अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और न्यू यूरेशिया
- 19 Jan 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:रूस-यूक्रेन, NATO, QUAD, इंडो-पैसिफिक, AUKUS, INSTC मेन्स के लिये:भारत और न्यू यूरेशिया, चुनौतियाँ और संभावनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 की शुरुआत के साथ दुनिया एक नए शब्द 'न्यू नॉर्मल' से परिचित हो रही है, जहाँ यूरेशिया और इंडो-पैसिफिक में पुरानी और नई फॉल्ट लाइनों को फिर से कॉन्फिगर किया जा रहा है।
यूरेशिया:
- यूरेशिया का विचार नया नहीं है। यूरोप और एशिया को जोड़ने वाले विशाल भूभाग का वर्णन करने के लिये कई लोगों ने इसे एक तटस्थ शब्द के रूप में इस्तेमाल किया है।
- महाद्वीपीय निरंतरता के बावजूद सदियों से यूरोप और एशिया अलग-अलग राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों के रूप में उभर रहे है।
- भौगोलिक रूप से यूरेशिया एक टेक्टोनिक प्लेट है जो यूरोप और एशिया के अधिकांश भाग में स्थित है। हालाँकि जब राजनीतिक सीमाओं की बात आती है, तो इस क्षेत्र का गठन करने वाली कोई साझा अंतर्राष्ट्रीय जानकारी नहीं है।
यूरेशिया में नई भू-राजनीतिक गतिशीलता:
- जापान यूरोप के साथ मज़बूत सैन्य साझेदारी बनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि दक्षिण कोरिया, जो कभी जापान से आँख नहीं मिलाता था, वह भी यूरोप में अपनी छवि बनाने की कोशिश कर रहा है।
- दक्षिण कोरिया अपने प्रमुख हथियार पोलैंड को बेच रहा है।
- ऑस्ट्रेलिया, जो AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) व्यवस्था में अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ शामिल हो गया है, यूरोप को हिंद-प्रशांत में लाने के लिये समान रूप से उत्सुक है।
- साथ में जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया एशिया तथा यूरोप के बीच विभाजन को पाट रहे हैं जिसे लंबे समय से अलग-अलग भू-राजनीतिक थिएटर के रूप में देखा जाता रहा है।
- यूक्रेन-रूस युद्ध तथा रूस और चीन के बीच गठबंधन से इस प्रक्रिया में तेज़ी आई है। यह नई गतिशीलता यूरेशिया के गठन पर विचार करने के लिये भारत के समक्ष चुनौतियों के साथ-साथ अवसर भी प्रदान करती है।
- जापान और दक्षिण कोरिया का यूरोप की ओर झुकाव से पूर्व, चीन और रूस ही थे जिन्होंने यूरेशिया में भू-राजनीतिक गतिशीलता को बदल दिया।
- रूस-यूक्रेन युद्ध से कुछ दिन पहले रूस और चीन दोनों ने "सीमाओं के बिना" तथा किसी भी "निषिद्ध क्षेत्रों" के साथ गठबंधन की घोषणा करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- चीन, जिसने 1990 के दशक से यूरोप को विकसित करने का काफी हद तक सफल प्रयास किया था, जान-बूझकर रूस के साथ यूरोप के संघर्षों में पक्ष लेने से बचता रहा।
अन्य देशों की यूरेशियन नीतियाँ:
- यूरेशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका के हित:
- यूरेशिया के उदय में वाशिंगटन की इंडो-पैसिफिक रणनीति पर्याप्त रूप से उत्तरदायी नहीं मालूम होती है।
- एशिया में अमेरिका का हित मुख्य रूप से पश्चिमी प्रशांत और दक्षिणी चीन सागर में है। दोनों क्षेत्र यूरेशिया से काफी दूर हैं।
- हालाँकि हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में चीन से बढ़ती चुनौतियों के बीच, वाशिंगटन ने यूरेशिया के लिये अपनी सामरिक प्रतिबद्धताओं पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है।
- यूरोप की सामूहिक रक्षा के लिये महाद्वीपीय कर्त्तव्यों को पुनर्संतुलित करना संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच चर्चा का विषय है।
- चीन, यूरेशिया में एक प्रमुख अभिकर्त्ता:
- यूरेशिया में हालिया सबसे महत्त्वपूर्ण विकास को देखें तो यह है चीन का आकस्मिक उदय और उसकी बढ़ती सामरिक मुखरता, आर्थिक शक्ति तथा राजनीतिक प्रभाव।
- बीजिंग सक्रिय रूप से अफगानिस्तान में एक मज़बूत भूमिका और बड़े उप-हिमालयी क्षेत्र के मामलों में बड़ी भूमिका की मांग कर रहा है, जिससे इसकी बढ़ती शक्ति के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। बीजिंग भूटान एवं भारत के साथ लंबे समय से चली आ रही सीमा विवाद के संबंध में भी विचार कर रहा है।
- चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के विस्तार और चीन के साथ यूरोप की बढ़ती आर्थिक परस्पर निर्भरता ने यूरेशिया में बीजिंग की शक्ति को बढ़ा दिया है।
- यूरेशिया के प्रमुख क्षेत्रों तक फैले रूस के साथ बढ़ते गठबंधन ने इन शक्तियों को और मज़बूत किया है।
- रूस:
रूस ने अपने आप को एक यूरोपीय और एशियाई शक्ति दोनों के रूप में देखा परंतु दोनों में से किसी का हिस्सा नहीं बन पाया।
