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भारतीय अर्थव्यवस्था

माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र

  • 04 Oct 2024
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोफाइनेंस, हाशिए पर पड़े समूह, महिला सशक्तीकरण, माइक्रो फाइनेंस संस्थान (MFI), स्वयं सहायता समूह (SHG), गरीबी उन्मूलन, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, भारतीय माइक्रो फाइनेंस इक्विटी फंड (IMEF), ई-शक्ति पहल, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB), सहकारी समितियाँ

मेन्स के लिये:

वित्तीय समावेशन में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की भूमिका

माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र वित्तीय समावेशन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो वंचित आबादी को छोटे-छोटे ऋण, बचत, बीमा और अन्य सेवाएँ प्रदान करता है। यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तीकरण तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाता है।

माइक्रोफाइनेंस क्या है? 

परिचय:

  • माइक्रोफाइनेंस से तात्पर्य उन परिवारों, छोटे व्यवसायों और उद्यमियों को छोटे मूल्य के ऋण सहित वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है, जिनकी औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं है। 
  • यह वित्तीय समावेशन के लिये एक प्रभावी साधन है, जो हाशिए पर पड़े और निम्न आय वर्ग, विशेषकर महिलाओं को सामाजिक समानता और सशक्तीकरण प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। 
  • भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा 29 राज्यों, 4 केंद्रशासित प्रदेशों और 563 ज़िलों में 168 माइक्रो फाइनेंस संस्थान (Micro Finance Institutions- MFI) कार्यरत हैं। 
  • ये MFI 46,842 करोड़ रुपए के बकाया ऋण पोर्टफोलियो के साथ 3 करोड़ से अधिक ग्राहकों को सेवा प्रदान करते हैं। 
  • भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र का विकास: भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र का विकास चार मुख्य चरणों में हुआ:

प्रारंभिक काल (1974-1984): 

  • 1974: असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये श्री महिला सेवा सहकारी बैंक की स्थापना की गई।
  • 1984: नाबार्ड ने गरीबी उन्मूलन के लिये एक उपकरण के रूप में स्वयं सहायता समूह (Self Help Group- SHG) को जोड़ने की समर्थन की। 

परिवर्तन अवधि (2002-2006): 

  • 2002: स्वयं सहायता समूहों को असुरक्षित ऋण देने के मानदंडों को अन्य सुरक्षित ऋणों के अनुरूप कर दिया गया।
  • 2004: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने माइक्रोफाइनेंस को प्राथमिकता क्षेत्र में शामिल किया तथा MFI को वित्तीय समावेशन के साधन के रूप में मान्यता दी।
  • 2006: उच्च ब्याज दरों और अनैतिक वसूली प्रथाओं के आरोपों के कारण सरकार को कुछ MFI की शाखाओं को बंद करना पड़ा। 

विकास और संकट (2007-2010): 

  • 2007: निजी इक्विटी अभिकर्त्ताओं ने बाज़ार में प्रवेश किया, जिससे MFI ऋण पुस्तिका (35 बिलियन रुपए) में तेज़ी से वृद्धि हुई।
  • 2009: माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (Microfinance Institutions Network- MFIN) का गठन किया गया, जिससे NBFC-MFI को सदस्य बनने की अनुमति मिली।
  • 2010: आंध्र प्रदेश में संकट सामने आया, जिसमें जबरन ऋण वसूली की प्रथाएँ शामिल थीं, जिसके कारण उधारकर्त्ताओं ने आत्महत्या कर ली। सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसने MFI गतिविधियों पर काफी हद तक अंकुश लगाया। 

समेकन और परिपक्वता (2012-2015): 

  • 2012: मालेगाम समिति ने परिवर्तन की सिफारिश की और आरबीआई ने नए नियम लागू किये।
  • 2014: RBI ने सबसे बड़े माइक्रोलेंडर बंधन बैंक को यूनिवर्सल बैंकिंग लाइसेंस जारी किया। MFIN को स्व-नियामक संगठन (SRO) के रूप में मान्यता दी गई।
  • 2015: सरकार ने छोटे व्यवसायों को वित्तपोषित करने के लिये मुद्रा बैंक की शुरुआत की। 

भारत में माइक्रोफाइनेंस की स्थिति: 

  • राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (National Council of Applied Economic Research- NCAER) के एक अध्ययन के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस लगभग 130 लाख नौकरियाँ और हमारे GVA में 2% का योगदान देता है।
  • इसमें सभी 6.3 करोड़ असंगठित और गैर-कृषि उद्यमों तक पहुँचने की क्षमता है। RBI ने हाल ही में माइक्रोफाइनेंस को 3 लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाले परिवारों को दिये जाने वाले संपार्श्विक-मुक्त ऋण के रूप में परिभाषित किया है। 

