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तेल क्षेत्र संशोधन विधेयक 2024

  • 20 Dec 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यसभा, हाइड्रोकार्बन, हीलियम, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस बोर्ड विनियामक बोर्ड 

मेन्स के लिये:

तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक 2024, खनिज तेल निष्कर्षण में विनियमन, भारत की ऊर्जा नीतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया, जिसका उद्देश्य निज़ी निवेश को आकर्षित करते हुए पेट्रोलियम एवं खनिज तेलों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना है। 

  • इस विधेयक का उद्देश्य तेल उत्पादन के प्रशासन को खनन गतिविधियों से स्पष्ट रूप से अलग करके मौजूदा तेल क्षेत्र अधिनियम 1948 में संशोधन करना है।

तेल क्षेत्र संशोधन विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • खनिज तेल की परिभाषा: विधेयक खनिज तेलों की परिभाषा को व्यापक बनाता है, जिसमें प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन (जैसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस) के साथ-साथ कोल बेड मीथेन और शेल गैस/तेल को भी शामिल किया गया है।
    • इस परिभाषा में कोयला, लिग्नाइट और हीलियम को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया है, संभवतः इसका कारण खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत उनका विनियमन है।
  • पेट्रोलियम लीज़: विधेयक “माइनिंग लीज़” शब्द के स्थान पर “पेट्रोलियम लीज़” शब्द का प्रयोग करता है, जो खनिज़ तेलों की खोज, उत्पादन और निपटान जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करेगा।
    • तेल क्षेत्र अधिनियम, 1948 के तहत दिये गए मौज़ूदा माइनिंग लीज़/खनन पट्टे वैध रहेंगे और उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
  • उल्लंघन के लिये दंड: तेल क्षेत्र अधिनियम, 1948 के तहत उल्लंघन के परिणामस्वरूप छह माह तक का कारावास, 1,000 रुपये का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं। 
  • नवीन विधेयक तेल क्षेत्र अधिनियम के उल्लंघन हेतु आपराधिक दंड के स्थान पर वित्तीय दंड का प्रावधान करता है, जिससे अधिकतम ज़ुर्माना राशि 25 लाख रुपए हो जाती है, तथा निरंतर उल्लंघन के लिये 10 लाख रुपए तक का अतिरिक्त दैनिक ज़ुर्माना भी लगाया जाता है।
  • निज़ी निवेश को प्रोत्साहन: विधेयक में पेट्रोलियम उत्पादन में निज़ी निवेश को आकर्षित करने के उपाय शामिल हैं, तथा यह स्पष्ट किया गया है कि मौज़ूदा खनन पट्टे, पट्टेधारकों को किसी प्रकार का नुकसान पहुँचाए बगैर वैध बने रहेंगे।
  • केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्तियाँ: विधेयक में केंद्र सरकार को विभिन्न पहलुओं पर नियम बनाने की शक्ति बरकरार रखी गई है, जिसमें पट्टे प्रदान करना और उनका विनियमन करना, नियम और शर्तें निर्धारित करना (जैसे पट्टे का क्षेत्र और अवधि), खनिज तेलों का संरक्षण और विकास, तथा रॉयल्टी के संग्रह के साथ-साथ तेल उत्पादन के तरीके शामिल हैं।
  • इसके अलावा, विधेयक केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाकर पेट्रोलियम पट्टों का समेकन, सुविधा साझाकरण, प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये पट्टाधारकों की ज़िम्मेदारियाँ, तथा पेट्रोलियम पट्टा पुरस्कारों के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रियाएँ शामिल करता है।
  • दंड का निर्णय: केंद्र सरकार दंड का निर्णय करने के लिये संयुक्त सचिव स्तर या उससे उच्च स्तर के अधिकारी की नियुक्ति करेगी।

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस बोर्ड नियामक बोर्ड

  • PNGRB की स्थापना पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस विनियामक बोर्ड अधिनियम, 2006 के तहत की गई थी।
  • नोडल मंत्रालय: पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय 
  • इसका उद्देश्य उपभोक्ता हितों की रक्षा करना, पेट्रोलियम से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करना और प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों को बढ़ावा देना है।
  • PNGRB सिटी गैस वितरण (CJD) नेटवर्क, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइनों को अधिकृत, टैरिफ का निर्धारण तथा तकनीकी एवं सुरक्षा मानक स्थापित करता है।

