डेली न्यूज़ (10 Mar, 2025)



अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (BPfA), यूनाइटेड नेशंस वुमन, मातृ मृत्यु दर, विज्ञान ज्योति, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, PMGDISHA, महिला आरक्षण अधिनियम, 2023, जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (GATI)

मेन्स के लिये:

महिला अधिकारों की स्थिति, महिला सशक्तीकरण से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

 स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों को मान्यता देने के क्रम में 8 मार्च को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्या है?

  • परिचय: यह महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने हेतु समर्पित एक विशेष दिन है जिसके तहत लैंगिक असमानताओं पर प्रकाश डालने के साथ राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था में महिलाओं के अधिकारों को महत्त्व दिया जाता है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का विषय है- ‘सभी महिलाओं और लड़कियों के लिये: अधिकार, समानता, सशक्तीकरण।
  • इतिहास: जर्मन कार्यकर्त्ता क्लारा ज़ेटकिन ने इस विचार का प्रस्ताव रखा, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1911 में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में पहली बार इसे मनाया गया।
    • वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता दी।
  • उद्देश्य: यह कार्यस्थल पर समानता के साथ प्रजनन अधिकार जैसे प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के क्रम में एक मंच के रूप में कार्य करता है।
    • सरकारें और संगठन इस दिन का उपयोग महिला सशक्तीकरण के साथ भेदभाव समाप्त करने हेतु नीतियों को प्रसारित करने के लिये करते हैं।

बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन क्या है? 

  • बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (1995) को वर्ष 1995 में बीजिंग, चीन में आयोजित महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। 
    • यह महिलाओं एवं लड़कियों के अधिकारों के लिये एक महत्वपूर्ण आयाम है, जो विधिक संरक्षण, सेवा तक पहुँच, युवा सहभागिता तथा सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • भारत BPfA का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • कार्रवाई के क्षेत्र: इसके तहत लैंगिक समानता पर तत्काल कार्रवाई हेतु 12 प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करने के साथ सभी के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के क्रम में रणनीति प्रदान की गई। इसमें शामिल प्रमुख क्षेत्र हैं:

BPfA_Areas

  • बीजिंग+30 कार्य एजेंडा: यह BPfA की 30वीं वर्षगाँठ (1995-2025) के उपलक्ष्य में इसके कार्यान्वयन की समीक्षा एवं मूल्यांकन पर केंद्रित है।
  • यह छह प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है:

Beijing+30_Areas

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मातृ स्वास्थ्य: संस्थागत प्रसव में 95% तक वृद्धि हुई है, जिससे मातृ मृत्यु दर में प्रति 100,000 जन्मों पर 130 से 97 तक की गिरावट आई है (2014-2020)।
    • विवाहित महिलाओं में गर्भनिरोधक का उपयोग 56.5% होने से प्रजनन स्वास्थ्य विकल्पों में वृद्धि हुई है।
  • शिक्षा और कौशल: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं ने लिंग अनुपात (NFHS -5 के अनुसार प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएँ) के साथ उच्च विद्यालय स्तर पर महिलाओं के नामांकन (2014-15 से 28%) में सुधार में योगदान दिया है।
    • इसी तरह, विज्ञान ज्योति (2020) का उद्देश्य STEM शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
  • वित्तीय समावेशन: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से 100 मिलियन महिलाओं को वित्तीय पहुँच प्राप्त हुई है जबकि PMGDISHA के तहत 35 मिलियन ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षित किया है।
    • लैंगिक-संवेदनशील बजट 8.8% (वर्ष 2025-26) है, जिसमें लैंगिक-विशिष्ट कार्यक्रमों के लिये  55.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का आवंटन किया गया है।
  • लैंगिक हिंसा को संबोधित करना: 770 वन स्टॉप सेंटर महिला पीड़ितों को चिकित्सा, कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये, ओडिशा की ब्लॉकचेन प्रणाली महिला पीड़ितों को त्वरित, गोपनीय सहायता प्रदान करती है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 महिलाओं के लिये 33% विधायी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, और स्थानीय शासन में 1.4 मिलियन महिलाओं के साथ भारत विश्व स्तर पर अग्रणी है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में महिलाएँ: जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (GATI) STEM में महिलाओं को सहायता प्रदान करता है, जबकि G20 टेकइक्विटी प्लेटफॉर्म हज़ारों युवा महिलाओं को उभरती प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करता है।

