डेली न्यूज़ (31 Oct, 2023)



तटीय अनुकूलन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना- 2019, तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली, मैंग्रोव

मेन्स के लिये:

तटीय अनुकूलन से होने वाले लाभ, तटीय प्रबंधन से संबंधित भारत सरकार की पहल।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल  में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में कई क्षेत्रों में तटीय अनुकूलन पहल पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें मुंबई, सुंदरबन में घोरमारा, ओडिशा में पुरी और कोंकण क्षेत्र जैसे भारतीय तटीय क्षेत्र शामिल हैं तथा उनके प्रयासों को 'मध्यम-से-उच्च' अनुकूलन उपायों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:  

  • निम्न तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव: 
    • निम्न तटीय क्षेत्र में, जहाँ बाढ़ का खतरा है, वैश्विक जनसंख्या घनत्व का लगभग 11% हिस्सा निवास करता है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 14% का योगदान करते हैं।
  • विश्व में क्षेत्रीय अनुकूलन असमानताएँ:
    • सर्वेक्षण किये गए लगभग 50% क्षेत्रों में अनुकूलन में काफी अंतर दिखाई दिया, जिसमें भेद्यता के मूल कारणों की अनदेखी करते हुए व्यक्तिगत जोखिमों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • लगभग 13% केस स्टडीज़ ने उच्चतम स्तर के अनुकूलन का खुलासा किया, जो मुख्य रूप से यूरोप और उत्तरी अमेरिका में लक्षित हुए। 
    • ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड सहित अन्य शेष मध्यम श्रेणी में आ गए
  • विशिष्ट भारतीय तटीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न अनुकूलन स्थितियाँ:
    • भारत से मुंबई, पुरी, कोंकण और सुंदरबन के घोरमारा क्षेत्र में अलग-अलग अनुकूलन उपायों का प्रदर्शन किया गया।
      • घोरमारा ने सामान्य अनुकूलन योजनाएँ प्रदर्शित कीं, जिनमें स्थानीय स्तर पर राज्य-एजेंसी की विशिष्ट रणनीतियों का अभाव था।
      • कोंकण क्षेत्र में भी अनुकूलन योजनाओं का अभाव है, जिससे राज्य की कार्य योजना में कई तटीय खतरों की उपेक्षा की गई है।
      • जबकि मुंबई के पास जलवायु कार्य योजना मौजूद है,  फिर भी इसकी अनुकूलन रणनीतियाँ जोखिमों का सटीक मूल्यांकन करने और सुभेद्य निवासियों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने में विफल रहीं।
      • पुरी में कार्य योजनाएँ होने के बावजूद, क्षेत्र-विशिष्ट अनुकूलन रणनीतियों और उच्च जोखिम वाले समुदायों की पहचान का अभाव था।

तटीय अनुकूलन

  • परिचय: 
    • तटीय अनुकूलन में तटीय क्षेत्रों पर प्राकृतिक खतरों एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने तथा इसे कम करने के लिये की गई रणनीतियाँ और कार्रवाइयाँ शामिल हैं, जिसका उद्देश्य समुदायों तथा बुनियादी ढाँचे को बढ़ते समुद्र के स्तर, क्षरण एवं चरम मौसमी घटनाओं से बचाना है।
      • इसके अतिरिक्त, तटीय अनुकूलन उपायों में कई प्रकार के आर्थिक अवसर उत्पन्न करने की क्षमता है।
  • तटीय अनुकूलन से होने वाले लाभ:
    • आर्थिक विविधीकरण: तटीय अनुकूलन पहलों के कार्यान्वयन से जलवायु-समुत्थानशील बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण-पर्यटन से संबंधित नए उद्योगों के निर्माण के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे संभावित रूप से रोज़गार एवं व्यापार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
    • जैवविविधता संवर्धन: प्रभावी तटीय अनुकूलन अप्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की बहाली और संरक्षण का कारण बन सकता है।
      • यह पुनर्स्थापन स्थानीय प्रजातियों को संरक्षित करने और लुप्तप्राय या सुभेद्य प्रजातियों के लिये आवासों के विकास को बढ़ावा देने में सहायता करती है।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण और समुत्थानशक्ति निर्माण: तटीय समुदायों की आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को कम करने में तटीय अनुकूलन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • लचीले बुनियादी ढाँचे, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और प्राकृतिक बाधाओं के निर्माण जैसे उपायों को लागू करके, यह तूफान, सुनामी तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सहायता करता है।
      • इन आपदाओं से जुड़े खतरों को कम करके, तटीय लचीलेपन को मज़बूत करने से लोगों के जीवन, संपत्ति और आजीविका के साधनों की रक्षा होती है।
    • स्थायी खाद्य स्रोत और आजीविका: प्रभावी तटीय अनुकूलन, विशेष रूप से एक्वाकल्चर, स्थायी मत्स्यन एवं तटीय क्षेत्रों में एकीकृत कृषि जैसी प्रथाएँ, समुद्री भोजन तथा कृषि उपज की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती हैं।
      • यह तटीय समुदायों के लिये आजीविका सुरक्षित करता है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है।
  • संबंधित चुनौतियाँ:
    • जटिल हितधारक समन्वय: तटीय अनुकूलन में सरकारी निकायों, स्थानीय समुदायों, व्यवसायों और पर्यावरण समूहों सहित कई हितधारक शामिल होते हैं।
      • इन विविध हितों का समन्वय करना और उनके बीच प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करना अलग-अलग प्राथमिकताओं के कारण सामान्यतः मुश्किल होता है, जिससे सहयोग में देरी तथा हितों में टकराव उत्पन्न हो सकता है।
    • भविष्य के जलवायु अनुमानों में अनिश्चितता: समुद्र के स्तर में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाओं सहित भविष्य के जलवायु परिदृश्यों की भविष्यवाणी करना एक चुनौती है।
      • दीर्घकालिक रणनीतियों की योजना बनाते समय अनिश्चित जलवायु अनुमानों को अपनाना एक जटिल कार्य हो सकता है, जिससे बुनियादी ढाँचे और विकास योजना में अनिश्चितताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • सामुदायिक विखंडन और सामाजिक सामंजस्य: कुछ मामलों में तटीय अनुकूलन पहल के कारण भूमि उपयोग में स्थानांतरण या परिवर्तन से समुदायों का विखंडन हो सकता है।
      • जनसंख्या फैलाव या स्थानांतरण सामाजिक संरचनाओं और एकजुटता को बाधित करके समुदाय के लचीलेपन तथा सांस्कृतिक प्रथाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

