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भारतीय अर्थव्यवस्था

सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021

  • 12 Aug 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये 

सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972, पूंजी रिडेम्पशन

मेन्स के लिये

सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 का महत्त्व एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद के दोनों सदनों द्वारा सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया गया।

यह सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 में संशोधन है। 

प्रमुख बिंदु

विधेयक के प्रमुख प्रावधान:

  • सरकारी शेयरधारिता सीमा: 
    • यह एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता को 51 प्रतिशत से कम इक्विटी पूंजी रखने के लिये केंद्र सरकार की अनिवार्य आवश्यकता को समाप्त करेगा।
  • सामान्य बीमा व्यवसाय की परिभाषा:  
    • यह सामान्य बीमा व्यवसाय को अग्नि, समुद्री या विविध बीमा व्यवसाय के रूप में परिभाषित करता है। 
    • यह परिभाषा कुछ व्यवसायों को पूंजी से छूट तथा वार्षिक लेने-देन की स्थिति  से बाहर करता है। 
      • पूंजी रिडेम्पशन (Capital Redemption) बीमा में लाभार्थी द्वारा समय-समय पर प्रीमियम का भुगतान करने के बाद बीमाकर्त्ता द्वारा एक विशिष्ट तिथि पर राशि का भुगतान शामिल होता है।
      • वार्षिकी पॉलिसी के तहत बीमाकर्त्ता लाभार्थी को समयावधि में भुगतान करता है।  
  • सरकार से नियंत्रण का हस्तांतरण:  
    • यह उस तारीख से निर्दिष्ट बीमाकर्त्ताओं पर लागू नहीं होगा जिस दिन केंद्र सरकार बीमाकर्त्ता का नियंत्रण छोड़ देती है। यहाँ नियंत्रण का अर्थ है:
      • एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता के अधिकांश निदेशकों को नियुक्त करने की शक्ति।
      • इसके प्रबंधन या नीतिगत निर्णयों पर अधिकार होना।
  • केंद्र सरकार को प्राप्त अधिकार :
    • यह केंद्र सरकार को निर्दिष्ट बीमा कंपनियों के कर्मचारियों की सेवा के नियमों और शर्तों को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।  
    • यह प्रावधान करता है कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई योजनाओं को बीमाकर्त्ता द्वारा अपनाया गया माना जाएगा। 
      • बीमाकर्त्ता का निदेशक मंडल इन योजनाओं को बदल सकता है या नई नीतियाँ बना सकता है।
      • इसके अतिरिक्त ऐसी योजनाओं के तहत केंद्र सरकार की शक्तियाँ बीमाकर्त्ता के निदेशक मंडल को हस्तांतरित की जाएंगी। 
  • निदेशकों के दायित्व:  
    • यह विशिष्ट प्रावधान करता है कि एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता का निदेशक, जो पूर्णकालिक निदेशक नहीं है, केवल कुछ कृत्यों के लिये उत्तरदायी होगा, जिसमें शामिल कार्य हैं:
      • स्व विवेकाधिकार, बोर्ड प्रक्रियाओं के माध्यम से ज़िम्मेदार होगा।
      • उसकी सहमति या असहमति से या जहाँ उसने परिश्रमपूर्वक कार्य नहीं किया।

महत्त्व:

  • निजी पूंजी:
    • यह सामान्य बीमा व्यवसाय में अधिक निजी पूंजी लाएगा और ग्राहकों को अधिक उत्पाद उपलब्ध कराने के लिये अपनी पहुँच में सुधार करेगा।
  • बेहतर दक्षता:
    • यह कदम निजी भागीदारी के लिये और अधिक क्षेत्रों को खोलने तथा दक्षता में सुधार करने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है।
  • बीमा पैठ में बढ़ोतरी:
    • यह पॉलिसीधारकों के हितों को बेहतर ढंग से सुरक्षित करने के लिये बीमा पैठ और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाएगा तथा अर्थव्यवस्था के तेज़ी से विकास में योगदान देगा।

चिंताएँ:

  • मजदूरों पर असर :
    • यह देश में बीमा क्षेत्र और सामान्य बीमा कंपनी से जुड़े श्रमिकों को प्रभावित करेगा।
  • पूर्ण निजीकरण (Total Privatisation):
    • इससे सामान्य बीमा कंपनियों का पूर्ण निजीकरण हो सकता है जिससे 30 करोड़ पॉलिसीधारक असुरक्षा में पड़ जाएंगे।
  • सरकार का नुकसान:
    • पेशकश किये जा रहे शेयरों के अनुपात में लाभांश के रूप में सरकार को भी नुकसान होगा।
  • पेंशन सुरक्षा:
    • सार्वजनिक क्षेत्र की चार साधारण बीमा कंपनियों के पेंशनभोगी तब अपने भविष्य की पेंशन की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, जब केंद्र सरकार ने उनमें से एक का निजीकरण कर दिया।
    • पेंशन फंड कर्मचारियों के योगदान पर निर्भर है ताकि पेंशन ट्रस्ट पेंशनभोगियों को भुगतान कर सके।

सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972

  • यह अधिनियम भारत में सामान्य बीमा व्यवसाय करने वाली सभी निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने के लिये अधिनियमित किया गया था। इसके तहत ‘भारतीय सामान्य बीमा निगम’ (GIC) की स्थापना गई।
    • GIC एक भारतीय राष्ट्रीयकृत पुनर्बीमा कंपनी है।
  • अधिनियम के तहत राष्ट्रीयकृत कंपनियों के व्यवसायों को ‘भारतीय सामान्य बीमा निगम’ की चार सहायक कंपनियों में पुनर्गठित किया गया था:
    • नेशनल इंशोरेंस
    • न्यू इंडिया एशोरेंस
    • यूनाइटेड इंशोरेंस 
    • यूनाइटेड इंडिया इंशोरेंस  
  • बाद में 2002 में इन चार सहायक कंपनियों का नियंत्रण GIS से केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे वे स्वतंत्र कंपनियाँ बन गईं।
  • वर्ष 2000 से GIC विशेष रूप से पुनर्बीमा व्यवसाय कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू

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