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जेनेटिक मार्कर और प्रीटर्म बर्थ

  • 22 Apr 2023
  • 6 min read

हाल ही में गर्भ-इनी कार्यक्रम (Garbh-Ini program) पर शोध कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों ने समय से पहले जन्म (प्रीटर्म बर्थ) से जुड़े 19 जेनेटिक/आनुवंशिक मार्करों की पहचान की है जो नवजात शिशु मृत्यु (जन्म के बाद पहले 28 दिनों में जीवित नवजात शिशुओं की मृत्यु) और विश्व स्तर पर जटिलताओं का एक प्रमुख कारण है।

  • प्रीटर्म बर्थ/अपरिपक्व जन्म से जुड़े आनुवंशिक मार्करों की पहचान उच्च ज़ोखिम वाले गर्भधारण की भविष्यवाणी करने और उनकी बारीकी से निगरानी करने में मदद कर सकती है, जिससे मातृ और नवजात संबंधी परिणामों में सुधार किया जा सकता है।

प्रीटर्म बर्थ  

  • परिचय: 
    • सामान्य गर्भावधि से पहले होने वाले शिशु जन्म, प्रीटर्म बर्थ कहा जाता है, गर्भधारण के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले बच्चे के जन्म को संदर्भित करता है। गर्भकालीन आयु के आधार पर अपरिपक्व जन्म की उप-श्रेणियाँ हैं:
      • अत्यधिक अपरिपक्व (28 सप्ताह से कम)
      • बहुत अपरिपक्व (28 से 32 सप्ताह)
      • मध्यम से देर से अपरिपक्व (32 से 37 सप्ताह)।
    • यह एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, विशेष रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में, और शिशुओं में देरी से मानसिक तथा शारीरिक विकास एवं वयस्कता में बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है।
    • विश्व स्तर पर, प्रत्येक 10 जन्मों में से प्रीटर्म होता है।
      • इसके अलावा, भारत में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले सभी बच्चों में से लगभग 13% प्रीटर्म होते हैंविश्व स्तर पर, भारत में प्रीटर्म का प्रतिशत 23.4 है।
  • मृत्यु:  
    • गर्भावस्था के 37 सप्ताह के बाद जन्म लेने वालों की तुलना में समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में जन्म के बाद मृत्यु का खतरा दो से चार गुना अधिक होता है।
    • जब ये बच्चे वयस्क हो जाते हैं, तो उन्हें टाइप-2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर जैसी बीमारियों का भी अधिक खतरा होता है।

जेनेटिक मार्कर (Genetic Markers):  

  • परिचय:  
    • आनुवंशिक संकेतक/जेनेटिक मार्कर, जिन्हें DNA संकेतक या आनुवंशिक प्रकार के रूप में भी जाना जाता है, DNA के विशिष्ट खंड हैं जो विशेष लक्षणों, विशेषताओं या स्थितियों से जुड़े होते हैं।
    • जेनेटिक मार्कर या तो DNA अनुक्रम या DNA अनुक्रम में विशिष्ट भिन्नताएँ हो सकते हैं, जैसे एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता (Single Nucleotide Polymorphisms- SNP), जो आनुवंशिक मार्कर का सबसे सामान्य प्रकार है। 
  • महत्त्व:  
    • उनका उपयोग आनुवांशिकी अनुसंधान और नैदानिक ​​अभ्यास में आनुवंशिक विविधताओं की पहचान एवं अध्ययन करने हेतु किया जाता है जो कि बीमारियों, विकारों या अन्य जैविक लक्षणों से जुड़ी हो सकती हैं।
    • ये SNP महत्त्वपूर्ण जैविक प्रक्रियाओं जैसे, कि सूजन, एपोप्टोसिस, गर्भाशय ग्रीवा परिपक्वता, टेलोमेयर रख-रखाव, सेलेनोसिस्टीन जैव-संश्लेषण, मायोमेट्रियल संकुचन एवं जन्मजात प्रतिरक्षा को विनियमित करने हेतु जाने जाते हैं।

गर्भ-इनि:

  • इंटरडिसिप्लिनरी ग्रुप फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन बर्थ आउटकम्स-डीबीटी इंडिया इनिशिएटिव (गर्भ-इनि) को जैवप्रोद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT) द्वारा वर्ष 2014 में एक सहयोगी अंतःविषय कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था। 
  • इस कार्यक्रम का नेतृत्व ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI), NCR बायोटेक क्लस्टर, फरीदाबाद कर रहा है।
  • इसका उद्देश्य प्रीटर्म के जैविक और गैर-जैविक जोखिमों को स्पष्ट करना है ताकि महत्त्वपूर्ण ज्ञान-संचालित हस्तक्षेप और प्रौद्योगिकियाँ बनाई जा सकें जिन्हें इस बीमारी के लिये नैदानिक अभ्यास तथा समुदाय में स्थायी रूप से लागू किया जा सके। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के संबंधी जागरूकता उत्त्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडो के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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