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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-तिब्बत मुद्दा

  • 10 Oct 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-तिब्बत मुद्दा, दलाई लामा

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर विभिन्न देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में धर्मशाला में पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान दलाई लामा ने तिब्बती लोगों द्वारा चीन के भीतर अधिक स्वायत्तता की मांग के संबंध में अपना रुख स्पष्ट किया, साथ ही उन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा रहते हुए तिब्बती लोगों के स्वशासन की इच्छा पर बल दिया।

चीन-तिब्बत मुद्दा:

  • तिब्बत की स्वतंत्रता:
    • यह एशिया में तिब्बती पठार पर लगभग 2.4 मिलियन वर्ग किमी. में विस्तृत क्षेत्र है जो चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
    • यह तिब्बती लोगों के साथ-साथ कुछ अन्य जातीय समूहों की पारंपरिक मातृभूमि है।
    • तिब्बत पृथ्वी पर सबसे ऊँचा क्षेत्र है, जिसकी औसत ऊँचाई 4,900 मीटर है। तिब्बत में माउंट एवरेस्ट (पृथ्वी का सबसे ऊँचा पर्वत) समुद्र तल से 8,848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
    • 13वें दलाई लामा, थुबटेन ग्यात्सो ने वर्ष 1913 की शुरुआत में तिब्बती स्वतंत्रता की घोषणा की।
      • चीन ने तिब्बत की स्वतंत्रता को मान्यता न देते हुए इस क्षेत्र पर संप्रभुता के दावे को कायम रखा।

  • चीनी आक्रमण और सत्रह सूत्रीय समझौता:
    • वर्ष 1912 से लेकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना (वर्ष 1949) तक किसी भी चीनी सरकार ने वर्तमान में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण नहीं रखा।
    • इस क्षेत्र पर दलाई लामा की सरकार ने वर्ष 1951 तक शासन किया था। माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के तिब्बत में प्रवेश करने और उस पर आक्रमण करने के पहले तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र था।
    • वर्ष 1951 में तिब्बती नेताओं को चीन द्वारा निर्धारित एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये विवश किया गया था। यह संधि ‘सत्रह सूत्री समझौते’ के नाम से जानी जाती है जो तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी/सुनिश्चितता सहित बौद्ध धर्म का सम्मान करने का दावा करती है, किंतु साथ ही ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में चीनी सिविल तथा मिलिट्री (सैन्य) मुख्यालय की स्थापना की भी अनुमति देती है।
      • हालाँकि दलाई लामा सहित तिब्बती लोग इसे अमान्य करार देते हैं।
      • तिब्बती तथा अन्य लोगों द्वारा इस संधि को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • 1959 का तिब्बती विद्रोह:
    • तिब्बत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण वर्ष 1959 में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया जब दलाई लामा को अपने अनुयायियों के एक समूह के साथ शरण की तलाश में भारत भागना पड़ा।
    • दलाई लामा का अनुसरण करने वाले तिब्बतियों ने भारत के धर्मशाला स्थित क्षेत्र में एक निर्वासित सरकार बनाई, जिसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के नाम से जाना जाता है।
  • 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह के परिणाम:
    • 1959 के विद्रोह के बाद से चीन की केंद्र सरकार लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती जा रही है।
    • वर्तमान में तिब्बत में भाषण, धर्म अथवा प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है एवं चीन द्वारा तिब्बती लोगों की विधि विरुद्ध गिरफ्तारी जारी है।
    • जबरन गर्भपात, तिब्बती महिलाओं का बंध्यकरण तथा निम्न आय वाले चीनी नागरिकों के तिब्बत में स्थानांतरण से तिब्बती संस्कृति के अस्तित्व को खतरा पहुँचा है।
    • हालाँकि चीन ने संबद्ध क्षेत्र, विशेषकर ल्हासा में आधारभूत अवसंरचना में सुधार हेतु निवेश किया है, जिससे हज़ारों हान समुदाय के चीनी लोगों को तिब्बत में बसने को प्रोत्साहित किया गया। जिसके परिणामस्वरूप तिब्बत में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है।

तिब्बत और दलाई लामा का भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव:

  • तिब्बत वास्तव में सदियों से भारत का पड़ोसी रहा, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाएँ तथा 3500 किमी. LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ है, न कि शेष चीन के साथ।
  • वर्ष 1914 में ये तिब्बती प्रतिनिधि ही थे, जिन्होंने चीनियों के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये और जिसने सीमाओं का रेखांकन किया।
  • हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के पूर्ण विलय के बाद चीन ने उस समझौते और मैकमोहन लाइन को अस्वीकार कर दिया जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
  • इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत में दलाई लामा की मौजूदगी भारत-चीन संबंधों में लगातार कड़वाहट उत्पन्न करती रही है, क्योंकि चीन उन्हें अलगाववादी मानता है।
  • जल संसाधनों और भू-राजनीतिक विचारों के संदर्भ में तिब्बती पठार का महत्त्व भारत-चीन-तिब्बत समीकरण को जटिल बनाता है। 

तिब्बत में हाल के घटनाक्रम:

  • चीन, तिब्बत में अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे का निर्माण और विकास कार्य कर रहा है, जैसे कि सीमा रक्षा गाँव, बाँध, सभी मौसम के लिये तेल पाइपलाइन और इंटरनेट कनेक्टिविटी परियोजनाएँ।
  • ‘तिब्बती बौद्ध धर्म हमेशा से चीनी संस्कृति का हिस्सा रहा है’, चीन इस बात का प्रचार करके अगले दलाई लामा के चयन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत सरकार वर्ष 1987 के कट-ऑफ वर्ष के बाद भारत में पैदा हुए तिब्बतियों को नागरिकता नहीं देती है।
    • इससे तिब्बती समुदाय के युवाओं में असंतोष की भावना पैदा हो गई है।

दलाई लामा:

  • परिचय:
    • दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग्पा परंपरा से संबंधित हैं, जो तिब्बत में सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली परंपरा है।
    • तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में केवल 14 दलाई लामा हुए हैं और पहले तथा दूसरे दलाई लामा को मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी।
      • 14वें और वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं।
    • माना जाता है कि दलाई लामा करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत, अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग की अभिव्यक्ति हैं।
      • बोधिसत्व ऐसे साकार प्राणी हैं जिन्होंने मानवता की सहायता के लिये पृथ्वी पर लौटने का प्रण किया है और सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित हैं।
  • दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया:
    • दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया में पारंपरिक रूप से पूर्व दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान करना शामिल है, जिन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक मार्ग दर्शक माना जाता है।
    • दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज सामान्यतः पूर्व दलाई लामा के निधन के बाद शुरू होती है।
      • बौद्ध विद्वानों के अनुसार, वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले दलाई लामा की खोज करना गेलुग्पा परंपरा के उच्च लामाओं और तिब्बती सरकार की ज़िम्मेदारी है।
    • यदि एक से अधिक उम्मीदवारों की पहचान की जाती है, तो उचित उत्तराधिकारी का चुनाव अधिकारियों और भिक्षुओं द्वारा एक सार्वजनिक समारोह में चिट्ठी डालकर किया जाता है।
    • चयनित उम्मीदवार, जो आमतौर पर बहुत कम उम्र का होता है, को दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना जाता है और उसे कठोर आध्यात्मिक एवं शैक्षिक प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है।
    • दलाई लामा की भूमिका में तिब्बती बौद्ध धर्म में आध्यात्मिक और राजनीतिक नेतृत्व दोनों शामिल हैं तथा इनकी चयन प्रक्रिया तिब्बती सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • इस प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं: 14वें (वर्तमान) दलाई लामा को खोजने में चार वर्ष लग गए थे।
      • यह खोज आमतौर पर तिब्बत तक ही सीमित है, हालाँकि वर्तमान दलाई लामा ने कहा है कि ऐसी संभावना है कि उनका पुनर्जन्म नहीं होगा और यदि उनका पुनर्जन्म होगा, तो वह चीनी शासन के तहत किसी देश में नहीं होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन भावी बुद्ध है, जो संसार की रक्षा हेतु अवतरित होंगे? (2018)

(a) अवलोकितेश्वर
(b) लोकेश्वर
(c) मैत्रेय
(d) पद्मपाणि

उत्तर: (C)


प्रश्न. बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रायः चित्रित चित्रकारी है, जो: (2017)

(a) अजंता में है 
(b) बदामी में है
(c) बाघ में है
(d) एलोरा में है

उत्तर: (A)

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