शासन व्यवस्था
DRDO का 67वाँ स्थापना दिवस
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, अनमैन्ड एरियल व्हीकल, सोनार प्रणाली, वायु रक्षा सामरिक नियंत्रण रडार, लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज़ मिसाइल, सतह से हवा में मार करने वाली त्वरित मिसाइल प्रणाली, त्रिशूल, आकाश, ब्रह्मोस मेन्स के लिये:भारत के रक्षा क्षेत्र में DRDO का योगदान, रक्षा प्रौद्योगिकियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 1 जनवरी को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का 67वाँ स्थापना दिवस मनाया गया और भारत के मिसाइल मैन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
- इस कार्यक्रम में भारत की रक्षा क्षमताओं के वर्द्धन में DRDO द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला गया।
DRDO से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: DRDO की स्थापना 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE), तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) और रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) का संयोजन करके की गई थी।
- DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान एवं विकास विंग है।
- आरंभ में DRDO के पास 10 प्रयोगशालाएँ थीं, वर्तमान में यह 41 प्रयोगशालाओं और 5 DRDO युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं (DYSL) का संचालन करता है।
- सिद्धांत: DRDO का मार्गदर्शक सिद्धांत "बलस्य मूलं विज्ञानम् " (शक्ति विज्ञान में निहित है) है, जो राष्ट्र को शांति और युद्ध दोनों ही स्थिति में मार्गदर्शित करता है।
- मिशन: इसका मिशन तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार भारतीय सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करते हुए महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों तथा प्रणालियों में आत्मनिर्भर होना है।
- DRDO के प्रौद्योगिकी क्लस्टर: DRDO की व्यापक समीक्षा करने के लिये वर्ष 2007 में डॉ. पी. रामा राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।
- इसके परिणामस्वरूप सात प्रौद्योगिकी डोमेन-आधारित क्लस्टरों का निर्माण हुआ, जिनमें से प्रत्येक की अध्यक्षता एक महानिदेशक करता है।
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एयरोनॉटिक्स सिस्टम (Aero): यह क्लस्टर अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV), एयरोस्टेट्स और संबंधित प्रौद्योगिकियों के विकास पर कार्य करता है।
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मिसाइल और सामरिक प्रणालियाँ (MSS): यह क्लस्टर लंबी और कम दूरी की मिसाइलों सहित मिसाइल प्रणालियों और संबंधित प्रौद्योगिकियों का विकास करता है।
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नौसेना प्रणाली और सामग्री (NSM): यह क्लस्टर नौसेना प्लेटफार्मों, सोनार प्रणालियों और पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों सहित जलस्थ प्रणालियों पर कार्य करता है।
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माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (MED) और कम्प्यूटेशनल सिस्टम (CoS): यह क्लस्टर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रडार, इलेक्ट्रॉनिक्स और साइबर सुरक्षा के रक्षा अनुप्रयोगों पर केंद्रित है।
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आर्मामेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम (ACE): इसमें आयुध, गोला-बारूद, विस्फोटक और लड़ाकू वाहनों का विकास शामिल है।
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इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रणाली (ECS): यह क्लस्टर सैन्य इलेक्ट्रॉनिक्स, सेंसर, संचार प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता रखता है।
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सैनिक सहायता प्रणाली (SSS): यह क्लस्टर सशस्त्र बलों को उन्नत हथियार प्रणालियों से सुसज्जित करने के साथ-साथ कार्मिकों के मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और पोषण संबंधी स्वास्थ्य को भी अनुकूलतम बनाने का कार्य करता है।
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DRDO की प्रमुख उपलब्धियाँ:
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2024 में DRDO की उपलब्धियाँ:
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प्रदत्त प्रणालियाँ: DRDO ने कई उन्नत प्रणालियाँ सौंपीं, जिनमें उल्लेखनीय प्रणालियाँ निम्नवत हैं:
- वायु रक्षा प्रणालियाँ: वायु रक्षा सामरिक नियंत्रण रडार (ADTCR), वायु रक्षा अग्नि नियंत्रण रडार (ADFCR)।