Women_Reservation_Act,_2023

महिला सशक्तिकरण के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव: महिलाएँ केवल 27% संसदीय सीटें, 36% स्थानीय सरकारी पद और 28% प्रबंधन भूमिकाएँ रखती हैं जो समावेशी नीति-निर्माण में बाधा डालती हैं।
  • लैंगिक हिंसा: 88% देशों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विरुद्ध कानून होने के बावजूद, वर्ष 2022 के बाद से संघर्ष-संबंधी यौन हिंसा में 50% की वृद्धि हुई है, जिसमें 95% पीड़ित महिलाएँ और लड़कियाँ हैं। 
  • कार्यस्थल पर भेदभाव: कार्यशील आयु की 61% महिलाएँ काम करती हैं, जबकि पुरुषों के लिये यह आँकड़ा 91% है, तथा वे पुरुषों की तुलना में केवल 51% आय अर्जित करती हैं, जिससे असमानता और अधिक बढ़ रही है।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अवैतनिक देखभाल कार्य पर प्रतिदिन 2.3 गुना अधिक समय व्यतीत करती हैं। वर्ष 2050 तक, वे अभी भी 9.5% अधिक समय व्यतीत करेंगी, जिससे शिक्षा और नौकरी के अवसर सीमित हो जाएंगे।
  • शिक्षा एवं भोजन में बाधाएँ: वर्ष 2030 तक 110 मिलियन लड़कियाँ और युवतियाँ स्कूल से बाहर रह सकती हैं।
    • वर्ष 2030 तक 24% महिलाओं और लड़कियों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है, जबकि केवल 44% देश ही उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण में सुधार कर रहे हैं।
  • कानूनी बाधाएँ: 28 देशों में महिलाओं को विवाह और तलाक में समान अधिकार नहीं हैं, जबकि 67 देशों में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है (संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट)। 

आगे की राह

  • लैंगिक-संवेदनशील बजट: महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्त और सामाजिक सुरक्षा के लिये धन में वृद्धि। जवाबदेही और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये निगरानी को मजबूत करना। 
  • कानूनी संरक्षण को मज़बूत करना: विवाह, तलाक, संपत्ति और श्रम पर भेदभावपूर्ण कानूनों को समाप्त करना, साथ ही लैंगिक हिंसा कानूनों के प्रवर्तन को मज़बूत करना और पीड़ितों की सहायता के लिये वन स्टॉप सेंटरों की स्थापना करना।
  • आर्थिक सशक्तिकरण: यह सुनिश्चित करना कि महिला किसानों को भूमि, ऋण और खाद्य सुरक्षा के लिये संसाधनों तक समान पहुँच हो। 
    • स्वयं सहायता समूहों और महिला उद्यमियों को वित्तीय साक्षरता, ऋण और बाज़ार पहुँच प्रदान करके सहायता प्रदान करना।
  • कार्यस्थल की असमानता को कम करना: महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये लचीली कार्य व्यवस्था, माता-पिता की छुट्टी और कार्यस्थल पर बच्चों की देखभाल को प्रोत्साहित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में लैंगिक समानता प्राप्त करने में प्रमुख बाधाओं की पहचान कीजिये और इन अंतरालों को पाटने के लिये नीतिगत उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग देता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) यू एन वुमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न.1 "महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है"। चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न.2 भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये? (2015)

प्रश्न.3 महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (2013)


एक उम्मीदवार अनेक निर्वाचन क्षेत्र

प्रारंभिक परीक्षा:

अनुच्छेद 101, संसद, उप-चुनाव, आदर्श आचार संहिता,  अनुच्छेद 19

मुख्य परीक्षा:

भारत में चुनावी सुधार, लोकतंत्र और शासन पर OCMC का प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

भारत में चुनावी सुधारों पर परिचर्चा एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) विधेयक के आने के साथ ही तेज़ हो गई हैं। इसने एक उम्मीदवार, अनेक निर्वाचन क्षेत्र (OCMC) के मुद्दे को भी उज़ागर किया है, जहाँ एक उम्मीदवार एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है।

  • ये रुझान विधिक रूप से स्वीकार्य हैं, लेकिन इससे शासन की कार्यकुशलता, जनता के विश्वास और बार-बार होने वाले चुनावों के वित्तीय बोझ के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

OCMC के संबंध में क्या प्रावधान हैं?

