भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम
भूमिका
आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद यदि हम अभी तक की अपनी कामयाबियों एवं खामियों पर नज़र डालें तो हम पाएंगे कि पिछले सत्तर वर्षों में हमने विकास का एक नया और लंबा सफर तय किया है। इस सफर में कितनी बार हमें प्राकृतिक आपदाओं एवं युद्धों का सामना करना पड़ा, न जाने कितनी बार देश ने आंतरिक समस्या से जूझते हुए विकास की गति को निरंतर बनाए रखा। इन सब उतार-चढ़ावों के बीच देखते ही देखते आज भारत विश्व की सबसे तेज़ी से विकसित होती अर्थव्यवस्था बन गया है। इस राह में जहाँ एक ओर हमारे मानव संसाधनों से निरंतर एकजुट होकर मेहनत की है, वहीं दूसरी ओर विज्ञान ने भी हमारा बखूबी साथ दिया है। इस परिदृश्य में हम आज भारत की विकास की राह के एक बेहद महत्त्वपूर्ण आयाम परमाणु क्षमता के विषय में विचार-विमर्श करेंगे।
पृष्ठभूमि
- भारत ने परमाणु युग में 4 अगस्त, 1956 में उस समय प्रवेश किया जब देश के पहले परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ का शुभारंभ किया गया। इस रिएक्टर की डिज़ाइन एवं निर्माण भारत द्वारा किया गया था, परंतु इसके लिये परमाणु ईंधन की आपूर्ति (एक समझौते के अंतर्गत) ब्रिटेन द्वारा की गई थी।
- ध्यातव्य है कि अनुसंधान उद्देश्यों के लिये हमारा दूसरा रिएक्टर ‘साइरस’ कनाडा के सहयोग से विकसित किया गया था, जिसे 1960 में संचालित किया गया।
- आरंभ में तो अनुसंधान रिएक्टर, न्यूटन भौतिकी एवं न्यूटन विकिरण के अंतर्गत पदार्थों के व्यवहार के अध्ययन तथा रेडियो आइसोटोप उत्पादन के अनुसंधान मंच बने। परंतु बाद में ये विभिन्न प्रकार की बीमारियों, विशेषकर कैंसर के इलाज में भी उपयोगी साबित हुए तथा गैर-विनाशकारी परीक्षण उद्देश्य के लिये औद्योगिक एप्लीकेशनों के रूप में भी इनका इस्तेमाल किया जाने लगा।
परमाणु के प्रयोग से बिजली निर्माण कार्य
- परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बिजली बनाने का काम अक्तूबर 1969 में उस समय शुरू हुआ जब तारापुर में दो रिएक्टरों को सेवा में लाया गया।
- तारापुर परमाणु बिजली स्टेशन का निर्माण अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा किया गया था। तारापुर संयंत्र द्वारा देश में सबसे कम लागत की गैर-हाइड्रो बिजली सप्लाई की जाती है।
- भारत का दूसरा परमाणु बिजली स्टेशन राजस्थान में कोटा के निकट स्थापित किया गया तथा इसकी पहली इकाई ने अगस्त 1972 में काम करना शुरू किया।
- राजस्थान की पहली दो इकाइयाँ कनाड़ा के सहयोग से स्थापित की गई थीं।
- भारत का तीसरा परमाणु बिजलीघर चेन्नई के निकट कलपक्कम में स्थापित किया गया। यह देश का पहला स्वदेशी संयंत्र है। यह विशाल चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि उस समय भारतीय उद्योग को परमाणु उपयोग के लिये आवश्यक जटिल उपकरण बनाने का कोई विशेष अनुभव नहीं था।
- तथापि जुलाई 1983 में मद्रास परमाणु बिजलीघर की पहली स्वदेशी इकाई की स्थापना के साथ भारत उन देशों के समूह में शामिल हो गया जो अपने बल पर परमाणु बिजली इकाइयों कीडिज़ाइनिंग और निर्माण करते रहे हैं।
- देश का चौथा परमाणु बिजलीघर गंगा नदी के तट पर नरोरा (उत्तर प्रदेश) में स्थापित किया गया। नरोरा की पहली इकाई का शुभारंभ अक्तूबर 1989 में किया गया। अगले 20 वर्षों में भारत ने अपनी स्वदेशी प्रौद्योगिकी के आधार पर ग्यारह 220 मेगावाट की इकाइयों तथा दो 540 मेगावाट की इकाइयों को स्थापित किया।
