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उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 में संशोधन की सिफारिश

  • 27 Mar 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 पर एक संसदीय समिति ने सरकार को उपभोक्ताओं के अधिकारों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने और अनुचित प्रथाओं को रोकने के लिये नियमों में संशोधन की सिफारिश की है।

  • इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स या ई-कॉमर्स एक व्यावसायिक मॉडल है, जो फर्मों और व्यक्तियों को इंटरनेट के माध्यम से खरीद और बिक्री की सुविधा प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु

मुद्दे

  • बेहद सस्ती कीमत
    • बाज़ार की कुछ प्रमुख कंपनियों द्वारा अपनाई गई अल्पकालिक रणनीति के रूप में बेहद कम मूल्य निर्धारण, बाज़ार से प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने का कारण बन सकता है, जो कि दीर्घकाल में उपभोक्ताओं के लिये हानिकारक होगा।
      • इस प्रकार की रणनीति में किसी कंपनी द्वारा एक उत्पाद का मूल्य इतना कम निर्धारित किया जाता है कि अन्य कंपनियाँ उसकी प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाती हैं और बाज़ार छोड़ने के लिये मज़बूर हो जाती है।
  • अनुचित प्रथाएँ
    • यद्यपि ई-कॉमर्स उद्यम के कई लाभ हैं, किंतु इस क्षेत्र के विकास ने उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार प्रथाओं, गोपनीयता के उल्लंघन और शिकायतों को दर्ज करने आदि के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
    • इसके परिणामस्वरूप फेक रिव्यू और अनुचित पक्षपात जैसी समस्याएँ अक्सर देखने को मिलती हैं।

प्रमुख सिफारिशें

स्पष्ट परिभाषा

  • ई-कॉमर्स के संदर्भ में अनुचित व्यापार प्रथाओं को और अधिक स्पष्टता के साथ परिभाषित किया जाना चाहिये, साथ ही बड़ी संस्थाओं विशेष रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) और छोटे व्यवसायों द्वारा ऐसी अनुचित प्रथाओं से निपटने के लिये व्यावहारिक कानूनी उपाय किये जाने चाहिये। 
  • ‘ड्रिप प्राइज़िंग’, जहाँ अतिरिक्त शुल्क के कारण उत्पाद का अंतिम मूल्य काफी अधिक हो जाता है, को भी स्पष्टता से परिभाषित किया जाना चाहिये और इस प्रकार की अनुचित प्रथा के विरुद्ध उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिये यथासंभव प्रावधान किये जाने चाहिये।

वितरण शुल्क का निर्धारण

  • उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को ई-कॉमर्स संस्थाओं द्वारा अधिरोपित किये जाने वाले वितरण शुल्क के निर्धारण हेतु व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने चाहिये।

व्यक्तिगत डेटा का वर्गीकरण

  • उपयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता की रक्षा और उनके डेटा की सुरक्षा के लिये समिति ने सिफारिश की है कि उपयोगकर्त्ताओं के व्यक्तिगत डेटा को संवेदनशीलता के स्तर के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है और प्रत्येक स्तर के लिये उपयुक्त सुरक्षा निर्धारित की जा सकती है।

भुगतान सुरक्षा

  • भुगतान गेटवे की एक सुरक्षित और मज़बूत प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, ताकि उपयोगकर्त्ताओं के लेन-देन संबंधी डेटा से किसी भी प्रकार का समझौता न किया जा सके।

स्थानीय डेटा केंद्र

  • सभी प्रमुख ई-मार्केटप्लेस संस्थाओं को भारत में अपना डेटा सेंटर स्थापित करना चाहिये, ताकि उपभोक्ता डेटा को देश की सीमाओं के बाहर किसी सर्वर पर होस्ट न किया जाए और उस डेटा का दुरुपयोग न हो। 

कस्टमर केयर

  • ई-कॉमर्स संस्थाओं को ग्राहकों की समस्याओं को हल करने के लिये एक समर्पित कस्टमर केयर तंत्र स्थापित करना चाहिये, जिसमें कस्टमर केयर नंबर और एक समर्पित कस्टमर केयर अधिकारी होगा।

