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डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था, 2023

  • 28 Dec 2022
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, यूक्रेन युद्ध, तेल की कीमतें, ऋण संकट।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था, 2023।

चर्चा में क्यों?

भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में 6.9% की दर से वृद्धि दर्ज करने का अनुमान है, इसके अलावा मुद्रास्फीति में कमी देखी जा रही है।

  • वर्ष 2020 में मुख्य घटना कोविड-19 महामारी की पहली लहर के कारण देशव्यापी लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था के आकार को निर्धारित किया।
  • वर्ष 2021 में कोविड की दूसरी भयानक लहर थी जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके उत्थान को आकार दिया।
  • वर्ष 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने बड़े पैमाने पर भारत की अर्थव्यवस्था का निर्धारण किया गया।
    • परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति, रुपए की विनिमय दर और भारत के विदेशी मुद्रा भंडार जैसे मुद्दे GDP वृद्धि की चिंताओं से अधिक हावी हो गए।

प्रमुख बिंदु:

  • मुद्रास्फीति:
    • वर्ष 2022 शुरू होने पर हेडलाइन खुदरा मुद्रास्फीति पहले से ही 6% से ऊपर थी।
    • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद मुद्रास्फीति की स्थिति और खराब हो गई।
    • अप्रैल 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति आठ साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई। मई 2022 में जल्दबाज़ी में बुलाई गई मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) की बैठक में RBI ने रेपो रेट बढ़ाने का फैसला किया।
    • यूएस और यूएस फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयों को वैश्विक मुद्रास्फीति के प्रमुख कारकों के रूप में उद्धृत किया गया था।
  • रुपए की विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार:
    • कच्चे तेल की ऊँची कीमतों के कारण भारत के कई व्यापक आर्थिक संकेतकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • वित्तीय वर्ष शुरू होते ही व्यापार घाटा बढ़ने लगा और भारत के चालू खाता घाटा (Current Account Deficit- CAD), विदेशी मुद्रा भंडार और भुगतान संतुलन के बारे में चिंताएँ होने लगीं।
    • आखिरकार रुपया राजनीतिक रूप से संवेदनशील 80-टू-ए-डॉलर के निशान पर पहुँच गया लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपया ही एकमात्र ऐसी मुद्रा नहीं थी, जो कमज़ोर हो रही थी। हालाँकि डॉलर भी यूरो से कमज़ोर था।
  • चौतरफा मौद्रिक सख्ती:
    • वर्ष के मध्य तक दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने तरलता को कम करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये ब्याज़ दरों में वृद्धि करना शुरू कर दिया।
  • GDP वृद्धि में कमी:
    • मार्च 2022 में समाप्त हुए पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) में भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 9% की वृद्धि हुई थी।
    • सितंबर 2022 में ब्रिटेन को पछाड़कर भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
    • भारत की विकास दर पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) में लगभग 9% कम होकर चालू वर्ष (2022-23) में 7% से कम और अगले वित्तीय वर्ष ( 2023-24) में लगभग 6% (या संभवतः कम) होने की उम्मीद है।
  • बजट, बेरोज़गारी और गरीबी:
    • केंद्रीय बजट से पहले मुख्य चिंता यह पता लगाने की थी कि क्या सरकार देश में रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये कोई योजना लेकर आ सकती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत में कोविड से पहले भी ऐतिहासिक रूप से श्रम बाज़ार में उच्च स्तर का तनाव था तथा महामारी ने चिंता को और भी बढ़ा दिया।
    • बजट 2022-23 में भारत ने विकास का एक अच्छा चक्र शुरू करने के लिये पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि करने पर ज़ोर दिया है।
      • विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि इस रणनीति के सामान्य समय में स्पष्ट लाभ हैं, हालाँकि भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड से प्रभावित है, साथ ही यह स्पष्ट नहीं था कि रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये बजट पर्याप्त होगा या नहीं।

