भारतीय विद्युत क्षेत्र: चुनौतियाँ और समधान

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में विद्युत वितरण प्रणाली की चुनौतियों और उनके समाधान से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये लगभग सभी क्षेत्रों में कई छोटे-बड़े सुधारों की आवश्यकता होगी। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र विद्युत का भी है जिसमें पिछले कुछ समय से सुधारों के प्रयास किये जा रहे हैं। वर्तमान में COVID-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभावों और इसकी अनिश्चितता से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने में एक मज़बूत तथा प्रभावशाली विद्युत क्षेत्र की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों (उद्योग, कृषि, सेवा आदि) को सुचारू रूप से कार्य करने के लिये विद्युत की निर्बाध आपूर्ति तथा इसकी  लागत का वहनीय होना बहुत ही आवश्यक है। हाल के वर्षों में देश में विद्युत क्षेत्र (विशेषकर वितरण)  की  चुनौतियों काफी वृद्धि देखी गई है, ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु विद्युत क्षेत्र में बड़े बदलावों की आवश्कता होगी।  

विद्युत क्षेत्र की चुनौतियाँ:    

  • भारत में पिछले दो दशकों में विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है, इसके परिणाम स्वरूप देश में ऊर्जा उत्पादन के संकट को भी दूर कर लिया गया है।
  • विद्युत क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती उत्पादन में न होकर इसके वितरण से संबंधित है विद्युत के उत्पादन और वितरण के बीच यह असंतुलन इस क्षेत्र के लिये एक चुनौती  बनकर उभरा है।
  • विद्युत वितरण कंपनियाँ भारत के विद्युत क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा रही है तथा कई मौकों पर सरकार द्वारा राज्य विद्युत वितरण कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिये अतिरिक्त धन उपलब्ध कराना पड़ा है जो इसका एक स्थायी और दूरगामी समाधान नहीं हो सकता।
    • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में 61,000 करोड़ रुपए के वार्षिक घाटे के साथ डिस्कॉम का कुल ऋण 3.84 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया था।

विद्युत वितरण कंपनियों के घाटे का कारण:  

  • विद्युत वितरण कंपनियों या डिस्कॉम (DISCOM) द्वारा राजस्व संग्रह में कमी, विद्युत उत्पादक कंपनियों से उच्च लागत पर बिजली की खरीद और विद्युत टैरिफ में अपर्याप्त वृद्धि डिस्कॉम के घाटे का सबसे बड़ा कारण है।
  • साथ ही सरकारी विभागों द्वारा लंबे समय तक बिल का भुगतान न किया जाना भी डिस्कॉम के राजस्व घाटे को बढ़ाता है।
  • पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन द्वारा जारी के आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019 में विद्युत वितरण कंपनियों का कुल तकनीकी और वाणिज्य नुकसान [Aggregate Technical & Commercial (ATC) loss] 22% रहा।
    • इसके तहत तकनीकी कारणों से होने वाले क्षति, बिजली की चोरी, अपर्याप्त बिलिंग, भुगतान डिफॉल्ट, राजस्व संग्रह की अक्षमता आदि शामिल है।
  • प्लांट लोड फैक्टर (Plant Load Factor): प्लांट लोड फैक्टर से आशय किसी दिये गए समय में एक विद्युत ऊर्जा संयंत्र द्वारा उत्पादित ऊर्जा और उसकी कुल उत्पादन क्षमता के अनुपात से है। डिस्कॉम द्वारा वितरण की चुनौतियों के कारण विद्युत उत्पादन कंपनियों के उत्पादन सीमित करना पड़ता है जिससे उनके राजस्व में भी गिरावट होती है।
  • भारत में आधी से अधिक (लगभग 53.4%) कोल आधारित विद्युत ऊर्जा संयंत्रों से आती है ऐसे में अन्य देशों से आयात होने वाले कोयले की लागत में वृद्धि का प्रभाव विद्युत के मूल्य पर भी पड़ता है   

सुधार के प्रयास:   

