है।
      • AGEY: ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय-निगरानी वाली परिवहन सेवाएँ प्रदान करता है।
    • ग्रामीण स्वरोज़गार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI) योजना:
      • उद्देश्य: कौशल प्रशिक्षण, ऋण सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करना।
      • कवरेज: 50.72 लाख प्रशिक्षित अभ्यर्थी, 36.23 लाख स्थायी उद्यमी/प्रशिक्षु।
    • ग्रामीण उद्यमिता को वित्तपोषण:
      • नाबार्ड: सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम (MEDP) और आजीविका एवं उद्यम विकास कार्यक्रम (LEDP) को समर्थन देता है।
      • वित्तपोषण: MEDP के लिये 52.39 करोड़ रुपए, LEDP हेतु 106.10 करोड़ रुपए।

सतत् विकास की ओर

  • सतत् विकास लक्ष्य को अपनाना:
    • भारत अपने नागरिकों के कल्याण और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को सक्रिय रूप से अपना रहा है और उनका समर्थन कर रहा है।
    • वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, भारत ने वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने की दिशा में लचीलापन और प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है।
  • SDG इंडिया इंडेक्स स्कोर:
    • 2020-21: 66
    • 2023-24: 71


  अध्याय 08: रोज़गार और कौशल विकास: गुणवत्ता की ओर  

भारत में रोज़गार और कौशल विकास की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • परिचय 
    • भारतीय श्रम बाज़ार ने पिछले 6 वर्षों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है, वर्ष 2022-23 में बेरोज़गारी दर घटकर 3.2% हो गई है।
    • कारखानों में रोज़गार बढ़ने और परिचालन में वृद्धि के साथ विनिर्माण क्षेत्र में पुनः सुधार हुआ है।
      • औपचारिक रोज़गार में वृद्धि मज़बूत है, जिसका प्रमाण EPFO वेतन में दोगुनी वृद्धि है।
    • हालाँकि सामूहिक कल्याण सुनिश्चित करते हुए, नौकरी बाज़ार को तकनीकी प्रगति, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुकूल होना होगा।
      • इसके अलावा, कौशल विकास में प्रगति के बावजूद, युवा कार्यबल का केवल 4.4% ही औपचारिक रूप से कुशल है, जो आगे और सुधार की गुंजाइश दर्शाता है।

वर्तमान रोज़गार परिदृश्य

  • बेरोज़गारी और रोज़गार मीट्रिक
    • बेरोज़गारी दर (UR):
      • प्रवृत्ति: सामान्य स्थिति के आधार पर 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये अखिल भारतीय वार्षिक बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate- UR) कोविड-19 महामारी के बाद से घट रही है।
    • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) और श्रमिक-से-जनसंख्या अनुपात (WPR)
      • त्रैमासिक आँकड़े: शहरी क्षेत्रों के लिये त्रैमासिक PLFS रिपोर्ट से पता चलता है कि:
      • मार्च 2024 को समाप्त तिमाही में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिये बेरोज़गारी दर 6.7% है।
        • यह वर्ष 2023 की इसी तिमाही के 6.8% से मामूली कमी है।
      • WPR और LFPR दोनों में वृद्धि हुई है, जो महामारी के बाद रोज़गार में सुधार को दर्शाती है।
  • कार्यबल संरचना
    • अनुमानित कार्यबल आकार
      • वर्ष 2022-23 के अनुमान: भारत का कार्यबल लगभग 56.5 करोड़ था।
    • क्षेत्रवार रोज़गार वितरण
      • कृषि: कार्यबल का 45%।
      • विनिर्माण: कार्यबल का 11.4%।
      • सेवाएँ: कार्यबल का 28.9%।
      • निर्माण: कार्यबल का 13%।

  • रोज़गार की स्थिति
    • रोज़गार की स्थिति का विवरण
      • स्व-रोज़गार: कुल कार्यबल का 57.3%
      • घरेलू उद्यमों में अवैतनिक कर्मचारी: 18.3%।
      • नैमित्तिक श्रम बल: 21.8%।
      • नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी: 20.9%।
    • लैंगिक अंतर
      • महिला कार्यबल: महिला कार्यबल में स्व-रोज़गार की ओर उल्लेखनीय बदलाव हुआ है।
      • पुरुष कार्यबल: विभिन्न रोज़गार स्थितियों में पुरुष श्रमिकों का अनुपात अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है।

भारत में युवा एवं महिला रोज़गार

  • युवा रोज़गार
    • युवा बेरोज़गारी दर
      • रुझान: वार्षिक युवा (आयु 15-29 वर्ष) बेरोज़गारी दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
        • वर्ष 2017-18: 17.8%
        • वर्ष 2022-23: 10%

  • औपचारिक रोज़गार वृद्धि
    • EPFO डेटा: युवा रोज़गार में वृद्धि को दर्शाता है।
      • रुझान: कोविड-19 महामारी के पश्चात् 18-28 वर्ष की आयु वर्ग के नवीन EPF ग्राहकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
      • वर्तमान स्थिति: लगभग दो-तिहाई नवीन EPFO पेरोल ग्राहक 18-28 वर्ष की आयु के हैं।
  • महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR)
    • FLFPR रुझान: पिछले छह वर्षों से FLFPR में वृद्धि हो रही है।
      • ग्रामीण FLFPR: वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23 तक 16.9% अंकों की वृद्धि हुई, जो ग्रामीण उत्पादन में महिलाओं के बढ़ते योगदान को बताता है।

  • फैक्ट्री में रोज़गार
    • विनिर्माण क्षेत्र का लचीलापन
      • उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI): महामारी के बाद रोज़गार में सुधार दर्शाता है।
        • वर्ष 2020-21: रोज़गार में मामूली गिरावट।
        • वर्ष 2021-22: संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार महामारी से पूर्व के स्तर से आगे निकल गया।
        • प्रति कारखाना रोज़गार: प्रति कर्मचारी की वेतन वृद्धि के साथ वृद्धि जारी रही।
    • वेतन वृद्धि
      • ग्रामीण क्षेत्र (वित्त वर्ष  15-वित्त वर्ष 22): प्रति कर्मचारी वेतन 6.9% CAGR से बढ़ा।
      • शहरी क्षेत्र (वित्त वर्ष 15-वित्त वर्ष 22): प्रति कर्मचारी वेतन 6.1% CAGR से बढ़ा।
      • फैक्ट्री रोज़गार के मामले में शीर्ष राज्य: तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र में कारखाना रोज़गार का 40% से अधिक भाग है।
        • सर्वाधिक रोज़गार वृद्धि (वित्त वर्ष 18-वित्त वर्ष 22): छत्तीसगढ़, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित युवा आबादी की अधिक भागीदारी वाले राज्य।
    • फैक्ट्री आकार के रुझान (Factory Size Trend)
      • छोटी फैक्ट्रियाँ (2021-22): 100 से कम लोगों को रोज़गार देने वाली फैक्ट्रियाँ सभी फैक्ट्रियों का 79.2% हिस्सा थीं, लेकिन कुल रोज़गार में इनका योगदान केवल 22.1% था।
      • बड़ी फैक्ट्रियों में वृद्धि: 100 से अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाली फैक्ट्रियों में वित्त वर्ष 18 से वित्त वर्ष 22 तक 11.8% की वृद्धि हुई।
    • क्षेत्रीय रोज़गार की हिस्सेदारी
      • सबसे बड़े नियोक्ता: खाद्य उत्पाद (11.1%), वस्त्र, प्राथमिक धातु, पहनने के परिधान और मोटर वाहन।
      • उभरते क्षेत्र: कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स, रबर और प्लास्टिक उत्पाद और रसायन।

  • रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल
  • अंशदायी पेंशन योजनाएँ: 
    • अटल पेंशन योजना (APY): 6.5 करोड़ से ज़्यादा ग्राहक।
    • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SYM): 50 लाख से अधिक कर्मचारी नामांकित।
    • किफायती बीमा कार्यक्रम
      • प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): 436 रुपए के वार्षिक प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का जीवन बीमा।
      • प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): 20 रुपए के वार्षिक प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का दिव्यांगता बीमा।
    • PM स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (PM स्वनिधि) योजना
      • स्ट्रीट वेंडर्स को बिना किसी जमानत के कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करती है, जिससे 64 लाख से अधिक व्यक्तियों को लाभ मिलता है।
    • वन नेशन वन राशन कार्ड कार्यक्रम
      • दिसंबर 2023 तक 124 करोड़ से अधिक पोर्टेबिलिटी लेनदेन के साथ संपूर्ण भारत में पोर्टेबल खाद्य सुरक्षा की अनुमति देकर प्रवासी श्रमिकों के कल्याण को बढ़ावा देता है।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM)
      • स्वरोज़गार और कुशल श्रमिक हेतु रोज़गार के अवसर प्रदान करके शहरी गरीबी को कम करने का लक्ष्य रखता है, जिससे वर्ष 2018-19 से जनवरी 2024 तक 5.48 लाख व्यक्तियों को लाभ मिलेगा।
  • ग्रामीण सवेतन में रुझान
    • वित्त वर्ष 24 ग्रामीण सवेतन 
      • संवृद्धि दर: कृषि में नाममात्र सवेतन दर में पुरुषों के लिये 7.4% और महिलाओं के लिये 7.7% की वृद्धि हुई।
      • गैर-कृषि सवेतन: पुरुषों के लिये 6.0% और महिलाओं के लिये 7.4% की वृद्धि हुई।
      • मुद्रास्फीति प्रभाव: मुद्रास्फीति कम होने के कारण वास्तविक सवेतन में निरंतर वृद्धि होने की उम्मीद है।

भारत में रोज़गार का विकसित परिदृश्य

भारत में रोज़गार का परिदृश्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर रहा है, जो तकनीकी प्रगति, हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण और गिग अर्थव्यवस्था के उदय जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित है।

  • चौथी औद्योगिक क्रांति और तकनीकी उन्नति
    • व्यवधान और पुनः कौशल: वैश्विक श्रम बाज़ार चतुर्थ औद्योगिक क्रांति द्वारा संचालित एक महत्त्वपूर्ण व्यवधान का अनुभव कर रहा है।
      • AI, मशीन लर्निंग, IoT, बिग डेटा और ऑटोमेशन समेत तकनीकी उन्नति, कार्य करने की विधियों को नया रूप दे रही है।
    • AI का प्रभाव: AI, जिसे एक सामान्य प्रयोजन वाली तकनीक के रूप में मान्यता प्राप्त है, में उत्पादकता को बढ़ावा देने और कुछ क्षेत्रों में रोज़गार को बाधित करने की क्षमता है।
      • भारत में AI के संपर्क में आने वालों की संख्या 26% होने का अनुमान है, जिसे उच्च और निम्न पूरक भूमिकाओं में विभाजित किया गया है।
  • गिग इकॉनमी का उद्भव 
    • संवृद्धि एवं विशेषताएँ: गिग इकॉनमी, जिसमें फ्रीलांसर, प्लेटफॉर्म वर्कर और स्व-नियोजित व्यक्ति शामिल हैं, भारत में तेज़ी से फैल रही है, जो तकनीकी प्लेटफॉर्म, इंटरनेट एक्सेस में वृद्धि और लचीली कार्य व्यवस्था की मांग से प्रेरित है।
      • वर्ष 2020-21 में, लगभग 7.7 मिलियन कर्मचारी गिग इकॉनमी का भाग थे, जो गैर-कृषि कार्यबल का 2.6% है।
    • भविष्य के अनुमान: गिग कार्यबल के वर्ष 2029-30 तक 23.5 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है, जो गैर-कृषि कार्यबल का 6.7% है।
  • जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा संक्रमण
    • रोज़गार का नुकसान और उत्पादकता पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन रोज़गार की सुरक्षा और उत्पादकता के लिये एक महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करता है, मूलतः कृषि एवं विनिर्माण क्षेत्र में।
      • उच्च तापमान के कारण काम के घंटों में भारी कमी और आर्थिक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
    • हरित रोज़गार सृजन: हरित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयास अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार के अवसर उत्पन्न कर रहे हैं।
      • वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा पहल भारत में सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों में लगभग 3.4 मिलियन रोज़गार उत्पन्न करने की संभावना है।
    • स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: जलवायु परिवर्तन श्रमिकों के कल्याण को भी प्रभावित करता है, मूलतः उन मैनुअल श्रमिकों के लिये जो चरम मौसमी स्थिति के संपर्क में आते हैं। SEWA के हीट-लिंक्ड पैरामीट्रिक बीमा जैसे अभिनव समाधान, श्रमिकों के स्वास्थ्य और आय की सुरक्षा के लिये लागू किये जा रहे हैं।
  • नीतिगत सिफारिशें और भविष्य के लिये दिशा निर्धारण
    • AI अनुसंधान एवं विकास: भारत को इस क्षेत्र में अपने अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाने की आवश्यकता है।
      • उदाहरण के लिये अमेरिका के पास अपने AI क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये एक रणनीतिक योजना है, जिसका भारत अनुकरण कर सकता है।
    • कौशल विकास और शिक्षा: AI और तकनीकी प्रगति द्वारा प्रस्तुत अवसरों का लाभ उठाने के लिये भारत को कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
      • इसमें विश्लेषणात्मक सोच, नवाचार, जटिल समस्या-समाधान और अनुकूलनशीलता शामिल है।
    • गिग वर्कर्स के लिये सामाजिक सुरक्षा: गिग इकॉनमी के बढ़ने से गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभों का विस्तार करना आवश्यक हो गया है। सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • हरित रोज़गार को प्रोत्साहित करना: ऐसी नीतियाँ जो हरित रोज़गार में बदलाव का समर्थन करती हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से श्रमिकों को संरक्षण प्रदान करती हैं, जो कि बहुत आवश्यक है।
      • इसमें जलवायु से संबंधित जोखिमों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और बीमा उत्पादों में निवेश शामिल है।

वर्ष 2036 तक रोज़गार सृजन की आवश्यकता

  • वर्तमान कार्यबल और भविष्य के अनुमान
    • कार्यबल भागीदारी दर (WPR):
      • पुरुष: 54.4% (वर्ष 2023) पर स्थिर।
      • महिलाएँ: 27.0% (2023) से बढ़कर 40.0% (2036) तक, वार्षिक 1% की वृद्धि।
    • कृषि क्षेत्र: 45.8% (2023) से घटकर 25% (2047) होने की उम्मीद।
    • वार्षिक रोज़गार सृजन की आवश्यकता: वर्ष 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में लगभग 78.5 लाख नौकरियाँ।
  • प्रमुख क्षेत्र- कृषि प्रसंस्करण और देखभाल अर्थव्यवस्था
    • ग्रामीण रोज़गार के लिये कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र
      • अवसर और लाभ
        • वर्तमान प्रसंस्करण स्तर: वैश्विक मानकों की तुलना में भारत में कम (उदाहरण के लिये फलों के लिये 4.5%)
        • बढ़ती मांग: बढ़ती समृद्धि और आहार-चेतना प्रसंस्कृत खाद्य की मांग को बढ़ा रही है।
        • सफलता की कहानियाँ: उदाहरणों में सह्याद्री किसान उत्पादक कंपनी, अराकू कॉफी बागान और SEWA का मसाला प्रसंस्करण समूह शामिल हैं।
      • संभावित लाभ
        • ग्रामीण विकास: फसल विविधीकरण में तेज़ी ला सकता है और उत्पादकों के लिये रोज़गार प्रदान कर सकता है।
        • अवसर: आँगनवाड़ी, मध्याह्न भोजन कार्यक्रम और निर्यात बाज़ार जैसी स्थानीय इकाइयों की आपूर्ति कर सकता है।
        • कार्यक्रमों का समन्वय (Program Synergies): मेगा फूड पार्क, स्किल इंडिया, मुद्रा और अन्य मौजूदा योजनाओं को एकीकृत करने से लाभ।
  • देखभाल अर्थव्यवस्था:
    • श्रेणियाँ:
      • मुआवज़ा संबंधी देखभाल कार्य: नर्स, देखभाल करने वाले, आदि।
      • अवैतनिक/अल्प-भुगतान वाले देखभाल कार्य: घरेलू देखभाल, बच्चों की देखभाल, बुज़ुर्गों की देखभाल, मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है।

  • विकसित देखभाल अर्थव्यवस्था की आवश्यकता
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन: वृद्धों की बढ़ती आबादी और देखभाल की आवश्यकता।
    • लैंगिक समानता: महिला श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ाने के लिये अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को कम करना।
    • आर्थिक संभावना: देखभाल सेवाओं में निवेश करने से पर्याप्त रोज़गार और आर्थिक लाभ उत्पन्न हो सकते हैं।
  • अनुभवजन्य साक्ष्य
    • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण: मेक्सिको और ब्राज़ील में सफल देखभाल कार्यक्रम।
  • सरकारी पहलें
    • पालना योजना: मिशन शक्ति के तहत संशोधन का लक्ष्य 17,000 आँगनवाड़ी-सह-क्रेच स्थापित करना है।
    • वरिष्ठ देखभाल सुधार: बुनियादी ढाँचे, अनुसंधान और जानकारी सहित बुजुर्गों की देखभाल को संबोधित करने के लिये एक संरचित नीति की आवश्यकता है।

कौशल में विकास और प्रगति

  • कौशल सुधार (वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23):
    • कुशल कार्यबल में वृद्धि: ग्रामीण, शहरी और लिंग वर्गीकरण सहित सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गीकरणों में कुशल लोगों के अनुपात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
    • प्रशिक्षण डेटा: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23 के अनुसार:
      • 15-29 वर्ष की आयु के 4.4% युवाओं ने औपचारिक व्यावसायिक/तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया।
      • 16.6% ने अनौपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
  • योजनाएँ और उनकी प्रगति:
    • पीएम विश्वकर्मा योजना:
      • उद्देश्य: कारीगरों और शिल्पकारों का समर्थन करना, उनके उद्यमों को बढ़ाना और पारंपरिक व्यवसायों का आधुनिकीकरण करना।
      • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):
      • प्रशिक्षण: वर्ष 2015 से 14.27 मिलियन लोगों को प्रशिक्षित किया गया।
      • प्रमाणन: 11.37 मिलियन प्रमाणित।
      • सुधार: औद्योगिक प्रासंगिकता, रोज़गार के लिये प्रशिक्षण और महिलाओं की बढ़ती भागीदारी (वित्त वर्ष 24 में 52.3%) पर ज़ोर।
    • ITI में शिल्पकार प्रशिक्षण योजना:
      • नामांकन: 124,000 व्यक्ति नामांकित (2014-2023)।
      • लैंगिक भागीदारी: वित्त वर्ष 16 में 9.8% से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 13.3% हो गई।
      • नई ग्रेडिंग: वर्ष 2023-24 से डेटा-संचालित ग्रेडिंग पद्धति लागू की गई।
    • जन शिक्षण संस्थान (JSS):
      • प्रशिक्षण: 26.37 मिलियन प्रशिक्षित, 24.95 मिलियन प्रमाणित (वित्त वर्ष 19-वित्त वर्ष 24)।
      • महिला लाभार्थी: कुल लाभार्थियों का 82%।
      • क्षमता निर्माण: मॉडल JSS की स्थापना, प्रयोगशालाओं का उन्नयन, तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षण।
    • राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना (NAPS):
      • प्रशिक्षु: 32.38 मिलियन कार्यरत (वित्त वर्ष 17-वित्त वर्ष 24)।
      • महिला भागीदारी: 7.74% (2016-17) से बढ़कर 20.77% (2023-24) हुई।
      • वज़ीफा सहायता (Stipend Support): 22.46 मिलियन लेनदेन के माध्यम से 320.88 करोड़ रुपए जारी किये गए।
    • स्किल इंडिया डिजिटल हब प्लेटफॉर्म:
      • विशेषताएँ: विभिन्न कौशल योजनाओं, ऑनलाइन पाठ्यक्रमों और डिजिटल सेवाओं को एकीकृत करता है।
      • सहभागिता: 6 मिलियन शिक्षार्थी पंजीकृत, 8.4 मिलियन ऐप डाउनलोड।

  अध्याय 09: कृषि और खाद्य प्रबंधन : यदि हम सही कर लें तो कृषि में बढ़ोत्तरी अवश्य है  

भारत के कृषि और संबद्ध क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • विगत पाँच वर्षों में भारत का कृषि क्षेत्र 4.18% वार्षिक की दर से बढ़ा है, जिससे 42.3% आबादी को लाभ प्राप्त हुआ  तथा सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 18.2% रहा है।
  • इस वृद्धि के बावजूद, कम उत्पादकता, खंडित भूमि जोत और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • सरकारी हस्तक्षेप का उद्देश्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), ऋण तक बेहतर पहुँच और टिकाऊ प्रथाओं के लिये समर्थन जैसे उपायों के माध्यम से इन मुद्दों का समाधान करना है।
  • फसलों के अतिरिक्त पशुधन और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्र भी महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीय गोकुल मिशन और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य उत्पादकता एवं बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना है, जिसमें मत्स्य पालन क्षेत्र ने 2020-21 से वार्षिक रूप से 7.4% की उल्लेखनीय वृद्धि दर दिखाई है।

कृषि उत्पादन: प्रदर्शन और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना

  • निष्पादन अवलोकन
    • खाद्यान्न उत्पादन: वर्ष 2022-23 में खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 329.7 मिलियन टन तक पहुँच गया, लेकिन प्रतिकूल मानसून की स्थिति के कारण वर्ष 2023-24 में थोड़ा कम होकर 328.8 मिलियन टन रहा।
    • तिलहन उत्पादन: वर्ष 2022-23 से वर्ष 2023-24 में मामूली वृद्धि के साथ बढ़कर 41.4 मिलियन टन हो गया।
    • पोषक अनाज: वर्ष 2023 से 1% की वृद्धि।
    • अरहर उत्पादन: 33.12 लाख टन से बढ़कर 33.85 लाख टन होने का अनुमान है।
    • मसूर का उत्पादन: 17.54 लाख टन होने का अनुमान है, जो वर्ष 2023 की तुलना में 1.95 लाख टन अधिक है।
  • फसल विविधीकरण की पहल
    • सरकारी कार्यक्रम:
      • फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP): राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के तहत, यह कार्यक्रम जल-गहन धान की खेती के स्थान पर दालों और फलियाँ जैसी वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देता है।
      • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): प्रौद्योगिकी प्रदर्शन एवं क्षमता निर्माण के माध्यम से खाद्यान्न और वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन तथा उत्पादकता को बढ़ाता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): विविधीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु तिलहन और दालों के लिये MSP में वृद्धि की गई। उदाहरण के लिये:
      • मसूर : MSP उत्पादन लागत से 89% अधिक है।
      • अरहर: MSP उत्पादन लागत से 58% अधिक है।
      • मोटे अनाज (उदाहरण के लिये, बाजरा): MSP उत्पादन लागत से 82% अधिक है।
      • कुसुम और सोयाबीन: MSP उत्पादन लागत से 52% अधिक है।
  • तिलहन और पाम ऑयल 
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तिलहन और ऑयल पाम (NFSM-OS&OP): वनस्पति तेल की उपलब्धता में सुधार के लिये वर्ष 2018-19 से लागू किया गया।
      • आच्छादित क्षेत्र: वर्ष 2014-15 में 25.60 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 30.08 मिलियन हेक्टेयर (17.5% वृद्धि) हो गया।
      • घरेलू उपलब्धता: वर्ष 2015-16 में 86.30 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 121.33 लाख टन हो गई।
      • आयातित ऑयल का हिस्सा: वर्ष 2015-16 में 63.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में 57.3% हो गया।
  • निवेश एवं ऋण
    • सकल पूँजी निर्माण (Gross Capital Formation-GCF):
      • वृद्धि: वर्ष 2022-23 में 19.04% की वृद्धि हुई। GVA के प्रतिशत के रूप में GCF वर्ष 2021-22 में 17.7% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 19.9% ​​हो गया।
      • वार्षिक वृद्धि दर: वर्ष 2016-17 से वर्ष 2022-23 तक औसतन 9.70% रही।
    • चुनौतियाँ:
      • किसानों की आय दोगुनी करने के लिये कृषि निवेश में 12.5% ​​वार्षिक वृद्धि की आवश्यकता है।
      • खंडित भूमि-स्वामित्व और निजी क्षेत्र में निवेश की कमी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
  • सब्सिडी एवं सहायता
    • सब्सिडी:
      • वर्ष 2011-12 से वर्ष 2020-21 तक उर्वरक और विद्युत सब्सिडी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
      • सब्सिडी दोगुनी से भी अधिक हो गई है, लेकिन सार्वजनिक निवेश अभी भी सब्सिडी का लगभग एक-तिहाई ही है।
    • कृषि विपणन अवसंरचना (AMI):
      • पूँजीगत सब्सिडी: मैदानी क्षेत्रों के लिये 25% तथा पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी क्षेत्रों के लिये 33.33% सब्सिडी।
      • परियोजनाएँ: 48,357 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई तथा सब्सिडी के रूप में 4570 करोड़ रुपए जारी किये गए।
  • ऋण तक पहुँच
    • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)
      • आवंटित: 31 जनवरी 2024 तक 9.4 लाख करोड़ रुपए की सीमा के साथ 7.5 करोड़ KCC कार्ड जारी किये गए।
      • विस्तार: इसमें वर्ष 2018-19 से मत्स्य पालन और पशुपालन शामिल हैं।
  • बीमा योजनाएँ
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY):
      • बीमित क्षेत्र: वर्ष 2023-24 में 610 लाख हेक्टेयर तक पहुँच जाएगा। 
      • चुनौतियाँ: उच्च प्रीमियम, दावा निपटान में देरी और जागरूकता की कमी।
  • कृषि विपणन
    • ई-नाम (eNAM) योजना:
      • पंजीकरण: 1.77 करोड़ से अधिक किसान और 2.56 लाख व्यापारी। 
      • लाभ: बेहतर मूल्य निर्धारण, कम लेनदेन लागत और बढ़ी हुई दक्षता। 
      • चुनौतियाँ: सीमित जागरूकता और बुनियादी ढाँचे की समस्याएँ।
  • सुनिश्चित लाभकारी मूल्य एवं आय समर्थन
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): वर्ष 2018-19 से विभिन्न फसलों के लिये उत्पादन लागत का कम से कम 1.5 गुना गारंटीकृत।
    • पीएम-किसान योजना: भूमि-धारक किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपए प्रदान करती है, जिसमें 11 करोड़ से अधिक किसानों को 3.24 लाख करोड़ रुपए से अधिक जारी किये गए हैं।
    • पीएम-किसान मानधन योजना (PMKMY): 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के किसानों को 3,000 रुपए की मासिक पेंशन प्रदान करती है।
  • कृषि मशीनीकरण
    • कृषि यंत्रीकरण पर उप मिशन (SMAM):
      • निधि: वर्ष 2014-15 से 2023-24 तक 7.26 हजार करोड़ रुपए आवंटित।
  • संधारणीय कृषि:
  • फसल अवशेष प्रबंधन
    • योजना: वायु प्रदूषण को कम करने के लिये फसल अवशेषों के प्रबंधन में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली को सहायता प्रदान करना।
    • बायो-डीकंपोजर का उपयोग: वर्ष 2023 में 7.00 लाख हेक्टेयर में लागू किया जाएगा।

