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भारतीय अर्थव्यवस्था

राजकोषीय घाटे में वृद्धि

  • 01 Aug 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राजकोषीय घाटा और उसका प्रभाव

मेन्स के लिये:

भारत के राजकोषीय घाटे पर COVID-19 का प्रभाव, राजकोषीय प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के परिणामस्वरूप भारत के राजकोषीय घाटे में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है और यह जून, 2020 में समाप्त पहली तिमाही में बजटीय अनुमान के 83.2 प्रतिशत यानी 6.62 लाख करोड़ रुपए पर पहुँच गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अर्थव्यवस्था को महामारी के प्रकोप से बचाने और महामारी के परिणामस्वरूप राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये सरकार द्वारा लिये जा रहे अतिरिक्त ऋण के कारण देश का राजकोषीय घाटा 8 प्रतिशत के आस- पास जा सकता है।
  • ज्ञात हो कि वित्तीय वर्ष 1999 से अब तक उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, यह किसी भी पहली तिमाही के लिये प्रतिशत के लिहाज़ से सबसे अधिक राजकोषीय घाटा है।
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में सरकार ने देश के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 7.96 लाख करोड़ रुपए अथवा सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत निर्धारित किया था।

राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारण:

  • अर्थशास्त्रियों के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के कारण सरकार के राजस्व में भारी कमी आई है, जो कि सरकार के राजकोषीय घाटे में वृद्धि का मुख्य कारण है।
  • आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल से जून माह तक केंद्र सरकार को कर, गैर-कर राजस्व और ऋण वसूली आदि माध्यमों से 1.53 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह पूरे वर्ष के बजट अनुमान के 7 प्रतिशत से भी कम है।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) द्वारा हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के लिये केंद्र सरकार का कुल व्यय 8.15 करोड़ रुपए था, जो कि पूरे वर्ष के लिये बजट अनुमान का लगभग 27 प्रतिशत है।
  • वहीं केंद्र सरकार ने करों के अपने हिस्से के रूप में राज्यों को 1.34 लाख करोड़ रुपए स्थानांतरित किये हैं, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 14,588 करोड़ रुपए कम है।
  • इसके अलावा केंद्र सरकार ने अतिरिक्त उधार लेने की योजनाओं की घोषणा पहले ही कर दी है, जो जीडीपी का लगभग 5.7 प्रतिशत है इससे राजकोषीय घाटे में और अधिक वृद्धि हो सकती है।

कर राजस्व में कमी:

  • वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) की अवधि में सरकार का शुद्ध कर राजस्व 2.69 लाख करोड़ रुपए था, जबकि इसी अवधि में बीते वर्ष कुल शुद्ध कर राजस्व 4 लाख करोड़ रुपए था।
  • इस अवधि में प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.19 लाख करोड़ रुपए रहा, जो कि बीते वर्ष के संग्रह से लगभग 51,460 करोड़ रुपए कम है। इस अवधि में कुल अप्रत्यक्ष कर 1.51 लाख करोड़ रुपए रहा है।
  • इस वर्ष की पहली तिमाही में निगम कर संग्रह में बीते वर्ष की पहली तिमाही की अपेक्षा 23.2 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि लॉकडाउन के दौरान आय में कटौती और रोज़गार न होने कारण आयकर संग्रह में कुल 36 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

प्रभाव:

  • कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक ऐसे समय में प्रभावित किया है, जब अर्थव्यवस्था पहले से ही काफी तनाव का सामना कर रही थी।
    • महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन ने देश में सभी आर्थिक गतिविधियों और आवश्यक कार्यों को रोकने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर मांग को काफी न्यून कर दिया है।
  • उच्च राजकोषीय घाटे से सरकार को अधिक ऋण लेना पड़ता है, जिसमें उधार लेने पर ब्याज का भुगतान भी शामिल होता है और इससे देश पर सार्वजनिक ऋण का बोझ भी बढ़ जाता है।
  • वर्ष-दर-वर्ष ब्याज भुगतान से जुड़े सार्वजनिक ऋण में भारी वृद्धि से देश के आर्थिक विकास की प्रक्रिया अस्थिर हो जाती है।
    • इससे भुगतान संतुलन कमज़ोर पड़ता है और आने वाली पीढ़ियों पर कर्ज़ का बोझ बढ़ जाता है।

राजकोषीय घाटा:

  • सरकार की कुल आय और उसके व्यय के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। राजकोषीय घाटे के माध्यम से ही यह पता चलता है कि सरकार को अपने कामकाज के लिये कितने उधार की ज़रूरत है।
  • कुल राजस्व की गणना करते समय ऋण को शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है।
    • पूंजीगत व्यय का अभिप्राय कारखानों और इमारतों जैसी दीर्घकालीन संपत्तियों या लंबे समय तक उपयोग होने वाली संपत्तियों के सृजन पर होने वाले व्यय से होता है।
  • राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर या तो देश के केंद्रीय बैंक (भारत की स्थिति में रिज़र्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या फिर इसके लिये छोटी तथा लंबी अवधि हेतु बॉन्ड जारी करके फंड जुटाया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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