  • सरकार द्वारा पिछले काफी समय से विद्युत क्षेत्र में सुधार लाने के प्रयास किये गए है। केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में ‘विद्युत अधिनियम, 2003’ लागू किया गया था।
  • इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता देने के साथ, विद्युत् क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा और व्यापार सुगमता को बढ़ावा देना था।
  • इस अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के विद्युतीकरण, लाइसेंस मुक्त उत्पादन और वितरण, मीटर की अनिवार्यता, विद्युत चोरी पर कठोर दंड का प्रावधान और डिस्कॉम के निजीकरण की बात कही गई थी। 
  • सरकार द्वारा प्रस्तुत विद्युत वितरण सुधार योजना के तहत विद्युत घाटे को 12% से कम करने का लक्ष्य रखा गया है साथ ही इसके तहत निर्बाध विद्युत आपूर्ति के साथ टैरिफ से जुड़ी समस्याओं को भी दूर करने की बात कही गई है।
  • सरकार द्वारा वर्ष 2015 में उदय योजना के माध्यम से डिस्कॉम के  वित्तीय तथा परिचालन क्षमता में सुधार लाने का प्रयास किया गया।  
  • मई, 2020 में केंद्र सरकार द्वारा विद्युत वितरण कंपनियों के लिये 90,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की घोषणा की गई थी  
  • हालाँकि इन सुधारों के बावजूद भी विद्युत क्षेत्र में वित्तीय चुनौती की समस्याएँ अभी भी बनी हुई है।

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विद्युत क्षेत्र में सुधारों की विफलता का कारण:  

  • विद्युत अधिनियम 2003 के तहत विद्युत क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया था, इसके तहत बड़े विद्युत उपभोक्ताओं (1000kW से अधिक की खपत) को ओपन एक्सेस के माध्यम से अपनी पसंद के आपूर्तिकर्त्ता से विद्युत् प्राप्त करने की छूट दी गई थी।
  • हालाँकि इस योजना के लागू होने के लगभग 16 वर्षों बाद भी ओपन एक्सेस के तहत विद्युत् सेवाओं से जुड़े उपभोक्ताओं की संख्या मात्र 1% से भी कम है, इसका प्रमुख कारण टैरिफ से जुड़ी बाधाएँ, आपूर्तिकर्ता बदलने के लिये अनुमति मिलने में देरी आदि हैं।
  • सरकार द्वारा विद्युत वितरण कंपनियों को सब्सिडी के भुगतान में विलंब या अपर्याप्त सब्सिडी का भुगतान वित्तीय चुनौती को बढ़ा देता है। 
  • COVID-19 महामारी के कारण औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से विद्युत खपत में भारी गिरावट [मार्च (-8.7%),  अप्रैल (-23.2%), मई (-14.9%) और जून (-10.9%)] देखने को मिली।   
    • गौरतलब है कृषि सहित कुछ अन्य क्षेत्रों के लिये दी जाने वाली सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा औद्योगिक क्षेत्र (क्राॅस सब्सिडी के रूप में) से प्राप्त होता है।
  • वर्ष 2003 के बाद से सरकार द्वारा किये गए कई प्रयासों के बावजूद भी वर्तमान में देश में मात्र 10 उपभोक्ताओं को ही निजी क्षेत्र द्वारा विद्युत आपूर्ति की जाती है, इसमें से अधिकांश शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
  • वितरण कंपनियों को बिजली के मूल्य के निर्धारण की छूट नहीं है जिससे उनके घाटे में लगातार वृद्धि हुई है। 
  • सरकार के प्रयासों के बावजूद भी अधिकांश डिस्कॉम अपने ‘आपूर्ति की औसत प्रति यूनिट लागत’ (ACS) और ‘औसत राजस्व की प्राप्ति’ (ARR) के अंतर को कम करने में सफल नहीं रही हैं। 

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समाधान: 

