लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 10 Oct, 2024
  • 57 min read
इन्फोग्राफिक्स

भगत सिंह

और पढ़ें: भगत सिंह


जैव विविधता और पर्यावरण

हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग (HPB)

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग, HVAC प्रणाली, डे-लाइट हार्वेस्टिंग, ग्रीन वॉल्स, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, कार्बन उत्सर्जन, UNEP का 30% दक्षता सुधार लक्ष्य, उन्नत बिल्डिंग, इंदिरा पर्यावरण भवन। 

मुख्य परीक्षा के लिये:

बढ़ते शहरीकरण और कार्बन उत्सर्जन के मद्देनजर भारत में हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग की आवश्यकता।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल के वर्षों में हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग (HPB ) का महत्त्व बढ़ गया है, जो ऊर्जा दक्षता और स्वस्थ आंतरिक वातावरण को बढ़ावा देती हैं।

  • HPB का अर्थ है, एक ऐसी इमारत जो ऊर्जा दक्षता, स्थायित्व, जीवन-चक्र प्रदर्शन और अधिवासीय उत्पादकता समेत सभी प्रमुख हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग की विशेषताओं को एकीकृत और अनुकूलित करती है।

HPB की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ऊर्जा दक्षता:
    • HVAC प्रणाली (हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग) का रखरखाव करना: नियमित रखरखाव, जैसे कि फिल्टर को बदलना, कॉइल्स को साफ करना और सेंसर को कैलिब्रेट करना, जो उनकी दक्षता को बनाए रखने और अनावश्यक ऊर्जा खपत को कम करने में सहायक हो सकता है।
    • मांग-नियंत्रित वेंटिलेशन: IoT- आधारित वायु गुणवत्ता सेंसर स्वचालित रूप से वेंटिलेशन सिस्टम को समायोजित कर सकते हैं, जिससे इमारतें अधिक कुशल और पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील बन सकती हैं।
    • प्रकाश व्यवस्था: ऊर्जा-कुशल LED विकल्प ऊर्जा की खपत को कम कर सकते हैं। डे-लाइट हार्वेस्टिंग, जो प्राकृतिक प्रकाश का उपयोग करता है, कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता को और भी कम कर सकता है।
    • इन्सुलेशन में निवेश करना: दीवारों, छतों और फर्श के लिये पर्याप्त इन्सुलेशन, ऊष्मा हस्तांतरण को न्यूनतम करके हीटिंग और शीतलन की आवश्यकता को कम कर सकता है।
  • स्वस्थ इनडोर वातावरण:
    • इनडोर एयर क्वालिटी को प्राथमिकता देना: यह प्रदूषकों को कम करने के लिये इनडोर वायु निस्पंदन प्रणालियों का उपयोग करता है।
    • ध्वनि और ध्वनिकी: ध्वनि-अवशोषित सामग्री और प्रभावी इमारतों में ध्वनि प्रदूषण को कम करने में सहायता कर सकते हैं। 
    • बायोफिलिक डिज़ाइन: प्राकृतिक तत्वों को शामिल करना, जैसे कि ग्रीन वाॅल्स, इनडोर ट्री और जल संबंधी सुविधाएँ, रहने वालों के मानसिक कल्याण को बढ़ाती हैं।
  • स्थिरता और पर्यावरणीय प्रभाव:
    • संधारणीय सामग्री: पुनर्चक्रित इस्पात, संधारणीय स्रोत से प्राप्त लकड़ी और न्यून प्रभाव वाली कंक्रीट इमारतों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • जल संरक्षण और दक्षता: वर्षा जल संचयन और ग्रेवाटर रिसाइक्लिंग प्रणालियाँ जल संरक्षण को बढ़ावा देती हैं।
    • अपशिष्ट में कमी और प्रबंधन: भवन की संधारणीयता और उसके संचालन के लिये अपशिष्ट में कमी, पुनर्चक्रण और उचित प्रबंधन आवश्यक है। 

हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग की क्या आवश्यकता है?

  • कार्बन उत्सर्जन: वैश्विक स्तर पर, इमारतें अपने जीवनकाल में कुल अंतिम ऊर्जा खपत का लगभग 40% भाग का निर्माण करती हैं।
  • वर्ष 2040 तक विद्युत प्रणाली को चौगुना करना: बढ़ती विद्युत मांग को पूरा करने के लिये भारत की विद्युत प्रणाली को वर्ष 2040 तक आकार में चौगुना करना होगा।
    • इसके अतिरिक्त भारतीय इमारतों में उच्च शहरी तापमान, चमकदार अग्रभाग और अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण ऊर्जा उपयोग में वृद्धि देखी जा रही है।
    • HPB नवीन समाधानों के माध्यम से ऊर्जा की मांग को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
  • बढ़ता शहरीकरण: भारत की शहरी आबादी वर्ष 2030 तक 600 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होता है, नए निर्माण की मांग बढ़ती है और बगैर किसी हस्तक्षेप के, इस क्षेत्र का कार्बन फुटप्रिंट वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  • वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति: बढ़ती ऊर्जा मांग और तेजी से बढ़ते निर्माण क्षेत्र के कारण, भारत के लिये अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, भवन प्रमाणन कार्यक्रमों और यूरोपीय संघ के भवनों के ऊर्जा प्रदर्शन निर्देश द्वारा निर्धारित भवनों के लिये वैश्विक ऊर्जा दक्षता और कार्बन उत्सर्जन मानकों को पार करने का जोखिम है।
    • UNEP का 30% दक्षता सुधार लक्ष्य इस बात पर बल देता है कि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वैश्विक भवन क्षेत्र को वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा दक्षता में 30% सुधार करना होगा।
  • कम परिचालन लागत: HPB अनुकूलन के परिणामस्वरूप 23% ऊर्जा उपयोग को न्यूनतम करना, 28% जल उपयोग को न्यूनतम करना, तथा 23% तक भवन परिचालन व्यय भी न्यूनतम हो सकता है।
  • उत्पादकता में सुधार: स्वस्थ आंतरिक वातावरण उपलब्ध कराने से निवासियों की संतुष्टि बढ़ती है, उत्पादकता बढ़ती है तथा उत्पन्न होने वाले रोगों की अनुपस्थिति भी बढ़ती है।  

HPB से संबंधित उपकरण क्या हैं?

