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भारतीय राजनीति

नगरीय निकाय चुनावों में सुधार

  • 18 Apr 2024
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य निर्वाचन आयोग, संवैधानिक निकाय, नगरीय निकाय चुनाव

मेन्स के लिये:

नगरीय निकाय चुनावों से संबंधित चुनौतियाँ और प्रतीक्षित सुधार।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

चंडीगढ़ मेयर चुनाव पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला स्थानीय नगरीय निकायों की चुनावी प्रक्रियाओं से जुड़े मुद्दों को पुनः उजागर करता है।

  • भारत में लोक सभा और राज्य विधानसभा चुनावों के विपरीत, नगरीय निकायों के चुनावों को अभी भी समय पर चुनाव तथा सत्ता परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

स्थानीय निकायों के चुनावों के लिये कानूनी प्रावधान:

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये मतदाता सूची की तैयारी तथा सभी चुनावों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission - SEC) में निहित होगा।
    • 74वाँ संवैधानिक संशोधन नगर पालिकाओं के चुनावी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है।
    • 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 243U शहरी स्थानीय सरकारों के लिये पाँच साल का कार्यकाल अनिवार्य करता है।
  • कानूनी प्रावधान:
    • सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले, 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संवैधानिक जनादेश की अनुल्लंघनीयता पर बल दिया।

ECI

भारत में स्थानीय निकाय चुनावों की स्थिति क्या है?

  • जनाग्रह (गैर-लाभकारी संस्थान) द्वारा भारत की शहरी प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023:
    • सितंबर 2021 तक भारत में 1,400 से अधिक नगर पालिकाओं में निर्वाचित परिषदें नहीं थीं।
    • यह पूरे देश में एक महत्त्वपूर्ण और व्यापक मुद्दे का संकेत देता है।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा की गई ऑडिट से पता चला कि वर्ष 2015 व 2021 के बीच 1,500 से अधिक नगर पालिकाओं में निर्वाचित परिषदें मौजूद नहीं थीं।
    • चेन्नई, दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में चुनाव कराने में महीनों से लेकर वर्षों तक देरी का सामना करना पड़ा।

स्थानीय निकाय चुनावों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चुनाव निर्धारण में विवेकाधीन शक्तियाँ:
    • अस्पष्ट संवैधानिक सुरक्षा उपायों के कारण, जब चुनाव शेड्यूल करने की बात आती है तो SEC जैसे सरकारी अधिकारियों के पास वर्तमान में विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं।
    • यह लचीलापन कभी-कभी असंगत या विलंबित चुनाव की समय-सीमा का कारण बन सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
  • राज्य सरकारों द्वारा अनुचित दबाव:
    • राजनीतिक या रणनीतिक कारणों से चुनाव में विलंब हेतु राज्य सरकारों द्वारा संभावित अनुचित दबाव के बारे में चिंता।
    • इस तरह का हस्तक्षेप चुनावी प्रक्रिया की अखंडता से समझौता कर सकता है और लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास कम कर सकता है।
  • मैनुअल मतपत्र-आधारित प्रक्रियाओं पर निर्भरता:
    • मैन्युअल मतपत्र-आधारित प्रक्रियाओं पर निरंतर निर्भरता से कमज़ोरियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे गिनती में त्रुटियाँ, छेड़छाड़ की संभावना और चुनाव परिणाम घोषित करने में विलंब, आदि।
    • यह पारंपरिक दृष्टिकोण आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जितना कुशल या सुरक्षित नहीं हो सकता है, जो चुनावी परिणामों की पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है।
  • परिषदों के गठन में देरी:
    • चुनावों के बाद भी शहरी स्थानीय सरकारों में नगरपालिका परिषदों का गठन तुरंत नहीं किया गया।
      • उदाहरण के लिये: कर्नाटक में चुनाव के बाद 12-24 माह का विलंब हुआ।

स्थानीय निकाय चुनावों के संबंध में संभावित समाधान क्या हैं?

  • SEC को सशक्त बनाना: चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये SEC को संविधान के अनुच्छेद 243K और 243ZA में उल्लिखित शक्तियों का उपयोग करके चुनावी प्रक्रिया की देखरेख में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
  • वार्ड परिसीमन के लिये सशक्तीकरण: 35 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने SEC को वार्ड परिसीमन करने का अधिकार दिया है।
    • नगर निगम चुनावों में निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु वार्ड परिसीमन महत्त्वपूर्ण है।
    • SEC को अधिक अधिकार दिये जाने चाहिये, जिसमें वार्ड परिसीमन करने की शक्ति भी शामिल है।
  • जवाबदेही तंत्र: नगरपालिका चुनावों के संचालन में किसी भी देरी अथवा अनियमितता के लिये चुनाव अधिकारियों के साथ-साथ अन्य प्राधिकारियों को जवाबदेह ठहराना। यह पारदर्शी जाँच प्रक्रियाओं एवं उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • नीति सुधार: चुनावों के समय-निर्धारण से लेकर निष्पक्ष प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने तक, उजागर की गई चुनौतियों का समाधान करने हेतु व्यापक नीति सुधारों की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय निकायों के कुशल एवं समय पर चुनाव जैसे प्रमुख मुद्दों को ध्यान में रखकर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार को स्पष्ट किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में नगरपालिका चुनावों से संबंधित व्यापक सुधारों, देरी को संबोधित करने, संवैधानिक जनादेशों को लागू करने, राज्य निर्वाचन आयोगों को सशक्त बनाने के साथ-साथ पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु चुनावी प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. समय पर चुनाव एवं स्थानीय निकायों की सत्ता के सुचारू परिवर्तन के संबंध में चुनौतियों तथा संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022)

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