भूगोल
ज्वालामुखीयता
- 30 Apr 2024
- 20 min read
प्रिलिम्स के लिये:ज्वालामुखियों के प्रकार, ज्वालामुखियों का वितरण, प्रशांत रिंग ऑफ फायर, सर्कम-पैसिफिक बेल्ट, सबडक्शन ज़ोन/क्षेपित क्षेत्र मेन्स के लिये:दुनिया भर में ज्वालामुखीय गतिविधियों का वितरण, महत्त्व और प्रभाव.. |
ज्वालामुखीयता क्या है?
- ज्वालामुखीयता या ज्वालामुखी गतिविधि वह घटना है जहाँ ठोस, तरल पदार्थ, गैसें और उनके मिश्रण एक ठोस सतह वाले खगोलीय पिंड की सतह पर फूटते हैं, उदाहरण के लिये, पृथ्वी, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह तथा धूमकेतु जैसे ग्रह।
- यह शरीर के अंदर प्राकृतिक ताप स्रोत की उपस्थिति के कारण होता है। यह आंतरिक ऊष्मा शरीर में ठोस पदार्थ को आंशिक रूप से पिघला देती है या पदार्थ को गैस में बदल देती है। एकत्रित सामग्री शरीर के आंतरिक भाग से ऊपर उठती है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न अंतर्वेधी और बहिर्वेधी भू-आकृतियों का निर्माण होता है।
ज्वालामुखी क्या है?
- परिचय:
- ज्वालामुखी पृथ्वी की पर्पटी में एक छिद्र है जिसके माध्यम से विस्फोट के दौरान गैसें, पिघली हुई चट्टानें (लावा), राख, भाप आदि बाहर की ओर उत्सर्जित होती हैं। ऐसे छिद्र पृथ्वी की पर्पटी के उन हिस्सों में होते हैं जहाँ चट्टानी स्तर अपेक्षाकृत कमज़ोर होते हैं।
- ज्वालामुखी गतिविधि अंतर्जात प्रक्रिया का एक उदाहरण है। ज्वालामुखी की विस्फोटक प्रकृति के आधार पर, अलग-अलग बहिर्वेधी भू-आकृतियाँ बन सकती हैं जैसे पठार (यदि ज्वालामुखी विस्फोटक नहीं है) या पहाड़ (यदि ज्वालामुखी विस्फोटक प्रकृति का है) या अंतर्वेधी भू-आकृतियाँ जैसे बैकोलिथ, लैकोलिथ आदि।
- मैग्मा बनाम लावा:
- मैग्मा शब्द का प्रयोग पृथ्वी की आंतरिक पिघली हुई चट्टानों और संबंधित सामग्रियों को दर्शाने के लिये किया जाता है। मैंटल का एक कमज़ोर क्षेत्र जिसे दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है, आमतौर पर मैग्मा का स्रोत होता है।
- लावा और कुछ नहीं बल्कि पृथ्वी की सतह के ऊपर का मैग्मा है। एक बार जब यह मैग्मा ज्वालामुखी के छिद्र से पृथ्वी की सतह पर आया, तो इसे लावा कहा गया।
- ज्वालामुखी विस्फोट के पूर्वानुमान हेतु उपकरण और तरीके:
- भूकंपीय डेटा:
- ज्वालामुखी विस्फोट के संभावित अग्रदूतों के रूप में भूकंप और झटकों की निगरानी करना।
- भूमि विरूपण:
- ज़मीन में बदलावों का अवलोकन करना, जो मैग्मा की गति का संकेत देता है।
- भूकंपीय डेटा:
- गैस उत्सर्जन और गुरुत्वाकर्षण परिवर्तन:
- ज्वालामुखीय गैस उत्सर्जन, गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तन का विश्लेषण।
ज्वालामुखी के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- विस्फोट की आवृत्ति के आधार पर:
- इसमें निरंतर प्रस्फूटन होता रहता है ये आमतौर पर प्रशांत रिंग ऑफ फायर के निकट पाए जाते हैं जिसमें न्यूज़ीलैंड, दक्षिण-पूर्व एशिया, जापान और अमेरिका शामिल हैं।
- पूरे विश्व में लगभग 90% भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं।
- ज्वालामुखीय गतिविधि प्लेट विवर्तनिकी की गति और टकराव से जुड़ी हुई है। उदाहरणतः हवाई में किलाउआ और ग्वाटेमाला में सांता मारिया शामिल हैं।
- सुप्त/प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano):
