सामाजिक न्याय
वृद्ध होती जनसंख्या से संबंधित चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 21, जननक्षमता, जीवन प्रत्याशा, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), आयु पिरामिड, राष्ट्रीय वृद्धजन नीति (NPOP), मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग (2002), डिकेड ऑफ हेल्दी एजिंग (2021-2030), SDG-3, पेंशन, जनसांख्यिकी संक्रमण, टेलीमेडिसिन, PM-JAY मेन्स के लिये:भारत में वृद्ध होती जनसंख्या की स्थिति, वृद्ध होती जनसंख्या से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वृद्धजनों के लिये एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
- रिट याचिका में वृद्धजनों (कालप्रभावित होती जनसंख्या) को एक ऐसे सुभेद्य वर्ग के रूप में संदर्भित किया गया है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विशेष ध्यान देने योग्य है, जिससे गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार सुनिश्चित होता है।
नोट: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के अनुसार वरिष्ठ नागरिक/वृद्धजन से तात्पर्य ऐसे किसी भी व्यक्ति से है जिसकी आयु 60 वर्ष या उससे अधिक हो गई है।
भारत में वृद्धजनों की स्थिति क्या है?
- वर्तमान रुझान: भारत में वृद्धजन वर्ग (60+) वर्ष 2022 में 10.5% था जिसके वर्ष 2050 तक बढ़कर 20.8% और वर्ष 2100 तक 36% से अधिक हो जाने का अनुमान है।
- वर्ष 2046 तक भारत में वृद्धजनों की संख्या बच्चों (0-14) से अधिक हो जाएगी और वर्ष 2050 तक कार्यशील वर्ग (15 से 59 आयु वर्ग) की जनसंख्या में गिरावट आएगी।
- कालप्रभावन की गति: वर्ष 2010 से वर्ष 2020 की अवधि में, भारत की वृद्धजन संख्या 15 वर्षों की दर से दोगुनी हो गई, जबकि दक्षिण और पूर्वी एशिया में वृद्धजनों की संख्या दोगुना होने की अवधि 16 वर्ष थी।
- वृद्धजन वर्ग की दशकीय वृद्धि दर 31% (1981-1991) से बढ़कर 41 % (2021-2031) हो गई, जो त्वरित उम्र बढ़ने का संकेत है।
- कालप्रभावन सूचकांक: दक्षिणी भारत के जिन राज्यों में वृद्धजनों की संख्या अधिक है, वहाँ कालप्रभावन सूचकांक (Ageing Index) अधिक है, जो जननक्षमता में कमी तथा बच्चों की तुलना में वृद्ध व्यक्तियों की अधिकता को दर्शाता है।
- प्रति 100 बच्चों (15 वर्ष से कम) पर वृद्धजनों (60+ वर्ष) की संख्या को मापने वाला कालप्रभावन सूचकांक 2021 में भारत में 39 था।
- वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात: वर्ष 2021 में, भारत में प्रति 100 कार्यशील आयु वाले व्यक्तियों पर वृद्धजनों की संख्या 16 थी, जिनमें दक्षिणी भारत में यह अनुपात 20, पश्चिमी भारत में 17 और केंद्रशासित प्रदेशों और पूर्वोत्तर भारत में लगभग 13 था।
- वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात प्रति 100 कार्यशील आयु वाले व्यक्तियों (15 से 59 वर्ष) पर वृद्धजनों (60+ वर्ष) की संख्या को दर्शाता है।
- 60 वर्ष की आयु में जीवन प्रत्याशा: भारत में 60 वर्ष की आयु में औसत जीवन प्रत्याशा 18.3 वर्ष है, जिसमें महिलाओं की प्रत्याशा पुरुषों की अपेक्षा अधिक है (महिलाओं के लिये 19 वर्ष, पुरुषों के लिये 17.5 वर्ष)।
- राज्य भिन्नताएँ: दक्षिणी राज्यों और हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे उत्तरी राज्यों में वर्ष 2021 में राष्ट्रीय औसत (10.5%) की तुलना में वृद्धजनों की आबादी अधिक थी।
- बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में 2036 तक वृद्धजनों की आबादी में वृद्धि होने के अनुमान हैं।
- क्षेत्रीय तुलना: वर्ष 2050 तक, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) देशों की वृद्ध आबादी का औसत 19.8% होगा।
- सार्क में मालदीव (34.1%) और श्रीलंका (27%) में वृद्धों का अनुपात अधिक होगा, जबकि भारत का हिस्सा लगभग 20% रहेगा, हालाँकि संख्या महत्त्वपूर्ण (लगभग 34.7 करोड़) होगी।
वृद्ध होती जनसंख्या के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- वृद्धावस्था का स्त्रीकरण: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं, जिसके कारण अधिक वृद्ध महिलाएँ, विशेष रूप से विधवाएँ, अकेली रहती हैं और परिवार के सहयोग पर निर्भर रहती हैं, जिससे वे अधिक असुरक्षित हो जाती हैं।
- वृद्धावस्था का ग्रामीणीकरण: भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 71% वृद्ध आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों की दूरस्थता के कारण स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच, आय की असुरक्षा और सामाजिक अलगाव की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
- वृद्धों की आयु बढ़ना: वृद्धों की आयु बढ़ने का अर्थ है कि बुजुर्गों की बढ़ती संख्या 75 वर्ष से अधिक होगी, जिससे स्वास्थ्य देखभाल, देखभाल और सामाजिक कल्याण प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।
- अविकसित रजत अर्थव्यवस्था सेवाओं की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन को और बढ़ा देती है।
- रजत अर्थव्यवस्था में वृद्ध आबादी (60+) के लिये बाज़ार के अवसर शामिल हैं, जो उनके जीवन की गुणवत्ता, स्वास्थ्य और वित्तीय कल्याण को बढ़ाने के लिये वस्तुओं, सेवाओं और नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करती है।
- अविकसित रजत अर्थव्यवस्था सेवाओं की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन को और बढ़ा देती है।
- आर्थिक निर्भरता: केवल 11% वृद्ध पुरुषों को कार्य पेंशन मिलती है, जबकि 16.3% को सामाजिक पेंशन मिलती है। वृद्ध महिलाओं में से 27.4% को केवल सामाजिक पेंशन मिलती है, तथा केवल 1.7% को कार्य पेंशन मिलती है।
- लगभग पाँचवे हिस्से के वृद्धों के पास कोई आय नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप वे वित्तीय असुरक्षा की स्थिति में हैं।
- वृद्धावस्था देखभाल सुविधाओं का अभाव: 30% वृद्ध महिलाएँ और 28% वृद्ध पुरुष कम से कम एक दीर्घकालिक रुग्णता से पीड़ित हैं, जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गठिया आदि, जिसके कारण उनकी दैनिक गतिविधियाँ करने की क्षमता प्रभावित होती है।
- उम्र बढ़ने से स्वास्थ्य की स्थिति खराब होती है, स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ती है और देखभाल और चिकित्सा देखभाल के लिये परिवार या अनौपचारिक सहायता पर निर्भरता बढ़ती है।
- रोज़गार संबंधी चुनौतियाँ: वरिष्ठ नागरिकों को रोज़गार संबंधी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे आयु संबंधी भेदभाव (कम तकनीक-कुशल या कम ऊर्जावान माना जाता है), पुराने कौशल, कठोर कार्य घंटे, कम वेतन आदि।
- सामाजिक और पारिवारिक दुर्व्यवहार: वरिष्ठ नागरिकों को परिवार के सदस्यों या देखभाल करने वालों से मौखिक दुर्व्यवहार, अलगाव और शारीरिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जो प्रायः डर या सीमित गतिशीलता के कारण रिपोर्ट नहीं किया जाता है।
जनसांख्यिकीय संक्रमण क्या है?
- परिचय: जनसांख्यिकीय संक्रमण एक ऐसा मॉडल है जो जन्म और मृत्यु दर में परिवर्तन के साथ-साथ जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव को भी समझाता है, क्योंकि समाज आर्थिक और तकनीकी रूप से प्रगति करता है।
- चरण: इसमें आमतौर पर अनेक चरण शामिल होते हैं:
- चरण 1: उच्च जन्म और मृत्यु दर के परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर हो जाती है।
- चरण 2: स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और खाद्य उत्पादन में सुधार के कारण मृत्यु दर में कमी आती है, जबकि जन्म दर उच्च बनी रहती है। इससे जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती है।
- चरण 3: जन्म दर में गिरने लगती है, जिससे जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है। कारकों में शहरीकरण, कम बाल मृत्यु दर, गर्भनिरोधक तक पहुँच और छोटे परिवारों के पक्ष में सामाजिक बदलाव शामिल हैं।
- चरण 4: जन्म और मृत्यु दर दोनों कम होती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर या वृद्ध होती है। यह चरण उच्च जीवन स्तर, उन्नत प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास को दर्शाता है।
भारत में प्रमुख वृद्ध देखभाल योजनाएँ क्या हैं?
- अटल वयो अभ्युदय योजना
- राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY)
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)
- वृद्धों के स्वास्थ्य देखभाल के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPHCE)
- अटल पेंशन योजना (APY)
नोट: भारत की प्रतिबद्धताएँ: भारत ने वर्ष 1999 में वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (NPOP) तैयार की और वह मैड्रिड अंतर्राष्ट्रीय वृद्धावस्था कार्य योजना (2002) का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- संयुक्त राष्ट्र का स्वस्थ आयु दशक (2021-2030) अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण पर SDG-3 के साथ संरेखित है।
आगे की राह:
- वृद्धजन स्वयं सहायता समूह: सामुदायिक सहभागिता, संसाधन साझाकरण और सामाजिक-आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वृद्धजनों के लिये स्वयं सहायता समूह स्थापित करना।
- उदाहरण के लिये, वियतनाम अपने देश में वृद्धजनों के लिये राष्ट्रीय कार्य कार्यक्रम के माध्यम से स्वस्थ वृद्धावस्था को बढ़ावा दे रहा है।
- बहु-पीढ़ीगत जीवन: वृद्धजनों के लिये बहु-पीढ़ीगत परिवारों (दादा-दादी, माता-पिता और बच्चों का एक साथ रहना) को बढ़ावा देने वाली नीतियों को भावनात्मक समर्थन, पारिवारिक संबंध और स्वायत्तता प्रदान करने के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- डेकेयर सेंटर जैसी अल्पकालिक देखभाल सुविधाओं के माध्यम से वृद्धजन व्यक्तियों को सहायता प्रदान करके, भोजन, स्वास्थ्य निगरानी और साथ प्रदान करके घर में वृद्धावस्था को बढ़ावा देना।
- बहु-पीढ़ीगत सेतुओं का निर्माण ज्ञान, कौशल और अनुभवों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर समाज को समृद्ध बना सकता है, जिससे युवा पीढ़ी को तेज़ी से सक्षम बनाया जा सके।
- डिजिटल समावेशन: वृद्धजन श्रमिकों के लिये डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी दक्षता जैसे कौशल विकसित करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना, जिससे उन्हें डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स और ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवा में शामिल होने में सक्षम बनाया जा सके।
- स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: वृद्धावस्था देखभाल में वृद्धि करके और वृद्ध-अनुकूल सुविधाओं का निर्माण करके वृद्धजनों के लिये गुणवत्तापूर्ण, सस्ती स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना।
- दूरस्थ परामर्श के लिये टेलीमेडिसिन का विस्तार करना।
- पेंशन योजनाओं का विस्तार करना: सभी वृद्धजनों को शामिल करने के लिये पेंशन योजनाओं का विस्तार और सार्वभौमिक कवरेज सुनिश्चित करना। उदाहरण के लिये, PM-JAY अब 70 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को कवर करता है।
- नीतिगत सुधार: आर्थिक गतिविधियों में देखभाल कार्य को शामिल करने, वृद्धजनों के लिये एक अलग कार्यबल श्रेणी बनाने (सिल्वर डिविडेंड का दोहन करने के लिये), तथा इन प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- वृद्ध लोगों को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद करने के लिये जापानी मॉडल अपनाना, जैसे कि स्मार्ट हेल्थकेयर गैजेट, गतिशीलता के लिये सहायक उपकरण और साथी रोबोट प्रदान करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की तेज़ी से बढ़ती वृद्धजनों की आबादी के कारण उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. आर्थिक विकास से जुड़े जनांकिकीय संक्रमण के निम्नलिखित विशिष्ट चरणों पर विचार कीजिये:(2012)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर उपर्युक्त चरणों का सही क्रम चुनिये: (a) 1, 2, 3 उत्तर: (c) प्रश्न. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2008)
उपर्युक्त में से कितने कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D मेन्स:प्रश्न. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरुकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) |
शासन व्यवस्था
BBBP और सुकन्या समृद्धि योजना की 10वीं वर्षगाँठ
प्रिलिम्स के लिये:बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, मिशन वात्सल्य, मिशन शक्ति, आँगनवाड़ी केंद्र (AWC), 15 वाँ वित्त आयोग (2021-2026), नारी अदालत, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), सकल नामांकन अनुपात (GER), एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS), मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, टीकाकरण, जननी सुरक्षा योजना (JSY), नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21), AISHE 2021-2022। मेन्स के लिये:बाल लिंगानुपात (CSR), जन्म के समय लिंगानुपात (SRB) और महिला सशक्तिकरण में सुधार लाने में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना और सुकन्या समृद्धि योजना की भूमिका। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
22 जनवरी 2025 को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना और सुकन्या समृद्धि योजना के शुभारंभ का 10वाँ वर्ष मनाया गया।
- 22 जनवरी से 8 मार्च ( अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ) तक समारोह आयोजित करने की योजना बनाई गई है और इसमें मिशन वात्सल्य और मिशन शक्ति पोर्टल का शुभारंभ भी शामिल है।
- BBBP योजना 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में शुरू की गई थी और SSY को BBBP योजना के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था।
BBBP क्या है?
- परिचय: BBBP एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे घटते बाल लिंगानुपात (CSR) को संबोधित करने, लैंगिक-पक्षपातपूर्ण लैंगिक-चयनात्मक उन्मूलन को रोकने और बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया है।
- मुख्य उद्देश्य:
- जन्म के समय लिंगानुपात (SRB) में प्रतिवर्ष दो अंकों का सुधार करना।
- 95% या उससे अधिक की सतत् संस्थागत प्रसव दर हासिल करना।
- प्रथम तिमाही में प्रसवपूर्व देखभाल पंजीकरण और माध्यमिक शिक्षा नामांकन का प्रतिशत प्रतिवर्ष 1% बढ़ाया जाएगा।
- माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर पर लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाना।
- सुरक्षित मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- लक्ष्य समूह:
- प्राथमिक समूह: युवा दंपत्ति, भावी माता-पिता, किशोर, परिवार और समुदाय।
- द्वितीयक समूह: स्कूल, आँगनवाड़ी केंद्र (AWC), चिकित्सा पेशेवर, स्थानीय सरकारी निकाय, गैर सरकारी संगठन, मीडिया और धार्मिक नेता।
- मिशन शक्ति के साथ एकीकरण: BBBP योजना को अब 15 वें वित्त आयोग (2021-2026) के दौरान कार्यान्वयन के लिये महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के कार्यक्रम मिशन शक्ति के साथ एकीकृत किया गया है। मिशन शक्ति में दो उप-योजनाएँ शामिल हैं:
- संबल (सुरक्षा और संरक्षण): वन स्टॉप सेंटर (OSC), महिला हेल्पलाइन (181), BBBP का राष्ट्रव्यापी विस्तार और शिकायत निवारण के लिये नारी अदालत जैसी पहलों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- सामर्थ्य (सशक्तिकरण): शक्ति सदनों (राहत और पुनर्वास गृह), सखी निवास (कामकाजी महिलाओं के लिये सुरक्षित आवास) और पालना ( क्रेच सुविधाएँ) के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) अब दूसरी संतान, यदि वह लड़की हो, के लिये सहायता प्रदान करती है, जिससे मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
- संकल्प: HEW (महिला सशक्तिकरण केंद्र) महिलाओं के लिये केंद्रीय और राज्य योजनाओं तक पहुँच के लिये ज़िला स्तरीय एकल खिड़की तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- वित्तपोषण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं (BBBP) एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जो मिशन शक्ति की संबल उप-योजना के तहत देश के सभी ज़िलों में केंद्र सरकार द्वारा 100% वित्तपोषित है।
- ज़िला स्तर पर वित्तीय सहायता SRB के अनुसार वितरित की जाती है, जिसमें 40 लाख रुपए (SRB≤918), 30 लाख रुपए (SRB 919-952) तथा 20 लाख रुपए (SRB>952) आवंटित किये जाते हैं।
- प्रमुख हस्तक्षेप: यशस्विनी बाइक अभियान जैसे ज़मीनी स्तर के अभियान, जो महिला सशक्तीकरण का प्रतीक थे, तथा कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव, जिसके तहत स्कूल न जाने वाली 100,000 से अधिक लड़कियों को पुनः नामांकित किया गया।
- कार्यबल भागीदारी और कौशल को बढ़ावा देने वाले सम्मेलन और कार्यक्रम, जैसे " बेटियाँ बनें कुशल।"
- 10 वर्षों में उपलब्धियाँ:
- SRB: राष्ट्रीय SRB वित्त वर्ष 2014-15 में 918 से बढ़कर 2023-24 में 930 हो गया।
- शिक्षा: माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात (GER) वर्ष 2014-15 में 75.51% से बढ़कर 2023-24 में 78% हो गया।
- संस्थागत प्रसव: संस्थागत प्रसव वर्ष 2014-15 में 61% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 97.3% हो जाएगा।
- जागरूकता अभियान: 'सेल्फी विद डॉटर्स' और 'बेटी जन्मोत्सव' जैसे राष्ट्रव्यापी अभियानों के माध्यम से बालिकाओं के महत्त्व को दर्शाया गया।
- आर्थिक सशक्तीकरण: कौशल विकास मंत्रालय के साथ सहयोग से लड़कियों और महिलाओं के लिये कौशल विकास और आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा मिला।
मिशन वात्सल्य:
- मिशन वात्सल्: इसका उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप बाल संरक्षण और विकास करना है।
- यह बाल अधिकारों और जागरूकता के समर्थन पर ज़ोर देता है, साथ ही किशोर न्याय प्रणाली को मज़बूत बनाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि "कोई भी बच्चा पीछे न छूटे।"
- इसे शुरू में एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) के नाम से जाना जाता था।
- उप-योजना: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत तीन योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं:
- देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों तथा कानून से संघर्षरत बच्चों के लिये किशोर न्याय कार्यक्रम।
- सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिये एकीकृत कार्यक्रम.
