सामाजिक न्याय
इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023
- 29 Sep 2023
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:गरीबी, इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) मेन्स के लिये:इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 और इसकी सिफारिशें |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), भारत ने अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) के सहयोग से भारत में तेज़ी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी पर प्रकाश डालते हुए इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 जारी की।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य:
- जनसांख्यिकीय रुझान:
- 41% की दशकीय वृद्धि दर के साथ भारत की बुजुर्ग आबादी तेज़ी से बढ़ रही है।
- वर्ष 2050 तक भारत की 20% से अधिक आबादी बुजुर्ग होगी।
- वर्ष 2046 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी बच्चों (0 से 15 वर्ष) की आबादी से अधिक हो जाएगी।
- वर्ष 2022 और वर्ष 2050 के बीच 80+ वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों की जनसंख्या लगभग 279% बढ़ने की उम्मीद है।
- महिलाओं की उच्च जीवन प्रत्याशा:
- राज्यों और क्षेत्रों में भिन्नता के साथ, महिलाओं की आयु पुरुषों की तुलना में 60 और 80 वर्ष से अधिक है।
- उदाहरण के लिये हिमाचल प्रदेश और केरल में 60 वर्ष की महिलाओं की जीवन प्रत्याशा क्रमशः 23 और 22 वर्ष है, जो इन राज्यों में 60 वर्ष के पुरुषों की तुलना में चार वर्ष अधिक है, जबकि राष्ट्रीय औसत अंतर केवल 1.5 वर्ष का है। .
- राज्यों और क्षेत्रों में भिन्नता के साथ, महिलाओं की आयु पुरुषों की तुलना में 60 और 80 वर्ष से अधिक है।
- गरीबी और खुशहाली:
- भारत में 40% से अधिक बुजुर्ग सबसे कम संपत्ति वर्ग में शामिल हैं।
- बुजुर्गों में गरीबी एक चिंता का विषय है, जो उनके जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य देखभाल के उपयोग को प्रभावित कर रही है।
- बुजुर्ग व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा बिना किसी आय के जीवन यापन कर रहा है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य देखभाल प्रभावित हो रहा है।
- भारत में 40% से अधिक बुजुर्ग सबसे कम संपत्ति वर्ग में शामिल हैं।
- क्षेत्रीय विविधताएँ:
- बुजुर्ग आबादी और उनकी वृद्धि दर में महत्त्वपूर्ण अंतर-राज्यीय भिन्नताएँ हैं।
- दक्षिणी क्षेत्र के अधिकांश राज्यों और हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब जैसे चुनिंदा उत्तरी राज्यों में वर्ष 2021 में राष्ट्रीय औसत की तुलना में बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी अधिक है, यह अंतर 2036 तक बढ़ने की उम्मीद है।
- बुजुर्ग जनसंख्या का पूर्व अनुपात:
- वर्ष 1991 के बाद से बुजुर्गों के बीच लिंगानुपात लगातार बढ़ रहा है, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह अनुपात स्थिर है।
- वर्ष 2011 और वर्ष 2021 के बीच पूरे भारत में और सभी क्षेत्रों में, केंद्रशासित प्रदेशों एवं पश्चिमी भारत में इस अनुपात में वृद्धि हुई।
- पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में यद्यपि बुजुर्गों के लिंग अनुपात में वृद्धि हुई, यह दोनों वर्षों में 1,000 के पैमाने से नीचे रहा, जो यह दर्शाता है कि 60 से अधिक वर्षों में भी इन क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है।
- हालाँकि मध्य भारत, जहाँ लिंगानुपात वर्ष 2011 के 973 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,053 हो गया है, जिसका अर्थ है कि महिलाओं ने इस दशक में 60 वर्षों के बाद जीवित रहने में पुरुषों की बराबरी कर ली और उनसे बेहतर प्रदर्शन किया।
- वर्ष 1991 के बाद से बुजुर्गों के बीच लिंगानुपात लगातार बढ़ रहा है, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह अनुपात स्थिर है।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में कम जागरूकता:
- भारत में बुजुर्गों में उनके लिये बनाई गई विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में कम जागरूकता है।
- आधे से अधिक बुजुर्ग (55%) वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के बारे में; 44% बुजुर्ग विधवा पेंशन योजना (IGNWPS) के बारे में और 12% बुजुर्ग अन्नपूर्णा योजना के बारे में जानते हैं।
- चिंता और चुनौतियाँ:
- गरीबी स्वाभाविक रूप से बुढ़ापे में लिंग आधारित होती है जब वृद्ध महिलाओं के विधवा होने, अकेले रहने, कोई आय नहीं होने और अपनी संपत्ति कम होने तथा समर्थन के लिये पूरी तरह से परिवार पर निर्भर होने की संभावना अधिक होती है।
- भारत की बढ़ती आबादी के सामने प्रमुख चुनौतियाँ में वृद्ध महिलाओं की बढ़ती संख्या और ग्रामीणीकरण शामिल है।
रिपोर्ट की सिफारिशें:
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और भारत में जनगणना जैसे डेटा संग्रह अभ्यासों में प्रासंगिक प्रश्नों को शामिल करते हुए बुजुर्गों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विश्वसनीय डेटा की कमी को दूर करने की आवश्यकता है। इससे सूचित नीति निर्धारण में काफी मदद मिलेगी।
- वृद्ध व्यक्तियों के लिये मौजूदा योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सभी वृद्धाश्रमों को विनियामक दायरे के अंतर्गत लाया जाना चाहिये। वरिष्ठ स्व-सहायता समूहों के गठन एवं संचालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- बहु-पीढ़ी वाले घरों में रहने वाले बुजुर्ग लोगों के महत्त्व पर बल देते हुए ऐसी नीतियाँ बनाई जानी चाहिये जो इस प्रकार की जीवन व्यवस्था (बहु-पीढ़ी वाले परिवार) को प्रोत्साहित करे और उनके लिये पर्याप्त सुविधाएँ भी उपलब्ध करा सके।
- क्रेच या डे-केयर सुविधाओं जैसे अल्पकालिक देखभाल केंद्रों के निर्माण के सात साथ इस बात को भी प्रोत्साहित करना चाहिए कि वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन का यह समय अपने घर-परिवार के साथ के साथ व्यतीत कर सकें। रिपोर्ट दर्शाती है कि बुजुर्ग व्यक्तियों की अपने-अपने परिवारों के साथ रहने पर बेहतर देखभाल की जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA):
- परिचय:
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है तथा यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (UN Economic and Social Council- ECOSOC) इसके अधिदेश निर्धारित करती है।
- स्थापना:
- इसकी स्थापना वर्ष 1967 में एक ट्रस्ट फंड के रूप में की गई थी और वर्ष 1969 से इसका संचालन शुरू हुआ।
- वर्ष 1987 में इसे आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का नाम दिया गया लेकिन जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष के मूल संक्षिप्त नाम, 'UNFPA' को बरकरार रखा गया था।
- उद्देश्य:
- UNFPA प्रत्यक्ष रूप से सतत् विकास लक्ष्यों के अंतर्गत स्वास्थ्य (SDG3), शिक्षा (SDG4) और लैंगिक समानता (SDG5) संबंधी मुद्दों का निपटान करता है।
- वित्तीयन:
- UNFPA संयुक्त राष्ट्र बजट द्वारा समर्थित नहीं है, यह पूरी तरह से दानकर्ता देशों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, फाउंडेशन तथा व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।