असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा का अभाव

संदर्भ

17वीं लोकसभा का गठन होने जा रहा है और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व में नई सरकार कामकाज सँभालने की तैयारी में है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि नई सरकार की वरीयताओं में असंगठित क्षेत्र के मुद्दे को जगह मिलती है या नहीं। वैसे देश के विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान असंगठित क्षेत्र का ही है...और यह भी उतना ही सच है कि इस क्षेत्र को सामाजिक सुरक्षा के लिये चलाई जाने वाली विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।

भारत का विशाल असंगठित क्षेत्र

  • देश की अर्थव्यवस्था में 50% से अधिक का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के लोगों का कुल कार्यबल में हिस्सा 80 प्रतिशत है।
  • भारत का असंगठित क्षेत्र मूलतः ग्रामीण आबादी से बना है और इसमें अधिकांशतः वे लोग होते हैं जो गांव में परंपरागत कार्य करते हैं।
  • गांवों में परंपरागत कार्य करने वालों के अलावा भूमिहीन किसान और छोटे किसान भी इसी श्रेणी में आते हैं।
  • शहरों में ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं।
  • इनमें अधिकतर ऐसे लोग है जो फसल की बुआई और कटाई के समय गांवों में चले जाते हैं और बाकी समय शहरों-महानगरों में काम करने के लिये आजीविका तलाशते हैं।
  • भारत में लगभग 50 करोड़ का कार्यबल है, जिसका 90% हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है।
  • इन उद्यमों में काम करने वाले श्रमिक 1948 के फैक्टरी एक्ट जैसे किसी कानून के अंतर्गत नहीं आते हैं।

भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने असंगठित श्रम बल को व्यवसाय, रोज़गार की प्रकृति, विशेष रूप से पीड़ित श्रेणी और सेवा श्रेणी- इन 4 भागों में बाँटा है।

  • व्यावसायिक श्रेणी में छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, पशुपालक, बीड़ी बनाने वाले श्रमिक, निर्माण और आधारभूत संरचनाओं में कार्यरत श्रमिक, बुनकर आदि आते हैं।
  • रोज़गार की प्रकृति श्रेणी में बंधुआ मज़दूर, प्रवासी मज़दूर और दैनिक मजदूर आते हैं।
  • विशेष रूप से पीड़ित श्रेणी में सफाईकर्मी, सिर पर मैला ढोने वाले आदि आते हैं।
  • सेवा श्रेणी में घरेलू कामगार, महिलाएँ, नाई, सब्जी और फल विक्रेता, समाचार-पत्र विक्रेता आदि आते हैं।

क्या हैं असंगठित क्षेत्र की प्रमुख समस्याएँ?

उपरोक्त चारों श्रेणियों के काम, मजदूरी और रहन-सहन को लेकर कई समस्याएँ हैं।

बेहद कम आमदनी: असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम है, बल्कि कई बार तो यह जीवन स्तर के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। इसके अलावा, अक्सर कृषि और निर्माण क्षेत्रों में पूरे वर्ष काम न मिलने की वज़ह से वार्षिक आय और भी कम हो जाती है। इस क्षेत्र में न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता, जो कि कर्मचारियों को दिया जाना बाध्यकारी है। इसलिये न्यूनतम मज़दूरी दरों से भी कम कीमतों पर ये कामगार अपना श्रम बेचने को विवश हो जाते हैं। वैसे भी हमारे देश में न्यूनतम मजदूरी की दरें वैश्विक मानकों की तुलना में बहुत कम हैं।

अस्थायी रोज़गार: असंगठित क्षेत्र में रोज़गार गारंटी न होने के कारण रोज़गार का स्वरूप अस्थायी होता है, जो इस क्षेत्र में लगे कामगारों को हतोत्साहित करता है। रोज़गार स्थिरता न होने के कारण इनमें मनोरोग का खतरा भी संगठित क्षेत्र के कामगारों से अधिक होता है। इनके पास विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं पहुँच पाता। बिचौलियों और अपने नियोक्ताओं द्वारा भी इनकी उपेक्षा की जाती है।

श्रम कानूनों के तहत नहीं आते: अधिकांश असंगठित श्रमिक ऐसे उद्यमों में काम करते हैं जहाँ श्रमिक कानून लागू नहीं होते। इसलिये इनकी कार्य दशा भी सुरक्षित नहीं होती और इनके लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरे बहुत अधिक होते हैं।

खतरनाक उद्यमों में भी सुरक्षा नहीं: बाल श्रम, महिलाओं के साथ अन्याय की सीमा तक असमानता और उनका शारीरिक, मानसिक तथा यौन-शोषण आम बात है। कई व्यवसायों में स्वास्थ्य मानकों के न होने का मसला भी चुनौती के रूप में इस क्षेत्र से जुड़ा है। माचिस के कारखाने में काम करने वाले, कांच उद्योग में काम करने वाले, हीरा तराशने वाले, कीमती पत्थरों पर पॉलिश करने वाले, कबाड़ बीनने वाले, पीतल और कांसे के बर्तन बनाने वाले तथा आतिशबाजी बनाने वाले उद्यमों में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक काम करते हैं। वे खतरनाक और विषाक्त रसायनों तथा ज़हरीले धुएँ आदि के संपर्क में आकर श्वास संबंधी बीमारियों, दमा, आँखों में जलन, तपेदिक, कैंसर आदि जैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार बन जाते हैं।

बढ़ती हुई जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था : जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था के बढ़ने से इन कामगारों का दैनिक जीवन कहीं ज्यादा व्यस्त और जीवन स्तर कहीं ज्यादा निम्न हो गया है। आय और व्यय के बीच असंगति ने इनकी आर्थिक स्थिति को इस लायक नहीं छोड़ा है कि ये बेहतर जीवन जी सकें। इसीलिये सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएँ चलाती तो है, लेकिन इसके सामने बहुत सी बाधाएँ हैं, जो उन योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन के आड़े आती हैं।

प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना

  • 2019-20 का अंतरिम बजट जब पेश हुआ था तो सरकार ने 15 हज़ार रुपए तक मासिक आय वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना’ शुरू करने का प्रस्ताव रखा था।
  • इसके तहत ऐसे कामगारों को उनकी वृद्धावस्‍था के दौरान व्‍यापक सामाजिक सुरक्षा देने का प्रस्ताव है।
  • इस पेंशन योजना से असंगठित क्षेत्र के कामगार एक छोटी-सी राशि के मासिक अंशदान से 60 साल की आयु से 3000 रुपए की निश्चित मासिक पेंशन प्राप्त कर सकेंगे।
  • इसके तहत 29 वर्ष की आयु में इस पेंशन योजना से जुड़ने वाले असंगठित क्षेत्र के कामगार को केवल 100 रुपए प्रतिमाह का अंशदान 60 वर्ष की आयु तक करना होगा।
  • 18 वर्ष की आयु में इस पेंशन योजना में शामिल होने वाले कामगार को सिर्फ 55 रुपए प्रतिमाह का अंशदान करना होगा।
  • सरकार हर महीने कामगार के पेंशन के खाते में इतनी ही राशि जमा करेगी।
  • संभावना है कि अगले पाँच सालों में असंगठित क्षेत्र के कम-से-कम 10 करोड़ श्रमिकों और कामगारों को इस योजना का लाभ मिल सकेगा। तब यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी पेंशन योजनाओं में से एक बन जाएगी।
  • इस योजना के लिये 500 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई और यह योजना 15 फरवरी से लागू भी हो गई है।

इस सब के बावजूद आज भी इस वर्ग की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों में आजीविका असुरक्षा, बाल श्रम, मातृत्व (मैटरनिटी) सुरक्षा, छोटे बच्चों की देख-रेख, आवास, पेयजल, सफाई, अवकाश से जुड़े लाभ और न्यूनतम मज़दूरी जैसे मुद्दे बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।

असंगठित क्षेत्र के कामगारों तक कोई भी सामजिक सुरक्षा योजना के लाभ पहुँचाने की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि जब तक ऐसे कामगारों को चिन्हित न कर लिया जाए, तब तक इनका लाभ यह वर्ग नहीं उठा सकता...और यह अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

सरकार की पहलें और चुनौतियाँ

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिये सरकार ने विधायी उपायों और कल्याण योजनाओं की द्विपक्षीय नीति अपनाई है।

कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008

विधायी उपायों में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा देने के संबंध में सरकार ने असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 अधिनियमित किया। यह अधिनियम राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को कुछ ज़रूरी व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराता है। इसके ज़रिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के निर्माण, जीवन और विकलांगता कवर, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा और कोई भी अन्य लाभ, जो असंगठित मज़दूरों के लिये सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है, उसके लिये अनुशंसाएँ दी जाती हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का भी गठन किया गया है।