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
    • वर्ष 1996 से पूर्व: उम्मीदवार द्वारा अनेक सीटों से चुनाव लड़ने की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं था। विजेता एक को छोड़कर बाकी सभी सीटें छोड़ सकता था।
    • वर्ष 1996 के पश्चात्: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) उम्मीदवारों को एक चुनाव में एक ही समय में अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाती है।
      • यदि कोई व्यक्ति संसद या राज्य विधानमंडल में एक से अधिक सीटों पर निर्वाचित होता है, तो उसे निर्धारित समय के भीतर सभी सीटों से त्यागपत्र देना होगा, केवल एक को छोड़कर। अन्यथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 70 के तहत उसकी सभी सीटें रिक्त मानी जाएँगी।
      • रिक्त सीटों की आपूर्ति के लिये छह माह के भीतर उपचुनाव आयोजित किये जाते हैं (धारा 151A)।
  • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 101 संसद में सीटों की रिक्तता, अयोग्यता और दोहरी सदस्यता से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 101(1) के अनुसार, कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता, और यदि वह दोनों सदनों में निर्वाचित होता है, तो एक सीट को रिक्त करने के लिये विधि द्वारा प्रावधान किया जाएगा।
    • अनुच्छेद 101(2): कोई व्यक्ति संसद और राज्य विधानमंडल दोनों का सदस्य नहीं हो सकता। यदि वह दोनों के लिये निर्वाचित होता है, तो उसे राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर राज्य विधानमंडल से त्यागपत्र देना होगा, अन्यथा उसकी संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  • समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, 1950: कोई व्यक्ति संसद और राज्य विधानमंडल दोनों की सदस्यता एक साथ नहीं रख सकता।

OCMC से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सत्तारूढ़ पार्टी को लाभ: राज्य के संसाधनों पर नियंत्रण रखने वाली सत्तारूढ़ पार्टियों को उप-चुनावों में लाभ मिलता है, जिससे विपक्षी पार्टियों के लिये चुनाव लड़ना कठिन हो जाता है।
  • वित्तीय तनाव: एक से अधिक सीटों पर जीत के कारण बार-बार उपचुनाव होने से लागत बढ़ती है और करदाताओं पर बोझ पड़ता है।
    • वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर 6,931 करोड़ रुपए खर्च होंगे, जिसमें उपचुनावों पर 130 करोड़ रुपए खर्च होंगे। 
      • हालाँकि बड़ी चिंता राजनीतिक दलों के खर्च को लेकर है, जो अनुमानतः 1.35 लाख करोड़ रुपए है, जिससे वित्तीय पारदर्शिता और बेहिसाबी धन (काला धन) के संभावित प्रभाव पर सवाल उठ रहे हैं, जिसका प्रभाव अंततः जनता पर पड़ रहा है।
  • इसके अतिरिक्त पराजित उम्मीदवारों को कुछ माह के भीतर पुनः चुनाव लड़ना होगा, जिससे पार्टी के संसाधनों पर दबाव पड़ेगा और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा में बाधा आएगी।
    • पैराशूट उम्मीदवारी से तात्पर्य ऐसे उम्मीदवार से है जो ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ता है जहाँ उसका बहुत कम संपर्क या स्थानीय उपस्थिति होती है। 
      • OCMC में, पैराशूट उम्मीदवारों में प्रायः स्थानीय सहभागिता और जवाबदेही का अभाव होता है, जिससे जमीनी स्तर के नेताओं को दरकिनार कर दिया जाता है और पार्टी में असंतोष उत्पन्न होता है।
  • प्रशासनिक व्यवधान: बार-बार चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता (MCC) को बार-बार लागू करना पड़ता है, जिससे सरकारी नीतियों में विलंब होता है और संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
  • मतदाता विश्वास का उल्लंघन: चुनावों का उद्देश्य जनता की सेवा करना होना चाहिये, लेकिन OCMC राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देता है। यह जवाबदेही को कम करता है और मतदाताओं की तुलना में राजनेताओं को अधिक तरजीह देता है, जिससे नेता-केंद्रित राजनीति को बढ़ावा मिलता है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ कमज़ोर होती हैं।
  • मूल अधिकारों का संभावित उल्लंघन: मतदाताओं को उनके चुने हुए प्रतिनिधि से वंचित करके अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) को कमज़ोर कर सकता है।

OCMC की वैश्विक प्रथाएँ

  • ऑस्ट्रेलिया: किसी वर्तमान विधायक को किसी अन्य संसदीय सदन के लिये चुनाव लड़ने से पहले इस्तीफा देना होगा।
  • यूरोपीय लोकतंत्र: यूनाइटेड किंगडम ने वर्ष 1983 से OCMC पर प्रतिबंध लगा रखा है, तथा अधिकांश यूरोपीय लोकतंत्रों ने स्पष्ट प्रतिनिधित्व और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
  • इटली: कोई भी व्यक्ति सीनेट और चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ के लिये एक साथ चुनाव नहीं लड़ सकता।
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश: उम्मीदवारों को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन उन्हें एक को छोड़कर बाकी सभी निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़ना होगा।

OCMC को विनियमित करने के लिये कौन से सुधार लाए जा सकते हैं?

  • OCMC पर प्रतिबंध: भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) और 255वीं विधि आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 2015) ने एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।
    • इससे "एक चुनाव, एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र (OCOC)" लागू होगा और लोकतांत्रिक निष्पक्षता मज़बूत होगी।
  • उपचुनाव की लागत वसूलना: सीट खाली करने वाले उम्मीदवारों को सीट बदलने से रोकने के लिये उपचुनाव का खर्च वहन करना चाहिये।
  • उप-चुनावों में विलंब: उप-चुनावों के लिये कूलिंग ऑफ अवधि को एक वर्ष तक बढ़ाने से हारने वाले उम्मीदवारों को तैयारी के लिये अधिक समय मिलेगा, साथ ही ऐसे चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के अनुचित लाभ को भी कम किया जा सकेगा।
  • अनिवार्य त्यागपत्र: उम्मीदवारों को अपनी निर्वाचित भूमिका के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के क्रम में अगला चुनाव लड़ने से पहले अपने मौजूदा पद से त्यागपत्र दे देना चाहिये।

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निष्कर्ष

भारत में चुनाव के लिये बहुत अधिक वित्तीय तथा प्रशासनिक संसाधनों की ज़रूरत होती है। OCMC के कारण बार-बार होने वाले उपचुनावों से समय एवं धन की बर्बादी होती है, जिसका इस्तेमाल विकास के लिये किया जा सकता है। एक राष्ट्र, एक चुनाव के विपरीत OCOC के लिये मज़बूत राजनीतिक समर्थन का अभाव है। यदि एक व्यक्ति, एक वोट एक मुख्य लोकतांत्रिक सिद्धांत है तो निष्पक्षता के क्रम में एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र को लागू करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: एक उम्मीदवार, अनेक निर्वाचन क्षेत्र की प्रथा के प्रमुख निहितार्थ हैं। इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इनसे निपटने हेतु व्यावहारिक चुनाव सुधारों पर प्रकाश डालिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2017)

1- भारत का चुनाव आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है।
2- केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
3- चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों को हल करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3  
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022)


भारत के मसाला उद्योग का सुदृढ़ीकरण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

विश्व मसाला संगठन (WSO) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि सबसे बड़ा मसाला उत्पादक होने के बावजूद, भारत की वैश्विक मसाला बाज़ार में केवल 0.7% की हिस्सेदारी है और वर्ष 2030 तक 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अधिक उत्पादन एवं मूल्य संवर्द्धन की आवश्यकता है।

नोट: WSO का मुख्यालय कोच्चि, केरल में है, यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो मसाला उद्योग में खाद्य सुरक्षा, स्थिरता और जैव विविधता पर केंद्रित है। 

भारत में मसालों की क्या स्थिति है?

  • उत्पादन: वर्ष 2022-23 में भारत में 11.14 मिलियन टन मसालों का उत्पादन हुआ, जो वर्ष 2021-22 के 11.12 मिलियन टन की तुलना में मामूली वृद्धि को दर्शाता है।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) द्वारा सूचीबद्ध 109 मसाला किस्मों में से 75 का उत्पादन करता है जिसमें मिर्च, जीरा, हल्दी, अदरक और धनिया की कुल उत्पादन में 76% हिस्सेदारी है। 
    • उत्पादन की दृष्टि से लहसुन, अदरक और मिर्च, वित्त वर्ष 23 में उत्पादित शीर्ष तीन मसाले थे।
  • सबसे बड़े मसाला उत्पादक राज्य: मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम, आदि।
    • निर्यात: प्रमुख निर्यातों में काली मिर्च, इलायची, अजवाइन, सौंफ, मेथी, लहसुन, जायफल, करी पाउडर और मसाला तेल शामिल हैं।
      • वर्ष 2023-2024 में भारत ने 4.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 14 लाख टन) मूल्य के मसालों का निर्यात किया। मिर्च, भारत का सबसे ज़्यादा निर्यात (जिसकी कुल मसाला निर्यात में 31% हिस्सेदारी है) किया जाने वाला मसाला है।
      • विश्व भर में भारत 200 स्थानों पर मसालों का निर्यात करता है जिनमें चीन, बांग्लादेश, पश्चिम एशियाई देश और अमेरिका प्रमुख बाज़ार हैं।

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  • चिंताएँ: कच्चे मसाले के निर्यात में अग्रणी होने के बावजूद, भारत वैश्विक मसाला बाज़ार का केवल 0.7% हिस्सा रखता है, जो चीन (12%) और अमेरिका (11%) से बहुत पीछे है।
    • इसका कारण कम मूल्य संवर्द्धन है, क्योंकि निर्यात में केवल 48% प्रसंस्कृत उत्पाद शामिल हैं। 
    • मिलावट और कीटनाशक अवशेषों के मामलों के कारण निर्यात अस्वीकृत हो रहे हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है।
    • वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, चीन तथा थाईलैंड, श्रीलंका और मेडागास्कर जैसे देशों  से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा भारत के प्रभुत्त्व को और चुनौती दे रही है।
    • पारंपरिक फसल किस्मों पर अत्यधिक निर्भरता, निम्न प्रसंस्करण, तथा कटाई के बाद अपर्याप्त प्रबंधन से गुणवत्ता और शेल्फ लाइफ कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त, सीमित मशीनीकरण से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और दक्षता कम हो जाती है।
  • बाज़ार विस्तार के उपाय: मूल्यवर्द्धित मसालों में देश की हिस्सेदारी 70% तक बढ़ाई जानी चाहिये।
    • भारत के 15 कृषि-जलवायु क्षेत्र विविध मसाला कृषि का समर्थन करते हैं। उच्च उपज देने वाली और जलवायु प्रतिरोधी किस्मों के विकास से उत्पादन में वृद्धि हो सकती है और निर्यात में वृद्धि हो सकती है।

मसाला उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल

  • भारतीय मसाला बोर्ड (SBI): मसाला बोर्ड अधिनियम 1986 के तहत स्थापित, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।  
    • कोच्चि, केरल में मुख्यालय वाला SBI इलायची और 52 मसालों को बढ़ावा देता है, गुणवत्ता को नियंत्रित करता है, अनुसंधान को समर्थन देता है और भारतीय निर्यातकों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ता है।
    • SBI और WSO के तहत राष्ट्रीय सतत् मसाला कार्यक्रम (NSSP) भारत के मसाला उद्योग में स्थिरता को संबोधित करने के लिये हितधारकों को एकजुट करता है।
  • मसाला पार्क: SBI ने किसानों को फसल कटाई के बाद प्रबंधन, मूल्य संवर्द्धन और बेहतर मूल्य निर्धारण में सहायता देने के लिये देश भर में आठ फसल विशिष्ट मसाला पार्क स्थापित किये।
  • सिक्किम में मसाला कॉम्प्लेक्स: इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में मसाला प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन में सुधार करना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: प्रतिस्पर्द्धा, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रसंस्करण के मामले में भारत के मसाला उद्योग के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इन मुद्दों को हल करने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न.1 18वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बंगाल से निर्यातित प्रमुख पण्यपदार्थ (स्टेपल कमोडिटीज़) क्या थे: (2018)