- मिसाइल प्रणालियाँ: लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज़ मिसाइल (LR-LACM), सतह से हवा में मार करने वाली त्वरित मिसाइल प्रणाली(QRSAM) और मध्यम दूरी की एंटी-शिप मिसाइल (MRAshM)।
- उन्नत प्लेटफार्म: मल्टी-मिशन मैरीटाइम एयरक्राफ्ट (MMMA), सिग्नल इंटेलिजेंस और कॉमजैम एयरक्राफ्ट (SCA) और एंटी-टैंक इन्फ्लुएंस माइन PRACHAND।
- ए.आई. टूल: DRDO ने 'दिव्य दृष्टि' नामक एआई. टूल विकसित किया है, जो चेहरे की पहचान को अपरिवर्त्य शारीरिक लक्षणों जैसे चाल (चलने का तरीका) और अस्थि के साथ एकीकृत करता है।
- प्रमुख कार्यक्रम: दो प्रमुख कार्यक्रम- उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) का फुल-स्केल इंजीनियरिंग डेवलेपमेंट (FSED) और आंध्र प्रदेश में एक मिसाइल परीक्षण रेंज की स्थापना, को सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) द्वारा स्वीकृति दी गई।
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- मिसाइल प्रणालियाँ:
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हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल: MICA, अस्त्र मिसाइल
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सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें: त्रिशूल, आकाश, बराक 8
- सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें: अग्नि, पृथ्वी, धनुष, शौर्य
- क्रूज़ मिसाइलें: ब्रह्मोस, निर्भय
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- लड़ाकू विमान: स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस।
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रॉकेट प्रणालियाँ: मल्टी बैरल रॉकेट लांचर पिनाका।
- नौसेना प्रणालियाँ: हम्सा, नागान (सोनार प्रणाली), उशुस (पनडुब्बी सोनार सुइट), मिहिर (हेलीकॉप्टर सोनार प्रणाली)।
- मुख्य युद्धक टैंक: अर्जुन
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मानवरहित हवाई प्रणालियाँ (UAS):
- लक्ष्य: प्रशिक्षण के लिये पुन: प्रयोज्य हवाई लक्ष्य प्रणाली, जिसे भूमि/जहाज से लक्ष्यों के साथ प्रक्षेपित किया जा सकता है।
- निशांत: स्वायत्त उड़ान और पैराशूट रिकवरी के साथ निगरानी एवं तोपखाने के सुधार हेतु बहु-मिशन UAV।
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डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का DRDO में क्या योगदान है?
- IGMDP में नेतृत्व: डॉ. कलाम ने वर्ष 1983 में शुरू किए गए एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के निर्माण एवं कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- उनके नेतृत्व में पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग एवं अग्नि मिसाइलों का सफल विकास हुआ, जिससे भारत मिसाइल निर्माता देशों के विशिष्ट समूह का सदस्य बन गया तथा उन्हें 'भारत के मिसाइल मैन' की उपाधि मिली।
- डॉ. कलाम के नेतृत्व में, DRDO ने प्रणोदन, नेविगेशन, नियंत्रण प्रणाली तथा वायुगतिकी जैसी मिसाइल प्रौद्योगिकियों में सफलता हासिल की, जिससे स्वदेशी मिसाइल प्रणालियाँ विकसित हुईं एवं विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हुई।
- एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम: IGMDP, वर्ष 1982-1983 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम था, जिसका उद्देश्य मिसाइलों की एक विस्तृत शृंखला पर अनुसंधान और विकास करना था।
- इस कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य आयात पर निर्भरता को कम करना तथा प्रणोदन, नौवहन एवं नियंत्रण प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में स्वदेशी विशेषज्ञता को बढ़ावा देना था।
- इस कार्यक्रम के परिणामस्वरूप पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग एवं अग्नि जैसी प्रमुख मिसाइल प्रणालियों का विकास हुआ।
- IGMDP के तहत कई प्रमुख तकनीकी लाभ मिलने के साथ भारत की रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता में मज़बूती आई। इसके साथ 'मेक इन इंडिया' पहल के समन्वय से रक्षा-औद्योगिक आधार के विकास में योगदान मिला।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बारे में मुख्य तथ्य
- जन्म: डॉ. अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ।
- राष्ट्रपति: वर्ष 2002 से 2007 तक इन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया।
- पुरस्कार: पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) और भारत रत्न (1997)।
- साहित्यिक कृतियाँ: विंग्स ऑफ फायर, इंडिया 2020 - ए विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम, माई जर्नी, इग्नाइटेड माइंड्स।
- योगदान:
- इसरो: वह भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान (SLV-III) के परियोजना निदेशक थे।
- रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की निम्न कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित (जुलाई 1980) करने में भूमिका निभाई।
- इसरो के प्रक्षेपण यान कार्यक्रम को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से PSLV (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) के संदर्भ में।
- इसरो में अग्रणी भूमिका निभाने के साथ फाइबरग्लास प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
- पोखरण-II: परमाणु ऊर्जा विभाग के सहयोग से भारत के परमाणु परीक्षणों का नेतृत्व किया, जिससे भारत एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बना।
- पोखरण-II: डॉ. कलाम ने वर्ष 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षण का नेतृत्व किया, जिसमें परमाणु ऊर्जा विभाग का सहयोग प्राप्त था।
- विज़न 2020: भारत को वर्ष 2020 तक विकासशील से विकसित राष्ट्र में बदलने के लिये एक राष्ट्रीय योजना प्रस्तावित की।
- कलाम-राजू स्टेंट: हृदय रोग विशेषज्ञ बी. सोमा राजू के साथ मिलकर इन्होंने कोरोनरी हृदय रोग के लिये एक किफायती स्टेंट विकसित करने में भूमिका निभाई।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के विशेष संदर्भ के साथ, रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा में DRDO की भूमिका पर चर्चा कीजिये |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय रक्षा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा 'INS अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा वर्णन है, जो हाल ही में समाचारों में था? (2016) (a) उभयचर (एम्फिब) युद्ध जहाज़ उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: एस-400 वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी रूप से विश्व में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से किस प्रकार बेहतर है? (2021) |
भूगोल
राजस्थान में आर्टेसियन कुआँ और टेथिस सागर
प्रिलिम्स के लिये:आर्टेसियन कुआँ, सरस्वती नदी, एक्वीफर, पारगम्य चट्टान, बलुआ पत्थर, टेथिस सागर, मेसोज़ोइक युग, गोंडवाना, लॉरेशिया, विवर्तनिकी प्लेट, हिमालय पर्वत शृंखला, तिब्बत का पठार, गर्म झरने, हाइड्रोथर्मल वेंट, गीज़र, मडपॉट्स, फ्यूमरोल्स, बैरन द्वीप, कच्छ की खाड़ी, सिंधु नदी, गंगा नदी, थार रेगिस्तान। मेन्स के लिये:आर्टिसियन कुओं की विशेषताएँ, भारत में इनकी उपस्थिति। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर में जमीन के नीचे से बड़ी मात्रा में जल बाहर निकलने लगा, जिसका श्रेय भारत के आर्टेसियन कुओं को दिया गया है।
- विशेषज्ञों ने इस विचार को खारिज कर दिया कि यह जल प्राचीन सरस्वती नदी से संबंधित है तथा उन्होंने सुझाव दिया कि यह जल लाखों वर्ष पुराना होने के साथ इसकी उत्पत्ति टेथिस सागर (पूर्व-वैदिक काल) से संबंधित हो सकती है।
आर्टेसियन कुआँ क्या है?
- आर्टेसियन कुआँ से जल पंपिंग की आवश्यकता के बिना दबाव के कारण स्वाभाविक रूप से सतह पर आता है। ऐसा तब होता है जब जल एक सीमित जलभृत में संग्रहित हो जाता है तथा इसका दाब अधिक हो जाता है।
- इसके ऊपर एवं नीचे उपस्थित कठोर सामग्रियों के कारण इसे "कन्फाइंड" जल भी कहा जाता है।
- निर्माण: आर्टेसियन कुओं का निर्माण तब होता है जब एक कुआँ का कन्फाइंड जलभृत तक प्रसार होता है, जो मृदा या चट्टान जैसी अभेद्य परतों के बीच स्थित पारगम्य चट्टान या तलछट की एक परत होती है।
- दबाव तंत्र: कन्फाइंड जलभृत में जल, अधिक दबाव में होता है और जब कुआँ को ड्रिल किया जाता है तो दबाव से जल बोरहोल के माध्यम से ऊपर उठने लगता है।
- जल प्रवाह: यदि दाब पर्याप्त होता है तो आर्टेसियन कुएँ में जल सतह पर स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो सकता है, जिसे "प्रवाहित आर्टेसियन कुएँ" के रूप में जाना जाता है।
- यदि दाब जल को सतह पर लाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो इसे पंप का उपयोग करके निकाला जा सकता है।
- स्थान: प्रसिद्ध आर्टेसियन कुएँ ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट आर्टेसियन बेसिन, संयुक्त राज्य अमेरिका के डकोटा एक्वीफर और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- ट्यूबवेल से अंतर: आर्टेसियन जल स्वाभाविक रूप से स्वयं ही सतह पर आ सकता है और यह पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में मिलता है जबकि ट्यूबवेल से जल को पंप करने के लिये बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
नोट: आर्टेसियन नाम फ्राँस के आर्टोइस कस्बे से लिया गया है जो कि आर्टेसियम का पुराना रोमन शहर था, जहाँ मध्य युग में सबसे प्रसिद्ध प्रवाहित आर्टेसियन कुएँ थे।
राजस्थान में पाए गए आर्टेसियन कुओं की विशेषताएँ क्या हैं?
- जल विस्फोट: राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल, बलुआ पत्थर की भू-वैज्ञानिक परत के नीचे संग्रहित है।
- जैसे ही ऊपरी परत में छेद होता है तो भारी दाब के कारण जल ऊपर की ओर प्रवाहित होने लगता है, जो अक्सर फव्वारे की तरह बाहर आता है।
- प्राचीन समुद्री साक्ष्य: बोरवेल से मिले जल की उच्च लवणता, प्राचीन समुद्री या खारे भू-जल स्रोतों के समान है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका जल टेथिस सागर (जो लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व अस्तित्व में था) से संबंधित है।
- समुद्री मृदा की उपस्थिति: इस जल के साथ, ओज (कंकाल के अवशेषों वाली महीन सफेद समुद्री मृदा) सतह पर आई, जिससे इस विचार को बल मिला कि यह भू-जल किसी प्राचीन समुद्र का अवशेष है।
- इस क्षेत्र में पाई जाने वाली रेत, जो कि टर्शियरी काल (लगभग 6 मिलियन वर्ष पूर्व) की मानी जाती है, भी भूजल के साथ बहकर आई थी।
- भू-वैज्ञानिक महत्त्व: जैसलमेर क्षेत्र कभी टेथिस सागर से संबद्ध था जिसके एक ओर डायनासोर थे और दूसरी ओर गहरा जल क्षेत्र था।
- एशिया में विशाल शार्क के जीवाश्म केवल भारत (जैसलमेर), जापान एवं थाईलैंड में ही पाए गए हैं।
टेथिस सागर के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- टेथिस सागर का निर्माण मेसोज़ोइक युग के प्रारंभिक चरणों के दौरान हुआ था, विशेष रूप से ट्राइएसिक काल के दौरान (लगभग 250 से 201 मिलियन वर्ष पूर्व)।
- यह गोंडवाना (दक्षिणी महाद्वीप) और लॉरेशिया (उत्तरी महाद्वीप) के भू-भागों के बीच स्थित था।
- गोंडवानालैंड में वर्तमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अरब, मेडागास्कर, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका शामिल थे।
- लॉरेशिया में उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया (प्रायद्वीपीय भारत को छोड़कर) शामिल थे।
- यह गोंडवाना (दक्षिणी महाद्वीप) और लॉरेशिया (उत्तरी महाद्वीप) के भू-भागों के बीच स्थित था।
- भौगोलिक विस्तार: टेथिस सागर वर्तमान यूरोप, एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के सीमित क्षेत्रों में विस्तृत था तथा पूर्व में प्रशांत महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर को जोड़ता था।
- समापन: क्रिटेशस काल के अंत में (लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व), टेक्टोनिक प्लेटों के निरंतर स्थानांतरण के कारण टेथिस सागर का भराव शुरू हो गया।
- टेथिस सागर के अवशेष आज भी भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और काला सागर जैसे छोटे समुद्रों के रूप में देखे जा सकते हैं।
- विवर्तनिक महत्त्व: इसके क्रमिक भराव होने से नए भू-भागों का निर्माण हुआ, जैसे कि भारतीय उपमहाद्वीप का एशियाई प्लेट की ओर गमन करना, जिससे हिमालय पर्वत शृंखला और तिब्बती पठार का थल से उत्थान हुआ।
- जीवाश्म के साक्ष्य: टेथिस सागर में समुद्री जीवन की समृद्ध विविधता पाई जाती है, जिसमें शार्क, अम्मोनाइट्स के प्रारंभिक रूप और इचथियोसॉर तथा मोसासौर जैसे समुद्री सरीसृप शामिल हैं।
- टेथिस सागर की उत्पत्ति से उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में पेट्रोलियम नदी द्रोणियों का निर्माण हुआ, जिससे कार्बनिक पदार्थ के संचयन और हाइड्रोकार्बन परिपक्वता में सहायता मिली।
भूगर्भ से सतह पर आए जल के अन्य उदाहरण क्या हैं?
