लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

विविध

जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-126 में संशोधन पर रिपोर्ट

  • 14 Jan 2019
  • 12 min read

संदर्भ


जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 126 और अन्य धाराओं के प्रावधानों में संशोधनों और बदलावों की समीक्षा और सुझाव देने के लिये वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में चुनाव आयोग को सौंपी। इस समिति के समक्ष विचारणीय बिंदुओं में प्रमुखतः जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 126 से जुड़े मुद्दे प्रमुख थे।

समिति के समक्ष प्रमुख विचारणीय बिंदु

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 और अन्य संबंधित धाराओं के वर्तमान प्रावधानों का अध्ययन और परीक्षण करना।
  • अधिनियम के उक्त प्रावधानों के उल्लंघन को नियंत्रित करने के दौरान आने वाली कठिनाइयों और जटिलताओं की पहचान करना, विशेषकर मतदान पूरा होने से 48 घंटे पहले की निषेधात्मक अवधि के दौरान, जिसका उल्लेख धारा 126 में किया गया है।
  • इस अवधि के दौरान धारा 126 के तहत होने वाले उल्लंघनों को रोकने के लिये आवश्यक संशोधन का सुझाव देना।
  • देश में संचार प्रौद्योगिकी या मीडिया प्लेटफॉर्म के विभिन्न प्रकारों और श्रेणियों को पहचान कर इनको विनियमित करने में आने वाली कठिनाइयों की जाँच करना। विशेषकर तब, जब बहुचरणीय चुनावों के दौरान 48 घंटे की निषेधात्मक अवधि लागू होती है।
  • धारा 126 के प्रावधानों के मद्देनज़र मतदान पूरा होने से 48 घंटे पहले की निषेधात्मक अवधि के दौरान नए मीडिया प्लेटफॉर्मों और सोशल मीडिया का प्रभाव तथा इसके निहितार्थ।
  • उपरोक्त मुद्दों से संबंधित आदर्श आचार संहिता के वर्तमान प्रावधानों की जाँच करना और इस संबंध में संशोधन का सुझाव देना।

धारा 126 पर विस्तार से हुई चर्चा


चुनाव आयोग द्वारा गठित इस समिति में आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा सूचना और प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति ने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की तथा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय जैसे हितधारकों के साथ भी विचार-विमर्श किया। इनके साथ ही फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब, ट्विटर और चुनाव आयोग के कानूनी और अन्य प्रभागों के साथ भी कई दौर की चर्चा और परामर्श किया।

क्या कहती है धारा 126?

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 में किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान पूरा होने से 48 घंटे पहले की अवधि के दौरान रेडियो, टेलीविज़न अथवा किसी समान माध्यम से किसी प्रकार के ‘चुनावी तथ्य’ का निषेध किया गया है।
  • धारा 126 के प्रावधानों के तहत ‘चुनावी तथ्य’ को किसी ऐसी सामग्री के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके पीछे किसी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की मंशा होती है। धारा 126 के उपर्युक्त प्रावधानों का उल्लंघन करने पर अधिकतम दो वर्ष का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
  • धारा 126 के तहत चुनाव आयोग टेलीविज़न/रेडियो चैनल और केबल नेटवर्क आदि चलाने वालों से यह सुनिश्चित करने को कहता है कि उनके द्वारा प्रसारित या प्रदर्शित कार्यक्रमों के कंटेंट में ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिये, जिससे किसी खास दल अथवा उम्मीदवार की संभावना को बढ़ावा मिलता हो अथवा चुनाव परिणाम प्रभावित होता हो। अन्य बातों के अलावा इसमें कोई ओपनियन पोल आधारित परिणाम को दर्शाना और परिचर्चाएँ, विश्लेषण, दृश्य और ध्वनि संदेश शामिल हैं।
  • इसके संबंध में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126A पर भी ध्यान देना ज़रूरी है, जिसमें एक्जिट पोल दर्शाने और प्रथम चरण में मतदान शुरू होने तथा अंतिम चरण में मतदान समाप्त होने के बाद आधे घंटे तक की निर्धारित अवधि के दौरान सभी राज्यों में चुनावों के मौजूदा दौर के संदर्भ में उनके परिणामों को प्रचारित करने पर रोक लगाई गई है।

क्या होगा समिति की सिफारिशों का असर?


