भारत में AI क्रांति
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंडियाAI मिशन, डीपसीक, भारतजेन, डिजिटल इंडिया भाषिणी, सेमीकॉन इंडिया मेन्स के लिये:भारत का AI मिशन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता, भारत में AI और आर्थिक विकास |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, जिसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान इंडियाAI मिशन के तहत सरकार की सक्रिय नीतियों का है।
- यह पहल वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो भारत को वैश्विक AI पावरहाउस के रूप में स्थापित करेगी।
भारत किस प्रकार वैश्विक AI पावरहाउस में परिवार्तित हो रहा है?
- AI इन्फ्रास्ट्रक्चर का सुदृढ़ीकरण: सरकार 18,693 ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (GPU) के साथ एक उच्च परिष्कृत कंप्यूटिंग केंद्र स्थापित कर रही है, जिसकी क्षमता डीपसीक से लगभग 9 गुना अधिक और चैटजीपीटी की क्षमता का दो-तिहाई है।
- ओपन GPU मार्केटप्लेस से स्टार्टअप्स, शोधकर्त्ताओं और छात्रों को किफायती उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग की पहुँच प्राप्त होती है।
- भारत का लक्ष्य 3-5 वर्षों की अवधि में अपना स्वयं का GPU विकसित करना है, जिससे क्वांटम चिप्स जैसी विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- इंडियाAI डेटासेट प्लेटफॉर्म AI अनुसंधान और विकास के लिये उच्च गुणवत्ता वाले, अनामीकृत डेटासेट प्रदान करता है।
- भारत ने नई दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा, कृषि और सतत् शहरों में AI उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित किये हैं। केंद्रीय बजट 2025 में शिक्षा में नए AI उत्कृष्टता केंद्र के लिये 500 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- AI कौशल: पाँच राष्ट्रीय AI कौशल केंद्रों की सहायता से युवाओं को AI उद्योगों के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, जो मेक फॉर इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड विज़न के साथ संरेखित होंगे।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अंतर्गत सभी स्तरों पर AI शिक्षा को एकीकृत किया गया है।
- भारत वैश्विक AI कौशल प्रवेश (स्टैनफोर्ड AI इंडेक्स 2024) में प्रथम स्थान पर है, जिसमें वर्ष 2016 से 263% AI प्रतिभा वृद्धि और AI-कुशल कार्यबल (2016-2023) में 14 गुना वृद्धि हुई है।
- भारत में लगभग 520 टेक इनक्यूबेटर और एक्सेलरेटर हैं, जिससे भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है।
- स्वदेशी AI मॉडल: भारतजेन AI-संचालित सार्वजनिक सेवाओं के लिये विश्व की पहली सरकारी वित्त पोषित लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) पहल है।
- सर्वम-1, 2 बिलियन पैरामीटर वाला लार्ज लैंग्वेज मॉडल है और यह दस प्रमुख भारतीय भाषाओं का समर्थन करता है। इसे भाषा अनुवाद, पाठ सारांश और सामग्री निर्माण जैसे अनुप्रयोगों के लिये निर्मित किया गया है।
- AI कोष एक सरकार समर्थित मंच है जिसे व्यवसायों, शोधकर्त्ताओं और स्टार्टअप्स को AI समाधान विकसित करने में मदद करने के लिये गैर-व्यक्तिगत डेटासेट प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- डिजिटल इंडिया भाषिनी डिजिटल पहुँच के लिये एक AI-संचालित भाषा अनुवाद मंच है।
- चित्रलेखा भारतीय भाषाओं के लिये एक ओपन-सोर्स वीडियो ट्रांसक्रिएशन टूल है।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के साथ AI: दक्षता में सुधार के लिये AI को आधार, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), डिजीलॉकर के साथ एकीकृत किया गया है।
- AI-संचालित भीड़ निगरानी ने रेलवे यात्रियों की आवाजाही को अनुकूलित किया, तथा RBI द्वारा विकसित MuleHunter.AI ने धोखाधड़ी और धन शोधन के लिये उपयोग किये जाने वाले म्यूल बैंक अकाउंट का पता लगाया।
- AI-संचालित आर्थिक विकास: 80% भारतीय कंपनियाँ AI को मुख्य रणनीतिक लक्ष्य के रूप में प्राथमिकता देती हैं। 69% कंपनियाँ वर्ष 2025 में AI निवेश बढ़ाने की योजना बना रही हैं।
- इंडियन जनरेटिव AI (GenAI) स्टार्टअप फंडिंग 6 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 51 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई (नैसकॉम रिपोर्ट)।
- भारत में विश्व की 16% AI प्रतिभा मौजूद है, जो AI-संचालित स्वचालन, फिनटेक और स्वास्थ्य सेवा को आगे बढ़ा रही है।
- AI का उपयोग करने वाले 78% लघु एवं मध्यम व्यवसायों (SMB) ने राजस्व वृद्धि की सूचना दी।
- भारत के AI बाज़ार में 25-35% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि होने का अनुमान है। वर्ष 2026 तक AI प्रतिभा की मांग 1 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- AI विनियमन: भारत के AI विनियमन ढाँचे में सुरक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, उत्तरदायी AI के सिद्धांत (2021) और राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता रणनीति (2018) शामिल हैं।
- भारत डीपफेक, गोपनीयता और साइबर सुरक्षा खतरों जैसे जोखिमों को संबोधित करते हुए अति-विनियमन से बच रहा है।
- वैश्विक AI गवर्नेंस नेतृत्व: भारत ग्लोबल INDIAai शिखर सम्मेलन 2024 की मेज़बानी करके और G20, पेरिस AI शिखर सम्मेलन 2025 और कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (GPAI) शिखर सम्मेलन में अपनी AI पहलों का प्रदर्शन करके अंतर्राष्ट्रीय AI नियामक ढाँचे को सक्रिय रूप से आकार दे रहा है।
भारत के AI परिवर्तन में चिंताएँ क्या हैं?
- सीमित AI हार्डवेयर क्षमताएँ: भारत अभी भी विदेशी निर्मित GPU और सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकियों पर निर्भर है।
- विभिन्न AI स्टार्टअप वैश्विक तकनीकी दिग्गजों (AWS, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट) की क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाओं पर निर्भर हैं।
- सीमित भारतीय AI चिप विनिर्माण का मतलब है कि स्टार्टअप्स को विदेशी निर्मित AI चिप्स पर निर्भर रहना होगा।
- कौशल संबंधी चुनौतियाँ: यद्यपि भारत AI कौशल प्रसार में अग्रणी है, फिर भी यहाँ अत्यधिक विशिष्ट AI शोधकर्त्ताओं की कमी है। अधिकांश AI पेशेवर डीप-टेक इनोवेशन के बजाय सेवा-आधारित भूमिकाओं में लगे हुए हैं।
- वर्ष 2030 तक ऑटोमेशन के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र में 60 मिलियन तक कर्मचारी बेरोज़गार हो सकते हैं। ग्रामीण और टियर-2/टियर-3 शहरों में असमान AI अपनाने से डिजिटल विभाजन बढ़ रहा है।
- नैतिक चिंताएँ: अपर्याप्त रूप से विविध डेटासेट के कारण AI मॉडल में पूर्वाग्रह का जोखिम बना हुआ है।
- डेटा उपयोग, चेहरे की पहचान एवं डीपफेक जोखिमों को विनियमित करने के लिये कोई समर्पित AI कानून नहीं है।
- नियामक अनिश्चितता: भारत में एक समर्पित AI नियामक ढाँचे का अभाव है।
- AI नैतिकता संबंधी व्यापक दिशा-निर्देशों का अभाव होने से इसमें जवाबदेहिता और पारदर्शिता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: AI हार्डवेयर और डेटा सेंटर का वैश्विक GHG उत्सर्जन में 1% का योगदान है जिसके जिसके वर्ष 2026 तक दोगुना होने की उम्मीद है। भारत में AI डेटा सेंटर में होने वाले जल के उपयोग तथा कार्बन फुटप्रिंट के संदर्भ में विनियमन का अभाव है।
AI से संबंधित चुनौतियों से निपटने के क्रम में भारत क्या कदम उठा सकता है?
- AI हार्डवेयर को मज़बूत बनाना: सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम के तहत घरेलू AI चिप विनिर्माण को बढ़ावा देने के साथ फैबलेस चिप डिज़ाइन स्टार्टअप एवं AI हार्डवेयर से संबंधित R&D को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के माध्यम से क्वांटम AI प्रोसेसर के विकास को समर्थन देना चाहिये।
- AI कार्यबल: AI एवं डिजिटल प्रौद्योगिकियों में युवाओं को प्रशिक्षित करने हेतु फ्यूचरस्किल्स प्राइम का विस्तार करना चाहिये, जिससे डिजिटल राष्ट्र के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत होगी।
- AI विनियामक ढाँचा: यूरोपीय संघ AI अधिनियम (2024) एवं यूएस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एनवायरनमेंट इम्पैक्ट्स एक्ट (2024) से प्रेरणा लेते हुए AI विकास के साथ इसके पर्यावरणीय प्रभाव को विनियमित करने के क्रम में एक समर्पित AI तथा क्वांटम अधिनियम विकसित करना चाहिये।
- AI का समावेशी विकास सुनिश्चित करना: RAISE 2020 के तहत सामाजिक परिवर्तन, समावेशन और सशक्तीकरण हेतु एक उपकरण के रूप में AI को बढ़ावा देना चाहिये।
- AI का धारणीय विकास: ऐसे AI एल्गोरिदम एवं बुनियादी ढाँचे को डिज़ाइन करना चाहिये जिससे कम ऊर्जा का उपभोग हो। इसके साथ ही विद्युत के उपयोग को अनुकूलित करने के क्रम में AI को स्मार्ट ग्रिड के साथ एकीकृत करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में भारत के परिवर्तनकारी बदलाव पर चर्चा कीजिये। AI का धारणीय विकास सुनिश्चित करने के क्रम में भारत को क्या कदम उठाने चाहिये? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: विकास की वर्तमान स्थिति के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य प्रभावी ढंग से कर सकती है? (2020) 1. औद्योगिक इकाइयों में बिजली की खपत को कम करना नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
ज़िला-स्तरीय सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद, ज़िला घरेलू उत्पाद, भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र, सकल वर्द्धित मूल्य मेन्स के लिये:भारत में GDP अनुमान और सीमाएँ, भारत की आर्थिक नीतियाँ |
स्रोत: बिज़नेस लाइन
चर्चा में क्यों?
भारत की आर्थिक वृद्धि का आकलन लंबे समय से राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानों के माध्यम से किया जाता रहा है, जिससे आर्थिक आकलन में ज़िलों {ज़िला घरेलू उत्पाद (DDP) अनुमान} की अनदेखी होती रही है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तथ्य पर बल दिया कि 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु भारत को ज़िलावार योगदान निर्धारित करना होगा और स्थानीय विकास रणनीतियों का क्रियान्वन करना होगा।
वर्तमान की GDP अनुमान पद्धति क्या है?
- वर्तमान की GDP अनुमान पद्धति: भारत के GDP का अनुमान क्षेत्र के आधार पर ऊर्ध्वाधर और अधरोर्ध्व दृष्टिकोण के मिश्रण का उपयोग कर लगाया जाता है।
- प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, वानिकी, मत्स्यन और खनन) के अंतर्गत अधरोर्ध्व दृष्टिकोण का पालन किया जाता है, जिसमें ज़िला स्तर से ऊपर की ओर डेटा एकत्र किया जाता है।
- द्वितीयक (विनिर्माण, निर्माण) और तृतीयक (सेवाएँ, व्यापार, बैंकिंग) क्षेत्र में ऊर्ध्वाधर दृष्टिकोण का पालन किया जाता है, जहाँ राष्ट्रीय GDP को ज़िला स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक गतिविधि को मापने के बजाय रोज़गार के स्तर और बुनियादी ढाँचे की उपस्थिति जैसे संकेतकों के आधार पर राज्यों और ज़िलों में विभाजित किया जाता है।
- सीमाएँ: वर्तमान GDP अनुमान पद्धतियों से स्थानीय क्षेत्रीय शक्तियों, विशेष रूप से द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की अनदेखी होती है।
- एक ही राज्य के भीतर भी ज़िलों में आर्थिक वृद्धि स्तर अलग-अलग होती है, लेकिन विस्तृत डेटा के अभाव से सामान्य नीतियाँ बनाई जाती हैं।
- इस दृष्टिकोण के अंतर्गत वास्तविक समय की गतिविधि की उपेक्षा होती है, जिससे अशुद्धियाँ होती हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र {अवैतनिक श्रम (विशेष रूप से महिलाएँ} के डेटा अभाव के कारण GDP अनुमान सटीक नहीं रहता है।
- स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया (SWI 2023) रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर GDP वृद्धि और रोज़गार के बीच संबंध अदृढ़ है, और ज़िला स्तर पर यह मुद्दा और भी अधिक गंभीर है।
- रोज़गार संबद्ध GDP डेटा के अभाव में, विकास नीतियों में रोज़गार सृजन और सामाजिक समानता के बजाय केवल आर्थिक उत्पादन को ही महत्ता दिये जाने की संभावना रहती है।
- एक ही राज्य के भीतर भी ज़िलों में आर्थिक वृद्धि स्तर अलग-अलग होती है, लेकिन विस्तृत डेटा के अभाव से सामान्य नीतियाँ बनाई जाती हैं।
केस स्टडी
- कोविड-19 के दौरान, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने एक समान GDP वितरण लागू किया, जिससे विसंगतियाँ हुईं।
- उत्तर प्रदेश (UP) ने अपने अनुमानित सकल राज्य वर्द्धित मूल्य (GSVA) में गंभीर त्रुटियों का हवाला देते हुए आपत्ति व्यक्त की। कृषि से 25% GSVA और संबद्ध क्षेत्र में 65% कार्यबल के साथ, राज्य ने तर्क दिया कि औद्योगिक राज्यों की तुलना में इसकी अर्थव्यवस्था कम प्रभावित हुई है।
- वन-साइज़-फिट्स-आॅल दृष्टिकोण के कारण UP की GDP गिरावट की अतिरंजना हुई, जिससे सटीकता के लिये अधरोर्ध्व, ज़िला-स्तरीय जीडीपी अनुमान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
ज़िला स्तरीय GDP अनुमान के कार्यान्वन के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- अनौपचारिक क्षेत्र: अनौपचारिक श्रम और असंगठित क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता के कारण ज़िलों जैसी क्षेत्रीय इकाइयों को DDP अनुमान लगाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कम आकलन होता है।
- इसके अतिरिक्त, ज़िले की सीमाओं के पार वस्तुओं, सेवाओं और कारक भुगतानों के मुक्त आवागमन से सटीक आकलन करना और जटिल हो जाता है।
- वित्तीय और तार्किक बाधाएँ: ज़िला-स्तरीय GDP अनुमान के लिये एक सुदृढ़ सांख्यिकीय ढाँचा स्थापित करने हेतु बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षण और डिजिटल साधनों में महत्त्वपूर्ण निवेश किये जाने की आवश्यकता होती है।
- असंगत डेटा संग्रहण: समवर्ती सूची के अंतर्गत सांख्यिकी केंद्र और राज्यों के बीच विखंडन उत्पन्न करती है, जबकि मंत्रालयों में विकेंद्रीकृत सांख्यिकीय प्रणाली में एकरूपता का अभाव है, जिससे DDP अनुमान असंगत हो जाता है।
- मानकीकृत ज़िला-स्तरीय डेटा संग्रहण के अभाव के कारण राज्यों में अशुद्धियाँ उत्पन्न होती हैं।
- मानकीकृत पद्धति का अभाव: DDP का अनुमान लगाने के लिये राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) 2008 जैसी कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत रूपरेखा नहीं है।
- विभिन्न ज़िलों में आर्थिक गतिविधियों में भिन्नता के कारण आधार वर्ष जैसे प्रमुख मानदंडों को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण है।
- राजनीतिक और प्रशासनिक बाधाएँ: राज्य उप-राज्य/DDP के संकलन के लिये ज़िम्मेदार हैं, लेकिन प्रायः इसे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने में विफल रहते हैं।
- राज्य की नीतियों और राजनीतिक प्राथमिकताओं में भिन्नता के कारण डेटा संग्रहण में विलंबता और असंगतता होती है, जिससे DDP अनुमान की एकरूपता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
ज़िला स्तरीय GDP आकलन के क्या लाभ हैं?
- राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देना: विकेंद्रीकृत आर्थिक डेटा ज़िला प्रशासन को अनुकूलित रणनीति विकसित करने में सक्षम बनाता है, जिससे बेहतर संसाधन उपयोग और लक्षित निवेश सुनिश्चित होता है।
- सटीक आर्थिक विश्लेषण: यह आकलन करने में सहायता करता है कि राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय नीतियाँ विभिन्न ज़िलों पर किस प्रकार प्रभाव डालती हैं।
- समतामूलक विकास: यह सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण और अविकसित ज़िलों को विकास में शामिल किया जाए, जिससे आर्थिक असमानताओं को कम किया जा सके।
- नीतिगत सुधार: 15 वें वित्त आयोग ने स्थानीय शासन के लिये प्रदर्शन-आधारित अनुदान की सिफारिश की है, ज़िला GDP डेटा इन संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करने में मदद कर सकता है।
- राज्य और राष्ट्रीय नीतियों को ज़िला स्तरीय आर्थिक अंतर्दृष्टि के आधार पर समायोजित किया जाना चाहिये।
मज़बूत DDP आकलन के लिये आगे की राह क्या होना चाहिये?