योजनाओं की कमी नहीं

  • राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना (RSBY) असंगठित क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को परिवार फ्लोटर आधार पर प्रतिवर्ष 30 हज़ार रुपए की स्‍मार्ट कार्ड आधारित नकदी रहित स्‍वास्थ्‍य बीमा सुरक्षा देने के लिये आरंभ की गई।
  • सरकार ने मृत्‍यु एवं अपंगता के लिये बीमा प्रदान करने के लिये आम आदमी बीमा योजना (AABY) प्रारंभ की है।
  • इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय वृद्धावस्‍था पेंशन (IGNOAP) योजना का भी कार्यान्‍वयन सरकार कर रही है।
  • असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के लिये कई अन्य रोज़गार सृजन/सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सरकार लागू कर रही है, जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना, प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, मनरेगा, हथकरघा बुनकर योजना, हस्तशिल्प कारीगर व्यापक कल्याण योजनाएँ, मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना, प्रशिक्षण और विस्तार, जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना आदि।
  • सरकार द्वारा कामगारों की कुछ विशिष्ट श्रेणियों अर्थात् बीड़ी कामगारों, कुछ गैर-कोयला खान कामगारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये कल्‍याणकारी निधियाँ स्‍थापित की हैं। अन्य कल्‍याणकारी उपायों में स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, आवास, बच्‍चों के लिये शैक्षिक सहायता, पीने के पानी की आपूर्ति इत्‍यादि शामिल हैं।

लेकिन इस सब के बावजूद असंगठित क्षेत्र में कामगारों को चिन्हित करने में आने वाली कठिनाइयाँ बहुत बड़ी समस्या है। साथ ही आंतरिक प्रवासन के कारण पहचान का मुद्दा और बड़ी तादाद में कंपनियों का पंजीकरण न होना भी कम बड़ी बाधा नहीं है।

संविधान में कल्याणकारी राज्य की संकल्पना

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। संविधान की प्रस्तावना और राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से यह जाहिर है कि हमारा लक्ष्य सामाजिक कल्याण है। यह प्रस्तावना भारतीय लोगों के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-न्याय सुरक्षित करने का वादा करती है।

  • असंगठित श्रम के क्षेत्र में कई तरह के कार्य और व्यवसाय होने के कारण उनकी सुरक्षा के लिये उन्हें चिन्हित करना सबसे बड़ी चुनौती है।
  • इसके लिये व्यापक कानून बनाना होगा, जो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिये न्यूनतम सुरक्षा तथा कल्याण के प्रावधान सुनिश्चित करे।
  • इसके बाद भी सरकार के लिये यह संभावना बनी रहेगी कि यदि आवश्यकता महसूस हो तो वह विविध रोज़गारों के लिये विशेष कानून बनाए।
  • यह ध्यान रखना होगा कि किसी नए कानून से वह प्रमुख अधिकार या सामाजिक सुरक्षा न छिन जाए, जिनकी व्यवस्था व्यापक कानून ने की है।
  • इस व्यवस्था से भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था का भी सम्मान होगा तथा कई तरह के कामों में लगे मज़दूरों की विशेष ज़रूरतें भी पूरी हो सकेंगी।
  • सीमांत और छोटे किसानों के लिये ऋण का बेहतर प्रबंधन, सिंचाई परियोजनाओं का विकास, फसल जोखिम पर सुरक्षा और तकनीक का विकास असंगठित क्षेत्र के लिये वरदान साबित हो सकता है।
  • गैर-कृषि क्षेत्र में कौशल विकास द्वारा रोज़गार के बेहतर अवसर बनाना, सामूहिक विकास केंद्रों की स्थापना करना, अधिकाधिक लोगों को Skill India से जोड़ना भी प्रभावी उपाय हो सकते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों की कार्य क्षमता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • इसके अलावा Skill Mart, कौशल पुस्तकालय और रोज़गार मेलों के आयोजन को अधिक प्रभावी बनाने की ज़रूरत है।
  • असंगठित क्षेत्र में हमारे देश की आबादी का एक बड़ा तबका आता है, इसलिये कार्य दशाओं, न्यूनतम मज़दूरी और श्रमिक हितों का संरक्षण करने के लिये कानून को पुनः संरचित करना होगा।
  • यह भी ध्यान देना होगा कि ये सभी नीतियाँ और कानून सैद्धांतिक न होकर व्यावहारिक रूप में भी अमल में आएँ ताकि असंगठित कामगारों को जरूरी लाभ मिल सके।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों में से अधिकांश को न तो सरकारों की ओर से तय न्यूनतम वेतन मिलता है और न ही पेंशन या स्वास्थ्य बीमा जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा इन्हें मिल पाती है। उन्हें चिकित्सा, देखभाल, दुर्घटना, मुआवजा, वेतन सहित अवकाश और पेंशन योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता। ऐसे में सरकार को असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये समग्र नीति बनानी चाहिये और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को स्वीकार करते हुए व्यवस्था में उचित भागीदारी देनी चाहिये। सरकार को विशेष रूप से निर्माण क्षेत्र, घरेलू नौकरों, मंडियों में काम करने वाले श्रमिकों और रेहड़ी-पटरी वालों पर ध्यान देना चाहिये। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नीति निर्माण में भागीदारी देनी चाहिये और राजस्व में उनकी हिस्सेदारी को देखते हुए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: “असंगठित क्षेत्र में कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये एक अनिवार्य शर्त है।” कथन का परीक्षण कीजिए।