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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का औद्योगिक क्षेत्र

  • 21 Feb 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समयपूर्व वि-औद्योगीकरण, भारत का औद्योगिक क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी, सेवा क्षेत्र, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन, पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया 2.0, आत्मनिर्भर भारत अभियान, विशेष आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत के औद्योगिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, विनिर्माण बनाम क्षेत्र विकास

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

महामारी के बाद तेज़ी से सुधार होने के बावजूद, भारत 'समयपूर्व वि-औद्योगीकरण' का अनुभव कर रहा है, जिससे असमानता बढ़ गई है क्योंकि तेज़ी से विकास का लाभ एक छोटे से अल्पसंख्यक वर्ग को मिलता है, जिससे मौजूदा असमानताएँ बढ़ जाती हैं।

समयपूर्व वि-औद्योगीकरण क्या है?

  • समयपूर्व वि-औद्योगीकरण एक ऐसी घटना को संदर्भित करता है जिसमें किसी अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि विकास की दिशा में समय से पहले धीमी होने लगती है।
    • इस अवधारणा को वर्ष 2015 में तुर्की के अर्थशास्त्री दानी रोड्रिक (Dani Rodrik) द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था।
  • अर्थशास्त्री आमतौर पर आर्थिक विकास को कृषि से विनिर्माण और फिर सेवाओं में संक्रमण के रूप में देखते हैं।
    • हालाँकि कुछ अर्थव्यवस्थाएँ सेवा क्षेत्र में समय से पहले बदलाव का अनुभव कर सकती हैं, जिससे विनिर्माण विकास में बाधा आ सकती है।

भारत के औद्योगिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • श्रम-गहन औद्योगिकीकरण के लक्ष्य के साथ वर्ष 1991 में LPG सुधारों के बावजूद, यह प्रवृत्ति बनी रही।
    • स्थिति: विशेष रूप से भारत की औद्योगीकरण की प्रगति अपर्याप्त रही है, वर्ष 2003-2008 (2003-08 के दौरान औद्योगिक विकास को 'ड्रीम रन' कहा जाता है) को छोड़कर, उत्पादन और रोज़गार में विनिर्माण का योगदान लगातार 20% से कम रहा है।
  • भारत में स्थिर औद्योगीकरण के लिये ज़िम्मेदार कारक:
    • अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास निवेश: यह भारतीय उद्योगों में नवाचार और तकनीकी प्रगति को सीमित करता है, जिससे वैश्विक स्तर पर उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा आती है।
    • भ्रष्टाचार और लालफीताशाही: परमिट, लाइसेंस और मंज़ूरी प्राप्त करने में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार तथा नौकरशाही की अक्षमताएँ बाधाएँ पैदा करती हैं एवं व्यापार करने की लागत में वृद्धि करती हैं, जिससे औद्योगिक क्षेत्र में निवेश बाधित होता है।
    • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का प्रभुत्व: अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का आशय नियामक ढाँचे के बाहर संचालित होने वाली आर्थव्यवस्था से है जिसमें अक्सर कर की चोरी की जाती है जिनसे प्रतिस्पर्द्धा के दौरान औपचारिक औद्योगिक उद्यमों को नुकसान होता है और उनकी विकास संभावनाओं पर असर पड़ता है।
    • कौशल भिन्नता: कार्यबल का कौशल और जो कौशल उद्योग तलाशते हैं, दोनों में भिन्नता है जो औद्योगिक क्षेत्र में अल्परोज़गार तथा अक्षमताओं में योगदान करती हैं।
      • स्किल इंडिया रिपोर्ट के अनुसार केवल 5% भारतीय आबादी ही औपचारिक रूप से कुशल है जबकि यह आँकड़ा ब्रिटेन में 68% और जर्मनी में 75% है। 
  • आपूर्ति शृंखला की सुभेद्यता और लचीलापन: आयातित कच्चे माल पर निर्भरता वैश्विक आपूर्ति शृंखला  में भारतीय उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करती है जिसका समाधान करने के लिये घरेलू आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करने और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये रणनीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये दृष्टिकोण: भारत को संबद्ध क्षेत्र में विकास के लिये प्रगतिशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • विनिर्माण विकास को प्रोत्साहित करने के लिये उच्च कौशल सेवाओं, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (IT) को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • यह उस पारंपरिक दृष्टिकोण का खंडन करता है जिसके अनुसार सेवाओं के विस्तार के लिये एक सुदृढ़ विनिर्माण आधार आवश्यक है।

विनिर्माण विकास को प्रोत्साहित करने वाले सेवा क्षेत्र के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • पक्ष में तर्क:
    • उपभोक्ता मांग में वृद्धि: एक संपन्न सेवा क्षेत्र नौकरियाँ और प्रयोज्य आय में वृद्धि करता है जो  वस्तुओं के लिये उपभोक्ता मांग की वृद्धि में योगदान देता है जिससे अंततः संभावित रूप से विनिर्माताओं को लाभ होता है।
      • उदाहरणार्थ सेवा क्षेत्र (जैसे- परिवहन, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी) में बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता वाहन, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विनिर्मित वस्तुओं की मांग को बढ़ा सकती है।
    • आपूर्ति शृंखला एकीकरण: रसद, वितरण और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन जैसी सेवाएँ निर्माताओं को उपभोक्ताओं से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • एक सुदृढ़ सेवा क्षेत्र आपूर्ति शृंखलाओं की दक्षता बढ़ा सकता है, लागत कम कर सकता है और विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार कर सकता है।
    • पूरक विशेषज्ञता: सेवा क्षेत्र डिज़ाइन और ब्रांडिंग जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट ज्ञान प्रदान कर सकते हैं जिसका निर्माताओं के पास अमूमन अभाव होता है।
      • सेवाएँ निर्माताओं को ग्राहक प्राथमिकताओं, बाज़ार रुझानों और आपूर्ति शृंखला प्रदर्शन पर मूल्यवान डेटा अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती हैं।
      • इस डेटा का उपयोग उत्पादन, मूल्य निर्धारण और विपणन रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिये किया जा सकता है।
  • प्रतिकूल तर्क:
    • बढ़ती असमानता: सेवा क्षेत्र में अत्यधिक कुशल श्रमिकों की मांग होती है, जिसे भारत पर्याप्त रूप से आपूर्ति करने के लिये संघर्ष करता है।
      • यह कॉलेज स्नातकों और अन्य लोगों के बीच एक बड़ा भेद उत्पन्न करता है, जिससे विनिर्माण-आधारित विकास की तुलना में आय में अधिक असमानता उत्पन्न होती है।
      • सेवा क्षेत्र में नियमित वेतन के लिये असमानता का गिनी गुणांक, विनिर्माण हेतु 35 की तुलना में 44 था, जो इस असमानता को उजागर करता है।
    • सीमित प्रत्यक्ष संबंध: जबकि सेवा क्षेत्र विनिर्मित वस्तुओं के लिये अप्रत्यक्ष मांग उत्पन्न कर सकता है, सेवाओं और विनिर्माण के बीच प्रत्यक्ष संबंध अभी भी सीमित है।
    • बुनियादी उद्योगों की उपेक्षा: सेवा क्षेत्र को प्राथमिकता देने से भारत जैसे देशों के विनिर्माण विकास हेतु आवश्यक बुनियादी लघु उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की उपेक्षा हो सकती है, जिससे दीर्घकालिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समुत्थानशीलता बाधित हो सकती है।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये हाल की सरकारी पहलें क्या हैं?

आगे की राह

  • गहन औद्योगीकरण पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को विनिर्माण को बढ़ाने के अतिरिक्त स्मार्ट विनिर्माण प्रक्रियाओं को सक्षम करने के लिये इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), बिग डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल ट्विन्स जैसी उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: स्थिर और लागत प्रभावी ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये विद्युत् ऊर्जा उत्पादन, पारेषण तथा वितरण बुनियादी ढाँचे में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • कनेक्टिविटी में सुधार और रसद लागत को कम करने के लिये सड़क, रेलवे तथा बंदरगाह जैसे परिवहन नेटवर्क को अपग्रेड करना।
    • कुशल संचार और डेटा विनिमय की सुविधा के लिये हाई-स्पीड इंटरनेट तक पहुँच का विस्तार करना।
  • ग्रामीण औद्योगीकरण मॉडल: ग्रामीण औद्योगीकरण के लिये नवीन मॉडल विकसित करना जो स्थानीय संसाधनों, कौशल एवं सामुदायिक भागीदारी का लाभ उठाते हैं।
    • इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत विनिर्माण क्लस्टर अथवा सहकारी उद्यम स्थापित करने के साथ ही स्थानीय कारीगरों एवं उद्यमियों को सशक्त बनाना शामिल हो सकता है।
  • जैव-आधारित विनिर्माण: भारत में नवीकरणीय फीडस्टॉक्स, बायोमटेरियल्स तथा जैव-प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं का उपयोग करके जैव-आधारित विनिर्माण में नेतृत्व करने की क्षमता में वृद्धि करना जिससे जैव-अर्थव्यवस्था में अग्रणी बन सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? 

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b 


मेन्स:

प्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न.2 आम तौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)

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