माइक्रोफाइनेंस में व्यवसाय मॉडल: 

  • स्वयं सहायता समूह (SHG): 
    • SHG 10-20 सदस्यों के अनौपचारिक समूह हैं, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएँ शामिल हैं, जो अपनी बचत को एकत्रित करते हैं और SHG-बैंक लिंकेज प्रोग्राम (SHG-BLP) के तहत औपचारिक बैंकिंग संस्थानों से ऋण के लिये पात्र बन जाते हैं। नाबार्ड SHG के विकास और समर्थन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI): 
    • MFI सूक्ष्म ऋण और बचत, बीमा और धन प्रेषण जैसी अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं। ऋण आमतौर पर संयुक्त ऋण समूहों (Joint Lending Groups- JLG) के माध्यम से प्रदान किये जाते हैं, जो समान आर्थिक गतिविधियों में लगे 4-10 सदस्यों के अनौपचारिक समूह होते हैं जो संयुक्त रूप से ऋण चुकाते हैं। 
  • माइक्रोफाइनेंस ऋणदाताओं की श्रेणियाँ: 
    • गैर-सरकारी संगठन (NGO-MFI): सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 या भारतीय ट्रस्ट अधिनियम 1880 के तहत पंजीकृत ये NGO सूक्ष्म ऋण प्रदान करते हैं।
    • सहकारी समितियाँ: प्रासंगिक कानूनों के तहत पंजीकृत, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (Primary Agricultural Credit Societies- PACS) जैसी सहकारी समितियाँ सूक्ष्म वित्त सेवाएँ प्रदान करती हैं।
    • धारा 8 कंपनियाँ (पूर्व में कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25): ये गैर-लाभकारी संस्थाएँ हैं जो कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत सूक्ष्म ऋण प्रदान करती हैं ।
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC-MFI): NBFC-MFI अपने स्वयं के संसाधनों से या बैंकों से थोक ऋण लेकर JLG को ऋण देते हैं। RBI द्वारा वर्ष 2011 में शुरू की गई इस श्रेणी में माइक्रोफाइनेंस बाज़ार का 80% हिस्सा है। 
  • नियामक ढाँचा: 
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) 01.07.2014 को जारी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-सूक्ष्म वित्त संस्थान (NBFC-MFI) ढाँचे के माध्यम से भारत में MFI को विनियमित करता है।
    • दिशा-निर्देशों में पंजीकरण के लिये पात्रता, ग्राहक सुरक्षा, उधारकर्त्ताओं के अति-ऋणग्रस्तता की रोकथाम, गोपनीयता और ऋण का मूल्य निर्धारण जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है। MFI आमतौर पर इन विनियमों का अनुपालन करते हैं, जिससे क्षेत्र में हितधारकों का विश्वास बढ़ता है।

माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (MFI) के विकास के लिये सरकार के क्या उपाय हैं?

  • भारतीय सूक्ष्म वित्त इक्विटी फंड (IMEF): तरलता चुनौतियों से निपटने के लिये, भारत सरकार ने 2011-12 के केंद्रीय बजट में 100 करोड़ रुपए के प्रारंभिक आवंटन के साथ भारतीय सूक्ष्म वित्त इक्विटी फंड (Indian Micro Finance Equity Fund- IMEF) की शुरुआत की। 
    • भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) के माध्यम से संचालित इस कोष का उद्देश्य, विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में, छोटे, सामाजिक रूप से उन्मुख MFI के पूंजीकरण को मज़बूत करना था।
  • नाबार्ड की भूमिका: नाबार्ड का माइक्रो क्रेडिट इनोवेशन विभाग विभिन्न माइक्रोफाइनेंस नवाचारों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित गरीबों के लिये वित्तीय सेवाओं तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
  • स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP): SHG-BLP गरीब परिवारों को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से जोड़ने वाला एक लागत प्रभावी मॉडल है।
  • नाबार्ड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (NABFINS): नाबार्ड ने NABFINS की स्थापना एक आदर्श माइक्रोफाइनेंस संस्थान के रूप में की, जिसका ध्यान शासन, पारदर्शिता और उचित ब्याज दरों पर केंद्रित था।
  • सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रम (MEDP): उत्पादन गतिविधियों को बढ़ाने के लिये स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के लिये कौशल प्रशिक्षण।
  • ई-शक्ति पहल: नाबार्ड द्वारा शुरू की गई ई-शक्ति पहल माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के लिये एक प्रमुख तकनीकी प्रगति है। यह परियोजना मौजूदा स्वयं सहायता समूहों (SHG) की मैपिंग और एक समर्पित वेबसाइट पर वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों तरह की जानकारी अपलोड करने पर केंद्रित है। 
    • स्वयं सहायता समूहों के डिजिटलीकरण से पारदर्शिता में सुधार होता है , डेटा तक बेहतर पहुँच संभव होती है तथा वित्तीय समावेशन प्रयासों में अधिक दक्षता आती है। 
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): वर्ष 2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को छोटे व्यवसायों के लिये ऋण प्रवाह बढ़ाने हेतु शुरू किया गया था, जो वित्तीय समावेशन का एक आवश्यक घटक है। 

माइक्रोफाइनेंस वित्तीय समावेशन में किस प्रकार योगदान देता है?

  • हाल के वर्षों में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद, इसमें आगे वृद्धि और विकास के अनेक अवसर हैं।  
  • गरीबी उन्मूलन: माइक्रोफाइनेंस निम्न आय वाले व्यक्तियों और परिवारों को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके गरीबी उन्मूलन के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।
  • अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोफाइनेंस लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद कर सकता है, जिससे वे अपने आय स्रोतों में विविधता ला सकते हैं और अपने जीवन स्तर में सुधार कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य, सामाजिक पूंजी और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: माइक्रोफाइनेंस का स्वास्थ्य और शिक्षा सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो बाद में आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है। 
  • उदाहरण के लिये, ग्रामीण बैंक  द्वारा किये गए शोध से पता चलता है कि माताओं को ऋण तक पहुँच प्रदान करने से उनके बच्चों की स्कूल नामांकन दर लड़कियों के लिये लगभग 1.9% और लड़कों के लिये 2.4% बढ़ सकती है।
  • विकास उपकरण के रूप में माइक्रोफाइनेंस: माइक्रोफाइनेंस अप्रत्याशित संकटों, जैसे कि व्यावसायिक जोखिम या आपूर्ति में व्यवधान, के विरुद्ध एक बफर के रूप में कार्य कर सकता है। 
  • अध्ययनों से पता चलता है कि माइक्रोफाइनेंस राष्ट्रीय और वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति अपेक्षाकृत लचीला है तथा कठिन समय के दौरान एक विश्वसनीय सहायता प्रणाली प्रदान करता है।
  • वाणिज्यिक बैंकों के लिये अवसर: चूंकि अनेक माइक्रोफाइनेंस संस्थान सीमित रेंज में माइक्रोफाइनेंस उत्पाद उपलब्ध कराते हैं, इसलिये वाणिज्यिक बैंकों के लिये इस क्षेत्र में नवीन पेशकश विकसित करने का अवसर है।
  • शोध से पता चलता है कि माइक्रोफाइनेंस उत्पादों की वसूली दर और लाभप्रदता उच्च हो सकती है।
  • महिला सशक्तीकरण: माइक्रोफाइनेंस महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने और उसे बढ़ाने  का अवसर प्रदान करता है।
  • कई लघु वित्त संस्थाएँ, विशेषकर बांग्लादेश जैसे देशों में, महिलाओं को ऋण देने को प्राथमिकता देती हैं, क्योंकि उनकी पुनर्भुगतान दर अधिक होती है। 

वित्तीय समावेशन की अवधारणा क्या है? 

परिचय: 

  • वित्तीय समावेशन को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, " कमज़ोर वर्गों और निम्न आय वर्ग जैसे संवेदनशील समूहों को, जहाँ आवश्यक हो, वहनीय लागत पर वित्तीय सेवाओं और समय पर पर्याप्त ऋण तक पहुँच सुनिश्चित करने की प्रक्रिया।" 

निम्न आय वाले परिवारों के लिये चुनौतियाँ: 

  • निम्न आय वाले परिवारों के पास अक्सर बैंक खाते तक पहुँच नहीं होती और उन्हें निम्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है: 
    • बुनियादी बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिये कई बार चक्कर लगाने पर समय और पैसा खर्च करना
    • बचत खाता खोलने या ऋण प्राप्त करने में कठिनाई
    • परिणामस्वरूप, बैंकिंग सुविधा से वंचित आबादी बड़े पैमाने पर बैंकिंग प्रणाली से कट गई है। 

वित्तीय बहिष्करण: 

  • उन्नत ग्राहक विभाजन प्रौद्योगिकी जैसी कुछ प्रवृत्तियों ने विशिष्ट समूहों के लिये वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित कर दिया है। 
    • इससे एक विभाजन पैदा होता है, जहाँ उच्च और उच्च-मध्यम आय वर्ग की आबादी को व्यक्तिगत वित्त विकल्पों की एक विस्तृत शृंखला का लाभ मिलता है, जबकि एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के पास बुनियादी बैंकिंग सेवाओं तक भी पहुँच नहीं है। इस पहुँच की कमी को "वित्तीय बहिष्कार" कहा जाता है। 

