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भारतीय राजनीति

राज्य निर्वाचन आयोग नियुक्ति विवाद

  • 16 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक निर्णय में कहा है कि नौकरशाहों को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये, ताकि चुनाव आयुक्त के कार्यालय की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध गोवा सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई की जा रही थी।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) को चुनाव कार्यक्रम जारी करने से पूर्व संविधान में निर्धारित जनादेश का पालन करने हेतु स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने के लिये फटकार लगाई थी।
    • इसके अलावा उच्च न्यायालय ने गोवा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की गईं कुछ नगरपालिका चुनाव अधिसूचनाओं पर भी रोक लगा दी थी।
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार क्षेत्र महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव तक विस्तृत है।
  • कार्यवाही के दौरान न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि गोवा राज्य के विधि सचिव को राज्य निर्वाचन आयोग का 'अतिरिक्त प्रभार' सौंपा गया था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • केवल स्वतंत्र व्यक्ति को ही चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, न कि राज्य सरकार के किसी कर्मचारी को।
    • सरकारी कर्मचारियों को चुनाव आयुक्त के रूप में अतिरिक्त प्रभार देना संविधान का उपहास करने जैसा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष कार्यप्रणाली की संवैधानिक योजना का पालन करने का निर्देश दिया।
  • यदि राज्य सरकार के कर्मचारी ऐसा कोई निष्पक्ष कार्यालय (राज्य सरकार के अधीन) ग्रहण करते हैं, तो उन्हें चुनाव आयुक्त पद का कार्यभार संभालने से पूर्व अपने पद से इस्तीफा देना होगा।
  • न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को पूर्णकालिक चुनाव आयुक्त नियुक्त करने का आदेश दिया है, जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से कार्य करेंगे।

राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)

  • राज्य निर्वाचन आयोग को राज्य में स्थानीय निकायों के लिये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराने का कार्य सौंपा गया है। 
  • अनुच्छेद 243 (K) (1): संविधान के इस अनुच्छेद के मुताबिक, पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों के लिये निर्वाचन नामावली तैयार करने और चुनाव आयोजित करने हेतु अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण संबंधी सभी शक्तियाँ राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होंगी, इसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य चुनाव आयुक्त भी सम्मिलित हैं।
    • नगरपालिकाओं से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 243(Z)(A) में शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 243(K)(2): इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य चुनाव आयुक्त की शक्तियाँ और कार्यकाल को राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार निर्देशित किया जाएगा। अनुच्छेद के मुताबिक, राज्य चुनाव आयुक्त को केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के अभियोग की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाया जा सकता है।

सुझाव

दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश

  • राज्य निर्वाचन आयोग का गठन: दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के मुताबिक, राज्य निर्वाचन आयुक्त (SEC) को एक कॉलेजियम की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिये, जिसमें राज्य का मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा का अध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष का नेता शामिल होगा।
  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और राज्य निर्वाचन आयोगों (SECs) को एक मंच पर लाने के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, जिससे दोनों संस्थाओं के मध्य समन्वय स्थापित किया जा सके, दोनों एक दूसरे के अनुभवों से सीख सकें और संसाधन साझा कर सकें। 

चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट

  • विधि आयोग ने चुनाव सुधारों पर अपनी 255वीं रिपोर्ट में अनुच्छेद 324 में एक नया उपखंड जोड़ने की बात कही थी, ताकि लोकसभा/राज्यसभा सचिवालय (अनुच्छेद 98) की तर्ज पर भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को भी एक नया सचिवालय प्रदान किया जा सके।
  • राज्य निर्वाचन आयोगों की स्वायत्तता सुनिश्चित करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष स्थानीय निकाय चुनाव के लिये भी इसी तरह के प्रावधान किये जा सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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