- हाइड्रोथर्मल वेंट: ये गर्म जल के जलमग्न चश्मे (स्प्रिंग) हैं जो विवर्तनिक प्लेटों के निकट पाए जाते हैं, जहाँ भू पर्पटी के नीचे से गर्म जल और खनिज धरती से बाहर निकलता है।
- हॉट स्प्रिंग: भूमि पर गर्म जल के चश्मे (स्प्रिंग) वे क्षेत्र हैं जहाँ गर्म भूजल (पृथ्वी के आंतरिक भाग से भूतापीय ऊष्मा द्वारा ऊष्मित) सतह से बाहर निकलता है।
- जैसे, मणिकरण (हिमाचल प्रदेश), गौरीकुंड (उत्तराखंड)।
- गीज़र: ये भूतापीय संरचनाएँ हैं जिसमें से भूमिगत तापन के कारण समय-समय पर जल और भाप बाहर निकलती है।
- समीप स्थित मैग्मा द्वारा जल के ऊष्मित होने पर यह भाप में बदल जाता है, जिससे गर्म जल और भाप का विस्फोटन होता है। उदाहरण के लिये, येलोस्टोन नेशनल पार्क (अमेरिका)।
- मडपॉट: ये बुलबुले युक्त पंक के तालाब हैं जो भूतापीय क्षेत्रों में बनते हैं। सीमित भूतापीय जल का पंक और चिकनी मृदा के साथ संयोजन होने पर इसका निर्माण होता है।
- फ्यूमरोल्स: फ्यूमरोल्स तब उत्पन्न होते हैं जब मैग्मा जल स्तर से होकर गुज़रता है, जिससे जल गर्म हो जाता है और भाप ऊपर उठती है तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जैसी ज्वालामुखीय गैसें सतह पर आ जाती हैं।
- यह प्रायः "डाइंग वोल्केनो" के समीप पाया जाता है, जहाँ भूमिगत मैग्मा पिंडित और शीतलित हो गया होता है। उदाहरण के लिये, बैरन द्वीप (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह)
सरस्वती नदी
- परिचय: यह प्राचीन भारतीय ग्रंथों, मुख्य रूप से वेदों में वर्णित नदी है जिसमें सरस्वती नदी को वैदिक काल (8000-5000 वर्ष पूर्व) की सबसे पवित्र और समृद्ध नदी माना गया है।
- उद्गम और प्रवाह: इस नदी का उद्गम स्थल हिमालय था और पश्चिम में सिंधु नदी और पूर्व में गंगा नदी के बीच पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात के मैदानों से होकर यह प्रवहित होती थी।
- यह नदी अंततः अरब सागर में कच्छ की खाड़ी में गिरती थी।
- विलुप्ति: सरस्वती नदी जलवायु और विवर्तनिक परिवर्तनों के कारण लगभग 5000 बी.पी. में विलुप्त हो गई।
- ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में भी यह नदी थार मरुस्थल के नीचे भूमिगत रूप से बहती है और हिमालय से इसका संपर्क बना हुआ है।
- प्राचीन साहित्य में उल्लेख: सरस्वती नदी का उल्लेख प्रायः वेदों, मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलता है।
- वेद: ऋग्वेद में इसके महत्त्व को उजागर करते हुए सरस्वती को "सर्वोपरि माता", "नदी" और "देवी" माना गया है, और यजुर्वेद में इसकी सहायक नदियों का उल्लेख किया गया है।
- मनुस्मृति: सरस्वती और दृषद्वती नदी (हरियाणा की लक्ष्मी नदी) के बीच का क्षेत्र भगवान द्वारा निर्मित ब्रह्मावर्त माना जाता है।
- महाभारत: इसमें नदी के तट पर स्थित तीर्थ स्थल और साथ ही विनाशना (वह स्थान जहाँ सरस्वती नदी लुप्त हुई) में कम जल प्रवाह के कारण नदी के मरुस्थलीय क्षेत्रों में लुप्त हो जाने का उल्लेख है।
- पुराण: मार्कण्डेय पुराण में सरस्वती को प्लक्ष वृक्ष (पीपल वृक्ष) से निकलते हुए तथा एक ऋषि द्वारा उनकी पूजा करते हुए वर्णित किया गया है।
निष्कर्ष
हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर में भूगर्भ से अत्यधिक तीव्रता के साथ जल के बाहर निकने की घटना हुई, जिसका कारण एक आर्टिज़ियन कूप को बताया जा रहा है, जिससे प्राचीन सरस्वती नदी के साथ इस घटना का संबंध चर्चा का विषय बना गया है। हालाँकि, वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार यह उत्सर्जित जल प्राचीन समुद्री अवशेषों का था, जिसका संबंध सरस्वती नदी से न होकर विशेष रूप से टेथिस सागर से है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: आर्टिज़ियन कूप की संरचना और संप्रत्यय पर चर्चा कीजिये। |
प्रश्न. लवणीकरण तब होता है जब मिट्टी में जमा सिंचाई का पानी लवण और खनिजों को पीछे छोड़ता है। सिंचित भूमि पर लवणीकरण के प्रभाव क्या हैं? (2011) (a) यह फसल उत्पादन को बहुत बढ़ा देता है। उत्तर: (b) |
