भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के विकास में वित्तीय क्षेत्र की भूमिका
- 20 Jul 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:विकसित राष्ट्र का दर्जा, भारतीय रिज़र्व बैंक, पूंजी निर्माण, सतत् विकास, लो-कार्बन इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, वित्तीय समावेशन, बैंकों का निजीकरण, हरित परियोजनाएँ, इक्विटी बाज़ार, बेसल समिति, कॉर्पोरेट बॉण्ड मेन्स के लिये: |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2047 में अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगाँठ के समय तक एक विकसित राष्ट्र बनने का भारत का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसका वित्तीय क्षेत्र कितनी अच्छी तरह से विकसित है।
भारत के विकास में वित्तीय क्षेत्र किस प्रकार सहयोग कर सकता है?
- सतत् उच्च वृद्धि: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिये आगामी 25 वर्षों तक 7.6% वार्षिक दर से विकास करने की आवश्यकता है।
- उच्च विकास दर को दीर्घावधि तक बनाए रखने के लिये एक स्थिर, कुशल और अभिनव वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता होगी जो मैक्रो-वित्तीय स्थिरता से समझौता किये बिना भारतीय परिवारों तथा व्यवसायों एवं सरकारों की आवश्यकताओं को पूरा करे।
- बचत का एकत्रीकरण: पूंजी निर्माण हेतु घरेलू एवं बाहरी दोनों स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूंजी संचय तीव्रता से होना चाहिये।
- वित्त एवं पूंजी की मांग बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, विनिर्माण की बढ़ती आवश्यकताओं, औपचारिक अर्थव्यवस्था के विस्तार और बढ़ती व्यापार गतिविधियों से उत्पन्न होगी।
- वित्त एवं पूंजी की आपूर्ति के लिये घरेलू बचत, चिरस्थायी विदेशी पूंजी जुटाने और जमा, ऋण तथा इक्विटी बाज़ारों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
- बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका:
- नए वित्तीय संस्थान की आवश्यकता: डिजिटल, थोक/निवेश और विशिष्ट बैंकों सहित विभिन्न आकारों के बैंकों तथा NBFC की एक विविध श्रेणी वित्तीय समावेशन का समर्थन करने एवं बड़े पैमाने की परियोजनाओं को निधि प्रदान करने के लिये आवश्यक है।
- फिनटेक कंपनियों की भूमिका: वित्तीय पहुँच और समावेशन को आगे बढ़ाने तथा आने वाले वर्षों में बैंकिंग एवं वित्तीय प्रणाली में दक्षता बढ़ाने में फिनटेक कंपनियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- रिज़र्व बैंक की नीतियों के अनुसार फिनटेक कंपनियाँ अपनी बैलेंस शीट पर ऋण नहीं दे सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष वित्तीय जोखिम भी कम हो गए हैं।
- बैंकों का निजीकरण: मार्च 2024 की तिमाही की बैंक बैलेंस शीट के अनुसार, सात PSB के पास शुद्ध NPA में ऋण अग्रिम का 1% से भी कम है। कोई भी PSB अब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क के तहत नहीं है जो ऋण प्रतिबंध लगाता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने से नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और वेतन संबंधी प्रतिबंध हट जाएंगे, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में समानता आएगी, उनकी लाभप्रदता तथा मूल्यांकन में वृद्धि होगी एवं संभवतः वे निजी बैंकों के बराबर आ जाएंगे, जिससे ऋण तक पहुँच, निवेश व रोज़गार वृद्धि को लाभ होगा।
- पूंजी बाज़ार की भूमिका:
- सरकार का लक्ष्य है कि भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँच जाए और वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन को कम कर दे, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक परियोजनाओं तथा योजनाओं के लिये वित्त पर निर्भर करेगा।
- 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने वाले बाज़ार पूंजीकरण के साथ भारतीय बाज़ार अब आकार के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है, जो अमेरिका, चीन और जापान की तुलना में पीछे है। हाल ही में बाज़ार पूंजीकरण से सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 150% को पार कर गया है।
- भारतीय पूंजी बाज़ार तकनीकी परिवर्तनों के अनुकूलन ढालने में सुसज्जित है, यह नियामकों के साथ-साथ संस्थान और प्रतिभागी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करने में कुशल है, जो भारत के विकास लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये इक्विटी बाज़ारों की स्थिति का निर्माण करते हैं।
- सरकार का लक्ष्य है कि भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँच जाए और वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन को कम कर दे, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक परियोजनाओं तथा योजनाओं के लिये वित्त पर निर्भर करेगा।
वित्तीय क्षेत्र को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- वित्तीय पहुँच का विस्तार करने और दक्षता में सुधार करने में फिनटेक कंपनियों की भूमिका के बावजूद उनकी तीव्र वृद्धि ग्राहकों की सुरक्षा तथा बैंकों एवं गैर-बैंकों दोनों के लिये संभावित अप्रत्यक्ष जोखिम जैसी चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