- ये विलुप्त नहीं हैं लेकिन हाल के इतिहास में इनमें विस्फोट नहीं हुआ है। भविष्य में इनमें उदगार हो सकता है। उदाहरण: तंज़ानिया में स्थित माउंट किलिमंजारो, जो अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत भी है, एक सुप्त ज्वालामुखी के रूप में जाना जाता है।
- विलुप्त या निष्क्रिय ज्वालामुखी (Extinct or inactive volcanoes):
- विलुप्त या निष्क्रिय ज्वालामुखी का तात्पर्य ऐसे ज्वालामुखी से है जिसमें निकट भविष्य में उद्गार की संभावना नहीं है। उदाहरण- धिनोधर पहाड़ी, गुजरात।
- विस्फोट के प्रकार के आधार पर:
- शील्ड ज्वालामुखी (Shield Volcanoes):
- बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर, पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी ज्वालामुखियों में ‘शील्ड ज्वालामुखी’ सबसे विशाल है
- हवाई द्वीप के ज्वालामुखी इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। ये ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठंडा होने से बनते हैं। यह लावा उद्गार के समय बहुत तरल होता है
- इसी कारण इन ज्वालामुखियों का ढाल तीव्र नहीं होता। यदि किसी तरह निकास नालिका (Vent) से पानी भीतर चला जाए तो ये ज्वालामुखी विस्फोटक भी हो जाते हैं। अन्यथा कम विस्फोटक होना ही इनकी विशेषता है
- इन ज्वालामुखियों से लावा फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है और निकास स्थान पर एक शंकु (Cone) बनाता है, जो सिंडर शंकु (Cinder Cone) के रूप में विकसित होता है।
- मिश्रित ज्वालामुखी (Composite Volcanoes
- इन ज्वालामुखियों से बेसाल्ट की अपेक्षा अधिक ठंडे व निर्मित श्यॉन (गाढ़ा या चिपचिपा) लावा उद्गार होते हैं
- ये ज्वालामुखी प्रायः भीषण विस्फोटक होते हैं। इनसे लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि (Pyroclastic) पदार्थ व राख भी धरातल पर पहुँचती हैं
- यह पदार्थ निकास नली के आस-पास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं जिनके जमाव मिश्रित ज्वालामुखी के रूप में दिखते हैं।
- मेयोन ज्वालामुखी (फिलीपींस), माउंट फूजी (जापान) और माउंट रेनियर (वाशिंगटन) आदि कुछ प्रमुख मिश्रित/ ज्वालामुखी हैं।
- ज्वालामुखी कुंड (Caldera):
- ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। आमतौर पर ये इतने विस्फोटक होते हैं ही कि जब इनमें विस्फोट होता है तब वे ऊँची आकृति बनाने के बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं
- धँसे हुए विध्वंस गर्त (लावा के गिरने से जो गड्ढे बनते हैं) ही ज्वालामुखी कुंड (Caldera) कहलाते हैं।
- बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र (Flood basalt provinces):
- ये ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा को बाहर निकालते हैं, जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हज़ारों वर्ग किमी. तक घने लावा प्रवाह से ढके हैं
- मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी:
- वे मध्य-महासागरीय कटक प्रणाली के साथ जल के नीचे पाए जाते हैं जो महासागरीय घाटियों में 65,000 किलोमीटर से अधिक तक फैला हुआ है, ये ज्वालामुखी अक्सर केंद्रीय कटक के साथ प्रस्फुटित होते हैं।
- शील्ड ज्वालामुखी (Shield Volcanoes):
विश्व भर में ज्वालामुखी कैसे वितरित हैं?