तटीय प्रबंधन से संबंधित भारत सरकार की पहलें: 

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने जलवायु परिवर्तन के कारण तटरेखा परिवर्तन का प्रबंधन करने के लिये भारत के तटों के लिये खतरे की रेखा का निर्धारण किया है।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019 का उद्देश्य तटीय क्षेत्रों और आजीविका का संरक्षण करना है साथ ही नो डेवलपमेंट ज़ोन को परिभाषित करते हुए क्षरण नियंत्रण उपायों की अनुमति देना है।
  • तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (CMIS) संवेदनशील हिस्सों पर सुरक्षा संरचनाओं को डिज़ाइन करने और बनाए रखने के लिये तट के निकट तटीय डेटा को एकत्र करती है।
  • पुडुचेरी और केरल में सफल तटीय क्षरण शमन उपायों का प्रदर्शन किया गया, जिससे तटीय क्षेत्रों की बहाली एवं सुरक्षा में सहायता मिली।

आगे की राह:

  • प्रकृति-आधारित समाधान (Nature-Based Solutions- NBS): प्रकृति-आधारित समाधानों पर ज़ोर देना चाहिये जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं के विरुद्ध प्रतिक्रिया करने के बजाय उनके सहायक के रूप में योगदान करें।
    • मैंग्रोव, ज्वारीय दलदल एवं टीलों की बहाली जैसी रणनीतियों को लागू करने से लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तटीय सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
  • समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण: तटीय अनुकूलन उपायों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता है।
    • उन्हें निर्णय लेने में सहायता के लिये विज्ञान संबंधी ज्ञान और संसाधन प्रदान करें, क्योंकि उन्हें पहले से ही संबद्ध क्षेत्र का पारंपरिक ज्ञान है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग: तटीय परिवर्तनों को बेहतर ढंग से समझने और पूर्वानुमान के लिये रिमोट सेंसिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं पूर्वानुमानित मॉडलिंग जैसी नवीन तकनीकों का उपयोग करें।
    • ये उपकरण अधिक सटीक योजना और समस्या समाधान के लिये डेटा प्रदान कर सकते हैं।
  • हाइब्रिड इंजीनियरिंग सॉल्यूशंस: पारंपरिक हार्ड इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेटिव हाइब्रिड इंजीनियरिंग सॉल्यूशंस को एकीकृत करना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये पारंपरिक संरचनाओं में कृत्रिम भित्तियों जैसी प्राकृतिक विशेषताओं को एकीकृत करने से जैवविविधता को बढ़ावा देते हुए तटीय सुरक्षा को बेहतर किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह 

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गये अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)


G7 व्यापार मंत्रियों की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G7 व्यापार मंत्रियों की बैठक, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, कोविड 19 महामारी, मुक्त व्यापार समझौता (FTA), व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)

मेन्स के लिये:

G7 व्यापार मंत्रियों की बैठक, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन संघटन, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने जापान के ओसाका में ग्रुप ऑफ सेवन (G7) के व्यापार मंत्रियों के साथ बैठक में भाग लिया।

बैठक के मुख्य तथ्य:

  • आपूर्ति शृंखला लचीलापन:
    • भारत ने वैश्विक स्तर पर आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाने के विषय पर एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप किया और इस मुद्दे पर कई सुझाव भी दिये।
    • भारत ने यह भी उल्लेख किया कि कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक घटनाओं ने मौजूदा आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियों को उजागर किया है, जिससे कमोडिटी/वस्तुओं की कीमतों एवं वैश्विक मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है। 
    • भारत ने सदस्य राष्ट्रों से आपूर्ति शृंखलाओं के परिवहन को आसान बनाने और सीमा पार व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये एक नियामक ढाँचे पर सहयोग करने का आग्रह किया।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के मानचित्रण के लिये सामान्य रूपरेखा:
    • भारत ने सदस्य देशों को जोखिमों की पहचान करने और व्यापार में लचीलापन बढ़ाने में सहायता करने के लिये G20 की नई दिल्ली घोषणा में उल्लिखित वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के मानचित्रण के लिये जेनेरिक फ्रेमवर्क का भी संदर्भ दिया।
  • सार्वजनिक निजी साझेदारी को प्रोत्साहन:
    • भारत ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में निवेश और आपूर्ति शृंखलाओं के नवाचार तथा डिजिटलीकरण की आवश्यकता को भी प्रोत्साहित किया।
  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
    • बैठक से आलावा भारत और यूनाइटेड किंगडम ने प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की प्रगति की समीक्षा की, जिसके लिये यह चर्चा अंतिम चरण में पहुँच गई है। 
    • इन वार्ताओं का उद्देश्य रूल्स ऑफ ओरिजिन और सेवा क्षेत्र जैसे मुद्दों पर मतभेदों को दूर करना है।
      • रूल्स ऑफ ओरिजिन किसी उत्पाद का राष्ट्रीय स्रोत निर्धारित करते हैं। उनका महत्त्व इस तथ्य से मिलता है कि कई मामलों में शुल्क और प्रतिबंध आयात के स्रोत पर निर्भर करते हैं।
      • यूनाइटेड किंगडम स्कॉच व्हिस्की, ऑटोमोबाइल, मेमने का माँस, चॉकलेट और कुछ कन्फेक्शनरी वस्तुओं पर आयात शुल्क में उल्लेखनीय कमी करना चाहता है। वह भारतीय बाज़ारों में विशेष रूप से दूरसंचार, कानूनी और वित्तीय सेवाओं में यूनाइटेड किंगडम सेवाओं के लिये अधिक अवसर चाहता है।
  • व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता:

ग्रुप ऑफ सेवन (G7):

  • परिचय:
    • यह एक वैश्विक अंतरसरकारी संगठन है जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
    • वैश्विक आर्थिक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये G7 देशों की वार्षिक बैठक होती है।
  • सदस्य देश:
    • G7 देश यूके, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका हैं।
      • सभी G7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
  • औपचारिक चार्टर/सचिवालय:
    • G7 के पास कोई औपचारिक चार्टर या सचिवालय नहीं है। एजेंडा स्थापित करने का कार्य अध्यक्ष करता है, यह अध्यक्ष पद सदस्य देशों के बीच प्रत्येक वर्ष स्थानांतरित होता रहता है।
      • शेरपा, मंत्री और दूत शिखर सम्मेलन से पहले नीतिगत पहलों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
  • वैश्विक आर्थिक रुझान:
    • G7 देश वैश्विक व्यापार में महत्त्वपूर्ण प्रतिभागी हैं, विशेष रूप से अमेरिका और जर्मनी निर्यातक देशों में प्रमुख हैं। दोनों ने वर्ष 2021 में विदेशों में एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया।  
    • वर्ष 2022 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में G7 देशों का योगदान 30% था। वर्ष 2027 में यह आँकड़ा घटकर 28% रहने का अनुमान है।
      • G7 देशों के अतिरिक्त G20 देशों की GDP वर्ष 2027 में कुल वैश्विक GDP का लगभग 44.5% होने का अनुमान है, जिसमें वर्ष 2022 से लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

मुक्त व्यापार समझौता: 

  • यह दो अथवा दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात की बाधाओं को कम करने हेतु एक समझौता है।
  • मुक्त व्यापार नीति के तहत, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार बहुत कम अथवा बिना किसी सरकारी सीमा शुल्क, कोटा, सब्सिडी अथवा विनिमय प्रतिबंध से मुक्त वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदा और बेचा जा सकता है।
  • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद अथवा आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
  • FTA को तरजीही व्यापार समझौते (SAPTA):, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।


इज़रायल-हमास संघर्ष और इसका वैश्विक प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

इज़रायल-हमास संघर्ष, गाज़ा पट्टी, होर्मुज़ जलडमरूमध्य

मेन्स के लिये:

भारत पर इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य, वैश्विक व्यापार युद्ध, तेल की कीमतों में हेरफेर।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हमास को समाप्त करने के लिये गाज़ा पट्टी में इज़रायल के ज़मीनी हमले के कारण इज़रायल-हमास के बीच चल रहा संघर्ष और बढ़ गया है। इसने संघर्ष के बाद के चरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं

  • वैश्विक मीडिया कंपनी ब्लूमबर्ग ने संघर्ष के लिये तीन परिदृश्यों की रूपरेखा तैयार की है कि कैसे प्रत्येक परिदृश्य विश्व के देशों को प्रभावित कर सकता है।

संघर्ष के तीन संभावित परिदृश्य और उनके प्रभाव: 

