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जनसंख्या विस्फोट और प्रजनन दर

  • 19 Aug 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

73वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘जनसंख्या विस्फोट’ पर प्रकाश डाला और इस चिंता से निपटने के लिये ‘सामाजिक जागरूकता’ की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालाँकि रुझानों से संकेत मिलता है कि देश में प्रजनन दर की रोकथाम के संदर्भ में लगातार सुधार आया है।

कुल प्रजनन दर

(Total Fertility Rate)

  • प्रजनन दर का अर्थ है बच्चे पैदा कर सकने की आयु (जो आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की मानी जाती है) वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्में बच्चों की संख्या। लेकिन अन्य दरों (जन्म तथा मृत्यु दर) की तरह यह दर भी अशोधित दर ही होती है यानी कि यह संपूर्ण जनसंख्या के लिये मोटे तौर पर एक स्थूल औसत दर होती है और इसमें विभिन्न आयु वर्गों में पाए जाने वाले अंतर का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
  • विभिन्न आयु वर्गों के बीच पाया जाने वाला अंतर कभी-कभी संकेतकों के अर्थ को प्रभावित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इसीलिये जनसांख्यिकीविद् भी आयु विशेष की दर का हिसाब लगाते हैं।
  • इस बात को कहने का एक दूसरा तरीका यह है कि सकल प्रजनन दर ‘स्त्रियों के एक विशेष वर्ग द्वारा उनकी प्रजनन आयु की अवधि में पैदा किये गए बच्चों की औसत संख्या के बराबर होती है (प्रजनन आयु की अवधि का अनुमान एक निश्चित अवधि में पाई गई आयु विशेष की दरों के आधार पर लगाया जाता है)।

नमूना पंजीकरण प्रणाली

(The Sample Registration System-SRS)

  • SRS एक दोहरी रिकॉर्ड प्रणाली पर आधारित है और इसकी शुरुआत गृह मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा वर्ष 1964-65 में जन्म और मृत्यु के आँकड़ों को पंजीकृत करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • तब से SRS नियमित रूप से आँकड़े उपलब्ध करा रहा है।
  • SRS के तहत एक अंशकालिक गणक (गणना करने के लिये नियुक्त व्यक्ति) द्वारा गाँवों/शहरों के जन्म और मृत्यु दर की निरंतर गणना की जाती है और एक पूर्णकालिक गणक द्वारा अर्द्धवार्षिक पूर्वव्यापी सर्वेक्षण किया जाता है।
  • इन दोनों स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों का मिलान किया जाता है। बेमेल और आंशिक रूप से सुमेलित आँकड़ों को फिर से सत्यापित किया जाता है ताकि सही एवं स्पष्ट गणना की जा सके और वैध आँकड़े प्राप्त हो सकें।
  • हर दस साल कि अवधि में नवीनतम जनगणना के परिणामों के आधार पर SRS नमूना में संशोधन किया जाता है।

उच्च TFR वाले राज्य

सात राज्यों ने राष्ट्रीय औसत 2.2 से अधिक दर्ज किया है- उत्तर प्रदेश (3.0), बिहार (3.2), मध्य प्रदेश (2.7), राजस्थान (2.6), असम (2.3), छत्तीसगढ़ (2.4) और झारखंड (2.5) जो कि 2011 की जनगणना में कुल जनसंख्या का लगभग 45% है।

  • गुजरात और हरियाणा में 2.2 का TFR दर्ज किया गया है, जो प्रतिस्थापन दर (Replacement Rate) से अधिक है, लेकिन राष्ट्रीय औसत (National Average) के बराबर है।

निम्न TFR वाले राज्य

  • केरल (1.7), तमिलनाडु (1.6), कर्नाटक (1.7), महाराष्ट्र (1.7), आंध्र प्रदेश (1.6) और तेलंगाना (1.7) की प्रदर्शन प्रजनन दर और TFR के लिये जनसंख्या प्रतिस्थापन की आवश्यक दर से कम रही है।
  • पश्चिम बंगाल (1.6), जम्मू-कश्मीर (1.6) और ओडिशा (1.9) में भी वर्ष 2017 में कम TFR होने का अनुमान लगाया गया था।

TFR में रुझान का कारण

  • वर्ष 2017 की नवीनतम रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि वर्ष 1971 और वर्ष 1981 के बीच TFR 5.2 से घटकर 4.5 तथा वर्ष 1991 से वर्ष 2017 के बीच 3.6 से घटकर 2.2 हो गया है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन के साथ-साथ महिलाओं की साक्षरता के स्तर के प्रति रुझान में भी भिन्नता होती है।
  • SRS से पता चलता है कि जहाँ एक ओर ‘निरक्षर’ महिला औसतन 2.9 बच्चों को जन्म देती है वहीं एक ‘साक्षर’ महिला कम (2.1) बच्चों को जन्म देती है।
  • एक स्नातक या उससे अधिक शिक्षित महिला के लिये TFR 1.4 बच्चे हैं। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम TFR पाया गया है।
  • प्रजनन दर में यह गिरावट जनगणना में दर्ज कुल जनसंख्या वृद्धि में भी परिलक्षित होती है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना और वर्ष 2011 की जनगणना के बीच के अंतराल की अवधि (Intervening Period) में निर्णायक जनसंख्या वृद्धि में वर्ष 1971 की जनगणना के बाद गिरावट देखी गई है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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