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भारतीय राजव्यवस्था

मंत्रिमंडलीय समितियों में नियुक्ति

  • 08 Jul 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मंत्रिमंडलीय समितियाँ, लोकसभा अध्यक्ष, संसद सदस्य, प्रधानमंत्री, स्थायी समितियाँ

मेन्स के लिये:

मंत्रिमंडलीय समितियों के लिये चुनौतियाँ, मंत्रिमंडलीय समितियों के लिये सुझाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्र सरकार ने आठ मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन किया, जिसमें आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) में तीन नए सदस्य शामिल किये गए तथा मंत्रिमंडलीय नियुक्ति समिति (ACC) तथा सुरक्षा पर मंत्रिमंडलीय समिति (CCS) में कोई बदलाव नहीं किया गया।

  • एक अन्य घटनाक्रम में, लोकसभा अध्यक्ष द्वारा संसद सदस्यों के शपथ ग्रहण नियमों में संशोधन किया है, जिसके तहत सदन के सदस्य के रूप में शपथ के दौरान उन्हें किसी भी टिप्पणी करने से रोका गया है।

मंत्रिमंडलीय समितियाँ क्या हैं?

  • परिचय:
    • मंत्रिमंडलीय समितियाँ, केंद्रीय मंत्रिमंडल का एक उपसमूह है, जिसमें चयनित केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
    • इन समितियों की स्थापना विभिन्न समूहों, जैसे आर्थिक मामलों, सुरक्षा, संसदीय मामलों एवं राजनीतिक मामलों से निपटने वाले समूहों के बीच ज़िम्मेदारियों को विभाजित करके निर्णय लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये की जाती है।
    • वे जटिल मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श करते हैं तथा उनका कुशलतापूर्वक निपटान सुनिश्चित करते हैं, जिन्हें अंतिम अनुमोदन के लिये पूर्ण मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
    • वे श्रम विभाजन तथा प्रभावी प्रत्यायोजन के सिद्धांतों पर आधारित हैं।
  • प्रकार: 
    • स्थायी (स्थायी प्रकृति)
    • तदर्थ (विशेष समस्याओं के समाधान हेतु अस्थायी प्रकृति)
  • मंत्रिमंडलीय समितियों की विशेषताएँ: वे प्रकृति में संविधानेत्तर हैं और कार्य-नियम उनकी स्थापना का प्रावधान करते हैं।
    • भारत में कार्यपालिका भारत सरकार कार्य संचालन नियम, 1961 के अंतर्गत कार्य करती है।
      • ये नियम संविधान के अनुच्छेद 77(3) के अनुसार हैं, "राष्ट्रपति भारत सरकार के कार्यों को अधिक सुविधाजनक और उक्त कार्यों को मंत्रियों के बीच आवंटन के लिये नियम बनाएगा।"
  • सदस्यता:
    • इन्हें प्रधानमंत्री द्वारा समय की आवश्यकताओं और परिस्थिति के अनुसार स्थापित किया जाता है।
    • इनकी सदस्य संख्या तीन से आठ तक होती है। इनमें आमतौर पर केवल कैबिनेट मंत्री ही शामिल होते हैं। हालाँकि गैर-कैबिनेट मंत्रियों को उनकी सदस्यता से वंचित नहीं किया जाता है।
      • इनमें न केवल अपने अधीन आने वाले विषयों के प्रभारी मंत्री शामिल होते हैं, बल्कि अन्य वरिष्ठ मंत्री भी शामिल होते हैं।
    • यदि प्रधानमंत्री किसी समिति के सदस्य हैं, तो वे अनिवार्य रूप से इसकी अध्यक्षता करते हैं।
    • वे न केवल मुद्दों को सुलझाते हैं और कैबिनेट के विचार के लिये प्रस्ताव तैयार करते हैं, बल्कि निर्णय भी लेते हैं। हालाँकि कैबिनेट उनके निर्णयों की समीक्षा कर सकता है।
  • 8 मंत्रिमंडल समितियों (Cabinet Committee) की सूची:
    • आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA)
    • कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC)
    • सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS)
    • आवास पर कैबिनेट समिति
    • संसदीय मामलों पर कैबिनेट समिति (सुपर-कैबिनेट के रूप में संदर्भित)
    • राजनीतिक मामलों पर कैबिनेट समिति
    • निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति
    • कौशल, रोज़गार और आजीविका पर कैबिनेट समिति
  • हाल में हुए परिवर्तन:
    • गृह मंत्री इन सभी समितियों में शामिल होने वाले एकमात्र कैबिनेट सदस्य हैं।
    • आवास समिति और संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति को छोड़कर सभी छह समितियों के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं।
    • नियुक्ति समिति में कोई बदलाव नहीं किया गया है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और जिसमें गृह मंत्री एकमात्र सदस्य हैं।

संसदीय समितियाँ

  • संसदीय समितियाँ विशेष समितियाँ होती हैं, जो संसद के विस्तृत कार्यों को संभालने के लिये गठित की जाती हैं, जो प्रायः इतना जटिल और व्यापक होता है कि उसे सदनों की पूर्ण बैठकों में पूरा नहीं किया जा सकता।
  • वे विशिष्ट मामलों में विस्तृत जाँच, चर्चा और जाँच सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं। संसदीय समितियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं जैसे- स्थायी समितियाँ, विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ (DRSCs) आदि।

