न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

नई जनसंख्या रणनीति पर पुनर्विचार

  • 25 Nov 2024
  • 12 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

दो बच्चों की नीति, स्थानीय निकाय निर्वाचन, वृद्ध जनसंख्या, प्रजनन दर, कुल प्रजनन दर (TFR), प्रतिस्थापन स्तर, श्रम की कमी कौशल प्रशिक्षण, रोज़गार सृजन, इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023, भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024, अनियोजित शहरीकरण, अधिकार-आधारित कार्यक्रम, गरीबी उन्मूलन

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत के लिये जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने के लिये जनसांख्यिकीय नीतियों का महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश ने अपनी लंबे समय से चली आ रही दो-बच्चों की नीति को उलट दिया, जो लगभग तीन दशकों से लागू थी और जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को स्थानीय निकाय निर्वाचन लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया था।

  • सरकार ने तर्क दिया कि राज्य तेज़ी से वृद्ध होती आबादी और घटती प्रजनन दर की चुनौतियों का सामना कर रहाहै, जिसके दीर्घकालिक आर्थिक तथा सामाजिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। 

भारत में नई जनसंख्या रणनीति की क्या आवश्यकता है?

  • कुल प्रजनन दर में गिरावट: भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) में हाल के दशकों में लगातार गिरावट देखी गई है। NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, भारत की TFR प्रति महिला 2.0 बच्चे है, जो 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है, जिसके नीचे आने पर लंबे समय में जनसंख्या कम होने लगती है। 
    • आंध्र प्रदेश (1.5 का कुल प्रजनन दर) जैसे कुछ राज्य पहले से ही इस सीमा से काफी नीचे हैं, जिससे कार्यबल में कमी आने की चिंता बढ़ गई है। 
    • इस जनसांख्यिकीय बदलाव के परिणामस्वरूप श्रम की कमी हो सकती है और कार्यशील आयु वर्ग की आबादी पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे आर्थिक विकास की संभावना कम हो सकती है।
  • आर्थिक विकास के लिये जनसांख्यिकीय लाभांश: लगभग 68% जनसंख्या कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में तथा 26% जनसंख्या 10-24 आयु वर्ग में होने के कारण , भारत विश्व में सबसे युवा देशों में से एक बनने की ओर अग्रसर है। 
    • इस क्षमता का दोहन करने और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक नई जनसंख्या नीति महत्त्वपूर्ण है साथ ही शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और रोज़गार सृजन में पर्याप्त निवेश भी आवश्यक है
  • वृद्ध होती जनसंख्या: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, भारत की 20% से अधिक जनसंख्या 60 वर्ष या उससे अधिक आयु की होगी।
    • भारत में वृद्ध होती जनसंख्या के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जैसे दीर्घकालिक और वृद्धावस्था देखभाल के लिये उच्च स्वास्थ्य देखभाल मांग में वृद्धि, जिसके कारण परिवार नियोजन नीतियों की आवश्यकता है, जो स्वस्थ वृद्धावस्था तथा बुजुर्गों की देखभाल पर ध्यान केंद्रित करती हों।
  • संसाधनों की कमी और पर्यावरणीय दबाव: भारत की बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, दिल्ली और बंगलूरू जैसे शहरों में गंभीर जल संकट उत्पन्न हो गया है, क्योंकि प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कम हो रही है।
    • इसके अलावा उच्च जनसंख्या वृद्धि से प्रेरित अनियोजित शहरीकरण के कारण बुनियादी ढाँचे पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, प्रदूषण होता है और मलिन बस्तियाँ बढ़ती हैं, जिससे विषम विकास से बचने के लिये नई जनसंख्या नीति की आवश्यकता पर बल मिलता है।
  • बढ़ती असमानता और निम्न जीवन स्तर: तीव्र जनसंख्या वृद्धि सार्वजनिक संसाधनों पर दबाव डालती है, जिससे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है। 
    • गरीब क्षेत्रों में उच्च प्रजनन दर आर्थिक असमानता के लिये अधिक व्यापक जनसंख्या नीति को बढ़ावा देती है