वित्तीय समावेशन में पारंपरिक मॉडल की विफलता:

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB): 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना का उद्देश्य ग्रामीण आबादी तक औपचारिक ऋण प्रणाली का विस्तार करना था। 
  • RRB अधिनियम, 1976 में ग्रामीण क्षेत्र को पर्याप्त और समय पर वित्त उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया।
  • ग्रामीण क्षेत्र की प्रधानता के कारण, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को गैर-निष्पादित आस्तियों (Non-Performing Assets- NPA) और परिचालन लागत के उच्च स्तर से जूझना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप भारी घाटा हुआ है। 
  • सहकारिता: ग्रामीण ऋण सहकारी समितियों की स्थापना छोटे साधन वाले लोगों के संसाधनों को एकत्रित करने तथा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये की गई थी। 
  • हालाँकि दशकों के सहकारी प्रयासों के बावजूद, निजी एजेंसियों का ग्रामीण ऋण बाज़ार पर प्रभुत्व बना रहा और सहकारी समितियाँ किसानों की कुल उधारी ज़रूरतों का केवल 35% ही पूरा कर सकीं।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ और आगे की राह क्या हैं?

चुनौती

आगे की राह

दूरदराज के क्षेत्रों में उच्च आउटरीच लागत।

प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, स्थानीय व्यवसायों के साथ साझेदारी करना, क्षेत्र बल का अनुकूलन करना।

उचित मूल्यांकन के अभाव के कारण अत्यधिक ऋणग्रस्तता।

जोखिम मूल्यांकन को मज़बूत करना, वित्तीय शिक्षा प्रदान करना, ऋण उत्पादों में विविधता लाना।

मुख्यधारा के बैंकों की तुलना में प्रतिस्पर्द्धात्मक नुकसान।

वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों की खोज करना, मूल्य-वर्द्धित सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना, नियामक सुधारों का समर्थन करना।

मूल्यांकन के लिये विश्वसनीय डेटा प्राप्त करने में कठिनाई।

मानकीकृत मूल्यांकन ढाँचे का विकास करना, डेटा विश्लेषण में निवेश करना, बाहरी सत्यापन की कोशिश करना।

शहरी गरीबों तक सीमित पहुँच।

उत्पादों और सेवाओं को अनुकूलित करना, शहरी स्थानीय निकायों के साथ साझेदारी करना, डिजिटल चैनलों का लाभ उठाना।

अपर्याप्त जोखिम प्रबंधन पद्धतियाँ और संपार्श्विक का अभाव।

ऋण जोखिम मूल्यांकन को बढ़ाना, वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना, संपार्श्विक आवश्यकताओं पर विचार करना।

खराब बुनियादी ढाँचे के कारण दूरदराज के क्षेत्रों में ग्राहकों तक पहुँचने में कठिनाई।

मोबाइल प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, स्थानीय एजेंटों के साथ साझेदारी करना, बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।

सीमित परिचालन लचीलापन और बैंकिंग नीतियों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता।

वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों की खोज करना, आंतरिक क्षमता का निर्माण करना, नीतिगत परिवर्तनों का समर्थन करना।

वित्तीय सिद्धांतों और सेवाओं के बारे में जागरूकता का अभाव।

वित्तीय साक्षरता अभियान चलाना, स्कूलों और कॉलेजों के साथ साझेदारी करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।

निष्कर्ष 

माइक्रोफाइनेंस कार्यक्रम ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने एक व्यवसाय मॉडल के रूप में अपनी व्यवहार्यता साबित की है और साथ ही गरीब, हाशिए पर पड़े लोगों और बैंकिंग सेवाओं से वंचित लोगों सहित आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से तक पहुँचने की अपनी क्षमता भी साबित की है। बैंकिंग प्रणाली के पूरक के रूप में कार्य करते हुए इसने वंचितों को स्थायी माइक्रोफाइनेंस सेवाएँ प्रदान करने का प्रयास किया है, जिससे देश में अधिक समावेशी विकास और आर्थिक समानता प्रदान की जा सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक

Q. माइक्रोफाइनेंस कम आय वर्ग के लोगों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है। इसमें उपभोक्ता और स्वरोज़गार करने वाले दोनों शामिल हैं। माइक्रोफाइनेंस के तहत दी जाने वाली सेवा/सेवाएँ हैं (2011)

  1. ऋण सुविधाएँ
  2. बचत सुविधाएँ
  3. बीमा सुविधाएँ
  4. फंड ट्रांसफर सुविधाएँ

सूचियों के नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 4
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

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