सामाजिक न्याय
वैश्विक पोषण लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:कुपोषण, एनीमिया, वैश्विक पोषण लक्ष्य, मोटापा, मध्याह्न भोजन योजना, उच्च रक्तचाप, मिशन पोषण 2.0, एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना मेन्स के लिये:वैश्विक पोषण लक्ष्य और भारत की प्रगति, कुपोषण का दोहरा बोझ, भारत में पोषण के लिये नीतिगत हस्तक्षेप। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों (GNT) पर वैश्विक प्रगति का मूल्यांकन करने वाले लैंसेट के एक हालिया अध्ययन में मातृ एवं शिशु कुपोषण, अल्पपोषण और मोटापे से निपटने में धीमी प्रगति देखी गई है।
- इन निष्कर्षों से नीति निर्माण और इन सतत् मुद्दों के समाधान के लिये नवीन रणनीतियों की आवश्यकता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
वैश्विक पोषण लक्ष्य (GNT) क्या हैं?
- विश्व स्वास्थ्य सभा संकल्प, 2012: मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण पर एक व्यापक कार्यान्वयन योजना का समर्थन किया गया, जिसमें वर्ष 2025 के लिये छह वैश्विक पोषण लक्ष्य निर्धारित किये गए।
- वैश्विक पोषण लक्ष्य:
- पाँच वर्ष से कम आयु के अविकसित बच्चों की संख्या में 40% की कमी लाना।
- प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया में 50% की कमी लाना।
- कम वजन वाले शिशुओं के जन्म में 30% की कमी लाना।
- यह सुनिश्चित करना कि बच्चों के वजन में कोई वृद्धि न हो।
- पहले 6 महीनों में केवल स्तनपान की दर को बढ़ाकर कम से कम 50% करना।
- बचपन में कुपोषण को 5% से कम पर बनाए रखना।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- कुपोषण: यह शरीर के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों और उसे प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्वों के बीच असंतुलन है।
- इसमें कुपोषण (जिसमें स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कम ऊँचाई), दुर्बलता (ऊँचाई के अनुपात में कम वजन) और अल्पवजन (आयु के अनुपात में कम वजन) शामिल हैं) और अतिपोषण (अधिक वजन और मोटापा) दोनों शामिल हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहरा बोझ पड़ता है।
- एनीमिया: एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन के कम होने की स्थिति है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जो मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- धीमी और अपर्याप्त प्रगति: 204 देशों में वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक GNT लक्ष्यों को पूरा करने में धीमी और अपर्याप्त प्रगति हुई है, तथा वर्ष 2050 तक के अनुमान सीमित सफलता दर्शाते हैं।
- उम्मीद है कि बहुत कम देश 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग के लक्ष्य को प्राप्त कर पाएँगे।
- वर्ष 2030 तक किसी भी देश द्वारा जन्म के समय कम वजन, एनीमिया और बचपन में अधिक वजन के लक्ष्य को पूरा करने का अनुमान नहीं है।
- एनीमिया और भारत: भारत में एनीमिया की समस्या दो दशकों से स्थिर बनी हुई है।
- ऐसा माना जाता है कि आयरन की कमी इसका कारण है, लेकिन एनीमिया के केवल एक तिहाई मामले ही इसके कारण होते हैं, जबकि अन्य एक तिहाई मामले अज्ञात कारणों से होते हैं।
- कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एनीमिया का प्रसार बढ़ गया जब स्कूली भोजन (मध्याह्न भोजन योजना) बंद हो गया, जिससे व्यापक पोषण दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- अध्ययन में एनीमिया माप में विसंगतियाँ पाई गईं, भारत में शिरापरक रक्त-आधारित (रक्त नस से लिया जाता है) एनीमिया की व्यापकता (जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित है) राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में केशिका रक्त-आधारित (रक्त उंगली से लिया जाता है) एनीमिया की व्यापकता की तुलना में आधी थी।
