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भारतीय अर्थव्यवस्था

LIC IPO से पहले FDI नीति में सुधार

  • 05 Mar 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष निवेश, इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग।

मेन्स के लिये:

LIC विनिवेश में FDI को 20% तक बढ़ाने का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपने प्रस्तावित ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (IPO) से पहले ‘जीवन बीमा निगम’ (LIC) में ‘स्वचालित मार्ग’ के तहत ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (FDI) को 20% तक बढ़ाने की अनुमति देने हेतु ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ नीति में संशोधन को मंज़ूरी दी है।

  • सरकार को वित्त वर्ष 2021-22 के लिये अपने 78,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने हेतु प्रस्तावित शेयर बिक्री से 63,000-66,000 करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद है।
  • LIC पूरी तरह से सरकार के स्वामित्व में है। इसकी स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी। भारत के बीमा कारोबार में इसकी सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।
  • अधिकांश संदर्भों में विनिवेश आमतौर पर सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों की आंशिक रूप से या पूरी तरह से सरकारी बिक्री को संदर्भित करता है। एक सरकारी संगठन आमतौर पर एक रणनीतिक कदम के रूप में या सामान्य/विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने हेतु संसाधन जुटाने के लिये एक परिसंपत्ति का विनिवेश करता है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ नीति ‘भारतीय बीमा निगम’ में विदेशी निवेश के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान निर्धारित नहीं करती है। ‘भारतीय बीमा निगम’ LIC अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित एक वैधानिक निगम है।
  • यह नीति बीमा कंपनियों और बीमा क्षेत्र में बिचौलियों या बीमा मध्यस्थों को एफडीआई की अनुमति देती है।
  • सरकारी अनुमोदन मार्ग पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये FDI की सीमा 20% है।
    • जबकि सरकार ने पिछले वर्ष बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी थी, लेकिन इसमें LIC को कवर नहीं किया गया था, जो एक विशिष्ट कानून द्वारा शासित है।
  • चूँकि LIC इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आती है और LIC अधिनियम के तहत LIC में विदेशी निवेश के लिये कोई सीमा निर्धारित नहीं है, सरकार ने LIC और अन्य कॉर्पोरेट निकायों के लिये 20% तक विदेशी निवेश की अनुमति देने का निर्णय लिया है।
  • पूंजी जुटाने की प्रक्रिया में तीव्रता लाने हेतु इस तरह के FDI को स्वचालित मार्ग के तहत रखा गया है।

इस कदम का महत्त्व:

  • FDI नीति में सुधार से LIC और अन्य कॉर्पोरेट निकायों में विदेशी निवेश की सुविधा प्राप्त होगी।
  • LIC के लिये FDI नीति में बदलाव से यह सुनिश्चित होगा कि सार्वजनिक पेशकश के लिये सदस्यता लेने के दौरान विदेशी निवेशकों को किसी भी बाधा का सामना न करना पड़े।
  • इस सुधार से व्यापार करने में आसानी होगी और FDI प्रवाह में वृद्धि होगी तथा साथ ही FDI नीति के समग्र उद्देश्य के साथ संरेखण भी सुनिश्चित होगा।
  • बढ़ी हुई FDI अंतर्वाह, आत्मनिर्भर भारत के कार्यान्वयन का समर्थन करने हेतु घरेलू पूंजी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, त्वरित आर्थिक विकास के लिये कौशल विकास व सभी क्षेत्रों में विकास को पूरक बनाएगी।
  • FDI की अनुमति देने से यह सुनिश्चित होगा कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक द्वितीयक बाज़ार में शेयर खरीदने में सक्षम हैं। यह निवेशकों को सकारात्मक संकेत भी देता है।

भारत में FDI अंतर्वाह की स्थिति क्या है?

  • भारत में FDI प्रवाह वर्ष 2014-2015 में 45.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान यह बढ़कर 81.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, ज्ञात हो कि यह स्थिति कोविड-19 महामारी के बावजूद है, साथ ही यह पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 (74.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 10% अधिक है।

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भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी एक इसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020)

A. यह एक सूचीबद्ध कंपनी में अनिवार्य रूप से पूंजी उपकरणों के माध्यम से निवेश है। 
B. यह बड़े पैमाने पर गैर-ऋण पूंजी प्रवाह है। 
C. यह एक ऐसा निवेश है जिसमें ऋण-सेवा शामिल है। 
D. यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया गया निवेश है।

उत्तर: A 

भारत में ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’

  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:
    • FDI एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश (मूल देश) के निवासी किसी अन्य देश (मेज़बान देश) में एक फर्म के उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
    • यह विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) से भिन्न है, जिसमें विदेशी इकाई केवल एक कंपनी के स्टॉक और बॉण्ड खरीदती है किंतु इससे FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
    • FDI के प्रवाह में शामिल पूंजी किसी उद्यम के लिये एक विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक द्वारा (या तो सीधे या अन्य संबंधित उद्यमों के माध्यम से) प्रदान की जाती है।
    • FDI में तीन घटक- इक्विटी कैपिटल (Equity Capital), पुनर्निवेशित आय (Reinvested Earnings) और इंट्रा-कंपनी लोन  (Intra-Company Loans) शामिल हैं।
    • इक्विटी कैपिटल विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक की अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यम के शेयरों की खरीद से संबंधित है।
    • पुनर्निवेशित आय में प्रत्यक्ष निवेशकों की कमाई का वह हिस्सा शामिल होता है जिसे किसी कंपनी के सहयोगियों (Affiliates) द्वारा लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है या यह कमाई प्रत्यक्ष निवेशक को प्राप्त नहीं होती है। सहयोगियों द्वारा इस तरह के लाभ को पुनर्निवेश किया जाता है।
    • इंट्रा-कंपनी ऋण में प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों के बीच अल्पकालिक या दीर्घकालिक उधार व निधियों का उधार शामिल होता है।
  • भारत में FDI आने का मार्ग:
    • स्वचालित मार्ग: इसमें विदेशी इकाई को सरकार या भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
    • सरकारी मार्ग: इसमें विदेशी इकाई को सरकार की स्वीकृति लेनी आवश्यक होती है।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP) अनुमोदन मार्ग के माध्यम से आवेदकों को ‘सिंगल विंडो क्लीयरेंस’ की सुविधा प्रदान करता है। यह उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।

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निम्नलिखित में से कौन से भारत के ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ में शामिल होंगे? (2012)

  1. भारत में विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियाँ।
  2. भारतीय कंपनियों में अधिकांश विदेशी इक्विटी होल्डिंग।
  3. विदेशी कंपनियों द्वारा विशेष रूप से वित्तपोषित कंपनियाँ।
  4. पोर्टफोलियो निवेश।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

A. 1, 2, 3 और 4
B. केवल 2 और 4
C. केवल 1 और 3
D. केवल 1, 2 और 3

उत्तर: D 

स्रोत: द हिंदू

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