छोटे/स्थानीय विक्रेताओं को संरक्षण

  • छोटे/स्थानीय विक्रेताओं की सुरक्षा के लिये नियामक तंत्र स्थापित करना काफी महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में छोटे/स्थानीय विक्रेताओं को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने और छोटे खुदरा विक्रेताओं को भी ई-कॉमर्स परिवेश में शामिल करने के लिये सरकार को दिशा-निर्देश जारी करने चाहिये।

भ्रामक तकनीक को हतोत्साहित करना

  • एल्गोरिदम में परिवर्तन, नकली उत्पाद समीक्षा और रेटिंग सहित सभी भ्रामक रणनीतियों को हतोत्साहित करने के लिये कुछ सुधारात्मक तंत्र बनाए जाने चाहिये, ताकि किसी भी तरह से उपभोक्ता हित को नुकसान पहुँचने से रोका जा सके।

उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020

परिचय

  • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 अनिवार्य है, सलाहकारी नहीं। 

प्रयोज्यता

  • ये नियम सभी ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं पर लागू होते हैं, जो भारतीय उपभोक्ताओं को सामान और सेवाएँ प्रदान करते हैं, चाहे वे भारत में पंजीकृत हों अथवा विदेश में।

नोडल अधिकारी

  • ई-कॉमर्स संस्थाओं को अधिनियम या नियमों के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भारत में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने की आवश्यकता है।

कीमत और एक्सपायरी तिथि 

  • ई-कॉमर्स विक्रेताओं को बिक्री के लिये दी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत प्रदर्शित करनी होगी, जिसमें अन्य शुल्कों के साथ कुल शुल्क का ब्रेकअप भी शामिल होगा।
  • इसके अलावा वस्तु की एक्सपायरी तिथि का भी स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया जाना चाहिये।

आयात संबंधी प्रासंगिक निर्णय

  • उपभोक्ताओं को निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिये खरीद से पूर्व सूचित वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित समग्र आवश्यक विवरण देना आवश्यक है, जिसमें ‘उद्गम देश’ से संबंधित सूचना और आयात की स्थिति में आयातक का नाम तथा विवरण और आयातित उत्पादों की प्रामाणिकता से संबंधित गारंटी आदि शामिल हैं।

शिकायत निवारण तंत्र:

  • मार्केटप्लेस तथा विक्रेताओं के लिये एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करना आवश्यक है।
    • ई-कॉमर्स का मार्केटप्लेस मॉडल: इसका अर्थ खरीदार एवं विक्रेता के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने हेतु ई-कॉमर्स इकाइयों को एक डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क प्रदान करना है।

अनुचित व्यापार प्रथाओं, हेर-फेर और पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर रोक लगाना

  • कोई भी ई-कॉमर्स इकाई अनुचित लाभ प्राप्त करने या एक ही वर्ग के उपभोक्ताओं के बीच भेदभाव करने के उद्देश्य से कीमतों में फेरबदल नहीं करेगी और न ही उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रभावित करने वाला कोई मनमाना वर्गीकरण करेगी। 

फेक या गुमराह करने वाली पोस्ट 

  • कोई भी विक्रेता या ई-कॉमर्स इकाई स्वयं को एक उपभोक्ता के रूप में प्रस्तुत नहीं करेगी और वस्तुओं या सेवाओं के बारे में नकली समीक्षा नहीं करेगी, इसके अलावा किसी वस्तु अथवा सेवा की गुणवत्ता या विशेषताओं को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाएगा।

कोई निरसन शुल्क नहीं

  • कोई भी ई-कॉमर्स इकाई उपभोक्ताओं पर निरसन शुल्क अधिरोपित नहीं करेगी।
  • वस्तुओं और सेवाओं के दोषपूर्ण, अपूर्ण और नकली होने की स्थिति में विक्रेताओं को उन्हें वापस लेने से इनकार नहीं करना चाहिये।

नकली उत्पाद बेचने वाले विक्रेताओं का रिकॉर्ड

  • ई-कॉमर्स संस्थाओं को उन सभी विक्रेताओं का रिकॉर्ड रखना होगा, जो बार-बार उन वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करते हैं जिन्हें कॉपीराइट अधिनियम (1957), ट्रेडमार्क अधिनियम (1999) या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) के तहत प्रतिबंधित किया गया है। 

 दंड

  • नियमों के उल्लंघन के मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

स्रोत: द हिंदू

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