  • गाज़ा में सीमित संघर्ष:
    • इस परिदृश्य में अन्य क्षेत्रों में सीमित विस्तार के साथ संघर्ष मुख्य रूप से गाज़ा पट्टी में स्थानीयकृत है।
    • संभावित प्रभाव:
      • इसके वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सीमित एवं प्रत्यक्ष प्रभाव है, फिर भी विभिन्न असफलताओं से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये यह खबर चिंताजनक है, क्योंकि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक मंदी को नियंत्रित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
      • इस संघर्ष के परिणामस्वरूप गाज़ा में मानवीय संकट बढ़ सकता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग आहत हो सकते हैं, वर्तमान में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या 8,000 से अधिक हो चुकी है।
  • ईरान समर्थित उग्रवादियों के साथ क्षेत्रीय संघर्ष:
    • इस परिदृश्य में एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष शामिल है, जिसमें लेबनान और सीरिया में ईरान समर्थित आतंकी समूहों के साथ-साथ यमन में हूती की संभावित भागीदारी शामिल है।
    • संभावित प्रभाव:
      • इससे कई क्षेत्रीय स्थानों पर हिंसा बढ़ सकती है, जिससे अस्थिरता और संघर्ष बढ़ सकता है।
      • तेल की कीमतें, वर्तमान कीमत 90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर पहुँच सकती हैं।
      • विश्व स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति दर, संभावित रूप से वैश्विक आर्थिक विकास में 0.3% अंक की कमी ला सकती है।
  • इज़राइल, ईरान और प्रमुख शक्तियों से पूर्ण युद्ध:
    • इसके सबसे चरम परिदृश्य में क्षेत्रीय शक्तियों इज़राइल और ईरान के बीच पूर्ण पैमाने पर संघर्ष की परिकल्पना की जा रही है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ शामिल हो सकती हैं 
    • संभावित प्रभाव:
      • यह संघर्ष मध्य पूर्व में व्यापार और वैश्विक कच्चे तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है, जिससे इस क्षेत्र के कई देश एवं उनके व्यापारिक भागीदार प्रभावित होंगे।
        • विश्व की 20% से अधिक कच्चे तेल की आपूर्ति पश्चिमी एशिया से होती है, इस क्षेत्र में संघर्ष से कच्चे तेल की कीमतें 150 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं।
        • सऊदी अरब और UAE की संभावित क्षमता के बावज़ूद, अगर वे ईरान के साथ गठबंधन नहीं करते हैं तो इससे तेल शिपमेंट को होर्मुज़ जलडमरूमध्य से परिवहन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो 48 किलोमीटर का शिपिंग चोकपॉइंट है, जिसके माध्यम से विश्व के कुल उत्पादन परिवहन तेल का लगभग 5वाँ हिस्सा गुजरता है।
      • वर्ष 2024 में वैश्विक मुद्रास्फीति लगभग 6.7% तक बढ़ सकती है, जिससे संभावित रूप से वैश्विक आर्थिक विकास में लगभग 2% की कमी की संभावना है । इसके अलावा भारत और अमेरिका जैसे देशों के लिये गंभीर प्रभाव के परिणामस्वरूप संभावित वैश्विक मंदी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

हमास:

  • परिचय:
    • हमास एक फिलिस्तीनी राजनीतिक सशस्त्र समूह है जिसकी स्थापना वर्ष 1987 में हुई थी। यह एक उग्रवादी समूह है जो इज़रायली कब्ज़े के खिलाफ एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में उभरा था।
  • पृष्ठभूमि:
    • हमास की स्थापना वर्ष 1987 में मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में की गई थी जो हिंसक जिहाद के माध्यम से अपने एजेंडे को पूरा करना चाहता था।
      • इसने इज़रायली कब्ज़े और फतह के खिलाफ एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में लोकप्रियता हासिल की।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वर्ष 1997 में हमास को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया। इज़रायल और अधिकांश यूरोप सहित कई अन्य देश भी हमास के प्रति यही दृष्टिकोण अपनाते हैं।
  • विचारधारा:
    • हमास का मानना है कि फिलिस्तीन की भूमि के किसी भी भाग का समझौता नहीं किया जाएगा और न ही उसे किसी को दिया जायेगा।
    • फिलिस्तीन की पूर्ण मुक्ति के अतिरिक्त, हमास अन्य सभी विकल्पों को अस्वीकार करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भूमध्य सागर निम्नलिखित में से किन देशों की सीमा है? (2017)

  1. जॉर्डन 
  2. इराक 
  3. लेबनान 
  4. सीरिया

निम्नलिखित कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4 

उत्तर: (c)


प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन 
(c) लेबनान 
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018)

(a) चीन 
(b) इज़रायल 
(c) इराक
(d) यमन 

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)


साइबर-सुरक्षा में आत्मनिर्भरता

प्रिलिम्स के लिये:

साइबर-सुरक्षा में आत्मनिर्भरता, भारत मोबाइल कॉन्ग्रेस, भारत का डिजिटल बुनियादी ढाँचा, राष्ट्रीय सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति- 2020

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता, IT, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस के 7वें संस्करण के दौरान साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता के महत्त्व को रेखांकित किया।

  • हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और कनेक्टिविटी सहित संपूर्ण साइबर सुरक्षा मूल्य शृंखला में आत्मनिर्भरता पर प्रधानमंत्री का ज़ोर भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंता को दर्शाता है।

साइबर सुरक्षा:

  • साइबर सुरक्षा कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क, डिवाइस और डेटा की चोरी, क्षति, अनधिकृत पहुँच या किसी भी प्रकार के दुर्भावनापूर्ण इरादे से बचाने की प्रथा है।
  • इसमें डिजिटल जानकारी के साथ-साथ इसे संगृहीत, संसाधित व प्रसारित करने वाले बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये डिज़ाइन की गई प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं और प्रथाओं की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।

साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता:

  • परिचय:
    • साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता से तात्पर्य किसी अन्य देश की प्रौद्योगिकी या सहायता पर बहुत अधिक निर्भर हुए बिना अपने डिजिटल बुनियादी ढाँचे, डेटा एवं सूचना प्रणालियों की सुरक्षा के लिये अपनी क्षमताओं, प्रौद्योगिकियों और विशेषज्ञता को विकसित करने व इसे बनाए रखने की क्षमता से है।
    • यह साइबर सुरक्षा उपकरणों और विशेषज्ञता के लिये बाह्य स्रोतों पर निर्भरता को कम करते हुए स्वदेशी साइबर सुरक्षा समाधानों एवं प्रथाओं के विकास व इसकी तैनाती पर बल देती है।
  • साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा: देश की कई महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा प्रणालियाँ, जैसे ऊर्जा ग्रिड, परिवहन नेटवर्क और संचार प्रणालियाँ, डिजिटल प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं।
      • आधुनिक सैन्य अभियान काफी हद तक डिजिटल तकनीक पर निर्भर हैं।
      • साइबर सुरक्षा में किसी भी समझौते के परिणामस्वरूप व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी सीधा खतरा उत्पन्न हो सकता है। 
    • भू-राजनीतिक विचार: विदेशी प्रौद्योगिकी पर अत्यधिक निर्भरता, विशेष रूप से उन देशों से जिनके साथ भारत के चीन जैसे तनावपूर्ण संबंध हो सकते हैं, सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
      • भारत चिंतित है क्योंकि वह इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये अपना अधिकांश कच्चा माल चीन से आयात करता है।
      • आत्मनिर्भर होने से प्रौद्योगिकी के लिये बाह्य प्रौद्योगिकी स्रोतों पर निर्भर रहने से जुड़े जोखिम कम हो जाते हैं।
  • तकनीकी स्वतंत्रता: आत्मनिर्भरता के लिये सुरक्षित और विश्वसनीय हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर तथा नेटवर्किंग घटकों के निर्माण की आवश्यकता होती है।
    • यह साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है।
    • विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियाँ उत्पन्न कर सकती है। आत्मनिर्भरता भारत के संभावित जोखिमों को कम करते हुए संपूर्ण प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखला पर अधिक नियंत्रण रखने की अनुमति देती है।

भारत में साइबर सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ:

  • लाभ-अनुकूल बुनियादी ढाँचा मानसिकता:
    • उदारीकरण के बाद, सूचना प्रौद्योगिकी (IT), विद्युत और दूरसंचार क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा बड़े निवेश देखे गए हैं। हालाँकि साइबर हमले की तैयारी और नियामक ढाँचे में सुधार पर पर्याप्त ध्यान न देना चिंता का विषय है।
    • सभी ऑपरेटरों के लिये लाभ मुख्य प्राथमिकता है और वे बुनियादी ढाँचे में निवेश नहीं करना चाहते हैं जिससे उन्हें लाभ नहीं मिलेगा।
  • पृथक प्रक्रियात्मक संहिता का अभाव:
    • साइबर या कंप्यूटर से संबंधित अपराधों की जाँच के लिये कोई पृथक प्रक्रियात्मक संहिता उपलब्ध नहीं है।
  • साइबर हमलों की ट्रांस-नेशनल प्रकृति:
    • अधिकांश साइबर अपराध अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति के होते हैं। विदेशी क्षेत्रों से साक्ष्य एकत्र करना न केवल एक कठिन बल्कि धीमी प्रक्रिया है।
  • डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार:
    • विगत कुछ वर्षों में भारत अपने विभिन्न आर्थिक पहलुओं को डिजिटल बनाने की राह पर आगे बढ़ा है और उसने सफलतापूर्वक अपने लिये एक स्थान सुनिश्चित किया है।
    • 5G और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी नवीनतम प्रौद्योगिकियाँ इंटरनेट से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र के कवरेज को बढ़ाने में सहायता प्रदान करेंगी।
    • डिजिटलीकरण के आगमन के साथ, सर्वोपरि उपभोक्ता और नागरिक डेटा को डिजिटल रूप से एकत्र किया जाएगा तथा लेनदेन की प्रक्रिया ऑनलाइन किये जाने की संभावना है जो मुख्य रूप से हैकर्स एवं साइबर अपराधियों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
  • सीमित विशेषज्ञता और अधिकार:
    • देश में क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित दर्ज अपराधों की संख्या कम है क्योंकि ऐसे अपराधों को हल करने की क्षमता सीमित है।
    • हालाँकि अधिकांश राज्य साइबर लैब हार्ड डिस्क और मोबाइल फोन का विश्लेषण करने में सक्षम हैं, फिर भी उन्हें 'इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के परीक्षक' (केंद्र सरकार द्वारा) के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। मान्यता के बिना वे इलेक्ट्रॉनिक डेटा संबंधित विशेषज्ञ राय प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं।