रूस और चीन ने इस उम्मीद में यूरेशियाई गठबंधन की घोषणा की कि यह पश्चिमी आधिपत्य पर करारा प्रहार होगा।
वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़ा और यूक्रेन पर आक्रमण को पुतिन "रस्की मीर" अथवा रूसी दुनिया को फिर से जोड़ने के अपने ऐतिहासिक मिशन के रूप में देखते हैं।
जब 2000 के दशक में सोवियत संघ और पश्चिम के साथ एकीकरण के प्रयास में समस्याएँ उत्पन्न हुईं, तो उन्होंने "यूरेशिया" तथा "ग्रेटर यूरेशिया" को नए भू-राजनीतिक निर्माणों के रूप में विकसित किया।
भारत की यूरेशियन नीति:
- सुरक्षा संबंधी संवाद:
- वर्ष 2021 में अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता का आयोजन यूरेशियन रणनीति विकसित करने के एक भाग के रूप में किया गया था। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने पाकिस्तान, ईरान, मध्य एशिया, रूस और चीन के अपने समकक्षों को इस चर्चा में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया।
- हालाँकि पाकिस्तान और चीन इस बैठक से अनुपस्थित रहे। तथ्य यह है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान के संबंध में भारत के साथ सहयोग करने के लिये अनिच्छुक है, यह एक नई यूरेशियन रणनीति विकसित करने के लिये इस्लामाबाद के साथ काम करने में दिल्ली की परेशानियों को दर्शाता है।
- इसके अतिरिक्त यह इस बात पर ज़ोर देता है कि यूरेशिया से निपटने के लिये भारत को तत्काल योजना की कितनी आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा:
- INSTC का उद्देश्य यूरेशिया के देशों को एक साथ लाने की दिशा में एक प्रशंसनीय पहल करना है।
- यह सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा 12 सितंबर, 2000 को सेंट पीटर्सबर्ग में स्थापित एक बहु-मॉडल परिवहन है।
- INSTC में ग्यारह नए सदस्यों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया, ये हैं- अज़रबैजान गणराज्य, आर्मेनिया गणराज्य, कज़ाखस्तान गणराज्य, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान गणराज्य, तुर्की गणराज्य, यूक्रेन गणराज्य, बेलारूस गणराज्य, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक)।
- चुनौतियाँ और संभावनाएँ:
- यूरेशिया के उदय के चलते भारत के लिये एक ही समय में दो नौकाओं पर सवारी करना जैसा है। अब तक भारत हिंद-प्रशांत में समुद्री गठबंधन क्वाड के साथ आसानी से जुड़ सकता था और एक ही समय में रूस तथा चीन के नेतृत्त्व वाले महाद्वीपीय गठबंधन के साथ चल सकता था।
- यह तभी तक संभव था जब तक समुद्री और महाद्वीपीय शक्तियाँ एक-दूसरे के विरुद्ध नहीं थीं।
- एक तरफ अमेरिका, यूरोप और जापान तथा दूसरी तरफ चीन एवं रूस के बीच संघर्ष अब तीव्र हो गया है तथा इसमें तत्काल सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
- ऐसे में हिमालयी सीमा पर चीन के कारण भारत की बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों और मॉस्को तथा बीजिंग के बीच गहराते संबंध का अर्थ होगा कि आने वाले दिनों में भारत की महाद्वीपीय रणनीति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका एवं यूरोप के साथ-साथ जापान, दक्षिण कोरिया तथा ऑस्ट्रेलिया से साझेदारी में भारत की रणनीतिक क्षमताओं को सशक्त करने की संभावनाएँ कभी भी इतनी मज़बूत नहीं रही हैं। अब यह भारत पर निर्भर करता है कि वह उभरती संभावनाओं का लाभ कैसे उठा सकता है।
आगे की राह
- भारत को "यूरेशियन" नीति के विकास के लिये जापान तथा दक्षिण कोरिया की तरह ही ऊर्जा लगानी चाहिये। यदि इंडो-पैसिफिक दिल्ली की नई समुद्री भू-राजनीति के बारे में है तो यूरेशिया में भारत की महाद्वीपीय रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक है।
- दशकों से भारत का यूरेशिया के देशों से अलग-अलग संबंध रहा है, लेकिन भारत को अब यूरेशिया में मज़बूत आधार स्थापित करने के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- भारत निश्चित रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन, ईरान और अरब की खाड़ी के बीच अपने रास्ते में कई विरोधाभासों का सामना करेगा, लेकिन उसे इन विरोधाभासों से पीछे नहीं हटना चाहिये।
- भारत की कुंजी अधिक रणनीतिक सक्रियता में निहित है जो यूरेशिया में सभी दिशाओं में अवसर खोलती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) प्रश्न. नई त्रि-राष्ट्रीय साझेदारी AUKUS का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह गठबंधन इस क्षेत्र में मौजूदा ‘साझेदारियों’ का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की ताकत और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (मेन्स- 2021) |