वैश्विक आर्थिक आउटलुक, 2023

  • वृद्धि का पूर्वानुमान:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'अर्थव्यवस्था की स्थिति रिपोर्ट' अद्यतन में ‘डार्केनिंग ग्लोबल आउटलुक/अंधेरा वैश्विक दृष्टिकोण’ की चेतावनी दी है और बताया कि उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएँ (Emerging Market Economies- EME) ‘अधिक कमज़ोर’ प्रतीत होती हैं।
    • वर्ष 2022 में वैश्विक विकास औसतन लगभग 3% रहने की उम्मीद एक सराहनीय उपलब्धि प्रतीत होती है।
  • मुद्रास्फीति:
    • पिछले कुछ महीनों में वैश्विक खाद्य, ऊर्जा और अन्य वस्तुओं की कीमतें भले ही मामूली रूप से कम हुई हों लेकिन मुद्रास्फीति अभी भी उच्च बनी हुई है।
      • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के अनुसार, वैश्विक मुद्रास्फीति वर्ष 2022 में 8.8% से घटकर वर्ष 2023 में 6.5% की कमी के साथ वर्ष 2024 तक 4.1% होने का अनुमान है, हालाँकि अभी भी अधिकांश मानदंडों से उच्च है।
    • अमेरिकी फेडरल रिज़र्व को लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति के परिणामस्वरूप वर्ष 2023 में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें कम-से-कम यह तथ्य नहीं है कि अमेरिकी श्रम बाज़ार अभी भी बढ़ रहा है और यह फेड की मौद्रिक कठोरता के प्रभावों को नकारता है।
  • यूएस फेड दर में वृद्धि का प्रभाव:
    • हर बार जब फेड नीतिगत दरें बढ़ाता है, तो अमेरिका और भारत जैसे देशों में ब्याज़ दरों के बीच का अंतर बढ़ जाता है, जिससे मुद्रा संबंधित लेन-देन व्यापार कम आकर्षक हो जाते हैं;
    • अमेरिकी ऋण बाज़ारों में बढ़े हुए रिटर्न से विकासशील बाज़ार इक्विटी में तेज़ी आ सकती है, इससे विदेशी निवेशकों के उत्साह में कमी आ सकती है।
    • यूएस को धन के बहिर्वाह से मुद्रा बाज़ार संभावित रूप से प्रभावित होंगे; फेड द्वारा निरंतर दर में वृद्धि का मतलब है अमेरिका में विकास की गति भी कम होगी, जो वैश्विक विकास के लिये बुरी खबर हो सकती है, खासकर जब चीन एक नए कोविड प्रकोप का सामना कर रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था, 2023 की संभावनाएँ:

  • सकारात्मक:
    • भारतीय अर्थव्यवस्था में निकट भविष्य में स्थानीय कारकों की बदौलत तेज़ी से वृद्धि होने की उम्मीद है, जिनमें से कुछ उच्च आवृत्ति संकेतकों के रूप में परिलक्षित होते हैं।
    • कॉरपोरेट ऋण-से-GDP अनुपात लगभग 15 वर्षों में अपने सबसे निचले बिंदु पर है, इसमें विगत पाँच वर्षों में काफी कमी आई है और बैंक बुक से ज़्यादातर पुराने खराब ऋणों को हटा दिया गया है।
    • ऋण-से-GDP अनुपात जितना कम होगा, देश द्वारा अपने ऋण का भुगतान करने और डिफ़ॉल्ट के अपने ज़ोखिम को कम करने की उतनी ही अधिक संभावना होगी, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वित्तीय स्थिरता हो सकती है।
    • इनपुट लागत के दबाव में कमी, कॉर्पोरेट बिक्री में वृद्धि और अचल परिसंपत्तियों में निवेश में वृद्धि केपेक्स चक्र में तेज़ी की शुरुआत है, जो संभावित रूप से भारत के विकास को गति देने में योगदान दे सकती है।
    • विगत आठ महीनों से बैंक ऋण दो अंकों में बढ़ रहा है, जो आंशिक रूप से निवेश संबंधी ज़ोखिम (Investment Appetite) में वृद्धि को दर्शाता है।
    • यह देखते हुए कि चीन कम कुशल, अकुशल श्रम, जैसे- कपड़ा, जूते, चमड़ा और चीनी मिट्टी की वस्तुओं की आवश्यकता वाले विनिर्माण क्षेत्रों को कम महत्त्व दे रहा है अतः भारत के पास इससे लाभ उठाने का एक मौका है, अधिकांश बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा चीन-प्लस-वन रणनीति का उपयोग एक अवसर प्रस्तुत कर सकता है।
    • समग्र GDP विकास में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, रबी की अच्छी उत्पादकता को देखते हुए उच्च समर्थन मूल्य के साथ गेहूँ उत्पादन, पर्याप्त जलाशय स्तर और सहायक जलवायु कारकों के साथ कृषि क्षेत्र में अच्छी संभावनाएँ दिख रही हैं।
  • चिंता का विषय:
    • यूक्रेन युद्ध के जारी रहने से भारत के सबसे बड़े निर्यात बाज़ार यूरोपीय संघ में ऊर्जा से जुड़ी मंदी का खतरा है।
    • फेड की दर वृद्धि में विराम वर्ष की दूसरी छमाही तक संभव नहीं है क्योंकि अमेरिका घटती मुद्रास्फीति के दबाव से जूझ रहा है।
    • वर्ष 2023 के लिये बढ़ते संरक्षणवाद, एक वि-वैश्वीकरण-विरोधी आंदोलन और आर्थिक विखंडन संबंधी संभावनाएँ जाहिर की गई हैं, जो विशेषकर भारत जैसे देशों के लिये अस्थिर हैं तथा विकास के महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में निर्यात का उपयोग करने हेतु उत्सुक हैं।
      • यह देखते हुए कि ठोस निर्यात वृद्धि के बिना एक दशक तक विश्व के किसी भी देश में 7% से अधिक की वृद्धि नहीं देखी गई है, संरक्षणवादी प्रवृत्ति का विस्तार उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये प्रमुख बाधा है।
    • भारत में विनिर्माण उद्योग में स्थिरता संबंधी समस्या है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production- IIP) द्वारा मापा गया कारखाना उत्पादन अक्तूबर जैसे त्योहारी महीने में 26 महीने के निचले स्तर पर आ गया। अक्तूबर में मुख्य क्षेत्र की वृद्धि महज 0.1% थी, जो कि 20 महीनों में सबसे कम है। इस कारण विश्लेषकों द्वारा अगले वित्त वर्ष में भारत के विकास में तेज़ी से गिरावट आने संबंधी अनुमान लगाए जा रहे हैं।
    • क्षमता उपयोग, संभावित उत्पादन के लिये वास्तविक उत्पादन का अनुपात है जिसे सामान्य परिस्थितियों में उत्पादित किया जा सकता है, में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है जो 75% के निशान (Mark) पर बनी रहती है।
      • जब तक यह निरंतर रूप से नहीं बढ़ता है, तब तक निजी निवेश में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होने की संभावना नहीं है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम फर्मों के बीच समस्या बनी हुई है जो औद्योगिक सुधार में गहरे अंतर को दर्शाता है जहाँ बड़ी कंपनियाँ छोटी कंपनियों की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।
    • राज्यों का पूंजीगत व्यय उतना मज़बूत नहीं है। आमतौर पर राज्यों द्वारा किये गए निवेश का गुणक प्रभाव अधिक होता है।
    • देश के सकल घरेलू उत्पाद की 4% आयातित ऊर्जा पर भारत की निर्भरता एक चुनौती है जो भुगतान संतुलन के पक्ष में दिखाई देती है। वित्त वर्ष 2023 के लिये 3% से अधिक का चालू खाता घाटा अनुमानित है।
    • कृषि उत्पादन में उछाल के बावज़ूद सितंबर में लगातार नौवें महीने ग्रामीण मज़दूरी में कमी आई, जो कि आतंरिक क्षेत्रों में व्याप्त संकट की ओर इशारा करती है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)

  1. धीमी आर्थिक विकास दर
  2. राष्ट्रीय आय का कम न्यायसंगत वितरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • कर GDP अनुपात किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के सापेक्ष उसके कर राजस्व का अनुपात है। उदाहरण के लिये यदि भारत का टैक्स-टू-GDP अनुपात 20% है, तो इसका मतलब है कि सरकार को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 20% कर योगदान के रूप में मिलता है।
  • कर GDP अनुपात का उपयोग वर्ष-दर-वर्ष कर प्राप्तियों की तुलना करने के लिये किया जाता है। चूँकि कर आर्थिक गतिविधि से संबंधित हैं, इसलिये अनुपात अपेक्षाकृत स्थिर रहना चाहिये। जब सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ता है, तो कर राजस्व में भी वृद्धि होनी चाहिये।
  • आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप विकास की दर कम होती है, जहाँ आमतौर पर बेरोज़गारी बढ़ती है और उपभोक्ता खर्च घटता है। नतीजतन, टैक्स-टू-GDP अनुपात में गिरावट आती है। अतः कथन 1 सही है।
  • राष्ट्रीय आय का असमान वितरण सीधे तौर पर GDP अनुपात में कर में कमी से संबंधित नहीं है।
  • राष्ट्रीय आय और संसाधन आवंटन का समान वितरण आमतौर पर किसी देश की आर्थिक योजना पर निर्भर करता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (a) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)

प्रश्न: क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुनरुत्थान का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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