शासन व्यवस्था
मसौदा पेटेंट संशोधन नियम द्वारा अनुदान-पूर्व विरोध को सीमित करना
- 06 Oct 2023
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प्रिलिम्स के लिये:पेटेंट, पेटेंट एवरग्रीनिंग , अनुदान-पूर्व विरोध मेन्स के लिये:किफायती जेनेरिक दवाओं, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के उत्पादन और उपलब्धता पर पेटेंट नियमों का प्रभाव। |
स्रोत : द हिंदू
चर्चा में क्यों?
उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा भारत में प्रस्तावित हालिया मसौदा पेटेंट संशोधन नियमों ने सस्ती दवाओं तथा वैक्सीन पर उनके संभावित प्रभाव पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। ये नियम अनुदान-पूर्व विरोध में बाधा डाल सकते हैं, साथ ही अनुचित पेटेंट विस्तार के खिलाफ गंभीर सुरक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
मसौदा पेटेंट संशोधन नियम:
- मसौदा पेटेंट संशोधन नियम:
- परिचय:
- पेटेंट संशोधन नियमों का मसौदा भारत में मौज़ूदा पेटेंट नियमों में प्रस्तावित संशोधनों का एक सेट है, जो पेटेंट दाखिल करने, उनकी जाँच करने और उनका विरोध करने की प्रक्रियाओं एवं शुल्क को विनियमित करता है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने के लिये परिवर्तनीय शुल्क की शुरूआत, जो 1,500 रुपए से लेकर 40,000 रुपए हो सकती है, राशि श्रेणी और आवेदकों की संख्या के आधार पर लागू की गई है।
- पेटेंट के नियंत्रक को अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज़ करने की मांग करने वाले व्यक्तियों या नागरिक समाज संगठनों द्वारा प्रतिनिधित्व की स्थिरता निर्धारित करने की शक्ति देने का प्रावधान।
- अनुदान के बाद विरोध दाखिल करने के लिये आधिकारिक शुल्क में वृद्धि, जो आवेदक द्वारा खर्च की गई कुल पेटेंट आवेदन लागत के बराबर होगी।
- परिचय:
- चिंताएँ:
- सस्ती दवाओं तक पहुंच प्रतिबंधित करना:
- पेटेंट को चुनौती देने की प्रक्रिया अधिक कठिन बनाकर, प्रस्तावित नियम सस्ती जेनेरिक दवाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
- अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने के लिये परिवर्तनीय शुल्क की शुरूआत नागरिक समाज संगठनों और रोगी समूहों पर एक व्यापक वित्तीय बोझ डाल सकती है।
- नियंत्रक का विवेक:
- मौज़ूदा पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत कोई भी व्यक्ति पेटेंट को चुनौती देने के लिये लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के साथ अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज करा सकता है।
- हालाँकि प्रारूप नियमों में नियंत्रक को अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने वालों की स्थिरता तय करने का अधिकार देने का प्रावधान है। सत्ता में इस बदलाव ने पेटेंट का विरोध करने वालों के लिये संभावित पूर्वाग्रहों और चुनौतियों के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- मौज़ूदा पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत कोई भी व्यक्ति पेटेंट को चुनौती देने के लिये लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के साथ अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज करा सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों पर प्रभाव:
- पूर्व-अनुदान विरोध पेटेंट की एवरग्रीनिंग और अनुचित एकाधिकार देने जैसी प्रथाओं के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप में कार्य करता है।
- पेटेंट की एवरग्रीनिंग मूल पेटेंट समाप्त होने से पहले नए पेटेंट प्राप्त करके पेटेंट की अवधि बढ़ाने की एक रणनीति है। भारत में पेटेंट अधिनियम, 1970 (2005 में संशोधित) की धारा 3(D) ज्ञात पदार्थों के नए रूपों के लिये पेटेंट प्रदान करने पर रोक लगाती है जब तक कि वे प्रभावकारिता में काफी भिन्न न हों। इसलिये भारतीय पेटेंट कानून के तहत एवरग्रीनिंग की अनुमति नहीं है।
- यह गुणवत्ता-सुनिश्चित और किफायती जेनेरिक दवाओं तक निरंतर पहुँच सुनिश्चित करता है।
- अनुदान-पूर्व विरोध को कमज़ोर करने से अनुचित पेटेंट विस्तार हो सकता है, जिससे आवश्यक दवाओं और टीकों तक पहुँच सीमित हो सकती है।
- पूर्व-अनुदान विरोध पेटेंट की एवरग्रीनिंग और अनुचित एकाधिकार देने जैसी प्रथाओं के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप में कार्य करता है।
- फार्मा लॉबिंग:
- चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि संशोधित नियम फार्मास्युटिकल कंपनियों के पक्ष में हैं और अनुदान-पूर्व विरोध के भारत के विशेष प्रावधान को कमज़ोर कर सकते हैं।
- वैश्विक प्रभाव:
- आवश्यक दवाओं तक पहुँच का खतरा मरीज़ों को जोखिम में डाल सकता है और जेनेरिक दवा उद्योग को प्रभावित कर सकता है।
- भारत और वैश्विक दक्षिण के मरीज़, जो भारत की किफायती जेनेरिक दवाओं और टीकों के उत्पादन पर काफी हद तक निर्भर हैं, प्रस्तावित परिवर्तनों से असंगत रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
- आवश्यक दवाओं तक पहुँच का खतरा मरीज़ों को जोखिम में डाल सकता है और जेनेरिक दवा उद्योग को प्रभावित कर सकता है।
- सस्ती दवाओं तक पहुंच प्रतिबंधित करना:
सफल पूर्व-अनुदान विरोध के उल्लेखनीय उदाहरण:
- रोगी समूहों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा अनुदान-पूर्व विरोध के कारण अक्सर "नावेल इन्वेंशन" के कमज़ोर दावों के आधार पर बड़ी दवा कंपनियों द्वारा मांगे गए पेटेंट विस्तार को अस्वीकार कर दिया गया है।
- टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल फ्यूमरेट (TDF):
- वर्ष 2006 में रोगी समूहों ने दवा में एक ज्ञात यौगिक के उपयोग के कारण सहारा के TDF पेटेंट का विरोध किया।
- नेविरापीन:
- बोहरिंगर इंगेलहेम के बाल चिकित्सा नेविरापीन पेटेंट को अनुदान-पूर्व विरोध के बाद वर्ष 2008 में अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि यह प्रभावकारिता में महत्त्वपूर्ण सुधार दिखाने में विफल रहा था।
- ग्लिवेक:
- नोवार्टिस की कैंसर दवा ग्लिवेक को वर्ष 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकृति का सामना करना पड़ा, क्योंकि इसे मौज़ूदा दवा, इमैटिनिब का संशोधित संस्करण माना गया था।
- टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल फ्यूमरेट (TDF):
पेटेंट:
- परिचय:
- पेटेंट किसी आविष्कार के लिये एक वैधानिक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष खोज या नए आईडिया के लिये दिया जाता है। यह किसी भी प्रोडक्ट, डिज़ाइन या प्रोसेस के लिये दिया जा सकता है, जिससे कोई अन्य इस पेटेंट की नकल ना कर सके।
- पेटेंट संरक्षण एक क्षेत्रीय अधिकार है और इसलिये यह केवल भारत के क्षेत्र के अंदर ही प्रभावी है। वैश्विक पेटेंट की कोई अवधारणा नहीं है।
- किसी आविष्कार के लिये पेटेंट योग्यता मानदंड:
- यह नवीन होना चाहिये।
- इसमें एक आविष्कारी कदम (तकनीकी उन्नति) शामिल होना चाहिये।
- औद्योगिक अनुप्रयोग में सक्षम।
- पेटेंट प्रदान करने का विरोध :
- भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 एक व्यक्ति को दो चरणों में पेटेंट के खिलाफ आपत्तियाँ दर्ज करने की अनुमति देता है: अनुदान-पूर्व विरोध और अनुदान-पश्चात विरोध।
- अनुदान-पूर्व विरोध:
- विरोध दर्ज करना:
- कोई भी व्यक्ति पेटेंट आवेदन के बाद लेकिन अनुदान दिये जाने से पूर्व लिखित रूप में अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज करा सकता है। इसके लिये अनुदान संबंधी संपूर्ण विशिष्टताओं की आवश्यकता होती है।
- विरोध का आधार:
- अनुचित तरीके से प्राप्ति (किसी आविष्कार पर अनुचित तरीके से अधिकार जताना), पूर्व प्रकाशन, पूर्व दावा, पूर्व ज्ञान अथवा उपयोग, स्पष्टता, गैर-पेटेंट योग्य विषय वस्तु, अपर्याप्त विवरण, गैर-प्रकटीकरण (आवश्यक विवरणों का खुलासा करने में विफलता), गलत प्रकटीकरण, समय सीमा (पारंपरिक आवेदन का पहले पेटेंट आवेदन किये जाने से 12 महीने के भीतर दाखिल नहीं कराया जाना), पारंपरिक ज्ञान (स्वदेशी सामुदायिक ज्ञान का उपयोग करके आविष्कार का पूर्वानुमान लगाया जाना)।
- विरोध दर्ज करना:
- अनुदान-पश्चात विरोध:
- पहले से ही जारी किये गए पेटेंट के प्रकाशन पर एक लिखित विरोध दर्ज किया जा सकता है, लेकिन इसे भारतीय पेटेंट जर्नल में पेटेंट के प्रकाशन के 12 महीने के भीतर नियंत्रक को सौंप दिया जाना चाहिये।
- इसके विरोध का आधार अनुदान-पूर्व विरोध के समान ही है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारतीय एकस्व अधिकार नियम(Patent Law) 1970 की धारा 3(D) में वर्ष 2005 बलात् संशोधन करने वाली उन परिस्थितियों को स्पष्ट करते हुए, यह विवेचना कीजिये की इसके कारण सर्वोच्च न्यायालय ने नावराटिस की ग्लाईवेक(Glivec) के एकस्व के अधिकार आवेदन को किस प्रकार अस्वीकार किया। (2013) |