शासन व्यवस्था
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” 129वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2024
- 19 Dec 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:129वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2024 की मुख्य विशेषताएँ, संविधान संशोधन विधेयक, लोकसभा, राष्ट्रपति, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:विधेयक की मुख्य विशेषताएँ, भारत में एक राष्ट्र, एक चुनाव के निहितार्थ |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सरकार ने लोकसभा में दो संविधान संशोधन विधेयकों “एक राष्ट्र, एक चुनाव”-'129वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2024' और 'केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक, 2024' को पेश करके "एक राष्ट्र, एक चुनाव" को लागू करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया हैं।
- भारत में वर्ष 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किये गए थे।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव'129वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2024': विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को संरेखित करने के लिये पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर संविधान में अनुच्छेद 82A (1-6) को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है।
- अनुच्छेद 82 (1-6):
- 82A (1) में राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तिथि में प्रस्तावित परिवर्तनों को लागू करने के लिये समय-सीमा का प्रावधान किया गया है, जिसे "नियत तिथि (Appointed Date)" के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
- अनुच्छेद 82 (1-6):
- धारा 82(2) में कहा गया है कि नियत तिथि के बाद और लोक सभा का पूर्ण कार्यकाल समाप्त होने से पहले निर्वाचित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
- अनुच्छेद 82A (3) में कहा गया है कि भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिये एक साथ आम चुनाव कराएगा।
- अनुच्छेद 82A (4) एक साथ चुनावों को "लोकसभा और सभी विधानसभाओं के एक साथ गठन के लिये आयोजित आम चुनाव" के रूप में परिभाषित करता है।
- अनुच्छेद 82A (5) भारत का निर्वाचन आयोग को लोकसभा चुनाव के साथ किसी विशेष विधानसभा चुनाव न कराने का विकल्प प्रदान करना है।
- भारत का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति को किसी विधान सभा के लिये बाद में चुनाव कराने की अनुमति देने हेतु आदेश जारी करने की सलाह दे सकता है।
- अनुच्छेद 82A (6) में कहा गया है कि यदि किसी विधानसभा का चुनाव स्थगित कर दिया जाता है तो उस विधानसभा का पूर्ण कार्यकाल भी आम चुनाव में निर्वाचित लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
- अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन:
- विधेयक के अनुसार, यदि लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेगी, जिसे "विघटन की तिथि और पहली बैठक की तिथि से पाँच वर्ष के बीच की अवधि" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- इसका अर्थ यह है कि सदन के पूर्ण कार्यकाल तक चलने के बाद भी, जो विधेयक अभी भी लंबित हैं, उनकी समय-सीमा समाप्त हो जाएगी।
- राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 172 में संशोधन प्रस्तावित किया गया है, जो राज्य विधानसभाओं की अवधि को नियंत्रित करता है।
- यदि किसी राज्य विधानसभा को उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग कर दिया जाता है, तो पिछली विधानसभा के शेष कार्यकाल के लिये चुनाव कराए जाएंगे।
- विधेयक के अनुसार, यदि लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेगी, जिसे "विघटन की तिथि और पहली बैठक की तिथि से पाँच वर्ष के बीच की अवधि" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- अनुच्छेद 372 में संशोधन:
- विधेयक में अनुच्छेद 372 में संशोधन का प्रस्तावित है, जिसमें" निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन" के बाद एक साथ चुनाव कराने को शामिल किया जाएगा, जिससे राज्य विधान सभा चुनावों पर संसद की शक्ति का विस्तार होगा।
- इस विधेयक में स्थानीय निकायों और नगर पालिकाओं के चुनाव को शामिल नहीं किया गया।
- विधेयक में अनुच्छेद 372 में संशोधन का प्रस्तावित है, जिसमें" निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन" के बाद एक साथ चुनाव कराने को शामिल किया जाएगा, जिससे राज्य विधान सभा चुनावों पर संसद की शक्ति का विस्तार होगा।
- केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024:
- विधेयक का उद्देश्य संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम, 1962 की धारा 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 की धारा 5 तथा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 17 में संशोधन करना है, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
भारत में चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनाव और उनसे संबंधित मामलों के लिये आयोग की स्थापना के प्रावधान से संबंधित है।
- अनुच्छेद 324: यह निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की संपूर्ण प्रक्रिया का पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 325: इसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सभी चुनावों के लिये एकल निर्वाचक नामावली की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 326: यह निर्दिष्ट करता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 82 और 170: ये निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अनिवार्य किये जाने से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद 172: इसके अनुसार प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधानसभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