- पायलट प्रोजेक्ट: सरकार DDP आकलन मॉडल का परीक्षण करने के लिये उच्च आर्थिक गतिविधि वाले ज़िलों में पायलट प्रोजेक्ट के साथ शुरुआत कर सकती है। सफल मॉडलों को अन्य ज़िलों में भी लागू किया जा सकता है।
- ज़िला विज़न दस्तावेज़ विकसित करने के लिए राज्यों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को मज़बूत करना, जैसा कि असम-पहल इंडिया फाउंडेशन MoU में देखा गया है।
- स्थानीय डेटा संग्रहण तंत्र: सरकार को ज़िला सांख्यिकी कार्यालयों को मज़बूत करना चाहिये, स्थानीय डेटा संग्रहकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करना चाहिये, और सटीकता के लिये मज़बूत केंद्र-राज्य सहयोग सुनिश्चित करना चाहिये।
- डेटा में प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर के निवेश से 32 अमेरिकी डॉलर का विकास लाभ प्राप्त होता है, जो इसके दीर्घकालिक मूल्य को रेखांकित करता है।
- वास्तविक समय आर्थिक संकेतक: GSDP और DDP अनुमान में सुधार के लिये उप-राष्ट्रीय लेखा समिति की सिफारिशों के साथ संरेखित करते हुए, रोज़गार प्रवृत्तियों, कर संग्रह, ऋण वृद्धि और व्यावसायिक गतिविधि पर नज़र रखने के लिये ज़िला-स्तरीय आर्थिक डैशबोर्ड विकसित किये जा सकते हैं।
- ज़िला स्तरीय आर्थिक मापन में सुधार के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सैटेलाइट इमेजरी और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसे डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की भूमिका का विस्तार: सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की भूमिका को तकनीकी मार्गदर्शन और क्षमता निर्माण से आगे बढ़ाया जाना चाहिये, ताकि DDP आकलन में एकरूपता और अंतर-राज्यीय तुलनीयता सुनिश्चित की जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की वर्तमान GDP आकलन पद्धति की सीमाओं पर चर्चा कीजिये। बॉटम-अप दृष्टिकोण आर्थिक नीति निर्माण में कैसे सुधार कर सकता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. स्फीति दर में होने वाली तीव्र वृद्धि का आरोप्य कभी-कभी "आधार प्रभाव" (base effect) पर लगाया जाता है। यह "आधार प्रभाव" क्या है? (2011) (a) यह फसलों के खराब होने से आपूर्ति में उत्पन्न उग्र अभाव का प्रभाव है उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के पश्चात् परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021) |
LHDCP के तहत पशु औषधि केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र, खुरपका और मुँहपका रोग, ब्रुसेलोसिस, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम मेन्स के लिये:पशुधन स्वास्थ्य एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु सरकारी पहल, सस्ती पशु चिकित्सा देखभाल |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार पशुपालन एवं डेयरी से जुड़े लोगों को सस्ती पशु चिकित्सा दवाइयाँ उपलब्ध कराने हेतु पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (LHDCP) के तहत पशु औषधि केंद्र शुरू करेगी।
पशु औषधि केंद्र क्या हैं?