प्रौद्योगिकी में भारत का प्रदर्शन:

  • घरेलू आपूर्ति शृंखला भागीदार:
    • भारत अपने आपूर्ति शृंखला भागीदारों, विशेषकर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विविधता लाने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में चीनी भागीदारों के प्रभुत्व को देखते हुए यह विविधीकरण आवश्यक है।
    • सरकार मैलवेयर और साइबर खतरों को रोकने के लिये अधिक विश्वसनीय एवं सुरक्षित आपूर्ति शृंखला स्थापित करना चाहती है।
  • 5G और मोबाइल ब्रॉडबैंड:
    • सरकार ने देश भर के शैक्षणिक संस्थानों को 100 5G यूज़ केस लैब से सम्मानित किया, जो 5G बुनियादी ढाँचे को आगे बढ़ाने के लिये उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • भारत इंटरनेट सेवा के मामले में 5G रोलआउट चरण से 5G रीच-आउट चरण में पहुँच गया है। केवल एक वर्ष में औसत मोबाइल ब्रॉडबैंड स्पीड तीन गुना बढ़ गई है।
    • 6G तकनीक में अग्रणी होने के भारत के प्रयास तकनीकी प्रगति में सबसे आगे रहने की देश की महत्त्वाकांक्षा को रेखांकित करता है।
  • ब्रॉडबैंड स्पीड:
    • ब्रॉडबैंड स्पीड के मामले में भारत की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, जो वैश्विक स्तर पर 118वें से 43वें स्थान पर पहुँच गया है, यह देश में हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस की वृद्धि को इंगित करता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन विनिर्माण:
    • देश में इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन निर्माण में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
    • सेमीकंडक्टर विनिर्माण प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण घटक है और हार्डवेयर उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • स्टार्टअप इकोसिस्टम:
    • भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम फल-फूल रहा है, स्टार्टअप की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
    • वर्ष 2014 से पहले 100 स्टार्टअप थे, जिनकी संख्या बढ़कर आज लगभग 100,000 तक पहुँच गई है।

आगे की राह 

  • साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना। नवाचार और स्वदेशी साइबर सुरक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकारी एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच साझेदारी स्थापित करना।
  • नवीन साइबर सुरक्षा समाधानों पर कार्य करने वाले साइबर सुरक्षा स्टार्टअप और छोटे व मध्यम आकार के उद्यमों (SME) को सहायता, वित्त पोषण एवं प्रोत्साहन प्रदान करना। ये स्टार्टअप देश में घरेलू सुरक्षा तकनीक स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

ई-कॉमर्स का जटिल परिदृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन, ई-कॉमर्स, क्रिप्टोकरेंसी, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस(GeM), भारतनेट परियोजना, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति, उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020

मेन्स के लिये:

ई-कॉमर्स और संबंधित मुद्दों द्वारा प्रदान किये गए लाभ

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की हालिया बैठक में भारत ने वस्तुओं और सेवाओं में ई-कॉमर्स व्यापार की स्पष्ट परिभाषा की कमी पर चिंता जताई है।

  • सटीक चित्रण के अभाव के कारण विकसित और विकासशील सदस्य देशों के बीच विरोधाभासी विचार उत्पन्न हो गए हैं, विशेषकर सीमा शुल्क लगाने के संबंध में।

ई-कॉमर्स से संबंधित विवाद के प्राथमिक कारक:

  • ई-कॉमर्स में व्याख्यात्मक भिन्नता: वस्तु बनाम सेवाएँ
    • विकसित और विकासशील देशों की ई-कॉमर्स की व्याख्या में भिन्नता है, विशेषकर वस्तुओं और सेवाओं पर सीमा शुल्क लगाने के संदर्भ में। 
      • इस चुनौती का उदाहरण नेटफ्लिक्स जैसी स्ट्रीमिंग सेवाओं के मामले में देखा जाता है, जहाँ कंटेंट (एक उत्पाद) सेवा सदस्यता के माध्यम से वितरित की जाती है।
    • इस भिन्नता से WTO ढाँचे के भीतर स्पष्ट नीतियों का निर्माण और अधिक जटिल हो गया है।
  • सीमा शुल्क से संबंधित अनिश्चितताएँ:
    • WTO के सदस्य वर्ष 1998 से इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क लगाने के संबंध में अधिस्थगन की अवधि को समय-समय पर बढ़ाते रहे हैं। इसे आखिर बार 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान बढाया गया था।
    • किंतु सेवाओं में ई-कॉमर्स व्यापार के लिये एक परिभाषित ढाँचे के न होने के परिणामस्वरुप अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे समान अवसर बनाए रखने को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • भारत संबद्ध विषय पर सटीक परिभाषा की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है तथा विशेष रूप से डिजिटल वस्तुओं और सेवाओं के बीच अंतर स्पष्ट करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है क्योंकि सीमा शुल्क पहले से ही वस्तुओं पर लगाए जाते हैं किंतु सेवाओं पर नहीं।