तेल क्षेत्र संशोधन विधेयक, 2024 के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • राज्य के अधिकारों पर प्रभाव: विधेयक में खनन पट्टों से पेट्रोलियम पट्टों की ओर बदलाव से राज्य सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत आने वाले राज्य के कराधान अधिकारों का हनन हो सकता है।
    • मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एवं अन्य बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य 2024 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने पुष्टि की कि राज्यों को भारतीय संविधान में राज्य सूची की प्रविष्टि 50 के तहत खनन गतिविधियों पर कर लगाने का विशेष अधिकार है।
    • आलोचकों का तर्क है कि संघ सूची की प्रविष्टि 53, जो केंद्र सरकार को तेल क्षेत्रों और खनिज तेलों पर अधिकार प्रदान करती है, केंद्रीय नियंत्रण को बढ़ा सकती है, जिससे संघवाद से संबंधित चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा अधिकार क्षेत्र एवं राजस्व पर संभावित विवाद देखने को मिल सकते हैं।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: निजी खिलाड़ियों की बढ़ती भागीदारी से पर्यावरण संबंधी सुरक्षा उपाय कमज़ोर हो सकते हैं।
    • ऐसी आशंका है कि निजी कंपनियाँ पर्यावरण संरक्षण की अपेक्षा मुनाफे को प्राथमिकता देंगी, जिससे उत्सर्जन और पारिस्थितिकी क्षति बढ़ सकती है।
  • गैर-अनुपालन के लिये दंड:  आपराधिक दंड के स्थान पर जुर्माने लगाने से जवाबदेही संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होंगी, जिससे संभावित रूप से निवारण और सुरक्षा एवं पर्यावरण मानकों के अनुपालन में कमी आएगी।
  • निजी निवेश बनाम सार्वजनिक क्षेत्र की प्राथमिकता: विपक्षी दलों का तर्क है कि संसाधन अन्वेषण के लिये तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निजी संस्थाओं की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • आलोचकों को डर है कि निजी निवेश से सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व कमजोर हो सकता है और सामुदायिक कल्याण तथा स्थिरता की तुलना में लाभ को प्राथमिकता दी जा सकती है।

आगे की राह

  • क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ: क्षेत्राधिकार संबंधी विवादों को रोकने के लिये केंद्रीय एवं राज्य प्राधिकरण के बीच स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करने के साथ संसाधन प्रशासन में सहकारी संघीय संरचना सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • पारदर्शी राजस्व साझाकरण: संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करने और वित्तीय नियंत्रण पर तनाव कम करने के लिये केंद्र एवं राज्यों के बीच पारदर्शी तथा न्यायसंगत राजस्व-साझाकरण तंत्र विकसित करना चाहिये।
    • धारणीय प्रथाएँ: उन कंपनियों को प्रोत्साहन देना चाहिये जो धारणीय प्रथाओं को प्राथमिकता (जैसे कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिये कर छूट या कम रॉयल्टी लेना) देती हैं
  • पर्यावरण नियमों को मज़बूत करना: विधेयक के अंतर्गत मजबूत पर्यावरण सुरक्षा उपायों को लागू करने से तेल उत्पादन में निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी से संबंधित जोखिमों को कम किया जा सकता है। इसमें नई परियोजनाओं के लिये अनिवार्य पर्यावरण प्रभाव आकलन शामिल है।
  • जन जागरूकता अभियान: घरेलू तेल उत्पादन के लाभों एवं ऊर्जा सुरक्षा पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने से विधेयक के प्रति जन समर्थन को बढ़ावा मिलेगा तथा इससे संबंधित नकारात्मक धारणाओं को भी दूर किया जा सकेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं राज्य के अधिकारों पर तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024 के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला शब्द 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किसे संदर्भित करता है: (2020)

(a) कच्चा तेल
(b) बहुमूल्य धातु
(c) दुर्लभ मृदा तत्त्व
(d) यूरेनियम

उत्तर: (a)


प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

  1. कसावा
  2.  क्षतिग्रस्त गेहूंँ के दाने
  3.  मूंँगफली के बीज
  4.  चने की दाल
  5.  सड़े हुए आलू
  6.  मीठे चुक़ंदर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)

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