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भारतीय राजनीति

एक चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक नहीं

  • 04 Feb 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र, चुनाव आयोग, जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम।

मेन्स के लिये:

दो निर्वाचन क्षेत्रों के लिये एक उम्मीदवार का मुद्दा।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने "संसदीय संप्रभुता" और "राजनीतिक लोकतंत्र" का मामला बताते हुए आम या विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

  • याचिका में जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ डालना अनुचित है क्योंकि उम्मीदवार यदि दोनों सीटों पर जीत जाता है तो उसे एक सीट छोड़नी होगी तथा उपचुनाव अनिवार्य रूप से होगा।

वर्तमान कानून: 

  • जनप्रतिनिधित्त्व कानून (RPA) में ऐसा कोई प्रासंगिक प्रावधान नहीं है जिसके लिये इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो और यह मामला 'पूरी तरह से विधायी दायरे' और 'नीति के दायरे' में आता है।
  • यह संसद की इच्छा पर निर्भर है जो यह निर्धारित करती है कि इस तरह के विकल्प देकर राजनीतिक लोकतंत्र को आगे बढ़ाया जाए है या नहीं।  
  • कई सीटों से चुनाव लड़ने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिसमें विधायी क्षेत्र में संतुलन स्थापित करना  तथा संसदीय लोकतंत्र को संवर्द्धित करना शामिल है।  
  • यह मुद्दा संसदीय संप्रभुता के दायरे में आता है।
    • इसमें कहा गया है कि संसद ने वर्ष 1996 में कानून में संशोधन कर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या दो तक सीमित कर दी थी, जबकि पहले एक उम्मीदवार कितनी भी सीटों पर चुनाव लड़ सकता था। 
    • संसद पहले ही हस्तक्षेप कर चुकी है। संसद निश्चित रूप से पुनः हस्तक्षेप कर सकती है। जब वह ऐसा करना उचित समझेगी तो कार्यवाही की जाएगी। किसी की ओर से निष्क्रियता का कोई प्रश्न ही नहीं है।

दोहरी उम्मीदवारी से संबंधित प्रावधान: 

  • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) के अनुसार, एक उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है। 
    • वर्ष 1996 तक अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई थी तब दो निर्वाचन क्षेत्रों पर सीमा निर्धारण हेतु RPA में संशोधन किया गया था। 
  • वर्ष 1951 के बाद से कई राजनेताओं ने एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने के लिये इस कारक का उपयोग किया है- कभी प्रतिद्वंद्वी के वोट को विभाजित करने हेतु, कभी देश भर में अपनी पार्टी की शक्ति का दावा करने के लिये, कभी उम्मीदवार की पार्टी के पक्ष में निर्वाचन क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्र में पक्ष में लहर पैदा करने हेतु और लगभग सभी दलों द्वारा धारा 33(7) का शोषण किया गया है।

दोहरी उम्मीदवारी से संबंधित मुद्दे:

  • संसाधनों की बर्बादी:
    • कई निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करना और चुनाव लड़ना उम्मीदवार तथा सरकार दोनों के लिये संसाधनों एवं धन की बर्बादी हो सकती है।
    • किसी एक निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ने के बाद तुरंत वहाँ  उपचुनाव कराया जाता है, जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाता है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वड़ोदरा और वाराणसी दोनों सीटों पर जीत हासिल करने के बाद वड़ोदरा में अपनी सीट छोड़ दी, जिस कारण वहाँ उपचुनाव हुआ।
  • हितों पर मतभेद:  
    • एक से अधिक ज़िलों में चुनाव लड़ने से हितों को लेकर मतभेद हो सकता है क्योंकि उम्मीदवार प्रत्येक ज़िले पर समान समय और ध्यान देने में सक्षम नहीं हो सकता है। 
  • विरोधाभासी प्रावधान: 
    • RPA की धारा 33(7) एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाती है जहाँ इसे उसी अधिनियम के दूसरे खंड- विशेष रूप से धारा 70 द्वारा नकार दिया जाएगा।
    • जबकि 33(7) उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है, धारा 70 उम्मीदवारों को लोकसभा/राज्यसभा में दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व करने से प्रतिबंधित करती है।
  • मतदाताओं में भ्रम:  
    • विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता इस बात को लेकर भ्रमित हो सकते हैं कि कौन-सा उम्मीदवार उनका प्रतिनिधित्त्व करता है या उन्हें किसका समर्थन करना चाहिये।
  • भ्रष्टाचार की धारणा:  
    • कई निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने से उम्मीदवार के इरादों पर भी संदेह हो सकता है और यह आभास हो सकता है कि वह भ्रष्ट है, क्योंकि उम्मीदवार अपने चुने जाने की संभावना को पुष्ट करने के लिये ऐसा कर सकते हैं।
  • लोकतंत्र के लिये खतरा:  
    • दोहरी उम्मीदवारी को लोकतंत्र के लिये खतरे के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि यह निष्पक्ष और समान प्रतिनिधित्त्व के सिद्धांत को कमज़ोर कर सकता है।

आगे की राह 

  • निर्वाचन आयोग ने धारा 33(7) में संशोधन की सिफारिश की ताकि एक उम्मीदवार को केवल एक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके।
    • ऐसा वर्ष 2004, 2010, 2016 और 2018 में किया गया था।
  • एक ऐसी प्रणाली तैयार की जानी चाहिये जिसमें यदि कोई उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और दोनों में जीत जाता है, तो वह किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में बाद में कराए जाने वाले उपचुनाव का वित्तीय भार वहन करेगा। 
    • यह राशि विधानसभा चुनाव के लिये 5 लाख रुपए और लोकसभा चुनाव हेतु 10 लाख रुपए होगी।
  • "एक व्यक्ति, एक वोट" का सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र का मूल  सिद्धांत है। हालाँकि अब समय आ गया है कि इस सिद्धांत को "एक व्यक्ति, एक वोट; एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र" में संशोधित और विस्तारित किया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के उद्भव के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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