- समिति का गठन और उद्देश्य:
- पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन केंद्र सरकार द्वारा सितंबर 2023 में किया गया था।
- समिति को लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराए जाने की व्यवहार्यता की जाँच करने का कार्य सौंपा गया था।
- एक साथ चुनाव कराए जाने का औचित्य:
- समिति ने स्पष्ट किया कि बार-बार चुनाव कराए जाने से अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि एक साथ चुनाव कराए जाने से स्थिर शासन सुनिश्चित होगा और व्यवधान कम होंगे।
- इसके अतिरिक्त, एक साथ चुनाव कराए जाने से लागत में कमी आने और मतदाता की सहभागिता बढ़ने की उम्मीद है।
- समिति ने स्पष्ट किया कि बार-बार चुनाव कराए जाने से अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि एक साथ चुनाव कराए जाने से स्थिर शासन सुनिश्चित होगा और व्यवधान कम होंगे।
- निर्वाचक नामावली प्रबंधन:
- निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये समिति ने राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा तैयार एकल निर्वाचक नामावली के अंगीकरण का सुझाव दिया।
- इससे दोहराव कम होगा और निर्वाचन के प्रबंधन में शामिल विभिन्न एजेंसियों की कार्यकुशलता में सुधार होगा।
- निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये समिति ने राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा तैयार एकल निर्वाचक नामावली के अंगीकरण का सुझाव दिया।
- रसद व्यवस्था:
- समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ECI और SEC दोनों को एक साथ होने वाले चुनावों के दौरान सुचारु क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रसद व्यवस्था करने हेतु विस्तृत आयोजना और उसका आकलन करना चाहिये।
एक साथ चुनाव कराए जाने से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- बुनियादी ढाँचे का विकास: एक साथ चुनाव कराए जाने की जटिलताओं से निपटने के लिये तकनीकी बुनियादी ढाँचे की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
- इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPAT) का प्रभावी परिनियोजन और प्रबंधन शामिल है।
- 2024 के आम चुनावों में, समग्र देश के 1.05 मिलियन मतदान केंद्रों पर लगभग 1.7 मिलियन नियंत्रण एकक और 1.8 मिलियन VVPAT प्रणालियों का परिनियोजन किया गया था।
- विधिक चुनौतियाँ: किसी भी संशोधन और एक साथ चुनाव क्रियान्वित करने की प्रक्रिया को विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच की आवश्यकता हो सकती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: कुछ राजनीतिक दलों का मत है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से राष्ट्रीय अभियान के दौरान क्षेत्रीय हितों और मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है।
- विविध प्रतिनिधित्व बनाए रखने हेतु यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय हितों से प्रभावित न हों।
- प्रशासनिक चुनौतियाँ: विभिन्न राज्यों में एक साथ चुनाव आयोजित करने से अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें मतदाता सूचियों का प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।
- नागरिकों को नई निर्वाचन प्रक्रिया और उसके निहितार्थों के बारे में जानकारी देने के लिये एक व्यापक मतदाता शिक्षा अभियान की आवश्यकता होगी।
एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?
- विधिक स्पष्टता: एक साथ चुनाव कराने के लिये स्पष्ट निर्देश स्थापित करना, मतदाता पंजीकरण के लिये कार्यक्रम और प्रक्रियाओं का विवरण देना।
- सरकार के सभी स्तरों पर चुनावों के समन्वयन को सुगम बनाने के लिये आवश्यक संवैधानिक संशोधन को सुनिश्चित किये जाने चाहिये।
- चुनावी बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: कोविंद समिति की सिफारिश के अनुसार, एक ऐसी एकीकृत मतदाता सूची प्रणाली विकसित की जानी चाहिये, जो सरकार के तीनों स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये उपयोगी हो, ताकि दोहराव और त्रुटियों को कम किया जा सके।
- मतदाता सत्यापन और परिणामों के सारणीकरण समेत चुनावी प्रक्रियाओं के कुशल प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- चुनाव आयोग की सिफारिशों (2016) में मतदाता पंजीकरण और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग सहित चुनावी प्रक्रिया की दक्षता बढ़ाने के लिये परिवर्तनों का सुझाव दिया गया था।
- जन जागरूकता अभियान: मतदाताओं को एक साथ चुनाव कराने के लाभों और उनके मतदान अनुभव पर इसके प्रभाव के बारे में सूचित करने के लिये देशव्यापी अभियान शुरू करना।
- प्रस्तावित परिवर्तनों पर सूचना प्रसारित करने और जनता से फीडबैक एकत्र करने के लिये गैर सरकारी संगठनों तथा सामुदायिक संगठनों को शामिल करना।
- क्षमता निर्माण: सुचारु कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये एक साथ चुनावों से जुड़ी नवीन प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं पर चुनाव अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लागू करने के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता से संबंधित चुनौतियों का भी उल्लेख कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |