डेली न्यूज़ (11 May, 2023)



RBI का स्वर्ण भंडार

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का विदेशी मुद्रा एवं स्वर्ण भंडार, अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS), SDR, IMF

मेन्स के लिये:

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एवं इसके प्रबंधन में केंद्रीय बैंक की भूमिका

चर्चा में क्यों? 

विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर 2022 से मार्च 2023 तक वित्त वर्ष 2022-23 में RBI का स्वर्ण भंडार 794.64 मीट्रिक टन तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2021-22 (760.42 मीट्रिक टन) से लगभग 5% अधिक है।

RBI द्वारा स्वर्ण की खरीद:

  • कुल भंडार:  
    • RBI के अनुसार, लगभग 437.22 टन स्वर्ण विदेशों में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के पास भंडारित है तथा लगभग 301.10 टन स्वर्ण का भंडार घरेलू स्तर पर किया गया है।
    • 31 मार्च, 2023 तक देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 578.449 बिलियन डॉलर था और स्वर्ण भंडार 45.2 बिलियन डॉलर आँका गया था।
      • मूल्य के संदर्भ में (अमेरिकी डॉलर में) मार्च 2023 के अंत तक कुल विदेशी मुद्रा भंडार में स्वर्ण की हिस्सेदारी बढ़कर लगभग 7.81% हो गई।
    • RBI ने वित्त वर्ष 2023 में 34.22 टन स्वर्ण (वित्त वर्ष 2022 में 65.11 टन स्वर्ण) खरीदा।
      • वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2021 के मध्य RBI का स्वर्ण भंडार लगभग 228.41 टन था।
    • विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) के क्षेत्रीय CEO (भारत) के अनुसार, RBI उन शीर्ष पाँच केंद्रीय बैंकों में शामिल है जिनके द्वारा स्वर्ण की खरीद की जा रही है

अन्य बैंकों द्वारा स्वर्ण की खरीद:

  • विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council- WGC) के अनुसार, मुख्य रूप से उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों द्वारा स्वर्ण की खरीद की जा रही है।
    • WGC की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने सितंबर 2019 के बाद से अपने स्वर्ण भंडार में पहली वृद्धि दर्ज की।
    • चीन ऐतिहासिक रूप से स्वर्ण का एक बड़ा खरीदार रहा है।
  • वर्ष 2022 के दौरान मिस्र, कतर, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान सहित मध्य-पूर्व के केंद्रीय बैंकों ने अपने स्वर्ण भंडार में काफी वृद्धि की है।
  • वर्ष 2022 के अंत तक उज़्बेकिस्तान का केंद्रीय बैंक स्वर्ण का खरीदार बन गया, जिसके स्वर्ण भंडार में 34 टन की वृद्धि हुई।
  • जनवरी-मार्च 2023 में सिंगापुर का मौद्रिक प्राधिकरण अपने स्वर्ण भंडार में 69 टन की वृद्धि के बाद स्वर्ण की सबसे बड़ी एकल खरीदार संस्था बन गया।

RBI द्वारा स्वर्ण की जमाखोरी का कारण:

  • नकारात्मक ब्याज दर के खिलाफ प्रतिरोधी रणनीति: 
    • जब RBI के पास अपने भंडार में विदेशी मुद्रा (USD) होती है, तो वह अमेरिकी सरकार के बॉण्ड्स, जिस पर यह ब्याज अर्जित करता है, को खरीदने के लिये इन डॉलर्स का निवेश करता है।
    • हालाँकि अमेरिका में मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण इन बॉण्ड्स पर वास्तविक ब्याज नकारात्मक हो गया है।
    • वास्तविक ब्याज दर वह ब्याज़ दर है जो निवेशक, बचतकर्त्ता या ऋणदाता को मुद्रास्फीति (वास्तविक ब्याज = मामूली ब्याज -मुद्रास्फीति दर) के समायोजन के बाद प्राप्त (या प्राप्त करने की अपेक्षा) होती है। 
    • इस प्रकार की मुद्रास्फीति के समय स्वर्ण की मांग बढ़ जाती है और इसका धारक होने के कारण RBI तनावग्रस्त आर्थिक परिस्थितियों में भी लाभांश प्राप्त कर सकता है।
  • भू-राजनीतिक अनिश्चितता में सतर्कता: रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका-चीन के मध्य तनाव के चलते उत्पन्न अनिश्चितताओं के कारण रूस एवं चीन जैसे कुछ प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा डॉलर की स्वीकृति में गिरावट देखी गई है।
    • यदि RBI के पास डॉलर है और अन्य मुद्राओं की तुलना में इसका मूल्य कम होता है, तो यह RBI के लिये घाटा है।
    • हाँलाकि स्वर्ण के आंतरिक मूल्य और इसकी सीमित आपूर्ति के कारण मुद्रा के अन्य रूपों की तुलना में स्वर्ण अपने मूल्य को अधिक समय तक बनाए रखने में सक्षम है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता: स्वर्ण एक मज़बूत, सुरक्षित, तरल संपत्ति है और संकट के समय एवं मूल्य के दीर्घकालिक भंडार के रूप में  यह बेहतर प्रदर्शन करता है।
    • स्वर्ण की एक अंतर्राष्ट्रीय कीमत है जो पारदर्शी होती है और इसका कभी भी कारोबार किया जा सकता है।

अर्थव्यवस्था में स्वर्ण का महत्त्व:  

  • आरक्षित मुद्रा के रूप में सोना: 20वीं सदी के अधिकांश समय के लिये सोने का प्रयोग विश्व की आरक्षित मुद्रा के रूप में किया जाता था। वर्ष 1971 तक अमेरिका ने सोने को मानक के रूप में प्रयोग किया था, जहाँ कागज़ी मुद्रा का समर्थन करने के लिये सोने का समतुल्य भंडार होना आवश्यक था।
    • अमेरिकी डॉलर और अन्य मुद्राओं की अस्थिरता के कारण कुछ अर्थशास्त्री सोने के मानक पर लौटने की वकालत करते हैं क्योंकि इसके प्रयोग को बंद कर दिया गया है।
  • आंतरिक मूल्य: इसके अंतर्निहित मूल्य और सीमित आपूर्ति के कारण मुद्रास्फीति की अवधि में सोने की मांग में वृद्धि देखी जाती है। मुद्रा के अन्य रूपों की तुलना में सोना अपने मूल्य को अधिक समय तक बनाए रखने में सक्षम है क्योंकि इसे घटाया नहीं जा सकता है।
  • मुद्रा की कीमत में वृद्धि के लिये सोना: किसी देश की मुद्रा की कीमत तब कम होने लगती है जब उसका आयात निर्यात से अधिक हो जाता है। एक देश जो शुद्ध निर्यातक है, उसकी मुद्रा की कीमत में वृद्धि देखी जाएगी।
    • जैसा कि यह देश के कुल निर्यात की कीमत बढ़ाता है, एक देश जो स्वर्ण का निर्यात करता है या स्वर्ण के भंडार तक पहुँच रखता है, स्वर्ण की कीमतों में वृद्धि होने पर उसकी मुद्रा की मज़बूती में वृद्धि देखी जाएगी।
  • जी-सेक के विकल्प के रूप में सोना: किसी देश का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा (FDI के मामले में) के प्रभाव से बाज़ार को निष्फल करने के लिये एक माध्यम के रूप में स्वर्ण का उपयोग कर सकता है या खुले बाज़ार परिचालन (OMO) के लिये एक माध्यम के रूप में उपयोग कर सकता है।
    • इन दोनों कार्यों में जी-सेक (G-Sec) के स्थान पर स्वर्ण का उपयोग किया जा सकता है।

नोट:

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 मुद्राओं, लिखतों, जारीकर्त्ताओं और प्रतिपक्षों के व्यापक मापदंडों के भीतर विभिन्न विदेशी मुद्रा आस्तियों एवं स्वर्ण भंडार का उपयोग करने के लिये व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रीलिम्स:

प्रश्न. सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण योजना' एवं 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना' का/के उद्देश्य क्या है/हैं?

  1. भारतीय गृहस्थों के पास निष्क्रिय पड़े स्वर्ण को अर्थव्यवस्था में लाना
  2. स्वर्ण एवं आभूषण के क्षेत्र में एफ-डी-आई को प्रोत्साहित करना
  3. स्वर्ण-आयात पर भारत की निर्भरता में कमी लाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)  


प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मद समूह सम्मिलित है?

(a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस-डी-आर) तथा विदेशों से ऋण
(b) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस-डी-आर)
(c) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विश्व बैंक से ऋण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस-डी-आर)
(d) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: (b) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कार्बन सीमा समायोजन तंत्र

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संघ, कार्बन ट्रेड, कार्बन उत्सर्जन, ETS, ग्रीन एनर्जी, डीकार्बोनाइज़ेशन

मेन्स के लिये:

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र और भारत पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने घोषणा की है कि कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM), जो गैर-हरित या पर्यावरणीय रूप से अस्थिर प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके बनाए गए सामानों के आयात पर कार्बन टैक्स लगाएगा, को अक्तूबर 2023 से संक्रमणकालीन चरण में पेश किया जाएगा।

  • CBAM 1 जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ में चुनिंदा आयातों पर 20-35% कर आरोपित करेगा।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र:

  • परिचय: 
    • CBAM "फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज" का एक घटक है, जो वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कम-से-कम 55% की कटौती करके यूरोपीय जलवायु कानून का पालन करने की यूरोपीय संघ की रणनीति है।
    • CBAM नीति उपकरण है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करके कार्बन उत्सर्जन को कम करना है कि आयातित सामान यूरोपीय संघ के भीतर उत्पादित उत्पादों के समान कार्बन लागत के अधीन हैं।
  • कार्यान्वयन: 
    • CBAM को वार्षिक आधार पर आयातकों को यूरोपीय संघ में आयातित वस्तुओं की मात्रा के साथ-साथ उनके निहित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की घोषणा करने पर लागू किया जाएगा।
    • इन उत्सर्जन को ऑफसेट करने हेतु आयातकों को CBAM प्रमाणपत्रों की एक समान संख्या को सरेंडर करने की आवश्यकता होगी, जिसकी कीमत EU एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) भत्ते के साप्ताहिक औसत नीलामी मूल्य प्रति टन यूरो CO2 उत्सर्जन पर आधारित होगी।
  • उद्देश्य: 
    • CBAM यह सुनिश्चित करेगा कि इसके जलवायु लक्ष्य कार्बन-गहन आयात के संकट में न पड़ें और शेष विश्व में स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • महत्त्व: 
    • यह गैर-यूरोपीय संघ के देशों को और अधिक कड़े पर्यावरणीय नियमों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है जिससे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की संभावना है।
    • यह कंपनियों को पर्यावरण संबंधी कम सख्त नियमों वाले देशों में स्थानांतरित होने से रोक कर कार्बन उत्सर्जन को रोक सकता है।
    • CBAM से उत्पन्न राजस्व का उपयोग यूरोपीय संघ की जलवायु नीतियों का समर्थन करने के लिये किया जाएगा, इससे अन्य देश भी हरित ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

भारत पर प्रभाव: 

  • भारत के निर्यात पर प्रभाव: 
    • इसका भारत द्वारा यूरोपीय संघ को किये जाने वाले लौह, इस्पात और एल्युमीनियम जैसे उत्पादों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस प्रणाली के तहत इन्हें अतिरिक्त जाँच का सामना करना पड़ेगा।
    • भारत द्वारा यूरोपीय संघ को लौह अयस्क और इस्पात का निर्यात किया जाता है, इन पर 19.8% से लेकर 52.7% तक कार्बन कर लगाए जाने से व्यापार पर काफी प्रभावित होने की संभावना है।
    • 1 जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की हर खेप पर कार्बन कर वसूलना शुरू कर देगा।
  • कार्बन तीव्रता और उच्च शुल्क: 
    • भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है क्योंकि ऊर्जा खपत में कोयले का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है।
      • भारत में कोयले से उत्पन्न होने वाली विद्युत का अनुपात 75% के करीब है जो कि यूरोपीय संघ (15%) और वैश्विक औसत (36%) से काफी अधिक है।
    • अतः लौह और इस्पात तथा एल्युमीनियम का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उत्सर्जन भारत के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि उच्च उत्सर्जन के कारण यूरोपीय संघ को उच्च कर का भुगतान करना पड़ेगा।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धा के लिये खतरा: 
    • यह प्रारंभ में कुछ क्षेत्रों को प्रभावित करेगा, लेकिन आने वाले समय में अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकता है, जैसे कि परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, जैविक रसायन, फार्मा दवाएँ और वस्त्र, जो यूरोपीय संघ द्वारा भारत से आयात किये जाने वाले शीर्ष 20 उत्पादों में शामिल हैं।
    • चूँकि भारत में कोई स्वदेशी कार्बन मूल्य निर्धारण योजना नहीं है, इससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ने का जोखिम होता है, क्योंकि कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली वाले अन्य देशों को न्यूनतम कार्बन कर का भुगतान करना पड़ सकता है अथवा उन्हें छूट भी मिल सकती है।

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CBAM के प्रभाव को कम करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत: 
    • सरकार के पास राष्ट्रीय इस्पात नीति जैसी योजनाएँ हैं, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का उद्देश्य भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है, लेकिन वह कार्बन दक्षता ऐसी योजनाओं के उद्देश्यों से परे है।
    • सरकार इन योजनाओं को डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत के साथ शामिल कर सकती है।
      • डीकार्बोनाइज़ेशन का तात्पर्य परिवहन, विद्युत उत्पादन, निर्माण और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है।
  • कर कटौती के लिये यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता:
    • भारत अपने ऊर्जा करों को कार्बन मूल्य के समतुल्य मानने के लिये यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता कर सकता है, जो इसके निर्यात को CBAM के प्रति कम संवेदनशील बनाएगा।
    • उदाहरण के लिये भारत यह तर्क दे सकता है कि कोयले पर उसका कर, कार्बन उत्सर्जन की आंतरिक लागत को निर्मित करने का एक उपाय है, जो कार्बन कर के समकक्ष है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण: 
    • भारत के उत्पादन क्षेत्र को अधिक कार्बन कुशल बनाने में सहायता के लिये भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और वित्तपोषण तंत्र को स्थानांतरित करने हेतु यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता करनी चाहिये।
      • इसे वित्तपोषित करने का एक तरीका यह है कि भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं का समर्थन करने के लिये यूरोपीय संघ को अपने CBAM राजस्व का एक हिस्सा अलग रखने का प्रस्ताव दिया जाए।
      • साथ ही भारत को भी नई व्यवस्था के लिये उसी तरह तैयारी प्रारंभ कर देनी चाहिये जैसे चीन और रूस कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम स्थापित कर कर रहे हैं।
  • हरित उत्पादन को प्रोत्साहन:
    • भारत तैयारी प्रारंभ करने के साथ-साथ स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित करके उसे हरा-भरा और सतत् बनाने का अवसर हासिल कर सकता है, जो भविष्य में अधिक कार्बन के प्रति जागरूक और प्रतिस्पर्द्धी दोनों रूप से भारत को लाभान्वित करेगा। 
    • अपने विकासात्मक लक्ष्यों एवं आर्थिक आकांक्षाओं से समझौता किये बिना अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली और इसके शुद्ध शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करना है।
  • यूरोपीय संघ का टैक्स फ्रेमवर्क: 
    • भारत को G-20, 2023 के नेता के रूप मे अन्य देशों की वकालत करने के लिये अपनी स्थिति का उपयोग करना चाहिये और उनसे यूरोपीय संघ के कार्बन टैक्स ढाँचे का विरोध करने का आग्रह करना चाहिये।
    • भारत को न केवल अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव पर भी विचार करना चाहिये क्योंकि CBAM का प्रभाव उन गरीब देशों पर पड़ेगा जो खनिज संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

निष्कर्ष:

  • CBAM आयातित वस्तुओं से कार्बन उत्सर्जन को कम करने और एक निष्पक्ष-व्यापार वातावरण बनाने की नीति है।
  • यह अन्य देशों को सख्त पर्यावरणीय नियमों और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से किसने अपने नागरिकों के लिये डेटा संरक्षण (डेटा प्रोटेक्शन) और प्राइवेसी के लिये 'सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन)' नामक एक कानून अप्रैल 2016 में अपनाया और उसका 25 मई, 2018 से कार्यान्वयन शुरू कर दिया? (2019) 

(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) कनाडा
(c) यूरोपीय संघ 
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (c) 


प्रश्न 2. 'व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड एंड इनवेस्टमेंट एग्रीमेंट/BTIA)' कभी-कभी समाचारों में भारत एवं निम्नलिखत में से किस के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पढ़ता है। (2017) 

(a) यूरोपीय संघ
(b) खाड़ी सहयोग परिषद
(c) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन
(d) शंघाई सहयोग संगठन

उत्तर: (a) 

स्रोत: द हिंदू


अपशिष्ट तेल पर ड्राफ्ट EPR अधिसूचना

प्रिलिम्स के लिये:

विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, चक्रीय अर्थव्यवस्था

मेन्स के लिये:

अपशिष्ट तेल प्रबंधन का महत्त्व और EPR का संभावित प्रभाव, चक्रीय अर्थव्यवस्था में ईपीआर का महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने अपशिष्ट तेल पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) पर एक ड्राफ्ट अधिसूचना पेश की।

EPR: 

  • यह उत्पादकों को उनके जीवन चक्र के दौरान उनके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार बनाता है।
  • EPR का उद्देश्य बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और नगरपालिकाओं पर बोझ कम करना है।
  • यह पर्यावरण की लागत को उत्पाद की कीमतों में एकीकृत करता है और पर्यावरण की दृष्टि से अच्छे उत्पादों के डिज़ाइन को प्रोत्साहित करता है।
  • EPR विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पर लागू होता है, जिसमें प्लास्टिक अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट और बैटरी अपशिष्ट शामिल है।
  • ई-वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के तहत भारत में पहली बार EPR की अवधारणा प्रस्तुत की गई।

अपशिष्ट तेल पर ड्राफ्ट EPR अधिसूचना:

  • परिचय: 
    • अपशिष्ट तेल पर EPR से तात्पर्य अपशिष्ट तेल प्रबंधन की चक्रीयता में सुधार करना है। अपशिष्ट तेल एक संदूषक है जिसमें हानिकारक पदार्थ होते हैं जो मीठे पानी और मृदा को प्रदूषित कर सकते हैं।
      • अपशिष्ट तेल एक संदूषक के रूप में कार्य कर सकता है क्योंकि इसमें बेंजीन, जिंक, कैडमियम और अन्य अशुद्धियाँ होती हैं जो मीठे पानी को प्रदूषित करने की क्षमता रखती हैं।
  • उद्देश्य: 
    • प्रदूषण को रोकना तथा अपशिष्ट तेल संग्रह एवं पुनर्चक्रण को औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत लाना।
  • अनुशंसा: 
  • प्रयोज्यता: 
    • EPR अपशिष्ट तेल संबंधी उत्पादक और बड़े उत्पादकों (जैसे उद्योग, रेलवे, परिवहन कंपनियों, विद्युत पारेषण कंपनियों आदि) पर लागू होता है।
  • EPR लक्ष्य: 
    • वर्ष 2024-25 से अपशिष्ट तेल पुनर्चक्रण लक्ष्यों में धीरे-धीरे वृद्धि करना।
    • आधार वर्ष लक्ष्य 10% निर्धारित किया गया है, जो वर्ष 2029 तक सालाना 10% बढ़ रहा है।
    • वार्षिक बेचे जाने वाले या आयात किये जाने वाले लूब्रिकेंट तेल की मात्रा के आधार पर भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करना।
  • प्रावधान और उत्तरदायित्व: 
    • EPR प्रमाणपत्र बनाना, उपलब्ध मात्रा की गणना और लेन-देन विवरण साझा करना।
    • उत्पादकों, आयातकों, एजेंटों, पुनर्चक्रणकर्ताओं आदि के लिये उत्तरदायित्वों का स्पष्ट सीमांकन करना।
    • पंजीकरण, रिटर्न दाखिल करने और उत्पादित या उत्पन्न तेल का पता लगाने के लिये ऑनलाइन पोर्टल।
    • भारतीय मानक ब्यूरो को रि-रिफाइंड तेल के लिये आवश्यक मानक स्थापित करने का कार्य सौंपा गया है।
  • चुनौतियाँ: 
  • विशेषज्ञ राय: 
    • अपशिष्ट तेल पर EPR के लिये गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा सकारात्मक विचार रखना।
    • चूककर्त्ताओं के लिये कार्यान्वयन, निगरानी, और दंड पर चिंता व्यक्त करना।

सर्कुलर इकॉनमी की दिशा में भारत की प्रगति:

  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिये विभिन्न नियमों एवं नीतियों को अधिसूचित करना, जैसे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022; ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022; बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 आदि।
  • कृषि, गतिशीलता, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसे 11 प्रमुख क्षेत्रों में रैखिक से चक्रीय अर्थव्यवस्था में संक्रमण हेतु व्यापक कार्ययोजना तैयार करने के लिये संबंधित मंत्रालयों के नेतृत्त्व में 11 समितियों का गठन करना।
  • नीति आयोग ने 'राष्ट्रीय पुनर्चक्रण के माध्यम से सतत् विकास' पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया।
  • संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर सर्वोत्तम प्रथाओं और ज्ञान का आदान-प्रदान करने हेतु यूरोपीय संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना।
  • अपशिष्ट प्रबंधन हेतु चक्रीय अर्थव्यवस्था समाधान विकसित करने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय नवप्रवर्तकों का समर्थन करना, जैसे कि वर्ल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल एनर्जी।
  • व्यवसायों और उद्योगों को उनकी उत्पादन प्रणालियों एवं आपूर्ति शृंखलाओं में चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों तथा प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत की प्रगति अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है और कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे जागरूकता का आभाव, डेटा अंतराल, नियामक बाधाएँ, ढाँचागत बाधाएँ तथा व्यवहारिक जड़ता।
    • हालाँकि सभी हितधारकों और निरंतर सीखने एवं नवाचार के मज़बूत प्रयासों के साथ भारत लचीली तथा समावेशी चक्रीय अर्थव्यवस्था के अपने दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकता है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था

  • परिचय: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादों को स्थायित्त्व, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के लिये अभिकल्पित किया जाता है एवं इस प्रकार लगभग प्रत्येक चीज़ का पुन: उपयोग, पुनर्निर्माण व कच्चे माल के रूप में पुनर्चक्रण किया जाता है अथवा ऊर्जा स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
    • इसमें 6 R की अवधारणा शामिल है- Reduce (सामग्री के उपयोग को कम करना), Reuse (पुनः उपयोग), Recycle (पुनर्चक्रण), Refurbishment (पुनर्निर्माण), Recover (पुनरुद्धार) और Repairing (मरम्मत)।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अपशिष्ट को न्यूनतम और उपयोगिता को अधिकतम करने पर केंद्रित है तथा एक ऐसे उत्पादन मॉडल का आह्वान करती है जो अधिकतम मूल्य/महत्त्व को बनाए रखने पर लक्षित हो ताकि एक ऐसे तंत्र का निर्माण हो सके जो संवहनीय, दीर्घ जीवन, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती हो।
    • यद्यपि भारत में हमेशा से पुनर्चक्रण एवं पुन:उपयोग की संस्कृति रही है, तीव्र आर्थिक वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के परिदृश्य में इसके लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना अब अधिक अनिवार्य हो गया है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अधिक संवहनीय उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न के उभार की ओर ले जा सकती है और इस प्रकार विकासशील तथा विकसित देशों को सतत् विकास के एजेंडा 2030 के अनुरूप आर्थिक विकास व समावेशी एवं संवहनीय औद्योगिक विकास (Inclusive and Sustainable Industrial Development- ISID) प्राप्त करने के अवसर प्रदान कर सकती है।

Circular-Economy

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्त्व' आरंभ किया गया था? (2019) 

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (विनिर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-वेस्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जन सुरक्षा योजनाओं के आठ वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), अटल पेंशन योजना (APY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), अटल पेंशन योजना (APY), इन योजनाओं का महत्त्व, कल्याणकारी योजनाएँ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में तीन सामाजिक सुरक्षा (जन सुरक्षा) योजनाओं- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और अटल पेंशन योजना (APY) ने सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के 8 वर्ष पूरे किये।

  • PMJJBY और PMSBY को यह सुनिश्चित करने के लिये लॉन्च किया गया था कि देश के असंगठित वर्ग के लोग वित्तीय रूप से सुरक्षित हों, जबकि APY को वृद्धावस्था में अत्यावश्यकताओं को कवर करने के लिये पेश किया गया था।

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): 

  • परिचय:  
    • यह दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता के लिये कवरेज की पेशकश करते हुए प्रति वर्ष नवीकरणीय एक वर्षीय दुर्घटना बीमा योजना है।
  • कार्यान्वयन:  
  • पात्रता:  
    • बचत बैंक या डाकघर खाता रखने वाले 18-70 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति नामांकन के हकदार हैं।
  • लाभ:  
    • दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता हेतु 20 रुपए प्रतिवर्ष के प्रीमियम के बदले 2 लाख रुपए का आकस्मिक मृत्यु और विकलांगता कवर (आंशिक विकलांगता के मामले में एक लाख रुपए)।
  • उपलब्धियाँ:  
    • इस योजना के तहत अप्रैल 2023 तक संचयी नामांकन 34.18 करोड़ से अधिक रहा है और 1,15,951 दावों हेतु 2,302.26 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया है।

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY):  

  • परिचय:  
    • यह एक वर्ष की जीवन बीमा योजना है जो किसी भी कारण से मृत्यु हेतु कवरेज प्रदान करती है, यह वार्षिक आधार पर नवीकरणीय है। 
  • कार्यान्वयन:  
    • इसे LIC या किसी अन्य जीवन बीमा कंपनी द्वारा बैंकों/डाकघर की साझेदारी में प्रशासित किया जाता है।
  • पात्रता:  
    • बचत बैंक या डाकघर खाता रखने वाले 18-50 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति योजना के तहत नामांकन के हकदार हैं।
  • लाभ:  
    • किसी भी कारण से मृत्यु के मामले में 436/- रुपए प्रतिवर्ष के प्रीमियम के बदले 2 लाख रुपए का जीवन बीमा।  
  • उपलब्धियाँ:  
    • योजना के तहत अप्रैल 2023 तक संचयी नामांकन 16.19 करोड़ से अधिक रहा है और 6,64,520 दावों हेतु 13,290.40 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया है।

अटल पेंशन योजना (APY): 

  • परिचय:
    • इसे सभी भारतीयों, विशेष रूप से गरीबों, वंचितों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों हेतु सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने के लिये शुरू किया गया था। 
    • यह असंगठित क्षेत्र के लोगों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने और भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सरकार की एक पहल है।
  • कार्यान्वयन:  
  • पात्रता:  
    • 18 से 40 वर्ष की आयु के सभी बैंक खाताधारक (चयनित पेंशन राशि के आधार पर किये जाने वाले योगदान में भिन्नता)।
  • लाभ:  
    • इस योजना से जुड़ने के बाद किये गए योगदान के आधार अभिदाता को 60 वर्ष की आयु पूरी होने पर गारंटीकृत न्यूनतम 1000 से लेकर 5000 रुपए की मासिक पेंशन प्रदान की जाएगी।
  • भुगतान आवृत्ति:  
    • अभिदाता मासिक/तिमाही/छमाही आधार पर अटल पेंशन योजना में योगदान कर सकते हैं।
  • निकासी प्रक्रिया:  
    • सरकारी सह-योगदान और उस पर वापसी/ब्याज की कटौती के बाद अभिदाता कुछ शर्तों के अधीन स्वेच्छा से अटल पेंशन योजना से संबद्धता खत्म कर सकते हैं।
  • उपलब्धियाँ:  
    • अप्रैल 2023 तक 5 करोड़ से अधिक व्यक्तियों ने APY की सदस्यता ली है।

इन योजनाओं का महत्त्व:  

  • ये सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ नागरिकों के कल्याण के लिये समर्पित हैं जो मानव जीवन को अप्रत्याशित जोखिमों/हानि और वित्तीय अनिश्चितताओं से सुरक्षित करने की आवश्यकताओं को चिह्नित करती हैं।
  • PMJJBY और PMSBY लोगों को कम लागत वाले जीवन/दुर्घटना बीमा कवर तक पहुँच प्रदान करते हैं, APY वृद्धावस्था में नियमित पेंशन पाने के लिये वर्तमान में बचत करने का अवसर प्रदान करता है।
  • पिछले सात वर्षों में इन योजनाओं में नामांकित और लाभान्वित होने वालों की संख्या इन योजनाओं की सफलता का प्रमाण है।
  • न्यूनतम लागत वाली बीमा योजनाएँ और गारंटीड पेंशन योजनाएँ यह सुनिश्चित कर रही हैं कि वित्तीय सुरक्षा, जो पहले कुछ चुनिंदा लोगों को उपलब्ध थी, अब समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच रही हैं।

भारत सरकार द्वारा शुरू की गई अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. यह एक न्यूनतम गारंटित पेंशन योजना है, जो मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को लक्ष्य बनाती है।
  2. परिवार का केवल एक ही व्यक्ति इस योजना में शामिल हो सकता है।
  3. अभिदाता (सब्सक्राइबर) की मृत्यु के पश्चात् जीवनसाथी को आजीवन पेंशन की समान राशि गारंटित रहती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (C)

स्रोत : पी.आई.बी.


मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र (UN), मातृ मृत्यु दर अनुपात, रक्तस्राव, जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK), लक्ष्य

मेन्स के लिये:

मातृ और शिशु मृत्यु के प्रमुख कारण, मातृ और शिशु स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) की एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि वर्ष 2015 के बाद से प्रत्येक वर्ष गर्भावस्था, प्रसव या जन्म के पहले सप्ताह के दौरान मरने वाली महिलाओं और शिशुओं की संख्या में आ रही कमी में बाधा उत्पन्न हुई है

प्रमुख बिंदु  

  • वैश्विक मातृ और नवजात स्वास्थ्य चुनौतियाँ:  
    • रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत मातृ मृत्यु, स्टिलबर्थ/मृत जन्म और नवजात मृत्यु के वैश्विक बोझ में सबसे आगे है, जो कुल मृत्यु का 17% है।
      • भारत के बाद वर्ष 2020 में सबसे अधिक निरपेक्ष मातृ और नवजात मृत्यु तथा मृत जन्म वाले देश नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान एवं तंज़ानिया हैं।
    • रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों से पता चलता है कि वर्ष 2000 और 2010 के बीच हुए सुधार वर्ष 2010 के बाद के वर्षों की तुलना में तेज़ थे, साथ ही यह भी दर्शाया गया है कि वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अगले दशक में यह कैसा होना चाहिये।
  • प्रवृत्ति:  
    • मातृ मृत्यु दर अनुपात (Maternal Mortality Ratio- MMR): 
      • MMR में वर्ष 2000 और 2009 के बीच 2.8% की दर से वार्षिक कमी देखी गई, जो वर्ष 2010 एवं 2020 के बीच घटकर 1.3% हो गई है।
        • मातृ मृत्यु अनुपात किसी दी गई जनसंख्या या क्षेत्र में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु की संख्या को संदर्भित करता है।
        • यह गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य एवं कल्याण का महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
      • प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 70 मौतों के MMR के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अगले दशक में इस सूचक को 11.9% तक कम करने हेतु सुधार की आवश्यकता है।
    • स्टिलबर्थ रेट (SBR):  
      • SBR वर्ष 2000 और 2009 के बीच 2.3% एवं वर्ष 2010 और 2021 के बीच 1.8% कम हो गया था। 
        • प्रति 1,000 जन्मों पर ऐसे बच्चों का जन्म जिनके विषय में गर्भावस्था के 28 सप्ताह अथवा उसके बाद के समय में भी बच्चे के विषय में कोई संकेत नहीं मिल रहे होते हैं, SBR कहा जाता है।
      • वर्ष 2022 और 2030 के बीच प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 12 से कम मृत जन्मों के वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने के लिये 5.2% की दर से इस प्रकार की मौतों में कमी लाने की आवश्यकता है।
    • नवजात मृत्यु दर (Neonatal Mortality Rate- NMR):  
      • NMR में समान पैटर्न दर्ज किया गया है; वर्ष 2000 और 2009 के बीच 3.2% की कमी, वर्ष 2010 और 2021 के बीच 2.2% की कमी।
        • प्रति 1,000 जीवित जन्मों के बाद जीवन के पहले 28 दिनों के भीतर शिशुओं की मृत्यु की संख्या को नवजात मृत्यु दर कहा जाता है।
      • नवजात मृत्यु दर को पूरी तरह नियंत्रित करने के वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने के लिये वर्ष 2022 और 2030 के बीच NMR को और 7.2% कम करने की आवश्यकता है।
  • सुझाए गए उपाय:  
    • मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाकर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है। सुविधाओं की उपलब्धता का आकलन करने के तीन तरीके हैं: प्रसव-पूर्व देखभाल हेतु कम-से-कम चार बार चिकित्सीय सलाह लेना, जन्म के समय कुशल परिचारक की उपलब्धता और जन्म के बाद पहले दो दिनों के भीतर प्रसवोत्तर देखभाल
      • प्रसव-पूर्व देखभाल कवरेज वर्ष 2010 के 61% से बढ़कर वर्ष 2022 में 68% हो गया है, जिसमें वर्ष 2025 तक 69% की वृद्धि अनुमानित है।
      • वर्ष 2010 और 2022 के बीच जन्म के समय कुशल परिचर (attendant) की सुविधा कवरेज 75% से बढ़कर 86% हो गया है तथा वर्ष 2025 तक 88% तक पहुँचने की उम्मीद है।
      • प्रसवोत्तर देखभाल कवरेज में उच्चतम सुधार देखा गया है, वर्ष 2010 और 2022 के बीच 54% से 66% तक की वृद्धि के साथ वर्ष 2025 तक यह कवरेज 69% तक पहुँचने का अनुमान है। 