- परिचय: प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों (PMBJKs) की तर्ज पर बनाए गए पशु औषधि केंद्र, पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के साथ किसानों के खर्च को कम करने के क्रम में पशु चिकित्सा हेतु “जेनेरिक दवाएँ” प्रदान करने पर केंद्रित हैं।
- पशु औषधि केंद्रों पर एथनोवेटरनरी दवाइयाँ भी बेची जाएंगी, जो पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं स्थानीय प्रथाओं पर आधारित होती हैं।
- LHDCP के तहत शुरू की गई पशु औषधि पहल में पशु चिकित्सा दवाओं एवं बिक्री प्रोत्साहन के लिये 75 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
- संचालन मॉडल: ये स्टोर सहकारी समितियों और प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों (PMKSKs) द्वारा संचालित किये जाएंगे।
- PMKSK किसानों के लिये बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि जैसे विभिन्न उत्पादों की एक ही स्थान पर पूर्ति करने वाला केंद्र है।
- उद्देश्य: पशुओं में होने वाली बीमारियों जैसे खुरपका और मुँहपका रोग (FMD), ब्रुसेलोसिस, पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (PPR-जिसे भेड़ और बकरी प्लेग के रूप में भी जाना जाता है), क्लासिकल स्वाइन फीवर (CSF-सूअरों को प्रभावित करने वाला) और लम्पी स्किन डिज़ीज़ (मवेशियों को प्रभावित करने वाला) को रोकना एवं उनका इलाज करना।
- महत्त्व: भारत की 20वीं पशुधन गणना (2019) के अनुसार, देश में लगभग 536 मिलियन पशुधन हैं, जिनमें 303 मिलियन गोजातीय पशु शामिल हैं। बीमारियों के कारण दूध, मांस उत्पादन और कृषि आय पर असर पड़ता है, साथ ही दवाइयों की उच्च लागत के कारण किसानों पर बोझ में वृद्धि होती है।
- टीकाकरण अभियान के साथ-साथ इस पहल का उद्देश्य रोग की व्यापकता एवं वित्तीय तनाव को कम करना है।
नोट: "जेनेरिक दवाएँ" मूल रूप से गैर-ब्रांडेड दवाएँ होती हैं, जिनका ब्रांड नाम के बजाय अन्य अनुमोदित नाम के तहत विपणन किया जाता है।
पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम क्या है?
- LHDCP: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD), मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- LHDPC का ध्यान पशुधन स्वास्थ्य, उत्पादकता और रोग प्रबंधन को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसका कुल परिव्यय वर्ष 2024-26 तक 3,880 करोड़ रुपए है।
- उद्देश्य: कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2030 तक PPR का उन्मूलन करना, राष्ट्रव्यापी सुअर टीकाकरण के माध्यम से CSF को नियंत्रित करना है।
- घटक: LHDPC में तीन घटक शामिल हैं: राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP), पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण (LH&DC), और पशु औषधि।
- LH&DC के तीन उप-घटक हैं, जो हैं गंभीर पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (उन्मूलन के लिये PPR और CSF को लक्ष्य बनाना), पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण - मोबाइल पशु चिकित्सा इकाई (घर-द्वार तक पशुधन स्वास्थ्य सेवा का समर्थन करना), और पशु रोगों के नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (राज्य-प्राथमिकता वाले रोगों का समाधान करना)।
भारत में पशुधन क्षेत्र
- विकास और योगदान: पशुधन क्षेत्र 12.99% (वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23) की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा है। इसने वर्ष 2022-23 में भारत के कुल सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 5.50% का योगदान दिया।
- कृषि और संबद्ध क्षेत्र GVA में पशुधन क्षेत्र का योगदान 24.38% (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 30.23% (वर्ष 2022-23) हो गया।
- पशुधन दो-तिहाई ग्रामीण समुदायों को आजीविका प्रदान करता है। यह भारत की लगभग 8.8% आबादी को रोज़गार भी प्रदान करता है।
- दुग्ध, मांस और अंडा उत्पादन: भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है, जो वैश्विक उत्पादन में 24.76% का योगदान देता है।
- दुग्ध उत्पादन 146.31 मिलियन टन (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 239.30 मिलियन टन (वर्ष 2023-24) हो गया, जो 5.62% की CAGR से बढ़ रहा है।
- भारत विश्व स्तर पर अंडा उत्पादन में दूसरे स्थान पर है (चीन के बाद पहला ) और मांस उत्पादन में 5 वें स्थान पर है (खाद्य और कृषि संगठन, 2022)।
- अंडे का उत्पादन 6.87% की CAGR पर 78.48 बिलियन (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 142.77 बिलियन (वर्ष 2023-24) हो गया।
- मांस उत्पादन 4.85% की CAGR पर 6.69 मिलियन टन (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 10.25 मिलियन टन (वर्ष 2023-24) हो गया।