संबद्ध क्षेत्र: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन

  • विकास और योगदान:
    • कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कुल GVA (स्थिर मूल्यों पर) में पशुधन का योगदान वर्ष 2014-15 में 24.32% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 30.38% हो गया।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण मत्स्य पालन क्षेत्र इसी अवधि में 8.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ कृषि GVA में 6.72% का योगदान देता है। यह हाशिये पर पड़े समुदायों सहित लगभग 30 मिलियन लोगों का समर्थन करता है।
  • सरकारी पहल:
    • पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय पशुधन मिशन पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF) 3% ब्याज सब्सिडी और 25% ऋण गारंटी के साथ डेयरी एवं माँस प्रसंस्करण, चारा संयंत्र तथा नस्ल सुधार में निवेश का समर्थन करती है।

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा

  • निवेश और रिटर्न:
    •  कृषि अनुसंधान (शिक्षा सहित) में निवेश किये गए प्रत्येक रुपए पर 13.85 का लाभ मिलता है।
  • ICAR और नवाचार:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) फसल और बीज उत्पादन, जैव-फोर्टिफाइड किस्मों, बाजरा को बढ़ावा देने,  पशु उत्पादन एवं स्वास्थ्य, मशीनीकरण और कटाई के बाद के प्रबंधन सहित विविध क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।   
    • वर्ष 2022-23 में, ICAR ने 44 फसलों की 347 किस्में/संकर, 99 बागवानी फसलें और 27 जैव-फोर्टिफाइड किस्में जारी कीं।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र (FPI): प्रसंस्करण क्षमता

  • क्षेत्र अवलोकन:
    • भारत दूध, फल, सब्जियों और चीनी का अग्रणी उत्पादक है, जो एक मज़बूत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये मज़बूत आधार तैयार कर रहा है।
    • यह क्षेत्र संगठित विनिर्माण रोज़गार में 12.02% हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख नियोक्ता है।
  • विकास एवं निर्यात:
    • पिछले 8 वर्षों से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग 5.35% की औसत वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
    • वर्ष 2022-23 में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों सहित कृषि-खाद्य निर्यात का मूल्य 46.44 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो भारत के कुल निर्यात का लगभग 11.7% था।
      • प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात का हिस्सा वर्ष 2017-18 में 14.9% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 23.4% हो गया।
  • सरकारी पहल:

खाद्य प्रबंधन: खाद्य सुरक्षा के लिये सामाजिक जाल

  • उद्देश्य:
    • खरीद: किसानों से लाभकारी मूल्य पर खाद्यान्न खरीदना।
    • वितरण: कमज़ोर वर्गों को उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
    • बफर स्टॉक: खाद्य सुरक्षा और मूल्य स्थिरता के लिये भंडार बनाए रखना।
  • खरीद और वितरण:
  • वित्तीय निहितार्थ:
    • MSP और संबंधित लागतों में वृद्धि के कारण खाद्यान्न की खरीद एवं वितरण की आर्थिक लागत बढ़ गई है।


  अध्याय 10 - उद्योग: मध्यम एवं लघु दोनों अपरिहार्य  

वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था का सारांश

  • मज़बूत आर्थिक विकास: वित्त वर्ष 2023-24 में, अर्थव्यवस्था 8.2% की संतोषजनक दर से बढ़ी, जिसे 9.5% की औद्योगिक वृद्धि का समर्थन प्राप्त था।
    • उद्योग के चार उप-क्षेत्रों में से, विनिर्माण एवं निर्माण ने लगभग दोहरे अंकों की वृद्धि हासिल की, जबकि खनन और उत्खनन तथा बिजली व जल आपूर्ति ने भी वित्तवर्ष 24 में मज़बूत सकारात्मक वृद्धि दर्ज की।
      • यह औद्योगिक उत्पादन में व्यापक तेज़ी को दर्शाता है।
    • विनिर्माण के लिये HSBC इंडिया परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) लगातार 50 से ऊपर रहा, जो सतत् विस्तार और स्थिरता का संकेत है।

  • विनिर्माण क्षेत्र का महत्त्व: वर्तमान मूल्यों पर कुल सकल मूल्य वर्द्धन में विनिर्माण की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 23 में 14.3% थी।
  • बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज: इसी अवधि के दौरान आउटपुट हिस्सेदारी 35.2% है, जो दर्शाता है कि इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज हैं।
  • उच्च अंतर-उद्योग खपत: कुल उत्पादन का लगभग आधा (47.5%) अन्य क्षेत्रों में आगे के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाता है।
  • प्रमुख इनपुट प्रदाता: विनिर्माण सभी क्षेत्रों (कृषि, उद्योग और सेवा) में उपयोग किये जाने वाले लगभग 50% इनपुट की आपूर्ति करता है।

प्रमुख क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं?

प्रमुख औद्योगिक मध्यवर्ती

  • सीमेंट उद्योग:
    • उद्योग का योगदान: सीमेंट उद्योग भारत में निर्माण क्षेत्र की इनपुट लागत में लगभग 11% का योगदान देता है।
    • डी-लाइसेंसिंग के बाद विकास: वर्ष 1991 में डी-लाइसेंसिंग के बाद से क्षमता और प्रक्रिया प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
      • भारत, चीन के बाद विश्व में दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक है।
    • भौगोलिक वितरण: अधिकांश संयंत्र कच्चे माल के स्रोतों के निकट स्थित हैं।
      • उद्योग का 85% हिस्सा राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में केंद्रित है।
    • घरेलू क्षमता और आयात: वित्त वर्ष 23 में सीमेंट आयात कुल घरेलू उत्पादन का लगभग 0.2% था।
      • वित्त वर्ष 2018-2019 तक क्लिंकर और अन्य सीमेंट का निर्यात बढ़ा, लेकिन फिर वैश्विक मांग में कमी तथा अन्य देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अन्य हाइड्रोलिक सीमेंट को छोड़कर इसमें गिरावट शुरू हो गई।
      • वित्त वर्ष 23 में भारत ने केवल नगण्य मात्रा में क्लिंकर का निर्यात किया।
    • स्थिरता प्रयास: सीमेंट क्षेत्र वैश्विक मानवजनित उत्सर्जन का लगभग 7% उत्पन्न करता है।
      • भारतीय उद्योग ने वर्ष 2023 तक प्रति टन सीमेंट पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाकर 0.56 टन CO2 कर दिया है।
      • उद्योग प्रौद्योगिकी रोडमैप के अनुसार वर्ष 2050 तक उत्सर्जन को 0.35 टन CO2 प्रति टन तक कम करने का लक्ष्य।
  • इस्पात उद्योग:
    • क्षेत्र योगदान:
      • भवन एवं निर्माण क्षेत्र में सभी इनपुट में लोहा एवं इस्पात का योगदान लगभग 47% है।
      • मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण इनपुट।
    • उत्पादन एवं उपभोग:
      • इस्पात क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान उत्पादन और खपत के उच्चतम स्तर हासिल किये।
    • व्यापार संतुलन:
      • पिछले दशक में भारत तैयार इस्पात का शुद्ध निर्यातक बन गया।
      • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत पहली तिमाही में शुद्ध निर्यातक था, लेकिन दूसरी और तीसरी तिमाही में शुद्ध आयातक बन गया।
      • यह बदलाव अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू इस्पात कीमतों के बीच मूल्य अंतर के कारण हुआ।
      • कम अंतर्राष्ट्रीय कीमतों ने निर्यात लाभ मार्जिन को कम कर दिया और आयात को अधिक किफायती बना दिया।
    • कच्चे माल पर निर्भरता:
      • कोकिंग कोयले पर आयात निर्भरता वित्त वर्ष 2022-23 में 56.1 मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 58.1 मीट्रिक टन हो गई।
    • हरित इस्पात और उत्सर्जन:
      • जैसे-जैसे विश्व कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है, हरित इस्पात से इस्पात उद्योग के भविष्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।
      • भारत का इस्पात क्षेत्र देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 12% हिस्सा है।
      • प्रति टन कच्चे इस्पात पर 2.5 टन CO2 उत्सर्जन तीव्रता है, जबकि वैश्विक औसत 1.9 टन CO2 प्रति टन है।
    • इस्पात क्षेत्र के लिये पहल:
      • नगरनार स्टील प्लांट: अक्तूबर 2023 में स्थापित इस ग्रीनफील्ड परियोजना का लक्ष्य है:
        • उच्च गुणवत्ता वाले स्टील का उत्पादन करना।
        • क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
        • भारत को वैश्विक स्टील बाज़ार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाना।
        • फ्लैट स्टील उत्पादों की एक शृंखला का उत्पादन करना।
        • वित्त वर्ष 2023-24 में 4.93 लाख टन हॉट-रोल्ड कॉइल्स हासिल किये।
      • स्टील CPSE प्रदर्शन: स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (Steel Authority of India Limited- SAIL) ने वित्त वर्ष 2023-24 में हॉट मेटल, क्रूड स्टील और सेलेबल स्टील का अब तक का सर्वाधिक उत्पादन हासिल किया।
      • विशिष्ट इस्पात के लिये PLI योजना: वर्ष 2021 में शुरू की गई, इसने मई 2024 तक 15,519 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया है।
        • अपेक्षित कुल निवेश: 29,531 करोड़ रुपए 
        • अपेक्षित क्षमता वृद्धि: 24,780 हजार टन
        • 17 मार्च 2023 को 27 कंपनियों (57 आवेदनों में से) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • कोयला क्षेत्र:
    • प्रमुख ऊर्जा स्रोत: भारत की प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा का 55% से अधिक भाग कोयला से प्राप्त होता है।
    • विद्युत उत्पादन: भारत की कुल विद्युत का 70% कोयला आधारित संयंत्रों से प्राप्त होता है।
    • उत्पादन वृद्धि: पिछले पाँच वर्षों में कोयला उत्पादन में वृद्धि हुई है।
    • आयात पर निर्भरता में कमी: उत्पादन में इस वृद्धि के कारण आयातित कोयले पर भारत की निर्भरता में कमी आई है।
    • घरेलू उत्पादन बनाम खपत: घरेलू कोयला उत्पादन और खपत के अनुपात में विगत दशक में निरंतर सुधार हो रहा है। इसका अर्थ यह है कि उत्पादन वृद्धि खपत वृद्धि की तुलना में अधिक हो गई है।


प्रमुख उपभोक्ता-उन्मुख उद्योग

  • फार्मास्यूटिकल्स: बढ़ती और वैश्विक उपस्थिति
    • बाज़ार का आकार और कोटि: 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर (मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा)
    • उत्पाद आधार और वैश्विक उपस्थिति: जेनेरिक दवाओं, सक्रिय दवा सामग्री, बल्क ड्रग्स, ओवर-द-काउंटर दवाओं, टीकों, बायोलॉजिक्स और बायोसिमिलर को कवर करने वाले बेहद विविध उत्पाद आधार के साथ, भारतीय दवा उद्योग की वैश्विक स्तर पर मज़बूत उपस्थिति है।
    • निर्यात: प्रायः "फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड" के रूप में संदर्भित, भारत मात्रा के हिसाब से विश्व की लगभग 20% जेनेरिक दवाओं का निर्यात करता है। आश्चर्य की बात नहीं है कि शीर्ष 20 वैश्विक जेनेरिक कंपनियों में से आठ भारत में स्थित हैं।
    • अद्यतन नियामक ढाँचा: सरकार निरंतर नियामक ढाँचे को सुदृढ़ कर रही है। गुणवत्ता और वैश्विक मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिये दिसंबर 2023 में संशोधित फार्मा विनिर्माण नियमों को अधिसूचित किया गया था।

फार्मा के अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ाने और उसकी कल्पना करने की आवश्यकता क्यों है?

  • नवाचार और सामर्थ्य को संतुलित करना: फार्मास्युटिकल उद्योग में दो प्रकार के नवोन्मेषक हैं, जो नवीन दवाइयाँ विकसित करते हैं और जेनेरिक उत्पादक जो पेटेंट समाप्त होने के बाद लागत-प्रभावी विकल्प प्रस्तुत करते हैं। नवोन्मेषी फर्मों को नवीन दवाइयाँ विकसित करने में उच्च लागत और जोखिम का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः उच्च कीमतें होती हैं। 
    • जेनेरिक इन दवाओं को किफायती बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। R&D को बढ़ाने से यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है कि नवोन्मेष और सामर्थ्य दोनों संतुलित हैं, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य सेवा को लाभ मिलता है।
  • रणनीतिक निवेश: हाल के रुझानों से पता चलता है कि बड़ी दवा कंपनियाँ छोटी, बेहतरीन शोध-उन्मुख फर्मों में निवेश कर रही हैं। नवोन्मेषी स्टार्टअप में निवेश की ओर यह बदलाव का उद्देश्य नवीन उपचारों के विकास में तेज़ी लाने और छोटी फर्मों की विशिष्ट क्षमताओं का लाभ उठाना है।
    • इस प्रकार के रणनीतिक निवेश एक जीवंत और सहयोगी R&D पारिस्थितिकी की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • भारत में नवोन्मेष को बढ़ावा देना: भारत में फार्मास्यूटिकल क्षेत्र का सामर्थ्य इसके लागत-प्रभावी जेनेरिक दवा उत्पादन में निहित है। हालाँकि "विकसित भारत" के दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाने के लिये अनुसंधान एवं विकास के निवेश में वृद्धि के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इससे स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार होगा और दवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि होगी, निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलेगा तथा स्वास्थ्य संबंधी अनसुलझी चिंताओं का समाधान होगा।
  • मानव पूंजी और वित्तपोषण का समर्थन: अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाने के लिये बेहतर मानव पूंजी विकास और वित्तपोषण चैनलों में वृद्धि की आवश्यकता है। संस्थानों और उद्योग के बीच सेकंडमेंट और प्लेसमेंट का समर्थन करने से कुशल कार्यबल विकसित करने में सहायता मिल सकती है, जबकि उद्यम पूंजी एवं एंजेल निवेश में वृद्धि से नवाचार को विचार से बाज़ार तक पहुँचाया जा सकता है।


  • वस्त्र उद्योग: चुनौतियों का सामना करना
    • उद्योग का आकार और योगदान
      • विनिर्माण GVA में 10.6% का योगदान (वित्त वर्ष 23 में 3.77 लाख करोड़ रुपए)
      • गैर-कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रमुख अभिकर्त्ता (29.3% भाग)
      • सुदृढ़ कॉर्पोरेट उपस्थिति (7.9% भाग)
    • मूल्य शृंखला और वैश्विक स्थिति
      • मज़बूत एंड-टू-एंड मूल्य शृंखला: प्राकृतिक और MMF फाइबर से तैयार उत्पाद (परिधान, घरेलू वस्त्र, तकनीकी वस्त्र)
      • विश्व का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र निर्माता
      • वैश्विक स्तर पर शीर्ष पाँच वस्त्र एवं परिधान निर्यातक
    • निर्यात प्रदर्शन (वित्त वर्ष 2023-24)
      • 1% की वृद्धि के साथ 2.97 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया
      • रेडीमेड वस्त्रों का निर्यात में दबदबा रहा (41%)
      • इसके बाद सूती वस्त्र (34%) और मानव निर्मित वस्त्र (14%) का स्थान रहा

  • इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग: भविष्य को सशक्त बनाना
    • घरेलू मूल्य संवर्द्धन (DVA): मोबाइल फोन उत्पादन में DVA की भागीदारी वित्त वर्ष 17 से वित्त वर्ष 19 में औसतन 8.7% से बढ़कर वित्त वर्ष 20 से वित्त वर्ष 22 में 22% हो गई, जो स्थानीय भागीदारी में पर्याप्त वृद्धि को दर्शाती है।
    • वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC): हालाँकि निर्यात के अनुपात के रूप में DVA कम है, लेकिन वैश्विक विनिर्माण में स्तरीय अर्थव्यवस्थाओं के कारण GVC में भागीदारी समग्र मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देती है।
    • रोज़गार: मोबाइल फोन उत्पादन में प्रत्यक्ष कार्यबल वित्त वर्ष 17 और वित्त वर्ष 22 के बीच तीन गुना से अधिक हो गया, जिसमें महिला ब्लू-कॉलर श्रमिकों को महत्त्वपूर्ण लाभ मिला।
    • मज़दूरी और वेतन: चरण-1 (वित्त वर्ष 17-वित्त वर्ष 19) और चरण-2 (वित्त वर्ष 20-वित्त वर्ष22) के बीच मज़दूरी और वेतन में 317% की वृद्धि हुई।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को बढ़ावा देने हेतु पहलें: 
    • उत्पादन से संबंधित प्रोत्साहन (PLI) योजना:
      • वृहद् स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हेतु: यह योजना उत्पादन के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके वृहद् स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माताओं को आकर्षित करने के लिये बनाई गई है।
      • IT हार्डवेयर हेतु: यह योजना IT हार्डवेयर क्षेत्र को प्रोत्साहित करती है, लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पीसी और सर्वर जैसे उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देती है।
    • इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्द्धचालकों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (SPECS): वर्ष 2020 में आरंभ हुई, SPECS इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की डाउनस्ट्रीम मूल्य शृंखला निर्माण वाले इलेक्ट्रॉनिक सामानों की एक विशिष्ट सूची के लिये पूंजीगत व्यय पर 25% का पर्याप्त वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
      • मार्च 2024 तक इस योजना के तहत 12,638 करोड़ रुपए का प्रस्तावित विनिवेश और 1758 करोड़ रुपए के प्रतिबद्ध प्रोत्साहन को स्वीकृति प्रदान की गई है।
    • संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC 2.0): इस योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम के डिजाइन और विनिर्माण (ESDM) क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है।

  • ऑटोमोटिव उद्योग:
    • संवृद्धि: विगत पाँच वर्षों की तुलना में ऑटो पार्ट्स के घरेलू उत्पादन और खपत में धीमी वृद्धि। ऑटो कंपोनेंट उत्पादन घरेलू और निर्यात बाज़ारों पर निर्भर करता है।
    • महामारी का प्रभाव: ऑटोमोबाइल क्षेत्र में गिरावट के कारण महामारी ने ऑटो पार्ट्स की माँग को कमज़ोर कर दिया।
    • सेगमेंट-वार प्रदर्शन:
      • यात्री वाहन (कार और SUV) - महामारी से पूर्व मज़बूत वृद्धि, महामारी के बाद तेज़ी से सुधार।
      • दोपहिया, तिपहिया, वाणिज्यिक वाहन - यात्री वाहनों की तुलना में महामारी के बाद धीमी रिकवरी।


सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम

  • विनिर्माण उत्पादन में MSME की भागीदारी (वित्त वर्ष 2021-22): अखिल भारतीय विनिर्माण उत्पादन में MSME का योगदान 35.4% था।
  • MSME विनिर्दिष्ट उत्पादों का निर्यात हिस्सा (वर्ष 2023-24): अखिल भारतीय निर्यात का 45.7% MSME विनिर्दिष्ट उत्पाद थे।
  • असंगठित उद्यम वृद्धि (अक्तूबर 2022 - सितंबर 2023): अप्रैल 2021 - मार्च 2022 की तुलना में 5.9% की वृद्धि हुई।
  • प्रति कर्मचारी सकल मूल्यवर्द्धन (GVA): इसी अवधि के दौरान 1,38,207 रुपए से बढ़कर 1,41,769 रुपए हो गया।
  • प्रति प्रतिष्ठान सकल उत्पादन मूल्य (GVO): इसी अवधि के दौरान 3,98,304 रुपए से बढ़कर 4,63,389 रुपए हो गया।
  • उद्यम पंजीकरण पोर्टल:
    • MSME को औपचारिक रूप देने के लिये जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया।
    • 05 जुलाई 2024 तक 4.69 करोड़ MSME पंजीकृत हैं।
    • इसमें उद्यम सहायता प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं।
    • MSME मंत्रालय की योजनाओं से लाभ की सुविधा प्रदान करता है।
    • बैंकों से प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण देने में सक्षम बनाता है।
    • डेटा साझा करने के लिये 37 अन्य पोर्टलों के साथ API लिंकेज।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 आवंटन:
    • सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये ऋण गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE) को 9,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गए।
    • इसका उद्देश्य न्यूनतम लागत के साथ 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त ऋण उपलब्ध कराना है।
    • वित्त वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2023-24 तक सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये ऋण गारंटी में उल्लेखनीय वृद्धि।
  • चुनौतियाँ और अवसर: MSME को औपचारिकता एवं समावेशन, वित्त, बाज़ार, तकनीक व डिजिटलीकरण तक सीमित पहुँच, बुनियादी ढाँचे में बाधाएँ और कौशल विकास जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये सरकार ने औपचारिकता, पंजीकरण में आसानी और शिकायत निवारण के लिये पहल तथा प्लेटफॉर्म लागू किये हैं, जैसे समाधान पोर्टल, संबंध पोर्टल और चैंपियंस पोर्टल, जो भुगतान में विलंब, खरीद की निगरानी व शिकायतों के त्वरित समाधान में सहायता करते हैं।
    • वैश्विक मूल्य शृंखला विकास रिपोर्ट (वर्ष 2019) में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में SME का प्रतिनिधित्व कम है, लेकिन डिजिटल अर्थव्यवस्था उन्हें महत्त्वपूर्ण नवीन अवसर प्रदान करती है।
    • यह भारत के MSME क्षेत्र में स्पष्ट है, जहाँ वर्ष 2020-21 में कुल ई-कॉमर्स बिक्री का लगभग 70% MSME से था, जो वर्ष-दर-वर्ष 60-70% की वृद्धि दर को दर्शाता है।

ODOP: क्षेत्रीय गौरव और आर्थिक सशक्तीकरण का सृजन

  • लॉन्च: वर्ष 2018
  • लक्ष्य: क्षेत्रीय आर्थिक विभाजन को कम करना और ज़िलों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • अवधारणा: प्रत्येक ज़िले से एक अद्वितीय उत्पाद की पहचान करना, ब्रांड बनाना और उसका प्रचार करना।
  • शामिल किये गए उत्पाद: कृषि, विनिर्माण, हथकरघा, वस्त्र, हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण, समुद्री और सेवाएँ।
  • अब तक हुई प्रगति:
    • 761 ज़िलों से 1102 उत्पादों की पहचान की गई।
    • राज्य की राजधानियों/प्रमुख शहरों में ODOP, GI उत्पादों और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिये "पीएम-एकता मॉल" की योजना बनाई गई।
  • ODOP का समर्थन करने के लिये पहलें:
    • स्वदेशी उद्योगों को पुनर्जीवित करने और सहयोग के लिये "ODOP संपर्क" कार्यशालाएँ।
    • भारत की अध्यक्षता के दौरान G20 कार्यक्रमों में ODOP का प्रदर्शन।
  • सफलता की कहानियाँ:
    • विभिन्न सरकारी पहलों के माध्यम से शोपियाँ सेब (कश्मीर), लाल चावल/रेड राइस (उत्तराखंड), अराकू वैली कॉफी (आंध्र प्रदेश), कंधमाल हल्दी (ओडिशा) और भटिंडा शहद (पंजाब) के उत्पादन में वृद्धि हुई।

औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और नवाचार

  • सीमित सार्वजनिक क्षेत्र की उपस्थिति: भारत में मुख्य विनिर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका सीमित (लगभग 7%) है।
  • R&D पर प्रभाव: यह सीमित भूमिका औद्योगिक R&D में सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान के न्यूनतम भाग को दर्शाती है।
  • वैश्विक तुलना: कॉर्पोरेट R&D के व्यय में अमेरिका, चीन और जर्मनी सबसे आगे हैं (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2023 के अनुसार)।
  • मध्यम आय वाले देशों में वृद्धि: भारत, तुर्की, ब्राज़ील और इंडोनेशिया ने R&D के व्यय में वृद्धि देखी है।
  • R&D में एकाग्रता: भारत का औद्योगिक R&D कुछ क्षेत्रों पर अधिक केंद्रित है (शीर्ष 5 में 70% से अधिक)।
  • समग्र पारिस्थितिकी का महत्त्व: एक सतत्, समावेशी और नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था के लिये एक सुविकसित नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है।
  • सभी हितधारकों पर ध्यान देना: पारिस्थितिकी तंत्र को नवाचार को प्रभावित करने वाले सभी हितधारकों और संस्थानों के बीच संवाद पर विचार करना चाहिये।
  • अनौपचारिक नवाचार: विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने की उनकी क्षमता के कारण अनौपचारिक और बुनियादी स्तर के नवाचार को शामिल किया जाना चाहिये।


  अध्याय 11- सेवाएँ: विकास के अवसरों को बढ़ावा देना  

भारत के सेवा क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है, जिन्हें मोटे तौर पर दो श्रेणियों

में वर्गीकृत किया जा सकता है: संपर्क-गहन सेवाएँ और गैर-संपर्क-गहन सेवाएँ। पहली श्रेणी में व्यापार, आतिथ्य, परिवहन, रियल एस्टेट, सामाजिक, सामुदायिक और व्यक्तिगत सेवाएँ शामिल हैं। दूसरी में वित्तीय, सूचना प्रौद्योगिकी, पेशेवर सेवाएँ, संचार, प्रसारण और भंडारण सेवाएँ शामिल हैं। इस क्षेत्र में लोक प्रशासन और रक्षा सेवाएँ भी शामिल हैं।

भारतीय सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

  • मांग पक्ष कारक:
    • बड़ी और युवा आबादी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, वित्त, पर्यटन, आतिथ्य और मनोरंजन सेवाओं की मांग को बढ़ा रही है। 
    • तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से परिवहन, आवास, स्वच्छता और उपयोगिता सेवाओं को बढ़ावा मिल रहा है।
    • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के विस्तार ने संभार-तंत्र, डिजिटल भुगतान और संबंधित सेवाओं के लिये  बढ़ी हुई आवश्यकताएँ उत्पन्न की हैं।
  • आपूर्ति पक्ष कारक:
    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और व्यावसायिक सेवाएँ जिनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख उपस्थिति है।
    • डिजिटल इंडिया, निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ, बुनियादी ढाँचा विकास, कौशल विकास, स्वास्थ्य सेवा और पर्यटन पर ध्यान केंद्रित करने जैसी सरकारी पहल।
  • चुनौतियाँ एवं भविष्य का दृष्टिकोण:
    • व्यावसायिक सेवाओं पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का संभावित प्रभाव: अध्ययनों से पता चलता है कि AI विकास के अवसरों को बाधित कर सकता है और व्यावसायिक सेवाओं में दीर्घकालिक स्थिरता एवं रोजगार सृजन को चुनौती दे सकता है। 
    • मानव पूंजी विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता: AI की चुनौती का समाधान करने और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करने के लिये, मानव पूंजी विकास पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से बड़े, अच्छी तरह से कार्य करने वाले शहरों के समूहन प्रभावों का लाभ उठाने के लिये।

सेवा क्षेत्र को समर्थन देने वाली सरकारी पहलें:

भारत सरकार ने विभिन्न पहलों के माध्यम से सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें शामिल हैं:

  • डिजिटल सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये डिजिटल इंडिया अभियान
  • सेवा निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिये निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ
  • संभार-तंत्र, पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी ढाँचा विकास
  • कार्यबल क्षमताओं को बढ़ाने के लिये कौशल विकास पहल
  • पहुँच और विकास में सुधार के लिये स्वास्थ्य सेवा एवं पर्यटन में लक्षित प्रयास

सेवा क्षेत्र के निष्पादन का अवलोकन 

सेवा क्षेत्र में सकल मूल्य संवर्धन (GVA)

  • भारत के सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन का सारांश:
    • विकास:
      • पिछले दशक में मज़बूत वृद्धि, जो सालाना 6% वास्तविक वृद्धि से अधिक है (महामारी वर्ष वित्त वर्ष 2020-21 को छोड़कर)।
      • सेवा निर्यात वैश्विक बाज़ार (2022) का 4.4% है।
      • वित्त वर्ष 24 में 7.6% की अनुमानित वृद्धि (अनंतिम अनुमान)।
      • पंजीकृत कंपनियों की संख्या में सेवा क्षेत्र का सबसे अधिक हिस्सा बना हुआ है।
        • अकेले वित्त वर्ष 2023-24 में 1,85,312 नई कंपनियाँ पंजीकृत हुईं, जिनमें से 71% सेवा क्षेत्र की कंपनियां थीं।
    • सहायक संकेतक:
      •  GST संग्रह और ई-वे बिल (थोक और खुदरा व्यापार) दोनों में दोहरे अंकों की वृद्धि।
      • बढ़ा हुआ GST संग्रह (वित्त वर्ष 24 में 20.18 लाख करोड़ रुपए) मज़बूत घरेलू व्यापार का संकेत देता है।
    • चुनौतियाँ: व्यापार, होटल और परिवहन क्षेत्र महामारी-पूर्व स्तर पर पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं।
    • सकारात्मक संकेत: बैंक ऋण और जमा में वृद्धि जारी है (YoY मार्च 2024), जो मज़बूत वित्तीय सेवाओं का संकेत देता है।

क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) - सेवाएँ

  • मार्च 2024 में, सेवा PMI बढ़कर 61.2 हो गई, जो लगभग 14 वर्षों में इस क्षेत्र की सबसे महत्त्वपूर्ण बिक्री और व्यावसायिक गतिविधि विस्तार में से एक है।
  • वित्त वर्ष 2023-2024 में PMI सेवाओं का औसत पूरे वर्ष के लिये 60.3 रहा, जबकि वित्त वर्ष 2023 में यह 57.3 था।
  • अगस्त, 2021 से सेवा PMI 50 से ऊपर बनी हुई है, जिसका अर्थ है पिछले 35 महीनों से निरंतर विस्तार होना।

सेवा क्षेत्र में व्यापार

  • विकास और महत्त्व:
    • पिछले तीन दशकों में भारत के सेवा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात से आगे निकल गया है और वैश्विक निर्यात का एक बड़ा हिस्सा बन गया है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, सेवाओं के निर्यात ने भारत के कुल निर्यात का 44% हिस्सा बनाया, जिससे भारत सेवा निर्यात में वैश्विक स्तर पर 5वें स्थान पर रहा।
  • हालिया प्रदर्शन (वित्त वर्ष 2023-24):
    • वैश्विक व्यापार के कमज़ोर पड़ने से वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के सेवा निर्यात पर असर पड़ा, जिसमें वृद्धि एक वर्ष पहले 27.8 फीसदी से घटकर 4.8 फीसदी रह गई।
    • प्रमुख क्षेत्र:
      • कंप्यूटर और व्यावसायिक सेवाएँ: 73% हिस्सा, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 9.6% की वृद्धि।
      • यात्रा सेवाएँ: महामारी के बाद पर्यटन में सुधार के कारण उल्लेखनीय वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष 24.6%)।
      • परिवहन सेवाएँ: वैश्विक माल ढुलाई दरों में कमी के कारण गिरावट (वर्ष-दर-वर्ष 19.1%)।
    • परामर्श, इंजीनियरिंग और विज्ञापन जैसे क्षेत्रों द्वारा संचालित "अन्य व्यावसायिक सेवाओं" में वृद्धि।
    • वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के लिये भारत की बढ़ती लोकप्रियता ने सॉफ्टवेयर और व्यावसायिक सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा दिया है।
    • महामारी ने डिजिटल रूप से वितरित सेवाओं की ओर वैश्विक मांग में संरचनात्मक बदलाव को उत्प्रेरित किया है, जिससे इस बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ गई है (वर्ष 2023 में 6% बनाम 2019 में 4.4%)।
  • सेवा आयात: वैश्विक माल ढुलाई दरों में कमी के कारण वर्ष दर वर्ष (वित्त वर्ष 2023-24) 2.1% की कमी हुई।
  • समग्र प्रभाव: सेवा निर्यात में वृद्धि और आयात में गिरावट से भारत की शुद्ध सेवा प्राप्तियाँ (वित्त वर्ष 2023-24) में सुधार हुआ, जिससे चालू खाता घाटे को प्रबंधित करने में सहायता मिली।

सेवा क्षेत्र की गतिविधियों के लिये वित्तपोषण स्रोत

सेवा क्षेत्र घरेलू स्तर पर घरेलू बैंकों और पूंजी बाज़ारों से ऋण के माध्यम से तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) व बाहरी वाणिज्यिक उधार (ECB) के माध्यम से अपनी वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करता है। 

  • बैंक ऋण:
    • वित्त वर्ष 2023-2024 में सेवा क्षेत्र में ऋण प्रवाह में लगातार वृद्धि देखी गई।
    • अप्रैल 2023 से वर्ष-दर-वर्ष (YoY) वृद्धि दर प्रत्येक माह 20% से अधिक हो गई।
    • मार्च 2024 तक सेवा क्षेत्र का बकाया ऋण 45.9 लाख करोड़ रुपए था।
    • सेवा क्षेत्र के ऋण की वार्षिक वृद्धि 22.9% रही।
    • विमानन क्षेत्र में ऋण प्रवाह में सबसे अधिक 56% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई।
    • विमानन ऋण में यह वृद्धि विमान पट्टे पर लेने की बढ़ती हुई संख्या तथा मध्यम से दीर्घावधि में सकारात्मक वृद्धि परिदृश्य के कारण हुई।
  • बाह्य वित्तपोषण:
    • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा प्रकाशित विश्व निवेश रिपोर्ट (WIR) 2024 के अनुसार:
      • वर्ष 2023 के लिये  शीर्ष 20 मेज़बान अर्थव्यवस्थाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह के मामले में भारत 15वें स्थान पर है।
      • भारत अंतर्राष्ट्रीय परियोजना वित्त सौदों के लिये दूसरा सबसे बड़ा मेज़बान देश है।
      • ग्रीनफील्ड परियोजना घोषणाओं के मामले में भारत चौथे स्थान पर है।
    • वित्त वर्ष 2023-2024 में भारत के सेवा क्षेत्र में FDI इक्विटी प्रवाह में गिरावट देखी गई, जो भारत में समग्र FDI इक्विटी प्रवाह में गिरावट को दर्शाता है।
    • उच्च ब्याज दरें, भू-राजनीतिक संघर्ष, बढ़ी हुई वैश्विक अनिश्चितताएँ और घरेलू सोर्सिंग के पक्ष में बढ़ते संरक्षणवाद, इन सभी की इस क्षेत्र में FDI प्रवाह को कम करने में भूमिका है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में कुल बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) प्रवाह में सेवा क्षेत्र का योगदान 53% था।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में सेवा क्षेत्र को 14.9 बिलियन अमरीकी डॉलर का प्रवाह प्राप्त हुआ, जो वित्त वर्ष 2022-2023 में 23.3% की तुलना में 58.3% की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर्ज करता है।

प्रमुख सेवाएँ: क्षेत्रवार निष्पादन

भौतिक कनेक्टिविटी-आधारित सेवाएँ

  • परिवहन सेवाओं में व्यापक स्पेक्ट्रम शामिल है, जिसमें ट्रेनों, बसों, टैक्सियों और एयरलाइनों के माध्यम से यात्री परिवहन से लेकर शिपिंग कंपनियों, फ्रेट फॉरवर्डर्स और कूरियर सेवाओं द्वारा सुगम माल परिवहन
  • शामिल है। वाहन रखरखाव और विमानपत्तनों की ग्राउंड हैंडलिंग जैसी सहायक सेवाएँ इन परिवहन पेशकशों को औरभी बेहतर बनाती हैं। आपूर्ति शृंखलाओं को अनुकूलित करने में संभार-तंत्र सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • सड़क मार्ग:
    • कार्गो परिवहन: भारत के कार्गो का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सड़क मार्ग से ले जाया जाता है।
    • टोल डिजिटलीकरण: टोल प्लाजा पर प्रतीक्षा समय को काफी हद तक कम कर दिया है, जो वर्ष 2014 में 734 सेकंड से घटकर वर्ष 2024 में 47 सेकंड रह गया है।
    • भविष्य की टोलिंग दक्षता: स्वचालित नंबर प्लेट पहचान और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के माध्यम से फ्री फ्लो टोलिंग जैसी पहलों ने टोलिंग दक्षता को बढ़ाया है। 
    • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने राष्ट्रीय राजमार्गों (NH) पर सड़क सुरक्षा मानकों को बढ़ाने के लिये एक व्यापक '4E' रणनीति - इंजीनियरिंग (सड़कें और वाहन), एनफोर्समेंट (प्रवर्तन), इमरजेंसी केयर (आपातकालीन देखभाल) और एजुकेशन (शिक्षा) भी तैयार की है।
    • नेटवर्क योजना: सरकार ने नेटवर्क नियोजन और संकुलता के अनुमानों के लिये पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान पोर्टल का उपयोग किया है।
    • बड़े डेटा का उपयोग: परिवहन मांग का अनुमान लगाने और रसद में सुधार करने के लिये  ई-वेबिल व फास्टैग डेटा का लाभ उठाना। 
    • हाई-स्पीड कॉरिडोर: एक्सप्रेसवे और आर्थिक गलियारों के विकास से यात्रा का समय काफी कम हो रहा है तथा इस प्रकार आर्थिक विकास बढ़ रहा है।
    • चुनौतियाँ: भारत में सड़क सेवाओं को राजमार्गों के किनारे निरंतर रिबन विकास और डिजिटल भूमि अभिलेखों की धीमी गति जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे परियोजना के निष्पादन में देरी होती है।
    • सरकारी कार्रवाई: राष्ट्रीय राजमार्ग प्रवर्तन के लिये समर्पित ट्रैफिक पुलिस व्यवस्था लागू करना और सिंगल-विंडो क्लीयरेंस को अपनाना भारत के परिवहन नेटवर्क में सड़क सेवाओं की दक्षता एवं प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • भारतीय रेलवे:
    • भारतीय रेलवे ने पिछले वर्ष की तुलना में यात्री यातायात (वित्त वर्ष 2023-24) में 5.2% की वृद्धि देखी।
    • उन्होंने 158.8 करोड़ टन माल ढुलाई (वित्त वर्ष 2023-24) की, जो पिछले वर्ष (कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड को छोड़कर) से 5.3% की वृद्धि है।
    • मालभाड़ा लदानों ने वित्त वर्ष 2019 -20 से वित्त वर्ष 2023-24 तक 7.1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) हासिल की।

  • पत्तन, जलमार्ग और पोत परिवहन:
    • विकेंद्रीकरण और एकीकरण: निर्णय लेने के विकेंद्रीकरण और पेशेवर विशेषज्ञता के एकीकरण से बंदरगाह प्रबंधन में सुधार हुआ है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल को अपनाने से बंदरगाह की प्रभावशीलता मज़बूत हुई है।
  • सागर सेतु एप्लीकेशन:
    • दैनिक पोत और कार्गो संचालन को सुव्यवस्थित करता है।
    • सागर सेतु भारत के सभी 13 प्रमुख बंदरगाहों के साथ-साथ 22 गैर-प्रमुख बंदरगाहों और 28 निजी टर्मिनलों के साथ भी एकीकृत है।
    • इसका उद्देश्य समुद्री गतिविधियों हेतु एक केंद्रीय केंद्र बनना है।
  • नदी क्रूज़ पर्यटन:
    • राष्ट्रीय जलमार्गों पर बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे मालवाहक और पर्यटक जहाज़ों दोनों को लाभ होगा। 
    • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान क्रूज यात्राओं में 100 प्रतिशत की आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है।
  • लाइटहाउस विकास:
    • लाइटहाउस भी महत्त्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण के रूप में उभर रहे हैं।
    • पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये, समुद्र तट के किनारे 75 लाइटहाउसों और संग्रहालयों के निर्माण की योजना पर कार्य चल रहा है।

  • वायुमार्ग:
    • बाज़ार स्थिति: भारत तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है और वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले प्रमुख विमानन बाजारों में से एक है।
    • यात्रियों की संख्या:
      • भारतीय हवाई अड्डों पर कुल हवाई यात्रियों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 15% की वृद्धि हुई। 
      • घरेलू हवाई यात्री यातायात में पिछले वर्ष की तुलना में 13% की वृद्धि हुई। 
      • अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्री यातायात में 22% की वृद्धि हुई।
    • एयर कार्गो: वित्त वर्ष 2023-24 में 7% की वृद्धि हुई।
    • क्षेत्र की संभावनाएँ:
      • बढ़ती मांग, आर्थिक गतिविधि, पर्यटन, उच्च आय, जनसांख्यिकी और विमानन बुनियादी ढाँचे द्वारा प्रेरित।
      • सरकारी सहायता में 21 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों और नए टर्मिनल भवनों की मंजूरी शामिल है।
    • क्षेत्रीय संपर्क: 'उड़ान' योजना ने 85 कम सुविधा वाले हवाई अड्डों को जोड़ते हुए 579 मार्गों पर 141 लाख से अधिक घरेलू यात्रियों के लिये यात्रा की सुविधा प्रदान की है।
    • प्रौद्योगिकी: डिजी यात्रा कार्यक्रम से 2.5 करोड़ से अधिक यात्री लाभान्वित होंगे और इसे सभी हवाई अड्डों पर चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
    • भविष्य की संभावनाएँ:
      • रखरखाव, मरम्मत और प्रचालन (MRO) तथा ड्रोन उद्योग में वृद्धि।
      • भारत का लक्ष्य उदार नियमों और प्रोत्साहनों के साथ वर्ष 2030 तक वैश्विक ड्रोन हब बनना है।
      • गिफ्रट सिटी में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) के प्रोत्साहन ने विमानन पट्टाकरण और वित्तपोषण की सुविधा प्रदान की है, जिसका उदाहरण एयर इंडिया द्वारा हाल ही में विमान अधिग्रहण है। 
  • पर्यटन:
    • वैश्विक रैंकिंग: विश्व आर्थिक मंच के यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (TTDI) 2024 में भारत 39वें स्थान पर है।
    • पर्यटक आगमन: वर्ष 2023 में 92 लाख से अधिक विदेशी पर्यटकों का आगमन हुआ, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 43.5% की वृद्धि थी।
    • विदेशी मुद्रा आय: वर्ष 2023 में पर्यटन से 2.3 लाख करोड़ रुपए से अधिक की आय हुई, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 65.7% अधिक है।
  • अतिथ्य उद्योग:
    • औसत दैनिक दर 6704 रुपए से बढ़कर 7616 रुपए हो गई (सालाना आधार पर 13.6% की वृद्धि)। 
    • होटल व्यवसायी अतिथि अनुभव को मूर्तरूप देने और परिचालन क्षमता में सुधार करने के लिये प्रौद्योगिकी का तेज़ी से लाभ उठा रहे हैं।
    • नवीन रणनीतियों में अतिरिक्त राजस्व के लिये बाहरी ब्रांडों को पट्टे पर देना या उनका प्रबंधन करना शामिल है।
  • सरकारी पहल:
    • प्रसाद योजना: 29 नए पर्यटन स्थलों की पहचान की गई और 12 का उद्घाटन किया गया।
    • स्वदेश दर्शन 2.0: एकीकृत पर्यटन विकास के लिये 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 55 स्थलों को लक्षित किया गया।
    • पहले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) पर्यटन विशेषज्ञ कार्य समूह की अध्यक्षता की।
  • डिजिटल पहल:
    • ई-मार्केटप्लेस: वेब और मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से पर्यटकों और प्रमाणित पर्यटक सुविधा-दाताओं एवं मार्गदर्शकों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिये डिजाइन किया गया है।
    • निधि पोर्टल: राष्ट्रीय एकीकृत आतिथ्य उद्योग डेटाबेस (NIDHI) पोर्टल में पूरे देश में आवास इकाइयों को पंजीकृत करने पर सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। 
    • साथी: साथी (सिस्टम फॉर असेसमेंट, अवेयरनेस एंड ट्रेनिंग फॉर हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री) है, जिसका उद्देश्य सरकारी कोविड नियमों पर आतिथ्य उद्योग को जागरूक करके वायरस के आगे के संचरण को रोकना है।
  • रियल एस्टेट:
    • आर्थिक योगदान: रियल एस्टेट और आवासों का स्वामित्व कुल GVA का 7% से अधिक है, जो उनकी महत्त्वपूर्ण आर्थिक भूमिका को दर्शाता है।
    • सरकारी पहल:
      • PMAY-U: शहरी लाभार्थियों के लिये 1.2 करोड़ से अधिक घरों को मंजूरी दी गई।
      • नीति सुधार: वस्तु एवं सेवा कर, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता।
      • किफायती आवास: किफायती आवास निधि और SWAMIH निवेश निधि से सहायता।
      • क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना: 49,460.1 करोड़ रुपए जारी, 21.1 लाख से अधिक परिवारों को लाभ।
      • शहरी अवसंरचना विकास निधि: शहरी अवसंरचना में सुधार के लिये 10,000 करोड़ रुपए की प्रारंभिक निधि।
    • भविष्य का दृष्टिकोण:
      • शहरीकरण: वर्ष 2050 तक भारत की आधी आबादी शहरी निवासियों की होगी।
      • डिजिटलीकरण: भूमि लेनदेन में बेहतर पारदर्शिता और दक्षता।
      • निर्माण अनुमोदन: प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये एकल-खिड़की मंजूरी प्रणाली।
    • चुनौतियाँ:
      • रुकी हुई परियोजनाएँ: लगभग 4.1 लाख इकाइयाँ प्रभावित हुईं, जिनकी कीमत 4.1 लाख करोड़ रुपए थी।
      • सिफारिशें: RERA पंजीकरण, राज्य सरकार के पुनर्वास पैकेज और वित्तपोषण विकल्प शामिल करना।
    • आवास ऋण बाज़ार:
      • RMBS प्लेटफॉर्म: NHB द्वारा दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित करने और वित्तपोषण सीमाओं को दूर करने के लिये प्रस्तुत किया गया।
    • स्थिरता और प्रौद्योगिकी: हरित निर्माण प्रथाओं, ऊर्जा-कुशल डिज़ाइनों, स्मार्ट घरों और डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि पर ध्यान केंद्रित करना।

RERA किस प्रकार रियल एस्टेट को नया स्वरूप दे रहा है?

  • भू-संपदा (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 2016 (RERA) को भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र में बहुत जरूरी सुधार लाने के लिये अधिनियमित किया गया था। रेरा का मुख्य उद्देश्य अधिक पारदर्शिता, नागरिक-केंद्रितता, जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन को प्रोत्साहित करना है, जिससे घर खरीदारों को सशक्त बनाया जा सके तथा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिले। सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों (UT) ने RERA के तहत नियमों को अधिसूचित किया है, सिवाय नागालैंड जो नियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया में है।
  • RERA के अधिनियमन के बाद, भारत वर्ष 2022 में वैश्विक रियल एस्टेट पारदर्शिता सूचकांक में 36वें स्थान पर था।

RERA के कार्यान्वयन द्वारा प्रमुख उपाय और परिणाम

  • विकासकर्ता की जवाबदेही:
    • RERA के अनुसार "बिक्री के लिये समझौता" अनिवार्य है तथा लेआउट में परिवर्तन के लिये घर खरीदने वालों की दो-तिहाई सहमति आवश्यक है।
      • डेवलपर्स अक्सर वादा किये गए फीचर्स, लेआउट और सुविधाएँ न देकर घर खरीदारों को गुमराह करते हैं।
    • RERA में दायित्व उल्लंघन के लिये धन वापसी, क्षतिपूर्ति और दंड के प्रावधान निर्दिष्ट किये  गए हैं। 
  • निष्पक्ष लेनदेन:
    • RERA के अनुसार एकत्रित धनराशि का 70% परियोजना निर्माण और भूमि लागत के लिये  एक अलग खाते में रखा जाना अनिवार्य है।
      • बिल्डर्स अक्सर पूरा भुगतान करने के बावजूद फ्लैट देने में देरी करते हैं या असफल हो जाते हैं।
  • प्रकटीकरण और अनिवार्य पंजीकरण:
    • RERA में परियोजना योजनाओं, लॉन्च तिथियों, डिलीवरी समयसीमा, विनिर्देशों और सुविधाओं के विषय में खुलासा अनिवार्य किया गया है।
    • केवल RERA-पंजीकृत परियोजनाएँ (एक निश्चित आकार सीमा से ऊपर) ही शुरू की जा सकती हैं, जिससे गलतबयानी को रोका जा सके।
      • 1 जुलाई, 2024 तक: 130,000 से अधिक रियल एस्टेट परियोजनाएँ और 88,000 एजेंट RERA के तहत पंजीकृत हैं।
  • त्वरित विवाद समाधान:
    • RERA डेवलपर्स और घर खरीदारों के बीच विवादों के तेज़ी से निपटान के लिये एक तंत्र स्थापित करता है।
      • 1 जुलाई, 2024 तक: सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण स्थापित कर लिये हैं।
      • 124,000 से अधिक शिकायतों का समाधान पहले ही किया जा चुका है।

सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ, तकनीकी स्टार्ट-अप और वैश्विक क्षमता केंद्र

  • IT और कंप्यूटर से संबंधित सेवाएँ तेज़ी से महत्त्वपूर्ण हो गई हैं, GVA में उनकी हिस्सेदारी 3.2% (वित्त वर्ष 2012-13) से बढ़कर 5.9% (वित्त वर्ष 2022-23) हो गई है।
  • महामारी के बावजूद वित्त वर्ष2020 -21 में 10.4% की वास्तविक वृद्धि दर हासिल की गई, जो निम्नलिखित कारणों से हुई:
  • महामारी के कारण प्रौद्योगिकी समाधानों की मांग।
  • निर्यात आय में योगदान।
  • GCC और तकनीकी स्टार्टअप का विस्तार।