मातृ एवं शिशु मृत्यु का प्रमुख कारण:

  • मातृ मृत्यु: 
    • अधिक रक्तस्राव: यह मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण है, जो अक्सर बच्चे के जन्म के दौरान अथवा तत्काल प्रसवोत्तर अवधि में होता है।
    • उच्च रक्तचाप विकार (प्री-एक्लेमप्सिया और एक्लम्पसिया): इन स्थितियों के परिणामस्वरूप अंग विफलता, दौरा पड़ना और यहाँ तक कि मातृ मृत्यु भी हो सकती है।
    • असुरक्षित गर्भपात: ऐसे क्षेत्र जहाँ सुरक्षित और कानूनी गर्भपात तक पहुँच सीमित है, महिलाएँ असुरक्षित प्रक्रियाओं का सहारा लेती हैं जिससे कई जटिलताएँ और मातृ मृत्यु हो सकती है।
    • अन्य कारक: मोटे तौर पर एक-तिहाई महिलाएँ अनुशंसित आठ प्रसव-पूर्व जाँचों में से चार भी नहीं करवाती हैं या फिर उन्हें आवश्यक प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त नहीं होती है, लगभग 270 मिलियन महिलाओं की आधुनिक परिवार नियोजन विधियों तक पहुँच नहीं है।
  • शिशु मृत्यु:
    • जन्म के समय वज़न कम होना: अतिशीघ्र (समय से पूर्व/प्रीटर्म) या जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चे विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, उनमें मृत्यु दर का खतरा अधिक होता है।
    • बर्थ एस्फिक्सिया (जन्म के समय दम घुटना): जब बच्चे को प्रसव के दौरान पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, तो इसका परिणाम बर्थ एस्फिक्सिया हो सकता है, यदि तुरंत उपचार नहीं किया जाता है तो मस्तिष्क क्षति या मृत्यु हो सकती है।
    • आकस्मिक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS): SIDS एक वर्ष से कम उम्र के शिशु की आकस्मिक, अस्पष्टीकृत मृत्यु को संदर्भित करता है, यह सामान्यतः नींद के दौरान होती है।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहलें:

  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): भारत सरकार ने 1 जून, 2011 को यह योजना शुरू की है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव कराने वाली सभी गर्भवती महिलाओं को सिजेरियन सेक्शन सहित बिल्कुल मुफ्त और बिना किसी खर्च के प्रसव कराने का अधिकार देती है।
    • यह पहल नि:शुल्क दवाओं, निदान, रक्त और आहार के अतिरिक्त घर से संस्था तक नि:शुल्क परिवहन जैसे- घर से ले जाने और वापस छोड़ने की सुविधाएँ निर्धारित करती है। वर्ष 2013 में इसे बीमार शिशुओं और प्रसव-पूर्व एवं प्रसवोत्तर जटिलताओं तक विस्तारित किया गया था।
    • जन्म के 30 दिन बाद तक इलाज के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुँचने वाले सभी बीमार नवजातों को इसी पात्रता की श्रेणी में रखा गया है
    • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): इसे वर्ष 2016 में प्रत्येक महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं में गुणवत्तापूर्ण प्रसव-पूर्व देखभाल और उच्च जोखिम गर्भावस्था का पता लगाने हेतु प्रारंभ किया गया था।
    • लक्ष्य: आने वाले वर्षों में MMR (मातृ मृत्यु दर) में और गिरावट लाने के लिये सरकार ने 'लक्ष्य- लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव' लॉन्च किया है।
    • लक्ष्य कार्यक्रम लेबर रूम और मातृत्व ऑपरेशन थिएटर से संबंधित प्रमुख प्रक्रियाओं को मज़बूत करने के लिये एक केंद्रित और लक्षित दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य जन्म के समय देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना और सम्मानजनक मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करना है।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार की विधियाँ:    

  • सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित करना: गरीबी, शिक्षा और लैंगिक असमानता जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को पहचानने और संबोधित करने की आवश्यकता है, जो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
  • गर्भ रक्षा हेल्पलाइन बनाना: विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में माताओं और शिशुओं के लिये गुणवत्तापूर्ण और समय पर स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान को बढ़ाने हेतु, चिकित्सा कर्मियों के सहयोग से ज़िला स्तरीय टास्क फोर्स का गठन करना अनिवार्य है।
    • ये टास्क फोर्स स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवा वितरण और परिणामों को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करेंगे। इसमें गर्भ रक्षा हेल्पलाइन नंबर और एम्बुलेंस तथा मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयाँ शामिल हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये दिल्ली में महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाली पिंक एम्बुलेंस महिला रोगियों के लिये महिलाओं द्वारा प्रबंधित है, यह कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई थी।
  • पोषण और खाद्य सुरक्षा: मातृ और शिशु पोषण में सुधार के लिये नवीन दृष्टिकोणों को लागू करना जैसे कि सामुदायिक उद्यान, पोषक खाद्य कार्यक्रम और मोबाइल एप्लीकेशन जो व्यक्तिगत आहार अनुशंसाएँ प्रदान करते हैं। खाद्य बैंक एवं वाउचर प्रणाली जैसी पहलों के माध्यम से खाद्य असुरक्षा को संबोधित करना भी बेहतर स्वास्थ्य परिणामों में योगदान कर सकता है।
  • स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये माताओं, परिवारों तथा समुदायों को लक्षित करने वाले अभिनव शैक्षिक कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है।
    • आकर्षक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील स्वास्थ्य जानकारी देने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म, मोबाइल एप्लीकेशन एवं इंटरैक्टिव मीडिया का उपयोग करना भी उपयोगी होगा।
    • साथ ही नियमित प्रसव-पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य जाँच को शामिल करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में विशेषकर जरा चिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2020) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत ने धन शोधन निवारण अधिनियम में किया बदलाव

प्रिलिम्स के लिये:

धन शोधन रोकथाम अधिनियम, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

मेन्स के लिये:

धन शोधन से निपटने के लिये भारत में कानूनी और नियामक ढाँचा, धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) और इसके उद्देश्य, अर्थव्यवस्था पर धन शोधन का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?  