  • डिस्कॉम के हितों की रक्षा: नियामकों द्वारा विद्युत टैरिफ के निर्धारण के समय उपभोक्ताओं के साथ-साथ डिस्कॉम के हितों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये। विद्युत अधिनियम के तहत  बिजली आपूर्ति के दौरान हुई क्षति की वसूली का प्रावधान किया गया है परंतु वास्तविकता में डिस्कॉम के लिये यह संभव नहीं हो पाता है। नियामकों को विद्युत शुल्क की एक अधिकतम सीमा निर्धारित करते हुए डिस्कॉम को टैरिफ के संदर्भ में आवश्यक छूट देने पर विचार करना चाहिये। अत्यधिक ATC नुकसान वाले राज्यों जैसे-मध्य प्रदेश (36%), उत्तर प्रदेश (33%) और बिहार (31%) आदि में इस समस्या को शीघ्र ही दूर किया जाना बहुत ही आवश्यक है।  
  • तकनीकी अक्षमता को दूर करना: तकनीकी अक्षमताओं के कारण होने वाले ऊर्जा क्षय पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। तारों और विद्युत आपूर्ति के उपकरणों में विद्युत आपूर्ति के दौरान प्रतिरोध के कारण थोड़ी-बहुत ऊर्जा का क्षय होना स्वाभाविक है परंतु पुराने और खराब तारों से यह समस्या अधिक बढ़ जाती है। सरकार द्वारा पुरानी हो रही वितरण प्रणाली के नवीनीकरण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • सब्सिडी में सुधार: सरकार को सब्सिडी के भुगतान में अनावश्यक देरी के साथ सरकार को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से पात्र उपभोक्ताओं (जैसे-किसान आदि) को विद्युत सब्सिडी उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये।
  • विद्युत चोरी:  बिजली की चोरी भी डिस्कॉम के राजस्व में गिरावट का एक बड़ा कारण है। लोगों द्वारा मीटर से छेड़छाड़ या अधिकारियों को रिश्वत देने के प्रयास और स्मार्ट मीटर लगाने का विरोध कर वास्तविक विद्युत बिल के भुगतान से बचने का प्रयास किया जाता है। विद्युत चोरी के मामलों में कठोर कार्रवाई के साथ स्मार्ट मीटर को अनिवार्य बना कर डिस्कॉम के घाटे को कम किया जा सकता है। साथ ही उपभोक्ताओं को ऐसे अनैतिक माध्यमों को अपनाने से रोकने हेतु उन्हें जागरूक किया जाना चाहिये।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: सरकार को इस क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही अनावश्यक कटौती करने पर विद्युत आपूर्ति कंपनियों पर जुर्माने लागू कर इस क्षेत्र में फैली अनियमितता को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • भारत में सक्रिय अधिकांश विद्युत वितरण कंपनियाँ एक बड़े क्षेत्र को अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं जिससे उनकी सेवा की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे में वितरण कंपनियों के कार्यक्षेत्र को सीमित किया जाना बहुत ही आवश्यक है जिससे उपभोक्ताओं और डिस्कॉम के बीच बेहतर समन्वय स्थापित हो सके और उनकी सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके।  
  • विद्युत उत्पादक कंपनियों के घाटे को कम करने के लिये उन्हें सीधे निजी क्षेत्र को विद्युत विक्रय की अनुमति दी जानी चाहिये, साथ ही अधिशेष विद्युत की खपत के लिये सीमावर्ती देशों में विद्युत आपूर्ति के लिये अवसंरचना प्रणाली को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • वर्ष 1991 में डीलाइसेंसिंग और वर्ष 2003 के सुधारों के पश्चात विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में बिना किसी बड़ी निजीकरण पहल के ही निजी कंपनियों (लगभग 47.1%) की भागीदारी के  तहत देश में विद्युत उत्पादन क्षमता को बढाने में सफलता प्राप्त हुई है, विद्युत वितरण के क्षेत्र में भी इसी प्रकार बदलाव लाकर इसकी चुनौतियों को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष: 

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिये ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित करना बहुत ही आवश्यक है। पिछले तीन दशकों में भारत ने विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, परंतु विद्युत वितरण कंपनियों को तकनीकी चुनौतियों के साथ बिजली की चोरी, अपर्याप्त बिलिंग, भुगतान डिफॉल्ट, राजस्व संग्रह की अक्षमता आदि के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा डिस्कॉम की समस्याओं को दूर करने के लिये किये गए प्रयासों के बावजूद भी कुछ राज्यों में इनकी समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। डिस्कॉम कंपनियों की वित्तीय चुनौतियों को दूर करने, इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने आदि के लिये केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर आवश्यक कदम उठाने चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न:  पिछले कुछ वर्षों से भारतीय विद्युत क्षेत्र सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक भार का कारण बना हुआ है। इस कथन को स्पष्ट करते हुए भारतीय विद्युत क्षेत्र की चुनौतियों के प्रमुख कारण और उनके समाधान के विकल्पों पर चर्चा कीजिये।