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आधार कानून की समीक्षा याचिका खारिज

  • 22 Jan 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने आधार अधिनियम, 2016 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाले वर्ष 2018 के अपने फैसले की समीक्षा से संबंधित एक याचिका को खारिज कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार प्रणाली को मान्यता देते हुए सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने वालों के लिये आधार नामांकन को अनिवार्य कर दिया था।
  • न्यायालय ने अपने निर्णय में संसद द्वारा आधार कानून को धन विधेयक के रूप में पारित करने की मंज़ूरी दे दी थी। ज्ञात हो कि धन विधेयक को राज्यसभा की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इसके पश्चात् निर्णय के विरुद्ध समीक्षा याचिका दायर की गई थी।

संबंधित मुद्दे

  • इस मामले में प्राथमिक प्रश्न यह है क्या कि किसी विधेयक को अनुच्छेद 110 (1) के तहत धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने का लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी है अथवा न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • यदि यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है, तो इस बात की समीक्षा की जाएगी कि क्या आधार अधिनियम, 2016 को धन विधेयक के रूप में सही ढंग से प्रमाणित किया गया है।

न्यायालय का निर्णय

  • बहुमत का निर्णय
    • इस मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ के अधिकांश न्यायाधीशों (5 में से 4) ने वर्ष 2018 के निर्णय की समीक्षा से संबंधित याचिका को खारिज करने का समर्थन किया।
    • न्यायालय ने माना कि रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड (वर्ष 2019) वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय वर्ष 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये पर्याप्त आधार नहीं है।
    • रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड
      • इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है, हालाँकि यह दायरा बेहद सीमित है।
      • इस मामले में कहा गया था कि वर्ष 2018 के निर्णय में न्यायालय ने इस प्रश्न का निर्णायक जवाब नहीं दिया था कि अनुच्छेद 110 (1) के तहत धन विधेयक में क्या शामिल होता है, इसलिये इस मामले को एक बड़ी खंडपीठ के पास हस्तांतरित किया जाना चाहिये, जो कि अभी गठित नहीं की गई है।
  • मतभेदपूर्ण निर्णय
    • पाँच न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश ने बहुमत के दृष्टिकोण पर असहमति जताई और कहा कि आधार के संबंध में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय पर प्रश्नचिह्न लगाने के संबंध में वर्ष 2019 का निर्णय पूर्णतः प्रासंगिक है और सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये जल्द-से-जल्द सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ गठित करनी चाहिये।
    • उन्होंने सबरीमाला मामले का भी उल्लेख किया, जहाँ फरवरी 2020 में नौ-न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने समीक्षा याचिका को लंबित रखते हुए सितंबर 2019 में पाँच-न्यायाधीशों द्वारा दिये गए निर्णय के कारण उत्पन्न क़ानूनी प्रश्नों को बड़ी बेंच को संदर्भित किया था।
  • अंतिम निर्णय
    • यद्यपि पाँच न्यायाधीशों वाली खंडपीठ में से एक सदस्य ने इसे ‘संवैधानिक त्रुटि’ करार दिया, किंतु बहुसंख्यक निर्णय के आधार सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम को मान्य करने वाले अपने वर्ष 2018 के निर्णय की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। 

धन विधेयक

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 110 (1) धन विधेयक से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाता है, यदि वह:
    • किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन अथवा विनियमन करता हो।
    • केंद्र सरकार द्वारा लिये गए ऋण के विनियमन से संबंधित हो।
    • भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा या ऐसी किसी निधि में धन जमा करने या उसमें से धन निकालने से संबंधित हो।
    • भारत सरकार की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा करता हो।
    • भारत सरकार की संचित निधि से धन का विनियोग करता हो।
    • भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि करता हो।
    • भारत की संचित निधि या लोक लेखा में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे संबंधित व्यय या इनके केंद्र या राज्य निधियों का लेखा परीक्षण करता हो।
    • उपरोक्त विषयों का आनुषंगिक कोई विषय हो।

धन और वित्त विधेयक के बीच अंतर

धन विधेयक

वित्त विधेयक

वित्त विधेयक-I

वित्त विधेयक-II

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 110 धन विधेयक से संबंधित है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117 (1) वित्त विधेयक-I से संबंधित है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117 (3) वित्त विधेयक-II से संबंधित है।

यह केवल अनुच्छेद 110 में उल्लिखित प्रावधानों से संबंधित है।

इसमें न केवल अनुच्छेद 110 में वर्णित सभी मामले शामिल हैं, बल्कि इसमें सामान्य कानून के अन्य मामले भी हैं।

इसमें भारत की संचित निधि (CFI) से संबंधित व्यय शामिल हैं, जो कि अनुच्छेद 110 के तहत शामिल हैं।

अध्यक्ष द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं।

अध्यक्ष के प्रमाणन की आवश्यकता नहीं होती है।

अध्यक्ष के प्रमाणन की आवश्यकता नहीं होती है।

इन्हें केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।

इसे केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।

इसे दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है।

इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है।

इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है।

इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती है।

इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार किया जा सकता है।

इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

राष्ट्रपति धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, किंतु पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता है। 

राष्ट्रपति इसे पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकता है।

राष्ट्रपति इसे पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकता है।

गतिरोध के समाधान के लिये दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।

राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।

राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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