(a) अपरिष्कृत कपास, तिलहन और अफीम
(b) चीनी, नमक, जस्ता और सीसा
(c) ताँबा, चाँदी, सोना, मसाले और चाय
(d) कपास, रेशम, शोरा और अफीम

उत्तर: (d)


प्रश्न. 2 केसर मसाला बनाने में पौधे के निम्नलिखित में से किस भाग का उपयोग किया जाता है? (2009)

(a) पत्ता
(b) पंखुड़ी
(c) फूल की पँखड़ी का भाग
(d) वर्तिकाग्र 

उत्तर: (d)

  • केसर विश्व के सबसे महँगे मसालों में से एक है। यह केसर क्रोकस फूल के वर्तिकाग्र (फूल के धागे जैसे भाग) से बनाया जाता है।
  • यह स्वास्थ्य, सौंदर्य प्रसाधन और औषधीय प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है। यह पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों के साथ जुड़ा हुआ है और क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

भारत के विकास के लिये अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा

प्रिलिम्स के लिये:

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM), वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024, डीप-टेक स्टार्टअप, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर, अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF), DRDO, ISRO, BARC

मेन्स के लिये:

भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी चुनौतियाँ और उन्हें संबोधित करने के उपाय। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत, चीन के बाद विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) स्नातकों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इस उपलब्धि के बावजूद, भारत वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024 में 39 वें स्थान पर है, जो चीन (11 वें) से काफी पीछे है, जो भारत में  अनुसंधान और विकास (R&D) के लिये कम वित्तपोषण को दर्शाता है।

अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण स्थिति: भारत ने 2022 में अनुसंधान एवं विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.65% व्यय किया, चीन ने 2.43% और ब्राज़ील ने 1.15% व्यय किया।  
  • अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देने की आवश्यकता:
    • आर्थिक विकास: भारत के लिये वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने, निम्न-मध्यम आय की स्थिति से बाहर निकलने तथा अपनी उत्पादकता क्षमता को प्राप्त करने के लिये अनुसंधान एवं विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • औद्योगिक विकास: फार्मा, रसायन और ऑटोमोटिव जैसे प्रमुख क्षेत्रों को विकसित देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये प्रौद्योगिकी उन्नति की आवश्यकता है।
    • श्रम-प्रधान क्षेत्र: बढ़ती श्रम लागत के कारण स्वचालित असेंबली लाइन, उत्पादकता, मूल्य और निर्यात के लिये AI और डिजिटल उपकरणों के एकीकरण जैसे नवाचार की आवश्यकता है। 
  • वैश्विक अनुसंधान एवं विकास परिदृश्य: 
    • दक्षिण कोरिया: वर्ष 1970 में दक्षिण कोरिया निर्धन था लेकिन दो दशकों में इसका तीव्र विकास होने से अनुसंधान एवं विकास पर खर्च, सकल घरेलू उत्पाद के 0.4% से बढ़कर 2.5% हो गया। 
      • वर्ष 1975 और 2005 के बीच यह एक विकसित राष्ट्र बन गया और इसके कॉर्पोरेट क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास निवेश 800 गुना बढ़ गया।
    • चीन: अनुसंधान एवं विकास पर व्यय 1990 के दशक के अंत में सकल घरेलू उत्पाद के 0.6% से बढ़कर वर्तमान में 2.4% हो गया है।

भारत के अनुसंधान एवं विकास परिदृश्य में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सीमित निवेश: भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय उन्नत अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका (3.46%), जापान (3.30%), इज़रायल (5.56) और दक्षिण कोरिया (4.93) की तुलना में बहुत कम है।
  • सरकार-केंद्रित अनुसंधान एवं विकास: भारतीय अनुसंधान एवं विकास अभी भी सरकारी वित्तपोषण और संस्थानों पर बहुत अधिक निर्भर है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2020-21 में निजी क्षेत्र के उद्योगों का अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण में केवल 36.4% का योगदान रहा।
  • सीमित अकादमिक-उद्योग संबंध: भारतीय अनुसंधान संस्थान और उद्योग एकाकी रूप से कार्य करते हैं, जिससे नवाचार क्षमता एवं अंतःविषयक अनुसंधान में कमी आती है।
    • उदाहरण के लिये, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने सिलिकॉन वैली के प्रारंभिक विकास में केंद्रीय भूमिका निभाई थी लेकिन भारत में इस तरह के समन्वय का अभाव है।
  • विविधीकरण का अभाव: भारत के अनुसंधान एवं विकास प्रयासों के तहत ऐतिहासिक रूप से कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों (विशेष रूप से रक्षा और अंतरिक्ष) पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन औद्योगिक अनुसंधान तथा विकास को नजरअंदाज किया गया है। उदाहरण के लिये, अर्द्धचालकों की कीमत पर मिसाइलों (अग्नि, ब्रह्मोस) पर अधिक ध्यान दिया गया है।
    • भारतीय उद्योग, प्रौद्योगिकी का आयात करना पसंद करते हैं (जोखिम से बचने के लिये) जबकि स्टार्टअप और फर्म गहन तकनीक नवाचार की तुलना में आईटी और ई-कॉमर्स पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में बाधाएँ: DRDO, ISRO और BARC द्वारा किये गए अनुसंधान, अक्सर नौकरशाही बाधाओं के कारण वाणिज्यिक उत्पादों में रूपांतरित नहीं हो पाते हैं।

अनुसंधान एवं विकास से संबंधित भारत की पहल क्या हैं? 

कौन से सुधार भारत के अनुसंधान एवं विकास परिदृश्य को मज़बूत कर सकते हैं?

  • अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र के निवेश में वृद्धि: भारत को अगले दशक में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च बढ़ाना चाहिये, जिसमें निजी क्षेत्र का प्रमुख योगदान हो।
    • अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) का उपयोग करते हुए निज़ी क्षेत्र एवं परोपकारी निवेश को अनुसंधान में प्रोत्साहित किया जाए।
    • केंद्रीय बज़ट वर्ष 2025–26 में घोषित ₹1 लाख करोड़ नवाचार कोष को 3-5 वर्षों के भीतर वितरित किये जाने की आवश्यकता है ताकि डीप-टेक अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा मिल सके।
  • विश्वविद्यालय-नेतृत्व अनुसंधान मॉडल: भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान (HEI) ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाते हुए अपस्ट्रीम अनुसंधान कर सकते हैं और उद्योग को बाज़ार के लिये परिपक्व प्रौद्योगिकियों का व्यावसायीकरण करने में सहायक हो सकते हैं।
  • कुशल परियोजना प्रबंधन: ANRF कुशल कार्यक्रम प्रबंधकों, पारदर्शी वित्त पोषण और CEO के नेतृत्व वाली टीम के साथ अमेरिकी रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी (DARPA) मॉडल का अनुसरण कर सकता है।
  • जोखिम उठाना: प्रारंभिक चरण का अनुसंधान एक मुक्त अन्वेषण प्रक्रिया है, जो हमेशा सफल नहीं होती, किंतु भविष्य में महत्त्वपूर्ण नवाचारों का मार्ग प्रशस्त करती है। 
    • सरकार को परियोजनाओं पर नज़र रखने की आवश्यकता है, साथ ही उसे जोखिम लेने की स्वतंत्रता भी देनी चाहिये।

निष्कर्ष

भारत का आर्थिक भविष्य सशक्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) निवेश, उद्योग-अकादमिक सहयोग और नीतिगत सुधारों पर निर्भर है। वित्तीय सहायता बढ़ाकर, विश्वविद्यालयों में नवाचार को प्रोत्साहित करके और जोखिम लेने की मानसिकता अपनाकर, भारत मध्य-आय के जाल से मुक्त हो सकता है और एक वैश्विक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (S&T) अग्रणी बनकर आर्थिक वृद्धि और तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा नवाचार आधारित विकास को बढ़ाने के उपाय भी सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान - भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया) (NIF) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केन्द्रीय सरकार के अधीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
  2. NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1 
(B) केवल 2
(C) 1 व 2 दोनों 
(D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (A) 


मेन्स

प्रश्न: भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017 )

प्रश्न: भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर गिरता जा रहा है क्योंकि विज्ञान में कैरियर उतना आकर्षक नहीं है जितना कि वह कारोबार, संव्यवसाय इंजीनियरिंग या प्रशासन में है और विश्वविद्यालय उपभोक्ता-उन्मुखी होते जा रहे हैं । समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। (2014)