आवश्यक संशोधनों के बाद चुनाव आयोग यदि समिति द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करता है तो इससे मतदान पूरा होने से पहले 48 घंटे की निषेधात्मक अवधि के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों द्वारा मतदाताओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। मतदान पूरा होने से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार पर लगी कानूनी रोक को कड़ाई से लागू कर पाना डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण कठिन से कठिनतम होता जा रहा है। इसलिये इस मुद्दे पर नियम-कानूनों तथा चुनाव आयोग के निर्देशों के अलावा राजनीतिक दलों, मीडिया, सिविल सोसायटी संगठनों, बुद्धिजीवियों तथा शैक्षिक संस्थानों, युवाओं और नागरिकों जैसे सभी हितधारकों को इसके लिये मिलकर प्रयास करने होंगे।

संविधान में क्या है व्यवस्था?


संविधान के तहत भारत में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है जिसके अनुच्छेद 324 में मतदाता सूची तैयार करने और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , संसद और हर राज्य के लिये राज्य विधायिकाओं हेतु चुनाव कराने के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण निहित हैं। संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव दो कानूनों के प्रावधानों के तहत संपन्न होते हैं- जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951।

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950: यह मुख्य रूप से निर्वाचक सूचियों की तैयारी और संशोधन संबंधी मामलों से संबंधित है। इस कानून के प्रावधानों के पूरक के रूप में इस कानून की धारा 28 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960  बनाए हैं तथा ये नियम निर्वाचक सूचियों की तैयारी, उनके आवधिक संशोधन और अद्यतन, पात्र नाम शामिल करने, गलत नाम हटाने, विवरण इत्यादि ठीक करने संबंधी सभी पहलुओं को देखते हैं। ये नियम राज्य के खर्चे पर फोटो सहित पंजीकृत मतदाताओं के पहचान कार्ड के मुद्दे भी देखते हैं। ये नियम अन्य विवरण के अलावा निर्वाचक के फोटो सहित फोटो निर्वाचक सूचियाँ तैयार करने के लिये निर्वाचन आयोग को अधिकार देते हैं।

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951: चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं। इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाए हैं। इस कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।

सोशल मीडिया को लेकर चुनाव आयोग ने जताई लाचारी


हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग को यह दिशानिर्देश देने के लिये कहा गया है कि नेताओं और निजी व्यक्तियों सहित सभी लोगों को मतदान से पहले के 48 घंटों के दौरान यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक या चुनाव या ‘पेड’ न्यूज़ से संबंधित विज्ञापन डालने से रोका जाए।

इसके जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर आने वाली राजनीतिक टिप्पणियों या पोस्ट्स को नहीं रोक सकता। आयोग ने यह भी कहा कि नेताओं और राजनीतिक दलों को मतदान वाले दिन से पहले 48 घंटों के दौरान किसी भी तरह के राजनीतिक विज्ञापनों या प्रचार में शामिल होने पर रोक संबंधी नियम पहले से मौजूद हैं। मतदान से ठीक पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिये ‘पेड’ राजनीतिक सामग्री और विज्ञापनों का प्रदर्शन भी कानून के तहत निषेध है तथा सोशल मीडिया पर पोस्ट भी इन पाबंदियों में आते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति निजी तौर पर ब्लॉग या ट्विटर पोस्ट डालकर किसी राजनीतिक दल या इसकी नीतियों की प्रशंसा करता है तो चुनाव आयोग उसे कैसे रोक सकता है?

इसके जवाब में याचिकाकर्त्ताओं का कहना था कि फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों की ब्रिटेन और अमेरिका में विज्ञापन नीतियाँ हैं, जहाँ सभी विज्ञापनों तथा ‘पेड’ सामग्री को कड़ाई से सत्यापन प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है। भारत में भी इसी तरह की नीति लागू होनी चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2