  • लेडीबग: यह दृश्य, सूर्यपथ और विकिरण विश्लेषण के माध्यम से डिज़ाइन संबंधी विकल्पों का आकलन करने के लिये 2D और 3D इंटरैक्टिव ग्राफिक्स में विस्तृत जलवायु विश्लेषण और डेटा प्रदान करता है।
  • ग्रीन बिल्डिंग स्टूडियो: यह एक क्लाउड-आधारित सेवा है, जो ऊर्जा अनुकूलन हेतु बिल्डिंग परफॉरमेंस सिमुलेशन चला सकती है।
  • कोव.टूल्स: यह आर्किटेक्ट्स और इंजीनियरों को संधारणीय डिज़ाइन का समाधान प्राप्त करने के लिये डेटा-संचालित डिज़ाइन का उपयोग करने की अनुमति देता है।
  • क्लाइमेट स्टूडियो: यह दिन के प्रकाश, ऊर्जा दक्षता, तापीय सहिष्णु और अधिवासित लोगों के स्वास्थ्य के अन्य उपायों के लिये सिमुलेशन के लिये सबसे अच्छा काम करता है। 

भारत में HPB के उल्लेखनीय उदाहरण

  • ग्रेटर नोएडा में उन्नति बिल्डिंग: इस HPB में तापीय सहिष्णु और ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये सूर्यपथ के अनुसार डिज़ाइन किया गया एक अग्रभाग है। इमारत में चमक को कम करने और ऊर्जा प्रदर्शन को बढ़ाने के लिये न्यूनतम सौर ताप के लाभ गुणांक के साथ उच्च प्रदर्शन वाले ग्लास का उपयोग किया गया है।
  • नई दिल्ली में इंदिरा पर्यावरण भवन: इस भवन में उन्नत HVAC सिस्टम का उपयोग किया गया है, जो छत में बीम के माध्यम से शीतल जल प्रसारित करता है, तथा ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये प्राकृतिक संवहन का उपयोग करता है।
  • शुद्ध-शून्य और ग्रिड-इंटरैक्टिव बिल्डिंग: भारत में HPB शुद्ध-शून्य इमारतों के लिये भी मार्ग तैयार कर रहे हैं, जो उतनी ही ऊर्जा और जल उत्पन्न करते हैं जितनी वे खपत करते हैं,  ग्रिड-इंटरैक्टिव बिल्डिंग, जो ऊर्जा की मांग को गतिशील रूप से प्रबंधित करती हैं।

हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग के निर्माण में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • परिचालन संबंधी अनदेखी: डेवलपर्स आमतौर पर प्रारंभिक परियोजना लागत, कार्यक्रम और डिज़ाइन के दायरे को प्राथमिकता देते हैं, तथा परिचालन अवस्था और दीर्घकालिक ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन और रखरखाव को नज़रअंदाज कर देते हैं।
  • विविध प्रकार के भवन: कार्यालय भवन प्रकार, लागत, सेवाओं और आराम के स्तर के संदर्भ में बहुत भिन्न होते हैं। 
    • कुछ इमारतों में विकेन्द्रीकृत शीतलन प्रणालियाँ होती हैं जो ऊर्जा कुशल नहीं होती हैं, जबकि कुछ इमारतें केंद्रीयकृत वातानुकूलित होती हैं, इनमें हाई ग्लेज़िंग देखने को मिलती है, तथा ऊर्जा की खपत भी अधिक होती है।
  • विभाजन: ऊर्जा बचत परियोजनाओं को अक्सर कम समर्थन मिलता है क्योंकि ऊर्जा दक्षता सुधारों से किसे लाभ मिलता है, इस पर मतभेद है। उदाहरण के लिये, मालिकों या किरायेदारों द्वारा रखरखाव।
  • स्वदेशी ज्ञान का क्षरण: क्षेत्र-विशिष्ट विधियां, जो लागत प्रभावी हैं और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हैं, विदेशी प्रौद्योगिकियों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण लुप्त हो रही हैं, जो भारतीय संदर्भ में उतनी कुशल नहीं हो सकती हैं।
  • सिलोइड बिल्डिंग सिस्टम: बिल्डिंग डिज़ाइन, निर्माण और संचालन को प्रायः अलग-अलग माना जाता है। यह खंडित दृष्टिकोण उन तकनीकों के एकीकरण को रोकता है जो समग्र बिल्डिंग परफॉरमेंस को बेहतर बना सकते हैं।

बिल्डिंग में ऊर्जा दक्षता के संबंध में भारत की क्या पहल हैं?

भारत में हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है?