भारत ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) के तहत वर्ष 2023 में प्रस्तावित आकलन से पहले खामियों को दूर करने के लिये विभिन्न परिवर्तनों के हिस्से के रूप में धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत आने वाले धन शोधन कानून में बदलाव किये हैं। 

PMLA के तहत बदलाव: 

  • वित्तीय संस्थानों, बैंकिंग कंपनियों अथवा मध्यस्थों जैसी रिपोर्टिंग संस्थाओं द्वारा गैर-सरकारी संगठनों का अधिक प्रकटीकरण।
  • "राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्तियों" को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करना, जिन्हें किसी विदेशी राष्ट्र द्वारा प्रमुख सार्वजनिक कार्य सौंपा गया हैं, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये नो योर कस्टमर (Know Your Customer- KYC) मानदंडों और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्ष 2008 के परिपत्र के साथ एकरूपता लाना।
  • अपने ग्राहकों की ओर से वित्तीय लेन-देन करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कंपनी सचिवों और लागत तथा कार्य लेखाकारों को पेश करने के कार्य को धन शोधन कानून के दायरे में लाना
    • वित्तीय लेन-देन में निम्नलिखित शामिल हैं: 
      • किसी अचल संपत्ति का क्रय-विक्रय।
      • ग्राहक के पैसे, प्रतिभूतियों अथवा अन्य संपत्तियों का प्रबंधन करना।
      • बैंक, बचत या प्रतिभूति खातों का प्रबंधन।
      • कंपनियों के निर्माण, संचालन अथवा प्रबंधन के लिये योगदान संबंधी संगठन।
      • कंपनियों का निर्माण, संचालन या प्रबंधन, सीमित देयता भागीदारी या ट्रस्ट।
      • व्यापारिक संस्थाओं की खरीद और बिक्री।
  • सरकार ने धन शोधन निवारण अधिनियम के लिये गैर-बैंकिंग रिपोर्टिंग संस्थाओं की सूची बनाई है। जो आधार के माध्यम से अपने ग्राहकों की पहचान को सत्यापित करेंगी, जिसमें अमेज़ॅन पे (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, आदित्य बिरला हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और IIFL फाइनेंस लिमिटेड जैसी 22 वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं। 

परिवर्तन से संबंधित मामले:

  • परिवर्तन में रिपोर्टिंग संस्थाओं को सभी लेन-देन के रिकॉर्ड बनाए रखने और प्रत्येक निर्दिष्ट लेन-देन से पहले KYC कराने की आवश्यकता होती है। अनुपालन में विफल रहने पर दंड एवं जाँच एजेंसियों द्वारा कार्रवाई की जा सकती है।
  • PMLA के अधीन न्यूनतम दोषसिद्धि दर, लेकिन एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया से गुज़रना
  • PMLA के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं की नई परिभाषा में वकीलों और वैधानिक पेशेवरों को बाहर करने की कुछ पेशेवरों द्वारा आलोचना की गई है।
  • कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि इन नए निगमित पेशेवरों को पूर्व से ही संसद के विभिन्न अधिनियमों के तहत गठित पेशेवर निकायों द्वारा विनियमित किया जाता है, जिससे ये उपाय अनावश्यक हो जाते हैं।

PMLA, 2002: 

  • पृष्ठभूमि:
  • परिचय: 
    • यह एक आपराधिक कानून है जो धन शोधन/मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान करने के लिये बनाया गया है।
    • यह मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को वैध बनाना) से निपटने के लिये भारत द्वारा स्थापित कानूनी ढाँचे का मूल है।
    • इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों (RBI सहित), म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
  • उद्देश्य: 
    • आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से शोधित, उत्पन्न या अर्जित किये गए अपराध की आय को ज़ब्त और अधिग्रहण करना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण की रोकथाम के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित करना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों की जाँच और अभियोजन के लिये तंत्र को सुदृढ़ और बेहतर बनाना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग और संबंधित अपराधों के विरुद्ध लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना।
  • नियामक प्राधिकरण:
    • प्रवर्तन निदेशालय (ED): प्रवर्तन निदेशालय PMLA के प्रावधानों को लागू करने और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जाँच करने के लिये ज़िम्मेदार है। 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF):

  • परिचय: 
    • FATF वर्ष 1989 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और अन्य संबंधित खतरों का मुकाबला करने हेतु एक वैश्विक मानक निर्धारक है। 
    • FATF एक नीति-निर्माण निकाय के रूप में कार्य करता है जो वित्तीय अपराधों से निपटने के लिये कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
  • उद्देश्य: 
    • FATF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मानकों को स्थापित करना और मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण तथा सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार से निपटने के उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।
  • गठन: 
    • मनी लॉन्ड्रिंग और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में G7 देशों की पहल पर FATF का गठन किया गया था। 
    • इसने शुरुआत में मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिये सिफारिशों और सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
      • वर्षों से आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने और नए उभरते खतरों को संबोधित करने के लिये इसके जनादेश का विस्तार हुआ।
  • ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट: 
    • FATF की दो प्रमुख सूचियाँ हैं: "ग्रे लिस्ट" और "ब्लैक लिस्ट"।
    • ग्रे लिस्ट में ऐसे क्षेत्राधिकार शामिल हैं जिनके धन शोधन रोधी एवं आतंकवाद रोधी वित्तपोषण ढाँचे में रणनीतिक कमियाँ हैं।
      • ग्रे लिस्ट में रखा जाना सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है, साथ ही यह FATF द्वारा निगरानी बढ़ाने के अधिकार क्षेत्र को विषय बनाता है।
    • ब्लैक लिस्ट, जिसे आधिकारिक तौर पर "कार्रवाई हेतु आह्वान (Call for Action)" के रूप में जाना जाता है, में ऐसे देश शामिल हैं जिनके धन शोधन और आतंकवाद रोधी वित्तपोषण प्रयासों में गंभीर कमियाँ हैं।
      • ब्लैक लिस्ट में शामिल करने से अंतर्राष्ट्रीय रोक एवं प्रतिबंध लग सकते हैं।
  • सदस्य देश: 
    • वर्तमान में FATF के 39 सदस्य हैं: 37 क्षेत्राधिकार और 2 क्षेत्रीय संगठन (खाड़ी सहयोग परिषद एवं यूरोपीय आयोग)।
    • वित्तीय अपराधों से निपटने में वैश्विक सहयोग को मज़बूत करने हेतु FATF संयुक्त राष्ट्र जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करता है।
  • भारत और FATF: 
    • भारत वर्ष 2010 में FATF का सदस्य बना था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में गन्ना उत्पादन

प्रिलिम्स के लिये:

FRP, SAP, CACP, रंगराजन समिति, विश्व व्यापार संगठन, गन्ना उद्योग, EBP कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में गन्ना उत्पादन, इसकी क्षमता और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि गन्ने का उचित और पारिश्रमिक मूल्य (FRP) उचित बाज़ार मूल्य नहीं है, इसमें कहा गया है कि सीमांत किसान अपनी आजीविका तभी चला सकते हैं जब राज्य सरकारें उन्हें बहुत अधिक राज्य परामर्शित मूल्य (SAP) का भुगतान करती हैं।

गन्ने का मूल्य कैसे तय होते हैं? 

  • गन्ने का मूल्य केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर तय करती हैं।
  • केंद्र सरकार: उचित और लाभकारी मूल्य (FRP):
    • केंद्र सरकार FRP की घोषणा करती है जो कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर निर्धारित होती है, जिसे आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) द्वारा घोषित किया जाता है।
      • CCEA की अध्यक्षता भारत का प्रधानमंत्री करता है।
    • FRP, गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
  • राज्य सरकार: राज्य परामर्शित मूल्य (SAP):
    • SAP की घोषणा प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की सरकारों द्वारा की जाती है।
    • SAP आमतौर पर FRP से अधिक होता है। 
      • मूल्य की गणना विशेषज्ञों द्वारा की जाती है, जो इनपुट लागत के माध्यम से फसल के संपूर्ण आर्थिक गणना करते हैं और फिर सरकार को सुझाव देते हैं।  

चीनी उत्पादन बढ़ाने से लाभ: 

  • चीनी उत्पादन से कई उप-उत्पाद उत्पन्न होते हैं, जैसे कि गुड़, खोई और प्रेस मड, जिनका उपयोग इथेनॉल, कागज़ और जैविक-उर्वरक जैसे अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
  • चीनी मिलें अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल में बदल सकती हैं, जो पेट्रोल के साथ मिश्रित होता है, जो न केवल हरित ईंधन के रूप में काम करता है बल्कि कच्चे तेल के आयात के कारण विदेशी मुद्रा की बचत भी करता है।
    • भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन कोटि के इथेनॉल के 10% सम्मिश्रण और वर्ष 2025 तक 20% सम्मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
      • भारत ने नवंबर, 2022 की लक्षित समय-सीमा से पाँच माह पूर्व देश भर में औसतन 10% सम्मिश्रण का अपना लक्ष्य हासिल कर लिया।
  • गन्ने की खेती करने से किसानों को अपनी कृषि गतिविधियों में विविधता लाने और आय बढ़ाने का अवसर मिलता है।  
  • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिये गन्ने की खेती को अन्य फसलों जैसे- सब्जियों, फलों और मसालों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। इससे मृदा स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है, कीट एवं रोगों का दबाव कम हो सकता है, साथ ही फसल की पैदावार में भी सुधार होने की संभावना रहती है।  