- स्टंटिंग: स्टंटिंग प्रायः जीवन के पहले दो वर्षों में विकसित होता है, जो भारत में जन्म के समय 7-8% से बढ़कर दो वर्ष की आयु तक 40% हो जाता है।
- दो वर्ष की आयु के बाद बच्चों को अधिक भोजन देने से उनका स्टंटिंग में सुधार होने के बजाय उनका वजन बढ़ सकता है।
- भारत में गरीब बच्चे प्रतिदिन केवल 7 ग्राम वसा का उपभोग करते हैं, जबकि आवश्यक 30-40 ग्राम है।
- बचपन में अधिक वजन: भारत सहित विश्व भर में बच्चों में अधिक वजन बढ़ रहा है, जिससे "चयापचय संबंधी अतिपोषण" को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे गैर-संचारी रोगों जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- भारतीय बच्चों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (50%) चयापचय संबंधी अतिपोषण का सामना करता है, जो गैर-संचारी रोगों में योगदान देता है।
- अनुशंसाएँ: एनीमिया से निपटने के लिये आहार में विविधता लाना, क्योंकि यह केवल आयरन की कमी के कारण नहीं होता है।
- जीवन के प्रथम दो वर्षों में बौनेपन की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना।
- 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये ऊर्जा सेवन, विशेषकर वसा सेवन में सुधार करें।
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एनीमिया और स्टंटिंग को मापने के लिये अधिक सटीक और संदर्भ-विशिष्ट तरीकों को अपनाना।
- गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिये नीति में कुपोषण और अतिपोषण दोनों को संबोधित करना।
GNT प्राप्त करने से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?
- वैश्विक:
- एनीमिया: प्रजनन आयु वाली महिलाओं में एनीमिया का वैश्विक प्रसार काफी हद तक अपरिवर्तित रहा है।
- अपर्याप्त जागरूकता एवं लक्षित नीतियों के कारण एनीमिया कम आय वाले देशों (विशेषकर ग्रामीण, गरीब और अशिक्षित लोगों) पर बोझ है।
- स्टंटिंग की दिशा में धीमी प्रगति: विभिन्न प्रयासों के बावजूद अनुमान है कि वर्ष 2025 तक इससे प्रभावित बच्चों की संख्या 127 मिलियन तक पहुँच जाएगी (जो 100 मिलियन तक के लक्ष्य के अनुरूप नहीं है) क्योंकि बच्चे के जीवन के प्रारंभिक दिनों को लक्षित करने वाली प्रारंभिक नीतियों का अभाव है।
- अधिक वजन एवं मोटापे में वृद्धि: अधिक वजन तथा मोटापे का बढ़ता प्रचलन (जिससे वर्ष 2022 के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 37 मिलियन बच्चे तथा 5-19 वर्ष की आयु के 390 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर प्रभावित हैं) शहरीकरण, बदलते आहार पैटर्न और कम शारीरिक गतिविधियों जैसे कारकों से प्रेरित है।
- बचपन में वेस्टिंग: इससे विश्व भर में 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 45 मिलियन बच्चे प्रभावित हैं।
- बाल कुपोषण की रोकथाम की दिशा में (विशेष रूप से दक्षिण एशिया में) खाद्य असुरक्षा, सीमित स्वास्थ्य देखभाल और निम्न स्तरीय स्वच्छता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- एनीमिया: प्रजनन आयु वाली महिलाओं में एनीमिया का वैश्विक प्रसार काफी हद तक अपरिवर्तित रहा है।
- भारत:
- सीमित आहार विविधता: भारत के आहार में अक्सर चावल, गेहूँ और अनाज का प्रभुत्व है तथा फलों, सब्जियों, डेयरी उत्पाद और प्रोटीन का सेवन अपर्याप्त बने रहने से पोषण का स्तर निम्न बना हुआ है।
- आहार विविधता में अभाव (विशेष रूप से निम्न आय वाले परिवारों में) से आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों तक पहुँच सीमित बनी हुई है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के अनुसार 6 महीने से 2 वर्ष की आयु के केवल 11.3% बच्चों को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार 'न्यूनतम स्वीकार्य आहार' मिल पाता है जिससे भोजन की गुणवत्ता में प्रमुख अंतराल बना हुआ है।