- विकास को गति देने वाली सरकारी पहल: राष्ट्रीय गोकुल मिशन देशी नस्लों के संरक्षण को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम दुग्ध प्रसंस्करण को बढ़ाता है, जबकि राष्ट्रीय पशुधन मिशन बीमा और चारा उत्पादन का विस्तार करता है।
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF) डेयरी, मांस और पशु चिकित्सा अवसंरचना में निजी निवेश का समर्थन करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: पशुपालकों के लिये किफायती पशु चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने में पशु औषधि केंद्रों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषीतर रोज़गार और आय का प्रबंध करने में पशुधन पालन की बड़ी संभाव्यता है। भारत में इस क्षेत्रक की प्रोन्नति करने के उपयुक्त उपाय सुझाते हुए चर्चा कीजिये। (2015) |
भारत का फार्मा उद्योग
प्रिलिम्स के लिये:फार्मास्युटिकल, धारा 3 (d), पेटेंट अधिनियम, 1970, जेनेरिक दवा, जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रचार, गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP), आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM), mRNA वैक्सीन। मेन्स के लिये:भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग में अवसर और चुनौतियाँ। |
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने रेसिप्रोकल अमेरिकी टैरिफ को रोकने और अमेरिकी फार्मास्युटिकल बाज़ार में भारत का प्रभुत्त्व बनाए रखने के लिये अमेरिकी दवा आयात पर शून्य सीमा शुल्क का प्रस्ताव दिया है।
IPA शून्य आयात शुल्क की वकालत क्यों कर रहा है?
- अमेरिकी बाज़ार का महत्त्व: अमेरिका भारत से प्रतिवर्ष 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के फार्मास्युटिकल फॉर्मूलेशन का आयात करता है, जो भारत के कुल फार्मा निर्यात का एक तिहाई है।
- शून्य आयात शुल्क: भारत ने जीवन रक्षक दवाओं पर आयात शुल्क को कम कर दिया है। शून्य शुल्क नीति रेसिप्रोकल अमेरिकी टैरिफ का मुकाबला करने और निर्यात की सुरक्षा करने में मदद करती है।
- न्यूनतम शुल्क से व्यापार संबंध मज़बूत होंगे और भारतीय फार्मा कंपनियों के खिलाफ अमेरिका के सख्त उपायों को रोका जा सकेगा, जैसे भारत के पेटेंट अधिनियम, 1970 में संशोधन कर उसकी धारा 3(d) को सरलीकृत करना।
- पेटेंट अधिनियम, 1970 में संशोधन: अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने भारत से पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3(d) को हटाने या सरलीकृत करने का आग्रह किया है, जो पेटेंटों की एवरग्रीनिंग को रोकता है।
- संशोधित औषधियों के पेटेंट को आसान बनाने के लिये धारा 3(d) में संशोधन (पेटेंट की एवरग्रीनिंग) से भारतीय फार्मा कंपनियों को रिवर्स इंजीनियरिंग पर प्रतिबंध लगने और जेनेरिक दवाओं उत्पादन में विलंब होने का खतरा हो सकता है।
भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?
- परिचय: भारत विश्व स्तर पर औषधि उत्पादन में मात्रा के आधार पर तीसरे स्थान पर है तथा मूल्य के आधार पर 14वें स्थान पर है, तथा वैश्विक वैक्सीन मांग का 50% से अधिक तथा अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की 40% आपूर्ति करता है।
- आकार: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये भारत का फार्मास्युटिकल बाज़ार 50 बिलियन अमरीकी डॉलर का है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.72% का योगदान देता है, और वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 137 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचना है।
- प्रमुख खंड:
- जेनेरिक दवाइयाँ: भारत विश्व का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है, जो वैश्विक मांग का 20% पूरा करता है।
- सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API): भारत 500 से अधिक API का उत्पादन करता है, जो वैश्विक API बाजार में 8% का योगदान देता है।
- चिकित्सा उपकरण: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह बाज़ार 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।
- विकास चालक:
- कम कीमत: भारतीय औषधियाँ पश्चिमी दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं।
- सरकारी सहायता : उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी नीतियाँ घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देती हैं।
- मज़बूत अनुसंधान एवं विकास आधार: भारत में नवाचार को बढ़ावा देने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का एक बड़ा समूह है, उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में 64,480 पेटेंट फाइलिंग के साथ भारत अब पेटेंट आवेदनों के मामले में विश्व स्तर पर 6 वें स्थान पर है।