गन्ने की पैदावार से संबंधित चुनौतियाँ:

  • फसल की लंबी अवधि:
    • गन्ने को बढ़ने और कटाई के लिये तैयार होने में लंबा समय लगता है (लगभग 10 से 12 महीने)। गन्ना उगाना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें किसान को गन्ने की कटाई करने से पहले दो और फसलें लगाने और काटने की ज़रूरत होती है
    • इसका मतलब है कि गन्ना उगाने में लगभग तीन साल की अवधि में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
  • उच्च निवेश:
    • गन्ना उगाने के लिये किसानों को अधिक धन निवेश करने की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें बोने से पहले खेतों को ठीक से तैयार करना होता है। इसमें मिट्टी को अधिक गहराई तक जोतना, उसके बाद गन्ने के लिये मिट्टी को उपयुक्त बनाने हेतु हैरो चलाना और समतल करना शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त गन्ने की पौध खरीदना महँगा है और रोपण से पहले किसानों को मिट्टी में खाद और उर्वरक मिलाने की ज़रूरत होती है, जिसकी कीमत भी अधिक होती है।
  • उच्च श्रम लागत: 
    • गन्ना काटने के लिये श्रम की लागत बहुत अधिक होती है और यदि कटाई का मौसम बारिश के बिना सूखा होता है, तो यह गन्ने के कुल वज़न को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और अगर बारिश होती है, तो रास्ते में कीचड़ के परिणामस्वरूप लॉरी/ट्रक गन्ने के खेत के पास नहीं आ पाएंगे। 
    • गन्ने को खेत से मुख्य सड़क तक मज़दूर लगाकर ले जाने में किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है।
  • अव्यवहार्य चीनी निर्यात:  
    • भारत को चीनी का निर्यात करने में कठिनाई हो रही है क्योंकि मुख्य रूप से गन्ने की उच्च लागत के कारण इसकी उत्पादन लागत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मूल्य की तुलना में अधिक है
    • इस अंतर को पाटने में सहायता के लिये सरकार निर्यात सब्सिडी प्रदान कर रही है, लेकिन अन्य देशों ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के समक्ष आपत्तियाँ उठाई हैं।  
    • हालाँकि भारत को वर्तमान में दिसंबर 2023 तक इन सब्सिडी को जारी रखने की अनुमति है, लेकिन उसके बाद क्या होगा, इस बारे में अनिश्चितता है।
  • भारत के इथेनॉल कार्यक्रम के साथ समस्या:
    • ऑटो ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण की घोषणा पहली बार वर्ष 2003 में की गई थी, लेकिन कई चुनौतियों के कारण यह पहल बहुत सफल नहीं रही। सम्मिश्रण के लिये आपूर्ति किये गए इथेनॉल की कम कीमत प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • चूँकि इथेनॉल की कीमत अकसर पेट्रोल की कीमत से अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य हो जाता है। यह इथेनॉल उत्पादकों को सम्मिश्रण के लिये इथेनॉल की आपूर्ति करने से हतोत्साहित कर सकता है।

भारत में गन्ना क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
      • भारत में कपास के बाद चीनी उद्योग दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है।
  • गन्ने की वृद्धि के लिये भौगोलिक स्थितियाँ:
    • तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 °C के मध्य।
    • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
    • मृदा का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मृदा।
    • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र> उत्तर प्रदेश> कर्नाटक।
  • गन्ना क्षेत्र की स्थिति: 
    • भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है।
    • इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, वर्ष 2022 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान भारत का चीनी उत्पादन 3.69% बढ़कर 12.07 मिलियन टन हो गया।
      • पिछले साल इसी अवधि में यह 11.64 मिलियन टन था।  
    • इथेनॉल निर्माण हेतु डायवर्ज़न के बाद कुल चीनी उत्पादन जनवरी 2023 तक बढ़कर 193.5 लाख टन हो गया, जो एक वर्ष पहले की अवधि में 187.1 लाख टन था।
  • योजना: 

आगे की राह 

  • चीनी मिलें न केवल चीनी बनाने और बेचने पर निर्भर रहें बल्कि अन्य उत्पाद भी बनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • चीनी मिलों को लाभदायक बनाना होगा ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य और मिलों को लाभ मिल सके, अतः इसके लिये सह-उत्पादन संयंत्रों की स्थापना करके विद्युत का उत्पादन करना बहुत आवश्यक है, इथेनॉल, जो एक नवीकरणीय जैव ईंधन है, मिलों के समीप संयंत्र स्थापित किया जा सकता है क्योंकि यहाँ पर इसके लिये कच्चा माल उपलब्ध है।
  • रंगराजन समिति ने चीनी और अन्य उप-उत्पादों की कीमत में फैक्टरिंग करके गन्ने की कीमत तय करने हेतु रेवेन्यू शेयरिंग फॉर्मूला सुझाया है।
    • इसके अलावा यदि गन्ने की कीमत, फार्मूले द्वारा निकाली गई व सरकार द्वारा उचित भुगतान के रूप में समझी जाने वाली राशि से कम हो जाती है, तो यह इस उद्देश्य हेतु बनाए गए समर्पित फंड से अंतर को समाप्त कर सकता है, साथ ही फंड बनाने के लिये उपकर लगाया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) किसके द्वारा अनुमोदित किया गया है? (2015)

(a) आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति
(b) कृषि लागत और मूल्य आयोग
(c) विपणन और निरीक्षण निदेशालय, कृषि मंत्रालय
(d) कृषि उपज बाज़ार समिति

उत्तर: (a) 


प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवृत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. जब 'बड चिप सेटलिंग्स (Bud Chip Settlings)' को नर्सरी में उगाकर मुख्य कृषि भूमि में प्रतिरोपित किया जाता है, तब बीज सामग्री में पर्याप्त बचत होती है।
  2. जब सैट्स का सीधे रोपण किया जाता है, तब एक कलिका (Single Budded) सैट्स का अंकुरित प्रतिशत कई कलिका सैट्स की तुलना में बेहतर होता है।
  3. खराब मौसम की दशा में यदि सैट्स का सीधे रोपण होता है तो एक कलिका सैट्स का जीवित बचना बड़े सैट्स की तुलना में बेहतर होता है।
  4. गन्ने की खेती उत्तक संवर्द्धन से तैयार की गई सैटलिंग से की जा सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (c) 

व्याख्या: 

  • उत्तक संवर्द्धन तकनीक: 
    • उत्तक संवर्द्धन एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधों के टुकड़ों को संवर्द्धित किया जाता है और प्रयोगशाला में उगाया जाता है।
    • यह मौजूदा वाणिज्यिक किस्मों के रोग मुक्त गन्ने के बीज के तेज़ी से उत्पादन और आपूर्ति का एक नया तरीका प्रदान करता है।
    • यह स्रोत पौधे की प्रति बनाने के लिये मेरिस्टेम का उपयोग करता है।
    • यह आनुवंशिक पहचान को भी संरक्षित करता है।
    • उत्तक संवर्द्धन तकनीक अपने बोझिल प्रक्रिया और सीमाओं के कारण अलाभकारी होती जा रही है।
  • बड चिप तकनीक: 
    • उत्तक संवर्द्धन के व्यवहार्य विकल्प के रूप में यह द्रव्यमान को कम करती है और बीजों के त्वरित गुणन को सक्षम बनाती है।
    • यह विधि दो से तीन कली सैट्स लगाने की पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक किफायती और सुविधाजनक साबित हुई है।
    • इसके तहत रोपण के लिये उपयोग की जाने वाली बीज सामग्री पर पर्याप्त बचत के साथ रिटर्न अपेक्षाकृत बेहतर है। अतः कथन 1 सही है।
    • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि दो कलियों वाले सैट्स बेहतर उपज के साथ लगभग 65 से 70% अंकुरण प्रदान करते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
    • खराब मौसम में बड़े सैट्स बेहतर जीवित रहते हैं लेकिन रासायनिक उपचार से संरक्षित होने पर सिंगल बडेड सैट भी 70% अंकुरण प्रदान करते हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है।
    • उत्तक संवर्द्धन का उपयोग गन्ने को अंकुरित करने और उगाने के लिये किया जा सकता है जिसे बाद में खेत में रोपित किया जा सकता है। अतः कथन 4 सही है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। 

स्रोत: द हिंदू


स्लज प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, स्लज, अर्थ गंगा परियोजना 

मेन्स के लिये:

उर्वरक और जैव ईंधन के रूप में भारतीय सीवेज उपचार संयंत्रों में कीचड़/स्लज प्रबंधन का संभावित उपयोग

चर्चा में क्यों?  

