महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी उम्र बढ़ाना, बाल विवाह, जया जेटली टास्क फोर्स, महिला अधिकारिता और लैंगिक समानता। मेंस के लिये:पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य आयु में एकरूपता लाने के प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में तर्क। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य आयु में एकरूपता लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 और अन्य पर्सनल लॉ में संशोधन कर महिलाओं की विवाह की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल की जाएगी।
- यह निर्णय समता पार्टी की पूर्व प्रमुख जया जेटली के नेतृत्व में गठित चार सदस्यीय टास्क फोर्स की सिफारिश पर आधारित है।
नोट:
टास्क फोर्स का गठन विवाह की उम्र और स्वास्थ्य एवं सामाजिक सूचकांकों जैसे- शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और माताओं तथा बच्चों के पोषण स्तर के साथ इसके संबंध की फिर से जाँच करने के लिये किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- विवाह के लिये न्यूनतम आयु के कानूनी ढांँचे के बारे में:
- पृष्ठभूमि:
- भारत में विवाह की न्यूनतम आयु पहली बार शारदा अधिनियम, 1929 द्वारा निर्धारित की गई थी। बाद में इसका नाम परिवर्तित कर बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (CMRA), 1929 कर दिया गया।
- वर्ष 1978 में, लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष करने के लिये कानून में संशोधन किया गया था।
- यह स्थिति बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 नामक नए कानून में भी बनी हुई है, जिसने CMRA, 1929 को प्रतिस्थापित किया।
- विभिन्न धर्मों में विवाह की न्यूनतम आयु:
- हिंदुओं के लिये, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- इस्लाम में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग की शादी को वैध माना जाता है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
- विवाह की नई उम्र लागू करने के लिये इन कानूनों में संशोधन की संभावना है।
- पृष्ठभूमि:
- महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के लाभ:
- महिला एवं बाल कल्याण: माता का गरीब होना उसके बच्चे और कुपोषण के संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं ।
- विवाह की कम उम्र और इसके परिणामस्वरूप जल्दी गर्भधारण भी माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर एवं उनके समग्र स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।.
- महिला सशक्तिकरण और लिंग समानता: बच्चे के जन्म के समय माँ की उम्र उसके शैक्षिक स्तर, रह-सहन और स्वास्थ्य स्थिति, महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करती है।
- बाल विवाह की समस्या का समाधान: वैश्विक स्तर पर भारत में सबसे अधिक कम उम्र में विवाह होते हैं। यह कानून बाल विवाह के खतरे को रोकने में मदद करेगा।
- महिला एवं बाल कल्याण: माता का गरीब होना उसके बच्चे और कुपोषण के संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं ।
- महिलाओं के विवाह हेतु न्यूनतम आयु बढ़ाने के विपक्ष में तर्क:
- बाल विवाह की समस्या: बाल विवाह कानून का क्रियान्वयन कठिन है।
- प्रमाण बताते हैं कि जब कानून का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह ज़्यादातर युवा वयस्कों को स्व-व्यवस्थित विवाह के लिये दंडित करने हेतु होता है।
- बाल विवाह रोकने वाला कानून ठीक से कार्यान्वित नहीं करता।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के अनुसार, बाल विवाह में गिरावट आई है, लेकिन यह मामूली है: वर्ष 2015-16 में 27% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 23% हो गई।
- 70% कम उम्र के विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वंचित समुदायों में होते हैं और कानून इन विवाहों को रोकने के बजाय उन्हें भूमिगत कर देता है।
- बड़ी संख्या में विवाहों का अपराधीकरण: यह परिवर्तन उन भारतीय महिलाओं के विशाल बहुमत को छोड़ देगा, जिन्होंने 21 वर्ष की आयु से पहले शादी की है, बिना कानूनी सुरक्षा के जो उनके परिवारों को आपराधिक बना देगा।
- शिक्षा की कमी एक बड़ी समस्या है: यूएनएफपीए द्वारा ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट’ 2020 के अनुसार, भारत में, बिना शिक्षा वाली 51% युवा महिलाओं और केवल प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वालों में से 47% ने 18 साल की उम्र में शादी कर ली थी।
- इसके अलावा ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन’ के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल से बाहर लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक है या उनकी शादी उन लड़कियों की तुलना में पहले ही तय हो गई है जो अभी भी स्कूल में हैं।
- बाल विवाह की समस्या: बाल विवाह कानून का क्रियान्वयन कठिन है।
आगे की राह
- शिक्षा को बढ़ावा देना: कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि बाल विवाह में देरी का जवाब शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने में है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है।
- स्कूलों में स्किल और बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन से भी मदद मिलेगी।
- स्कूलों तक पहुँच बढ़ाना: सरकार को दूर-दराज़ के क्षेत्रों से लड़कियों की स्कूलों और कॉलेजों तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- जन जागरूकता कार्यक्रम: विवाह की उम्र में वृद्धि पर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है और नए कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।