- बच्चों के लिये गृह (शिशु गृह) सहायता योजना।
- ICPS के अंतर्गत समेकन (2009-2010): उपरोक्त तीन योजनाओं को ICPS में विलय कर दिया गया तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा उनका प्रबंधन किया गया।
- वर्ष 2017 में, ICPS का नाम बदलकर बाल संरक्षण सेवा (CPS) योजना कर दिया गया।
- CPS को वर्ष 2021-22 से मिशन वात्सल्य में एकीकृत कर दिया गया।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
- PMMVY: PMMVY महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक मातृत्व लाभ योजना है, जिसका उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- मुख्य उद्देश्य:
- वेतन हानि की भरपाई: महिलाओं को वेतन हानि के लिये आंशिक मुआवजा प्रदान करना ताकि वे गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद पर्याप्त आराम कर सकें।
- स्वास्थ्य और पोषण सुनिश्चित करना: माँ और बच्चे दोनों के लिये सुरक्षित प्रसव और अच्छे पोषण को बढ़ावा देना।
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाना : संस्थागत प्रसव एवं प्रसवोत्तर देखभाल को प्रोत्साहित करना।
- मुख्य विशेषताएँ: तीन किस्तों में 5,000 रुपए का प्रत्यक्ष लाभ प्रदान किया जाता है।
- संस्थागत प्रसव के लिये जननी सुरक्षा योजना (JSY) के अंतर्गत अतिरिक्त 1,000 रुपए प्रदान किये जाते हैं, जिससे कुल लाभ प्रति लाभार्थी 6,000 रुपए हो जाता है।
- पात्रता मानदंड: यह योजना उन गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये है जो पहली बार बच्चे को जन्म दे रही हैं तथा जिनकी आयु 19 वर्ष या उससे अधिक है।
- इसमें नियमित सरकारी नौकरियों में कार्यरत या अन्य कानूनों के तहत समान लाभ प्राप्त करने वाली महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है।
सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) क्या है?
- परिचय: इसे BBBP योजना के एक हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए बैंक खाते खोलकर बालिकाओं के भविष्य के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना था।
- खाता पात्रता: कोई भी निवासी भारतीय बालिका इस कार्यक्रम में भाग ले सकती है, तथा जन्म से लेकर 10 वर्ष की आयु तक खाता खोला जा सकता है।
- एक अभिभावक प्रति बच्चे एक खाता खोल सकता है, तथा जुड़वाँ या तीन बच्चों को छोड़कर प्रति परिवार अधिकतम दो खाते खोले जा सकते हैं।
- जमा और अंशदान: न्यूनतम प्रारंभिक जमा राशि 250 रुपए है तथा वार्षिक जमा सीमा 1,50,000 रुपए है।
- इसमें 15 वर्ष तक जमा किया जा सकता है तथा कन्या के अठारह वर्ष की होने तक अभिभावक खाते का प्रबंधन करेंगे।
- खाता परिपक्वता: सुकन्या समृद्धि खाता, खाता खोलने की तिथि से 21 वर्ष बाद परिपक्व होता है। यदि खाताधारक परिपक्वता से पहले विवाह करना चाहता है तो समय से पहले खाते का समापन किये जाने की अनुमति है।
- आहरण: अठारह वर्ष की आयु पूरी करने या दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात्, खाताधारक शिक्षा के लिये पिछले वित्तीय वर्ष की शेष राशि का 50% का आहरण कर सकता है।
- खाते का समय-पूर्व समापन: खाताधारक की मृत्यु या गंभीर बीमारी या अभिभावक की मृत्यु जैसे अनुकंपा कारणों के मामले में, खाते को समयपूर्व बंद किया जा सकता है।
- हालाँकि, खाता खोलने के पहले पाँच वर्षों के भीतर इसे समय से पहले बंद करने की अनुमति नहीं है।
- 10 वर्षों में उपलब्धियाँ: नवंबर 2024 तक, 4.1 करोड़ से अधिक सुकन्या समृद्धि खाते खोले गए हैं, जिससे वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा मिलेगा और लड़कियों की शिक्षा और सशक्तीकरण के लिये दीर्घकालिक बचत को प्रोत्साहन मिलेगा।
भारत में लैंगिक संकेतकों में प्रगति से संबंधित प्रमुख आँकड़े क्या हैं?