भारतीय सीवेज उपचार संयंत्रों (STP) में पाया जाने वाला कीचड़ गंगा नदी के प्रदूषित जल के उपचार के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस कीचड़ के किये गए एक अध्ययन ने उर्वरक और संभावित जैव ईंधन के रूप में उपयोग की क्षमता का खुलासा किया।

  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने 'अर्थ गंगा' (गंगा से आर्थिक मूल्य) नामक एक उभरती पहल शुरू की है जिसका उद्देश्य प्रदूषण को रोकना और गंगा नदी का कायाकल्प करना है।
  • इस पहल का उद्देश्य नदी पुनर्जीवन कार्यक्रम से आजीविका के अवसर प्राप्त करना है और इसमें उपचारित अपशिष्ट जल तथा कीचड़ के मुद्रीकरण एवं पुन: उपयोग के उपाय शामिल हैं।

कीचड़/स्लज:

  • परिचय: 
    • कीचड़ मल-जल उपचार संयंत्रों में अपशिष्ट जल या सीवेज के उपचार के दौरान उत्पन्न होने वाला गाढ़ा अवशेष है। 
    • यह अर्द्ध-ठोस सामग्री है जो सीवेज के तरल हिस्से को अलग करने और उपचारित करने के बाद बची रहती है।
    • उपयोग किये गए स्रोत और उपचार प्रक्रियाओं के आधार पर कीचड़ की संरचना भिन्न हो सकती है।
      • इसमें आमतौर पर कार्बनिक यौगिक, पोषक तत्त्व (जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस) और सूक्ष्मजीव होते हैं।
      • हालाँकि कीचड़ में भारी धातु, औद्योगिक प्रदूषक और रोगजनकों जैसे संदूषक भी हो सकते हैं।
    • कीचड़ के उपचार और प्रसंस्करण से जैविक खाद, ऊर्जा उत्पादन के लिये बायोगैस या निर्माण सामग्री प्राप्त हो सकती है।
    • कीचड़ संदूषकों से जल निकायों और कृषि भूमि को नकारात्मक प्रभावों से बचाने हेतु सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होती है। 
  • उपचारित कीचड़/स्लज का वर्गीकरण: 
    • कीचड़ को संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों के अनुसार श्रेणी A या श्रेणी B के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • श्रेणी A कीचड़ खुले निपटान हेतु सुरक्षित है और जैविक खाद के रूप में कार्य करता है।
      • श्रेणी B कीचड़ का उपयोग प्रतिबंधित कृषि अनुप्रयोगों में किया जा सकता है, जिसमें फसलों के खाद्य भागों को कीचड़-मिश्रित मृदा के संपर्क में आने से बचाने एवं जानवरों तथा लोगों के साथ संपर्क को सीमित करने हेतु सावधानी बरती जाती है।
    • भारत में कीचड़ को श्रेणी A या B के रूप में वर्गीकृत करने हेतु स्थापित मानक नहीं हैं।
  • भारतीय STP में कीचड़ की स्थिति: 
    • नमामि गंगे मिशन के तहत ठेकेदारों को कीचड़ निस्तारण हेतु ज़मीन दी गई है।
      • हालाँकि इन ठेकेदारों द्वारा कीचड़ के अपर्याप्त उपचार के कारण वर्षा के दौरान इसे नदियों और स्थानीय जल स्रोतों में छोड़ दिया जाता है।
    • कीचड़ के रासायनिक गुणों से संबंधित डेटा के माध्यम से निजी अभिकर्त्ताओं को कीचड़ के उपचार एवं निपटान हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • यह अध्ययन भारत में अपनी तरह की पहली पहल है, जिसका उद्देश्य कीचड़ निपटान के मुद्दे को प्रभावी ढंग से उजागर करना है।

अध्ययन के निष्कर्ष: 

  • प्रमुख बिंदु: 
    • अधिकांश सूखे गाद का विश्लेषण श्रेणी B में आता है।
    • नाइट्रोजन और फास्फोरस का स्तर भारत के उर्वरक मानकों से अधिक है, जबकि पोटेशियम का स्तर अनुशंसित से कम है।
    • कुल कार्बनिक सामग्री अनुशंसित से अधिक है, लेकिन भारी धातु संदूषण एवं रोगजनक स्तर उर्वरक मानकों से अधिक हैं।
    • गाद का कैलोरी मान 1,000-3,500 किलो कैलोरी/किग्रा. होता है, जो भारतीय कोयले से कम है।
  • कीचड़ की गुणवत्ता में सुधार के लिये सिफारिशें: 
    • रोगजनकों को मारने के लिये कम-से-कम तीन महीने तक कीचड़ के भंडारण की सिफारिश की जाती है।
    • मवेशी खाद, भूसी अथवा स्थानीय मृदा के साथ कीचड़ को मिलाने से भारी धातु की मात्रा कम हो सकती है।
      • हालाँकि इन उपाय के बावजूद अभी भी कीचड़ को वर्ग B के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
    • कीचड़ को श्रेणी A में बदलने के लिये अधिक व्यापक उपचार की आवश्यकता होगी।

अर्थ गंगा परियोजना:

  • परिचय: 
    • 'अर्थ गंगा' का तात्पर्य गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान देने के साथ सतत् विकास मॉडल विकसित करना है।
    • दिसंबर 2019 में संपन्न हुई राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council- NGC) की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री ने गंगा नदी से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नमामि गंगे परियोजना को ‘अर्थ-गंगा’ जैसे सतत् विकास मॉडल में परिवर्तित करने का आग्रह किया था।
    • अर्थ गंगा के तहत सरकार छह कार्यक्षेत्रों पर काम कर रही है:
      • पहला ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती है, जिसमें नदी के दोनों ओर 10 किमी. तक रासायनिक मुक्त खेती और गोबर-धन योजना के माध्यम से खाद के रूप में गोबर को बढ़ावा देना शामिल है।
      • दूसरा कचरा और अपशिष्ट जल का मुद्रीकरण एवं पुन: उपयोग करना है, जिसमें शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के लिये सिंचाई, उद्योगों तथा राजस्व सृजन हेतु उपचारित जल का पुन: उपयोग करना शामिल है।
      • अर्थ गंगा में हाट बनाकर आजीविका सृजन के अवसर भी शामिल होंगे जहाँ लोग स्थानीय उत्पाद, औषधीय पौधे और आयुर्वेदिक उत्पाद बेच सकते हैं।
      • चौथा है नदी से जुड़े हितधारकों के बीच तालमेल बढ़ाकर जनभागीदारी बढ़ाना।
      • मॉडल नाव पर्यटन, साहसिक खेलों और योग गतिविधियों के माध्यम से गंगा एवं उसके आसपास की सांस्कृतिक विरासत तथा पर्यटन को बढ़ावा देगा।
      • मॉडल उचित जल प्रशासन के लिये स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाकर संस्थागत विकास को बढ़ावा देना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-सी 'राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (National Ganga River Basin Authority- NGRBA)' की प्रमुख विशेषताएँ हैं?

  1. नदी बेसिन, योजना एवं प्रबंधन की इकाई है।
  2. यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण प्रयासों की अगुवाई करता है।
  3. NGRBA का अध्यक्ष चक्रानुक्रमिक आधार पर उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक होता है, जिनसे होकर गंगा बहती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015)

स्रोत: द हिंदू