मंत्रियों के समूह

  • ये तदर्थ निकाय हैं जो कुछ आकस्मिक मुद्दों और गंभीर समस्या क्षेत्रों पर मंत्रिमंडल को सिफारिशें देने के लिये गठित किये गए हैं।
  • इनमें से कुछ मंत्री समूह मंत्रिमंडल की ओर से निर्णय लेने के लिये अधिकृत हैं, जबकि अन्य मंत्री कैबिनेट समितियों को सिफारिशें करते हैं।
    • मंत्रिसमूहों की संस्था मंत्रालयों के बीच समन्वय का एक व्यवहार्य और प्रभावी बन गई है।
  • संबंधित मंत्रालयों के प्रमुख मंत्रियों को संबंधित मंत्री समूह में शामिल किया जाता है और जब सलाह स्पष्ट हो जाती है तो उन्हें भंग कर दिया जाता है।

लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों हेतु शपथ ग्रहण नियमों में किया संशोधन:

  • सदन के कामकाज से संबंधित विशिष्ट मामलों को प्रबंधित करने के लिये 'अध्यक्ष द्वारा निर्देश' के अंतर्गत 'निर्देश 1' में एक नया खंड जोड़ा गया है, जो मौजूदा नियमों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से शामिल नहीं है।
  • ‘निर्देश 1’ में संशोधन के अनुसार, नए खंड 3 में कहा गया है कि कोई सदस्य निर्धारित प्रपत्र में उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में किसी भी शब्द या अभिव्यक्ति का उपयोग किये बिना शपथ लेगा और प्रतिज्ञान करेगा।

कैबिनेट समितियों की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ओवरलैपिंग जनादेश: इससे देरी, अक्षमता और समितियों के बीच संघर्ष होता है क्योंकि वे नियंत्रण के लिये लड़ते हैं। प्रस्ताव में रुकावट आ जाती हैं जिससे निर्णय लेने में देरी होती है।
  • विशेषज्ञता की कमी: स्वास्थ्य सेवा नीति पर केंद्रित समिति में चिकित्सा पेशेवरों की कमी हो सकती है। इससे गलत निर्णय लिये जा सकते हैं और अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं। इस प्रकार विशेषज्ञों की कमी के कारण दीर्घकालिक नीतिगत परिणाम हो सकते हैं।
  • सूचना साइलो और खराब संचार: समितियाँ अलग-थलग होकर काम कर सकती हैं, सूचना साझा नहीं कर सकती या सहयोग नहीं कर सकती। इससे अस्पष्टता पैदा होती है तथा समग्र दृष्टिकोण में बाधा आती है। इससे प्रयासों में पुनरावृत्ति होती है, तालमेल के अवसर चूक जाते हैं और सीमित सूचना के आधार पर निर्णय लिये जाते हैं।
  • राजनीतिक दबाव और अल्पकालिकता: राजनीतिक विचार समितियों को दीर्घकालिक रणनीतिक योजना के बजाय अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। इससे सक्रिय समाधानों के बजाय प्रतिक्रियात्मक उपाय हो सकते हैं।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव: लिये गए निर्णयों को छिपाया नहीं जाना चाहिये क्योंकि इससे विश्वास में कमी आती है। समिति की गतिविधियों और निर्णयों के बारे में स्पष्ट जानकारी के बिना विधायिका उन्हें जवाबदेह नहीं ठहरा सकती।
  • सत्ता का संकेंद्रण: यदि निर्णय लेने का अधिकार केवल कुछ समितियों या व्यक्तियों के पास होगा तो मूल्यवान मत के बहिष्कृत होने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप लिये गए निर्णय असंतुलित हो सकते हैं। यह संभव है कि महत्त्वपूर्ण मत की अनदेखी हो जाएगी जिससे संभावित रूप से सृजनात्मक समाधानों की उपेक्षा हो सकती है और असंतुष्ट पक्षों में आक्रोश उत्पन्न हो सकता है।

आगे की राह

  • स्पष्ट अधिदेश: किसी भी प्रकार की संशयात्मक स्थिति से बचने के लिये समिति के अधिदेशों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये। अंतर-समिति विवादों के लिये एक केंद्रीय संघर्ष समाधान निकाय की स्थापना करने की आवश्यकता है।
  • विशेषज्ञ नियुक्ति: सलाहकार या अस्थायी समिति सदस्यों के रूप में विषय वस्तु विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिये। विशेष ज्ञान हेतु विदेशी प्रबुद्ध मंडलों के साथ साझेदारी की जा सकती है।
  • बेहतर सूचना साझाकरण: सभी समितियों के लिये एक केंद्रीकृत सूचना साझाकरण प्लेटफॉर्म स्थापित करने की आवश्यकता है। सहयोग को बढ़ावा देने के लिये नियमित अंतर-समिति पत्रसार (Briefings) किया जाना चाहिये।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: समितियों को अल्पकालिक कार्रवाई के साथ-साथ दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाएँ बनाने हेतु अधिदेश दिया जाना चाहिये। निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्ष आर्थिक या सामाजिक प्रभाव आकलन को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • जवाबदेहिता: नियमित रूप से बैठक का कार्यविवरण और सारांश जारी करना जवाबदेहिता सुनिश्चित करता है।
  • व्यापक-आधारित परामर्श: परामर्श अधिक व्यापक-आधारित होना चाहिये। अन्य कैबिनेट सदस्यों को विशेष आमंत्रण देकर आमंत्रित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

मंत्रिमंडलीय समितियों की भूमिका और महत्त्व की विवेचना कीजिये। नीति के निर्माण और इसके कार्यान्वयन में उनकी प्रभावकारिता बढ़ाने के उपायों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न सचिवालय मंत्रिमंडल का निम्न में से क्या है? (2014)

  1. मंत्रिमंडल बैठक के लिये कार्यसूची तैयार करना।
  2. मंत्रिमंडल समितियों को साचिविक सहायता।
  3. मंत्रालयों को वित्तीय संसाधनों का आवंटन।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)

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