- विश्व में अधिकांश ज्वालामुखी तीन सु-परिभाषित बेल्ट में पाए जाते हैं:
- परि-प्रशांत मेखला (प्रशांत रिंग ऑफ फायर)।
- मध्य-विश्व पर्वत बेल्ट।
- अफ्रीकी रिफ्ट वैली बेल्ट।
ज्वालामुखीय स्थलाकृतियों के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- अंतर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियाँ:
- कभी-कभी मैग्मा पृथ्वी की पर्पटी के नीचे ठंडा होकर जम जाता है, जिससे विभिन्न भू-आकृतियाँ निर्मित होती हैं। इन्हें अंतर्वेधी ज्वालामुखीय विशेषताएँ कहा जाता है।
- बैथोलिथ: ये आग्नेय चट्टान के विशाल, अनियमित आकार के समूह हैं जो तब बनते हैं जब मैग्मा के बड़े पिंड भूमिगत रूप से ठंडे हो जाते हैं।
- सिल और डाइक: अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना ‘सिल या शीट’ कहलाता है, जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है- कम मोटाई वाले जमाव ‘शीट’ व घने मोटाई वाले जमाव ‘सिल’ कहलाते हैं। जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँती संरचना बनता है जिसे ‘डाइक’ कहा जाता है।
- लैकोलिथ: ये गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक नलीनुमा वाहक नली द्वारा नीचे से अलग होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद के समान दिखाई देती है।
- फैकोलिथ: ये परतदार चट्टानें एक निश्चित वाहक नली द्वारा मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं, जो ‘फैकोलिथ’ कहलाते हैं
- मोनाडनोक (इंसेलबर्ग): ये दूर-दूर स्थित पहाड़ियाँ हैं, जो आसपास के परिदृश्य से अलग दिखते हैं। ये तब बनते हैं जब प्रतिरोधी चट्टान (अक्सर मैग्मा द्वारा अंतर्वेधी की गई) कटाव के बाद उसके चारों ओर की नरम चट्टान के घिस जाने के बाद बची रहती है।
- कभी-कभी मैग्मा पृथ्वी की पर्पटी के नीचे ठंडा होकर जम जाता है, जिससे विभिन्न भू-आकृतियाँ निर्मित होती हैं। इन्हें अंतर्वेधी ज्वालामुखीय विशेषताएँ कहा जाता है।
- बहिर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियाँ:
- इनका निर्माण तब होता है जब मैग्मा प्रस्फुटित होता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर ठंडा हो जाता है।
- फिशर वेंट: ये पृथ्वी की पर्पटी में मौज़ूद लंबी दरारें हैं जो लावा को कम विस्फोटों के साथ एक सतत् धारा में बाहर निकलने की अनुमति देती हैं।
- कॉनिकल वेंट: ये केंद्रीय वेंट (शंक्वाकार) वाली उत्कृष्ट ज्वालामुखीय (Classic Volcano) आकृतियाँ हैं। राख और लावा के हिंसक विस्फोट वेंट के चारों ओर जमा हो जाते हैं, जिससे शंकु जैसा आकार निर्मित हो जाता है।
- मध्य महासागरीय कटक: समुद्र तल के लगातार प्रसारित होने के कारण, जल के नीचे की ये पर्वत शृंखलाएँ बार-बार प्रस्फुटित होती रहती हैं। यहाँ लावा कम चिपचिपा होता है और सरलता से बहता है, जिससे बेसाल्ट चट्टान के विशाल मैदान निर्मित होते हैं।
- शील्ड ज्वालामुखी: ये तरल बेसाल्टिक लावा प्रवाह द्वारा निर्मित चौड़े, धीरे-धीरे ढलान वाले ज्वालामुखी हैं। वे अन्य प्रकारों की तुलना में कम विस्फोटक रूप से प्रस्फुटित होते हैं।
- लावा पठार: जब बड़ी मात्रा में लावा प्रस्फुटित होता है और विशाल क्षेत्रों में फैल जाता है, तो वह ठोस होकर व्यापक, समतल पठारों का निर्माण करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलंबिया का पठार और भारत में दक्कन का पठार लावा पठार के उदाहरण हैं।
- ज्वालामुखीय कुंड: ये बड़े, कड़ाही के आकार के गड्ढे हैं जो तब बनते हैं जब एक शक्तिशाली विस्फोट के बाद मैग्मा कक्ष की छत निचे गिर जाती है।
- गुंबदाकार लावा: जैसा कि नाम से पता चलता है, ये गुंबद के आकार के उभार हैं जो चिपचिपे लावा के धीमी गति से बाहर निकलने से बनते हैं जो वेंट के चारों ओर ठंडा और कठोर हो जाता है।
- इनका निर्माण तब होता है जब मैग्मा प्रस्फुटित होता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर ठंडा हो जाता है।
ज्वालामुखीय प्रस्फुटन के क्या प्रभाव हैं ?