  • आवरण और निष्क्रिय प्रणालियाँ: दीवार, खिड़कियाँ, छत संयोजन, परावर्तक सफेद सतहें और छाया जैसी आवरण संबंधी रणनीतियाँ सौर ताप के जोखिम से बचा सकती हैं, और जहाँ संभव हो, प्राकृतिक वेंटिलेशन का समर्थन कर सकती हैं।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: एक जीवनचक्र निष्पादन आश्वासन प्रक्रिया जो भवन संबंधी प्रणालियों के एकीकरण पर बल देती है, उसे पारंपरिक और एकाकी पद्धतियों का स्थान लेना चाहिये।
  • समग्र मूल्यांकन: एक ट्रिपल-बॉटम-लाइन ढाँचे को अपनाना जो परिचालन, पर्यावरणीय और मानवीय लाभों के आधार पर भवन संबंधी प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों का मूल्यांकन करता है। 
    • इस ढाँचे में ऊर्जा बचत, न्यून कार्बन उत्सर्जन तथा निवासियों के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार पर विचार किया जाना चाहिये।
  • सहयोगात्मक ऊर्जा दक्षता पहल: मालिकों और किरायेदारों के बीच सहयोगात्मक पहल को प्रोत्साहित करना जो ऊर्जा दक्षता उन्नयन में उनके हितों को संरेखित करते हैं, तथा स्थिरता लक्ष्यों के लिये साझा प्रतिबद्धता का निर्माण करते हैं।
  • अनुकूलित रणनीतियाँ: क्षेत्र-विशिष्ट, जलवायु-उत्तरदायी समाधानों जैसे उच्च-प्रदर्शन आवरण डिज़ाइन, कम-ऊर्जा शीतलन रणनीतियाँ और अनुकूली कम्फर्ट तकनीक का समर्थन करना।
  • हीटिंग वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग सिस्टम (HVAC): उन स्थानों को अलग करना, जहाँ प्राकृतिक रूप से वेंटिलेशन हो सकता है और सभी निर्मित स्थानों को हर समय पूर्ण रूप से वातानुकूलित करने के बजाय, मिश्रित-मोड के अवसर विकसित करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: बढ़ते शहरीकरण और कार्बन उत्सर्जन से उत्पन्न चुनौतियों पर विचार करते हुए, भारत में हाई परफॉरमेंस बिल्डिंग की आवश्यकता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मालदीव के राष्ट्रपति की भारत यात्रा

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

पड़ोसी प्रथम की नीति, SAGAR (क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास) विज़न, ट्रेजरी बिल, करेंसी स्वैप, हिंद महासागर क्षेत्र, मुक्त व्यापार समझौता, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), एकीकृत भुगतान इंटरफेस, वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव 

मुख्य परीक्षा के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि बनाए रखने के क्रम में भारत-मालदीव संबंधों का महत्त्व।

स्रोत: विदेश मंत्रालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत की चार दिवसीय राजकीय यात्रा की और नई दिल्ली को अपना मूल्यवान साझेदार बताया।

  • यह यात्रा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने इससे पूर्व भारत विरोधी भावनाओं के साथ भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ अपने मंत्रियों की अपमानजनक टिप्पणियों का समर्थन किया था

इस यात्रा के प्रमुख परिणाम क्या हैं?

  • द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: भारत ने अपनी पड़ोसी प्रथम नीति और सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) दृष्टिकोण के तहत मालदीव को समर्थन देने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • आपातकालीन वित्तीय सहायता: भारत ने अपनी तत्काल वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के ट्रेजरी बिल (टी-बिल) प्रदान किये।
  • व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी: दोनों देश संबंधों को व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी में बदलने पर सहमत हुए। 
  • विकास सहयोग: भारत और मालदीव ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना (GMCP) को समय पर पूरा करने को प्राथमिकता देंगे साथ ही थिलाफुशी और गिरावारू द्वीपों को जोड़ने के लिये व्यवहार्यता अध्ययन करेंगे।
    • दोनों पक्ष थिलाफुशी में एक वाणिज्यिक बंदरगाह विकसित करने, ट्रांसशिपमेंट और बंकरिंग सेवाओं का विस्तार करने तथा हनीमाधू और गान जैसे हवाई अड्डों की क्षमता को अधिकतम करने पर सहयोग करेंगे।
  • व्यापार और आर्थिक सहयोग: दोनों पक्ष द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते, स्थानीय मुद्रा व्यापार निपटान, निवेश संवर्द्धन, आर्थिक विविधीकरण और पर्यटन को बढ़ावा देने पर चर्चा शुरू करने पर सहमत हुए।
  • डिजिटल और वित्तीय सहयोग: दोनों पक्षों ने भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), विशिष्ट डिजिटल पहचान, गति शक्ति योजना और अन्य डिजिटल सेवाओं के शुभारंभ के माध्यम से डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की, जिससे ई-गवर्नेंस और सेवाओं की डिलीवरी में वृद्धि होगी।
    • भारत ने मालदीव आने वाले भारतीय पर्यटकों के लिये भुगतान को आसान बनाने के लिये मालदीव में RuPay कार्ड लॉन्च किया।
  • ऊर्जा सहयोग: दोनों पक्ष नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं पर सहयोग करेंगे ताकि मालदीव अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा कर सके।
  • स्वास्थ्य सहयोग: भारत से सस्ती जेनेरिक औषधियों की आपूर्ति के लिये मालदीव में जन औषधि केंद्र स्थापित किए जाएँगे।
    • दोनों देश मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, मादक औषधियों की लत से मुक्ति और आपातकालीन चिकित्सा निकासी क्षमता निर्माण प्रयासों पर सहयोग करेंगे।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: दोनों पक्षों ने भारत द्वारा वित्तपोषित उथुरु थिला फाल्हू (UTF) में मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (MNDF) 'एकथा' बंदरगाह परियोजना को पूरा करने के महत्त्व को स्वीकार किया, जिससे MNDF की परिचालन क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
  • खाद्य सुरक्षा: दोनों देश भारतीय सहायता से कृषि आर्थिक क्षेत्र की स्थापना और हा धालू एटोल में पर्यटन निवेश तथा हा अलिफु एटोल में मत्स्य प्रसंस्करण और डब्बाबंद सुविधा के लिये संयुक्त रूप से कार्य करने पर सहमत हुए।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: युवा नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये मालदीव में एक स्टार्ट-अप इनक्यूबेटर-एक्सेलेरेटर स्थापित किया जाएगा।
  • लोगों के बीच संपर्क: दोनों देशों ने लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने के लिये बंगलूरु (भारत) और अड्डू शहर (मालदीव) में वाणिज्य दूतावास स्थापित करने का निर्णय लिया।
  • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग: भारत और मालदीव ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों, विशेष रूप से कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) में घनिष्ठ सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की
  • राजनीतिक आदान-प्रदान: दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों के चालक के रूप में साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को मान्यता देते हुए, अपने-अपने संसदों के बीच सहयोग को औपचारिक बनाने पर सहमति व्यक्त की।
  • उच्च स्तरीय कोर समूह की स्थापना: सहयोगात्मक ढाँचे का समय पर और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये एक नवीन उच्च स्तरीय कोर समूह की स्थापना की जाएगी। 

Maldives

मालदीव के राष्ट्रपति ने अपना भारत विरोधी रुख नरम क्यों किया?

  • मालदीव में आर्थिक संकट: मालदीव वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, इसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर मात्र 440 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है, जो केवल 1.5 महीने के आयात को कवर करने के लिये पर्याप्त है । 
    • यह स्थिति ऋण भुगतान में चूक के खतरे से और भी जटिल हो गई है, जैसा कि मूडीज ने संकेत दिया है, जिसने देश की क्रेडिट रेटिंग घटा दी।
  • आर्थिक निर्भरता: मालदीव की अपने महत्त्वपूर्ण पर्यटन उद्योग के लिये भारतीय पर्यटकों पर निर्भरता भी एक भूमिका निभाती है। 
    • भारतीय पर्यटक मालदीव की पर्यटन अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता हैं, तथा तनावपूर्ण संबंधों के कारण भारतीय पर्यटकों की संख्या में कमी के कारण अनुमानतः 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है।
  • भारत मालदीव का पाँचवा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो खाद्य, औषधि और निर्माण सामग्री  जैसी आवश्यक आपूर्ति प्रदान करता है।
  • भारत का सामरिक महत्त्व: ऐतिहासिक रूप से भारत मालदीव के विकास और सुरक्षा परिदृश्य में एक प्रमुख अभिकर्त्ता रहा है। भारत को अलग-थलग करना मालदीव की क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा को कमज़ोर कर सकता है।
    • मालदीव के राष्ट्रपति ने ज़रूरत के समय में मालदीव के लिये 'प्रथम प्रतिक्रियादाता' के रूप में भारत की निरंतर भूमिका को स्वीकार किया। उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में माले में जल संकट और कोविड-19 महामारी आदि।
    • भारत मालदीव का प्राथमिक सुरक्षा साझेदार रहा है, जिसका प्रमाण "ऑपरेशन कैक्टस" (1988) जैसे ऐतिहासिक अभियानों से मिलता है, जहाँ भारत ने तख्तापलट के प्रयास को रोकने के लिये हस्तक्षेप किया था।
  • चीन के साथ भू-राजनीतिक संतुलन: उनका नरम रुख, चीन की ओर पूर्ण झुकाव  के बजाय, भारत और चीन दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • इससे मालदीव को विदेश नीति विविधता बनाए रखते हुए भारत की विकास और सुरक्षा साझेदारी से लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।
  • राजनीतिक यथार्थवाद: भारत और मालदीव के बीच राजनीतिक बयानबाजी और सोशल मीडिया पर विवादों से उपजे तनाव को द्विपक्षीय संबंधों के लिये हानिकारक माना गया।
    • यह यात्रा एक रणनीतिक कदम है, ताकि साझेदारी के आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्त्व को देखते हुए भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाए रखा जा सके।

भारत के लिये मालदीव का क्या महत्त्व है?

  • रणनीतिक स्थान: मालदीव हिंद महासागर में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन (ISL) के तट पर स्थित है, जो वैश्विक व्यापार और ऊर्जा प्रवाह के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • भारत का लगभग 50% बाह्य व्यापार और 80% ऊर्जा आयात इन्हीं मार्गों से होकर गुजरता है। 
  • चीनी प्रभाव का सामना करना: भारत मालदीव को क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का प्रतिकार करने तथा इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता के रूप में देखता है।
  • भारत के लिये हिंद महासागर का महत्त्व: हिंद महासागर में अनुकूल और सकारात्मक समुद्री वातावरण भारत की रणनीतिक प्राथमिकता की पूर्ति के लिये आवश्यक है। इसके लिये मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार है।
  • जलवायु परिवर्तन सहयोग: समुद्र-स्तर में वृद्धि और जलवायु आपदाओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता के कारण मालदीव, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन रणनीतियों में भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण साझेदार है।