नोट: विकसित देश शुल्क-मुक्त वातावरण का समर्थन करते हैं, जबकि विकासशील देश घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) के विकास का समर्थन करने के उद्देश्य से शुल्क लगाने के लिये नीतिगत स्थान चाहते हैं।

  • क्रिप्टोकरेंसी: ई-कॉमर्स व्यवधान: 
    • ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि क्रिप्टोकरेंसी की वृद्धि मौजूदा WTO ई-कॉमर्स ढाँचे के लिये एक चुनौती है, जिससे उन्हें इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन के रूप में वर्गीकृत करने के लिये चर्चा की तत्काल आवश्यकता है।

ई-कॉमर्स:

  • परिचय: 
    • विश्व व्यापार संगठन ई-कॉमर्स को वस्तुओं और सेवाओं के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन, वितरण, बिक्री या डिलीवरी करने वाले प्लेटफॉर्म के रूप में परिभाषित करता है।
    • इसमें डिजिटल रूप से प्रसारित किताबें, संगीत और वीडियो जैसे उत्पाद शामिल हैं।
  • ई-कॉमर्स द्वारा प्रदत्त लाभ:
    • सुविधा और अभिगम: इनसे ग्राहक उत्पादों और सेवाओं को अद्वितीय सुविधा एवं अभिगम प्रदान करते हुए, कभी भी, कहीं भी खरीदारी कर सकते हैं। 
    • डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि: उपभोक्ता डेटा तक अभिगम, व्यवसायों के ग्राहक व्यवहार, प्राथमिकताओं और रुझानों को समझने के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जिससे लक्षित विपणन एवं बेहतर ग्राहक अनुभव मिलता है।
    • विविध उत्पाद पेशकश: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म एक ही स्थान पर उत्पादों और सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला पेश करते हैं, जिससे ग्राहकों को विभिन्न प्रकार के उत्पादों के विकल्पों में आसानी से तुलना एवं चयन करने की सुविधा मिलती है।
    • सुविधाजनक भुगतान विकल्प: वर्तमान में कई भुगतान गेटवे और विकल्प उपलब्ध हैं जो व्यवसायों तथा ग्राहकों दोनों के लिये लेनदेन में सरलता एवं सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • 24/7 पहुँच: भौतिक दुकानों के विपरीत, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म 24/7 परिचालन में रहते हैं, जो पूरे विश्व में ग्राहकों के लिये उत्पादों और सेवाओं तक निरंतर पहुँच प्रदान करते हैं।
    • वैश्विक पहुँच: ये प्लेटफार्म व्यवसायों के भौतिक स्थानों तक सीमित हुए बिना विश्वव्यापी बाज़ार तक पहुँचने में सक्षम बनाकर व्यापक ग्राहक आधार तक पहुँच प्रदान करता है।

शुक्र का विवर्तनिक इतिहास

प्रिलिम्स के लिये:

शुक्र, प्लेट विवर्तनिक, पृथ्वी, राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA), डेविंसी, मेरिनर 10 अंतरिक्ष यान।

मेन्स के लिये:

न केवल पृथ्वी पर बल्कि अन्य ग्रहों जैसे शुक्र आदि पर भी विभिन्न भूभौतिकीय घटनाओं की प्रासंगिकता।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार, शुक्र ग्रह, जिसे अक्सर पृथ्वी की बहन कहा जाता है, पर लगभग 4.5 से 3.5 अरब वर्ष पहले विवर्तनिक गतिविधियाँ घटित होने का अनुमान है।

शुक्र का विवर्तनिक इतिहास:

  • प्लेट विवर्तनिकी के बारे में:
    • प्लेट विवर्तनिक, एक मौलिक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो बताता है कि कैसे पृथ्वी का सपाट बाह्य आवरण प्लेट विवर्तनिक में विभाजित है जो ग्रह के आवरण पर घूमती है। इस प्रक्रिया ने महासागरों, महाद्वीपों, पर्वतों के निर्माण और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में योगदान दिया है।
  • शुक्र, पृथ्वी की "बहन" ग्रह:
    • शुक्र और पृथ्वी आकार, द्रव्यमान, घनत्व और आयतन में समानता रखते हैं, स्थलीय ग्रहों में शुक्र सबसे छोटा ग्रह है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि शुक्र और इसके विवर्तनिक इतिहास के दिलचस्प निहितार्थ हैं। इस पर वायुमंडलीय संरचना एवं प्राचीन सूक्ष्मजीव जीवन की संभावना है।
  • निहितार्थ:
    • अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी के समान प्लेट विवर्तनिक ने शुक्र के कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन समृद्ध वातावरण को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।
    • लगभग 96.5% कार्बन डाइऑक्साइड और लगभग 3.5% नाइट्रोजन के साथ, शुक्र की वायुमंडलीय संरचना को समझना आवश्यक है।
    • इसके अलावा, विवर्तनिक गतिविधियों के कारण अरबों साल पहले शुक्र ग्रह सूक्ष्मजीवी जीवों का घर रहा होगा।

