भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता
प्रिलिम्स के लिये:न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NTPC), इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL), KAMINI, अप्रसार संधि (NPT)। मेन्स के लिये:भारत की नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित हालिया विकास, भारत की नाभिकीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
भारत की नाभिकीय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 तक यह बढ़कर 47,112 मिलियन यूनिट हो गई थी।
- वर्ष 2017 में सरकार ने एक साथ 11 घरेलू 7,000 मेगावाट क्षमता वाले दबावयुक्त भारी जल रिएक्टरों के निर्माण को मंज़ूरी दी थी।
भारत की नाभिकीय ऊर्जा स्थिति:
- परिचय:
- नाभिकीय ऊर्जा भारत के लिये विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है जो देश में कुल विद्युत उत्पादन में लगभग 3% योगदान देती है।
- भारत के देश भर में 7 विद्युत संयंत्रों में 22 से अधिक नाभिकीय रिएक्टर हैं जो 6780 मेगावाट नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा जनवरी 2021 में एक रिएक्टर, काकरापार नाभिकीय ऊर्जा परियोजना (KAPP-3) को भी ग्रिड से जोड़ दिया गया है।
- दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWRs) की संख्या 18 है और 4 हल्के जल रिएक्टर (LWRs) हैं।
- KAPP-3 भारत की पहली 700 MWe यूनिट है और PHWR का सबसे बड़ा स्वदेशी रूप से विकसित संस्करण है।
- हालिया विकास:
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के साथ संयुक्त उद्यम:
- सरकार ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक उपक्रमों के साथ संयुक्त उद्यमों को भी अनुमति दी है।
- नतीजतन, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) अब नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ दो संयुक्त उद्यमों पर काम कर रहा है।
- परमाणु प्रतिष्ठानों का विस्तार:
- बीते समय में भारत के परमाणु प्रतिष्ठान ज़्यादातर दक्षिण भारत में अथवा पश्चिम में महाराष्ट्र और गुजरात में स्थित थे।
- हालाँकि सरकार अब देश के अन्य हिस्सों में इसके विस्तार को प्रोत्साहित कर रही है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के गोरखपुर शहर में आगामी परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जो निकट भविष्य में चालू हो जाएगा।
- बीते समय में भारत के परमाणु प्रतिष्ठान ज़्यादातर दक्षिण भारत में अथवा पश्चिम में महाराष्ट्र और गुजरात में स्थित थे।
- भारत की स्वदेशी पहल:
- यूरेनियम-233 का उपयोग कर दुनिया का पहला थोरियम आधारित नाभिकीय संयंत्र, "भवनी", तमिलनाडु के कलपक्कम में स्थापित किया जा रहा है।
- यह सयंत्र पूरी तरह स्वदेशी होगा और अपनी तरह का पहला सयंत्र होगा। कलपक्कम में प्रायोगिक थोरियम संयंत्र "कामिनी" पहले से मौजूद है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के साथ संयुक्त उद्यम:
- चुनौतियाँ:
- सीमित घरेलू संसाधन: भारत के पास यूरेनियम के सीमित घरेलू संसाधन हैं, जो परमाणु रिएक्टरों के लिये ईंधन है।
- इसने देश को अपनी यूरेनियम आवश्यकताओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आयात करने के लिये मजबूर किया है, जिससे देश का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम वैश्विक बाज़ार स्थितियों और राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो गया है।
- जनता का विरोध: रिएक्टरों की सुरक्षा और पर्यावरण पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण को अक्सर स्थानीय समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ता है।
- तकनीकी चुनौतियाँ: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के विकास में जटिल तकनीकी चुनौतियाँ शामिल हैं, जिनमें रिएक्टरों का डिज़ाइन और निर्माण, परमाणु कचरे का प्रबंधन तथा परमाणु सुरक्षा मानकों का रखरखाव शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध: भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का सदस्य नहीं है और अतीत में अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर चुका है।
- इसने अन्य देशों से उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन आपूर्ति तक इसकी पहुँच को सीमित कर दिया है।
- नियामक बाधाएँ: भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास के लिये नियामक ढाँचा जटिल है और धीमी गति तथा नौकरशाही होने के कारण इसकी आलोचना की गई है, जिससे परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी हुई है।
- सीमित घरेलू संसाधन: भारत के पास यूरेनियम के सीमित घरेलू संसाधन हैं, जो परमाणु रिएक्टरों के लिये ईंधन है।
भारत अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता कैसे बढ़ा सकता है?
- जनता के विरोध पर काबू पाना: सार्वजनिक चिंताओं को संबोधित करना और परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना नए रिएक्टरों के निर्माण के विरोध पर काबू पाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- यह पारदर्शी संचार और स्थानीय समुदायों के साथ परामर्श के साथ-साथ कठोर सुरक्षा मानकों के कार्यान्वयन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- तकनीकी नवाचार: नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली तकनीकी चुनौतियों से निपटने हेतु भारत को रिएक्टर डिज़ाइन, अपशिष्ट प्रबंधन और सुरक्षा प्रणालियों में नवाचार पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- इसमें अनुसंधान और विकास एवं उन्नत प्रौद्योगिकियों की स्थापना में निवेश शामिल हो सकता है।
- वित्तीय स्थिरता: नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों से निपटने हेतु भारत को ऊर्जा के अन्य रूपों के साथ नाभिकीय ऊर्जा को अधिक लागत-प्रतिस्पर्द्धी बनाने के तरीके खोजने की आवश्यकता है।
- इसमें निर्माण और संचालन लागत को कम करने के साथ-साथ नवीन वित्तपोषण मॉडल विकसित करना शामिल हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सुधार: उन्नत नाभिकीय प्रौद्योगिकी और ईंधन आपूर्ति तक पहुँच पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के माध्यम से उत्पन्न बाधाओं को दूर करने के लिये भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- इसमें अन्य देशों के साथ संयुक्त उद्यमों का विकास, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पहलों में भागीदारी और नाभिकीय व्यापार समझौतों को शामिल किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य होता है: (2011) (a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा करना। उत्तर: (a) प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |