अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका-चीन तनाव
- 03 Aug 2022
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प्रिलिम्स के लिये:ताइवान और चीन की स्थिति मेन्स के लिये:ताइवान मुद्दे पर यूएस-चीन प्रतिद्वंद्विता और भारत-ताइवान संबंधों को बढ़ाने की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष ने ताइवान का दौरा किया, जो वर्ष 1997 के बाद से द्वीप पर जाने वाली सर्वोच्च स्तर अमेरिकी अधिकारी हैं।।
- इस यात्रा ने अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा दिया है।
ताइवान-चीन मुद्दा:
- परिचय:
- ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी. दूर एक द्वीप है, जो फूज़ौ, क्वानझोउ और ज़ियामेन के चीनी शहरों के सामने है।
- इतिहास:
- यह शाही राजवंश द्वारा प्रशासित था, लेकिन इसका नियंत्रण वर्ष 1895 में जापानियों को दे दिया गया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद यह द्वीप वापस चीनी हाथों में चला गया।
- माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक वर्ष 1949 में ताइवान भाग गए।
- च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीन गणराज्य की सरकार की स्थापना की और वर्ष 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।
- गृहयुद्ध में चीन और ताइवान के विभाजन के बाद चीन गणराज्य की (ROC) सरकार को ताइवान में स्थानांतरित कर दिया गया था। दूसरी ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने मुख्य भूमि में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की स्थापना की।
- तब से, PRC ताइवान को देशद्रोही प्रांत के रूप में देखता है और यदि संभव हो तो शांतिपूर्ण तरीकों से ताइवान के साथ पुन: एकीकरण की प्रतीक्षा कर रहा है।
- यह शाही राजवंश द्वारा प्रशासित था, लेकिन इसका नियंत्रण वर्ष 1895 में जापानियों को दे दिया गया था।
- वर्तमान स्थिति:
- चीन ने यह तर्क देते हुए कि ताइवान हमेशा एक चीनी प्रांत रहा है, कभी भी इसके अस्तित्व को एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई के रूप में मान्यता नहीं दी है।
- लेकिन चीन और ताइवान के बीच आर्थिक संबंध रहे हैं।
- ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।
- चीन ने यह तर्क देते हुए कि ताइवान हमेशा एक चीनी प्रांत रहा है, कभी भी इसके अस्तित्व को एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई के रूप में मान्यता नहीं दी है।
ताइवान के प्रति अमेरीकी नीति:
- परिचय:
- इसने 1970 के दशक से 'वन चाइना' नीति को जारी रखा है, जिसके तहत यह ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में देखता है।
- 'वन चाइना' नीति का अर्थ है कि जो राष्ट्र चीन के जनवादी गणराज्य (PRC) के साथ राजनयिक संबंध रखना चाहते हैं, उन्हें चीन गणराज्य (ROC) के साथ संबंध तोड़ते हुए चीन के रूप में PRC को नहीं बल्कि ROC को चीन के रूप में मान्यता देनी होगी।
- इस नीति के अंतर्गत मुख्य भूमि चीन में कम्युनिस्ट सरकार वैध प्रतिनिधि थी और ताइवान इसका एक अलग हिस्सा था।
- लेकिन ताइवान के साथ भी उसके अनौपचारिक संबंध हैं।
- लेकिन ताइवान के साथ इसके अनौपचारिक संबंध भी हैं तथा सैन्य-उपकरण और खुफिया जानकारी प्रदान करके द्वीप को बाहरी आक्रमण से बचाने के क्रम में यह ताइवान की सहायता करता है।
- इसने 1970 के दशक से 'वन चाइना' नीति को जारी रखा है, जिसके तहत यह ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में देखता है।
- यात्रा से संबंधित चीन की चिंताएँ:
- जैसा कि चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, उसने दावा किया कि यह यात्रा चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को गंभीर रूप से कमज़ोर करेगी।
- यह चीन-अमेरिका संबंधों की नींव को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है और ताइवान के स्वतंत्रता बलों को गंभीर रूप से गलत संकेत भेजती है।
- चीन के अनुसार, ताइवान में एक वरिष्ठ अमेरिकी व्यक्ति की उपस्थिति ताइवान की स्वतंत्रता के लिये अमेरिकी समर्थन का संकेत देगी।
- जैसा कि चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, उसने दावा किया कि यह यात्रा चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को गंभीर रूप से कमज़ोर करेगी।
ताइवान के प्रति भारतीय नीति:
- भारत भी एक चीन नीति का पालन करता है और ताइवान के साथ उसके औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। लेकिन राजनयिक कार्यों के लिये ताइपे (Taipei) में इसका एक कार्यालय है।
- भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) का नेतृत्व एक वरिष्ठ राजनयिक करते हैं।
- जबकि ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) है।
- भारत-ताइवान के संबंध मूल रूप से व्यापार, वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित थे।
- हाल के दिनों में गलवान में चीन की जुबानी जंग के बाद भारत ने ताइवान के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत कर लिये हैं।
- भारत सरकार ने ताइपे में अपना दूत बनाने के लिये राजनयिक (Diplomat) को चुना था।
- साथ ही सत्ताधारी पार्टी के दो सांसद ताइवान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअल मोड के जरिये शामिल हुए।
ताइवान का महत्त्व:
- अर्द्धचालक एक ऐसा महत्त्वपूर्ण घटक हैं जो कंप्यूटर और स्मार्टफोन से लेकर कारों में ब्रेक सेंसर तक इलेक्ट्रॉनिक्स को पावर देने हेतु उपयोगी है।
- चिप्स के उत्पादन में फर्मों का एक जटिल नेटवर्क शामिल होता है जो उन्हें डिज़ाइन करते या बनाते हैं, साथ ही वे जो प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करते हैं।
- अधिकांश अर्द्धचालक ताइवान में उत्पादित होते हैं और यह अर्धचालक निर्माण की आउटसोर्सिंग पर हावी है।
- इसके अलावा इसके अनुबंध निर्माताओं ने पिछले वर्ष कुल वैश्विक अर्द्धचालक राजस्व का 60% से अधिक हिस्सा प्राप्त किया।
आगे की राह
- यह भारत के लिये अपनी एक चीन नीति पर पुनर्विचार करने और मुख्य भूमि चीन के साथ अपने संबंधों को ताइवान से अलग करने का समय है।
- साथ ही, ताइवान के साथ अपनी सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को उसी तरह से आगे बढ़ाएं जैसे चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी का विस्तार कर रहा है।