- जन्म के समय लिंगानुपात: प्रतिदर्श पंजीकरण प्रणाली (SRS) के अनुसार, वर्ष 2014 से 2016 की अवधि में जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 898 महिला था जो वर्ष 2018-2020 में बढ़कर 907 हो गया।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21) में जन्म के समय लिंगानुपात में 919 (2015-16) से 929 (2019-21) की वृद्धि दर्ज की गई।
- शैक्षिक लैंगिक अंतराल: वर्ष 2015-16 में, उच्च शिक्षा में महिलाओं का सकल नामांकन अनुपात (GER) 23.5% था, जो पुरुषों की तुलना में 1.9 प्रतिशत कम था। हालाँकि, AISHE 2021-2022 के अनुसार वर्तमान में महिलाओं का GER पुरुषों की अपेक्षा 0.2 प्रतिशत अधिक है।
- माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा स्तर पर, वर्ष 2015-16 के बाद से महिला नामांकन पुरुष नामांकन से अधिक अथवा एकसमान हो गया।
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर: मातृ मृत्यु दर घटकर प्रति लाख जीवित जन्मों पर 97 हो गई, जबकि शिशु मृत्यु दर घटकर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 28 हो गई।
- संस्थागत प्रसव: देश भर में संस्थागत प्रसव लगभग शत प्रतिशत हो चुका है।
निष्कर्ष
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना और सुकन्या समृद्धि योजना ने भारत में महिलाओं का सशक्तीकरण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लिंगानुपात, शिक्षा, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और कन्याओं के लिये वित्तीय सुरक्षा में सुधार के साथ, इन पहलों ने वैश्विक महिला-नेतृत्व वाले विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल स्थापित करते हुए एक अधिक समावेशी और समतापूर्ण समाज के निर्माण में योगदान दिया है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के जेंडर-संबंधी संकेतकों पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना और सुकन्या समृद्धि योजना के प्रभाव की विवेचना कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वह सुविधा/सुविधाएँ क्या हैं जो लाभार्थियों को शाखारहित क्षेत्रों में बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट (बैंक साथी) की सेवाओं से मिल सकती हैं? (2014)
नीचे दिए गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में सभी राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर ब्याज दर किसके द्वारा निर्धारित की जाती है (2010) (a) केंद्रीय वित्त मंत्रालय उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019) प्रश्न. भारत में महिला सशक्तीकरण के लिये जेंडर बजटिंग अनिवार्य है। भारतीय प्रसंग में जेंडर बजटिंग की क्या आवश्यकताएँ एवं स्थिति हैं? (2016) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
केरल में अपतटीय रेत खनन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारतीय प्रादेशिक जल, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विलवणीकरण, खनिज तेल, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:रेत खनन, अपतटीय खनिज विनियमन, तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर खनन का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
राज्य सरकार और स्थानीय समुदायों ने पर्यावरण और आजीविका पर पड़ने वाले प्रभावों की चिंता के कारण अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 (OAMDR संशोधन अधिनियम) के तहत केरल के तट पर अपतटीय रेत खनन शुरू करने की केंद्र सरकार की योजना का कड़ा विरोध किया है।
सरकार अपतटीय रेत खनन पर क्यों ज़ोर दे रही है?
- आर्थिक संभावना: निर्माण रेत के अपतटीय खनन की अनुमति देने का केंद्र का निर्णय भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के एक अध्ययन पर आधारित है।
- वर्ष 1985 से GSI सर्वेक्षणों ने पोन्नानी, चावक्कड़, कोच्चि, अलप्पुझा और कोल्लम के तट पर 22 से 45 मीटर की गहराई पर कंस्ट्रक्शन-ग्रेड रेत संसाधनों की पहचान की है।
- ये भंडार भारतीय जलक्षेत्र (12 समुद्री मील तक) और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में स्थित हैं, जिनमें 4%-20% मिट्टी की सांद्रता और 80%- 96% शुद्ध रेत है।
- यह रेत मूलतः नदियों से प्राप्त की जाती है, तथा समुद्री प्रक्रियाओं से गुजरने और विलवणीकरण के बाद निर्माण हेतु उपयुक्त हो जाती है।
- प्रति वर्ष 30 मिलियन मीट्रिक टन की दर से, ये रेत भंडार, जिनमें अनुमानित 750 मिलियन टन का भंडार है, अगले 25 वर्षों तक केरल की निर्माण आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।
- नीलामी योजना: केंद्र ने OAMDR संशोधन अधिनियम, 2023 के तहत केरल के तटीय क्षेत्रों के पाँच सेक्टरों में रेत ब्लॉकों की नीलामी करने की योजना बनाई है, जिनमें पोन्नानी, चवक्कड़, अलप्पुझा, कोल्लम उत्तर और कोल्लम दक्षिण शामिल हैं।
- राजस्व सृजन: अपतटीय रेत खनन से शिपिंग, व्यापार और वस्तु और सेवा कर (GST) संग्रह के माध्यम से महत्त्वपूर्ण आय प्राप्त होने की उम्मीद है।
रेत खनन
- खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को "लघु खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, तथा राज्य सरकारें इसके प्रशासन की देखरेख करती हैं।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) ने वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल रेत खनन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये "सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016" जारी किये हैं।
अपतटीय खनन क्या है?
- परिचय: अपतटीय खनन में समुद्र तल से खनिज या बहुमूल्य हिल का निष्कर्षण किया जाना शामिल है।
- भारत में अपतटीय खनन की संभावना: भारत का EEZ दो मिलियन वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है और GSI ने अपतटीय क्षेत्रों में विभिन्न खनिजों के संसाधनों का सुस्पष्ट वर्णन किया है।
- चूना मिट्टी: 153,996 मिलियन टन (गुजरात और महाराष्ट्र के तटों से दूर)
- निर्माण-ग्रेड रेत: 745 मिलियन टन (केरल तट से दूर)
- भारी खनिज प्लेसर: 79 मिलियन टन (ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तटों से दूर)
- बहुधात्विक पिंड: अंडमान सागर और लक्षद्वीप सागर।
- अपतटीय महत्त्वपूर्ण खनिज की नीलामी: भारत ने OAMDR अधिनियम, 2002 के तहत वर्ष 2024 में अपनी पहली अपतटीय महत्त्वपूर्ण खनिज नीलामी शुरू की, जिसमें अरब सागर और अंडमान सागर में 13 ब्लॉकों की पेशकश की गई।
- इसके अंतर्गत लिथियम, कोबाल्ट, निकल और ताँबा जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज की नीलामी की जाती है, जो बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक हैं।
- इस पहल के साथ, भारत का लक्ष्य आयात पर निर्भरता कम करना, संसाधन उपलब्धता बढ़ाना और वैश्विक खनिज बाज़ार में अपनी स्थिति का सुदृढ़ीकरण करना है।
- इसके अंतर्गत लिथियम, कोबाल्ट, निकल और ताँबा जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज की नीलामी की जाती है, जो बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक हैं।
अपतटीय खनन के विनियमन से संबंधित कानून और नियम कौन-से हैं?
- OAMDR संशोधन अधिनियम 2023: इस अधिनियम की सहायता से अपतट क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (OAMDR अधिनियम), 2002 में संशोधन किया गया, जो भारत के प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय जलमग्न सीमा और EEZ में खनिज संसाधनों के अन्वेषण और निष्कर्षण को विनियमित करता है।
- OAMDR संशोधन अधिनियम 2023 से अपतटीय परिचालन अधिकारों के लिये एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया शुरू करने, खनन प्रभावित लोगों के लिये एक ट्रस्ट की स्थापना किये जाने और अन्वेषण को बढ़ावा दिये जाने का प्रावधान किया गया।
- उत्पादन पट्टों के नवीनीकरण के प्रावधान को हटा दिया गया है तथा उत्पादन पट्टे की अवधि 50 वर्ष निर्धारित की गई है।
- OAMDR अधिनियम के संशोधित प्रावधानों को लागू करने के लिये, खान मंत्रालय ने अपतटीय क्षेत्र (खनिज संसाधनों की विद्यमान्यता) नियम, 2024 और अपतटीय क्षेत्र संचालन अधिकार नियम, 2024 तैयार किये हैं।
- OAMDR संशोधन अधिनियम 2023 से अपतटीय परिचालन अधिकारों के लिये एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया शुरू करने, खनन प्रभावित लोगों के लिये एक ट्रस्ट की स्थापना किये जाने और अन्वेषण को बढ़ावा दिये जाने का प्रावधान किया गया।
- अपतटीय क्षेत्र (खनिज संसाधनों की विद्यमान्यता) नियम, 2024: ये नियम खनिज तेलों, हाइड्रोकार्बन के अतिरिक्त अपतटीय क्षेत्रों में सभी खनिजों पर क्रियान्वित हैं।
- ये परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 या खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की प्रथम अनुसूची के भाग B में निर्दिष्ट खनिजों से संबंधित प्रावधानों को प्रभावित नहीं करते हैं।
- अन्वेषण के चरण: नियम अन्वेषण के लिये चार चरण परिभाषित करते हैं।
- सर्वेक्षण सर्वेक्षण (G4): खनिज भंडारों की पहचान के लिये प्रारंभिक चरण।
- प्रारंभिक अन्वेषण (G3): G4 निष्कर्षों के आधार पर अधिक विस्तृत अन्वेषण।
- सामान्य अन्वेषण (G2): आगे का विस्तृत अन्वेषण जिससे उत्पादन हो सकता है।
- विस्तृत अन्वेषण (G1): संसाधनों की सटीक प्रकृति की पुष्टि करने वाला अंतिम चरण।
- उत्पादन पट्टों के लिये ब्लॉकों की नीलामी के लिये न्यूनतम G2 स्तर का अन्वेषण आवश्यक है।
- अपतटीय क्षेत्र संचालन अधिकार नियम, 2024: यदि संचालन अलाभकारी हो जाए तो पट्टेदार 10 वर्ष के बाद अपना पट्टा त्याग सकते हैं।
- पट्टेधारकों को 60 दिनों के भीतर की गई नई खनिज खोजों की सूचना देना अनिवार्य है तथा तदनुसार अपने पट्टा विलेखों को अद्यतन करना होगा।
- संचालन अधिकार सुरक्षित करने के लिये सरकारी निकायों को आरक्षित अपतटीय क्षेत्रों की प्राथमिकता से पहुँच प्राप्त है।
अपतटीय खनन के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?
- प्रदूषण जोखिम: अपतटीय खनन से तलछट का ढेर बनता हैं और भारी धातु युक्त विषाक्त अपशिष्ट जल निकलता है, जिससे समुद्री जीवन और समुद्री संसाधनों पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र के लिये दीर्घकालिक खतरा पैदा होता है।
- राजस्व संग्रह: केरल जैसे राज्यों का तर्क है कि OAMDR संशोधन अधिनियम, 2023 राज्य के हितों की रक्षा नहीं करता है।
- खनन से प्राप्त रॉयल्टी राजस्व पूरी तरह से केंद्र सरकार को सौंप दिया जाता है, तथा राज्य प्राधिकारियों को उपेक्षित कर दिया जाता है।
- वर्ष 2023 के संशोधनों द्वारा निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दिये जाने से अनियंत्रित शोषण और पारदर्शिता की कमी के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- स्थानीय समुदाय का विरोध: मछुआरे और समुद्र पर निर्भर अन्य समुदाय आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरे का हवाला देते हुए खनन के लिये निविदा का विरोध कर रहे हैं।
- वैश्विक संसाधन प्रतिस्पर्द्धा: नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योगों द्वारा संचालित कोबाल्ट, निकल जैसी धातुओं की बढ़ती मांग , प्रतिस्पर्द्धा को तेज़ करती है, जिससे संसाधनों का दोहन होता है।
- जलवायु परिवर्तन: समुद्रतल के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन से संग्रहित कार्बन मुक्त हो सकता है, जिससे वायुमंडलीय CO2 का स्तर बढ़ने से जलवायु परिवर्तन में तेज़ी आएगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होगी ।
- सीमित ज्ञान: भारत में अपतटीय खनन गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र की सीमित समझ के कारण चिंता का विषय है।
- यह सबसे कम अन्वेषित तथा अपर्याप्त रूप से समझे जाने वाले क्षेत्रों में से एक है, जिससे खनन गतिविधियों के संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव का पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- यह अनिश्चितता समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को अप्रत्याशित क्षति पहुँचा सकती है, विशेषकर तब जब भारत इन संसाधनों की खोज शुरू कर रहा है।
आगे की राह
- पर्यावरणीय आकलन: परियोजनाएँ शुरू करने से पहले पारिस्थितिक, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिये स्वतंत्र पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाना।
- नॉर्वे जैसे देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना, जहाँ समुद्री संसाधनों के निष्कर्षण से पहले कठोर पर्यावरणीय योजना बनाई जाती है।
- सतत् खनन प्रथाएँ: निष्कर्षण की मात्रा को सीमित करना, महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों के पास खनन निषेध क्षेत्र निर्धारित करना, तथा खनन को सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ संरेखित करना, विशेष रूप से जलवायु कार्यवाही (SDG 13) और जल के नीचे जीवन (SDG 14)।
- न्यायसंगत राजस्व साझाकरण : राज्य सरकारों और स्थानीय समुदायों को राजस्व का उचित हिस्सा आवंटित करने के लिये रॉयल्टी ढाँचे को संशोधित करना। प्रभावित क्षेत्रों के लिये सामुदायिक विकास निधि की स्थापना करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: अपतटीय खनन के पर्यावरणीय प्रभावों की जाँच कीजिये और आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हुए जोखिम को कम करने के उपाय प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न. तटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए, विश्लेषण कीजिये। (2019) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
स्टार्टअप इंडिया पहल की 9वीं वर्षगाँठ
प्रिलिम्स के लिये:भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम, स्टार्टअप इंडिया, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भारतीय रिज़र्व बैंक, कॉरपोरेट वेंचर कैपिटल, स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, उत्पाद नवाचार, विकास और वृद्धि योजना हेतु MeitY के स्टार्टअप एक्सेलेरेटर (SAMRIDH) मेन्स के लिये:स्टार्ट-अप इंडिया मिशन की उपलब्धियाँ, वर्तमान में भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास चालक, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधित प्रमुख मुद्दे, आगे की राह |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
16 जनवरी 2025 को स्टार्टअप इंडिया योजना के 9 वर्ष पूर्ण हुए जिसका शुभारंभ 16 जनवरी 2016 को किया गाया था।
- यह दिवस राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्टार्टअप इंडिया पहल का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, स्टार्टअप का समर्थन करना और निवेश को प्रोत्साहित करना है।
स्टार्टअप इंडिया पहल क्या है?
- परिचय:
- स्टार्टअप इंडिया पहल का शुभारंभ 2016 में किया गया था। यह एक सरकारी कार्यक्रम है जिसके अंतर्गत भारत के उद्यमियों और स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान की जाती है।
- इस पहल का लक्ष्य नवाचार और उद्यमशीलता के लिये एक ऐसा सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करना है जो कर लाभ, सरल अनुपालन और वित्तपोषण के अभिगम जैसे उपायों के माध्यम से स्टार्टअप्स की सहायता कर आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा दे।
- स्टार्टअप इंडिया के अंतर्गत प्रमुख योजनाएँ:
- स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS): इस योजना के अंतर्गत प्रारंभिक चरण में वित्तपोषण सहायता प्रदान करने के लिये 10,000 करोड़ रुपए का फंड प्रदान किया जाता है।
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): SISFS के तहत स्टार्टअप्स को संकल्पना के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास और उत्पाद परीक्षण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- स्टार्टअप्स के लिये ऋण गारंटी योजना (CGSS): CGSS के अंतर्गत ऋण अभिगम सुनिश्चित करने के लिये स्टार्टअप्स को संपार्श्विक-मुक्त ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है।
- स्टार्टअप बौद्धिक संपदा संरक्षण (SIPP): SIPP के तहत स्टार्टअप को कम लागत पर पेटेंट फाइलिंग, ट्रेडमार्क पंजीकरण और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संरक्षण में सहायता प्रदान की जाती है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- स्टार्टअप मान्यता: सुव्यवस्थित पंजीकरण और पात्रता मानदंड।
- इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: सरलीकृत अनुपालन, स्व-प्रमाणन और एकस्थलीय स्वीकृति से स्टार्टअप्स की नौकरशाही संबंधी बाधाएँ कम होती हैं।
- कर लाभ: पात्र स्टार्टअप्स को निरंतर 3 वित्तीय वर्षों के लिये लाभ पर कर छूट प्रदान की जाती है, जिससे लाभप्रदता और विकास को बढ़ावा मिलता है।
- क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ: जैवप्रौद्योगिकी, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में लक्षित पहल केंद्रित विकास और नवाचार को बढ़ावा देती हैं।
- क्षमता निर्माण: स्टार्टअप इंडिया हब एक वन-स्टॉप प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है जो स्टार्टअप्स को सलाहकारों, निवेशकों और उद्योग विशेषज्ञों से जोड़ता है, जबकि मेंटरशिप कार्यक्रम उद्यमशीलता कौशल और व्यावसायिक कौशल को बढ़ाने के लिये मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
स्टार्टअप इंडिया पहल के अंतर्गत प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- स्टार्टअप्स में वृद्धि: DPIIT- मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 500 (2016) से बढ़कर 1.59 लाख (2025) हो गई।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम: भारत अब अमेरिका और चीन के बाद विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न (1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य वाले स्टार्टअप) हैं ।
- रोज़गार सृजन: अक्तूबर, 2024 तक, स्टार्टअप्स ने IT सेवाओं (2.04 लाख) और हेल्थकेयर और लाइफसाइंसेज (1.47 लाख) जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ 16.6 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न किये हैं।
- महिला उद्यमियों का उदय: वर्ष 2024 तक, 73,151 स्टार्टअप्स में कम-से-कम एक महिला निदेशक है, जो उद्यमिता में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।
- गैर-मेट्रो शहरों पर ध्यान केंद्रित: राज्यों की स्टार्टअप रैंकिंग और क्षमता निर्माण कार्यशालाओं जैसे कार्यक्रमों ने गैर-मेट्रो शहरों में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत किया है।
स्टार्टअप इंडिया के अंतर्गत अन्य महत्त्वपूर्ण पहल क्या हैं?
- पारिस्थितिकी तंत्र विकास कार्यक्रम: स्टार्टअप महाकुंभ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो भारत की उद्यमशीलता की भावना और नवाचार को प्रदर्शित करता है।
- वर्ष 2024 में आयोजित पहले संस्करण में 48,000 से अधिक आगंतुक और 392 वक्ता शामिल हुए थे। दूसरा संस्करण (अप्रैल 2025) "स्टार्टअप इंडिया @ 2047-भारत की कहानी को उज़ागर करना" पर केंद्रित होगा, जिसमें वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में भारत के भविष्य पर प्रकाश डाला जाएगा।
- ASCEND (स्टार्टअप क्षमता और उद्यमशीलता अभियान में तेज़ी लाना) कार्यशालाएँ पूर्वोत्तर राज्यों में उद्यमियों को समर्थन देती हैं, और स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन सप्ताह राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के दौरान उद्यमशीलता का जश्न मनाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: भारत की G-20 अध्यक्षता ने वैश्विक सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये स्टार्टअप-20 सहभागिता समूह को संस्थागत रूप दिया।
- भास्कर: वर्ष 2024 में लॉन्च किया गया भास्कर (भारत स्टार्टअप नॉलेज एक्सेस रजिस्ट्री) एक वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जहाँ निवेशक, सलाहकार, सेवा प्रदाता और सरकारी निकाय जैसे विविध स्टार्टअप इकोसिस्टम हितधारक सहजता से जुड़ सकते हैं और सहयोग कर सकते हैं।
- यह स्टार्टअप्स को आगे बढ़ाने के लिये केंद्रीकृत संसाधन, सुव्यवस्थित बातचीत के लिये वैयक्तिक भास्कर ID और अवसरों की बेहतर खोज के लिये उन्नत खोज सुविधा प्रदान करता है।
- यह मंच भारत को वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में बढ़ावा देता है तथा समावेशिता और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देकर गैर-मेट्रो क्षेत्रों के स्टार्टअप को सशक्त बनाता है।
भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- पूंजी तक पहुँच: पहल के बावजूद, कई स्टार्टअप्स को पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में।
- अगस्त 2024 में, टियर-II और टियर-III शहरों में वित्त पोषण जुलाई 2024 में 2,202 करोड़ रुपए से घटकर 630 करोड़ रुपए हो गया, और अक्तूबर 2024 में 1,743 करोड़ रुपए से नवंबर 2024 में 202 करोड़ रुपए हो गया, जो टियर-I शहरों के साथ असमानताओं को उज़ागर करता है।
- विनियामक बाधाएँ: भारत का जटिल और अस्पष्ट विनियामक वातावरण स्टार्टअप्स के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिये, ओला और उबर जैसी ऐप-आधारित कैब सेवाओं को मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत वर्गीकृत करने पर बहस ने परिचालन अनिश्चितताएँ पैदा कर दी हैं।
- इसके अतिरिक्त, नए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2024, के परिणामस्वरूप स्टार्टअप्स को अधिक अनुपालन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, भले ही यह आवश्यक हो।
- विस्तार संबंधी चुनौतियाँ: अध्ययनों के अनुसार, मज़बूत वृद्धि के बावजूद, लगभग 90% स्टार्टअप पहले 5 वर्षों के भीतर विफल हो जाते हैं, जिसका मुख्य कारण विस्तार संबंधी समस्याएँ, परिचालन संबंधी अक्षमताएँ और नए बाज़ारों में प्रवेश करने में आने वाली चुनौतियाँ हैं।
- स्थिरता के मुद्दे: भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में एडटेक सहित कई क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ रही है, जिससे बाज़ार संतृप्ति और लाभ मार्जिन कम हो रहा है।
- एडटेक में महामारी के बाद की मंदी ने अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा की चुनौतियों को उजागर किया है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर अस्थिर नकदी की हानि और बाजार समेकन देखने को मिलता है।
आगे की राह:
- सुव्यवस्थित विनियामक सैंडबॉक्स: RBI के फिनटेक मॉडल की सफलता के आधार पर, सभी क्षेत्रों में एक व्यापक विनियामक सैंडबॉक्स स्थापित करना।
- इससे हेल्थटेक, एडटेक और क्लीनटेक जैसे क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को नियंत्रित वातावरण में नवीन उत्पादों का परीक्षण करने में मदद मिलेगी, जिससे नियामक बोझ कम होगा।
- लक्षित कौशल विकास: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ब्लॉकचेन और IoT जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्र-विशिष्ट कौशल पहलों को कौशल भारत कार्यक्रम के माध्यम से विस्तारित किया जा सकता है।
- विकेंद्रीकृत स्टार्टअप हब: बुनियादी ढाँचे में सुधार और प्रोत्साहन प्रदान करके, टियर-2 और टियर-3 शहर स्टार्टअप हब बन सकते हैं।
- हब-एण्ड-स्पोक मॉडल लागू करना, जहाँ प्रमुख शहर (हब) आसपास के छोटे शहरों (स्पोक) को सहयोग प्रदान करें।
- बेहतर कर प्रोत्साहन: तकनीकी कंपनियों के लिये इज़रायल की 12% निगम कर दर के आधार पर, स्टार्टअप के लिये कर लाभ को तीन से बढ़ाकर पाँच वर्ष, साथ ही डीप-टेक उद्यमों और राष्ट्रीय चिंताओं से निपटने वालों के लिये अतिरिक्त छूट प्रदान करना।
- IP संरक्षण: महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये फास्ट-ट्रैक परीक्षाओं के साथ पेटेंट प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना तथा एक आईपी जागरूकता कार्यक्रम लागू करना, जो जापान द्वारा पेटेंट परीक्षा समय को घटाकर 14 महीने करने से प्रेरित है।
- सरकारी खरीद को बढ़ावा देना: स्टार्टअप को सरकारी खरीद का एक हिस्सा प्रदान करने की आवश्यकता है, जो कि अमेरिका के 23% छोटी कंपनी खरीद लक्ष्य के समान है। इससे भारतीय उद्यमियों को पर्याप्त बाज़ार अवसर प्राप्त होंगे।
निष्कर्ष
स्टार्टअप इंडिया पहल के 9 वर्ष के विकास ने भारत के उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है, नवाचार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है। 1.59 लाख से अधिक स्टार्टअप के साथ, भारत वैश्विक उद्यमिता के रूप में उभरने के लिये तैयार है। इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये, वर्तमान चुनौतियों पर काबू पाना और समावेशिता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि भारत वर्ष 2047 के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को वैश्विक मान्यता प्राप्त हो गई है, फिर भी वित्तपोषण की कमी, विनियामक बाधाएँ और सीमित नवाचार जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014) (a) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली एक अल्पकालिक पूंजी। उत्तर: (B) |