निष्कर्ष

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू की हाल की भारत यात्रा ने द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया, जो आरंभिक तनाव से नए सिरे से सहयोग की ओर बढ़ रहा है। आर्थिक चुनौतियों के बीच, इस यात्रा ने मालदीव के लिये एक प्रमुख भागीदार के रूप में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया, जो क्षेत्र के भू-राजनीतिक संतुलन को स्थिर करते हुए रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मालदीव के आर्थिक संकट और भारत की वित्तीय सहायता के संदर्भ में चर्चा कीजिये कि आर्थिक कारक कूटनीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मुख्य परीक्षा

प्रश्न: वैश्विक व्यापार और/ऊर्जा प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत के लिये मालदीव के भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। आगे यह भी चर्चा करें कि यह संबंध अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के बीच भारत की समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को कैसे प्रभावित करता है? (2024)

प्रश्न: पिछले दो वर्षों में मालदीव में राजनीतिक विकास पर चर्चा कीजिये। क्या वे भारत के लिये चिंता का कोई कारण हो सकते हैं? (2013)


कृषि

भारत में फ्लोरीकल्चर

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

फ्लोरीकल्चर, धान, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, APEDA, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, प्रति बूंद अधिक फसल

मुख्य परीक्षा के लिये:

फ्लोरीकल्चर क्षेत्र, कृषि विपणन, फसल विविधीकरण के माध्यम से आर्थिक परिवर्तन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

ओडिशा के संबलपुर ज़िले का जुजुमारा क्षेत्र राज्य के पहले किसान उत्पादक संगठनों (FPO) में से एक है, यह पारंपरिक धान की खेती के स्थान पर फूलों की खेती को समर्पित है। 

फूलों की खेती जुजुमारा की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार बदल रही है?

  • आय स्रोतों में विविधीकरण: किसान पारंपरिक धान की खेती से फूलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे एक ही फसल पर निर्भरता कम होने के साथ आय स्थिरता को बढ़ावा मिल रहा है।
  • आर्थिक लाभ: धान की खेती से लाभ लगभग 40,000 रुपए प्रति एकड़ जबकि फूलों की खेती से लाभ 1 लाख रुपए प्रति एकड़ हो सकता है।
  • बाज़ार अनुकूलन: व्हाट्सएप ग्रुप जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से किसानों को बाज़ार के रुझानों के बारे में अपडेट प्राप्त होता है, जिससे वे उत्पादन एवं बिक्री के बारे में निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
  • धारणीय प्रथाएँ: फ्लोरीकल्चर के साथ-साथ मधुमक्खी पालन को एकीकृत करने से जैवविविधता को बढ़ावा मिलता है तथा किसानों के लिये अतिरिक्त आय का स्रोत उपलब्ध होता है।

फ्लोरीकल्चर क्या है?

  • परिचय: फ्लोरीकल्चर के तहत विभिन्न प्रयोजनों (जैसे प्रत्यक्ष बिक्री, सौंदर्य प्रसाधन, इत्र और दवा उद्योग) के लिये पुष्पीय और सजावटी पौधों की खेती शामिल है।
  • भारत में फ्लोरीकल्चर का बाजार: भारत सरकार ने फ्लोरीकल्चर को सनराइज़ उद्योगके रूप में चिन्हित किया है।
  • वर्ष 2023-24 (द्वितीय अग्रिम अनुमान) में लगभग 297 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फूलों की खेती होना अनुमानित है।
  • भारत ने वर्ष 2023-24 में 717.83 करोड़ रुपए मूल्य के लगभग 20,000 मीट्रिक टन फ्लोरीकल्चर उत्पादों का निर्यात किया, जिसमें प्रमुख आयातकों में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और मलेशिया शामिल हैं।
  • इस क्षेत्र के असाधारण प्रदर्शन के कारण वर्ष 2030 तक इसके 7.4% (वर्ष 2021-2030) की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 5.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने की उम्मीद है।
  • किस्में: भारत के फ्लोरीकल्चर उद्योग में कटे हुए फूल, गमले के पौधे, बल्ब, कंद और सूखे फूल शामिल हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय पुष्प व्यापार में महत्त्वपूर्ण पुष्पीय फसलें शामिल हैं जिसमें गुलाब, कारनेशन, गुलदाऊदी, गार्गेरा, ग्लेडियोलस, जिप्सोफिला, लिआट्रिस, नेरिन, आर्किड, आर्किलिया, एन्थ्यूरियम, ट्यूलिप और लिली आदि शामिल हैं। 
  • फ्लोरीकल्चर संबंधी फसलें जैसे गेरबेरा, कारनेशन इत्यादि ग्रीनहाउस में उगाई जाती हैं। ये खुले खेत में उगाई गई फसलें हैं जिसमें गुलदाऊदी, गुलाब, गैलार्डिया, लिली मैरीगोल्ड, एस्टर, ट्यूबरोज़ इत्यादि शामिल है।
    • ग्रीनहाउस पारदर्शी सामग्री से निर्मित ढाँचे होते हैं, जहाँ नियंत्रित पर्यावरणीय परिस्थितियों में फसलें उगाई जाती हैं।
  • अग्रणी फ्लोरीकल्चर क्षेत्र: कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम और महाराष्ट्र प्रमुख फ्लोरीकल्चर केंद्र के रूप में उभरे हैं।