भारत की जनसंख्या नीतियाँ

  • स्वतंत्रता के बाद की पहल (1952): भारत ने वैश्विक परिवार नियोजन कार्यक्रमों में अग्रणी भूमिका निभाई, जिसमें गर्भ निरोधकों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से  जन्म दर को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 1976: जनसंख्या नियंत्रण और आर्थिक विकास के बीच संबंध को मान्यता देते हुए, इस नीति में नसबंदी को प्रोत्साहित करने, कानूनी विवाह की आयु (लड़कियों के लिये 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष) बढ़ाने और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का विस्तार करने जैसे उपायों पर ज़ोर दिया गया।
    • आपातकालीन काल (1975-1977): यह चरण जबरन नसबंदी के लिये बदनाम हो गया, जिससे सरकार द्वारा संचालित जनसंख्या नियंत्रण उपायों में जनता का विश्वास खत्म हो गया। 
      • इसमें अधिक समावेशी एवं स्वैच्छिक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000: इस नीति में गर्भनिरोधक आवश्यकताओं को पूरा करने और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिये तात्कालिक लक्ष्य, प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता (TFR 2.1) प्राप्त करने का एक मध्यम अवधि लक्ष्य और जनसंख्या स्थिरीकरण का एक दीर्घकालिक उद्देश्य निर्धारित किया गया।
  • वर्तमान फोकस क्षेत्र: आधुनिक रणनीतियाँ गर्भनिरोधकों तक पहुँच में सुधार, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने तथा देरी से विवाह करने की वकालत पर ज़ोर देती हैं।
  • जनसंख्या स्थिरीकरण को अब आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के व्यापक लक्ष्यों के साथ एकीकृत कर दिया गया है।
  • राज्य स्तरीय नीतियाँ: उत्तर प्रदेश और असम जैसे कुछ राज्यों ने दो बच्चों के मानदंड को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ शुरू की हैं, तथा इसे सरकारी नौकरियों, कल्याणकारी लाभों और चुनावी भागीदारी जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहन या प्रतिबंधों से जोड़ा है।

आगे की राह

  • स्वैच्छिक परिवार नियोजन पर ध्यान केंद्रित करना: भारत में अधिकार-आधारित परिवार नियोजन नीतियाँ होनी चाहिये जो व्यक्तियों को सशक्त बनाएँ।
    • परिवार नियोजन रणनीतियों को लिंग-चयनात्मक गर्भपात के खिलाफ कानून लागू करके, महिला साक्षरता को बढ़ावा देकर और शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ समान कार्यबल के अवसर सुनिश्चित करके महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिये।
  • क्षेत्र-विशिष्ट दृष्टिकोण पर ज़ोर: भारत की जनसांख्यिकीय विविधता को देखते हुए, क्षेत्र-विशिष्ट दृष्टिकोण आवश्यक है। 
    • उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों को क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों की आवश्यकता हो सकती है, जबकि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे कम प्रजनन दर वाले राज्यों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियों की आवश्यकता होगी।
  • समग्र विकास एजेंडा के रूप में परिवार नियोजन: परिवार नियोजन को व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास ढाँचे में एकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • परिवार नियोजन को शिक्षा, रोज़गार सृजन और गरीबी उन्मूलन के साथ जोड़ने से एक अधिक धारणीय विकास मॉडल तैयार होगा जो भारत के दीर्घकालिक विकास और सामाजिक न्याय लक्ष्यों के साथ संरेखित होगा।
  • सामाजिक और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मज़बूत करना: भारत को विशेष रूप से वृद्ध होती आबादी द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में निवेश करना चाहिये। 
    • वृद्धावस्था देखभाल सुविधाओं का विस्तार, रजत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना, तथा वृद्ध श्रमिकों के लिये लचीली कार्य व्यवस्था की पेशकश, सिकुड़ते कार्यबल के दबाव को कम कर सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत को अपनी वृद्ध होती जनसंख्या के कारण किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तथा परिवार नियोजन नीतियाँ इन मुद्दों का समाधान कैसे कर सकती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जनांकिकीय लाभांश के पूर्ण लाभ को प्राप्त करने के लिये भारत को क्या करना चाहिये?

(a) कुशलता विकास का प्रोत्साहन
(b) और अधिक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का प्रारंभ
(c) शिशु मृत्यु दर में कमी
(d) उच्च शिक्षा का निजीकरण

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं?  (2016)

प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएँगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2