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कच्चातिवू: बंजर द्वीप की रणनीतिक उर्वरता

  • 01 May, 2024

तमिल में कच्चाथिवू का अर्थ होता है बंजर द्वीप, जो भौगौलिक दृष्टि से बंजर होते हुए भी रणनीतिक दृष्टिकोण से काफी उपजाऊ है। भारत और श्रीलंका के मध्य पाक जलडमरूमध्य में स्थित 1.5 वर्ग किलोमीटर वाला यह निर्जन द्वीप बार- बार भारत के राजनीतिक विमर्श में लौटता रहता है। आज के इस अर्टिकल में इस द्वीप से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों, विवादों एवं इसके कूटनीतिक निहितार्थों पर चर्चा की जाएगी।

कच्चातिवू द्वीप के संबंध में:

भौगौलिक तथ्य:

अवस्थिति- यह द्वीप भारत के दक्षिणी तट से 22 किमी दूर एवं जाफना से लगभग 45 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह एक निर्जन द्वीप है जो तमिलनाडु और उत्तरी श्रीलंका को अलग करने वाले पाकजलडमरूमध्य में लगभग 285 एकड़ में विस्तारित है।

अगर इसकी सटीक अवस्थिति की बात की जाए तो यह डेल्फा द्वीप से 14.5 किमी दक्षिण में और रामेश्वरम से लगभग 16 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है।

निर्माण- कच्चातिवू द्वीप, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखीय विस्फोट के कारण हुआ था, भू-वैज्ञानिक समयरेखा के अनुसार अपेक्षाकृत नया माना जाता है।

ऐतिहासिक तथ्य:

आधिपत्य-

  • भारत और श्रीलंका दोनों देशों द्वारा इस द्वीप पर दावा किये जाने के बावजूद श्रीलंका द्वारा यह साबित किया गया कि ऐतिहासिक,मानचित्रण और क़ानूनी रूप से यह द्वीप 1615 अर्थात् पुर्तगाली काल से श्रीलंका द्वारा प्रशासित है। गौरतलब है कि 1505-1658 ई. के दौरान इस द्वीप पर पुर्तगालियों द्वारा कब्ज़ा किया गया था।
  • हालांकि ऐतिहासिक रूप से कच्चातिवू द्वीप रामनाद जमींदारी से संबंधित था, जिसे 1605 में मदुरै के नायक राजवंश द्वारा स्थापित किया गया था। कच्चातिवू, सेतुपति राजवंश के लिये राजस्व का स्रोत था क्योंकि इसने इस द्वीप को पहले 1767 में डचों को और 1822 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को पट्टे पर दिया था।
  • 1921 से कच्चातिवू ब्रिटिश कब्ज़े में था और ब्रिटिश शासन के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया था। 1947 ई तक इसके तहत कर एकत्रित किये गए एवं जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के पश्चात् राज्य सरकार द्वारा इसे अपने अधिकार में ले लिया गया।

चर्चा में क्यों:

  • 1974 में इस द्वीप से संबंधित मूल समझौते पर हस्ताक्षर को लगभग 50 वर्ष बीत जाने के उपरांत यह मामला पुनः सुर्ख़ियों में आया है। देखा जाए तो अक्सर इसका इस्तेमाल राजनैतिक हितों की पूर्ति हेतु किया जाता रहा है लेकिन यह भी सत्य है कि वर्तमान समय में यह द्वीप अपनी अवस्थिति के कारण प्रासंगिक रूप से महत्वपूर्ण हो गया हैं।
  • विगत वर्ष तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के.स्टालिन द्वारा श्रीलंका से कच्चातिवू के पुनर्प्राप्ति की मांग दोहराई गयी थी,ताकि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार को बहाल किया जा सके जिसने इस द्वीप से संबंधित विवाद को पुनर्जीवित कर दिया।
  • लेकिन कुछ समय पूर्व यह द्वीप तब सुर्ख़ियों में आया जब फ़रवरी माह के अंत में श्रीलंकाई सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी के विरोध में रामनाथपुरम जिले के मछुआरा संघ द्वारा सेंट एंथोनी चर्च के दो दिवसीय वार्षिक उत्सव का बहिष्कार किया गया।

पहले भी सुर्ख़ियों में:

  • लगभग 15 वर्षों से अधिक समय तक इस मुद्दे के शांत रहने के पश्चात्, 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर इस द्वीप के पुनर्प्राप्ति की मांग की गयी , जिसे बाद में ‘सदा के लिये पट्टे’ के माध्यम से द्वीप को लौटाने संबंधी मांग में परिवर्तित कर दिया गया
  • वर्ष 2008 में जयललिता द्वारा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख भी किया गया था।

केंद्र सरकार का रुख:

  • अगस्त 2013 में केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दिए गए बयान के तहत श्रीलंका से कच्चातिवू की पुनर्प्राप्ति संभव नहीं थी,क्योंकि भारत से संबंधित कोई भी क्षेत्र श्रीलंका को नहीं सौपा गया था। यह द्वीप ब्रिटिश भारत और सीलोन के मध्य विवाद का मुद्दा था जिसकी कोई सहमतिपूर्ण सीमा नहीं थी एवं जिसे 1974 और 1976 के चार समुद्री सीमा समझौतों के माध्यम से सुलझाया गया।
  • हालांकि दोनों देशों के मछुआरों द्वारा बहुत लंबे समय से बिना किसी विवाद के एक-दूसरे के जलक्षेत्र में मछली पकड़ा जाता रहा हैं लेकिन यह मुद्दा तब उभरा जब दोनों देशों द्वारा 1974-76 में इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
  • दोनों देशों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा को परिभाषित करने हेतु 1974 और 1976 में भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। पहला समझौता एडम ब्रिज और पाक स्ट्रेट के मध्य के जल में समुद्री सीमा के संबंध में था, जो 8 जुलाई, 1974 को लागू हुआ। दूसरा समझौता 10 मई, 1976 को लागू हुआ था, जिसने मन्नार की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमाएँ परिभाषित की।

1974 का समझौता:

  • 26-28 जून 1974 के दौरान भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी एवं उनके समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने पाक जलडमरूमध्य से एडम ब्रिज तक के ऐतिहासिक जल में दोनों देशों के मध्य सीमांकन हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • इसके तहत भारत के मछली पकड़ने वाले जहाज और मछुआरे अब श्रीलंका के ऐतिहासिक जल, क्षेत्रीय समुद्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने में संलग्न नहीं होंगे।
    • प्रत्येक देश के पास उपरोक्त सीमा के अपने हिस्से में आने वाले जल, द्वीपों, महाद्वीपीय शेल्फ और उपमृदा पर संप्रभुता और विशेष क्षेत्राधिकार और नियंत्रण होगा,
    • एक-दूसरे के जलक्षेत्र पर श्रीलंका और भारत दोनों के जहाजों के केवल नौवहन अधिकार हेतु सुरक्षित रखे गए,
    • द्वीप में भारतीय मछुआरों के लिए अनुमत गतिविधियाँ
    • द्वीप में भारतीय मछुआरों के लिए निषिद्ध गतिविधियाँ
    • मछुआरों द्वारा आराम करना और जाल सुखाना

1974 के भारत-श्रीलंकाई समुद्री सीमा समझौते के तहत द्वीप को श्रीलंका को सौप दिया गया, लेकिन अभी भी भारतीय मछुआरों को कच्चातिवु तक पहुचने की अनुमति थी। हालाँकि, समझौते के अनुच्छेद 5 में स्पष्ट है कि भारतीय मछुआरों और तीर्थयात्रियों कच्चातिवू की यात्रा कर सकेंगे और श्रीलंका को इन उद्देश्यों के लिए यात्रा दस्तावेज या वीजा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसी प्रकार अनुच्छेद 6 के तहत "भारत और श्रीलंका के जहाजों को एक-दूसरे के जल में वही अधिकार प्राप्त होंगे जो उन्हें पारंपरिक रूप से प्राप्त हैं" लेकिन श्रीलंका द्वारा इस समझौते का अक्षरशः पालन नहीं किया गया।

1976 का समझौता-

  • 2 वर्ष पश्चात् 1976 में सेतुसमुद्रम क्षेत्र में दोनों पड़ोसी देशों के मध्य समुद्री सीमा रेखा विभाजित की गयी, जिससे भारतीय मछुआरों का द्वीप पर जाना बंद हो गया। इस समझौते के तहत प्रत्येक पक्ष अपने कानूनों और विनियमों और अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों के अनुसार अपने क्षेत्रीय समुद्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र के माध्यम से नेविगेशन के अधिकारों का सम्मान करेगा।
  • इसने तमिलनाडु राज्य विधानसभा से परामर्श किए बिना भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा को चिह्नित किया।

गौरतलब है कि इन समझौतों का उद्देश्य पाक जलडमरूमध्य में संसाधन प्रबंधन और कानून प्रवर्तन को सुविधाजनक बनाना था, जिसके तहत भारतीय मछुआरों को केवल आराम करने, जाल सुखाने और वार्षिक सेंट एंथोनी उत्सव के लिए द्वीप का उपयोग करने की अनुमति प्राप्त थी लेकिन उन्हें मछली पकड़ने के लिए द्वीप का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी। हालाँकि, भारतीय मछुआरों ने क्षेत्र में मछली की तलाश हेतु श्रीलंकाई जल सीमा का अतिक्रमण जारी रखा।

लेकिन समस्या तब गंभीर हो गई जब भारतीय महाद्वीपीय शेल्फ में मछली और जलीय जीवन समाप्त हो गया, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में मछुआरों की संख्या में वृद्धि होने लगी। उनके द्वारा मछली पकड़ने वाली आधुनिक ट्रॉलियों का भी उपयोग किया जा रहा था,जो समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते थे।

1983 से 2009 तक के मध्य का श्रीलंकाई गृहयुद्ध:

  • इस गृहयुद्ध ने श्रीलंकाई सेना द्वारा समुद्री सीमाओं को लागू करने और अपने क्षेत्रीय जल की रक्षा करने संबंधी देश की क्षमता में कमी ला दी।
  • श्रीलंकाई सरकार द्वारा इस अवधि में सुरक्षा संबंधी सुधार के मद्देनज़र श्रीलंकाई तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसका फायदा भारतीय मछुआरों द्वारा उठाया गया।
  • हालांकि तनाव तब उत्पन्न हुआ जब उत्तरी समुद्र में श्रीलंकाई मछुआरों के लौटने के पश्चात् भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई जल में अवैध शिकार करते हुए पाया गया।
  • हालांकि 2009 में गृहयुद्ध समाप्त होने के पश्चात् कोलंबो द्वारा अपनी समुद्री सुरक्षा बढ़ा दी गयी, जिसके परिणामस्वरूप श्रीलंकाई जल में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (।MBL) पार करने के आरोप में भारतीय मछुआरों को हिरासत में ले कर उत्पीडन किया जाने लगा।
  • विगत 15 वर्षों से श्रीलंकाई मछुआरों द्वारा श्रीलंकाई सरकार से भारतीय मछुआरों के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया जा रहा हैं।

भारत को इस समझौते से क्या प्राप्त हुआ:

  • भारत द्वारा ये समझौते, बांग्लादेश की मुक्ति के कुछ वर्षों बाद और श्रीलंका में राज्यविहीन किये गए भारतीय मूल के तमिलों हेतु नागरिकता संबंधी मुद्दों के मद्देनज़र श्रीलंका के साथ सुदृढ़ और घनिष्ठ संबंधों के महत्व को देखते हुए किये गए थे।
  • इस समझौते के तहत भारत को कन्याकुमारी के पास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र में स्थित वाडगे बैंक और उसके समृद्ध समुद्री संसाधनों पर संप्रभु अधिकार प्राप्त हुआ जिसे विश्व के मछली पकड़ने संबंधी सबसे आकर्षक क्षेत्रों में से जाना जाता है।
  • इस समझौते के तहत भारत ने वाड्ज बैंक को सुरक्षित किया जो कच्चाथीवू की तुलना में समुद्री संसाधनों से ज्यादा समृद्ध है एवं एक बड़े क्षेत्र पर विस्तारित है।
  • इसके अलावा, भारत को पेट्रोलियम और अन्य मूल्यवान खनिज भंडार हेतु वाड्ज बैंक में खोज संबंधी अधिकार प्राप्त हुए।

भारत के लिये इस द्वीप का रणनीतिक महत्त्व:

  • देखा जाए तो समझौते के वक्त इस द्वीप का रणनीतिक महत्त्व कम था लेकिन विगत दशक में चीन के बढ़ते दबदबे और श्रीलंका पर उसके बढ़ते प्रभाव के कारण भू-राजनितिक आयामों में विभिन्न परिवर्तन आये जिससे यह द्वीप भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बन गया।
  • एक ऐसे समय में जब चीन हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना चाह रहा है, कच्चातिवू भारत के लिये काफी रणनीतिक महत्त्व रखता है।
  • देखा जाए तो भारत के लिये कच्चातिवू का महत्त्व राजनीति से भी परे है जिसमें धर्म आजीविका और भू-राजनीति जैसे विभिन्न पहलू भी शामिल हैं। इसका असर भारत के मछुआरों विशेषकर तमिलनाडु के मछुआरों के जीवन पर भी पड़ता है।
  • भारत को यह आशंका है कि कच्चातिवू के कारण चीन भारत के करीब अपनी पहुँच बना सकता है एवं हम्बंटोटा इस बात का प्रमाण है कि श्रीलंका इस क्षेत्र में चीनी हस्तक्षेप और उसकी उपस्थिति के प्रति कितना संवेदनशील है।
  • इसके परिणामस्वरूप हाल ही में भारत द्वारा हिन्द महासागर क्षेत्र।OR में द्वीपों को काफी महत्त्व दिया जा रहा है, चाहे वह फ्रेंच रीयूनियन हो या भारतीय निकोबार।

भारतीय मछुआरों द्वारा समुद्री सीमा पार करने की वजह:

  • भारतीय मछुआरों द्वारा तलहटी में मछली पकड़ने संबंधी कार्य ने भारतीय जल में मत्स्य पालन को ख़त्म करके उनकी आजीविका के प्राथमिक स्रोत को नष्ट करने में योगदान दिया है।
  • इनके निचले ट्रॉलर न केवल समुद्र तल और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करते हैं बल्कि मछली पकड़ने के जाल के साथ श्रीलंकाई तमिलों की पारंपरिक नौकाओं को भी नष्ट कर देते हैं।

मछली पकड़ने के संभावित समाधान:

1. मछली पकड़ने की अधारणीय प्रथा ‘बॉटम ट्रॉलिंग’ को हतोत्साहित करना-

  • बॉटम ट्रॉलिंग (मछली पकड़ने की एक अधारणीय प्रथा) का प्रयोग आमतौर पर भारतीय मछुआरों द्वारा की जाती है जिसके तहत मछली और अन्य समुद्री प्रजातियों को पकड़ने के लिए समुद्र तल पर डाले गए जाल में मूंगा और समुद्री शैवाल सहित विभिन्न प्रकार के समुद्री जीव भी फंस जाते है।
  • इसके साथ ही।MBL से एक निश्चित दूरी तक सीमित संख्या में भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों को एक-दूसरे के जल में जाने की अनुमति प्रदान करने के साथ भारतीय मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा भी दिया जा सकता है।

2. पाक खाड़ी योजना-

  • तमिलनाडु के मछुआरों को।MBL पार करने से रोकने हेतु केंद्र द्वारा 1,600 करोड़ रूपए की 'पाक बे योजना' की घोषणा की गयी थी, जिसके तहत लगभग 2,000 ट्रॉलरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाजों से बदला जाना था।
  • केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को विशेष रूप से तमिलनाडु के लिए तैयार किया गया था, क्योंकि अक्सर पाक खाड़ी वाले जिलों के मछुआरें ही श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा अवैध रूप से अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने के आरोप में पकड़े जाते हैं। हालांकि विविध कारणों से यह योजना अपने उद्देश्यों में विफल रही।

आगे की राह:

  • पिछले समझौतों पर सवाल उठाने से भारत की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँच सकता है और भारत के पड़ोसी देश के साथ संबंध ख़राब हो सकते हैं।
  • गौरतलब है कि वास्तविक मत्स्य पालन संघर्ष को हल करने के लिए दोनों देशों को कई कदम उठाने की आवश्यकता है, जो क्षेत्र के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और उस पर निर्भर मछुआरों की आजीविका दोनों को खतरे में डाल रहा है।
  • श्रीलंका को भी मन्नार के अपने सदियों पुराने मोती मत्स्य पालन प्रजनन स्थल को संरक्षित करने की आवश्यकता है,जिसके लिए यह द्वीप कई शताब्दियों से जाना जाता था।
  • चीन द्वारा समुद्री रेशम मार्ग या 'मोतियों की माला' के तहत आक्रामक तरीके से घुसपैठ के साथ भारत के पड़ोसी देशों में भी उसके नेटवर्क का विस्तार किया जा रहा हैं जिसे देखते हुए भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
  • भारतीय रक्षा मंत्रालय को श्रीलंकाई द्वीप कच्चातिवू और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के पास चीन की बढती उपस्थिति को विफल करने के लिए उचिपुली और तंजावुर वायु सेना (तमिलनाडु) में।NS पारुंडु नौसैनिक हवाई अड्डे को मजबूत करना चाहिए।

निष्कर्ष:

कच्चाथीवू को पुनः प्राप्त करने की मांग लंबे समय से चली आ रही है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार यह मांग ऐसे समय में आई है जब श्रीलंका द्वारा अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना किया जा रहा है।

  • देखा जाए तो भारत-श्रीलंका के सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्रभावित करने वाली समस्या कच्चातिवु नहीं है, बल्कि पूर्वोत्तर में मत्स्य संसाधनों पर होने वाले लगातार हमले हैं।
  • अत्यधिक मछली पकड़ने और अनवरत समुद्री तली में ट्रॉलिंग के कारण समुद्र तल को नुकसान पहुंचाने से क्षेत्र का समुद्री पर्यावरण नष्ट हो सकता है एवं मछली स्टॉक, मसल्स, समुद्री कुकुम्बर और अन्य जलीय जीव नष्ट हो सकते हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • इस पृष्ठभूमि में, मत्स्य पालन और जलीय संसाधन मंत्रालय, राष्ट्रीय जलीय संसाधन अनुसंधान एवं विकास एजेंसी (NARA) और अन्य संस्थानों सहित संबंधित अधिकारियों को एक स्थायी समुद्री अनुसंधान संस्थान की स्थापना द्वारा द्वीप के उपयोग के संबंध में विचार करना चाहिए।
  • यह अब समय की मांग है कि मछुआरों को बॉटम-ट्रॉलिंग के एक स्थायी विकल्प हेतु प्रोत्साहित किया जाए, जो भारत-श्रीलंकाई संबंधों से समझौता किए बिना भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों दोनों के भविष्य की रक्षा करेगा।

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