भारत के फ्लोरीकल्चर उद्योग में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ज्ञान की कमी: फ्लोरीकल्चर एक नवीन अवधारणा है, वैज्ञानिक और कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के प्रति अच्छी समझ विकसित नहीं हो पाई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन और विपणन में अकुशलताएँ आती हैं।
  • भूमि जोत का आकर का छोटा होना: अधिकांश फ्लोरीकल्चर कृषकों के पास भूमि जोत का आकार छोटा होता है, जिससे वृहद स्तरीय आधुनिक कृषि पद्धतियों में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • असंगठित विपणन: विपणन प्रणाली खंडित है, इसमें नीलामी यार्ड और नियंत्रित भंडारण सुविधाओं जैसे संगठित प्लेटफार्मों का अभाव है, जिससे किसानों के लिये उचित मूल्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
    • यद्यपि भारत में एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, लेकिन अधिशेष उत्पादन को संभालने और बढ़ती गुणवत्ता की मांग को पूरा करने के लिये आधुनिक विपणन प्रणालियों का अभाव है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: उन्मूलन के पश्चात् खराब प्रबंधन और कोल्ड स्टोरेज की कमी से, विशेष रूप से घरेलू बाज़ारों के लिये उगाए गए फूलों में, गुणवत्ता में गिरावट आती है।
  • जैविक और अजैविक तनाव: खुले खेतों में फूलों का उत्पादन फसलों को विभिन्न तनावों के संपर्क में लाता है, जिससे उपज उच्च गुणवत्ता वाले निर्यात बाज़ारों के लिये कम उपयुक्त हो जाती है।
  • उच्च प्रारंभिक लागत: वाणिज्यिक फूलों की खेती के लिये बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश की आवश्यकता होती है और किसानों को किफायती वित्त विकल्पों तक पहुँचने में संघर्ष करना पड़ता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा सॉफ्ट लोन पहल जैसी और अधिक योजनाओं की आवश्यकता है।
  • निर्यात संबंधी बाधाएँ: उच्च हवाई मालभाड़ा दरें, कम कार्गो क्षमता, भारतीय फ्लोरीकल्चर उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती हैं।

फ्लोरीकल्चर के लिये भारत की पहल क्या हैं?

  • APEDA (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण):  फ्लोरीकल्चर निर्यातकों को कोल्ड स्टोरेज, मालभाड़ा सब्सिडी और बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता करता है। 
  • वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) फ्लोरीकल्चर मिशन:  यह एक राष्ट्रव्यापी मिशन है, जिसे 22 राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है, इसका उद्देश्य CSIR प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हाई वैल्यू फ्लोरीकल्चर के माध्यम से कृषकों की आय में वृद्धि करना और उद्यमिता विकसित करना है।
  • फ्लोरीकल्चर में FDI:  फ्लोरीकल्चर के क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिये निवेश प्रक्रिया अधिक आसान हो गई है।
  • कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के एकीकृत विकास की योजना: यह योजना गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री तक पहुँच प्रदान करती है, गैर-मौसमी कृषि को बढ़ावा देती है, तथा उन्मूलन के पश्चात् प्रबंधन को बढ़ाती है।

आगे की राह

  • आवश्यक सेवा और बाज़ार आधुनिकीकरण: लॉकडाउन जैसे संकट के दौरान निर्बाध आपूर्ति और बिक्री सुनिश्चित करने के लिये फूलों को फलों और सब्जियों की तरह आवश्यक सेवाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये। 
    • फ्लोरीकल्चर बाज़ार को सौर ऊर्जा चालित एयर-कूल्ड पुशकार्ट तथा फोल्डेबल क्रेटों के साथ बेहतर पैकेजिंग के माध्यम से आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।
  • सूक्ष्म सिंचाई और मल्चिंग: समस्त प्रकार के फूलों की खेती को सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाकर "पर ड्रॉप मोर क्रॉप" पहल को फ्लोरीकल्चर तक विस्तारित करना।
    • श्रम को कम करने, जल उपयोग दक्षता में सुधार लाने तथा खरपतवार को न्यूनतम करने के लिये मल्चिंग (ऊपरी मृदा को ढकना) तकनीक को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • कौशलीकरण: "कौशल भारत" और "स्टैंडअप इंडिया"  के अंतर्गत आदिवासी महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को सूखे फूलों के उत्पादन में प्रशिक्षित करना।
  • गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के लिये समर्थन: वायरस मुक्त रोपण सामग्री सुनिश्चित करने के लिये प्रमाणित नर्सरियों और ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशालाओं को बढ़ावा देना। जैव सुरक्षा मानकों को मज़बूत करना और कॉमर्सियल फ्लोरीकल्चर के लिये गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • फ्लोरी-मॉल और मूल्य संवर्द्धन: कोल्ड चेन, आवश्यक तेल निष्कर्षण, वर्णक निष्कर्षण (Pigment Extraction) और वर्मीकंपोस्ट इकाईयों के साथ एकीकृत "फ्लोरी-मॉल" का निर्माण करना।
    • इससे किसानों को अतिरिक्त फूलों के द्वारा डाई, गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों की मिठास) और सूखे फूलों जैसे उत्पादों में परिवर्तित करने में सहायता मिलेगी, जिससे मूल्य संवर्द्धन होगा और उनकी अपव्ययता भी कम होगी।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  फ्लोरीकल्चर के महत्त्व और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के परिवर्तन में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)


भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI की मौद्रिक नीति समिति की 51 वीं बैठक

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

मौद्रिक नीति समिति, भारतीय रिज़र्व बैंक, रेपो रेट, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, UPI123PAY, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC), माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI), हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ (HFC), निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण

मुख्य परीक्षा के लिये:

मौद्रिक नीति समिति के निर्णय, NBFC से संबंधित मुद्दे

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में RBI गवर्नर की अध्यक्षता में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 51वीं बैठक संपन्न हुई।

मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 51वीं बैठक में लिये गए प्रमुख निर्णय क्या हैं?

  • रेपो रेट का अपरिवर्तित रहना: मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने लगातार 10 वीं बार रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। 
  • मौद्रिक नीति दृष्टिकोण में परिवर्तन: MPC ने नीतिगत रुख को 'विदड्राल ऑफ एकोमोडेशन' से बदलकर 'न्यूट्रल' कर दिया 
    • न्यूट्रल दृष्टिकोण से MPC को आवश्यकतानुसार मौद्रिक नीति को समायोजित करने के लिये अधिक लचीलापन मिलता है जबकि "विदड्राल ऑफ एकोमोडेशन" का अर्थ प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति से है, जिसमें RBI का लक्ष्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को कम करना (मुद्रास्फीति दबावों पर अंकुश लगाना) होता है।
    • जब RBI द्वारा रियायतें वापस ली जाती हैं तो यह संकेत मिलता है कि वह कम ब्याज दरों के माध्यम से आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिये कम इच्छुक है तथा इसके बजाय वह कीमतों को स्थिर करने पर केंद्रित है।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्य: RBI ने वित्त वर्ष 2025 के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को 4.5% पर बनाए रखा है।
    • आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिये अस्थायी विचलन की अनुमति देते हुए 4% (±2%) के लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 2015 में लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्य (FIT) रखा गया था।
  • वास्तविक GDP संवृद्धि अनुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2025 के लिये वास्तविक GDP संवृद्धि अनुमान को 7.2% पर बनाए रखा है। निजी उपभोग और निवेश मांग से प्रेरित भारत की स्थिति मज़बूत बनी हुई है।
    • UPI123PAY की लेन-देन सीमा में वृद्धि: RBI ने UPI123PAY की प्रति लेन-देन सीमा 5,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दी है।
      • RBI ने UPI लाइट की प्रति लेन-देन सीमा को 500 रुपए से बढ़ाकर 1,000 रुपए करने की घोषणा की है। RBI ने UPI लाइट वॉलेट की सीमा भी वर्तमान 2,000 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दी है।
      • UPI123PAY मुख्य रूप से गैर-स्मार्ट फोन/फीचर फोन उपयोगकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध भुगतान प्रणाली है जिसके द्वारा ये इंटरनेट कनेक्टिविटी के बिना UPI का उपयोग करके भुगतान कर सकते हैं।
  • रिज़र्व बैंक-क्लाइमेट रिस्क इनफाॅर्मेशन सिस्टम (RB-CRIS): RBI ने क्लाइमेट संबंधी आँकड़ों के बीच अंतर को समाप्त करने के लिये RB-CRIS नामक एक डेटा भंडार के निर्माण का प्रस्ताव दिया है, जो वर्तमान में खंडित रूप में उपलब्ध है। 
    • इससे वित्तीय संस्थाओं और वित्तीय प्रणाली की बैलेंस शीट की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये क्लाइमेट रिस्क का आकलन हो सकेगा। यह दो भागों में होगा।
      • पहला भाग एक वेब-आधारित निर्देशिका होगी, जिसमें RBI की वेबसाइट पर  विभिन्न सार्वजनिक रूप से सुलभ क्लाइमेट संबंधी और भू-स्थानिक डेटा स्रोतों की सूची होगी।
      • दूसरा भाग मानकीकृत डेटासेट वाला एक डेटा पोर्टल होगा, जो चरणबद्ध तरीके से केवल विनियमित संस्थाओं के लिये सुलभ होगा।
  • NBFC को निर्देश: RBI ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) और आवास वित्त कंपनियों (HFC) को 'पूर्वानुपालन' संस्कृति का पालन करने और ग्राहक संबंधी शिकायतों के प्रति ईमानदार दृष्टिकोण अपनाने के लिये सख्त दिशानिर्देश (Strong Advisory) जारी किये।
    • पूर्वानुपालन संस्कृति के तहत अन्य व्यावसायिक विचारों से परे कानूनों, विनियमों और आंतरिक नीतियों के अनुपालन को प्राथमिकता दी जाती है।

नोट: MPC मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीतिगत रेपो दर निर्धारित करती है जबकि अन्य निर्णय RBI द्वारा लिये जाते हैं।

  • UPI लाइट एक नया पेमेंट सॉल्यूशन है, जो कम मूल्य के लेनदेन को संसाधित करने के लिये विश्वसनीय एनपीसीआई कॉमन लाइब्रेरी (CL) एप्लिकेशन का लाभ उठाता है
  • UPI लाइट वॉलेट एक डिजिटल वॉलेट है, जिसमें आप ऑनलाइन लेनदेन करने के लिये अपने बैंक खाते से पैसा डालते हैं।

मौद्रिक नीति समिति की 51 वीं बैठक में NBFC पर RBI का रुख क्या है?

  • किसी भी कीमत पर विकास का दृष्टिकोण (Growth at Any Cost Approach): RBI गवर्नर ने कुछ NBFC के बीच प्रचलित " किसी भी कीमत पर विकास" की मानसिकता के संदर्भ में चिंता व्यक्त की, जो सतत् व्यावसायिक प्रथाओं और मज़बूत जोखिम प्रबंधन ढाँचे की अनदेखी करते हैं। 
  • पारिश्रमिक प्रथाओं की समीक्षा: RBI ने NBFC को निर्देश दिया है, कि वे अपने कर्मचारी पारिश्रमिक की संरचना का, विशेष रूप से अल्पकालिक प्रदर्शन लक्ष्यों से संबंधित बोनस और प्रोत्साहनों के संबंध में, पुनर्मूल्यांकन करें।
    • RBI को चिंता है कि इस प्रकार की प्रथाओं से जोखिमपूर्ण या असंवहनीय व्यवहार को बढ़ावा मिल सकता है, जो केवल तात्कालिक परिणामों पर केंद्रित है।
  • सूदखोरी प्रथाएँ: NBFC द्वारा उच्च ब्याज दर वसूलने तथा अनुचित रूप से उच्च प्रसंस्करण शुल्क और ज़ुर्माना लगाने के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं हैं।
  • विकास लक्ष्यों का प्रभाव: RBI गवर्नर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आक्रामक विकास लक्ष्यों के कारण खुदरा ऋण वृद्धि हो सकती है, जो वास्तविक मांग के अनुरूप नहीं होगी।
    • इससे संभावित रूप से उच्च ऋण के बढ़ने की संभावना है, जिससे वित्तीय स्थिरता को संकट हो सकता है।
  • निवेशकों का दबाव: MFI और HFC समेत कुछ NBFC, इक्विटी पर अत्यधिक रिटर्न (ROE) प्राप्त करने के लिये निवेशकों के दबाव से प्रेरित हैं।
    • RBI ने NBFC से सतत् कारोबारी लक्ष्य अपनाने का आग्रह किया और कहा कि वे अल्पकालिक लाभ के लिये दीर्घकालिक स्थिरता से समझौता न करें। 

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) क्या हैं?

  • NBFC: एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) को एक ऐसी कंपनी के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अधीन कार्य करती है, जो मुख्य रूप से ऋण और अग्रिम प्रदान करने, शेयर, बॉन्ड और डिबेंचर जैसी वित्तीय प्रतिभूतियों को प्राप्त करने के साथ-साथ पट्टे और किराया-खरीद लेनदेन में संलग्न है
    • हालाँकि, NBFC में वे संस्थाएँ शामिल नहीं हैं जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि, औद्योगिक गतिविधियाँ, वस्तुओं के क्रय या विक्रय (प्रतिभूतियों को छोड़कर), सेवाएँ प्रदान करना, या अचल संपत्ति से संबंधित है।
  • वर्गीकरण हेतु मानदंड: NBFC को अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में वित्तीय गतिविधियों का संचालन करना चाहिये। इसका अर्थ यह है कि इसकी कुल संपत्ति का 50% से अधिक भाग वित्तीय परिसंपत्तियों में होना चाहिये, और इसी प्रकार, वित्तीय परिसंपत्तियों से आय इसकी सकल आय के 50% से अधिक होनी चाहिये
  • बैंकों और NBFC के बीच अंतर: यद्यपि NBFC बैंकों के समान कार्य करते हैं, फिर भी इनमें विभिन्न अंतर मौज़ूद हैं।
  • NBFC के लिये पंजीकरण आवश्यकताएँ: RBI अधिनियम, 1934 के तहत, प्रत्येक NBFC के लिये अपना परिचालन शुरू करने से पहले RBI से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य है।
    • इसके अतिरिक्त पंजीकरण के लिये अर्हता प्राप्त करने हेतु NBFC को न्यूनतम 25 लाख रुपए (या अप्रैल 1999 से 2 करोड़ रुपए) का शुद्ध स्वामित्व निधि (NOF) बनाए रखना होगा।
  • पंजीकरण से छूट: NBFC की कुछ श्रेणियों को RBI के साथ पंजीकरण से छूट दी गई है क्योंकि ये अन्य प्राधिकरणों द्वारा विनियमित हैं। उदाहरणार्थ,
  • NBFC में हालिया रुझान: वित्त वर्ष 24 में, NBFC की प्रबंधन के अधीन संपत्ति (AUM) 18% बढ़कर 47 ट्रिलियन रुपए हो गई, जबकि जून 2024 तक NPA अनुपात 2.6% रहा।
    • यह प्रतिवर्ष 18% की दर से बढ़ रहा है। 

मौद्रिक नीति समिति क्या है?

निष्कर्ष

RBI की 51 वीं MPC बैठक में रेपो दर को बनाए रखते हुए तटस्थ मौद्रिक नीति के रुख पर बल दिया गया। इसने NBFC के लिये आक्रामक विकास रणनीतियों पर सतत् प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये अनुपालन, ज़िम्मेदार ऋण और जोखिम प्रबंधन के महत्त्व को रेखांकित किया। इसके अतिरिक्त इसने UPI के लिये बढ़ी हुई लेन-देन सीमा की घोषणा की साथ ही सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये NBFC के बीच अनुपालन पर बल दिया।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) क्या हैं? NBFC को विनियमित करने में RBI की भूमिका बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न: मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पॉलिसी कमिटी/ MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है/ हैं? (2017)

  1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
  2. यह एक 12-सदस्यीय निकाय है जिसमे RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन किया जाता है।  
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करता है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2 
(c) केवल 3 
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न: भारतीय रुपए की गिरावट रोकने के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा एक सरकार/भारतीय रिज़र्व बैक द्वारा किया जाने वाला सर्वाधिक संभावित उपाय नहीं है? (2019) 

(a) गैर-जरुरी ​वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण और निर्यात को प्रोत्साहन
(b) भारतीय उधारकर्ताओं को रुपए मूल्यवर्ग के मसाला बॉन्ड जारी करने हेतु प्रोत्साहित करना
(c) विदेशी वाणिज्यिक उधारी से संबंधित दशाओं को आसान बनाना
(d) एक प्रसरणशील मौद्रिक नीति का अनुसरण करना

उत्तर: (d)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न: क्या आप इस मत से सहमत हैं कि स्थिर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न  मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2