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भारत के परमाणु भविष्य में निजी क्षेत्र की भूमिका

  • 03 Oct 2024
  • 31 min read

यह संपादकीय 01/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Having private participation in India’s nuclear energy” पर आधारित है । यह लेख परमाणु ऊर्जा विस्तार में निजी क्षेत्र को सम्मिलित करने की भारत सरकार की योजना को समक्ष प्रस्तुत करता है, साथ ही वर्ष 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम द्वारा उत्पन्न विधिक चुनौतियों और परमाणु दायित्व विधियों के आसपास नियामक अनिश्चितताओं पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र, 1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड, 2010 का परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, रूस-यूक्रेन संघर्ष , नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता,  अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान , फुकुशिमा, दाबित भारी जल रिएक्टर, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह 

मेन्स के लिये:

भारत के परमाणु क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी के संभावित लाभ, भारत के परमाणु क्षेत्र में बढ़ती निजी भागीदारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

जुलाई 2024 में, भारत सरकार ने देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार करने की योजना की घोषणा की, जिसमें छोटे रिएक्टरों और नई परमाणु प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास के लिये निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी का प्रस्ताव रखा गया। इस पहल का उद्देश्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा उत्पादन प्राप्त करने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का समर्थन करना है। यद्यपि, वर्तमान विधिक ढाँचा, जो मुख्य रूप से वर्ष 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम द्वारा शासित है, परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

मौजूदा विधान परमाणु ऊर्जा के विकास और संचालन को केंद्र सरकार तक सीमित करता है, जबकि परमाणु ऊर्जा विभाग और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड इस पर व्यापक नियंत्रण रखते हैं। इन प्रतिबंधों को चुनौती देने के हाल के प्रयासों को सर्वोच्च न्यायालय ने परमाणु ऊर्जा के दोहन में सख्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता का संदर्भ देते हुए स्थगित कर दिया है। इसके अतिरिक्त, 2010 का परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम के लिये लंबित विधिक चुनौतियाँ और भी विनियामक अनिश्चितताएँ उत्पन्न करती हैं। यद्यपि भारत परमाणु क्षेत्र में पर्याप्त निजी निवेश आकर्षित करना चाहता है, इसलिये उसे इन विधिक और विनियामक बाधाओं को पार करते हुए सुदृढ़ निगरानी और सार्वजनिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करनी होगी।

भारत के लिये परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को प्राथमिकता देना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • अस्थिर वैश्विक बाज़ार में ऊर्जा स्वतंत्रता: भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में कोयले का योगदान 55% है और वर्ष 2024 की पहली तिमाही में  भारत का कोयला आयात 5.7% बढ़कर 75.26 मिलियन टन (MT) हो गया।
    • हाल के वर्षों में वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में काफी अस्थिरता देखी गई है, जो रूस-यूक्रेन संघर्ष और मध्य पूर्व तनाव जैसी घटनाओं से और बढ़ गई है। 
    • वर्ष 2024 में  एक बैरल तेल की कीमत 70 से 100 अमेरिकी डॉलर के बीच रहने की संभावना है, जिससे भारत के ऊर्जा आयात बिल पर काफी प्रभाव पड़ेगा।
    • परमाणु ऊर्जा अधिक ऊर्जा स्वतंत्रता का मार्ग प्रदान करती है। यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग वर्ष 2040 तक 1150-1600 Mtoe तक बढ़ सकती है, जो वर्ष 2019 के स्तर से 30-60% की वृद्धि है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी कार्बन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% तक कम करने और वर्ष 2070 तक सकल-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है। 
    • चीन और अमेरिका के बाद भारत विश्व में CO2 का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
    • परमाणु ऊर्जा एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत होने के नाते CO2 उत्सर्जन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। 
  • आधार भार आवश्यकताओं और ग्रिड स्थिरता का परिचयन: यद्यपि भारत तेज़ी से अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार कर रहा है ( वर्ष 2024 की पहली छमाही में 15 गीगावाट की नई सौर क्षमता को जोड़ा गया, जो अब तक का रिकॉर्ड है।) सौर और पवन ऊर्जा की आंतरायिक प्रकृति ग्रिड स्थिरता के लिये चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है। 
    • मई 2024 में 240 गीगावाट की रिकॉर्ड अधिकतम विद्युत् मांग ने विश्वसनीय आधार भार विद्युत् की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। 
    • परमाणु ऊर्जा, इसकी उच्च क्षमता कारक ( प्राकृतिक गैस और कोयला इकाइयों की तुलना में लगभग 2 गुना अधिक तथा पवन और सौर संयंत्रों की तुलना में लगभग 3 गुना या अधिक विश्वसनीय) के साथ।
      • यह नवीकरणीय ऊर्जा के पूरक के रूप में आवश्यक आधार-भार उपलब्ध करा सकता है। 
  • रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास: परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को प्राथमिकता प्रदान करना भारत में रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है:
    • परमाणु उद्योग अभियांत्रिकी, निर्माण, परिचालन, अनुसंधान एवं विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों में उच्च-कुशल, दीर्घकालिक नौकरियों का सृजन करता है।
      • एक सामान्य परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगभग 400 से 700 स्थायी नौकरियाँ उत्पन्न करता है।
    • एक सुदृढ़ परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के विकास से उन्नत विनिर्माण, सामग्री विज्ञान और परमाणु चिकित्सा जैसे संबंधित उद्योगों को भी संवर्द्धित कर सकता है।