- सीमित आहार विविधता: भारत के आहार में अक्सर चावल, गेहूँ और अनाज का प्रभुत्व है तथा फलों, सब्जियों, डेयरी उत्पाद और प्रोटीन का सेवन अपर्याप्त बने रहने से पोषण का स्तर निम्न बना हुआ है।
- आर्थिक बाधाएँ: कम आय के साथ उच्च खाद्य कीमतों के कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग पौष्टिक आहार का खर्च उठाने के लिये संघर्षरत है जिससे कुपोषण को बढ़ावा मिलता है।
- अपर्याप्त डेटा: आहार विविधता से संबंधित व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अभाव से लक्षित पोषण हस्तक्षेपों में बाधा आती है।
- हालांकि NFHS से इस संदर्भ में कुछ जानकारी मिलती है लेकिन इसमें उपभोग किये गए भोजन की मात्रा के बारे में विस्तृत आँकड़ों का अभाव रहने से पोषण संबंधी अंतराल को दूर करने के क्रम में इसकी उपयोगिता सीमित हो जाती है।
- अपर्याप्त डेटा: आहार विविधता से संबंधित व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अभाव से लक्षित पोषण हस्तक्षेपों में बाधा आती है।
- गैर-संचारी रोग (NCD): मोटापा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे आहार-संबंधी NCD की बढ़ती संख्या से लोक स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ में वृद्धि हो रही है, जिसके कारण अल्प-पोषण एवं अति-पोषण दोनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- खाद्य प्रणालियों की बाधाएँ: जलवायु परिवर्तन एवं चरम मौसमी घटनाओं से खाद्य सुरक्षा के समक्ष और भी खतरा उत्पन्न हो रहा है जिससे फसल की पैदावार के साथ विविध खाद्य पदार्थों की उपलब्धता प्रभावित होती है।
पोषण से संबंधित भारत की पहल
- मिशन पोषण 2.0
- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
- मध्याह्न भोजन योजना
- किशोरियों के लिये योजना (SAG)
- माताओं का पूर्ण स्नेह (MAA)
- पोषण वाटिकाएँ
आगे की राह
- नीति पुनर्संरेखण: पोषण अभियान जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अनुकूल तथा क्षेत्र-विशिष्ट आहार समाधानों को शामिल करने के साथ राष्ट्रीय कदन्न मिशन (NMM) जैसी पहलों को बढ़ावा देना चाहिये।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत पोषण-सघन खाद्य पदार्थों को शामिल करने के लिये प्रणालीगत अंतराल को दूर करना चाहिये।
- राष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्य निर्धारित करना: देश के लिये विशिष्ट आधार रेखाएँ एवं वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये।
- संसाधन आवंटन को मज़बूत करना: पोषण-विशिष्ट तथा पोषण-संवेदनशील कार्यक्रमों को लागू करने के लिये वित्तीय तथा मानव संसाधन जुटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- विभिन्न क्षेत्रों में पोषण को एकीकृत करना: पोषण परिणामों को स्वास्थ्य, खाद्य प्रणालियों तथा जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य (WASH) नीतियों में शामिल करना चाहिये।
- प्रभावी मातृ एवं बाल पोषण सेवाओं के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करना चाहिये।
- निगरानी तंत्र विकसित करना: चयनित पोषण संकेतकों से संबंधित प्रगति को ट्रैक करने के लिये निगरानी प्रणालियों को उन्नत बनाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा अनुमोदित वैश्विक पोषण लक्ष्यों को बताते हुए उन्हें प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक/संकेतक निम्नलिखित में से कौन-सा है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न. ज़िला ग्रामीण विकास अभिकरण (DRDA) भारत में ग्रामीण निर्धनता को कम करने में कैसे मदद करते हैं? (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/ हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:1. क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021) 2. लगातार उच्च विकास के बावजूद मानव विकास सूचकांक में भारत अभी भी सबसे कम अंकों के साथ है। उन मुद्दों की पहचान करें जो संतुलित और समावेशी विकास को सुनिश्चित करते हैं। (2019) |