- उभरते केंद्रीकृत जोखिमों के बारे में भी चिंताएँ हैं क्योंकि बड़ी तकनीकी कंपनियाँ फिनटेक क्षेत्र पर तेज़ी से हावी हो रही हैं। फिनटेक कंपनियाँ, जो वर्तमान में अनियमित हैं, व्यवहार्यता और प्रभावशीलता की चुनौतियों के बावजूद प्रत्यक्ष विनियामक निरीक्षण की माँग का सामना करती हैं।
- डिजिटल लेंडिंग, बाय नाउ पे लेटर (BNPL) और पे-एज़-यू-गो स्कीम्स के तीव्र पैमानों (Rapid Scale) को अपनाने की दरों के कारण संभावित अति-विस्तारण तथा विवेक रहित उत्साह (Irrational Enthusiasm) संबंधी चुनौती का सामना करना पड़ता है।
- सामान्य जोखिमों में गलत बिक्री और अत्यधिक जोखिम शामिल हैं।
- डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और परिचालन संबंधी मुद्दों से जुड़े जोखिमों से एक चुनौती उत्पन्न होती है, जिस पर भी विचार किया जाना चाहिये।
- PSB अपनी बैलेंस शीट में सुधार के बावज़ूद भारतीय निजी बैंकों की तुलना में प्राइस-टू-बुक गुणक के साथ काफी कम संघर्ष करते हैं, जो संभावित रूप से कम प्रदर्शन का संकेत देता है।
- निजी बैंक प्रायः जमा पूंजी के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता से बचने के लिये न्यून ऋण वृद्धि लेकिन उच्च मार्जिन बनाए रखने का विकल्प चुनते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप जमा दरें कम हो जाती हैं, जिससे भारतीय बचतकर्त्ता इक्विटी और आवास निवेश को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे जमा वृद्धि के लिये चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
- भारत के अविकसित कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार को अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिये सरकार के तत्काल ध्यान की आवश्यकता है।
आगे की राह
- बैंकिंग क्षेत्र:
- बैंकों की पर्याप्त पूंजी आवश्यकताओं के कारण व्यापारिक और औद्योगिक घरानों, निजी इक्विटी, उद्यम पूंजी कोषों तथा विदेशी बैंकों को बैंकों में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी की अनुमति देने की अनिच्छा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि बैंक, NBFC और फिनटेक कंपनियाँ अत्यधिक उत्साह की प्रवृत्ति के बावजूद सुरक्षित, संरक्षित तथा कुशलतापूर्वक काम करें, बैंकिंग प्रणाली हेतु मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने एवं उस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) के अंतर्गत बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति द्वारा विकसित सुस्थापित सुरक्षा उपायों को अपनाना और लागू करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें वैश्विक वित्तीय विकास तथा अनुभवों के आधार पर कई वर्षों के दौरान परिष्कृत किया गया है।
- पूंजी और प्रतिभूति बाज़ार:
- तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों द्वारा बाज़ार जोखिमों के कमज़ोर आकलन से रोकने के लिये विनियामक ध्यान बढ़ाने की आवश्यकता है। विनियामकों को संभावित मुद्दों का अनुमान लगाना चाहिये और नवाचार हेतु जगह छोड़ते हुए सुरक्षा उपायों को लागू करना चाहिये।
- सर्वोच्च प्राथमिकता सरकारी प्रतिभूतियों और कॉर्पोरेट बॉण्डों के लिये बॉण्ड बाज़ार विनियमन को एकीकृत करना तथा निवेशकों, व्यापारियों एवं हितधारकों हेतु प्रक्रियाओं को सरल बनाना होना चाहिये।
- विकासशील बॉण्ड बाज़ार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, क्योंकि यह हरित और ऊर्जा परिवर्तन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो तेज़ी से विदेशी निवेश पर निर्भर होंगे, जिसके लिये विशिष्ट सुविधाजनक उपायों की आवश्यकता होगी।
- अन्य उपाय:
- बैंकों के अलावा वित्तीय क्षेत्र के अन्य भागों, जैसे बीमा और ऊर्जा क्षेत्र के वित्त का निजीकरण भी एक साथ उठाए जाने वाले कदमों के रूप में विचार किया जाना चाहिये।
- भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे का पुनरुद्धार अत्यंत महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि अनुमान है कि वर्ष 2050 तक 800 मिलियन लोग शहरी क्षेत्रों में निवास करेंगे, हालाँकि वर्ष 2015 से नगरपालिका बॉण्ड को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद नगरपालिकाएँ विकास परियोजनाओं के लिये संसाधनों तथा वित्तपोषण की कमी से जूझ रही हैं।
- परियोजना वित्तपोषण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के हाल के विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों के अनुरूप प्रतिचक्रीय बफर्स और मानक परिसंपत्तियों के लिये प्रावधानों के कार्यान्वयन पर विचार किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने की दिशा में देश की यात्रा को सुविधाजनक बनाने में भारत के वित्तीय क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में सभी ATM को जोड़ता है? (2018) (a) भारतीय बैंक संघ उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत है कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके के लोगों का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि करने के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016) |