भारत के परमाणु क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी के संभावित लाभ क्या हैं?

  • निवेश में वृद्धि और परियोजनाओं का तीव्र निष्पादन: निजी क्षेत्र की भागीदारी से भारत के परमाणु क्षेत्र में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 
    • जुलाई 2024 में सरकार की हालिया घोषणा का लक्ष्य लगभग 26 बिलियन अमरीकी डॉलर का निजी निवेश आकर्षित करना है। 
    • पूंजी का यह प्रवाह परियोजना के पूर्ण होने के समय को कम सकता है , जिससे भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को और अधिक तीव्रता से पूर्ण करने में सहायता मिलेगी। 
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में परमाणु संयंत्रों के निर्माण में लगने वाला औसत समय ऐतिहासिक रूप से 14 वर्ष से कुछ अधिक रहा है।
      • निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता से इस अवधि को संभवतः 5-7 वर्ष तक कम किया जा सकता है।
      • परियोजनाओं के तीव्र निष्पादन से भारत को वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य की ओर प्रगति करने में सहायता मिलेगी, जो वर्तमान 178 गीगावाट (सितंबर 2024 तक) है।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार और अनुसंधान एवं विकास में प्रगति: निजी क्षेत्र की भागीदारी परमाणु प्रौद्योगिकी में नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है, विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) और उन्नत ईंधन चक्र जैसे क्षेत्रों में। 
    • बजट 2024-25 में भारत लघु रिएक्टर (BSR) और भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR) विकसित करने के लिये सरकार के प्रस्ताव से निजी अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को लाभ मिल सकता है। 
    • अनुमान है कि वैश्विक SMR बाज़ार वर्ष 2030 तक 18.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो भारत के लिये निजी क्षेत्र के नवाचार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करेगा।
  • लागत में कमी और बेहतर दक्षता: निजी क्षेत्र की भागीदारी से परमाणु ऊर्जा उत्पादन में लागत में महत्त्वपूर्ण कमी आ सकती है। 
    • वर्तमान में, परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत में परमाणु ऊर्जा के लिये विद्युत् की स्तरीय लागत (LCOE) 3% छूट दर पर गणना करने पर लगभग 48.2 USD / MWh होने का अनुमान है
      • निजी क्षेत्र की दक्षता के साथ, इसमें संभावित रूप से 15-20% की कमी आ सकती है। 
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2031-32 तक 13,800 मेगावाट क्षमता वाले 18 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर जोड़ना है, जो निजी क्षेत्र लागत में कमी लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
  • उन्नत ऊर्जा सुरक्षा और कम कार्बन उत्सर्जन: निजी क्षेत्र की भागीदारी भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता वृद्धि में तेज़ी ला सकती है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होगी और कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। 
    • परमाणु ऊर्जा भारत के लिये विद्युत् का पाँचवां सबसे बड़ा स्रोत है जो देश में कुल विद्युत्  उत्पादन में लगभग 3% का योगदान देता है।
      • निजी निवेश और दक्षता के साथ, यह संभावित रूप से 5-10% तक बढ़ सकता है।
    • इस विस्तार से जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता काफी कम हो जाएगी तथा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
      • विगत् 50 वर्षों में, परमाणु ऊर्जा के उपयोग से CO2 उत्सर्जन में 60 गीगाटन से अधिक की कमी आई है, जो वैश्विक ऊर्जा-संबंधित उत्सर्जन के लगभग दो वर्षों के समान है। (अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी)