- ज्वालामुखीयता के विनाशकारी प्रभाव :
- भूकंप: ज्वालामुखी के नीचे लावा के प्रभावित होने से उत्पन्न हुई हलचल से भूकंप आ सकता है। ये भूकंपीय झटके बड़ी ज़मीनी दरारें उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे बड़े स्तर पर विनाश तथा जीवन की हानि हो सकती है, विशेषतः ज्वालामुखियों के निकट बसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में।
- जलवायु पर प्रभाव: ज्वालामुखी विस्फोटों द्वारा वायुमंडल में अत्यधिक मात्रा में गैस उत्सर्जित होती है। ये गैसें मौसम के चक्र को बाधित कर सकती हैं तथा अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।
- ज्वलखण्डाश्मि प्रवाह: विस्फोटों से अक्सर गैस और मलबे के निर्मित झुलसाने वाले गर्म बादल उत्पन्न होते हैं जिन्हें ‘ज्वलखण्डाश्मि प्रवाह’ (Pyroclastic Flows) के रूप में जाना जाता है। ये बादल तीव्र गति से और उच्च तापमान पर चलते हैं, ये अपने मार्ग में बाधित करने वाली सभी वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं
- ज्वालामुखीय राख: ज्वालामुखीय राख, जो लघु चट्टान और खनिज टुकड़ों से बनी होती है, सांस के साथ अंदर जाने पर गंभीर स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न कर सकती है। यह फेफड़ों में जलन एवं श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं और उच्च सांद्रता होने पर घातक भी हो सकते हैं।
- ज्वालामुखी के रचनात्मक प्रभाव:
- उपजाऊ मृदा: सिलिका, ऑक्सीजन, मैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन जैसे खनिजों से भरपूर ज्वालामुखीय राख, विस्फोट स्थलों के पास जमा हो जाती है। यह राख समय के साथ नष्ट हो जाती है, जिससे कृषि के लिये अत्यधिक उपजाऊ मृदा निर्मित होती है।
- भूमि निर्माण: एक ही स्थान पर बार-बार होने वाले विस्फोट हवाई द्वीप की भाँति पूरी तरह से नए भू-आकृतियों का निर्माण कर सकते हैं।
- संपर्क कायांतरण: जब गर्म मैग्मा मौज़ूदा चट्टान जैसी संरचनाओं के संपर्क में आता है, तो यह संपर्क कायांतरण नामक प्रक्रिया के माध्यम से उनकी संरचना को परिवर्तित कर देता है। इससे संगमरमर और हॉर्नफेल जैसी मूल्यवान नई चट्टानें निर्मित हो सकती हैं।
- ज्वालामुखीय झीलें (Volcanic Lakes): विस्फोटों से बने बड़े क्रेटर समय के साथ पानी से भर सकते हैं, जिससे ‘क्रेटर झीलों’ का निर्माण होता है। ये सुंदर झीलें मीठे पानी के महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकती हैं और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन कर सकती हैं।
- ज्वालामुखीय गीज़र: इसका निर्मित होना भूतापीय तापन का परिणाम है। यह प्रक्रिया तब होती है जब भूजल या तो पृथ्वी की पर्पटी के भीतर अपेक्षाकृत कम गहराई पर स्थित आग्नेय चट्टान के उच्च तापमान के साथ संपर्क करता है या पृथ्वी के भीतर गहराई में स्थित पिघले हुए मैग्मा के साथ उच्च तापमान पर संपर्क करता है।
निष्कर्ष:
ज्वालामुखी एक शक्तिशाली और बहुआयामी भूवैज्ञानिक घटना है। जैसे-जैसे हम ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं के बारे में अपनी समझ को आगे बढ़ाना जारी रखते हैं, हमें न केवल संबंधित खतरों को कम करने का प्रयास करना चाहिये, बल्कि हमारे ग्रह के लगातार विकसित होने वाले भू-वैज्ञानिक परिदृश्य में ज्वालामुखियों के रचनात्मक योगदान की भी सराहना करनी चाहिये। इसका प्रभाव विनाशकारी भूकंपों तथा जलवायु व्यवधानों से लेकर उपजाऊ मिट्टी एवं अद्वितीय भूवैज्ञानिक विशेषताओं के निर्माण तक होता है। इसके खतरों को प्रबंधित करने व इसके लाभों का स्थायी रूप से दोहन करने हेतु इसकी जटिलताओं को समझना आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न
प्रश्न. विश्व में ज्वालामुखियों के वितरण पर चर्चा कीजिये और ज्वालामुखीय गतिविधियों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के बारे में विस्तार से बताइए?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन पृथ्वी की सतह पर गतिशील परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं? (a) केवल 1, 2, 3 और 4 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भूकंप संबंधी संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में, भारत के विभिन्न भागों में भूकंप द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिये। (2021) प्रश्न. क्या कारण है कि संसार का वलित पर्वत (फोल्डेड माउन्टेन) तंत्र महाद्वीपों के सीमांतों के साथ-साथ अवस्थित हैं? पर्वतों के वैश्विक वितरण और भूकंपों एवं ज्वालामुखियों के बीच साहचर्य को उजागर कीजिये। (2014) |