- भारत की अपनी प्रौद्योगिकी को ‘प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर’ कहा गया। इस कार्य को पूरा करने के लिये भारत ने सुदृढ़ भारी जल उत्पादन क्षमता एवं ईंधन उत्पादन क्षमता का निर्माण किया।
- भारत ने अपनी परमाणु क्षमता को तेज़ी से मज़बूती प्रदान करने के लिये ईंधन के रूप में परिष्कृत यूरेनियम के उपयोग वाली दो 1000 मेगावाट की रिएक्टर बिजली इकाइयाँ स्थापित करने हेतु वर्ष 1988 में पूर्व सोवियत संघ के साथ समझौता किया।
- हालाँकि, वर्ष 1990 में सोवियत संघ के विघटन के कारण भारत-रूस परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई। तथापि वर्ष 1998 में भारत और रूस ने पुन: इस परियोजना को शुरू करने का निर्णय लिया।
- उल्लेखनीय है कि इस परियोजना की पहली इकाई को चालू करने का काम अभी प्रगति पर ही था कि उसी समय मार्च 2011 में जापान के फुकूशिमा में परमाणु दुर्घटना घटित हो गई।
- जिसके कारण संयंत्र स्थल के आसपास रहने वाले लोगों ने परियोजना का काफी विरोध किया। हालाँकि, लोगों को यह समझाने में काफी समय लगा कि जापानी संयंत्र की तुलना में इस संयंत्र स्थल की स्थितियाँ बिल्कुल भिन्न हैं।
- कुड्डनकुलम की पहली इकाई वर्ष 2014 और दूसरी इकाई वर्ष 2016 में चालू हुई।
वर्तमान की स्थिति
- वर्तमान में भारत के पास 21 परमाणु रिएक्टर इकाइयाँ हैं।
- वर्ष 2011 से 2016 के पाँच वर्षों के लिये संयंत्र भार लगभग 78 प्रतिशत रहा है। परमाणु बिजलीघर 2 से साढ़े 3 रुपए प्रति किलोवाट घंटे की दर से बिजली सप्लाई कर रहे हैं।
- वास्तविकता यह है कि तारापुर संयंत्र से मिलने वाली बिजली की लागत एक रुपए प्रति किलोवाट घंटे, कुड्डनकुलम इकाई एक तथा दो के लिये लगभग 4 रुपए प्रति किलोवाट घंटे है।
- भारतीय रिएक्टरों की तुलना में रूसी रिएक्टरों की ईंधन लागत कम होने के कारण दोनों रिएक्टर 5 रुपए प्रति किलोवाट घंटे की दर से बिजली उत्पादन कर रहे हैं।
- इस परिदृश्य में भारत सरकार ने जून 2017 में भारत में डिज़ाइन किये गए दस 700 मेगावाट क्षमता के प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टरों के निर्माण का निर्णय लिया।
- इसके अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा निगम द्वारा भी 540 मेगावाट आकार की इकाइयों का आकार बढ़ाकर 700 मेगावाट कर दिया गया है।
- काकरापार में 2 (इकाई 3 और 4) तथा राजस्थान में 2 (इकाई 7 और 8) नई इकाइयाँ प्रारंभ की गई हैं। ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 की फुकूशिमा दुर्घटना के बाद यह परमाणु बिजली क्षेत्र में सबसे बड़ा एकल संकल्प है।
- समानांतर गतिविधि के रूप में भारत ने 900 मेगावाट क्षमता के भारतीय प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर की डिज़ाइन को आरंभ कर दिया है।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा 300 मेगावाट के रिएक्टर की डिज़ाइनिंग का काम पूरा कर लिया गया है। इसे एडवांस थर्मल रिएक्टर का नाम दिया गया है, इसमें ईंधन के रूप में थोरियम का उपयोग किया जाएगा।
वस्तुतः थोरियम उपयोग की भारत की सभी दीर्घकालिक योजनाएँ फास्ट रिएक्टरों तथा थोरियम आधारित प्रणालियों पर निर्भर हैं। इन सबसे इतर भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा अस्पतालों तथा उद्योगों को रेडियो आइसोटोप की सप्लाई भी की जा रही है। साथ ही परमाणु विकिरण तकनीक का उपयोग फलों एवं सब्ज़ियों को खराब होने से रोकने के संदर्भ में भी किया जा रहा है. भविष्य में परमाणु ऊर्जा कार्बन मुक्त ऊर्जा के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की दिशा में भी कार्य कर रही है।