भारत के परमाणु क्षेत्र में बढ़ती निजी भागीदारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • विनियामक और विधिक चुनौतियाँ: वर्ष 1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम वर्तमान में परमाणु ऊर्जा विकास और संचालन को केंद्र सरकार तक सीमित करता है, जिससे निजी भागीदारी के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न होती है। 
    • सितंबर 2024 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने परमाणु ऊर्जा दोहन में सख्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता का सदर्भ देते हुए  इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिका को निरस्त कर दिया।
    • ये विधिक बाधाएँ संभावित निजी निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करती हैं। उदाहरण के लिये, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को संचालित करने के लिये अधिकृत एकमात्र इकाई बनी हुई है, जिससे निजी क्षेत्र की भूमिका केवल घटकों की आपूर्ति और अभियांत्रिकी सेवाएँ प्रदान करने तक सीमित हो गई है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और सार्वजनिक धारणा: परमाणु ऊर्जा उत्पादन से संबंधित अंतर्निहित जोखिम महत्त्वपूर्ण सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करते हैं, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी से और भी बढ़ सकती हैं। 
    • चेर्नोबिल (वर्ष 1986) और फुकुशिमा (वर्ष 2011) जैसी आपदाओं की स्मृति सार्वजनिक धारणा को प्रभावित करती रहती है। 
    • भारत में कुडनकुलम और जैतापुर जैसी परमाणु परियोजनाओं के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, सार्वजनिक स्वीकृति की चुनौती को प्रकट करते हैं। 
    • सख्त सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हुए, विशेष रूप से फुकुशिमा के बाद सख्त परमाणु सुरक्षा नियमों की दिशा में हाल की वैश्विक प्रवृत्ति को देखते हुए, निजी भागीदारी की अनुमति देना एक नाजुक संतुलन होगा।
  • वित्तीय व्यवहार्यता और जोखिम प्रबंधन: परमाणु ऊर्जा परियोजनाएँ पूंजी-प्रधान होती हैं और इनकी निर्माण अवधि लंबी होती है, जिससे निजी निवेशकों के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय जोखिम उत्पन्न होते हैं।
    • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक दाबित भारी जल रिएक्टर (PHWR) परमाणु ऊर्जा संयंत्र की पूंजीगत लागत वर्ष 2021-22 में लगभग ₹11.7 करोड़ प्रति मेगावाट थी और वर्ष 2026-27 तक इसके बढ़कर ₹14.2 करोड़ प्रति मेगावाट होने का अनुमान है, जिसमें निर्माण समय प्रायः एक दशक से अधिक हो सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, दुर्घटनाओं की संभावना और परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 के तहत संबंधित देयताएँ अतिरिक्त वित्तीय अनिश्चितताएँ उत्पन्न करती हैं, जो पर्याप्त सरकारी गारंटी के बिना निजी निवेश को रोक सकती हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बौद्धिक संपदा संबंधी चिंताएँ: भारत का परमाणु कार्यक्रम ऐतिहासिक रूप से स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास पर निर्भर रहा है
    • निजी भागीदारी, विशेषकर विदेशी कंपनियों की बढ़ती भागीदारी के कारण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बौद्धिक संपदा संरक्षण के मुद्दे महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। 
    • वर्ष 2008 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वार खोल दिये, परंतु प्रतिबंध अभी भी बने हुए हैं। 
      • उदाहरण के लिये, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के दिशानिर्देश अभी भी भारत को कुछ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सीमित करते हैं। 
      • राफेल लड़ाकू विमान सौदे में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर हाल ही में उठे विवाद ने सामरिक क्षेत्रों में ऐसे मुद्दों की संवेदनशीलता को प्रकट किया है।
  • परमाणु ईंधन चक्र प्रबंधन और अपशिष्ट निपटान: निजी भागीदारी संपूर्ण परमाणु ईंधन चक्र के प्रबंधन, विशेष रूप से ईंधन संवर्द्धन, पुनर्प्रसंस्करण और अपशिष्ट निपटान के संवेदनशील क्षेत्रों के विषय में प्रश्न खड़े करती है। 
    • भारत का त्रि-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य अपने विशाल थोरियम निक्षेप का उपयोग करना है, इस मुद्दे को और जटिल बना देता है। 
      • चुनौती यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए निजी भागीदारी की सीमा निर्धारित की जाए।
    • उच्च स्तरीय परमाणु अपशिष्ट के लिये भारत के पहले गहरे भूवैज्ञानिक निक्षेप के स्थान और प्रबंधन पर बहस इस क्षेत्र में दीर्घकालिक चुनौतियों को रेखांकित करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध और परमाणु अप्रसार संबंधी चिंताएँ: निजी भागीदारी में वृद्धि, विशेष रूप से संभावित विदेशी भागीदारी के साथ, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु राजनय में भारत के नाजुक संतुलन को जटिल बना सकती है। 
    • भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षरकर्ता न होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ विशेष व्यवस्था के तहत कार्य करता है।
    • वर्ष 2019 तक, भारत के 14 परमाणु रिएक्टर IAEA सुरक्षा उपायों के अंतर्गत हैं
    • निजी भागीदारी का विस्तार करने के लिये इन व्यवस्थाओं पर पुनः संवाद की आवश्यकता हो सकती है तथा इससे अप्रसार से संबंधित नई चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर हाल में उत्पन्न तनाव तथा सऊदी अरब जैसे देशों द्वारा अपने परमाणु ऊर्जा प्रयासों के तहत किये जा रहे अनुसंधान, परमाणु प्रौद्योगिकी प्रसार के जटिल भू-राजनीतिक आयामों को प्रकट करते हैं।