वैश्विक क्षमता केंद्र

  • GCC का विकास:
    • वृद्धि: वित्त वर्ष 2014-2015 में 1,000 से अधिक केंद्रों से वित्त वर्ष 2022-23 तक 2,740 से अधिक इकाइयों के साथ 1,580 से अधिक केंद्रों तक।
    • रोज़गार: वित्त वर्ष 2022-23 में 16.6 लाख से अधिक हो गया।
      • क्षेत्र पर ध्यान: सॉफ्टवेयर, इंटरनेट और बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ एवं बीमा (BFSI) क्षेत्र सामूहिक रूप से भारत की IT, GCC प्रतिभा का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा हैं।
    • राजस्व वृद्धि: वित्त वर्ष 2014-2015 में 19.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-2023 में 11.4% की CAGR के साथ 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई।
  • विकास के चालक:
    • ER&D: रणनीतिक साझेदारी, डिजिटलीकरण और क्लाउड प्रौद्योगिकी।
    • IT सेवाएँ: एप्लिकेशन आधुनिकीकरण, क्लाउड माइग्रेशन, प्लेटफॉर्म विकास और साइबर सुरक्षा की बढ़ती मांग।
    • BPM: बुद्धिमान संचालन और डेटा-संचालित समाधानों में बदलाव।
  • प्रतिभा की कमी:
    • मांग: वैश्विक स्तर पर IT, डेटा विज्ञान और साइबर सुरक्षा भूमिकाओं की उच्च मांग।
    • कमी: 76% IT नियोक्ताओं ने वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही के लिये कुशल प्रतिभा खोजने में कठिनाई की सूचना दी।
  • विशेषज्ञता: ब्लॉकचेन, AI, मशीन लर्निंग, IoT, साइबर सुरक्षा, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, AR, VR, 3D प्रिंटिंग, वेब और मोबाइल डेवलपमेंट।
  • प्रतिभा अंतर को पाटने की पहल:
    • फ्यूचर स्किल्स प्राइम: IT पेशेवरों को अपस्किलिंग एवं रीस्किलिंग के लिये MeitY और NASSCOM की एक संयुक्त पहल।
    • डिजिटल स्किलिंग प्रोग्राम: इसका उद्देश्य उभरती प्रौद्योगिकियों में एक करोड़ छात्रों को कौशल, रीस्किल और अपस्किल प्रदान करना है।
    • PMKVY 4.0: उद्योग 4.0, AI, रोबोटिक्स, IoT और ड्रोन में कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत में प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप

प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप में वृद्धि और रुझान

  • विकास और वर्तमान स्थिति:
    • उल्लेखनीय वृद्धि: वर्ष 2014 में 2,000 स्टार्टअप से वर्ष 2023 में 31,000 तक (नैसकॉम डेटा)।
      • अकेले वर्ष 2023 में 1,000 नए स्टार्टअप स्थापित होंगे।
    • विश्व स्तर पर तीसरा स्थान (नैसकॉम)।
    • ताकत: स्टार्टअप्स, यूनिकॉर्न और स्केलेबिलिटी का बड़ा समूह।
    • वैश्विक AI प्रतिभा का 16% भारत को नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करता है।
  • वर्ष 2023 में स्टार्ट-अप के लिये शीर्ष क्षेत्र:
    • एंटरप्राइजटेक: 12%
    • BFSI: 10%
    • विज्ञापन और विपणन: 7%
    • रिटेलटेक: 6%
    • मीडिया और मनोरंजन: 5%
    • कंज्यूमरटेक: 5%
    • पेशेवर सेवाएँ: 4%
    • गेमिंग: 4%
  • स्टार्ट-अप विकास को प्रेरित करने वाले कारक:
    • उपभोग पैटर्न में बदलाव: इंटरनेट की बढ़ती पहुँच ने रिटेल टेक स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया।
    • BFSI सेक्टर में उछाल: वर्ष 2016 से UPI और अन्य नवाचारों की शुरूआत।
    • क्लाउड सॉल्यूशंस की मांग: वर्ष 2014 से 21 यूनिकॉर्न सहित SaaS स्टार्ट-अप में वृद्धि।
    • महामारी का प्रभाव: टेली-कंसल्टिंग एवं रिमोट लर्निंग की आवश्यकता के कारण हेल्थटेक और EdTech में त्वरित वृद्धि।

सरकारी पहल और समर्थन

  • स्टार्ट-अप इंडिया पहल:
    • समर्थन: भारतीय स्टार्ट-अप को वैश्विक पारिस्थितिकी प्रणालियों से जोड़ता है तथा ज्ञान के आदान-प्रदान व सीमा पार कार्यक्रमों के लिये द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों में शामिल करता है।
  • डीप टेक इकोसिस्टम:
    • मान्यता: 1.25 लाख से अधिक DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप, जिनमें AI, IoT, रोबोटिक्स और नैनोटेक्नोलॉजी में 13,000 स्टार्ट-अप शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्ट-अप नीति (NDTSP):
      • फोकस: डीप टेक से जुड़ी बाधाओं जैसे वित्तपोषण, संसाधन और जोखिम को संबोधित करना।
      • उपाय: इसमें वित्तपोषण तंत्र, जागरूकता कार्यक्रम, केंद्रीकृत मिशन कार्यालय, IP संरक्षण और निगरानी तंत्र शामिल हैं।
  • पूंजी प्रवाह समर्थन:
    • स्टार्ट-अप के लिये फंड ऑफ फंड्स: विभिन्न चरणों में स्टार्ट-अप को समर्थन देने और विदेशी पूंजी पर निर्भरता कम करने के लिये 10,000 करोड़ रुपए की निधि।
    • स्टार्ट-अप इंडिया सीड फंड योजना: अवधारणा के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये वर्ष 2021 में शुरू की गई।

दूरसंचार

  • टेलीडेंसिटी और वायरलेस कनेक्टिविटी
    • टेलीघनत्व में वृद्धि: मार्च 2014 में 75.2% से मार्च 2024 में 85.7% तक।
    • वायरलेस कनेक्शन: मार्च 2024 के अंत तक वायरलेस टेलीफोन कनेक्शनों की संख्या 116.5 करोड़ तक पहुँच गई।
    • इंटरनेट सब्सक्राइबर: मार्च 2014 में 25.1 करोड़ से बढ़कर मार्च 2024 में 95.4 करोड़ हो गए, जिसमें 91.4 करोड़ वायरलेस फोन के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं।
    • इंटरनेट घनत्व: मार्च 2024 में बढ़कर 68.2% हो गया।
    • डेटा लागत और उपयोग: डेटा की लागत में उल्लेखनीय गिरावट, जिससे प्रति ग्राहक औसत वायरलेस डेटा उपयोग में सुधार हुआ।
  • 5G और 6G की प्रगति
    • 5G लॉन्च: पहली बार अक्तूबर 2022 में लॉन्च किया जाएगा, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते 5G नेटवर्क में से एक बन जाएगा।
      • अंतर्राष्ट्रीय रैंक: मार्च 2024 तक मोबाइल ब्रॉडबैंड स्पीड में 118 से 15 तक सुधार।
      • 5G टेस्ट बेड: शिक्षा और उद्योग में अनुसंधान एवं विकास टीमों के लिये एंड-टू-एंड परीक्षण सुविधाएँ प्रदान करता है।
      • भारत 5G पोर्टल: दूरसंचार क्षेत्र में नवाचार, सहयोग और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ावा देता है।
    • 6G पहल:
      • भारत 6G विज़न दस्तावेज़: 6G तकनीकों को विकसित करने और लागू करने के लिये मार्च 2023 में लॉन्च किया गया।
      • भारत 6G मिशन: चरणबद्ध उद्देश्यों को निर्धारित करने के लिये स्थापित किया गया और इसमें एक शीर्ष परिषद शामिल है।
      • भारत 6G गठबंधन: जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया, यह प्लेटफॉर्म भारत को किफायती 5G, 6G और भविष्य के दूरसंचार समाधानों के अग्रणी वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने के लिये सार्वजनिक व निजी संस्थाओं, शिक्षाविदों एवं अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
  • भारत नेट प्रोग्राम 
    • उद्देश्य: भारत में सभी ग्राम पंचायतों (GP) को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना।
    • उपलब्धियाँ: 31 मार्च 2024 तक, चरण I और II में 2,06,709 GP को जोड़ने के लिये  6,83,175 किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) बिछाई गई।
  • विनियामक और संरचनात्मक सुधार
    • स्पेक्ट्रम सुधार: इसमें स्पेक्ट्रम साझाकरण और व्यापार, युक्तिसंगत स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क शामिल हैं।
    • FDI नीति: सुरक्षा उपायों के अधीन, स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है।
    • दूरसंचार अधिनियम 2023: दूरसंचार सेवाओं और नेटवर्क, स्पेक्ट्रम के आवंटन आदि से संबंधित कानूनों को समेकित करता है।
  • वित्तपोषण और कौशल विकास
    • R&D फंडिंग: सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (USOF) से वार्षिक संग्रह का 5% दूरसंचार क्षेत्र के R&D के लिये आवंटित किया जाएगा।
    • दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि: वर्ष 2022 में तैयार की गई, स्टार्ट-अप, MSME, शिक्षाविदों और उद्योग से भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
    • शैक्षणिक संरेखण: इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में नए पाठ्यक्रम उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद (NCVET) द्वारा अनुमोदित 5G और 5G-सक्षम प्रौद्योगिकी से संबंधित कौशल पाठ्यक्रम।
      • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने संकाय विकास कार्यक्रमों में 5G को फोकस क्षेत्र के रूप में शामिल किया है।
  • नागरिक-केंद्रित पहल
    • संचार साथी पोर्टल: मोबाइल ग्राहकों को सशक्त बनाने, उनकी सुरक्षा को सुदृढ़ करने और जागरूकता बढ़ाने के लिये मई 2023 में लॉन्च किया गया था।
      • चक्षु सुविधा: मार्च 2024 में शुरू की गई चक्षु सुविधा भी शामिल है, जिसका उपयोग संदिग्ध धोखाधड़ी संचार की रिपोर्ट करने के लिये किया जाता है। 

ई-कॉमर्स

  • बाज़ार का आकार और आधुनिक खुदरा प्रवेश
    • अनुमानित वृद्धि: वर्ष 2030 तक 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है। 
    • आधुनिक खुदरा हिस्सा: वर्तमान में बड़े पैमाने पर असंगठित है, लेकिन आधुनिक खुदरा (ई-कॉमर्स सहित) का हिस्सा अगले 3 से 5 वर्षों के भीतर कुल खुदरा बाज़ार का 30-35% तक बढ़ने का अनुमान है।
  • ई-कॉमर्स विकास के प्रमुख चालक
    • तकनीकी उन्नति: प्रौद्योगिकी में नवाचारों ने ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के विकास को सुविधाजनक बनाया है। 
    • नए युग के व्यवसाय मॉडल: व्यवसाय मॉडल के विकास ने बाज़ार के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • सरकारी पहल:
      • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: डिजिटल बुनियादी ढाँचे और सेवाओं को बढ़ावा देना।
      • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI): डिजिटल लेनदेन को सुव्यवस्थित करना।
      • एक ज़िला - एक उत्पाद (ODOP) पहल: ज़िला-स्तरीय विशेषज्ञता और ऑनलाइन मार्केटिंग को प्रोत्साहित करना।
      • डिजिटल कॉमर्स के लिये खुला नेटवर्क (ONDC): डिजिटल कॉमर्स की पहुँच को बढ़ाना।
      • नई विदेश व्यापार नीति: व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना।
      • FDI सीमा में छूट: विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
      • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) (संशोधन) नियम 2021: उपभोक्ता अधिकारों को मज़बूत करना।
  • पारंपरिक खुदरा व्यापार की तुलना में ई-कॉमर्स के लाभ
    • विविध लाभ: ई-कॉमर्स के तेज़ी से विस्तार के केंद्र में पारंपरिक ब्रिक-और-मोर्टार बाज़ारों की तुलना में ई-मार्केटप्लेस द्वारा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को प्रदान किये जाने वाले लाभों की विविधता है।
  • ई-कॉमर्स विकास के समक्ष चुनौतियाँ
    • अपर्याप्त कौशल: कई विक्रेताओं के पास ऑनलाइन बिक्री के लिये आवश्यक कौशल की कमी होती है, जैसे कैटलॉगिंग। 
    • डेटा गोपनीयता और ऑनलाइन धोखाधड़ी: ये मुद्दे महत्त्वपूर्ण बाधाएँ हैं जो सुरक्षित ई-कॉमर्स प्रथाओं पर उपयोगकर्त्ता शिक्षा की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
  • विनियामक ढाँचा और उपभोक्ता संरक्षण
    • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020: ई-कॉमर्स में अनुचित व्यापार प्रथाओं से उपभोक्ताओं को बचाने के लिये बनाया गया है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: डेटा संरक्षण, उपभोक्ता जानकारी की सुरक्षा के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।

ONDC- डिजिटल वाणिज्य का लोकतंत्रीकरण

  • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग की एक अग्रणी पहल है, जिसका उद्देश्य डिजिटल कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करना तथा छोटे व्यवसायों को समान अवसर प्रदान करके डिजिटल कॉमर्स के लाभों का फायदा उठाने में सक्षम बनाना है। 

ONDC भारत में छोटे व्यवसायों को कई तरीकों से सहायता कर रहा है:

  • बिक्री में वृद्धि और व्यापक पहुँच: श्री विद्या हैंडलूम्स और कल्पनील नेचुरल्स जैसे व्यवसायों ने ONDC में शामिल होने के बाद अपने ग्राहक आधार एवं राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है।
  • कम लागत: अन्य प्लेटफार्मों की तुलना में ONDC की कम कमीशन दरें छोटे व्यवसायों के लिये लाभप्रदता में सुधार करती हैं।
  • ग्रामीण उद्यमियों को समर्थन: ONDC ऑनलाइन बिक्री की सुविधा और विपणन सहायता प्रदान करके महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) को सशक्त बनाता है।
    • मन्न देशी फाउंडेशन और कुदुम्बश्री जैसे 76 स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से दस लाख से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया गया।
  • सेवा प्रदाताओं के लिये बेहतर मार्जिन: नम्मा यात्री जैसे राइड-हेलिंग प्लेटफॉर्म ONDC के सदस्यता मॉडल का उपयोग करके ग्राहकों को कम किराए की पेशकश कर सकते हैं, जबकि ड्राइवर की कमाई उच्च बनी रह सकती है।
  • किसान भागीदारी: ONDC कृषि उत्पादों के लिये एक नया बाज़ार बना रहा है। लगभग 5,700 किसान उत्पादक संगठन (FPO) इस प्लेटफॉर्म से जुड़ चुके हैं और पिछली तिमाही में ही 23,000 से ज़्यादा लेन-देन कर चुके हैं। इससे किसान सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ सकते हैं और संभावित रूप से ज़्यादा आय अर्जित कर सकते हैं।
    • एकीकरण: ONDC राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) और लघु कृषक कृषि-व्यवसाय संघ (SFAC) के डिजिटल अनुप्रयोगों जैसी मौजूदा कृषि पहलों के साथ भी एकीकरण कर रहा है। इससे भारत में ऑनलाइन कृषि व्यापार के लिये एक अधिक एकीकृत प्रणाली बनती है।

चुनौतियाँ और अवसर

  • कौशल एवं कार्यबल विकास
    • चुनौती: सेवा क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे डिजिटलीकरण के कारण तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये कुशल कार्यबल की आवश्यकता है। हालाँकि, प्रासंगिक डिजिटल और उच्च तकनीक कौशल वाले श्रमिकों की उपलब्धता में कमी है।
    • अवसर: सरकार कौशल भारत और राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल विकास पहलों पर ध्यान केंद्रित कर रही है ताकि कार्यबल को आवश्यक कौशल से लैस किया जा सके। उद्योग के सहयोग से इन कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल उन्नयन, भारत को निम्नलिखित क्षेत्रों में एक उच्च-मूल्य भागीदार के रूप में स्थापित कर सकता है:  
      • साइबर सुरक्षा
      • उद्यम प्रबंधन
      • वित्तीय जोखिम प्रबंधन
      • बीमा
  • बुनियादी ढाँचा और संभार-तंत्र 
    • चुनौती: आर्थिक गतिविधि के लिये संभार-तंत्र और परिवहन सेवाओं के महत्त्व को पहचानते हुए, बुनियादी ढाँचे की बाधाओं, संभार-तंत्र लागत और विनियामक अनुपालन को कम करने के लिये कई पहल की गई हैं। 
    • अवसर: इन मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से कई पहल की गई हैं, जिनका ध्यान इस पर है:
    • बढ़ी हुई सेवाएँ: बेहतर बंदरगाह संचालन और अंतर्देशीय जलमार्गों के लिये भारत की व्यापक तटरेखा तथा नदी नेटवर्क का लाभ उठाना।
      • उदाहरण: केरल द्वारा कोच्चि जल मेट्रो पर्यटन, वाणिज्य और परिवहन के लिये अपने बैकवाटर का सफल उपयोग करने से 33,000 द्वीपवासियों को लाभ मिलने की उम्मीद है, जो अंतर्देशीय जलमार्गों की क्षमता को रेखांकित करता है।
      •  वैश्विक बेंचमार्क: नीदरलैंड में यूरोप के अंतर्देशीय जलमार्गों का सबसे घना नेटवर्क है, जो लगभग 6,000 किलोमीटर की नदियों और नहरों को कवर करता है। ये जलमार्ग जल निकासी और नेविगेशन सहित विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
    • राष्ट्रव्यापी अपनाना: पूरे देश में इसी प्रकार की रणनीति अपनाने से भारत की अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली को बढ़ावा मिल सकता है, सतत् विकास को बढ़ावा मिल सकता है तथा भीडभाड़ कम हो सकती है।
  • वित्त तक पहुँच
    • चुनौती: वित्त तक पहुँच पाना मुश्किल हो सकता है, विशेषकर सेवा क्षेत्र में छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) के लिये।
    • अवसर: मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया जैसी पहलों का उद्देश्य ऋण की सुलभता को आसान बनाना है। अन्य उपायों में शामिल हैं:
      • ऋण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: ऋण प्रक्रियाओं को और अधिक कुशल बनाना।
      • ऋण गारंटी योजनाओं का विस्तार करना: अधिक व्यापक सहायता प्रदान करने के लिये इन योजनाओं की पहुँच बढ़ाना।
      • वैकल्पिक ऋण मूल्यांकन विधियाँ: ऋण मूल्यांकन के लिये नई विधियों का आविष्कार करना।
      • आपूर्ति शृंखला वित्तपोषण: नवीन वित्तपोषण विकल्पों का विकास करना।
      • परियोजना दस्तावेज़ीकरण सहायता: सरकारें परियोजना दस्तावेज़ीकरण में सहायता करने और परियोजना की बैंकिंग क्षमता में सुधार करने के लिये एजेंसियों की स्थापना कर सकती हैं।
  • विनियामक परिदृश्य
    • चुनौती: सेवा क्षेत्र में विनियामक परिदृश्य जटिल रहा है। अवसर: निम्नलिखित पहलों के साथ सकारात्मक परिवर्तन चल रहे हैं:
      • GST सरलीकरण: कर प्रक्रियाओं को और अधिक सरल बनाना।
      • स्टार्ट-अप इंडिया: नए व्यवसायों के लिये एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देना।
      • क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ: जैसे कि रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम।
      • और अधिक सरलीकरण: निम्नलिखित के माध्यम से प्रक्रियात्मक सरलीकरण को बढ़ाना:
        • एकल खिड़की प्रणाली
        • सुव्यवस्थित कानूनी प्रावधान
        • सभी प्रशासनिक स्तरों पर सरकारी प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण
  • डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा
    • चुनौती: सेवाओं के बढ़ते डिजिटलीकरण से डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • अवसर: सरकार उपभोक्ता डेटा की सुरक्षा और साइबर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने के लिये डेटा सुरक्षा कानूनों तथा साइबर सुरक्षा नीतियों का नेतृत्व कर रही है। प्रमुख कार्यवाहियाँ इस प्रकार हैं:
      • मज़बूत सुरक्षा उपायों को अपनाना: सुनिश्चित करना कि मज़बूत सुरक्षा प्रथाएँ लागू हों।
      • गोपनीयता विनियमों का अनुपालन: डेटा सुरक्षा कानूनों का पालन करना।
      • सुरक्षा प्रौद्योगिकियों में नवाचार: सुरक्षा समाधानों में प्रगति को बढ़ावा देना।

आगे की राह

  • तकनीकी प्रगति का लाभ उठाएँ: ब्लॉकचेन, AI, मशीन लर्निंग, IoT, साइबर सुरक्षा, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, संवर्धित वास्तविकता, आभासी वास्तविकता, 3D प्रिंटिंग और वेब/मोबाइल विकास जैसी उभरती हुई तकनीकों में निवेश करना तथा  उन्हें अपनाना जारी रखना चाहिये। इससे न केवल घरेलू सेवा वितरण में सुधार होगा बल्कि भारत वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी भी बना रहेगा।
  • कौशल विकास पर ध्यान देना: कार्यबल को उच्च मांग वाले क्षेत्रों में कुशल बनाने के लिये मज़बूत कौशल कार्यक्रम लागू करना चाहिये। संज्ञानात्मक कौशल, डिजिटल साक्षरता और नवीनतम तकनीकों में दक्षता पर ज़ोर दें ताकि उभरते रोज़गार की मांगों को पूरा किया जा सके और AI उन्नति के कारण सेवा निर्यात वृद्धि में संभावित मंदी को कम किया जा सके।
  • सेवा निर्यात में विविधता लाना और उसे मज़बूत बनाना: पारंपरिक सॉफ्टवेयर सेवाओं से परे सेवा निर्यात की सीमा का विस्तार करना जारी रखना, ताकि इसमें मानव संसाधन, कानूनी और डिजाइन सेवाएँ शामिल हों। यह विविधीकरण वैश्विक मांग के अनुरूप है और अधिक लचीला निर्यात क्षेत्र बनाने में सहायता करता है।
  • पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देना: रोज़गार सृजन की इसकी क्षमता को देखते हुए, पर्यटन क्षेत्र को लक्षित नीतिगत ध्यान मिलना चाहिये। इस क्षमता को अनलॉक करने तथा स्थायी रोज़गार सृजन के लिये सरकार और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
  • आर्थिक अनिश्चितताओं का समाधान: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और कमोडिटी मूल्य अस्थिरता के कारण इनपुट लागत तथा मांग में उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने के लिये रणनीति विकसित करनी चाहिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सकारात्मक मांग प्रवृत्तियों को बनाए रखने और प्रतिस्पर्धी स्थिति को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • स्टार्ट-अप में नवाचार को बढ़ावा देना: विनिर्माण और अन्य सेवा क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने वाले प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप को समर्थन और बढ़ावा देना चाहिये। गहन प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ उठाना और ऋण और संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना उनके विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

  अध्याय 12 - अवसंरचना: संभावित विकास को प्रोत्साहन  

एक लचीला, विश्व स्तरीय अवसंरचना-भौतिक, सामाजिक, वित्तीय और डिजिटल-का निर्माण, वर्ष 2047 तक विकसित भारत (ViksitBharat @ 2047) बनने के लिये भारत की नीति रणनीति का एक प्रमुख मुद्दा है। तथापि, एशियाई विकास बैंक1 और विश्व बैंक द्वारा हाल ही में किये गए अध्ययनों और क्रिसिल जैसी एजेंसियों द्वारा किये गए हाल के अनुमानों में विभिन्न क्षेत्रों में अवसंरचना निवेश में अंतरों की पहचान की गई है। 

अवसंरचना वित्तपोषणः सार्वजनिक व्यय को बढ़ावा देना

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • सरकारी पूंजीगत व्यय की केंद्रीय भूमिका: हाल के वित्तीय नवाचारों के बावजूद, संघ और राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत व्यय बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण पर केंद्रित है।
    • यह प्रमुख बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पारंपरिक सरकारी व्यय पर निरंतर निर्भरता को उज़ागर करता है।
  • अवसंरचना के वित्तपोषण में जटिलता: विभिन्न नवीन वित्तपोषण साधनों और रणनीतियों के उद्भव ने अवसंरचना के वित्तपोषण के क्षेत्र को जटिल बना दिया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न अभिकरणों द्वारा सांख्यिकी बनाए रखने में विभिन्न परिभाषाएँ और पैटर्न किसी भी वर्ष में बुनियादी ढाँचे के लिये कुल निधि प्रवाह को एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
    • डेटा में जटिलता और एकरूपता की कमी बुनियादी ढाँचे में समग्र निवेश का व्यापक रूप से आकलन करना मुश्किल बनाती है।

पूंजीगत व्यय के रुझान

  • पूंजीगत व्यय में वृद्धि:
    • केंद्र सरकार: वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2023-24 तक पूंजीगत व्यय में 2.2 गुना वृद्धि हुई (अनंतिम वास्तविक)।
    • राज्य सरकारें: इसी अवधि के दौरान पूंजीगत व्यय में 2.1 गुना वृद्धि हुई।
      • यह पर्याप्त वृद्धि अवसंरचना के विकास पर सरकार के मज़बूत बल को रेखांकित करती है।

  • सकल बजटीय सहायता (GBS):
    • घटक: इसमें संरेखित विभागों द्वारा किया गया व्यय और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) को प्रदत्त GBS शामिल है।
    • प्रमुख क्षेत्र: रेलवे और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के लिये GBS का हिस्सा वित्त वर्ष 2020-21 में 36.4% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 42.9% हो गया (संशोधित अनुमान)।
      • इन दो प्रमुख खंडों के लिये व्यय वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 24 (संशोधित अनुमान) तक 2.6 गुना बढ़ गया।
      • रेलवे और राजमार्गों पर बढ़ता  फोकस प्रमुख कनेक्टिविटी अवसंरचना पर रणनीतिक ज़ोर को दर्शाता है।

सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख तंत्र

  • सार्वजनिक निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति (PPPAC)
    • केंद्रीय क्षेत्र की PPP परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिये शीर्ष निकाय
  • व्यवहार्यता गैप फंडिंग (VGF)
    • वित्तीय रूप से अव्यवहार्य किंतु सामाजिक/आर्थिक रूप से वांछनीय PPP परियोजनाओं को सहायता।
      • उदाहरण के लिये किसी शहर को एक नवीन अस्पताल की आवश्यकता है, लेकिन एक निजी कंपनी के लिये इसका अकेले निर्माण करना बहुत महंगा है। सरकार लागत के एक भाग को कवर करने के लिये व्यवहार्यता अंतर निधि (VGF) प्रदान करती है, जिससे परियोजना वित्तीय रूप से व्यवहार्य हो जाती है। VGF के साथ, कंपनी अस्पताल का निर्माण और संचालन करती है, जिससे समुदाय को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
      • वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2023-24 तक कुल 5,813.6 करोड़ रुपए (केंद्र सरकार और राज्य दोनों का हिस्सा) की VGF स्वीकृति।
  • भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि योजना
    • PPP परियोजनाओं के परियोजना विकास के लिये वित्तीय सहायता
    • नवंबर, 2022 में वित्त वर्ष 2022-23 से वित्त वर्ष 2024-25 तक तीन वर्षों के लिये 150 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ अधिसूचित।
    • 28 प्रस्तावों को स्वीकृति प्रदान की गई है।
  • अन्य सहायक उपकरण
    • राज्य PPP इकाइयों की स्थापना, PPP परियोजना मूल्यांकन और परियोजना कार्यान्वयन मोड चयन हेतु संदर्भ मार्गदर्शिकाएँ निर्मित की गई हैं।
      • वेब-आधारित टूलकिट, पोस्ट-अवॉर्ड अनुबंध प्रबंधन टूलकिट और परियोजना प्रायोजक अधिकारियों के लिये आकस्मिक देयता को PPP अवसंरचना में उनकी सहायता के लिये विकसित किया गया है।

राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP)

  • अगस्त 2021 में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) की घोषणा 'मुद्रीकरण के माध्यम से संपत्ति विनिर्माण' के सिद्धांत के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य नवीन अवसंरचना के विकास के लिये निजी क्षेत्र के निवेश का लाभ उठाना है।
  • इस कार्यक्रम में वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2024-25 तक चार वर्षों में मुख्य सरकारी संपत्तियों के माध्यम से 6.0 लाख करोड़ रुपए के मुद्रीकरण की संभावना को रेखांकित किया गया है। पाइपलाइन में 12 मंत्रालयों में 20 से अधिक परिसंपत्ति वर्ग शामिल हैं।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ
    • प्रारंभिक सफलता:
      • पहले दो वर्षों (2021-22 और 2022-23) में, मुख्य परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम के तहत लगभग 2.3 लाख करोड़ रुपए के लेनदेन पूरे किये गए।
    • निरंतर प्रगति:
      • वर्ष 2023-24 में 1.51 लाख करोड़ रुपए के लेनदेन पूरे किये गए, जो वर्ष 2021-22 में हासिल किये गए 97 करोड़ रुपए से 55% की वृद्धि दर्शाता है।
  • प्रभाव और भविष्य का दृष्टिकोण
    • निजी निवेश को जुटाना: नवीन अवसंरचना परियोजनाओं को निधि प्रदान करने हेतु निजी क्षेत्र के संसाधनों का उपयोग करना।
    • परिसंपत्ति उपयोग को अनुकूलित करना: यह सुनिश्चित करना कि अधिकतम मूल्य उत्पन्न करने के लिये सरकारी परिसंपत्तियों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए।
    • अवसंरचना विकास में तेज़ी लाना: निजी क्षेत्र की भागीदारी और निवेश के माध्यम से अवसंरचना विकास को तेज़ करना।

अवसंरचना क्षेत्रों में विकास

  • इस खंड में भौतिक संपर्क, विद्युत, जल एवं स्वच्छता, शहरी विकास, रणनीतिक और डिजिटल अवसंरचना
  • को शामिल करने सहित दृष्टिकोण और चुनौतियों के साथ-साथ प्रमुख अवसंरचना क्षेत्रों में प्रगति पर चर्चा की गई है।

भौतिक कनेक्टिविटी अवसंरचना

सड़क परिवहन:

  • पूंजी निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी
    • पूंजी निवेश में वृद्धि: सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा संयुक्त पूंजी निवेश वित्त वर्ष 2014-2015 में सकल घरेलू उत्पाद के 0.4% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-2024 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.0% (लगभग 3.01 लाख करोड़ रुपए) हो गया है।
    • निजी निवेश में उछाल: वित्त वर्ष 2023-2024 में सड़क क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक निजी निवेश देखा गया, जो अनुकूल नीतियों से प्रेरित था।
    • परिसंपत्ति मुद्रीकरण: सड़क क्षेत्र में परिसंपत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से एकत्रित की गई धनराशि वित्त वर्ष 2018-2019 से 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गई है। वित्त वर्ष 2023-2024 में सरकार ने 40,314 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड परिसंपत्ति मुद्रीकरण राजस्व हासिल किया।
  • राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास और विस्तार
    • राजमार्ग के नेटवर्क में वृद्धि: वर्ष 2013-2014 से वर्ष 2024 तक राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 1.6 गुना की वृद्धि हुई है।
    • भारतमाला परियोजना का प्रभाव:
      • हाई-स्पीड कॉरिडोर का 12 गुना विस्तार हुआ।
      • वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच फॉर लेन वाली सड़कों में 2.6 गुना तक की वृद्धि हुई।
    • विनिर्माण दक्षता:
      • राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) विनिर्माण की औसत गति में लगभग तीन गुना सुधार हुआ है, जो वित्त वर्ष 14 में 11.7 किमी प्रतिदिन से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में लगभग 34 किमी प्रतिदिन हो गई है।
  • लॉजिस्टिक्स दक्षता और वैश्विक रैंकिंग
    • सुधार योग्य लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन: बेहतर NH नेटवर्क ने लॉजिस्टिक्स दक्षता को काफी हद तक बढ़ावा दिया है।
      • विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक में भारत की रैंकिंग में निरंतर सुधार हुआ है, जो वर्ष 2014 में 54वें स्थान से बढ़कर वर्ष 2018 में 44वें स्थान पर और वर्ष 2023 में 38वें स्थान पर पहुँच गई है।
  • मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP)
    • समर्पित MMLP: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRT&H) ने लॉजिस्टिक्स दक्षता को और बढ़ाने के लिये मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
      • वित्त वर्ष 2023-24 तक की उपलब्धियाँ: छह MMLP प्रदान किये गए, वित्त वर्ष 24 में इन पार्कों के लिये 2,505 करोड़ रुपए आवंटित किये गए।
      • भविष्य हेतु योजनाएँ: वित्त वर्ष 2025 में सात अतिरिक्त MMLP प्रदान करने की योजना है।

सड़क विकास हेतु प्रमुख पहलें:

  • ग्रामीण सड़कों का विकास - प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)
    • प्रमुख चरण: 
      • PMGSY-I (2000): ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों से न जुड़ी पात्र बसावटों को आवश्यक पुलियों और आर-पार जल निकासी संरचनाओं के साथ बारहमासी सड़कों के माध्यम से कनेक्टिविटी प्रदान करना।
      • PMGSY-II (2013): विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 50,000 किलोमीटर के चयनित थ्रू-रूट्स और प्रमुख ग्रामीण लिंक (MRLs) को अपग्रेड करना।
      • वर्ष 2016 में, PMGSY के तहत एक अलग ऊर्ध्वाधर के रूप में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सड़कों के लिये एक सड़क संपर्क परियोजना शुरू की गई थी।
      • PMGSY-III (2019): 125,000 किलोमीटर थ्रू रूट और MRL को समेकित करना, बस्तियों को ग्रामीण कृषि बाज़ारों, उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों और अस्पतालों जैसे प्रमुख अवसंरचना क्षेत्रों से जोड़ना।        
    • उपलब्धियाँ
      • पूर्ण की गई सड़क की लंबाई: 18 जून 2024 तक 3.23 लाख करोड़ रुपए (राज्य के हिस्से सहित) के व्यय से 763,308 किलोमीटर सड़क की लंबाई पूर्ण हो चुकी है।
      • कनेक्टिविटी: PMGSY-I के तहत लक्षित 99.6% बस्तियों को कनेक्टिविटी प्रदान की गई है।

औद्योगिक गलियारों का विकास - राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम

  • सरकार चरणबद्ध तरीके से 11 औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं का विकास कर रही है, जिसका उद्देश्य लचीले और सतत् बुनियादी ढाँचे के साथ मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी को बढ़ाना है।
  • मुख्य औद्योगिक गलियारे
    • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC)
    • चेन्नई-बंगलुरु औद्योगिक गलियारा (CBIC)
    • अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा
    • पूर्वी तट आर्थिक गलियारा (ECEC)
    • विज़ाग-चेन्नई औद्योगिक गलियारा
    • बंगलुरु-मुंबई औद्योगिक गलियारा
  • अवसंरचना और भूमि आवंटन
    • आवंटित भूखंड: मार्च 2024 तक चार शहरों में 308 भूखंड (1,789 एकड़) आवंटित किये गए हैं।
  • उपलब्ध भूमि:
    • औद्योगिक भूमि: 2,104 एकड़ विकसित औद्योगिक भूमि आवंटन के लिये आसानी से उपलब्ध है।
    • वाणिज्यिक/आवासीय/अन्य भूमि उपयोग: विभिन्न उपयोगों के लिये 2,250 एकड़ उपलब्ध है।

सड़क संपर्क बढ़ाने वाली प्रमुख पहलें

  • टोल डिजिटलीकरण और दक्षता
    • प्रतीक्षा समय में कमी: डिजिटलीकरण प्रयासों ने वर्ष 2014 और वर्ष 2024 के बीच टोल प्लाजा पर औसत प्रतीक्षा समय को 734 सेकंड से घटाकर 47 सेकंड कर दिया है, जो लगभग 16 गुना सुधार है।
    • फ्री फ्लो टोलिंग: फ्री-फ्लो टोलिंग को सक्षम करने के लिये स्वचालित नंबर प्लेट पहचान (ANPR) और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) जैसी पहलें आरंभ की गई हैं।
  • वेसाइड एमिनिटीज (WSA)
    • नियोजित प्रतिष्ठान: यात्रियों को विश्व स्तरीय सुविधाएँ और सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिये लगभग 900 WSA की योजना बनाई गई है।
    • वर्तमान परिस्थिति: FY24 तक 322 WSA प्रदान किये जा चुके हैं, जिनमें से 50 पहले से ही क्रियान्वयन में हैं। FY24 में 162 WSA प्रदान किये गए।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग की रखरखाव नीति
    • अनुबंधात्मक रखरखाव: एक सक्रिय नीति अपनाई गई है, जिसमें संपूर्ण NH नेटवर्क के प्रत्येक किमी के लिये एक अनुबंधात्मक रखरखाव अभिकरण को शामिल किया गया है।
      • प्रदर्शन-आधारित और अल्पकालिक अनुबंध: इन अनुबंधों के माध्यम से लगभग 37,500 किलोमीटर NH नेटवर्क का रखरखाव किया जाता है।
      • दीर्घकालिक रखरखाव: लगभग 20 वर्षों तक चलने वाले दीर्घकालिक अनुबंध टोल संचालन हस्तांतरण और अवसंरचना निवेश ट्रस्ट मोड के माध्यम से किये गए हैं।
  • सतत् विनिर्माण तकनीक
    • पुनर्नवीनीकृत सामग्री का उपयोग: राजमार्ग विकास में सतत् कच्चे माल और नए युग की विनिर्माण तकनीकों को शामिल किया गया है।
      • निष्क्रिय सामग्री का उपयोग: शहरी विस्तार सड़क-II और दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे स्पर जैसी परियोजनाओं में लैंडफिल स्थलों से 13.79 लाख टन निष्क्रिय सामग्री का उपयोग किया गया है।
      • पुनर्चक्रण: NH के ब्राउनफील्ड उन्नयन के दौरान बिटुमेन और डामर को पुनर्चक्रित किया जाता है।
    • हाई-टेक मशीनरी और क्लाउड-आधारित डेटा: उन्नत मशीनरी और क्लाउड-आधारित, डेटा-संचालित निर्माण विधियों के उपयोग से समय और लागत में महत्त्वपूर्ण कमी आई है।
  • पर्वतमाला परियोजना
    • उद्देश्य: इस योजना का उद्देश्य अंतिम मील तक धार्मिक और पर्यटक संपर्क को बढ़ावा देना है।
    • वर्तमान परियोजनाएँ: छह रोपवे परियोजनाएँ प्रदान की जा चुकी हैं तथा अन्य दो परियोजनाओं के लिये निविदा प्राप्त हो चुकी हैं।

रेलवे:

  • नेटवर्क और कार्यबल: भारतीय रेलवे 31 मार्च 2024 तक 68,584 किलोमीटर से अधिक के रूट के नेटवर्क का दावा करता है, जो 1 अप्रैल 2024 तक 12.54 लाख व्यक्तियों को रोज़गार देता है, जिससे यह एकल प्रबंधन के तहत वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क बन गया है।
  • पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढाँचा विकास
    • बढ़ा हुआ निवेश: रेलवे पर पूंजीगत व्यय विगत पाँच वर्षों में 77% बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 2.62 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है। इसमें महत्त्वपूर्ण निवेश किये गए हैं:
      • नई लाइनों का निर्माण
      • गेज परिवर्तन (Gauge Conversion)
      • पटरियों का दोहरीकरण
  • रिकॉर्ड उत्पादन और वंदे भारत ट्रेनों की शुरूआत
    • उत्पादन में प्रमुख उपलब्धि: भारतीय रेलवे ने वित्त वर्ष 24 में इंजनों और वैगनों का अपना अब तक का सबसे अधिक उत्पादन हासिल किया है।
    • वंदे भारत ट्रेन: मार्च 2024 तक वंदे भारत ट्रेनों के 51 युग्मों की शुरूआत की गई हैं।
  • बुनियादी ढाँचे में वृद्धि
    • बढ़ा हुआ वित्तीय आवंटन: तेज़ी से हो रहे बुनियादी ढाँचे के विकास का श्रेय वित्तीय आवंटन में वृद्धि को जाता है।
    • कुशल परियोजना प्रबंधन: परियोजना की बारीकी से निगरानी और भूमि अधिग्रहण तथा स्वीकृति के लिये हितधारकों के साथ नियमित अनुवर्ती कार्रवाई ने परियोजना को पूर्ण करने में तेज़ी लाई है।
  • भविष्य की रेलगाड़ियों का विकास
    • वंदे स्लीपर ट्रेनसेट: हाई-स्पीड, लंबी दूरी की स्लीपर ट्रेनसेट कोच का विकास किया जा रहा है। इसमें शामिल हैं:
      • त्वरित त्वरण (Quick Acceleration)
      • विसरित प्रकाश 
      • स्वचालित दरवाज़े 
      • GPS-आधारित यात्री सूचना प्रणाली
    • वंदे मेट्रो ट्रेनसेट: वित्त वर्ष 25 में आरंभ किये जाने की योजना है, इन ट्रेनसेट्स में ये विशेषताएँ होंगी:
      • सीलबंद चौड़े गैंगवे
      • केंद्रीय रूप से नियंत्रित स्वचालित स्लाइडिंग दरवाज़े
      • सुरक्षा और निगरानी के लिये CCTV 
      • रूट मैप इंडिकेटर
      • यात्री सूचना और मनोरंजन प्रणाली
      • अग्नि पहचान (Fire Detection) और एरोसोल-आधारित अग्नि शमन प्रणाली
  • पर्यावरण संबंधी पहलें
    • बायो-टॉयलेट: कोचों में पारंपरिक शौचालयों को बायो-टॉयलेट से बदला जा रहा है, जिससे ट्रैक साफ रहेंगे।
    • अपशिष्ट प्रबंधन: इन पहलों में शामिल हैं:
      • बायोडिग्रेडेबल और गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट का पृथक्करण
      • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
      • एकल-उपयोग प्लास्टिक को हतोत्साहित करना

रेलवे क्षेत्र में प्रमुख पहलें:

  • गतिशक्ति मल्टी-मॉडल कार्गो टर्मिनल (GCT)
    • निज़ी अभिकर्त्ताओं द्वारा विकास: उद्योगों की मांग और कार्गो यातायात क्षमता के आधार पर रेलवे और गैर-रेलवे दोनों भूमि पर GCT विकसित किये जा रहे हैं।
    • वर्तमान परिस्थिति:
      • 77 GCT आरंभ किये जा चुके हैं।
      • 31 मार्च 2024 तक गैर-रेलवे भूमि पर 186 स्थानों के लिये सैद्धांतिक स्वीकृति जारी की जा चुकी है।
  • सिग्नलिंग और सुरक्षा प्रणाली
    • मैकेनिकल सिग्नलिंग का प्रतिस्थापन: मैकेनिकल सिग्नलिंग सिस्टम को इलेक्ट्रिकल/इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से परिवर्तित किया जा रहा है।
      • आठ ज़ोन मैकेनिकल सिग्नलिंग से मुक्त हो गए हैं।
    • इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI) सिस्टम:
      • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 443 स्टेशनों पर उपलब्ध कराया गया।
      • 31 मार्च 2024 तक 3,424 स्टेशनों पर EI सिस्टम लगाए जा चुके हैं।
    • कवच स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली:
      • दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,465 रूट किलोमीटर (RKM) पर तैनात हैं।
    • स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग (ABS):
      • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 582 RKM पर लागू किया गया, जिसमें एक कम लागत वाला सिग्नलिंग समाधान प्रदान करना शामिल है।
      • 31 मार्च 2024 तक उच्च घनत्व वाले नेटवर्क मार्गों पर 4,431 RKM पर ABS शुरू किया जा चुका है।
  • विद्युतीकरण और स्थिरता
    • मिशन 100 प्रतिशत विद्युतीकरण कार्यक्रम:
      • भारतीय रेलवे के विद्युतीकृत नेटवर्क को 63,456 किमी (कुल नेटवर्क का 96.4%) तक बढ़ाया गया है।
      • विगत पाँच वर्षों (2019-24) में विद्युतीकरण लगभग 5,594 RKM प्रति वर्ष की औसत गति से आगे बढ़ा है।

जल परिवहन:

  • क्षमता विस्तारण:
    • भारत में प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता वर्ष 2014 से लगभग दोगुनी हो गई है।
    • PM गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से बेहतर कनेक्टिविटी ने सागरीय प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाया है।
    • विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक की अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट श्रेणी में भारत की रैंक वर्ष 2014 में 44वें स्थान से बढ़कर वर्ष 2023 में 22वें स्थान पर पहुँच गई है।
    • कंटेनर टर्नअराउंड टाइम वर्ष 2014 और वर्ष 2023-24 के बीच 50% कम हो गया है।
    • बंदरगाहों, शिपिंग और जलमार्ग क्षेत्र में केंद्रीय पूंजीगत व्यय का वित्त वर्ष 23 से वित्त वर्ष 24 तक 27% की वृद्धि हुई।
  • सागरमाला राष्ट्रीय कार्यक्रम:
    • वर्ष 2015 में आरंभ हुआ सागरमाला कार्यक्रम पाँच प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है: बंदरगाह आधुनिकीकरण, कनेक्टिविटी में वृद्धि, बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण, तटीय सामुदायिक विकास तथा तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन।
    • परियोजना की स्थिति:
      • 1.4 लाख करोड़ रुपए की लागत वाली 262 परियोजनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं।
      • 1.65 लाख करोड़ रुपए की लागत वाली 217 परियोजनाएँ इस कार्यान्वयन के अधीन हैं।
      • 2.7 लाख करोड़ रुपए की लागत वाली 360 परियोजनाएँ विकास के अधीन हैं।
  • द्वीपीय विकास:
    • विज़न 2047: द्वीपों के विकास पर मुख्य ध्यान दिया जाएगा, जिसमें पर्यटन तथा अन्य पहलों के लिये अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप के द्वीपों को विकसित करने की योजना है।
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030:
      • विकास में इको-टूरिज्म, जहाज़ की मरम्मत, सीप्लेन का निर्माण और मरम्मत, सागरीय प्रशिक्षण संस्थान, मुक्त व्यापार क्षेत्र और बंकरिंग टर्मिनल शामिल होंगे।
      • अंडमान लक्षद्वीप हार्बर वर्क्स बंदरगाह की अवसंरचना का विकास करेगा और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।

तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन:

  • तटीय नौवहन: सकल टन भार (GT) 1 अप्रैल 2014 को 1.19 मिलियन GT (846 जहाज़) से बढ़कर 1 अप्रैल 2024 को 1.72 मिलियन GT (1,039 जहाज़) हो गया है।
  • अंतर्देशीय जल परिवहन:
    • नौगम्य जलमार्ग:
      • भारत में लगभग 14,500 किलोमीटर नौगम्य नदियाँ, नहरें और अन्य जलमार्ग हैं।
    • विधायी ढाँचा:
      • अंतर्देशीय पोत अधिनियम 2021 ने पुराने अंतर्देशीय पोत अधिनियम 1917 को प्रतिस्थापित किया, जिसका उद्देश्य विनियमों को आधुनिक बनाना और सुव्यवस्थित करना है।
    • पूंजीगत व्यय:
      • वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) ने बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 1,010.5 करोड़ रुपए आवंटित किये।
    • परियोजनाएँ:
      • राष्ट्रीय जलमार्ग (NW):
        • 106 नवीन NW के लिये व्यवहार्यता और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है।
        • मार्च 2024 तक NW-1 पर जलमार्ग विकास परियोजना का 63% से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है।
        • वर्ष 2025-2026 के लिये 267 करोड़ रुपए की लागत से NW-3, NW-4, NW-5 और 13 नवीन NW के चरण-I विकास को स्वीकृति दी गई।
      • भारत-बाँग्लादेश प्रोटोकॉल (IBP) मार्ग:
        • भारत और बाँग्लादेश द्वारा संयुक्त रूप से 305.84 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से विकसित किया गया।
        • गुवाहाटी और जोगीघोपा (Jogighopa) से कोलकाता तथा हल्दिया बंदरगाहों तक पूर्वोत्तर राज्यों के लिये वैकल्पिक संपर्क प्रदान करता है।
        • विगत 9 वर्षों में IBP मार्ग के माध्यम से संभाले जाने वाले कार्गो में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

नागर विमानन

  • पूंजीगत व्यय:
    • नियोजित निवेश:
      • सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 से 25 तक हवाई अड्डों के विकास, उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिये 26,000 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि निर्धारित की है।
    • उपलब्धियाँ:
      • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) ने वित्त वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान इस नियोजित व्यय का लगभग 23,000 करोड़ रुपए हासिल किया है। 
      • निजी क्षेत्र के निवेश और अन्य हवाईअड्डा संचालकों ने इसी अवधि के दौरान लगभग 49,000 करोड़ रुपए खर्च किये हैं। 
      • पिछले पाँच वर्षों में हवाईअड्डा क्षेत्र में कुल पूंजीगत व्यय लगभग 72,000 करोड़ रुपए रहा है।
  • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे:
    • अनुमोदन और परिचालन:
      • 21 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों को सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है।
      •  इनमें से 12 हवाई अड्डे चालू हो गए हैं।
  • टर्मिनल विस्तार:
    • नई सुविधाएँ:
      • वित्त वर्ष 2023-2024 में 21 हवाई अड्डों पर नए टर्मिनल भवन चालू किये गए। 
      • इस विस्तार से इन हवाई अड्डों की यात्री हैंडलिंग क्षमता में प्रति वर्ष लगभग 62 मिलियन यात्रियों की वृद्धि हुई।
  • उड़ान क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS):
    • पुरस्कृत मार्ग:
      • उड़े देश का आम नागरिक (UDAN) क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS) के शुरू होने के बाद, विभिन्न एयरलाइनों को 1,390 वैध अवार्ड किये गए मार्ग आवंटित किये गए हैं। 
    • प्रचालित मार्ग:
      • इनमें से 85 असेवित तथा कम सेवित हवाईअड्डों को जोड़ने वाले 579 RCS मार्गों को प्रचालनात्मक कर दिया गया है।

नए खंड – ड्रोन, लीजिंग और MRO

  • ड्रोन:
    • उदारीकृत नियम: ड्रोन उद्योग के विकास का समर्थन करने के लिये वर्ष 2021 में पेश किये  गए।
    • प्रमुख उपाय:
      • ड्रोन हवाई क्षेत्र के नक्शे प्रकाशित किये गए हैं। 
      • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना लागू की गई है। 
      • ड्रोन प्रमाणन योजना शुरू की गई है।
    • प्रगति:
      • प्रशिक्षण: 109 प्रशिक्षण संगठन स्थापित किये गए।
      • प्रमाणपत्र: 10,603 रिमोट पायलट प्रमाण-पत्र जारी किये गए।
      • पंजीकरण: पंजीकृत ड्रोन के लिये 22,943 विशिष्ट पहचान संख्याएँ।
      • प्रकार-प्रमाणपत्र: ड्रोन मॉडल के लिये 67 DGCA-अनुमोदित प्रकार-प्रमाणपत्र।
  • एयरक्राफ्ट लीजिंग:
    • गिफ्ट सिटी में इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर (IFSC):
      • 28 से अधिक विमान पट्टेदार पहले ही पंजीकृत हो चुके हैं।
      • इन पट्टादाताओं ने 20 से अधिक विमानों और 49 विमान इंजनों को पट्टे पर लिया है।
    • एयर इंडिया:
      • एअर इंडिया ने  IFSC जोन से अपने बड़े आकार के विमानों को पट्टे पर लेना शुरू किया है।
    • अन्य एयरलाइंस:
      • अन्य एयरलाइनें भी IFSC में पट्टे पर कंपनी स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं।
  • रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO):
    • नीति और विनियमन: सरकार ने भारत के MRO क्षेत्र को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिये नीतियाँ शुरू की हैं।
    • उद्योग विकास: भारत में MRO ने एयरफ्रेम में अपनी क्षमता का विस्तार किया है और इंजन जैसे अन्य क्षेत्रों में भी अपनी शाखाएँ खोल रहे हैं।
    • राष्ट्रीय नागरिक विमानन नीति (NCAP-2016): भारत में MRO की संख्या वर्ष 2016 में 114 से बढ़कर 147 हो गई है।
    • बुनियादी ढाँचा: क्षमता बढ़ाने और बुनियादी ढाँचे की बाधाओं को दूर करने के लिये अधिक हवाई अड्डे MRO सुविधाओं का निर्माण कर रहे हैं।

ऊर्जा अवसंरचना

विद्युत क्षेत्र:

  • ट्रांसमिशन ग्रिड:
    • एकीकृत ग्रिड: भारत एकल आवृत्ति पर चलने वाले विश्व के सबसे बड़े एकीकृत विद्युत ग्रिडों में से एक का संचालन करता है।
    • अंतर-क्षेत्रीय क्षमता: 118,740 मेगावाट (MW) तक स्थानांतरित कर सकता है।
    • विस्तार (31 मार्च 2024 तक):
      • ट्रांसमिशन लाइन्स: 485,544 सर्किट किलोमीटर।
      • परिवर्तन क्षमता: 1,251,080 मेगा वोल्ट एम्प (MVA)।
  • पीक विद्युत की मांग: 13% बढ़कर 243 गीगावाट (GW) - FY24
  • क्षेत्र में वृद्धि:
    • नवीकरणीय ऊर्जा: वित्त वर्ष 2022-23 और वित्त वर्ष 2023-24 के बीच नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों में विद्युत  उत्पादन में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई।
  • विद्युतीकरण:
    • सौभाग्य योजना: अक्तूबर 2017 में शुभारंभ के बाद से 2.86 करोड़ घरों का विद्युतीकरण किया गया।
  • विनियामक राहत:
    • बिजली (देर से भुगतान अधिभार और संबंधित मामले) नियम, 2022:
      • प्रभाव: वितरण कम्पनियों (डिस्कॉम), विद्युत उपभोक्ताओं और विद्युत उत्पादन कम्पनियों को राहत प्रदान की गई।

नवीकरणीय क्षेत्र:

  • जलवायु लक्ष्य:
    • अद्यतन NDC: 26 अगस्त, 2022 को UNFCCC को प्रस्तुत किया गया।
    • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता:
    • लक्ष्य: वर्ष 2030 (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय) तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट की स्थापित विद्युत क्षमता प्राप्त करना।
    • वर्तमान स्थिति (31 मार्च, 2024 तक):
      • स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: 190.57 गीगावाट।
      • कुल स्थापित उत्पादन क्षमता में हिस्सेदारी: 43.12%.
  • स्वच्छ ऊर्जा में निवेश:
    • वर्ष 2014 से 2023 के बीच: स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में 8.5 लाख करोड़ रुपए (102.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश किया जाएगा।
    • अपेक्षित निवेश (2024-2030): 30.5 लाख करोड़ रुपए।
    • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में FDI: अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक लगभग 17.88 बिलियन अमरीकी डॉलर।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख कार्यक्रम, परियोजनाएँ और पहल:
    • सौर ऊर्जा:
      • PM-KUSUM: कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से लैस करने और बंजर भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। दोनों घटकों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
      • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना: इसका उद्देश्य उच्च दक्षता वाले सौर PV मॉड्यूल के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है। शुरुआती निर्माताओं ने उत्पादन शुरू कर दिया है।
      • सौर पार्क: सौर ऊर्जा विकास के लिये बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है। महत्त्वपूर्ण क्षमता चालू है और कार्यान्वयन के अधीन है।
      • PM-सूर्य घर: एक करोड़ घरों में छत पर सौर ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य।
      • CPSU योजना चरण-II: घरेलू मॉड्यूल का उपयोग करके PSU द्वारा सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • जैव ऊर्जा: राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम बायोमास और अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं पर केंद्रित है। दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
    • ग्रीन हाइड्रोजन: उत्पादन और निवेश के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरू किया गया।
    • ग्रिड अवसंरचना: नवीकरणीय ऊर्जा निकासी को सुविधाजनक बनाने के लिये हरित ऊर्जा कॉरिडोर (GEC) का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख नीतियाँ

ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (ESS) को बढ़ावा देने हेतु नेशनल फ्रेमवर्क

पंप भंडारण परियोजनाओं (PSP) के विकास को बढ़ावा देने हेतु दिशा-निर्देश

  • ESS का उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उपलब्ध ऊर्जा के भंडारण के लिये किया जा सकता है जिसका उपयोग दिन के अन्य समय में किया जा सकता है।
  • यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में उत्पादन की परिवर्तनशीलता को कम कर सकता है, ग्रिड स्थिरता में सुधार कर सकता है, ऊर्जा/पीक शिफ्टिंग को सक्षम कर सकता है, सहायक सहायता सेवाएँ प्रदान कर सकता है और बड़े नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण को सक्षम कर सकता है।
  • पीक घाटे, पीक टैरिफ, कार्बन उत्सर्जन में कमी, ट्रांसमिशन और वितरण कैपेक्स के स्थगन तथा ऊर्जा मध्यस्थता को कम करके उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना।
  • भंडारण और सहायक सेवाओं की उपर्युक्त आवश्यकता को पूरा करने के लिये उपलब्ध विभिन्न प्रौद्योगिकियों में से पंप स्टोरेज परियोजनाएँ स्वच्छ, मेगावाट स्केल, घरेलू रूप से उपलब्ध, समय की कसौटी पर खरी उतरी और अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य हैं।
  • विद्युत मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2023 में PSP के विकास को बढ़ावा देने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ:
    • प्रतिस्पर्द्धी शर्तों पर आवश्यक वित्त और निवेश जुटाना: बड़े परिनियोजन लक्ष्यों के लिये वित्त की व्यवस्था करने हेतु बैंकिंग क्षेत्र को तैयार करना, कम ब्याज दर, दीर्घकालिक अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण की संभावना तलाशना तथा तकनीकी और वित्तीय दोनों प्रकार की बाधाओं को दूर करके जोखिम न्यूनीकरण या साझाकरण के लिये उपयुक्त तंत्र विकसित करना।
    • भूमि अधिग्रहण: नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वाली भूमि की पहचान, उसका रूपांतरण (यदि आवश्यक हो), भूमि सीलिंग अधिनियम से मंज़ूरी, भूमि पट्टे के किराए पर निर्णय, राजस्व विभाग से मंज़ूरी और ऐसी अन्य मंज़ूरियों में समय लगता है। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकारों को प्रमुख भूमिका निभानी चाहिये।

सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना - खेल क्षेत्र

  • सरकार देश में खेल अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण अंतराल को पाटने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रयासों में सहायता कर रही है।
  • खेल क्षेत्र में प्रमुख कार्यक्रम, परियोजनाएँ और पहल:
    • खेलो इंडिया कार्यक्रम: देश भर में खेल अवसंरचना के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। अवसंरचना परियोजनाओं को मंज़ूरी देने और पूरा करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
    • राष्ट्रीय खेल विकास कोष: बुनियादी ढाँचे और खेल संवर्द्धन परियोजनाओं दोनों को समर्थन देता है।
    • भारतीय खेल प्राधिकरण: विभिन्न केंद्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास में सक्रिय रूप से शामिल।
    • राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय, इम्फाल: इसका उद्देश्य विश्व स्तरीय खेल शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र बनाना है।
    • मॉडल रियायत करार (MCA): यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से खेल अवसंरचना विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाता है।

जल एवं स्वच्छता क्षेत्र

स्वच्छ भारत मिशन – ग्रामीण (SBM-G):

  • लॉन्च और फोकस:
    • चरण I: अक्तूबर 2014 में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और सामुदायिक स्वच्छता परिसरों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके भारत को खुले में शौच से मुक्त (Open Defecation Free- ODF) बनाना है।
    • चरण II: ODF स्थिति को बनाए रखने, ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रबंधन करने तथा गाँवों को ODF प्लस मॉडल में बदलने के लिये शुरू किया गया।
      • चरण II के लिये कुल अनुमानित परिव्यय: 1.4 लाख करोड़ रुपए, विभिन्न वित्तपोषण वर्टिकलों और सरकारी योजनाओं के बीच अभिसरण के माध्यम से वित्त पोषित।
  • वित्तवर्ष 2023-24 में उपलब्धियाँ:
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: 1,61,525 गाँव शामिल।
    • ग्रे जल प्रबंधन: 2,83,998 गाँवों को शामिल किया गया।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन: 2,070 ब्लॉकों को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों और सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाओं से जोड़ा गया।
    • मलीय कीचड़ प्रबंधन: 159 ज़िलों में मलीय कीचड़ प्रबंधन (Faecal Sludge Management) व्यवस्था शुरू की गई।
    • वित्तीय उपयोग: 7,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गये, जिनमें से 6,802.58 करोड़ रुपए (97%) उपयोग किये गये।

जल जीवन मिशन (JJM):

  • लॉन्च और फोकस:
    • लॉन्च: अगस्त 2019।
    • उद्देश्य: वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल जल कनेक्शन उपलब्ध कराना।
    • कुल परिव्यय: 3.6 लाख करोड़ रुपए।
      • केंद्रीय हिस्सा: 2.08 लाख करोड़ रुपए।
      • राज्यों का हिस्सा: 1.58 लाख करोड़ रुपए।
      • लेह में डेमचोक गाँव, जो 13,800 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, जहाँ पारा शून्य से 40 डिग्री नीचे तक गिर सकता है, को जल जीवन मिशन के तहत जुलाई 2022 में अपना पहला नल जल कनेक्शन मिलेगा।
      • महाराष्ट्र के सुदूर आदिवासी गाँव बुलुमगवन को आज़ादी के 70 वर्ष बाद 2018 में ही बिजली मिली।
    • प्रगति:
      • प्रारंभिक कवरेज: मिशन की शुरुआत में 3.23 करोड़ ग्रामीण परिवारों (17%) के पास नल जल कनेक्शन थे।
      • वर्तमान कवरेज: 14.89 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों (76.12%) के पास अब नल जल कनेक्शन है।

तेलंगाना के सिद्दीपेट ज़िले में स्टील (बर्थन) बैंक की पहल

पहल: यह पहल 2022 में कांति-वेलुगु कार्यक्रम से उभरी है, जो एक राज्यव्यापी नेत्र परीक्षण कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन की चुनौती का समाधान करना था, विशेष रूप से चिकित्सा शिविरों के दौरान उपयोग किये जाने वाले डिस्पोजेबल बर्तनों से उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन करना।

  • व्यवस्था: विभिन्न प्रकार के स्टील के बर्तन (प्लेट, चम्मच, गिलास, कटोरे, बेसिन) उपलब्ध कराए जाते हैं और ग्राम पंचायत कार्यालय में संग्रहीत किये जाते हैं।
  • उपयोग: इन बर्तनों का उपयोग दैनिक भोजन व्यवस्था और अन्य सामुदायिक आयोजनों के लिये किया जाता है, तथा ये एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक वस्तुओं का स्थान लेते हैं।
  • मुख्य परिणाम: प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रहण, डंपिंग और जलाने में कमी।

लाभ

  • प्लास्टिक अपशिष्ट में कमी: पुन: प्रयोज्य स्टील के बर्तनों के उपयोग के कारण प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • सामुदायिक जागरूकता: प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी खतरों, जैसे कि सूक्ष्म प्लास्टिक से उत्पन्न कैंसर और पाचन संबंधी समस्याओं के बारे में समझ में वृद्धि।
  • आर्थिक लाभ: समुदायों, स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups- SHG) और ग्राम पंचायतों के लिये अतिरिक्त आय के स्रोत, जो परिचालन, रखरखाव तथा विस्तार लागत को पूरा करने में मदद करते हैं।
  • अपशिष्ट न्यूनीकरण मीट्रिक्स: प्रति आयोजन 6-8 किलोग्राम प्लास्टिक अपशिष्ट तथा प्रति माह 28 क्विंटल की कमी अपेक्षित है।

सैलम: मिज़ोरम में सतत् ग्रामीण जल आपूर्ति के लिये एक आदर्श गाँव 

उद्देश्य: जल जीवन मिशन (JJM) के तहत, सैलम गाँव को जल-कमी वाले से जल-पर्याप्त वाले गाँव में बदल दिया गया है, जिससे इसे 'हर घर जल' गाँव का दर्जा प्राप्त हुआ है।

मुख्य सफलताएँ:

  • 24x7 जलापूर्ति: गाँव में अब हर घर को निर्बाध जलापूर्ति हो रही है।
  • सामुदायिक प्रबंधन: जल आपूर्ति प्रणाली का प्रबंधन पूरी तरह से समुदाय द्वारा किया जाता है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: एक बड़े जल भंडारण टैंक और एक क्षेत्रीय जलाशय का निर्माण किया गया है।
  • लागत प्रभावी प्रणाली: लागत को न्यूनतम करने के लिये मौजूदा जल स्रोतों और बुनियादी ढाँचे को एकीकृत किया गया है।
  • उपयोगकर्त्ता शुल्क: ग्रामीण जल उपभोग के आधार पर नाममात्र शुल्क का भुगतान करते हैं, जिससे स्थायित्व को बढ़ावा मिलता है।
  • पर्यावरण संरक्षण: समुदाय दीर्घकालिक जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से वन क्षेत्र की रक्षा कर रहा है।
  • सामुदायिक भागीदारी: ग्रामीणों ने जलग्रहण विकास के लिये भूमि दान की है तथा जल मीटर भी लगाए हैं।
  • स्थानीय रोज़गार: जल आपूर्ति प्रणाली के संचालन और रखरखाव के लिये एक स्थानीय व्यक्ति को प्रशिक्षित किया गया है।

जल संसाधन प्रबंधन क्षेत्र

नमामि गंगे कार्यक्रम: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG):

  • अवलोकन 
    • लॉन्च: 2014-15
    • उद्देश्य: एकीकृत संरक्षण मिशन का ध्यान गंगा नदी के प्रदूषण निवारण, संरक्षण और कायाकल्प पर केंद्रित होगा।
  • प्रमुख विशेषताऐं:
    • हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (HAM):
      • वित्तपोषण संरचना:
        • पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) का 40% निर्माण चरण के दौरान भुगतान किया जाता है।
        • शेष 60% राशि का भुगतान 15 वर्ष की अवधि में ब्याज सहित वार्षिकी भुगतान के रूप में किया जाता है।
        • परिचालन एवं रखरखाव (Operation and Maintenance- O&M) के लिये अलग से भुगतान किया जाता है।
      • वर्तमान स्थिति: HAM के अंतर्गत 33 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं।
    • वन सिटी-वन ऑपरेटर मॉडल:
      • उद्देश्य: मौजूदा सीवेज उपचार संयंत्रों (Sewage Treatment Plants- STP) को नव स्वीकृत परियोजनाओं के साथ एकीकृत करना।
      • कार्यान्वयन: शहरों में मौजूदा STP को नई परियोजनाओं के साथ एकीकृत किया जा रहा है तथा HAM-आधारित PPP मोड के तहत निविदाएँ जारी की जा रही हैं।
  • कार्यान्वयन:
    • हाइब्रिड एन्युटी मॉडल सीवेज उपचार अवसंरचना के कुशल वित्तपोषण और प्रबंधन की अनुमति देता है, जिसका उद्देश्य सीवेज उपचार संयंत्रों की समग्र दक्षता तथा स्थिरता में सुधार करना है।
    • 'वन सिटी-वन ऑपरेटर' दृष्टिकोण STP के सुव्यवस्थित प्रबंधन और एकीकरण को सुनिश्चित करता है, जिससे बेहतर रखरखाव तथा परिचालन दक्षता को बढ़ावा मिलता है।
  • अपेक्षित परिणाम:
    • प्रदूषण निवारण: गंगा नदी में प्रदूषण के स्तर में कमी।
    • संरक्षण और पुनरूद्धार: नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य में सुधार।
    • उन्नत बुनियादी ढाँचा: आधुनिक एवं कुशल सीवेज उपचार प्रणालियाँ।

जल संसाधन क्षेत्र के प्रमुख कार्यक्रम:

  • बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP)
    • उद्देश्य: मौजूदा बाँधों की सुरक्षा और परिचालन प्रदर्शन में सुधार करना तथा बाँध सुरक्षा संस्थानों को मज़बूत करना।
    • वित्तीय सहायता: विश्व बैंक।
    • चरण I (2012-21): 223 बाँधों का पुनर्वास किया गया।
    • चरण II और III (2021-31): 736 बाँधों का पुनर्वास। 19 राज्य और तीन केंद्रीय एजेंसियाँ ​​शामिल हैं।
  • अटल भूजल योजना:
    • उद्देश्य: मांग-पक्ष भूजल प्रबंधन और सामुदायिक व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • परिव्यय: 6,000 करोड़ रुपए, विश्व बैंक से सहायता प्राप्त, अप्रैल 2020 से पाँच वर्षों के लिये कार्यान्वित।
    • कवरेज: सात राज्यों के 229 ब्लॉकों/तालुकाओं में 8,213 जल-संकटग्रस्त ग्राम पंचायतें।
    • उपलब्धियाँ:
      • समुदायों द्वारा तैयार जल बजट एवं सुरक्षा योजनाएँ।
      • 47 ब्लॉकों और 813 ग्राम पंचायतों में भूजल गिरावट दर में सुधार।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
    • उद्देश्य: खेतों तक जल की पहुँच बढ़ाना, सिंचाई क्षेत्रों का विस्तार करना, जल उपयोग दक्षता में सुधार करना और सतत् अभ्यास को बढ़ावा देना।
    • अवयव:
      • त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP)
      • हर खेत को पानी (HKKP)
  • नदियों को जोड़ने की परियोजना
    • कार्यक्षेत्र: 30 लिंक की पहचान की गई (16 प्रायद्वीपीय, 14 हिमालयी)।
    • प्राथमिकता लिंक: केन-बेतवा, संशोधित पारबती-कालीसिंध-चंबल, गोदावरी-कावेरी।
    • केन-बेतवा लिंक: पहला लिंक वर्ष 2021 में 39,317 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता के साथ स्वीकृत किया गया, जिसमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार शामिल हैं।
  • प्रयाग (यमुना, गंगा और सहायक नदियों के वास्तविक समय विश्लेषण के लिये मंच)
    • प्रक्षेपण: अप्रैल 2023।
    • कार्य: नदी की गुणवत्ता और सीवेज उपचार बुनियादी ढाँचे की निरंतर निगरानी के लिये ऑनलाइन डैशबोर्ड।
  • ग्लोबल रिवर सिटीज़ एलायंस
    • उद्देश्य: नदी संरक्षण और सतत् जल प्रबंधन के लिये अद्वितीय गठबंधन, जिसमें 11 देशों के 275 शहर शामिल होंगे।
  • भूजल प्रबंधन और विनियमन (GWMR) योजना
    • निगरानी: 26,000 भूजल स्टेशन, 5,000 से अधिक डिजिटल जल स्तर रिकॉर्डर।
    • कृत्रिम पुनर्भरण: 300 प्रदर्शनात्मक संरचनाएँ बनाई गईं।
  • जल निकाय जनगणना 2023
    • गणना: 24,24,540 जल निकाय; ग्रामीण क्षेत्रों में 97.1%, शहरी क्षेत्रों में 2.9%।
  • बाँध सुरक्षा अधिनियम 2021
    • उद्देश्य: निगरानी, ​​निरीक्षण और रखरखाव सहित बाँध सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण।
    • कवरेज: भारत के सभी बड़े बाँध (बड़े बाँधों के राष्ट्रीय रजिस्टर 2023 के अनुसार 6,281)।
  • तकनीकी नवाचार
    • विकसित प्लेटफॉर्म: बेहतर डेटा-आधारित जल प्रशासन के लिये WQMIS, भारत-WRIS पोर्टल, PM गतिशक्ति NMP पोर्टल।

शहरी क्षेत्र

सभी के लिये आवास पहल:

  • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U)
    • उद्देश्य: शहरी क्षेत्रों में सभी पात्र लाभार्थियों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के मकान उपलब्ध कराना।
    • प्रगति:
      • स्वीकृत मकान: 1.18 करोड़
      • निर्माण हेतु भूमि उपलब्ध: 1.14 करोड़
      • पूर्ण/वितरित: 84 लाख
    • विस्तार: इस योजना को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।
  • किफायती किराया आवास परिसर (ARHC)
    • उद्देश्य: शहरी प्रवासियों और गरीबों के लिये जीवन स्थितियों में सुधार लाना तथा मलिन बस्तियों, अनौपचारिक बस्तियों या अर्ध-शहरी क्षेत्रों पर निर्भरता कम करना।

स्वच्छ भारत मिशन शहरी(SBM-U):

  • उद्देश्य
    • स्वच्छता सुविधाएँ: यह सुनिश्चित करना कि गरीब परिवारों सहित प्रत्येक नागरिक को स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध हों।
    • खुले में शौच से मुक्ति (ODF ) स्थिति: शहरी क्षेत्रों में ODF स्थिति प्राप्त करना।
    • अपशिष्ट मुक्त शहर: अपशिष्ट मुक्त स्थिति प्राप्त करने के लिये निम्न कार्य करना:
      • 100% स्रोत पृथक्करण
      • डोर-टू-डोर संग्रहण
      • सभी प्रकार के अपशिष्टों का वैज्ञानिक प्रबंधन
  • उपलब्धियाँ
    • व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) इकाइयाँ:
      • लक्ष्य प्राप्ति: लक्ष्य का 113.75%
    • सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय:
      • लक्ष्य प्राप्ति: लक्ष्य का 128%

स्वच्छ भारत मिशन शहरी पर केस स्टडीज़ (SBM-U)

  • इंदौर का बायो-मीथेनेशन प्लांट: नवंबर 2021 में स्थापित, यह 500 TPD प्लांट DBFOT मॉडल का उपयोग करके सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के तहत संचालित होता है। यह प्रतिदिन 17,000 किलोग्राम बायो-CNG का उत्पादन करता है और वार्षिक 130,000 टन CO2 उत्सर्जन कम करता है।
  • मैंगलोर की ब्लैक सोल्जर फ्लाइज (BSF) सुविधा: यह सुविधा BSF प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रतिवर्ष 10,000 टन गीले कचरे का उपचार करती है, तथा कचरे को 12-14 दिनों में खाद में परिवर्तित कर देती है, जबकि पारंपरिक तरीकों से 45-60 दिन लगते हैं।
  • इंदौर बायो CNG प्लांट: प्रतिदिन 400 मीट्रिक टन जैविक अपशिष्ट का प्रसंस्करण करते हुए, यह प्लांट PPP मॉडल के तहत संचालित होकर प्रतिदिन 14.8 मीट्रिक टन बायो-CNG और 80 मीट्रिक टन किण्वित जैविक खाद उत्पन्न करता है।
  • पिंपरी-चिंचवाड़ कचरे से बिजली बनाने वाला प्लांट: यह प्लांट बायोडिग्रेडेबल कचरे को खाद और बिजली में परिवर्तित करता है। इसमें मशीनीकृत विंडरो कंपोस्टिंग के साथ 1000 TPD मटेरियल रिकवरी की सुविधा है और यह PPP DBFOT मॉडल के तहत नगरपालिका के उपयोग के लिये ऊर्जा उत्पन्न करता है।

कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT):

  • अमृत ​​योजना का आरंभ और लक्ष्य: जून 2015 में 500 शहरों में शुरू की गई अमृत योजना का उद्देश्य सार्वभौमिक रूप से सुरक्षित तथा सुनिश्चित पेयजल उपलब्ध कराना है।
  • परियोजना पुरस्कार और पूर्णता: 83,327 करोड़ रुपए की लागत की 5,999 परियोजनाएँ प्रदान की गईं; 51,434 करोड़ रुपए की लागत की 5,304 परियोजनाएँ (62%) पूरी हुईं।
  • सुधार और उपलब्धि: अमृत में राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के लिये सेवा वितरण, संसाधन जुटाने एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये 54 उपलब्धियों के साथ ग्यारह सुधार शामिल हैं।
  • अमृत ​​2.0 लॉन्च: अक्तूबर 2021 में पाँच वर्षों के लिये लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य 500 अमृत शहरों में आत्मनिर्भरता, जल सुरक्षा, सार्वभौमिक सीवरेज और जल निकायों के कायाकल्प पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • अमृत ​​2.0 में प्रमुख सुधार: इसमें संपत्ति कर और उपयोगकर्त्ता शुल्क अधिसूचनाएँ, वित्तीय स्थिरता को बढ़ाना, उपचारित जल का 20% पुनर्चक्रण, दोहरी प्रविष्टि लेखा, कुशल नगर नियोजन तथा दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में आबंटन के 10% के बराबर अनिवार्य PPP परियोजनाएँ शामिल हैं।

स्मार्ट सिटी मिशन (SCM):

  • SCM का शुभारंभ और उद्देश्य: जून 2015 में शुरू किये गए स्मार्ट सिटीज मिशन (Smart Cities Mission- SCM) का उद्देश्य शहरी बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना, स्वच्छ तथा स्थाई वातावरण बनाना एवं स्मार्ट समाधानों के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • शहर का चयन और परियोजना प्रगति: विकास के लिये 100 शहरों का चयन किया गया है। 20 जून, 2024 तक 100 विशेष प्रयोजन वाहनों (SPV) ने लगभग 1.64 लाख करोड़ रुपए की लागत वाली 8,011 बहु-क्षेत्रीय परियोजनाएँ शुरू की हैं।
  • परियोजना पूर्णता: इनमें से 1.43 लाख करोड़ रुपए (87%) की लागत की 7,153 (89%) परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।

पर्यटन क्षेत्र

  • प्रसाद योजना: तीर्थयात्रा और विरासत स्थलों पर पर्यटन बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • 29 नये स्थलों की पहचान की गई है।
  • स्वदेश दर्शन 2.0: 3,800 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ पुनर्निर्मित योजना, जिसका उद्देश्य पर्यटन स्थलों का एकीकृत विकास करना है।

सामरिक अवसंरचना - अंतरिक्ष क्षेत्र

  • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति: भारत ने रॉकेट, उपग्रह, अंतरिक्ष यान और जमीनी बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
  • सक्रिय अंतरिक्ष आस्तियाँ: भारत 55 सक्रिय अंतरिक्ष आस्तियों का संचालन करता है, जिनमें 18 संचार उपग्रह, नौ नेविगेशन उपग्रह, पाँच वैज्ञानिक उपग्रह, तीन मौसम संबंधी उपग्रह और 20 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह शामिल हैं।
  • प्रक्षेपण यान: इसरो के बेड़े में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) तथा नव शामिल प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM3) और स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) शामिल हैं।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन: उल्लेखनीय मिशनों में मार्स ऑर्बिटर मिशन (2014), एस्ट्रोसैट (2015), चंद्रयान-2 (2019), चंद्रयान-3 (2023) और आदित्य-L1 (2023) शामिल हैं।
  • नाविक नक्षत्र: भारत की स्वदेशी उपग्रह नेविगेशन प्रणाली वर्ष 2016 में पूरी हो गई और चालू हो गई।
  • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): LVM3 का उपयोग करके 72 वनवेब उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया, जिससे वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाज़ार में LVM3 की प्रतिष्ठा बढ़ी।

अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी

  • सुधार और IN-SPACe: वर्ष 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों ने निजी भागीदारी को बढ़ाया। जून 2022 में शुरू किया गया भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को सुविधाजनक बनाता है। जनवरी 2024 तक, IN-SPACe ने 300 से अधिक संस्थाओं से 440 आवेदन संसाधित किये हैं।
  • समझौता ज्ञापन और संयुक्त परियोजनाएँ: अंतरिक्ष गतिविधियों को समर्थन देने के लिये गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ 51 समझौता ज्ञापनों और 34 संयुक्त परियोजना कार्यान्वयन योजनाओं पर हस्ताक्षर किये गए हैं। पिक्सलस्पेस, दिगंतारा तथा टाटा एडवांस्ड सिस्टम जैसी निजी कंपनियों ने उपग्रह और पेलोड विकसित किये हैं।
  • निजी क्षेत्र के प्रक्षेपण: स्काईरूट एयरोस्पेस के विक्रम-एस (प्रारंभ मिशन) को 18 नवंबर, 2022 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
  • निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण: अग्निकुल कॉसमॉस ने 25 नवंबर, 2022 को इसरो के SDSC, SHAR में पहला निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र स्थापित किया।
  • उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: पाँच PSLV के एंड-टू-एंड उत्पादन के लिये HAL और L&T कंसोर्टियम का चयन किया गया है। छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।

डिजिटल अवसंरचना

  • निर्माण क्षेत्र का योगदान: निर्माण क्षेत्र वर्ष 2023-24 में भारत के वार्षिक सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added- GVA) का लगभग 9% हिस्सा होगा, लेकिन यह सबसे कम डिजिटल क्षेत्रों में से एक बना हुआ है।
  • प्रौद्योगिकीय एकीकरण: हाल के वर्षों में नियोजन, डिज़ाइन और आस्ति प्रबंधन में दक्षता बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास में प्रौद्योगिकी के एकीकरण में वृद्धि देखी गई है।
  • प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ और प्लेटफॉर्म:
    • PM गतिशक्ति: इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे की योजना और कार्यान्वयन में सुधार करना है।
    • भुवन और भारतमैप्स: भूस्थानिक डेटा और मानचित्रण सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • एकल खिड़की प्रणाली: परियोजना अनुमोदन और प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
    • परिवेश पोर्टल: पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रियाओं को सुगम बनाता है।
    • राष्ट्रीय डेटा विश्लेषण प्लेटफॉर्म: बेहतर निर्णय लेने के लिये डेटा को एकत्रित और विश्लेषित करता है।
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म: लॉजिस्टिक्स दक्षता को बढ़ाता है।
    • प्रगति (सक्रिय शासन और समय पर कार्यान्वयन): परियोजना कार्यान्वयन चुनौतियों का समाधान करता है।
    • भारत निवेश ग्रिड (IIG): निवेश के अवसरों और परियोजना ट्रैकिंग के लिये एक मंच प्रदान करता है।

दूरसंचार क्षेत्र

  • दूरसंचार अधिनियम 2023: दूरसंचार सेवाओं, स्पेक्ट्रम आवंटन और संबंधित मामलों से संबंधित कानूनों को अद्यतन एवं समेकित करने के लिये अधिनियमित किया गया।
  • मोबाइल अवसंरचना: जून 2024 तक, भारत में 8.02 लाख मोबाइल टावर, 29.37 लाख बेस ट्रांसीवर स्टेशन (Base Transceiver Stations- BTS) और 4.5 लाख 5G BTS हैं।
  • 4G संतृप्ति परियोजना: 24,680 शामिल किये गए गाँवों में 4G मोबाइल सेवाओं का विस्तार करने और 6,279 गाँवों को 2G/3G से 4G में अपग्रेड करने के लिये 26,316 करोड़ रुपए की पहल।
  • दूरसंचार परीक्षण प्रयोगशालाएँ: 69 से अधिक प्रयोगशालाओं को अनुरूपता मूल्यांकन निकायों के रूप में नामित किया गया है, जो कार्यक्षमता, विश्वसनीयता और अंतर-संचालन के लिए दूरसंचार उपकरणों का परीक्षण करने के लिए सुसज्जित हैं।
  • स्पेक्ट्रम विनियामक सैंडबॉक्स (SRS) और WiTe जोन: दूरसंचार में नवाचार और "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया। अनुसंधान एवं विकास तथा स्पेक्ट्रम अन्वेषण के लिए सरलीकृत विनियामक ढाँचा प्रदान करता है। WiTe जोन को प्रयोग हेतु शहरी और दूरदराज के क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है और इसमें शिक्षाविदों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और दूरसंचार प्रदाताओं के लिये पात्रता शामिल है।

भारतनेट परियोजना 

  • उद्देश्य: भारत में सभी 2,50,000 ग्राम पंचायतों (GP) को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना।
  • परियोजना का दायरा और संशोधन: बेहतर सेवा उपयोग, व्यावसायिक निर्माण, उन्नयन और नेटवर्क रखरखाव को शामिल करने के लिये परियोजना का विस्तार किया गया है।
  • भविष्य की योजनाएँ: इसमें फाइबर टू होम (FTTH) कनेक्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में डेटा उपयोग को बढ़ाने के लिये पायलट परियोजनाएँ शामिल हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र

  • इंडिया AI कार्यक्रम: इसका उद्देश्य शासन में AI , AI IP और नवाचार, AI कंप्यूट तथा सिस्टम, AI के लिये डेटा, AI में कौशल एवं AI नैतिकता एवं शासन जैसे स्तंभों के माध्यम से सामाजिक प्रभाव हेतु AI का लाभ उठाना है। इंडियाAI का पहला संस्करण अक्तूबर 2023 में जारी किया गया था।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी (GPAI): भारत इसका संस्थापक सदस्य है, जो जून 2020 में इसमें शामिल हुआ और इसने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत ने वर्ष 2023 में इनकमिंग काउंसिल चेयर, 2024 में लीड चेयर और 2025 में आउटगोइंग चेयर के रूप में कार्य किया। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इंडियाAI मिशन के लिये 10,300 करोड़ रुपए मंजूर किये।
  • ऐरावत (AIRAWAT): C-DAC, पुणे का एक AI सुपरकंप्यूटर, जर्मनी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग सम्मेलन 2023 में शीर्ष 500 वैश्विक सुपरकंप्यूटिंग सूची में 75वें स्थान पर है।
  • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: डिजिटल सेवाओं को बढ़ाने के लिये जुलाई 2015 में शुरू किया गया:
    • मेरी पहचान (राष्ट्रीय एकल साइन-ऑन - NSSO): एक ही क्रेडेंशियल सेट के साथ 9,600 से अधिक सेवाओं तक पहुँच की अनुमति देता है।
    • डिजिलॉकर: 26.28 करोड़ से अधिक उपयोगकर्त्ताओं और 674 करोड़ दस्तावेज़ों के साथ दस्तावेज़ों का डिजिटल भंडारण, जारी करने और सत्यापन प्रदान करता है।
    • उमंग (नये युग के शासन के लिये एकीकृत मोबाइल एप्लीकेशन): यह एक ही ऐप के माध्यम से 207 केंद्रीय और राज्य सरकार के विभागों की 2,019 सेवाएँ प्रदान करता है।

GI क्लाउड - 'मेघराज'

  • अवलोकन: सभी सरकारी विभागों और मंत्रालयों को ICT सेवाएँ प्रदान करने के लिये क्लाउड कंप्यूटिंग का लाभ उठाने की एक महत्त्वाकांक्षी पहल।
  • उद्देश्य: केंद्रीय और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के विभागों में क्लाउड प्रौद्योगिकी को व्यापक रूप से अपनाना सुनिश्चित करना और भारत में एक मज़बूत क्लाउड पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
  • वर्तमान उपयोग: GI क्लाउड पर 25,806 वर्चुअल मशीनें कार्यरत हैं, जो 1,767 से अधिक सरकारी अनुप्रयोगों का समर्थन करती हैं।
  • क्लाउड सेवा प्रदाताओं (CSP) का पैनल: 22 घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय CSP को पैनल में शामिल किया गया है। 250 से अधिक केंद्रीय और राज्य विभाग इन पैनल प्रदाताओं से क्लाउड सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।

चुनौतियाँ और अवसर

  • भूमि-संबंधी:
    • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण और मंज़ूरी में देरी।
    • डिजिटल भूमि अभिलेखों का धीमी गति से क्रियान्वयन।
    • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा परियोजनाएँ स्थल चयन और अनुमोदन के कारण समय लेने वाली होती हैं।
  • कौशल की मांग:
    • विमानन रखरखाव और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में सीमित तकनीकी ज्ञान।
    • MRO, लीजिंग और परियोजना प्रबंधन में कौशल विकास की आवश्यकता।
    • प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी और उद्योग-विशिष्ट झटकों से निपटने के लिये आवश्यक।
  • निजी भागीदारी में सुधार की आवश्यकत:
    • मुख्यतः सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा वित्तपोषित बुनियादी ढाँचे का विकास।
    • चुनौतियों में उच्च पूंजी निवेश, लंबी भुगतान अवधि, परियोजना संरचना संबंधी समस्याएँ, मंज़ूरी में देरी और स्वतंत्र विनियमन का अभाव शामिल हैं।
    • नवीन वित्तपोषण मॉडल और बेहतर अनुबंध प्रबंधन के माध्यम से निजी क्षेत्र की बेहतर सहभागिता की आवश्यकता।
  • जलवायु एवं पर्यावरणीय स्थिरता:
    • विमानन के लिये CORSIA जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन, जिसमें टिकाऊ विमानन ईंधन (SAF) या कार्बन ऑफसेट का उपयोग शामिल है।
    • भारत में SAF की उच्च लागत और ICAO-अनुमोदित उत्सर्जन इकाई कार्यक्रमों का अभाव।
  • बुनियादी ढाँचा वित्तपोषण एकत्रीकरण:
    • अनेक हितधारकों और साधनों के साथ जटिल वित्तपोषण संरचना।
    • विभिन्न रिपोर्टिंग प्रारूपों और पूंजीगत व्यय पर अपर्याप्त आँकड़ों के कारण वित्तीय प्रवाह को एकत्रित करने में चुनौतियाँ।
    • दोहरी गणना से संबंधित समस्याएँ तथा व्यापक एवं सुसंगत डेटा की आवश्यकता।
  • भौतिक प्रगति की निगरानी:
    • विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की प्रगति पर नज़र रखने के लिये एकीकृत स्रोत का अभाव।
    • परियोजना की प्रगति का प्रभावी मूल्यांकन करने के लिये केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों तथा सार्वजनिक और निजी भागीदारों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।

सुविधा प्रदान करना और बाधाओं का समाधान करना

  • केंद्रीकृत निगरानी और ट्रैकिंग - NIP पोर्टल का प्रभावी ढंग से उपयोग करना:
    • केंद्रीकृत डेटा संग्रह: सुनिश्चित करना कि सभी मंत्रालय और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश NIP पोर्टल पर अपने प्रोजेक्ट डेटा को लगातार अपडेट और बनाए रखें। इससे परियोजना की प्रगति और संभावित निवेश अवसरों का वास्तविक समय पर अवलोकन मिलेगा।
    • नियमित समीक्षा और अद्यतन: डेटा की सटीकता सुनिश्चित करने और चल रही तथा पूर्ण हो चुकी परियोजनाओं की प्रगति पर नज़र रखने के लिये पोर्टल की आवधिक समीक्षा करना।
  • संस्थागत तंत्र को मज़बूत बनाना - परियोजना निगरानी समूह (PMG):
    • मुद्दों के त्वरित समाधान: परियोजना प्रस्तावकों और सरकारी एजेंसियों के बीच संचार चैनलों को सुव्यवस्थित करके मुद्दों को शीघ्रता से हल करने के लिये PMG को सशक्त बनाना।
    • PMG क्षमताओं का विस्तार: अधिक परियोजनाओं और मुद्दों को एक साथ संभालने के लिये PMG की क्षमता में वृद्धि करना, जिससे समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित हो सके।
  • अंतर-मंत्रालयी और राज्य सहयोग - PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (PMGS-NMP):
    • एकीकृत योजना: एकीकृत बहुविध अवसंरचना योजना के लिये PMGS-NMP पोर्टल पर शामिल 43 मंत्रालयों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • अंतिम-मील कनेक्टिविटी को संबोधित करना: रसद और लोगों और वस्तुओं की आवाजाही की दक्षता बढ़ाने के लिये अंतिम-मील कनेक्टिविटी अंतराल की पहचान तथा समाधान पर ध्यान केंद्रित करना।
    • नियमित समन्वय बैठकें: प्रगति पर चर्चा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और अंतर-विभागीय मुद्दों को हल करने के लिये मंत्रालयों और राज्यों के बीच लगातार बैठकें आयोजित करना।
  • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी अपनाने पर ध्यान केंद्रित करना
    • कौशल संवर्द्धन कार्यक्रम: NIP और PMGS-NMP पोर्टलों के उपयोग के साथ-साथ परियोजना प्रबंधन और समस्या समाधान में सर्वोत्तम प्रथाओं पर सरकारी अधिकारियों और परियोजना प्रबंधकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
    • प्रौद्योगिकी अपनाना: बेहतर परियोजना ट्रैकिंग, प्रबंधन और पारदर्शिता के लिये AI, बिग डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना
    • निवेशकों के साथ जुड़ें: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों निवेशकों को निवेश के अवसरों को दिखाने के लिये NIP पोर्टल का उपयोग करना तथा लाभों और संभावित रिटर्न पर प्रकाश डालें।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के क्रियान्वयन में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता, दक्षता और पूंजी का लाभ उठाने के लिये PPP मॉडल को बढ़ावा देना।
  • निरंतर सुधार और प्रतिक्रिया
    • हितधारक प्रतिक्रिया: एक मज़बूत प्रतिक्रिया तंत्र स्थापित करें जहां परियोजना प्रस्तावक, निवेशक और अन्य हितधारक NIP और PMGS-NMP प्रक्रियाओं पर इनपुट प्रदान कर सकें।
    • पुनरावृत्तीय सुधार: समग्र दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये पोर्टल, प्रक्रियाओं और नीतियों में निरंतर सुधार करने हेतु फीडबैक का उपयोग करना।

NLP के कार्यान्वयन में तेज़ी

अवलोकन: भारत ने अपने लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर में उल्लेखनीय सुधार किया है, जो 139 देशों के बीच विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक 2018 में 44वें स्थान से वर्ष 2023 में 38वें स्थान पर पहुँच गया है। सितंबर 2022 में लॉन्च की गई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) का उद्देश्य उन्नत प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं का लाभ उठाते हुए एक एकीकृत, कुशल, टिकाऊ और लागत प्रभावी लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के माध्यम से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है।

उद्देश्य: प्राथमिक उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना, भारत की लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक रैंकिंग में सुधार करना और डेटा-संचालित निर्णय समर्थन तंत्र बनाना है।

प्रमुख कार्य क्षेत्र और प्रगति:

  • एकीकृत डिजिटल लॉजिस्टिक्स सिस्टम:
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स एकीकृत प्लेटफॉर्म का विकास, आठ मंत्रालयों में 36 लॉजिस्टिक्स-संबंधित डिजिटल प्रणालियों/पोर्टलों को एकीकृत करना, 1,800 डेटा क्षेत्रों पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करना।
    • RFID, IoT और बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके भारत के कंटेनरीकृत एक्सिम कार्गो पर 100% नज़र रखने के लिये लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक का निर्माण। यह प्रणाली 28 बंदरगाह टर्मिनलों, 95 से अधिक टोल प्लाजा, 407 कंटेनर फ्रेट स्टेशनों/अंतर्देशीय कंटेनर डिपो, खाली यार्ड, 56 एसईजेड और तीन एकीकृत चेक पोस्टों के साथ एकीकृत है।
  • सेवा गुणवत्ता मानक:
    • भारतीय मानक ब्यूरो और वेयरहाउसिंग विकास एवं विनियामक प्राधिकरण द्वारा जारी मौजूदा मानकों को रेखांकित करते हुए वेयरहाउसिंग मानकों पर एक ई-बुक का विकास।
  • क्षमता निर्माण:
    • केंद्रीय और राज्य प्रशिक्षण संस्थानों के साथ लॉजिस्टिक्स और PMGS-NMP पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का एकीकरण।
  • राज्य की भागीदारी:
    • राज्य स्तर पर नीतिगत फोकस प्रदान करने के लिये NLP के साथ संरेखित राज्य रसद योजनाओं का विकास। अब तक 26 राज्यों ने अपनी राज्य रसद नीतियों को अधिसूचित किया है।
    • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में वार्षिक "विभिन्न राज्यों में रसद सुगमता (LEADS)" सर्वेक्षण का क्रियान्वयन।
  • EXIM लॉजिस्टिक्स:
    • राष्ट्रीय व्यापार सुविधा समिति (NCTF) द्वारा विकसित कार्य योजनाओं के माध्यम से बुनियादी ढाँचे की कमी को दूर करना। राष्ट्रीय व्यापार सुविधा कार्य योजना 2020-23 तैयार की गई है तथा वर्ष 2024-26 के लिये कार्य योजना वर्तमान में विकास के चरण में है।
  • सेवा सुधार ढाँचा:
    • 30 से अधिक व्यावसायिक संघों को शामिल करते हुए सेवा सुधार समूह की स्थापना। E-LoGS मंच पर संघों द्वारा महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए जाते हैं।
  • कुशल लॉजिस्टिक्स के लिये क्षेत्रीय योजनाएँ:
    • फरवरी 2024 में कोयला लॉजिस्टिक्स योजना और नीति की शुरुआत।
    • वर्ष 2022 में व्यापक बंदरगाह संपर्क योजना तैयार करना, बंदरगाहों, रेलवे, सड़क मार्गों और अंतर्देशीय जलमार्गों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये 107 बंदरगाह परियोजनाओं की पहचान करना।
  • लॉजिस्टिक्स पार्क के विकास में सुविधा: मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क के लिये दिशा-निर्देशों की समीक्षा।

निष्कर्ष और दृष्टिकोण

पिछले दशक में, भारत ने सड़क, रेल, हवाई संपर्क, स्वच्छता और डिजिटल बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी है। इस प्रगति के बावजूद बुनियादी ढाँचे का विकास बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तपोषण द्वारा संचालित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों ने 2019 और 2023 के बीच क्रमशः 49% और 29% निवेश का योगदान दिया है, जबकि निजी क्षेत्र ने 22% योगदान दिया है।

बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र के वित्तपोषण में वृद्धि तथा संसाधन जुटाने के अभिनव तरीके आवश्यक हैं। इसके लिये सरकार के सभी स्तरों से सहायक नीतियों की आवश्यकता है। बेहतर बुनियादी ढाँचे के निवेश की जानकारी हेतु बेहतर डेटा कैप्चर और रिपोर्टिंग तंत्र भी आवश्यक हैं। हालाँकि नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन और PPP इंडिया पोर्टल जैसे विभिन्न डेटाबेस मौजूद हैं, लेकिन वे असंगत डेटा संग्रह एवं कार्यप्रणाली संबंधी विसंगतियों जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं। नियमित अपडेट तथा स्पष्ट सार्वजनिक-निजी भेद के साथ एकीकृत ढाँचे के तहत इस डेटा को समेकित करने से नीति निर्माताओं को संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे की योजना बनाने में सहायता मिलेगी।


  अध्याय 13 - जलवायु परिवर्तन और भारत: हमें इस समस्या को अपने नजरिये से क्यों देखना चाहिये  

माता भूमि पुत्रोहम पृथिव्या:

पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ

परिचय

  • भारत में प्रकृति के साथ स्थायित्व और सामंजस्य की दीर्घकालिक परंपरा रही है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता होने के बावजूद, भारत पर कार्बन उत्सर्जन कम करने का दबाव है।
  • 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर वैश्विक ध्यान वर्तमान दृष्टिकोण की प्रभावशीलता और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
  • यह निबंध वैश्विक जलवायु परिवर्तन रणनीतियों, उनकी सीमाओं की जाँच करेगा तथा भारत के लोकाचार (मिशन लाइफ) पर केंद्रित एक अधिक टिकाऊ विकल्प का प्रस्ताव करेगा।

जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों के सापेक्ष भारत की उपलब्धियाँ

  • उत्सर्जन तीव्रता में कमी: वर्ष 2005 और 2019 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष उत्सर्जन तीव्रता में 33% की कमी हासिल की गई, जिससे 2030 के लिये अपने प्रारंभिक NDC लक्ष्य को निर्धारित समय से 11 वर्ष पहले ही पूरा कर लिया गया।
  • गैर-जीवाश्म ईंधन विद्युत क्षमता: गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से विद्युत स्थापित क्षमता का 40% प्राप्त किया गया, जो 2030 के लक्ष्य से नौ वर्ष पहले है। 2017 और 2023 के बीच, लगभग 100 गीगावाट विद्युत क्षमता जोड़ी गई, जिसमें से लगभग 80% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त हुई।
  • अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल: अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया गया, जिनमें शामिल हैं:
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
    • आपदा रोधी अवसंरचना के लिये संघ (CDRI)
    • लीडआईटी (उद्योग परिवर्तन के लिये नेतृत्व समूह)
    • प्रतिस्कंदी द्वीपीय राज्यों के लिये अवसंरचना (IRIS)
    • बिग कैट एलायंस

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक दृष्टिकोण

  • CO2 उत्सर्जन का प्रभाव:
    • प्राथमिक योगदानकर्त्ता: ग्रीनहाउस गैसें, विशेषकर CO2, जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
    • दीर्घायु (Longevity): CO2 वायुमंडल में 300 से 1000 वर्षों तक रह सकती है, जिससे दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय क्षति, जैसे ध्रुवीय बर्फ पिघलना हो सकती है।
  • वैश्विक जलवायु रणनीति:
    • जलवायु अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के उपाय।
    • जलवायु शमन: GHG के उत्सर्जन को कम करने या रोकने के प्रयास।
    • प्रमुख कार्यवाहियाँ:
      • गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण।
      • नवीन एवं पर्यावरण अनुकूल डिज़ाइनों के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार करना।
      • पुनर्योजी और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील कृषि पद्धतियों को लागू करना।
      • प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा एवं पुनर्स्थापना।

WEO-2023 में 2030 तक विश्व को ट्रैक पर लाने हेतु वैश्विक रणनीति का प्रस्ताव

इस प्रस्ताव के पाँच प्रमुख स्तंभ इस प्रकार हैं:

  • वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाना।
  • ऊर्जा दक्षता सुधार की दर को दोगुना करना।
  • जीवाश्म ईंधन परिचालन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में 75 प्रतिशत की कमी लाना।
  • उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में स्वच्छ ऊर्जा निवेश को तीन गुना करने के लिये नवोन्मेषी, बड़े पैमाने पर वित्तपोषण तंत्र स्थापित करना।
  •  जीवाश्म ईंधन के उपयोग में क्रमबद्ध कमी सुनिश्चित करने के उपाय करना, जिसमें कोयला आधारित विद्युत संयंत्रें को नए अनुमोदन पर रोक लगाना शामिल है।

वर्तमान दृष्टिकोण दोषपूर्ण क्यों है?

