लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

मध्यम आय की बाधा को तोड़ना

  • 17 Oct 2024
  • 28 min read

यह संपादकीय 13/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Can India escape middle-income trap?” पर आधारित है। इस लेख में भारत के समक्ष मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में आने वाली चुनौतियों को उजागर किया गया है, जिसमें निर्यात में कमी, बढ़ते संरक्षणवाद और समय से पहले होने वाले विऔद्योगीकरण पर ज़ोर दिया गया है। यह विकास को बनाए रखने और समावेशी आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करने के लिये निवेश, प्रौद्योगिकी संचार और घरेलू नवाचार की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट- 2024, मिडिल इनकम ट्रैप, समयपूर्व विऔद्योगीकरण, विश्व बैंक, उदारीकरण-1991, K-शेप्ड रिकवरी, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, कुल कारक उत्पादकता,वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक: IMF, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन  

मेन्स के लिये:

भारत के लिये मिडिल इनकम ट्रैप, भारत को मिडिल इनकम ट्रैप से उबारने में सहायक उपाय। 

वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट- 2024मिडिल इनकम ट्रैपकी चुनौती पर प्रकाश डालती है, जहाँ देश आय बढ़ने के साथ विकास को बनाए रखने के लिये संघर्ष करते हैं। रिपोर्ट इस चक्र को तोड़ने के लिये "3i" उपागम- Investment (निवेश), Global Technology Infusion (वैश्विक प्रौद्योगिकी संचार) और domestic Innovation (घरेलू नवाचार) का सुझाव देती हैभारत मंद निर्यात, बढ़ते संरक्षणवाद और समयपूर्व विऔद्योगीकरण के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहा है। इसके अलावा, भारत की आर्थिक वृद्धि आनुपातिक वेतन वृद्धि में परिवर्तित नहीं हुई है। यह मिडिल इनकम ट्रैप पर नियंत्रण पाने में एक बहुत बड़ी चुनौती है।

मिडिल इनकम ट्रैप क्या है? 

  • मिडिल इनकम ट्रैप तब उत्पन्न होता है जब कोई मध्यम-आय देश बढ़ती लागत और घटती प्रतिस्पर्द्धा के कारण उच्च-आय अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने में विफल रहता है। 
    • विश्व बैंक के अनुसार ऐसा आमतौर पर तब होता है जब कोई देश अमेरिका के प्रति व्यक्ति आय स्तर के लगभग 11% तक पहुँच जाता है। 
    • इस बिंदु पर, देश स्वयं को चुनौतीपूर्ण स्थिति में पाते हैं, जिसमें विनिर्माण निर्यात में कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा में उन्नत तो हो जाते हैं, फिर भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनमें तकनीकी परिष्कार और नवाचार क्षमताओं का अभाव होता है।
  • यह ट्रैप तब उत्पन्न होता है जब परंपरागत विकास चालक अपनी प्रभावशीलता खोने लगते हैं। इस स्थिति में देशों को प्रायः बढ़ती मज़दूरी का सामना करना पड़ता है जो श्रम-गहन निर्यात को कम प्रतिस्पर्द्धी बनाता है, जबकि साथ ही ज्ञान-आधारित विकास हेतु आवश्यक नवाचार और उत्पादकता के स्तर को विकसित करने के लिये संघर्ष करना पड़ता है। 
    • इस जाल से बचने के लिये विश्व बैंक ने "3i" दृष्टिकोण की सिफारिश की है: 
      • भौतिक और मानव पूंजी में निवेश (Investment in physical and human capital), 
      • नई वैश्विक प्रौद्योगिकियों का समावेश (Infusion of new global technologies) तथा 
      • घरेलू नवाचार क्षमताओं को बढ़ावा देना (fostering domestic Innovation capabilities)। 
  • चुनौती महत्त्वपूर्ण है- पिछले 34 वर्षों में, केवल 34 मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ (जिन्हें 1,136 - 13,845 डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ कहा जाता है) सफलतापूर्वक उच्च आय की स्थिति में आ पाई हैं, जो दर्शाता है कि इस आर्थिक बाधा से मुक्त होना कितना कठिन है।

समय के साथ भारत का आय स्तर किस प्रकार विकसित हुआ है?

  • 1950-1970 का दशक (स्वतंत्रता के बाद का युग): सत्र 1950-51 में भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र ₹265 थी।
    • इस अवधि में विकास दर धीमी रही, जो लगभग 3.5% थी। कृषि अर्थव्यवस्था पर हावी रही। गरीबी दर लगभग 45% पर उच्च बनी रही। 
    • इस अवधि में लाइसेंस राज प्रबल था, सरकार का हस्तक्षेप अधिक था और सार्वजनिक क्षेत्र की उद्यमों पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
  • 1980-1990 का दशक (उदारीकरण से पूर्व एवं प्रारंभिक): 1980 के दशक में प्रति व्यक्ति आय वृद्धि बढ़कर 5.6% हो गई। 
    • उदारीकरण-1991 एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया, जिसने अर्थव्यवस्था का विस्तार किया। सेवा क्षेत्र ने अपनी उन्नति शुरू की, जिसने सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी को पीछे छोड़ दिया।
    • मध्यम वर्ग का विस्तार होने लगा। वर्ष 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 5.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 
  • 2000-2010 का दशक (उच्च विकास चरण): भारत ने अपना उच्च विकास चरण प्राप्त किया, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद वार्षिक 8-9% की दर से बढ़ा। 
    • स्थिर (सत्र 1999-2000) मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय सत्र 2000-01 में 16,173 रुपए थी, जो बढ़कर सत्र 2007-08 में 24,295 रुपए हो गई।
    • सेवा क्षेत्र प्रमुख हो गया। सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात वर्ष 1990 में 0.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सत्र 2000-01 में 5.9 बिलियन डॉलर और सत्र 2005-06 में 23.6 बिलियन डॉलर हो गया।
  • 2010-2020 का दशक (मिश्रित विकास चरण): विकास अधिक अस्थिर हो गया लेकिन औसतन 6-7% रहा। प्रति व्यक्ति आय ₹1,08,645 (सत्र 2019-20, स्थिर मूल्य) तक पहुँच गई। 
    • मध्यम वर्ग का काफी विस्तार हुआ और लगभग 400 मिलियन लोग इस वर्ग में शामिल हो गए। 
    • हालाँकि असमानता बढ़ी- वर्ष 2021 तक शीर्ष 1% के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 40.5% हिस्सा था।
  • वर्ष 2020 से वर्तमान तक (कोविड के बाद की रिकवरी): कोविड के झटके के बावजूद, भारत की GDP 3.75 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई। 
    • प्रति व्यक्ति आय बढ़कर ₹1,72,000 (सत्र 2022-23) हो गई। हालाँकि K-शेप्ड रिकवरी स्पष्ट है।
    • गिग इकॉनमी का विस्तार 7.7 मिलियन श्रमिकों के साथ हुआ। अप्रैल-जुलाई 2024 में एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के माध्यम से 80.8 लाख करोड़ रुपए (964 बिलियन डॉलर) के डिजिटल भुगतान ने रिकॉर्ड बनाया, जो साल-दर-साल 37% की वृद्धि दर्शाता है।
      • बेरोज़गारी 8.1% पर बनी हुई है (CMIE, अप्रैल 2024)।

भारत के लिये मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलना क्यों कठिन है? 

  • समयपूर्व विऔद्योगीकरण: भारत समयपूर्व विऔद्योगीकरण का अनुभव कर रहा है जो एक ऐसी स्थिति है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी प्रारंभिक औद्योगिकीकरण अभिकर्त्ताओं की तुलना में प्रति व्यक्ति आय के निचले स्तर पर है। 
    • पिछले दशक से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 15-17% के निकट स्थिर बनी हुई है, जो लक्षित 25% से बहुत नीचे है। 
    • यह प्रवृत्ति विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यह उत्पादकता लाभ और तकनीकी लाभ की संभावनाओं को सीमित करती है, जो आमतौर पर एक सुदृढ़ विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ी होती है। 
    • हाल ही में शुरू की गई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, आशाजनक होने के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में मिश्रित परिणाम दर्शा रही है।
  • सेवा-आधारित विकास मॉडल की सीमाएँ: भारत का विकास मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित रहा है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान देता है।
    • हालाँकि यह एक ताकत है, लेकिन यह व्यापक रोज़गार सृजन और समावेशी विकास के लिये चुनौतियाँ भी खड़ी करता है। 
    • उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन करने में असमर्थता प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि की संभावना को सीमित करती है, जो मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। 
    • हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक प्रौद्योगिकी व्यय की वृद्धि दर वर्ष 2022 में 8.2% से घटकर वर्ष 2023 में 4.4% हो गई, जो इस विकास मॉडल की कमज़ोरियों को और उजागर करती है।
  • कुल कारक उत्पादकता वृद्धि में गिरावट: भारत की कुल कारक उत्पादकता (TFP) वृद्धि, जो आर्थिक दक्षता और तकनीकी प्रगति का एक प्रमुख संकेतक है, में गिरावट आ रही है। 
    • कोरोना महामारी के दौरान, भारत के लिये वर्ष 2020 में TFP में 2.9% की गिरावट आई और वर्ष 2021 में 0.1% का मामूली सुधार हुआ।
    • यह गिरावट दर्शाती है कि भारत की हालिया वृद्धि दक्षता-संचालित होने के बजाय इनपुट-संचालित अधिक रही है, जिससे आमतौर पर देशों को मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में बाधा होती है। 
    • भारत के कम अनुसंधान एवं विकास व्यय से चुनौती और भी जटिल हो गई है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 0.6-0.7% है, जो चीन (2.1%) और अमेरिका (2.8%) जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से बहुत कम है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व और कम उत्पादकता: भारत की अर्थव्यवस्था एक बड़े अनौपचारिक क्षेत्र की विशेषता है, जो कार्यबल का लगभग 90% हिस्सा है।
    • अनौपचारिकता के इस उच्च स्तर के कारण उत्पादकता कम होती है तथा ऋण और प्रौद्योगिकी तक पहुँच सीमित हो जाती है। 
    • कोविड-19 महामारी ने इस मुद्दे को और बढ़ा दिया है, जिसका खामियाज़ा अनौपचारिक क्षेत्र को भुगतना पड़ रहा है। 
    • रोज़गार सृजन सुनिश्चित करते हुए अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने की चुनौती महत्त्वपूर्ण बनी हुई है, जैसा कि ई-श्रम पोर्टल जैसी योजनाओं की धीमी गति से पता चलता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश के बोझ बनने का खतरा: यद्यपि भारत की युवा जनसंख्या को प्रायः एक लाभ के रूप में उद्धृत किया जाता है, लेकिन हाल के आँकड़ों से पता चलता है कि यह लाभांश जोखिम में पड़ सकता है। 
    • 15-29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं में बेरोज़गारी दर वर्ष 2023-24 में बढ़कर 10.2% हो जाएगी।
    • इसके अलावा, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में केवल 2.3% कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है। 
    • IT क्षेत्र में कौशल का असंतुलन स्पष्ट है, जहाँ अध्ययनों से पता चला है कि 85% नए इंजीनियरिंग स्नातक तुरंत रोज़गार के योग्य नहीं होते हैं।
      • शिक्षा के परिणामों और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच यह असंतुलन भारत के जनांकिकीय लाभांश को बोझ में परिणत कर सकता है, जिससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा कम उत्पादकता वाली नौकरियों के में संजाल में फँस सकता है।
  • वैश्विक आर्थिक प्रतिकूलताएँ: चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिवेश के कारण भारत का मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने का मार्ग जटिल हो गया है। 
    • वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक: IMF (अक्तूबर 2023) में भू-राजनीतिक तनाव और मौद्रिक सख्ती जैसे कारकों का हवाला देते हुए अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक विकास दर वर्ष 2022 में 3.5% से घटकर वर्ष 2023 में 3% और वर्ष 2024 में 2.9% रह जाएगी।
    • भारत की निर्यात वृद्धि प्रभावित हुई है, अगस्त 2024 में व्यापारिक निर्यात 9.3% से घटकर 34.7 बिलियन अमेरीकी डॉलर रह गया है।
    • इन वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारत के लिये निर्यात-आधारित विकास रणनीतियों पर भरोसा करना कठिन हो गया है, जिनसे देशों को ऐतिहासिक रूप से मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में मदद मिली है।
  • बुनियादी अवसंरचना और रसद संबंधी बाधाएँ: महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद, भारत का बुनियादी अवसंरचना अभी भी कई मध्यम आय वाले देशों से पीछे है, जिससे उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बाधित हो रही है। 
    • वर्ल्ड बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक- 2023 में भारत को 139 देशों में 38वाँ स्थान दिया गया है, जो सुधार की गुंजाइश दर्शाता है। 
    • जबकि राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी पहलों का लक्ष्य वर्ष 2025 तक बुनियादी अवसंरचना में 111 लाख करोड़ रुपए का निवेश करना है, विद्युत आपूर्ति विश्वसनीयता, परिवहन दक्षता और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। 
    • ये बुनियादी अवसंरचनात्मक अंतराल व्यवसाय करने की लागत बढ़ाते हैं, दक्षता कम करते हैं, तथा भारत के लिये उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था में रूपांतरण के लिये आवश्यक उच्च मूल्य वाले उद्योगों को आकर्षित करना कठिन बनाते हैं।

भारत को मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में कौन-से उपाय सहायक हो सकते हैं?

  • लक्षित औद्योगिक नीतियों के माध्यम से विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा: भारत को अपनी उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना को परिष्कृत और विस्तारित करना चाहिये, जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स तथा फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। 
    • इस योजना को हरित हाइड्रोजन और AI हार्डवेयर जैसे नए उभरते क्षेत्रों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है। 
    • इसके साथ ही, प्रमुख घटकों और कच्चे माल पर आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाकर निर्माताओं के लिये इनपुट लागत को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार के लिये समयबद्ध योजना लागू की जानी चाहिये, जिसका लक्ष्य भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को GDP के मौजूदा 14% से घटाकर वैश्विक औसत 8% तक लाना है। हाल ही में राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022) इसके लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को स्पष्ट लक्ष्यों और आवश्यक उपायों के साथ गति देने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और कौशल विकास को गति देना: एक व्यापक डिजिटल कौशल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, इंडिया स्टैक का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
    • डिजिटल इंडिया पहल का विस्तार करते हुए इसमें एक राष्ट्रीय डिजिटल कौशल रजिस्ट्री को शामिल करने की आवश्यकता है, जो कुशल श्रमिकों को विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान करेगी। 
    • उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये पाठ्यक्रम विकसित करने और उसे निरंतर अद्यतन करने के लिये उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है। 
    • इस डिजिटल प्रयास को उद्योग 4.0 आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिये परंपरागत व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों का आधुनिकीकरण करके पूरक बनाया जाना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा: सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के वर्तमान 0.7% से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 2% करने की आवश्यकता है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी और उन्नत सामग्री जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित हों।
    • बंगलुरु टेक क्लस्टर जैसे सफल उदाहरणों के आधार पर देश भर में क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार क्लस्टर स्थापित करना चाहिये।
    • इन समूहों को शिक्षा जगत, उद्योग और स्टार्टअप को एकीकृत करना चाहिये तथा सरकार को साझा बुनियादी अवसंरचना एवं नियामक सैंडबॉक्स उपलब्ध कराना चाहिये। 
      • भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम, विशेषकर चंद्रयान-3 मिशन की हालिया सफलता, संसाधनों के रणनीतिक आवंटन के मामले में देश की नवोन्मेषी क्षमता को दर्शाती है।
  • नवप्रवर्तन-संचालित विनिर्माण नीति: बड़े पैमाने पर विनिर्माण पर चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय, भारत उच्च-मूल्य वाले विशिष्ट विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, मोबाइल विनिर्माण में PLI योजना की सफलता (एप्पल को आकर्षित करना) को हरित हाइड्रोजन उपकरण या इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे उभरते क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है।
    • ताइवान के सिंचु विज्ञान पार्क के समान प्लग-एंड-प्ले अवसंरचना और अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं के साथ विशेष विनिर्माण क्षेत्र बनाए जाने चाहिये। 
      • पृथक् इकाइयों के बजाय संपूर्ण विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये- उदाहरण के लिये न केवल सौर पैनल, बल्कि पॉलीसिलिकॉन से लेकर रीसाइक्लिंग तक संपूर्ण सौर मूल्य शृंखला।
  • कौशल-शिक्षा एकीकरण फ्रेमवर्क: उद्योग की आवश्यकताओं को सीधे पाठ्यक्रम डिज़ाइन में एकीकृत करके शिक्षा को रूपांतरित करना चाहिये। 
    • एक राष्ट्रीय डिजिटल कौशल मंच बनाए जाने चाहिये, जो उद्योग की रियल टाइम मांगों पर नज़र रखे।
    • जर्मनी की दोहरी शिक्षा प्रणाली के समान, हाई स्कूल से ही उद्योग में इंटर्नशिप अनिवार्य कर दी जाए।
    • गुजरात में आगामी सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा की तरह, टियर-2/3 शहरों में क्षेत्र-विशिष्ट उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। 
      • व्यावहारिक कौशल विकास सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा वित्तपोषण को रोज़गार परिणामों से जोड़ने की आवश्यकता है। 
  • हरित प्रौद्योगिकी नेतृत्व: जलवायु समाधानों में भारत को वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। हरित हाइड्रोजन और बैटरी प्रौद्योगिकी हेतु समान गठबंधन बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन मॉडल का विस्तार करना चाहिये।
    • यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली के समान, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साथ एक राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार बनाए जाने चाहिये।  
    • हरित विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) को लागू करना चाहिये, जहाँ हरित प्रौद्योगिकी नवाचार के लिये विशेष प्रोत्साहन के साथ केवल शून्य-उत्सर्जन उद्योगों को अनुमति दी जाए। भारत की G-20 अध्यक्षता की गति का उपयोग वैश्विक हरित प्रौद्योगिकी मानकों को स्थापित करने के लिये किये जाएँ जो भारतीय क्षमताओं के साथ संरेखित हों, जिससे भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो। 
  • बाज़ार विनियमन में सुधार: भारत को प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और अकुशलता को कम करने के लिये उत्पाद एवं कारक बाज़ारों को उदार बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • विनियामक बाधाओं पर नियंत्रण पाने से, विशेष रूप से लघु और मध्यम उद्यमों (SME) से संबंधित बाधाओं पर नियंत्रण पाने से उच्च क्षमता वाली फर्मों का विकास संभव होगा, साथ ही अकुशलता तथा प्रतिस्पर्द्धा की कमी को बढ़ावा देने वाली सब्सिडी को हटाया जा सकेगा।
      • दक्षिण कोरिया का मॉडल भारत के लिये एक सीख हो सकती है, जो देश की तटस्थता और व्यवसायों के लिये योग्यता-आधारित समर्थन के महत्त्व को दर्शाता है तथा खराब प्रदर्शन करने वालों को असफल होने से रोकता है। 
      • सुदृढ़ व्यापारिक संस्थान नवाचार और नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करके विकास को गति दे सकते हैं, जैसा कि दक्षिण कोरिया के चैबोल्स के मामले में देखा गया है, जो अब नवाचार में वैश्विक अग्रणी हैं।

निष्कर्ष: 

मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने के लिये भारत की यात्रा को विनिर्माण व नवाचार को बढ़ावा देने और उत्पादकता चुनौतियों का समाधान करने पर रणनीतिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी। डिजिटल बुनियादी अवसंरचना का लाभ उठाना, कौशल बढ़ाना और हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाना सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम हैं। लक्षित नीतियों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करके, भारत उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भारत के मिडिल इनकम ट्रैप में फँसने का खतरा है। इस जोखिम में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये और भारत के लिये इससे उबरने एवं उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था में विकसित होने के लिये एक रणनीतिक रोडमैप सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आइ.एफ.सी. मसाला बॉण्ड (IFC Masala Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)  

  1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंटरनैशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन), जो इन बॉण्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
  2. ये रुपया अंकित मूल्य वाले बॉण्ड (rupee-denominated bonds) हैं और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 व 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक (Ease of Doing Business Index)' में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016) 

(a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

उत्तर: (c)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2