भारत अपने परमाणु क्षेत्र में निजी क्षेत्र की संतुलित और प्रभावी भागीदारी को कैसे प्रोत्साहित कर सकता है?

  • चरणबद्ध विधायी सुधार: भारत वर्ष 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन के लिये चरणबद्ध उपागम को कार्यान्वित कर सकता है, जिसमें धीरे-धीरे निजी भागीदारी की अनुमति दी जाएगी। 
    • पहले चरण में उपकरण विनिर्माण और संधारण सेवाओं जैसे गैर-महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी निवेश की अनुमति देने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
      • नीति आयोग की एक समिति ने सिफारिश की है कि सरकार अपने परमाणु ऊर्जा उद्योग में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध हटाने पर विचार कर सकती है।
    • इसके बाद परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में अल्पमत निजी हिस्सेदारी की अनुमति दी जा सकती है, जिसमें सरकार का बहुमत नियंत्रण बना रहेगा। 
    • अंतिम चरण में, सख्त नियामक निरीक्षण के अधीन, नई परियोजनाओं में बहुसंख्यक निजी स्वामित्व के विकल्प तलाशे जा सकते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, निजी भागीदारी को भी विस्तारित कर परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन को सम्मिलित किया जा सकता है, जो 'प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत' द्वारा निर्देशित होगा, जैसा कि वर्ष 1996 में भारतीय पर्यावरण-विधिक कार्रवाई परिषद बनाम भारत संघ के मामले में देखा गया था।
    • यह उपागम वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये सरकार द्वारा हाल ही में की गई घोषणा के अनुरूप है तथा इसमें परमाणु ऊर्जा के संतुलित दोहन के विषय में सर्वोच्च न्यायालय की चिंताओं का भी समाधान किया गया है। 
  • स्वतंत्र परमाणु विनियामक प्राधिकरण की स्थापना: भारत को परमाणु ऊर्जा विभाग से पृथक एक स्वतंत्र परमाणु विनियामक प्राधिकरण की स्थापना में तीव्रता लानी चाहिये। 
    • यह प्रस्ताव वर्ष 2011 के समाप्त हो चुके परमाणु सुरक्षा नियामक प्राधिकरण विधेयक में दिया गया था, जिसे पुनर्जीवित और अद्यतन किया जा सकता है। 
    • नया प्राधिकरण परमाणु क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं के लिये सुरक्षा मानकों, लाइसेंसिंग और संचालन की देखरेख करेगा। 
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल: अन्य आधारिक संरचना क्षेत्रों के सफल उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए परमाणु क्षेत्र के लिये विशिष्ट PPP मॉडल विकसित किया जा सकता है। 
    • इन मॉडलों में नए परमाणु संयंत्रों के लिये निर्माण-संचालन-हस्तांतरण (BOT) व्यवस्था शामिल हो सकती है, जिसमें निजी संस्थाएँ सरकार को हस्तांतरित करने से पहले एक निश्चित अवधि के लिये सुविधाओं का निर्माण और संचालन करेंगी। 
    • दूसरा विकल्प विद्यमान संयंत्रों के लिये परिचालन एवं संधारण (O&M) अनुबंध हो सकता है।
    • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में PPP मॉडल की हाल की सफलता, जैसे कि LVM3 परियोजना, एक ऐसा आदर्श प्रदान करती है जिसे परमाणु क्षेत्र के लिये अनुकूलित किया जा सकता है। 
  • जोखिम न्यूनीकरण और बीमा तंत्र: परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 के अंतर्गत देयता संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये एक व्यापक परमाणु बीमा पूल की स्थापना की जा सकती है। 
    • इससे विद्यमान भारतीय परमाणु बीमा पूल (INIP) को बढ़ावा मिलेगा, जिसकी वर्तमान क्षमता 1,500 करोड़ रुपये है। 
    • सरकार इस क्षमता को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय पुनर्बीमा कंपनियों के साथ कार्य कर सकती है, जिससे यह निजी निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बन जाएगा। 
    • इस उपागम का सफलतापूर्वक प्रयोग ब्रिटेन की हिंकले प्वाइंट C परियोजना में किया गया है, जहाँ सरकार ने 2 बिलियन यूरो की गारंटी प्रदान की थी। 
      • ऐसे उपायों से परमाणु परियोजनाएँ निजी निवेशकों के लिये अधिक लाभदायक हो जाएंगी। 
  • प्रौद्योगिकी सहयोग और स्वदेशीकरण कार्यक्रम: रक्षा क्षेत्र में सफल समंजन नीति के समान,  प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्वदेशीकरण के लिये संरचित कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं, निजी कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सफल IT पार्क मॉडल के समान परमाणु प्रौद्योगिकी पार्कों की स्थापना की जा सकती है।
    • भारत में परमाणु संयंत्र घटकों के विनिर्माण के लिये एलएंडटी और वेस्टिंगहाउस के बीच वर्ष 2009 में हुआ सहयोग इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।  
  • दक्षता विकास और मानव संसाधन पहल: उद्योग और शिक्षा जगत के साथ साझेदारी में एक व्यापक परमाणु दक्षता विकास कार्यक्रम की शुरुआत की जा सकती है। 
    • इसमें IIT और NIT में विशिष्ट परमाणु अभियांत्रिकी कार्यक्रम स्थापित करना शामिल हो सकता है। 
    • कर प्रोत्साहन और अनुदान के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • परमाणु प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास को संवर्द्धित करने के लिये सफल अटल नवाचार मिशन के समान एक परमाणु नवाचार केंद्र की स्थापना की जा सकती है।
    • इन उपायों से परमाणु क्षेत्र में दक्ष पेशेवरों की अनुमानित कमी दूर हो सकेगी।
  • पारदर्शी सुरक्षा और प्रदर्शन मानक: परमाणु सुविधाओं के लिये सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों की एक पारदर्शी प्रणाली को विकसित और कार्यान्वित किया जा सकता है, जो सार्वजनिक तथा निजी दोनों संचालकों पर लागू होता हो।
    • इसमें अमेरिकी परमाणु नियामक आयोग की रिएक्टर ओवरसाइट प्रक्रिया के समान, सुरक्षा प्रदर्शन का नियमित सार्वजनिक प्रकटीकरण सम्मिलित हो सकता है। 
    • सुरक्षा और परिचालन दक्षता के आधार पर परमाणु संयंत्रों के लिये रेटिंग प्रणाली को कार्यान्वित किया जा सकता है तथा उच्च प्रदर्शन करने वालों को अधिमान्य नियामक उपचार या वित्तीय लाभ के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • पारदर्शिता में सुधार लाने और विश्वास का निर्माण करने के लिये एक सार्वजनिक सहभागिता कार्यक्रम को कार्यान्वित किया जा सकता है, इसके लिये फिनलैंड जैसे देशों का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है जहाँ परमाणु ऊर्जा को जनता द्वारा उच्च स्वीकृति प्राप्त है। 
    • इन उपायों से सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान होगा तथा क्षेत्र में निरंतर सुधार की संस्कृति को का संवर्द्धन होगा।

निष्कर्ष: 

यद्यपि निजी क्षेत्र की भागीदारी भारत के परमाणु ऊर्जा विस्तार को गति दे सकती है और तकनीकी नवाचार को संवर्द्धित कर सकती है, इसके लिये सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने की आवश्यकता है। विधिक और विनियामक चुनौतियों का समाधान करना, सुरक्षा सुनिश्चित करना और सार्वजनिक विश्वास का वर्द्धन करना राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए निजी निवेश की पूरी क्षमता को प्रकट करने के लिये आवश्यक है। इस परिवर्तन में विधायी सुधार और सुदृढ़ निगरानी तंत्र महत्त्वपूर्ण होंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

Q. भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की भागीदारी की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत प्रौद्योगिकी और वित्तीय निवेश को प्रोत्साहित करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिऐक्टर"आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते?

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)

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