प्लेट विवर्तनिक के कारण शुक्र ग्रह पर बदलाव

  • शुक्र ग्रह पर प्लेट विवर्तनिक जल की कमी तथा वातावरण के अधिक गर्म एवं सघन  हो जाने के कारण रुक गया होगा, जिससे संभवतः विवर्तनिक गति के लिये आवश्यक तत्त्व समाप्त हो गए होंगे।
  • शोधकर्त्ताओं का प्रस्ताव है कि ग्रह अलग-अलग विवर्तनिक अवस्थाओं के अंदर और बाहर संक्रमण कर सकते हैं, जिससे यह पता चलता है कि ग्रहों की नियत स्थिति बनाए रखने के स्थान पर रहने योग्य स्थिति में उतार-चढ़ाव होने की संभावना है
    • यह अंतर्दृष्टि किसी ग्रह के इतिहास में विवर्तनिक के सही अथवा गलत होने के द्वि-आधारी परिप्रेक्ष्य को चुनौती देती है
  • अपने निष्कर्षों की पुष्टि करने एवं शुक्र के विवर्तनिक इतिहास को गहनता से जानने के लिये शोधकर्त्ता नासा के शुक्र पर आगामी मिशन, जिसे डेविंसी नाम दिया गया है, से अंतर्दृष्टि की आशा कर रहे हैं।
    • यह मिशन महत्त्वपूर्ण संकेत दे सकता है साथ ही शुक्र के भू-वैज्ञानिक अतीत के बारे में हमारे ज्ञान को आगे बढ़ा सकता है।
    • शोधकर्त्ताओं को यह भी पता लगने की आशा है कि शुक्र की प्लेट विवर्तनिक शक्ति धीरे-धीरे क्षीण क्यों होती जा रही है।

शुक्र ग्रह:

  • परिचय: 
    • इसका नाम प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है। यह आकार एवं द्रव्यमान में सूर्य से दूसरा तथा सौर मंडल में छठा ग्रह है
      • यह रात के आकाश में चंद्रमा के बाद दूसरी सबसे चमकीला प्राकृतिक पिंड है, संभवत: यही कारण है कि यह पहला ग्रह था जिसकी गति आकाश में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व ज्ञात की गई थी
  • विशेषताएँ: 
    • हमारे सौर मंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं
    • कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह है जो अधिक ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करता है।
    • शुक्र ग्रह पर एक दिन एक वर्ष से भी अधिक लंबा होता है। शुक्र को अपनी धुरी पर एक बार परिक्रमा  करने  में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने से अधिक समय लगता है
      • इसे एक बार परिक्रमा करने  में 243 पृथ्वी दिवस लगते हैं- जो सौर मंडल में किसी भी ग्रह का सबसे लंबा परिक्रमण है, साथ ही इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करने में मात्र 224.7 पृथ्वी दिवस ही लगते हैं।
  • पृथ्वी के साथ तुलना:
    • शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार एवं घनत्व में समानता तथा सौर मंडल में पृथ्वी के समान सापेक्ष स्थान के कारण पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह कहा जाता है।
    • चूँकि चंद्रमा के अतिरिक्त शुक्र पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है, अन्य कोई भी ग्रह अपने निकटतम बिंदु पर पृथ्वी के सापेक्ष शुक्र से अधिक निकट नहीं है।
    • शुक्र ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में 90 गुना अधिक वायुमंडलीय दबाव है।

मंगल ग्रह के लिये विभिन्न मिशन:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. क्षुदग्रहों तथा धूमकेतु के बीच क्या अंतर होता है? (2011) 

  1. क्षुदग्रह लघु चट्टानी ग्राहिकाएँ (प्लेनेटॉयड) होती हैं, जबकि धूमकेतु हिमशीतित गैसों से निर्मित होते हैं जिन्हें चट्टानी और धातु पदार्थ आपस में बाँधे रहता है।
  2.  क्षुद्रग्रह अधिकांशतः वृहस्पति और मंगल के परिक्रमापथों के बीच पाए जाते हैं, जबकि धूमकेतु अधिकांशतः शुक्र एवं बुध के बीच पाए जाते हैं।
  3.  धूमकेतु गोचर दीप्तिमान पुच्छ दर्शाते हैं, जबकि क्षुदग्रह ऐसा नहीं दर्शाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (2014)

अंतरिक्षयान          प्रयोजन

1- कैसिनी-हाइगेन्स : शुक्र की परिक्रमा करना और दत्त का पृथ्वी तक संचारण करना
2- मेसेंजर              : बुध का मानचित्रण और अन्वेषण
3- वॉयेजर 1 और 2 : बाह्य सौर परिवार का अन्वेषण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)