- बढ़ती वैश्विक मांग: बढ़ती चिरकालिक बीमारियाँ और वृद्ध होती वैश्विक जनसंख्या, लागत प्रभावी औषधियों की मांग को बढ़ा रही हैं।
- निर्यात: भारत 200 से अधिक देशों को दवाइयों का निर्यात करता है। वित्त वर्ष 24 में निर्यात 27.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- बायोसिमिलर और विशेष दवाओं की बढ़ती मांग के कारण भारत चिकित्सा उपकरणों के निर्यात में विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर है।
- सरकारी पहल: उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI), बल्क ड्रग पार्क योजना, राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2023।
नोट: API किसी दवा में मौजूद जैविक रूप से सक्रिय घटक होते हैं जिससे इच्छित चिकित्सीय लाभ मिलते हैं। ये किसी चिकित्सा स्थिति के उपचार या प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार प्रमुख तत्त्व होते हैं। |
फार्मा उद्योग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- गुणवत्ता संबंधी मुद्दे: वर्ष 2022 में गाम्बिया में भारतीय कफ सिरप से हुई मौतों जैसी घटनाओं के कारण भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- नियामक बाधाएँ: विकसित हो रहे गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) एवं गुणवत्ता नियंत्रण विनियमों का अनुपालन महंगा है।
- API आयात पर निर्भरता: भारत 70% API का आयात (मुख्य रूप से चीन से) करता है जिससे आपूर्ति शृंखला संबंधी कमज़ोरियाँ पैदा होती हैं।
- मूल्य निर्धारण दबाव: आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) के अंतर्गत मूल्य नियंत्रण से फार्मा कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित होती है, जिससे उद्योग के नवाचार प्रोत्साहन में बाधा उत्पन्न होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (अत्यधिक परिष्कृत और अच्छी तरह से शोध किये गए उत्पाद) से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ रही है जबकि वियतनाम एवं इंडोनेशिया विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहे हैं।
- कौशल की कमी: जैव प्रौद्योगिकी, बायोसिमिलर और दवा संबंधी रिसर्च में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है।
- उदाहरण के लिये, नवीन फार्मूलों के बजाय जेनरिक दवाओं पर निर्भरता से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
आगे की राह
- घरेलू API विनिर्माण: PLI 2.0, बल्क ड्रग पार्क, किण्वन-आधारित API एवं ग्रीन केमिस्ट्री से API उत्पादन में मज़बूती आने के साथ आत्मनिर्भरता और आपूर्ति स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है।
- उच्च मूल्य वाली दवा बाज़ारों का विस्तार: भारतीय कंपनियों को बढ़ते विशिष्ट चिकित्सा अवसरों का लाभ उठाने के क्रम में जीन थेरेपी, व्यक्तिगत चिकित्सा तथा mRNA और अगली पीढ़ी के टीकों में अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना चाहिये।
- अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: कर लाभ, अनुसंधान अनुदान, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), AI-संचालित औषधि नवाचार, नैदानिक परीक्षणों में बिग डेटा तथा टेलीमेडिसिन के माध्यम से अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन मिलने के साथ नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
- विनियामक एवं गुणवत्ता अनुपालन: बायोसिमिलर, नवीन औषधियों तथा सफल उपचारों के तीव्र अनुमोदन से बाज़ार में इनकी उपलब्धता में सुधार होगा।
- दवा सुरक्षा निगरानी बढ़ाने से उपभोक्ता विश्वास एवं नियामक विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- वैश्विक बाज़ार में प्रवेश: व्यापार सौदों तथा विदेशी विनिर्माण के माध्यम से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका एवं आसियान को निर्यात का विस्तार करने से व्यापार बाधाएँ दूर होंगी तथा विकास को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
भारत के दवा उद्योग में निर्यात, सामर्थ्य और सरकारी सहायता के माध्यम से विकास की व्यापक संभावनाएँ हैं। हालांकि, इसमें API निर्भरता, विनियामक बाधाओं और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये। अनुसंधान एवं विकास, घरेलू API उत्पादन एवं वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति को मज़बूत करने से वैश्विक दवा क्षेत्र में भारत का निरंतर नेतृत्व सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: 'विश्व की फार्मेसी' के रूप में भारत की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। इसमें योगदान देने वाले कारकों को बताते हुए इस क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सQ. भारत सरकार दवा कंपनियों द्वारा दवा के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से कैसे बचाव कर रही है? (2019) |