भारतीय अर्थव्यवस्था
कच्चे तेल की ऊँची कीमतें
- 21 Oct 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:WTI, ओपेक मेन्स के लिये:कच्चे तेल की बढ़ती कीमत का कारण और प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
जैसे-जैसे वैश्विक रिकवरी मज़बूत होती जा रही है, कच्चे तेल की कीमत वर्ष 2018 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच रही है।
- ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 85.89 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जो अक्तूबर 2018 के बाद से सबसे अधिक कीमत है। यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) कच्चे तेल की कीमतें अक्तूबर 2014 के बाद से 83.40 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई हैं।
- दूसरी ओर, प्राकृतिक गैस और कोयले की कीमतें तीव्र अधिशेष की कमी के बीच रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच रही हैं।
प्रमुख बिंदु
- तेल मूल्य निर्धारण:
- आमतौर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) एक कार्टेल के रूप में काम करता था और एक अनुकूल बैंड में कीमतें तय करता था।
- ओपेक का नेतृत्व सऊदी अरब करता है, जो दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है (वैश्विक मांग का 10% अकेले ही निर्यात करता है)।
- ओपेक के कुल 13 देश सदस्य हैं। ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला।
- ओपेक तेल उत्पादन बढ़ाकर कीमतों में कमी ला सकता है और उत्पादन में कटौती कर कीमतें बढ़ा सकता है।
- वैश्विक तेल मूल्य निर्धारण मुख्य रूप से एक अच्छी तरह से काम करने वाली प्रतिस्पर्द्धा के बजाय वैश्विक तेल निर्यातकों के बीच साझेदारी पर निर्भर करता है।
- तेल उत्पादन में कटौती या तेल के कुओं को पूरी तरह से बंद करना एक कठिन निर्णय है, क्योंकि इन्हें फिर से शुरू करना बेहद महँगा और जटिल है।
- इसके अलावा यदि कोई देश उत्पादन में कटौती करता है, तो अन्य देशों द्वारा नियमों का पालन न करने पर बाज़ार हिस्सेदारी में हानि का जोखिम होता है।
- हाल ही में ओपेक रूस के साथ ओपेक+ के रूप में वैश्विक कीमतों और आपूर्ति को सुव्यवस्थित करने के लिये काम कर रहा है।
- वर्ष 2016 में ओपेक ने ओपेक+ नामक एक और अधिक शक्तिशाली इकाई बनाने के लिये अन्य शीर्ष गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों के साथ गठबंधन किया।
- आमतौर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) एक कार्टेल के रूप में काम करता था और एक अनुकूल बैंड में कीमतें तय करता था।
- उच्च कीमतों का कारण:
- धीमा उत्पादन:
- वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेज़ वृद्धि के बावजूद प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।
- ओपेक+ ने वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण वैश्विक यात्रा प्रतिबंधों के के चलते वर्ष 2020 में आपूर्ति में तेज़ कटौती पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन उत्पादन को बढ़ावा देने में संगठन सुस्त रहा, जबकि मांग में सुधार हुआ है।
- वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेज़ वृद्धि के बावजूद प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।
- आपूर्ति पक्ष संबंधी मुद्दे:
- अमेरिका में आपूर्ति पक्ष के मुद्दों सहित तूफान इडा के कारण व्यवधान और यूरोप में बढ़ती मांग के बीच रूस से अपेक्षित प्राकृतिक गैस की आपूर्ति ने भविष्य में प्राकृतिक गैस की कमी की संभावना को बढ़ा दिया है।
- धीमा उत्पादन:
- भारत पर प्रभाव:
- चालू खाता घाटा:
- देश के आयात बिल में तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण बढ़ोतरी होगी, जिससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) और बढ़ जाएगा।
- मुद्रास्फीति:
- कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण पिछले कुछ महीनों से बना मुद्रास्फीति का दबाव और बढ़ सकता है।
- राजकोषीय स्थिति:
- तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। इससे राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
- भारत पिछले दो वर्षों में कम आर्थिक वृद्धि के कारण कर राजस्व की कमी के चलते अनिश्चित वित्तीय स्थिति में है।
- राजस्व में कमी की वजह से केंद्र के विभाजन योग्य कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा और राज्य सरकारों को माल तथा सेवा कर (GST) ढाँचे के तहत राजस्व की कमी के लिये दिया जाने वाला मुआवज़ा प्रभावित होगा।
- तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। इससे राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
- आर्थिक रिकवरी:
- हालाँकि बढ़ती कीमतों ने दुनिया को प्रभावित किया है, भारत विशेष रूप से नुकसान में है क्योंकि वैश्विक कीमतों में कोई भी वृद्धि उसके आयात बिल को प्रभावित कर सकती है, मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है और इसके व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है, जो इसके आर्थिक सुधार को धीमा कर देगा।
- भारत और अन्य तेल आयातक देशों ने ओपेक+ से तेल आपूर्ति को तेज़ी से बढ़ाने का आह्वान किया है, यह तर्क देते हुए कि कच्चे तेल की ऊँची कीमतें वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर को कमज़ोर कर सकती हैं।
- हालाँकि बढ़ती कीमतों ने दुनिया को प्रभावित किया है, भारत विशेष रूप से नुकसान में है क्योंकि वैश्विक कीमतों में कोई भी वृद्धि उसके आयात बिल को प्रभावित कर सकती है, मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है और इसके व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है, जो इसके आर्थिक सुधार को धीमा कर देगा।
- प्राकृतिक गैस की कीमत:
- गैस की कीमतों में वृद्धि ने परिवहन ईंधन के रूप में उपयोग की जाने वाली संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) और खाना पकाने के ईंधन के रूप में उपयोग की जाने वाली पाइप्ड प्राकृतिक गैस (पीएनजी), दोनों की कीमतों पर और दबाव डाला है।
- चालू खाता घाटा:
ब्रेंट और WTI के बीच अंतर
उत्पत्ति:
- ब्रेंट क्रूड ऑयल का उत्पादन उत्तरी सागर में शेटलैंड द्वीप (Shetland Islands) और नॉर्वे के बीच तेल क्षेत्रों में होता है।
- वेस्ट क्रूड इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल क्षेत्र मुख्यत: अमेरिका (टेक्सास, लुइसियाना और नॉर्थ डकोटा) में अवस्थित हैं।
लाइट एंड स्वीट:
- ब्रेंट क्रूड ऑयल और WTI दोनों ही हल्के और स्वीट (Light and Sweet) होते हैं, लेकिन ब्रेंट में API भार थोड़ा अधिक होता है।
- अमेरिकी पेट्रोलियम संस्थान (API) कच्चे तेल या परिष्कृत उत्पादों के घनत्व का एक संकेतक है।
- ब्रेंट (0.37%) की तुलना में WTI में कम सल्फर सामग्री (0.24%) होने के कारण इसे तुलनात्मक रूप में ‘मीठा’ कहा जाता है।
बेंचमार्क मूल्य:
- OPEC द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला ब्रेंट क्रूड ऑयल मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क मूल्य (Benchmark Price) है, जबकि अमेरिकी तेल कीमतों के लिये WTI क्रूड ऑयल मूल्य एक बेंचमार्क है।
- भारत मुख्य रूप से क्रूड ऑयल का आयात OPEC देशों से करता है, अतः भारत में तेल की कीमतों के लिये ब्रेंट बेंचमार्क है।
शिपिंग लागत:
- आमतौर पर ब्रेंट क्रूड ऑयल के लिये शिपिंग की लागत कम होती है, क्योंकि इसका उत्पादन समुद्र के पास होता है, जिससे इसे कार्गो जहाज़ों में तुरंत लादा जा सकता है।
- WTI कच्चे तेल की शिपिंग का मूल्य अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन भूमि वाले क्षेत्रों में होता है, जहाँ भंडारण की सुविधा सीमित है।