जलवायु परिवर्तन के प्रति वर्तमान दृष्टिकोण को कई कारणों से त्रुटिपूर्ण माना जाता है:

  • अपर्याप्त कार्बन बजट और त्वरित समय-सीमा:
    • वैश्विक तापमान को 1.5°C तक सीमित रखने हेतु IPCC द्वारा निर्धारित कार्बन बजट लगभग 500 GtCO2 है, जबकि 2°C के लिये यह लगभग 1150 GtCO2 (विभिन्न संभावनाओं के साथ)  है।
    • प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ यह बजट घटता जाता है, जिससे प्रभावी कार्रवाई के लिये कम समय बचता है।
    • वैश्विक राष्ट्रों को आर्थिक विकास को संतुलित करते हुए तेज़ी से उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्यों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • समझ और दृष्टिकोण में मूलभूत कमियाँ:
    • पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियों की सीमित समझ प्रभावी समाधान में बाधा डालती है।
    • कृत्रिम तंत्र पर निर्भरता प्राकृतिक प्रक्रियाओं का पूर्णतः स्थान नहीं ले सकती।
    • वर्तमान रणनीतियाँ अक्सर क्षेत्रीय मतभेदों और मूल्यवान, प्रकृति-आधारित समाधानों की अनदेखी करती हैं।
    • विकसित देशों में अति उपभोग एक मुख्य मुद्दा है जिस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता।
    • मानव-प्रकृति के अंतःक्रिया को समझने की दिशा में एक दार्शनिक बदलाव की आवश्यकता है।
  • ऊर्जा पहेली:
    • विद्युत उद्योग (परिवहन सहित) प्राथमिक GHG उत्सर्जक है, इसके बाद औद्योगिक दहन, कृषि और अपशिष्ट का स्थान आता है।
    • गोमांस उत्पादन, जो इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, में पर्याप्त विनियामक परिवर्तनों का अभाव है।
    • यहाँ तक ​​कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का भी पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, जैसे सामग्री निष्कर्षण, उत्पादन और निपटान।
    • ऊर्जा और शक्ति के बीच अंतर को अक्सर गलत समझा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रभावी नीतियाँ बनती हैं।
    • शुद्ध शून्य कार्बन प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है, जिसमें विशाल ऊर्जा अवसंरचना को प्रतिस्थापित करना और अल्प समय सीमा के भीतर नई प्रौद्योगिकियों का विकास करना शामिल है।
  • आर्थिक विकास बनाम पर्यावरणीय स्थिरता:
    • जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर अति उपभोग को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
    • एक "स्थायित्व उद्योग" का सृजन वास्तविक व्यवहारगत परिवर्तन को ढक सकता है।
    • कृत्रिम बुद्धि (AI) और डेटा सेंटरों के उदय से ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, जिससे जलवायु लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • कम ऐतिहासिक उत्सर्जन वाले विकासशील देशों को वर्तमान उत्सर्जन कम करने में अनुचित बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
    • अपर्याप्त जलवायु वित्तपोषण विकासशील देशों की अनुकूलन एवं शमन क्षमता में बाधा डालता है।
  • विशिष्ट उदाहरण:
    • विकसित देशों में टॉयलेट पेपर के लिये शुद्ध लकड़ी का उपयोग अस्थाई प्रथाओं को उजागर करता है।
    • लिथियम-आयन बैटरियों के लिये कोबाल्ट निष्कर्षण में अक्सर मानवाधिकारों का हनन शामिल होता है।
    • फ्राँस का सौर पैनल अधिदेश ऊर्जा खपत के बजाय बिजली उत्पादन पर केंद्रित है।
    • एक एकल ChatGPT खोज की ऊर्जा खपत गूगल खोज की तुलना में काफी अधिक है।
    • वैश्विक उत्सर्जकों में से शीर्ष 10% प्रति व्यक्ति 22 टन CO2 का उपभोग करते हैं, जबकि निचले 10% के लिये यह 1 टन से भी कम है।
    • जलवायु वित्त प्रायः अनुदान के बजाय ऋण के रूप में आता है, जिससे ऋण का बोझ बढ़ जाता है।

भारतीय पद्धतिः एक संधारणीय जीवनशैली

  • दार्शनिक लचीलापन:
    • आध्यात्मिक समझ: प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में भारत की लचीलापन, सृजन और विनाश के प्राकृतिक चक्रों की गहरी आध्यात्मिक और दार्शनिक समझ में निहित है।
  • प्रकृति के साथ सामंजस्य:
    • प्राकृतिक नियमों का सम्मान: भारत प्रकृति के अपरिवर्तनीय नियमों के साथ तालमेल बिठाने पर जोर देता है, न कि औद्योगिक साधनों के माध्यम से उन्हें बदलने का प्रयास करता है। विश्वास यह है कि वैश्विक पर्यावरणीय रणनीतियों को प्रकृति की चक्रीय प्रकृति के अनुरूप होना चाहिये।
  • प्राचीन ज्ञान का एकीकरण:
    • संधारणीय जीवनशैली: भारत संधारणीय जीवनशैली के अपने प्राचीन ज्ञान को आधुनिक जलवायु रणनीतियों में एकीकृत करने का समर्थन करता है। इसमें उत्सर्जन उत्पादन और कमी दोनों पर व्यक्तिगत कार्यों के प्रभाव को पहचानना शामिल है।
  • आधुनिक संदर्भ में प्राचीन ज्ञान:
    • शास्त्रीय चिंतन: शुक्ल यजुर्वेद की यह ऋचा पर्यावरण से लेकर मानवीय कार्यों तक जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन और सामंजस्य के प्राचीन भारतीय मूल्य को प्रतिबिंबित करती है।

शुक्ल यजुर्वेद (36/17) में ऋषियों ने इस श्लोक का वर्णन किया है:

"पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि
शांति: शांति: शांति:

पृथ्वी, जल, पौधे, वृक्ष और देवताओं में शांति और संतुलन हो। आप में, अंतरिक्ष में और हर चीज में संतुलन हो।

मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिये जीवनशैली)

  • मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने 2021 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC COP26) में की थी। यह व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देता है और प्राकृतिक रूप से संधारणीय जीवनशैली का समर्थन करने वाले प्राचीन भारतीय दर्शन से सुमेलित है। इस पहल में व्यक्तियों के लिये 75 कार्यों की एक व्यापक, हालाँकि संपूर्ण नहीं, सूची बताई गई है, जिन्हें अधिक संधारणीय तरीके से जीने के लिये अपनाया जाना चाहिये।

मिशन लाइफ के 5 मूलभूत सिद्धांत:

  • प्रकृति के साथ सामंजस्य:
    • सिद्धांत: व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों को प्राकृतिक विश्व की लय और नियमों के साथ संरेखित करना।
    • केंद्र: उन प्रथाओं को अपनाएँ जो प्राकृतिक चक्रों का सम्मान करती हैं और उनके साथ एकीकृत होती हैं, न कि उन्हें बदलने का प्रयास करती हैं।
  • व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी:
    • सिद्धांत: यह स्वीकार करना कि उत्सर्जन को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका है।
    • केंद्र: व्यक्तियों को पर्यावरण-अनुकूल विकल्प चुनने और दैनिक जीवन में संधारणीय प्रथाओं को एकीकृत करने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • ग्रह समर्थक विकल्पों की सामूहिक मांग:
    • सिद्धांत: मांग पैटर्न और सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करके सामूहिक व्यवहार को स्थिरता की ओर स्थानांतरित करना।
    • केंद्र: उपभोग, जीवनशैली और सामुदायिक गतिविधियों में संधारणीय विकल्पों को बढ़ावा देना और सामान्य बनाना।
  • प्राचीन ज्ञान का एकीकरण:
    • सिद्धांत: संतुलन और सामंजस्य के प्राचीन भारतीय सिद्धांतों को आधुनिक पर्यावरणीय रणनीतियों पर लागू करना।
    • केंद्र: संधारणीय जीवन के लिये समकालीन प्रथाओं और नीतियों का मार्गदर्शन करने हेतु पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना।
  • व्यापक कार्रवाई रूपरेखा:
    • सिद्धांत: जीवन के विभिन्न पहलुओं और समाज के विभिन्न स्तरों के अनुरूप कार्यों की एक विस्तृत शृंखला को क्रियान्वित करना।
    • फोकस: ऐसे कार्यों की विस्तृत लेकिन अनुकूलनीय सूची प्रदान करना जिन्हें व्यक्ति और समुदाय स्थायी रूप से जीवन जीने के लिये अपना सकते हैं।

व्यक्तिगत कार्य जलवायु उत्तरदायित्व का मूल है 

  • व्यक्तिगत व्यवहार की भूमिका:
    • व्यक्तिगत क्रियाकलाप जलवायु परिणामों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरणतः, सफाई के लिये टिशू पेपर के बजाय कपड़े का उपयोग करना, पुनः उपयोग की जाने वाली प्लेटों का चयन करना और जल-आधारित सफाई प्रणालियों को अपनाना, भारत सहित कई संस्कृतियों में निहित टिकाऊ प्रथाएँ हैं।
    • पारंपरिक प्रथाएँ, जैसे कि कीट नियंत्रण के लिये घरेलू उपचार का उपयोग करना या पुनर्चक्रण और मरम्मत के माध्यम से संसाधनों का संरक्षण करना, स्थिरता की गहरी संस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं, जो डिस्पोजेबल वस्तुओं तथा फास्ट फैशन के पक्ष में आधुनिक पूंजीवादी प्रवृत्तियों के विपरीत है।
  • व्यवहार परिवर्तन का मामला:
    • उपभोग और जीवनशैली में स्वैच्छिक परिवर्तनों पर ज़ोर देने से, जैसे ऊर्जा का उपयोग कम करना, ई-बिल अपनाना, या ऊर्जा-कुशल उत्पादों का उपयोग करना, पर्यावरणीय लाभ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • विकसित देशों में व्यक्तियों को स्वेच्छा से उच्च उपभोग की आदतों को छोड़ने के लिये प्रोत्साहित करना - जैसे अत्यधिक गोमांस का उपभोग और फास्ट फैशन - मांग के पैटर्न को बदल सकता है, जो बदले में आपूर्ति शृंखलाओं तथा उत्पादन प्रथाओं को प्रभावित करेगा।
  • भारत में स्वैच्छिक सादगी का ऐतिहासिक संदर्भ:
    • भारत की स्वैच्छिक त्याग की परंपरा, जैसा कि ‘गिव इट अप’ LPG सब्सिडी योजना में देखा गया है, यह दर्शाती है कि सामूहिक स्वैच्छिक कार्रवाई किस तरह महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम ला सकती है। सब्सिडी त्याग कर, व्यक्तियों ने ग्रामीण महिलाओं को स्वच्छ खाना पकाने के विकल्प उपलब्ध कराने में मदद की, जिससे ब्लैक कार्बन उत्सर्जन और स्वास्थ्य संबंधी खतरे कम हुए।
    • सादगी और सामुदायिक कल्याण की ऐसी ऐतिहासिक प्रथाओं के आधुनिक अनुप्रयोग हैं। वृक्षारोपण, न्यूनतम जीवन शैली और स्थानीय, टिकाऊ उत्पादों के लिये समर्थन जैसी स्वैच्छिक गतिविधियाँ इन मूल्यों के अनुरूप हैं।
  • जल संरक्षण:
    • जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन जल पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जल संरक्षण में व्यक्तिगत प्रयास - जैसे कि रसोई के जल का पुनः उपयोग, अनावश्यक जल की बर्बादी को रोकना तथा वर्षा जल संचयन को लागू करना - महत्त्वपूर्ण हैं।
    • जल संसाधनों के प्रबंधन के लिये सरकारी प्रयासों के बावजूद, दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये जल के उपयोग को कम करने में व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी अपरिहार्य है।

व्यक्तिगत ग्रह समर्थक विकल्पों को दर्शानेवाली सामूहिक नीति 

नीति और व्यक्तिगत संरेखण के प्रमुख क्षेत्र

  • एयर कंडीशनिंग उपयोग को अनुकूलित करना:
    • नीति: सरकारें सार्वजनिक स्थानों पर एयर कंडीशनर के लिये डिफॉल्ट तापमान दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती हैं, जिसका लक्ष्य अधिक टिकाऊ सीमा (जैसे, 24-25 डिग्री सेल्सियस) रखना है।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: लोगों को घर और कार्यस्थल पर भी इसी तरह की प्रथाओं को अपनाना चाहिये। आधुनिक कूलिंग सिस्टम को वाटर कूलर और वेंटिलेशन जैसे पारंपरिक तरीकों के साथ मिलाकर एयर कंडीशनिंग पर निर्भरता कम की जा सकती है।
  • प्लास्टिक बैग का उपयोग कम करना:
    • नीति: एकल-उपयोग प्लास्टिक बैगों पर प्रतिबंध या कर लागू करना तथा पुन: प्रयोज्य कपड़े के विकल्प के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने के लिये लोगों को खरीदारी और अन्य कामों हेतु पुन: प्रयोज्य बैग ले जाना चाहिये।
  • जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देना:
    • नीति: नए निर्माणों में वर्षा जल संचयन प्रणालियों जैसी जल-कुशल प्रौद्योगिकियों और डिज़ाइन विनिर्देशों को अनिवार्य करना। जल-बर्बाद करने वाली प्रौद्योगिकियों का पुनर्मूल्यांकन करें और उन्हें चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: घर पर जल-बचत के तरीके अपनाएँ, जैसे कि रसोई के पानी को इकट्ठा करके उसका पुनः उपयोग करना तथा बागवानी के लिये वर्षा जल का उपयोग करना।
  • सतत् कृषि को प्रोत्साहित करना:
    • नीति: सब्सिडी या प्रोत्साहन के माध्यम से टिकाऊ कृषि पद्धतियों का समर्थन करना। स्थानीय बीजों और प्राकृतिक कृषि तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: सतत् कृषि करने वाले स्थानीय किसानों का समर्थन करना और उनसे खरीदना। अपशिष्ट को कम करने के लिये खाद और मल्चिंग का उपयोग करना।
  • सतत् विकल्पों के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन:
    • नीति: बड़े परिवारों या सतत् विकल्प अपनाने वालों के लिये कर लाभ या वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: ऐसे सतत् उत्पादों और अभ्यासों का चयन करना जो वित्तीय प्रोत्साहनों के अनुरूप हों।

सतत् उत्पादों के लिये बाज़ार में मांग बढ़ाना

  • पारंपरिक उत्पाद: सतत्, स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों की बढ़ती मांग पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित कर सकती है और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम कर सकती है।
  • विनियमन: लुप्तप्राय प्रजातियों या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले उत्पादों (जैसे, हाथी दाँत, चमड़ा) पर प्रतिबंध लगाएँ। सरकारी प्रोत्साहनों के माध्यम से चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
  • फैशन और वस्त्र:
    • नीति: वस्त्र अपशिष्ट के पुन: उपयोग, मरम्मत और पुनः विनिर्माण को बढ़ाने के लिये वस्त्र नीति में परिपत्रता लागू करना।
    • व्यक्तिगत कार्रवाई: कपड़ों के स्वैच्छिक पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण का अभ्यास करना और उसका समर्थन करना। सतत् फैशन ब्रांड तथा उत्पादों का चयन करना।

स्थानीय और संधारणीय भूगोल एवं संस्कृति का समावेश

  • स्थानीय खाद्य प्रणालियों को अपनाना
    • स्थानीय खाद्य मूल्य: पारंपरिक भारतीय भोजन में पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों पर ज़ोर दिया जाता है, जो स्थानीय भूगोल और उसके लाभों से गहरे संबंध को दर्शाता है। यह दृष्टिकोण पारिस्थितिक पदचिह्नों को कम करता है तथा वैश्विक खाद्य प्रणालियों की तुलना में ऊर्जा आवश्यकताओं को कम करता है जो एवोकैडो या सोया दूध जैसे आयातित अवयवों पर निर्भर करते हैं।
    • सतत् भोजन पद्धतियाँ: "स्थानीय भोजन खाएँ, ताजा भोजन खाएँ, संधारणीय भोजन करें:" का सिद्धांत स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थों के उपभोग को प्रोत्साहित करता है, जो स्थानीय कृषि को समर्थन देता है तथा लंबी दूरी के परिवहन की आवश्यकता को कम करता है।
  • स्वास्थ्य और आयुर्वेद
    • आयुर्वेदिक ज्ञान: आयुर्वेद, प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और उपचार से ज़्यादा रोकथाम को प्राथमिकता देने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे स्वास्थ्य के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। यह प्राकृतिक उपचार तथा आहार संबंधी प्रथाओं को बढ़ावा देता है जो स्थानीय संसाधनों एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप हों।
    • औषधियों पर निर्भरता कम करना: आयुर्वेदिक सिद्धांतों को अपनाकर और प्राकृतिक, स्थानीय रूप से उपलब्ध उपचारों पर ध्यान केंद्रित करके, व्यक्ति संभावित रूप से औषधियों पर निर्भरता कम कर सकते हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों को न्यूनतम कर सकते हैं।
  • संधारणीय अंतर्ग्रहण प्रथाएँ
    • पादप-आधारित आहार: पौध-आधारित आहार पर जोर देने से पर्यावरणीय स्थिरता को समर्थन मिलता है और यह पारंपरिक आहार प्रथाओं के अनुरूप है जो स्थानीय, पौध-आधारित खाद्य पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
    • पत्ती-आधारित डिस्पोजेबल: एकल-उपयोग प्लास्टिक या स्टायरोफोम के स्थान पर पत्ती-आधारित प्लेटों का उपयोग करने से अपशिष्ट कम होता है और पारंपरिक, बायोडिग्रेडेबल विकल्पों को बढ़ावा मिलता है।
    • किण्वित उत्पाद: प्राकृतिक संरक्षण विधियों का उपयोग करने वाले किण्वित उत्पादों को शामिल करने से ऊर्जा-गहन खाद्य संरक्षण तकनीकों की आवश्यकता कम हो सकती है।
    • खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन: खाद्य अपशिष्ट का पुनर्चक्रण और जैविक खाद अपशिष्ट में कमी तथा संसाधन दक्षता में योगदान करते हैं। उदाहरणतः फटा हुआ दूध पनीर बनाने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है, और मट्ठे के पानी का पुनः उपयोग खाना बनाने में किया जा सकता है।
    • औषधीय जड़ी-बूटियाँ: तुलसी और नीम जैसी स्थानीय औषधीय जड़ी-बूटियों को उगाना तथा उनका उपयोग करना स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है एवं जैव विविधता को बढ़ावा दे सकता है।
    • वनरोपण और जल संरक्षण: वृक्षारोपण से जल-स्तर संरक्षण तथा अन्य पर्यावरणीय लाभ मिलते हैं, तथा पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है।
    • मौसमी और स्थानीय भोजन: मौसमी तथा स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों, जैसे क्विनोआ की तुलना में बाजरा को प्राथमिकता देने से खाद्य उत्पादन एवं परिवहन से जुड़े कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलती है।
    • प्राकृतिक किस्में और बीज संग्रहण: प्राकृतिक बीज किस्मों के उत्पादन तथा स्थानीय बीज संग्रहण को प्रोत्साहित करने से कृषि जैव विविधता एवं स्थिरता को समर्थन मिलता है।
  • नीति और सामुदायिक एकीकरण
    • सार्वजनिक प्रोत्साहन: सरकारों और संगठनों को प्राकृतिक खाद्य किस्मों के उत्पादन तथा स्थानीय बीज की कटाई को प्रोत्साहित करना चाहिये। नीतियों एवं सब्सिडी के माध्यम से स्थानीय कृषि का समर्थन करने से संधारणीय अभ्यासों को बढ़ावा मिल सकता है व आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • सांस्कृतिक एकीकरण: पारंपरिक ज्ञान और अभ्यासों को आधुनिक स्थिरता प्रयासों में एकीकृत करने से पर्यावरण संरक्षण तथा स्वास्थ्य के प्रति अधिक समग्र दृष्टिकोण तैयार हो सकता है।

‘सही’ निर्णय लेने में बाज़ार नहीं, बल्कि सार्वजनिक नीति सर्वाेपरि है

  1. नीति और बुनियादी ढाँचे की भूमिका
    • उपभोग पैटर्न को प्रभावित करना: व्यक्तिगत व्यवहार और उपभोग विकल्प आस-पास के मानदंडों, नीतियों, प्रोत्साहनों तथा बुनियादी ढाँचे द्वारा दृढ़ता से आकार लेते हैं। सरकारें, सामुदायिक नेता एवं मीडिया इन कारकों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • केस स्टडी: 
      • उजाला कार्यक्रम: वर्ष 2015 में शुरू किये गए उजाला कार्यक्रम ने ऊर्जा-कुशल LED लाइटों को अपनाने को सफलतापूर्वक बढ़ावा दिया। थोक खरीद और आपूर्ति के माध्यम से LED लाइटों की लागत को कम करके, कार्यक्रम ने प्रतिवर्ष लगभग 48 बिलियन kWh और वार्षिक बचत में 2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर की महत्त्वपूर्ण ऊर्जा बचत हासिल की। ​​यह पहल दर्शाती है कि कैसे नीति-संचालित प्रोत्साहन व्यापक व्यवहार परिवर्तन तथा जलवायु शमन का कारण बन सकते हैं।
  2. मांग-पक्ष परिवर्तन
    • व्यवहार परिवर्तन का महत्त्व: LiFE पहल का लक्ष्य वार्षिक वैश्विक CO2 उत्सर्जन को 2 बिलियन टन से अधिक कम करना (2030 तक आवश्यक कटौती का 20%) और लगभग 440 बिलियन अमरीकी डॉलर की उपभोक्ता बचत उत्पन्न करना है। यह जलवायु शमन पर व्यक्तिगत तथा सामूहिक व्यवहार को बदलने के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को उजागर करता है।
    • उपभोग पैटर्न में आमूलचूल परिवर्तन: ग्रहीय सीमाओं के भीतर रहने के लिये न केवल कुशल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना बल्कि उपभोग पैटर्न को बदलना भी महत्त्वपूर्ण है। राजनीतिक प्रक्रियाओं तथा नीतियों को इन परिवर्तनों का समर्थन करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी उपभोग दावों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • परिवर्तनकारी परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश
    • ऐतिहासिक मिसालें: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुनर्निर्माण, अंतरिक्ष अन्वेषण, इंटरनेट का विकास और अमेरिकी राजमार्ग निर्माण जैसी प्रमुख ऐतिहासिक परियोजनाओं का नेतृत्व सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश द्वारा किया गया था। इन पहलों ने बड़े पैमाने पर परिवर्तन लाने में सार्वजनिक वित्तपोषण की प्रभावशीलता को प्रदर्शित किया।
    • वर्तमान आवश्यकताएँ: आज, कार्बन पृथक्करण, कार्बन सिंक, बैटरी भंडारण प्रौद्योगिकी और हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश की अत्यधिक आवश्यकता है। ऐसे निवेश बौद्धिक संपदा मुद्दों को संबोधित कर सकते हैं तथा इन समाधानों की वैश्विक सार्वजनिक प्रकृति को रेखांकित कर सकते हैं।
  3. जागरूकता और शिक्षा
    • व्यवहार परिवर्तन के लिये अभियान: व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करने हेतु प्रभावी जागरूकता अभियान आवश्यक हैं। स्वच्छ भारत में खुले में शौच मुक्त (ODF) अभियान के समान व्यापक अभियानों द्वारा मिशन लाइफ पहल का समर्थन किया जाना चाहिये। भविष्य की पीढ़ियों में सतत् अभ्यासों और पर्यावरण चेतना को स्थापित करने के लिये पहल स्कूल से ही शुरू होनी चाहिये।
  4. रणनीतिक सिफारिशें
    • एकीकृत नीति दृष्टिकोण: ऐसी नीतियाँ विकसित करना जो संधारणीय व्यवहारों को प्रोत्साहित करना  और उन्हें बुनियादी ढाँचे में सुधार के साथ एकीकृत करना। उदाहरण के लिये ऊर्जा-कुशल उपकरणों के उपयोग को प्रोत्साहित करना, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना तथा स्थानीय एवं संधारणीय खाद्य प्रणालियों का समर्थन करना।
    • सार्वजनिक क्षेत्र का नेतृत्व: हरित प्रौद्योगिकियों और परिवर्तनकारी परियोजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने का समर्थन करना। सुनिश्चित करें कि ये निवेश समावेशी तथा वैश्विक रूप से सुलभ हों।

संसाधनों का विवेकपूर्ण उपभोग, आवश्यकता के आधार पर न कि लालच के आधार पर होना चाहिये 

  1. पूंजीवाद और GDP उपायों की आलोचना
    • पूंजीवाद और ऊर्जा संक्रमण: स्वच्छ प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति के बावजूद, वैश्विक ऊर्जा उपयोग में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 86% से वर्ष 2023 में 82% तक मामूली रूप से कम हुई है। इससे पता चलता है कि पूंजीवाद, जैसा कि वह वर्तमान में संचालित होता है, ऊर्जा संक्रमण को तेज़ी  (डेरेक ब्रॉवर, अमांडा चू और माइल्स मैककॉर्मिक, FT) से आगे बढ़ाने में प्रभावी नहीं हो सकता है।
    • मूल्य के माप के रूप में GDP: किसी देश के मूल्य का प्रमुख माप अक्सर उसके GDP से आता है, जो उपभोग से संचालित होता है। GDP बढ़ाने पर यह ध्यान अस्थिर उपभोग पैटर्न और पर्यावरण क्षरण को बढ़ावा दे सकता है।
  2. सतत् जीवनशैली को प्रोत्साहित करना
    • जीवनशैली में बदलाव: कम बर्बादी पर जोर देना और जीवनशैली को इस तरह से समायोजित करना कि "चाहतें" "ज़रूरतें" न बन जाएँ, बहुत जरूरी है। यह दृष्टिकोण भौतिक ज्यादतियों का पीछा करने के बजाय पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाकर अच्छी तरह से जीने को बढ़ावा देता है।
    • भौतिकवाद के नकारात्मक बाहरी प्रभाव: अत्यधिक भौतिकवाद से अपशिष्ट, कूड़ा-कचरा और पर्यावरण क्षरण में वृद्धि होती है। घटती सीमांत उपयोगिता का नियम इस बात पर प्रकाश डालता है कि एक निश्चित बिंदु से आगे, बढ़ी हुई भौतिक खपत से खुशी में कमी आती है।
  3. विकल्प का विरोधाभास
    • विकल्पों की अधिकता: 'विकल्प के विरोधाभास' पर शोध से पता चलता है कि विकल्पों का होना लाभदायक तो है, लेकिन विकल्पों की अधिकता अनिर्णय, भ्रम और असंतोष जैसे नकारात्मक परिणामों को जन्म दे सकती है। यह पूंजीवादी धारणा का खंडन करता है कि अधिक विकल्प स्वाभाविक रूप से अधिक खुशी (ऑस्कर वाइल्ड, "द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे") की ओर ले जाते हैं।
  4. रणनीतिक सिफारिशें
    • मूल्य मीट्रिक को पुनर्परिभाषित करना: प्रगति के GDP-केंद्रित उपायों से हटकर ऐसे मीट्रिक की ओर बढ़ना जो पर्यावरणीय स्थिरता तथा जीवन की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हों। ऐसे संकेतक लागू करें जो कल्याण, पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं संसाधन दक्षता को दर्शाते हों।
    • संधारणीय उपभोग को बढ़ावा देना: ऐसी नीतियों और सांस्कृतिक बदलावों को प्रोत्साहित करना जो संधारणीय उपभोग प्रथाओं को बढ़ावा दें। अपशिष्ट को कम करने, टिकाऊ सामान चुनने और भौतिक संपत्तियों की तुलना में अनुभवों को महत्त्व देने के लाभों पर प्रकाश डालें।

निष्कर्ष

आंतरिक शांति (ठहराव) को बढ़ावा देकर, हम अत्यधिक उपभोग को रोक सकते हैं जो बर्बादी और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। ऐतिहासिक रूप से साझा संसाधन आज की व्यक्तिवादी संस्कृति के विपरीत हैं। इससे निपटने के लिये, हमें व्यक्तिगत विकल्पों को पर्यावरणीय आवश्यकताओं के साथ जोड़ना होगा तथा आर्थिक निर्णयों को स्थिरता लक्ष्यों के साथ एकीकृत करना होगा।

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